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Withdrawal of Legal Tender Character of the old Bank Notes in the denominations of ₹ 500/- and ₹ 1000/- (Updated as on December 27, 2016)

रिटेल डायरेक्ट योजना

विप्रेषण पारिवारिक तथा राष्ट्रीय आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और बाह्य वित्तपोषण का एक सबसे बड़ा स्रोत भी है। भारत के हिताधिकारी बैंकिंग तथा डाक के माध्यम से सीमापारीय आंतरिक विप्रेषण प्राप्त कर सकते हैं। बैंकों को विप्रेषण का कारोबार करने हेतु अन्य बैंकों के साथ भागीदारी करने के लिए सामान्य अनुमति है। डाक के माध्यम हेतु समान्यतः यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन के (यूपीयू) अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली (आईएफ़एस) प्लैटफ़ार्म का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा आवक विप्रेषण प्राप्त करने के लिए दो और चैनल हैं, अर्थात रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए) तथा धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) जोकि देश में विप्रेषण प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली व्यवस्था है।

ये अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्न आरडीए तथा एमटीएसएस से संबंधित सामान्य प्रश्न है और सामान्य मार्गदर्शन के लिए इनसे संदर्भ क्यी अजाए। प्राधिकृत व्यक्ति तथा उनके घटक यदि आवश्यक हो तो विस्तृत जानकारी के लिए संबंधित परिपत्र/ दिशानिर्देश देखें।

रुपया आहरण व्यवस्था(आरडीए)

रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए) समुद्रपारीय अधिकार क्षेत्रों से सीमापारीय विप्रेषण प्राप्त करने का चैनल है। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्राधिकृत श्रेणी-I के बैंक एफ़एटीएफ़ का अनुपालन करने वाले देशों में स्थित अनिवासी विनिमय गृहों के साथ अपने वोस्टरों खाते खोलने तथा बनाए रखने के लिए गठबंधन करते हैं।

लक्षित दीर्घकालिक रिपो परिचालन (टीएलटीआरओ)

अपडेट हो गया है: मई 28, 2021

उत्तर: हाँ। बैंकों को अपनी एचटीएम पुस्तक में टीएलटीआरओ में प्राप्त राशि के लिए निर्दिष्ट प्रतिभूतियों की मात्रा को टीएलटीआरओ की परिपक्वता तक हर समय बनाए रखना होगा।

FAQs on Non-Banking Financial Companies

FOREWORD

FAQs on Non-Banking Financial Companies

FOREWORD

The Reserve Bank of India is entrusted with the responsibility of regulating and supervising the Non-Banking Financial Companies by virtue of powers vested in Chapter III B of the Reserve Bank of India Act, 1934. The regulatory and supervisory objective, is to:

    1. ensure healthy growth of the financial companies;
    2. ensure that these companies function as a part of the financial system within the policy framework, in such a manner that their existence and functioning do not lead to systemic aberrations; and that
    3. the quality of surveillance and supervision exercised by the Bank over the NBFCs is sustained by keeping pace with the developments that take place in this sector of the financial system.

In view of the significant growth registered by the NBFC segment during the last decade, the powers of the Bank were enhanced by amending the provisions of the Act during 1997 to facilitate regulation and supervision by RBI covering several aspects of the activities of the NBFCs. Following the amendments to Chapter IIIB of the Act, the Bank has since introduced a new regulatory framework effective January 31, 1998 which directs the focus of the regulatory-cum-supervisory attention primarily on the NBFCs which accept deposits from the public.

The changes introduced in the regulatory framework are comprehensive and broadbased and it has been felt necessary to explain the rationale underlying these changes and provide clarification on certain operational matters for the benefit of the NBFCs, members of public, rating agencies, audit profession, the different Associations of the NBFCs etc. To meet this need, this booklet in the form of questions and answers, is being brought out by the RBI (Department of Non-Banking Supervision) with the hope that it will provide better understanding of the new regulatory framework.

