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एनबीएफसी के बारे में आपके जानने योग्य संपूर्ण जानकारी

E. जमाकर्ता संरक्षण संबंधी मामले

यह कानून लागू करने का उद्देश्य जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना है। रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों का मकसद रिज़र्व बैंक को विवेकपूर्ण विनियमन जारी करने हेतु सक्षम बनाना है ताकि वित्तीय संस्थान ठोस मानकों पर काम करें। रिज़र्व बैंक एक नागरिक निकाय (Civil Body) है और रिज़र्व बैंक अधिनियम एक नागरिक अधिनियम(Civil Act) है। दोनों में ऐसा विशेष प्रावधान नहीं है जिससे कि चूककर्ता कंपनियों, निकायों अथवा उनके अधिकारियों की परिसंपत्ति की कुर्की अथवा बिक्री के जरिए वसूली की जा सके। इसे राज्य सरकार प्रभावी रूप से कर सकती है। वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम राज्य सरकार को पर्याप्त शक्तियाँ देता है जिससे कि वे चूककर्ता कंपनियों, निकायों अथवा उनके अधिकारियों की परिसंपत्ति की कुर्की अथवा बिक्री कर सकें।
हाँ, काफी हद तक। अधिनियम के तहत किसी संस्था, फर्म या कंपनी द्वारा अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार करना एक संज्ञेय अपराध माना गया है और जो संस्थाएं अनधिकृत रूप से जमाराशियाँ स्वीकार करती हैं अथवा गैर-कानूनी वित्तीय गतिविधियों में शामिल हैं, को तत्काल गिरफ्तार किया जा सकता है और उन पर अभियोग चलाया जा सकता है। इस अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय के आदेश पर राज्य सरकार को इन संस्थाओं की परिसंपत्ति की कुर्की व बिक्री करने और उससे प्राप्त आय को जमाकर्ताओं के मध्य वितरित करने की व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं। राज्य सरकार/राज्य पुलिस का व्यापक तंत्र दोषियों के विरूद्ध त्वरित कार्रवाई करने में बखूबी सक्षम है। अतएव, रिज़र्व बैंक सभी राज्य सरकारों से यह अनुरोध करता रहा है कि वे अपने यहाँ ‘वित्तीय संस्थानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण अधिनियम’ पारित कराएं।
रिज़र्व बैंक विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों में अपने मार्केट इंटेलीजेंस व्यवस्था को मजबूत बना रहा है और उन कंपनियों की वित्तीय सूचनाओं की निरंतर जांच कर रहा है जिनके बारे में मार्केट इंटेलीजेंस या शिकायतों के जरिए जानकारी/संदर्भ प्राप्त हुए हैं। इस संदर्भ में, जनता सतर्क रहकर काफी योगदान दे सकती है, यदि उन्हें य़ह पता चलता है कि कोई वित्तीय संस्था भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम का उल्लंघन कर रही है तो वह तुरंत शिकायत दर्ज कराने से। उदाहरण के लिए, यदि वे अनधिकृत रूप से जमाराशि स्वीकार कर रहे हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक से अनुमति लिए बगैर एनबीएफसी गतिविधियां चला रहे हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि जनता बुद्धिमानी से निवेश करे तो ये संस्थाएं चल ही नहीं पाएंगी। जनता को यह भी जानना चाहिए कि निवेश पर ऊँचे रिटर्न में जोखिम भी काफी अधिक रहती है। और अटकल आधारित गतिविधियों में कोई निश्चित रिटर्न नहीं होता। निवेश करने से पहले आम आदमी यह सुनिश्चित करे कि जिस संस्था में वह निवेश कर रहा है वह वित्तीय क्षेत्र के नियामकों में से किसी भी नियामक द्वारा विनियमित संस्था हो।

