विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट अप्रैल, 2013 – सितंबर, 2013 - आरबीआई - Reserve Bank of India
विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट अप्रैल, 2013 – सितंबर, 2013
सितंबर, 2013 को समाप्त छमाही के दौरान की गतिविधियां भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता लाने एवं प्रकटन स्तर को और उन्नत करने के प्रयोजन से विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन के संबंध में एक अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है। यह रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष मार्च की समाप्ति और सितंबर की समाप्ति की स्थिति के संदर्भ में तैयार की जाती है। विदेशी मुद्रा भंडार की यह रिपोर्ट (इस श्रृंखला में 21 वीं) सितंबर 2013 को समाप्त स्थिति पर आधारित है। रिपोर्ट दो भागों में विभाजित हैः भाग I में समीक्षाधीन छमाही के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में घट-बढ़ संबंधी गतिविधियों और विदेशी मुद्रा भंडार के मुकाबले बाहरी देयताओं के संबंध में जानकारी, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की वित्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी), विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता आदि के संबंध में जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के भाग II में विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के उद्देश्य, सांविधिक उपबंध, विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई गई जोखिम प्रबंधन प्रणालियों, विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई गई पारदर्शिता और प्रकटीकरण प्रथाओं के संबंध में जानकारी प्रस्तुत की गई है। I.2 विदेशी मुद्रा भंडार में घट-बढ़ मार्च 2013 के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार 292.0 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा। समीक्षाधीन छमाही के दौरान अगस्त 2013 के अंत तक यह घटकर 275.5 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया और बाद में सितंबर 2013 के अंत में बढ़कर 277.2 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया (सारणी 1 और चार्ट 1)। यद्यपि अमरीकी डॉलर और यूरो मध्यवर्ती मुद्राएं हैं और विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) अमरीकी डॉलर, यूरो, पौंड स्टर्लिंग, जापानी येन आदि प्रमुख मुद्राओं में धारित की जाती हैं, तथापि विदेशी मुद्रा भंडार केवल अमरीकी डॉलर मूल्यवर्ग में ही अभिव्यक्त किया जाता है। विदेशी मुद्रा आस्तियों में घट-बढ़ का मुख्य कारण रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा बाजार में विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय, विदेशी मुद्रा भंडार के नियोजन के कारण उपचित आय, केंद्र सरकार की बाह्य सहायता प्राप्तियां और आस्तियों के पुनर्मूल्यन का प्रभाव है।
घरेलू विदेशी मुद्रा बाज़ार में रिज़र्व बैंक की निवल फारवर्ड देयताएं सितंबर 2013 के अंत में 9,581 मिलियन अमरीकी डॉलर रही। I.4. बाह्य देयताएं बनाम विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2013 के अंत में भारत की अंतरराष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी), जो कि देश की बाह्य वित्तीय आस्तियों और देयताओं के स्टॉक का संक्षिप्त रिकार्ड है, सारणी 2 में प्रस्तुत है।
