विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट अक्तूबर 2011 - मार्च 2012 - आरबीआई - Reserve Bank of India
विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट अक्तूबर 2011 - मार्च 2012
भाग I : अर्धवर्ष के दौरान की गतिविधियां भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा पारदर्शिता और प्रकटन के साथ विदेशी मुद्रा भण्डार के प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता लाने एवं प्रकटन के स्तर में वृद्धि लाने के उद्देश्य से विदेशी मुद्रा भण्डार के प्रबंधन के संबंध में अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है । यह रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष 31 मार्च और 30 सितम्बर की स्थिति के संदर्भ में तैयार की जाती है। इस श्रृंखला में विदेशी मुद्रा भण्डार की यह 18 वीं रिपोर्ट 31 मार्च 2012 की स्थिति पर आधारित है। रिपोर्ट दो भागों में विभाजित है : भाग I में समीक्षाधीन अर्ध-वर्ष के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में घट-बढ संबंधी गतिविधियां और विदेशी मुद्रा भण्डार के परिप्रेक्ष्य में बाहरी देयताओं के संबंध में जानकारी , बाह्य ऋण का समयपूर्व भुगतान/चुकौती, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वित्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी), विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता आदि के संबंध में जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के भाग II में विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के उद्देश्य, सांविधिक उपबंध,विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई गई जोखिम प्रबंधन प्रणालियों , विदेशी मुद्रा भण्डार प्रबंधन के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई गई पारदर्शिता और प्रकटीकरण प्रथाओं के संबंध में जानकारी प्रस्तुत की गई है। I.2 विदेशी मुद्रा भंडार में घट-बढ़ विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2011 के अंत में 311.5 बिलियन अमरीकी डालर रहा । समीक्षाधीन अर्ध-वर्ष के दौरान अक्तूबर 2011 के अंत तक यह 316.2 बिलियन अमरीकी डालर के स्तर तक पहुंच कर मार्च 2012 के अंत में घटकर 294.4 बिलियन अमरीकी डालर हो गया । (सारणी 1 और चार्ट 1) इस कमी के मुख्य कारण घरेलू विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप और पुनर्मूल्यन का प्रभाव रहे। यद्यपि अमरीकी डॉलर और यूरो मध्यवर्ती मुद्राएं हैं और विदेशी मुद्रा आस्तियां अमरीकी ड़ॉलर, यूरो, पौंड स्टर्लिंग, जापानी येन आदि प्रमुख मुद्राओं में धारित की जाती हैं, तथापि विदेशी मुद्रा भंडार का मूल्य केवल अमरीकी डॉलर में ही निर्धारित एवं अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में विदेशी मुद्रा आस्तियों में घट-बढ के मुख्य कारण विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी मुद्राओं की खरीद और बिक्री, विदेशी मुद्रा भंडार के नियोजन के कारण उपचित आय, केंद्रीय सरकार द्वारा सहायता के रुप में विदेशों से प्राप्त राशियां और आस्तियों के पुनर्मूल्यन का प्रभाव है ।
I.3 बाह्य देयताएं बनाम विदेशी मुद्रा भण्डार मार्च 2012 के अंत को भारत की अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी) (जो कि देश की बाह्य वित्तीय आस्तियों और देयताओं के स्टॉक का संक्षिप्त रिका़र्ड है) सारणी 2 में प्रस्तुत है।