F. सामूहिक निवेश योजनाएं (सीआईएस) और चिट फंड

नहीं। सीआईएस ऐसी योजनाएं है जिसमें धन को इकाइयों में बदला जाता है, भले ही वह रिसोर्ट में भागीदारी हो, लकड़ी की बिक्री से प्राप्त लाभ अथवा किसी विकसित वाणिज्यिक भूखंड या भवन से प्राप्त लाभ के रूप में हो। सामूहिक निवेश योजनाएं (सीआईएस) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित नहीं होतीं।
सामूहिक निवेश योजनाओं (सीआईएस) का विनियामक सेबी है। ऐसी योजनाओं के बारे में जानकारी तथा प्रवर्तकों के विरूद्ध शिकायत सेबी और राज्य सरकार के पुलिस विभाग/ आर्थिक अपराध शाखा को तत्काल भेजनी चाहिए।
चिट फंड कारोबार, चिट फंड अधिनियम 1982 के तहत शासित है जो एक केंद्रीय अधिनियम है और जिसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। ऐसे चिट फंड जो इस अधिनियम के तहत पंजीकृत है, विधिक रूप से चिट फंड कारोबार कर सकते हैं।
चिट फंड कंपनियों को चिट फंड अधिनियम 1982 के तहत विनियमित किया जाता है जो एक केंद्रीय अधिनियम है तथा इसका क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2009 में चिट फंड कंपनियों को जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करने पर पाबंदी लगा दी है। यदि कोई चिट फंड जनता से जमाराशियाँ ग्रहण करता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक ऐसे चिट फंडों पर अभियोग चला सकता है।

नहीं, मल्टी-लेवल मार्केटिंग कंपनियाँ, डायरेक्ट सेलिंग कंपनियाँ, ऑनलाइन सेलिंग कंपनियाँ आरबीआई के दायरे में नहीं आती हैं। इन कंपनियों की गतिविधियाँ संबंधित राज्य सरकारों के विनियामक/प्रशासनिक दायरे में आती हैं। विनियामकों एवं उनके द्वारा विनियामित इकाइयों की सूची अनुबंध-। में दी गई है।

मनी सर्कुलेशन, बहुस्तरीय विपणन(एमएलएम)/श्रृंखलाबद्ध विपणन या पोन्जी स्कीम ऐसी योजनाएं हैं जो सदस्यों को नामांकित होने पर आसान या त्वरित धन का वादा करती हैं। बहुस्तरीय विपणन या पिरामिड आकार की योजनाओं में उत्पादों की बिक्री से उतनी आमदनी नहीं होती जितनी कि नामांकित सदस्यों से भारी सदस्यता शुल्क लेने से। सभी सदस्यों पर अधिक से अधिक सदस्य नामांकित करने का दायित्व होता है क्योंकि संग्रहीत सदस्यता राशि को पिरामिड के उच्चक्रम से सदस्यों के मध्य वितरित किया जा सके। इस श्रृंखला के टूटने से पिरामिड टूट जाता है और इससे पिरामिड से जुड़ा सबसे निचला सदस्य अधिकतम प्रभावित होता है। पोन्जी योजनाएं वे योजनाएं हैं जो जनता से अत्यधिक लाभ का वादा कर धन एकत्रित करती हैं। इनमे आस्तियों का निर्माण न होने के कारण जमाकर्ताओं से संग्रहीत राशि को अन्य जमाकर्ताओं को प्रतिलाभ के रूप में बांट दिया जाता है। चूकि इन योजनाओं में कोई ऐसी अन्य गतिविधि नहीं होती जिससे कि रिटर्न आ सके, अतएव योजना अव्यवहार्य हो जाती है और योजनाओं के प्रवर्तकों के लिए वादा किया गया रिटर्न एवं एकत्रित की गई मूलराशि को लौटा पाना असंभव हो जाता है। ऐसी योजनाएं अनिवार्य रूप से विफल हो जाती है तथा अपराधकर्ता धन लेकर भाग जाते हैं।
नहीं। मनी सर्कुलेशन/बहु स्तरीय विपणन/पिरामिड आकार की योजनाओं के तहत धन स्वीकार करने की अनुमति नहीं है। इन योजनाओं के तहत धन स्वीकार किया जाना प्राइज चिट और मनी सर्कुलेशन(प्रतिबंधित) अधिनियम 1978 के तहत संज्ञेय अपराध है, इसलिए प्रबंधित है। इस अधिनियम के तहत नियम बनाने के लिए केन्द्र सरकार को परामर्श देना तथा सहयोग प्रदान करने के अलावा इस अधिनियम के कार्यान्यवन में भारतीय रिज़र्व बैंक की कोई भूमिका नहीं है।

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पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: दिसंबर 10, 2022

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