सितंबर 2013 के अंत में निवल आईआईपी ऋणात्मक 296.2 बिलियन अमरीकी डॉलर थी, अर्थात् हमारी बाह्य देयताएं बाह्य आस्तियों से अधिक थीं। सितंबर 20121 और मार्च 20132 के अंत में निवल आईआईपी क्रमशः (-) 286.1 और (-) 317.6 बिलियन अमरीकी डॉलर रही। I.5 विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता विदेशी आघातों को सहने की किसी देश की क्षमता को नापने संबंधी महत्वपूर्ण मापदण्ड के रूप में उभरी है। पूंजी प्रवाह के बदलते स्वरूप के मद्देनजर, आयात कवर के संदर्भ में विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता का मूल्यांकन करने का पारंपरिक दृष्टिकोण व्यापक हो गया है और अब इसमें कई प्रकार के मापदंड शामिल किए गए हैं जो भिन्न-भिन्न प्रकार के पूंजी प्रवाह के आकार, उनकी संरचना और जोखिम के स्वरूप के साथ-साथ ऐसे आघातों के प्रकार का ध्यान रखते हैं जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं। भुगतान संतुलन पर बनी उच्चस्तरीय समिति, जिसके अध्यक्ष भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. सी. रंगराजन थे द्वारा यह सुझाव दिया गया कि विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता निर्धारित करते समय 3 से 4 माह के आयात के लिए सुरक्षित रखी गई विदेशी मुद्रा (इंपोर्ट कवर) के पारंपरिक मापदंड के अतिरिक्त भुगतान दायित्यों की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। 1997 में भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व उप गवर्नर श्री एस.तारापोर की अध्यक्षता में पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति की रिपोर्ट में विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता के लिए वैकल्पिक मापदण्डों का सुझाव दिया गया जिसमें लेन देन आधारित संकेतकों के अतिरिक्त मुद्रा और ऋण आधारित संकेतक भी शामिल किए गए। पूर्णतर पूंजी लेखा परिवर्तनीयता पर बनी समिति (अध्यक्ष, श्री एस.एस.तारापोर, जुलाई 2006) का भी यही मत रहा है। सितंबर 2013 के अंत में, आयात कवर कम होकर 6.6 महीने का हो गया, जबकि मार्च 2013 के अंत में यह 7.0 महीने का था। विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना में अल्पावधि ऋण अनुपात3 जो मार्च 2013 के अंत में 33.1 प्रतिशत था, वह सितंबर 2013 के अंत में बढ़कर 34.2 प्रतिशत हो गया। विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना में अस्थिर पूंजी प्रवाह (आवर्ती संविभाग अंतर्वाहों और अल्पावधि ऋण के समावेश के साथ परिभाषित) अनुपात मार्च 2013 के अंत में 94.3 प्रतिशत था, सितंबर 2013 के अंत में बढ़कर 97.3 प्रतिशत हो गया । I.6. प्रारक्षित स्वर्ण का प्रबंधन भारतीय रिजर्व बैंक के पास 557.8 टन सोना है जिसमें से 265.5 टन सोना विदेश में बैंक ऑफ इंग्लैंड और अंतरराष्ट्रीय निपटान बैंक की सुरक्षित अभिरक्षा में रखा गया है। 27 सितंबर 2013 के मूल्य निर्धारण (अमरीकी डॉलर) के अनुसार यह कुल विदेशी मुद्रा भंडार के करीब 7.9 प्रतिशत के बराबर है। I.7 विदेशी मुद्रा आस्तियों के निवेश का स्वरूप और उनसे आय विदेशी मुद्रा आस्तियों का निवेश मौजूदा मानदण्डों के अनुसार बहु-मुद्रा, बहु-आस्ति संविभागों में किया जाता है और ये मानदंड सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय मानकों के समान हैं। सितंबर 2013 के अंत की स्थिति के अनुसार, 248.8 बिलियन अमरीकी डॉलर की कुल विदेशी मुद्रा आस्तियों में से 155.7 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश प्रतिभूतियों में किया गया, 86.6 बिलियन अमरीकी डॉलर अन्य केंद्रीय बैंकों, अंतरराष्ट्रीय निपटान बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में जमा किए गए और शेष 6.6 बिलियन अमरीकी डॉलर में विदेशी वाणिज्यिक बैंकों में रखी जमाराशियां एवं बाह्य आस्ति प्रबंधकों (ईएएम) के पास रखे गए फंड शामिल हैं (सारणी 3)।