मार्च 2012 के अंत में निवल विदेशी देयताएं (आईआईपी) ऋणात्मक (-)244.8 बिलियन अमरीकी डॉलर थीं, अर्थात विदेशी देयताएं विदेशी आस्तियों से अधिक थीं। निवल विदेशी देयताएं (आईआईपी) मार्च 2011 और सितंबर 2011 के अंत में क्रमशः(-)203.6 और (-)196.6 बिलियन अमरीकी डॉलर रहीं । I.4 विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता विदेशी उतार-चढ़ावों को सहने की किसी देश की क्षमता को नापने संबंधी महत्वपूर्ण मापदण्ड के रुप में उभरी है। पूंजी प्रवाहों के बदलते स्वरुप के साथ, आयात के लिए सुरक्षित पूंजी के अनुसार विदेशी मुद्रा भण्डार पर्याप्तता का मूल्यांकन करने का पारंपरिक दृष्टिकोण विस्तृत हो गया है और अब इसमें विभिन्न प्रकार के पूंजी प्रवाहों के आकार, संरचना और जोखिम के स्वरुप के साथ-साथ बाहरी उतार-चढ़ावों के प्रकार जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं; से संबंधित अन्य कई मानदण्ड भी शामिल किए गए हैं। भुगतान संतुलन पर बनी उच्चस्तरीय समिति, जिसके अध्यक्ष डॉ.सी. रंगराजन, तत्कालीन गवर्नर, भारिबैंक थे , द्वारा यह सुझाव दिया गया कि विदेशी मुद्रा भण्डार की पर्याप्तता निर्धारित करते समय 3 से 4 माह के आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा (इंपोर्ट कवर) के पारंपरिक मापदंड के अतिरिक्त भुगतान संबंधी दायित्वों की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए । 1997 में श्री एस.एस.तारापोर (भारिबैंक के तत्कालीन उप गवर्नर) की अध्यक्षता में पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता के लिए वैकल्पिक मानदंडों का सुझाव दिया गया जिसमें लेनदेन आधारित निर्देशांकों के अतिरिक्त मुद्रा और ऋण आधारित निर्देशांक भी शामिल किए गए । पूर्णतर पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति (अध्यक्ष श्री एस.एस.तारापोर, जुलाई 2006) का भी यही मत रहा र्है । हाल के वर्षों में नए उपायों के लागू किए जाने से विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता का मूल्यांकन प्रभावित हुआ है। ऐसे ही एक उपाय के अनुसार प्रयोज्य विदेशी मुद्रा भंडार अगले वर्ष के दौरान विदेशी मुद्रा ऋणों के अनुसूचित परिशोधन (रोल-ओवर के बगैर) से अधिक होना चाहिए। आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा (इंपोर्ट कवर) सितंबर 2011 के अंत में 8.5 माह से कम होकर मार्च 2012 के अंत में 7.1 माह हो गयी । लघु अवधि ऋण** का विदेशी मुद्रा भंडार के साथ अनुपात सितंबर 2011 के अंत तक 23.0 प्रतिशत था और मार्च 2012 के अंत तक 26.6 प्रतिशत तक बढ गया। अ़स्थिर पूंजी प्रवाह (आवर्ती संविभाग अंतर्वाहों और लघु अवधि ऋण के समावेश के लिए व्याख्यित) का विदेशी मुद्रा भंडार के साथ अनुपात सितंबर 2011 के अंत में 68.3 प्रतिशत से मार्च 2012 के अंत तक 79.9 प्रतिशत तक बढ गया । I.5 प्रारक्षित स्वर्ण का प्रबंधन भारतीय रिजर्व बैंक के पास 557.75 टन सोना है जो 31 मार्च 2012 के मूल्य निर्धारण के अनुसार कुल विदेशी मुद्रा भंडार के करीब 9.2 प्रतिशत के बराबर है। इस में से 265.49 टन सोना विदेशों में बैंक ऑफ इंग्लैंड और बीआईएस के पास जमा के रुप में /सुरक्षित अभिरक्षा में रखा गया है। I.6 विदेशी मुद्रा आस्तियों के निवेश का स्वरुप और उससे आय सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के व्यापक अनुसरण में बने मौजूदा मानदण्डों के अनुरुप विदेशी मुद्रा आस्तियों का निवेश बहु मुद्रा, बहु आस्ति संविभागों में किया जाता है। मार्च 2012 के अंत की स्थिति के अनुसार 260.1 बिलियन अमरीकी डॉलरों की कुल विदेशी मुद्रा आस्तियों में से 140.3 बिलियन अमरीकी डॉलरों का निवेश प्रतिभूतियों में किया गया, 114.3 बिलियन अमरीकी डॉलर अन्य केंद्रीय बैंकों, अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में जमा किए गए और शेष 5.5 बिलियन अमरीकी डॉलर में विदेशी वाणिज्य बैंकों में जमाराशियां एवं बाह्य आस्ति प्रबंधकों (ईएएम्स) के पास रखे गए फंड शामिल हैं । (सारणी 3) ।