विदेशी मुद्रा आस्तियों से प्राप्त आय की दर जो जुलाई 2011-जून 2012 के दौरान 1.47 प्रतिशत थी, जुलाई 2012-जून 2013 के दौरान थोड़ा कम हो कर 1.45 प्रतिशत हो गई। I.8.1 आईएमएफ की वित्त्तीय लेनदेन योजना (एफटीपी) अप्रैल-सितंबर 2013 के दौरान दो खरीद लेन-देन किए गए जो 216.1 मिलियन अमरीकी डॉलर का था। अप्रैल-सितंबर 2013 की अवधि के दौरान चार पुनर्खरीद लेन-देन हुए जो 328.1 मिलियन अमरीकी डॉलर के थे। I.8.2 आईएमएफ के साथ नोट खरीद करार (एनपीए) और नई उधार व्यवस्था (एनएबी) के अंतर्गत निवेश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की संशोधित एवं विस्तारित नई उधार व्यवस्था (एनएबी) 11 मार्च 2011 से लागू हो गई है। इस व्यवस्था के अंतर्गत भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को 8,740.8 मिलियन एसडीआर तक संसाधन उपलब्ध कराने हेतु प्रतिबद्ध है। एनएबी के अंतर्गत भारत सरकार सहभागी है जबकि एनएबी नोट्स भारतीय रिजर्व बैंक के पास हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने नई उधार व्यवस्था (एनएबी) के तहत सितंबर 2013 के अंत तक 1123.2 मिलियन एसडीआर के सममूल्य का नोट खरीदा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास उपलब्ध संसाधनों को द्विपक्षीय उधार के एक नए स्रोत के द्वारा ताकत देने के उद्देश्य से ताकि संकट निवारण और उसका समाधान उपलब्ध हो, भारतीय रिजर्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के बीच नोट खरीद करार, 2012 (एनपीए 2012) पर 19 सितंबर 2013 को हस्ताक्षर हुआ जिसके अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 10 बिलियन अमरीकी डॉलर की सममूल्य राशि तक एसडीआर मूल्यवर्ग नोट खरीदने की सहमति दी है। I.8.3 भारत और जापान के बीच द्वीपक्षीय स्वैप करार भारतीय रिज़र्व बैंक ने 29 जून 2008 को बैंक ऑफ जापान के साथ 3 बिलियन अमरीकी डॉलर राशि के लिए तीन वर्ष हेतु द्विपक्षीय मुद्रा स्वैप करार किया। 2011 में इस करार के समाप्त होने पर 4 दिसंबर 2012 को फिर से इसका 3 वर्षों के लिए नवीकरण किया गया और स्वैप की राशि 3 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़ाकर 15 बिलियन अमरीकी डॉलर कर दी गई। इसके बाद सितंबर 2013 में, भारत और जापान की सरकारों ने इस स्वैप राशि को 15 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़ाकर 50 बिलियन अमरीकी डॉलर करने का निर्णय लिया। तदनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक और बैंक ऑफ जापान के बीच एक संशोधन करार पर हस्ताक्षर किए गए। I.8.4 आईआईएफसी (यूके) द्वारा जारी बॉण्डों में निवेश भारतीय रिज़र्व बैंक ने इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनैन्स कंपनी (यूके) लिमिटेड द्वारा जारी बॉण्डों में एक तय राशि तक जिसका कुल 5 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक न हो, निवेश करने की सहमति दी है। ऐसे बॉण्डों में सितंबर 2013 के अंत तक 950 मिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश किया गया। भाग-II II.1. विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के उद्देश्य भारत में विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन के मार्गदर्शी उद्देश्य विश्व के अन्य कई केंद्रीय बैकों के समान हैं । विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता में कई घटकों के कारण व्यापक रूप से परिवर्तन आता है जिनमें देश द्वारा अपनाई गई विनिमय दर प्रणाली, अर्थव्यवस्था के खुलेपन की सीमाएं, देश के सकल घरेलू उत्पाद में बाह्य क्षेत्र का आकार और देश में कार्यरत बाजारों का स्वरूप शामिल है। भारत में जहां विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन का दोहरा उद्देश्य तरलता और सुरक्षा को बनाए रखना है, वहीं इसी ढांचे में अधिकतम प्रतिलाभ की नीति भी समाहित है। भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 में मुद्राओं, लिखतों, जारीकर्ता और प्रतिपक्षकारों के व्यापक मानदंड के तहत विभिन्न विदेशी मुद्रा आस्तियों (एफसीए) और स्वर्ण में विदेशी मुद्रा भंडार के नियोजन के लिए आवश्यक व्यापक विधिक ढांचे का प्रावधान किया गया है। उक्त अधिनियम की उपधारा 17(6ए) 17(12), 17(12ए), 17(13) और 33(6) में विदेशी मुद्रा प्रबंधन के संबंध में आवश्यक विधिक ढांचे का प्रावधान किया गया है। संक्षेप में, कानून निम्नलिखित निवेश श्रेणियों की अनुमति देता हैः I. अन्य केंद्रीय बैंकों और अंतरराष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) में जमाराशियां; II. वाणिज्यिक बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं में जमाराशियां; III. सरकारी/गारंटीकृत सरकारी देयताओं वाले ऋण लिखत, जहां ऋण पत्रों के लिए अवशिष्ट परिपक्वता अवधि 10 वर्षों से अधिक न हो; IV. भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड द्वारा अधिनियम के उपबंधों के अनुसरण में अनुमोदित अन्य लिखत/संस्थाएं; और V. कुछ प्रकार के डेरिवेटिव में कारोबार। विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन संबंधी व्यापक रणनीति जिसमें मुद्रा संरचना और निवेश संबंधी नीति शामिल है, भारत सरकार के साथ विचार-विमर्श करके निर्धारित की जाती है। जोखिम प्रबंधन संबंधी कार्यों का मुख्य उद्देश्य सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप एक सशक्त शासन संरचना का विकास, उन्नत जवाबदेही का विकास, सभी परिचालनों में जोखिम संबंधी सतर्कता की प्रणाली, संसाधनों का प्रभावी आबंटन और आंतरिक कौशल एवं दक्षता का विकास करना होता है। आगे के पैराग्राफ में विदेशी मुद्रा भंडार के विनियोजन से संबंधित जोखिमों अर्थात क्रेडिट जोखिम, बाजार जोखिम, तरलता जोखिम और परिचालनगत जोखिम और इन जोखिमों के प्रबंधन के लिए कार्यरत प्रणालियों के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की गई है। भारतीय रिज़र्व बैंक अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विदेशी मुद्रा भंडार के निवेश से उत्पन्न क्रेडिट जोखिम के मामले में संवेदनशील है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उच्च रेटिंग वाले सरकारी, केंद्रीय बैंक और सुप्रानेशनल संस्थाओं के डेट दायित्व वाले बॉण्डों/खजाना बिलों में निवेश किया जाता है। इसके अलावा, जमाराशियां केंद्रीय बैंकों, अंतरराष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) और वाणिज्यिक बैंकों की विदेशी शाखाओं में रखी जाती हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार की सुरक्षा और तरलता बढ़ाने के उद्देदश्य से जारीकर्ता/प्रतिपार्टियों के चयन के संबंध में मानदंड निर्धारित करते हुए उचित मार्गदर्शी सिद्धांत तैयार किए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रतिपार्टियों के चयन के लिए कड़े मापदंड अपनाना जारी रखा है। अनुमोदित प्रतिपार्टियों के संबंध में स्वीकृत सीमा और क्रेडिट एक्सपोजर की निरंतर रूप से निगरानी रखी जाती है। साथ ही प्रतिपार्टियों संबंधी गतिविधियों पर निरंतर रूप से नजर रखी जाती है। इस