विदेशी मुद्रा आस्तियों और स्वर्ण से प्राप्त आय की दर, सामान्यत: निम्न वैश्विक ब्याज दर परिवेश को प्रतिबिंबित करते हुए जुलाई 2009 – जून 2010 के दौरान 2.09 प्रतिशत से घटकर जुलाई 2010 – जून 2011 के दौरान 1.74 प्रतिशत हो गई। I.7.1 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वित्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी) फरवरी 2003 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अपनी वित्तीय लेनदेन योजना में भारत को ऋणदाता के रुप में प्राधिकृत किया गया । अक्तूबर 2011- मार्च 2012 के दौरान चार खरीद लेनदेन किए गए । इन लेनदेनों के अंतर्गत 221.0 मिलियन अमरीकी डॉलर 3 देशों को , अर्थात आयरलैंड (148.35 मिलियन अमरीकी डॉलर) , पर्तुगाल (53.21 मिलियन अमरीकी डॉलर) और ग्रीस (19.44 मिलियन अमरीकी डॉलर) को, उपलब्ध कराए गए। मई 2003 से मार्च 2012 के अंत तक कुल 2,407 मिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य के खरीद संबंधी लेनदेन किए गए । एफटीपी की पुनर्खरीद लेनदेनों में नवंबर 2005 से भारत को शामिल किया गया। अक्तूबर 2011 से मार्च 2012 तक की अवधि में पुनर्खरीद संबंधी कोई लेनदेन नहीं किया गया। I.7.2 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ नोट खरीद करार के अंतर्गत निवेश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के उधार देने योग्य स्रोतों को ताकत देने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ नोट खरीद करार (एनपीए) किया है जिसके अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 10 बिलियन अमरीकी डॉलर के सममूल्य राशि के आईएमएफ नोट खरीदने के लिए वचनबद्ध है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा संशोधित एवं विस्तारित नई उधार व्यवस्था (एनएबी) 11 मार्च 2011 से लागू हो गई है। भारत वचनबद्ध है कि वह इस व्यवस्था के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को 8740.82 मिलियन एसडीआर उपलब्ध कराएगा, जिसमें एनपीए के अंतर्गत स्वीकृत बचनबद्धता भी सम्मिलित है। एनएबी के अंतर्गत भारत सरकार हिस्सेदार है जबकि एनएबी नोट्स भारतीय रिजर्व बैंक के पास है। इन नोटों में भारतीय रिजर्व बैंक ने नई उधार व्यवस्था (एनएबी) के अंतर्गत मार्च 2012 के अंत तक 990 मिलियन एसडीआर के सममूल्य का अंशदान किया है। भाग II विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के उद्देश्य , विधिक ढांचा , जोखिम प्रबंधन पारदर्शिता और प्रकटीकरण II.1 विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के उद्देश्य भारत में विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के मागदर्शी उदेश्य विश्व के अन्य कई केंद्रीय बैकों के समान हैं । विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता में कई घटकों के कारण व्यापक रूप से परिवर्तन आता है जिनमें देश द्वारा अपनाई गई विनिमय दर प्रणाली, अर्थव्यवस्था के खुलेपन की सीमाएं, देश के सकल घरेलू उत्पाद में विदेशी क्षेत्र का विस्तार और देश में कार्यरत बाजारों का स्वरूप आदि शामिल है। भारत में जहां विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन का दोहरा उद्देश्य तरलता और सुरक्षा को बनाए रखना है, वहीं इसी ढांचे में अधिकतम प्रतिलाभ की नीति भी संरक्षित है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 में मुद्राओं, लिखतों, जारीकर्ता और प्रतिपार्टियों के संबंध में व्यापक मानदंड निर्धारित करते हुए विभिन्न विदेशी मुद्रा आस्तियों (एफसीए) और स्वर्ण में विदेशी मुद्रा भंडार के नियोजन के लिए आवश्यक व्यापक विधिक ढांचे का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम की उपधारा 17(6ए) 17(12), 17(12ए), 17(13) और 33(6) में विदेशी आस्तियों के प्रबंधन के लिए आवश्यक विधिक ढांचे का प्रावधान किया गया है । संक्षेप में, विधि द्वारा स्थूल रुप से निम्नलिखित संवर्गों में निवेश के लिए अनुमति प्रदान की गई हैः- I. अन्य केंद्रीय बैंकों और अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) के साथ जमाराशियां, II. विदेशी वाणिज्य बैंकों के साथ जमाराशियां; III. सरकारी/गारंटीकृत सरकारी देयताओं संबंधी ऋण लिखत, जहां ऋण पत्रों के लिए अवशिष्ट परिपक्वता अवधि 10 वर्षों से अधिक न हो; IV. भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड द्वारा अधिनियम के उपबंधों के अनुसरण में अनुमोदित अन्य लिखत/संस्थाएं ; और V. कुछ प्रकार के डेरिवेटिव्ज का कारोबार सशक्त जोखिम प्रबंधन कुशल विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन संबंधी नीति बनाते समय विदेशी मुद्रा के नियोजन से जुड़े वित्तीय और परिचालनगत जोखिमों के नियंत्रण और प्रबंधन पर जोर दिया जाता है। मुद्रा संरचना और निवेश सबंधी नीति के साथ विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन संबंधी व्यापक रणनीति भारत सरकार के साथ विचार-विमर्श के बाद निर्धारित की जाती है। जोखिम प्रबंधन संबंधी कार्यों का मुख्य उद्देश्य होता है सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं, विकसित लेखाकरण नीति, सभी परिचालनों में जोखिम संबंधी सतर्कता की प्रणाली और उपलब्ध कौशल और विशेषज्ञता के विकास के लिए प्रभावी संसाधन आबंटन के साथ-साथ सक्षम प्रशासनिक संरचना का विकास सुनिश्चित करना । आगे के परिच्छेदों में विदेशी मुद्रा भंडार के विनियोजन के साथी अर्थात क्रेडिट जोखिम, बाजार जोखिम, तरलता जोखिम, और परिचालनगत जोखिम और इन जोखिमों के प्रबंधन के लिए कार्यरत प्रणालियों के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की गई है। क्रेडिट जोखिम को उस संभावना के रुप में परिभाषित किया जाता है जिसमें उधारकर्ता अथवा प्रतिपार्टी स्वीकृत शर्तों के अनुसार दायित्वों की पूर्ति करने में असफल रहती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में विदेशी मुद्रा भंडार के निवेश से उत्पन्न क्रेडिट जोखिम के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक बेहद संवेदनशील है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के उच्च दर वाले बाण्डों / खजाना बिलों में निवेश किया जाता है। साथ ही जमाराशियां अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) अथवा अन्य केंद्रीय बैंकों में रखी जाती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार की सुरक्षा और तरलता बढाने के उद्देदश्य से जारीकर्ता/प्रतिपार्टियों/निवेश आदि के संबंध में कडे मानदंड निर्धारित करते हुए उचित मागदर्शी सिद्धांत तैयार किए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रतिपार्टियों के चयन के लिए कड़े मापदंड अपनाना जारी रखा है । अनुमोदित प्रतिपार्टियों के संबंध में स्वीकृत सीमा और ऋण के स्तर की निरंतर रूप से निगरानी रखी जाती है । साथ ही प्रतिपार्टियों संबंधी गतिविधियों पर निरंतर रुप से नजर रखी जाती है। इस प्रकार के निरंतर अभ्यास का मूल उद्देश्य यह निर्धारित करना होता है कि किसी प्रतिपार्टी अनुमोदित संस्था का दर्जा संभावित खतरे के दायरे में तो नहीं आ रहा है। बाजार जोखिम विविध मुद्रावाले संविभाग के लिए मूल्यांकन में संभाव्य परिवर्तनों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कि वित्तीय बाजारों की कीमतों जैसेकि ब्याज दर, विदेशी मुद्रा विनिमय दर, इक्विटी मूल्य और कमोडिटी मूल्य आदि के घट-बढ का परिणाम होते हैं। केंद्रीय बैंकों के लिए बाजार जोखिम का प्रमुख स्रोत होता है मुद्रा जोखिम, बाजार दर जोखिम और स्वर्ण की कीमतों में घट-बढ । मुद्रा जोखिम विनिमय दरों की अनिश्चितता के कारण उत्पन्न होती है । विभिन्न मुद्राओं के मामले में उनके विनिमय दर में होनेवाली संभाव्य घट-बढ और उनसे मध्यम और दीर्घकालीन अपोक्षाओं (जैसेकि मध्यवर्ती मुद्रा में विदेशी मुद्रा भंडार का बडा हिस्सा रखना, देश की बदलती विदेश व्यापार संबंधी रुपरेखा के अनुरूप अनुमानित विदेशी मुद्रा भंडार की मुद्रा रुपरेखा (करेंसी प्रोफाईल), विविधता का लाभ आदि) के आधार पर दीर्घकालीन निवेश संबंधी निर्णय लिए जाते हैं। नियमित आधार पर नीति की समीक्षा द्वारा निर्णयों की पुष्टि की जाती है। ब्याज दर जोखिम के प्रबंधन का महत्वपूर्ण पहलू है - ब्याज दर के परिवर्तनों के विपरीत प्रभावों से यथासंभव निवेश के मूल्य को संरक्षित रखना । विदेशी मुद्रा भंडार संविभाग के ब्याज दर की संवेदनशीलता बेंचमार्क अवधि और बेंचमार्क से अनुमोदित अंतर से निर्धारित की जाती है। निवेश रणनीति का केंद्र-बिंदु संविभाग की ब्याज दर जोखिम को न्यूनतम रखने की आवश्यकता के आसपास रहता है ताकि विपरीत ब्याज दर परिवर्तनों से उत्पन्न हानि को न्यूनतम रखा जा सके। तरलता जोखिम में आवश्यकता के अनुसार बिना किसी लागत के किसी लिखत को बेच अथवा रोक न लगा पाने की जोखिम अंतर्निहित रहती है। किन्हीं अप्रत्याशित अथवा अत्यावश्यक जरुरतों की पूर्ति करने के उद्देश्य से विदेशी मुद्रा भंडार में सदैव उच्च स्तर की तरलता रखी जाती है। किसी विपरीत गतिविधि को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग किया जाता है। इसीलिए इस संविभाग में उच्च स्तर की तरलता को बनाए रखने की आवश्यकता निवेश रणनीति में बाधक बन जाती है। लिखतों के चयन पर संविभाग की तरलता निर्भर रहती है । जैसेकि कुछ बाज़ारों में राजकोषीय प्रतिभूतियां बडी़ संख्या में बाज़ार में मूल्य को ज्यादा प्रभावित किए बगैर बेची जा सकती है और इसलिए उन्हें तरल माना जाता है । बीआईएस, विदेशी वाणिज्य बैंकों और केंद्रीय बैंकों में धारित मीयादी जमा राशियों को और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा जारी प्रतिभूतियों को छोड़कर सभी प्रकार के निवेशों में उच्च स्तर की तरलता होती है , जो अल्प सूचना पर नकदी में परिवर्तित किए जा सकते हैं । किसी अप्रत्याशित / आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काफी अल्प सूचना पर नकदी में परिवर्तित होनेवाले विदेशी मुद्रा भंडार के हिस्से पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा कड़ी नज़र रखी जाती है । II.3.3 परिचालनगत जोखिम और नियंत्रण प्रणाली वैश्विक रुझान के अनुरूप, परिचालनगत जोखिम नियंत्रण संबंधी व्यवस्थाओं को सक्षम करने की ओर काफी ध्यान दिया जा