प्रकार के निरंतर प्रयास का मूल उद्देश्य यह निर्धारित करना होता है कि किसी प्रतिपार्टी का क्रेडिट संबंधी दर्जा संभावित खतरे के दायरे में तो नहीं आ रहा है। बहुमुद्रा वाले किसी संविभाग के मामले में बाजार जोखिम मूल्यांकन में होनेवाले उस संभाव्य परिवर्तन को दर्शाता है जो वित्तीय बाजार में कीमत में होनेवाले उतार-चढ़ाव जैसेकि ब्याज-दर, विदेशी मुद्रा विनिमय दर, इक्विटी मूल्य और कमोडिटी मूल्य में परिवर्तन के कारण होता है। केंद्रीय बैंकों के लिए बाजार जोखिम का प्रमुख स्रोत मुद्रा जोखिम, ब्याज-दर जोखिम और सोने की कीमतों में घट-बढ़ होता है। विनिमय दरों/सोने की कीमत में घट-बढ़ के कारण विदेशी मुद्रा आस्तियों और सोने के मूल्यांकन पर होनेवाले लाभ-हानि को तुलन पत्र में मुद्रा और स्वर्ण पुनर्मूल्यांकन खाता (सीजीआरए) नामक शीर्ष के अंतर्गत दर्शाया जाता है। सीजीआरए में शेषराशियां विनिमय दर/स्वर्ण मूल्य में उतार-चढ़ाव जिसमें हाल के समय में तीव्र अस्थिरता देखी गई, के प्रति सुरक्षा प्रदान करती है । विदेशी दिनांकित प्रतिभूतियों का मूल्यांकन प्रत्येक माह के अंतिम कारोबार दिवस की बाज़ार की कीमतों के अनुसार किया जाता है और उसमें हुई मूल्यवृद्धि/मूल्यहास को निवेश पुनर्मूल्यांकन खाता (आईआरए) में स्थानांतरित किया जाता है। आईआरए की शेषराशियां प्रतिभूतियों को धारित किए जाने की अवधि के दौरान उनके मूल्य में होने वाले परिवर्तनों के सापेक्ष गुंजाइश (कुशन) प्रदान करती है। मुद्रा जोखिम विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव के कारण उत्पन्न होती है। अलग-अलग मुद्राओं के मामले में दीर्घकालीन निवेश संबंधी निर्णय विनिमय दर में होनेवाली संभाव्य घट-बढ़ और अन्य मध्यम और दीर्घकालीन अपेक्षाओं (जैसे कि मध्यवर्ती मुद्रा में विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा रखना, विविधता का लाभ आदि) के आधार पर लिए जाते हैं। नियमित आधार पर नीति की समीक्षा द्वारा निर्णयों की पुष्टि की जाती है। ब्याज-दर जोखिम के प्रबंधन का महत्वपूर्ण पहलू है - ब्याज-दर के परिवर्तनों के प्रतिकूल प्रभावों से निवेश के मूल्य को यथासंभव संरक्षित रखना । संविभाग के ब्याज-दर की संवेदनशीलता मापदंड (बेंचमार्क) अवधि और मापदंड से अनुमोदित विचलन द्वारा निर्धारित की जाती है। तरलता जोखिम में आवश्यकता के अनुसार बिना किसी लागत के किसी लिखत को बेच न पाने अथवा किसी पोजीशन को समाप्त न कर पाने का जोखिम अंतर्निहित होता है। किन्हीं अप्रत्याशित अथवा अत्यावश्यक जरूरतों की पूर्ति करने के उद्देश्य से विदेशी मुद्रा भंडार में सदैव उच्च स्तर की तरलता रखी जानी अपेक्षित है। किसी विपरीत गतिविधि को संभालने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का प्रयोग किया जाता है, और इसलिए निवेश रणनीति में उच्च स्तर की तरलता वाले संविभाग को बनाए रखने का दबाव होता है। संविभाग की तरलता लिखतों के चयन से निर्धारित होती है। जैसेकि कुछ बाज़ारों में खजाना प्रतिभूतियां को बाज़ार में मूल्य को ज्यादा प्रभावित किए बगैर बडी़ संख्या में अर्थसुलभ बनाया जा सकता है और इसलिए उन्हें तरल माना जाता है। बीआईएस, वाणिज्यिक बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं और केंद्रीय बैंकों में धारित मीयादी जमा राशियों और सुप्रानेशनल द्वारा जारी प्रतिभूतियों को छोड़कर लगभग सभी अन्य प्रकार के निवेशों में तरलता अधिक होती है ,जो अल्प सूचना पर नकदी में परिवर्तित किए जा सकते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार के ऐसे हिस्से पर कड़ी नज़र रखता है