रहा है । महत्वपूर्ण परिचालनगत प्रक्रियाओं का दस्तावेजीकरण किया गया है । आंतरिक रूप से अग्र और पश्च कार्यालय के कार्यों को पूरी तरह से अलग कर दिया गया है और आंतरिक नियंत्रण प्रणाली द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि डील कॅप्चर , डील प्रोसेसिंग और निपटान के स्तरों पर कई जांच बिंदु सुनिश्चित किए गए हैं । डील प्रोसेसिंग और निपटान प्रणाली भीआंतरिक नियंत्रण संबंधी मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अधीन है जोकि वन टाइम डेटा एंट्री तत्व पर आधारित है और भुगतान अनुदेशों को जारी करने की अनुमति विविध स्तर के अधिकारियों को प्रदान की गई है । सभी आंतरिक नियंत्रण संबंधी मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अनुपालन के लिए समवर्ती लेखापरीक्षा प्रणाली कार्यरत है । आगे नियमित रूप से आंकडों का मिलान किया जाता है । इस उद्देश्य के लिए रिज़र्व बैंक की आंतरिक व्यवस्था के रूप में वार्षिक निरीक्षण और बाहरी लेखाकारों द्वारा लेखों की सांविधिक जांच के अलावा डीलिंग रूम के लेनदेनों की लेखापरीक्षा के लिए विशेष लेखाकार भी नियुक्त किए जाते हैं । विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन संबंधी महत्वपूर्ण क्षेत्रों की गतिविधियों / परिचालनों को सम्मिलित करनेवाला एक व्यापक सूचना तंत्र है । इस प्रकार की सूचना वरिष्ठ प्रबंध तंत्र को आवधिक रूप से अर्थात दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्ध-वार्षिक और वार्षिक अंतराल पर जैसा भी मामला हो और जानकारी जितनी संवेदनशील हो , तदनुसार प्रदान की जाती है । रिज़र्व बेंक अपने व्यापार संबंधी अदायगी करने और प्रतिपार्टियों , बैंकों जिनके साथ नोस्ट्रो खाते रखे गए हैं , प्रतिभूतियों के अभिरक्षकों और अन्य कारोबारी भागीदारों को वित्तीय संदेश भेजने के लिए 'स्विफ्ट' प्रणाली का प्रयोग करता है । रिज़र्व बैंक के बाह्य निवेश और परिचालन विभाग की सूचना सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली (आई एस एम एस) आईएसओ 27001 के मानकों के प्रावधानों के अनुरूप हैं । भारतीय रिज़र्व बेंक विदेशी मुद्रा बाजार एवं विदेशी मुद्रा बाजार में अपने परिचालनों से संबंधित आंकडे, देश की बाह्य आस्तियों और देयताओं संबंधी स्थिति और विदेशी मुद्रा आस्तियों और स्वर्ण के नियोजन के माध्यम से प्राप्त आय से संबंधित आंकडें साप्ताहिक सांख्यिकी अनुपूरक (डब्ल्यूएसएस), मासिक बुलेटिन, वार्षिक रिपोर्टों के माध्यम से आवधिक प्रेस प्रकाशनों द्वारा सार्वजनिक करता है । परदर्शिता और प्रकटीकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बेंक का दृष्टिकोण इस विषयक उत्तम अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियों के अनुरूप रहता है । भारतीय रिज़र्व बेंक विश्व भर के उन 71 केंद्रीय बैंकों में से एक है जिन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार संबंधी विस्तृत आंकड़ों के प्रकटीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेष आंकड़ा प्रसार मानक (एसडीडीएस) टेम्प्लेट को अपनाया है । ये आंकड़े भारतीय रिज़र्व बेंक की वेबसाइट पर मासिक आधार पर उपलब्ध कराए जाते हैं । ** (2005-06 से 180 दिनों तक आपूर्तिकर्ता के ऋण और एफआईआई निवेश का सरकारी खजाना बिल और अन्य लिखतों में समावेश के साथ और आगे मार्च 2007 में बैंकिंग प्रणाली की बाह्य ऋण देयताओं और विदेशी केंद्गीय बैंकों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के समावेश के साथ पुनर्व्याखित) |