जिन्हें किसी अप्रत्याशित/आकस्मिक आवशयकताओं की पूर्ति के लिए काफी अल्प सूचना पर नकदी में परिवर्तित किया जा सकता है। II.3.3 परिचालनगत जोखिम और नियंत्रण प्रणाली वैश्विक रुझान के अनुरूप, परिचालनगत जोखिम नियंत्रण संबंधी व्यवस्थाओं को मजबूत करने की ओर काफी ध्यान दिया जाता है। महत्वपपूर्ण परिचालनगत प्रक्रियाओं का दस्तावेजीकरण किया गया है। आंतरिक रूप से, फ्रंट और बैक कार्यालय के कार्यों को पूरी तरह से पृथक रखा गया है और आंतरिक नियंत्रण प्रणाली द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि किए गए डील, डील प्रोसेसिंग और निपटान के स्तरों पर कई जांच बिंदू हों। भुगतान अनुदेशों को जेनरेट करने सहित डील प्रोसेसिंग और निपटान प्रणाली भी आंतरिक नियंत्रण संबंधी मार्गदर्शी सिद्धांतों के अधीन है जो कि वन पॉइंट डेटा एंट्री सिद्धांत पर आधारित है। सभी आंतरिक नियंत्रण संबंधी मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुपालन की निगरानी के लिए समवर्ती लेखापरीक्षा प्रणाली कार्यरत है। इसके अलावा, नियमित रूप से आंकड़ों का मिलान किया जाता है। आंतरिक वार्षिक निरीक्षण और बाहरी लेखा-परीक्षकों द्वारा लेखों की वैधानिक लेखा-परीक्षा के अलावा, डीलिंग रूम के परिचालनों के लिए बाहरी लेखा-परीक्षकों द्वारा लेखा-परीक्षा की प्रणाली भी मौजूद है। विदेशी मुद्रा भंडार प्रबंधन संबंधी महत्वपूर्ण क्षेत्र की गतिविधियों/परिचालनों को सम्मिलित करते हुए एक व्यापक रिपोर्टिंग प्रक्रियातंत्र है। वरिष्ठ प्रबंध तंत्र को आवधिक रूप से अर्थात दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्ध-वार्षिक और वार्षिक अंतराल पर जैसा भी मामला हो और जानकारी जितनी संवेदनशील हो, ये प्रक्रियातंत्र तदनुसार उपलब्ध कराई जाती है। रिज़र्व बैंक अपने सौदों के निपटान और प्रतिपार्टियों, बैंकों जिनके साथ नोस्ट्रो खाते रखे गए हैं, प्रतिभूतियों के अभिरक्षकों और अन्य कारोबारी भागीदारों को वित्तीय संदेश भेजने के लिए ‘स्विफ्ट' प्रणाली का प्रयोग करता है । भारतीय रिज़र्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार एवं विदेशी मुद्रा बाजार में अपने परिचालनों से संबंधित आंकड़े,देश की बाह्य आस्तियों और देयताओं संबंधी स्थिति और विदेशी मुद्रा आस्तियों और स्वर्ण के नियोजन के माध्यम से प्राप्त आय से संबंधित आंकड़े साप्ताहिक सांख्यिकीय संपूरक (डब्ल्यूएसएस), मासिक बुलेटिन, वार्षिक रिपोर्टों आदि के माध्यम से आवधिक प्रेस प्रकाशनों द्वारा सार्वजनिक करता रहता है। पारदर्शिता और प्रकटीकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक का दृष्टिकोण इस विषयक श्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय प्रणालियों के अनुरूप रहता है। भारतीय रिज़र्व बैंक विश्व भर के उन 71 केंद्रीय बैंकों में से एक है जिन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार संबंधी विस्तृत आंकड़ों के प्रकटीकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेष आंकड़ा प्रसार मानक (एसडीडीएस) टेम्प्लेट को अपनाया है । ये आंकड़े भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर मासिक आधार पर उपलब्ध कराए जाते हैं । 1आंशिक संशोधित आंकड़े 32005-06 से 180 दिनों तक आपूर्तिकर्ता के ऋण और भारत सरकार के खजाना बिलों एवं अन्य लिखतों में एफआईआई निवेश के साथ और आगे मार्च 2007 में बैंकिंग प्रणाली की बाह्य ऋण देयताओं और विदेशी केंद्रीय बैंकों तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सरकारी खजाना बिलों में निवेश के समावेश के साथ पुनःपरिभाषित)। |