(V.S.N. Murty)
Chief General Manager

RESERVE BANK OF INDIA,
DEPARTMENT OF NON-BANKING SUPERVISION,
CENTRAL OFFICE,
MUMBAI

FEBRUARY 16, 1998

Registration

All the NBFCs are required to seek Registration with RBI irrespective of whether they accept public deposits or not. However, certain types of financial companies viz., insurance companies, housing finance companies, stock broking companies, chit fund companies, companies notified as `nidhis’ under section 620A of the Companies Act and the companies engaged in merchant banking activities (subject to certain conditions), have been exempted from the requirement of Registration under the Reserve Bank of India Act.

देशी जमा

I . देशी जमा

चालू खाते के अलावा किसी भी खाते में बैंक बिना ब्याज दिए जमा स्वीकार नहीं कर सकते हैं

एनबीएफसी के बारे में आपके जानने योग्य संपूर्ण जानकारी

A. परिभाषाएं

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी एक ऐसी कंपनी है जो कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत है जो ऋण और अग्रिम देने, शेयरों/स्टॉक/बांड्स/डिबेंचरों/सरकार या स्थानीय प्राधिकरणों द्वारा जारी प्रतिभूतियों या उसी प्रकार के बिक्री योग्य अन्य प्रतिभूतियों के अधिग्रहण, पट्टे पर देने, किराया-खरीद(हायर-पर्चेज), बीमा कारोबार, चिट संबंधी कारोबार में लगी हों किंतु उनमें ऐसी कोई संस्था शामिल नहीं है जिनका मूल कारोबार कृषि कार्य, औद्योगिक गतिविधि, किसी वस्तु की खरीद बिक्री (प्रतिभूतियों के अलावा) अथवा कोई सेवा प्रदान करना तथा अचल संपत्ति की खरीद/बिक्री/निर्माण है। ऐसी गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था जो एक कंपनी है और जिसका मूल कारोबार किसी योजना या प्रबंध या किसी अन्य प्रकार से जमाराशियां प्राप्त करना है, वह भी एक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (अवशिष्ट गैर बैंकिंग कंपनी) है।

भारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार – एक प्रवेशिका

विषय वस्तु

अस्वीकरणइस प्रवेशिका की विषयवस्तु केवल सामान्य जानकारी और मार्गदर्शन के प्रयोजनार्थ है इस प्रवेशिका के आधार पर की गई कार्रवाई/लिए गए निर्णयों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक उत्तरदायी नहीं है । पाठकों को सूचित किया जाता है कि वे समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा विशिष्ट परिपत्रों का संदर्भ लें । हालांकि इस दस्तावेज में दी गई जानकारी सही रूप में प्रस्तुत करने का हर संभव प्रयास किया गया है, तथापि भारतीय रिज़र्व बैंक इस दस्तावेज में दी गई सूचना के किसी भाग अथवा पूर्ण विषय वस्तु पर किसी भी की गई कार्रवाई, विश्वसनीयता अथवा इस दस्तावेज में किसी गलती अथवा छूट के लिए कोई दायित्व स्वीकार नहीं करता ।प्रस्तावनाभारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार में पिछले दशक में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं । इलैक्ट्रॉनिक क्रीन आधारित कारोबार प्रणाली लागू करना, अमूर्त धारिता, सीधा प्रसंस्करण, तयशुदा समायोजन के लिए केद्रीय प्रतिरूप (सीसीपी) के रूप में भारतीय समाशोधन निगम लिमि. (सीसीआइएल) की स्थापना, नई लिखतों तथा कानूनी परिवेश में परिवर्तन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ हैं जिन्होने इस बाजार को तेजी से विकसित होने में सहयोग दिया है ।ऐतिहासिक रूप से सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रमुख सहभागी बड़े संस्थागत निवेशक रहे हैं । विकास हेतु विभिन्न उपायों के साथ बाजार में सहकारी बैंकों, छोटे पेंशन तथा अन्य निधियों इत्यादि जैसी अपेक्षाकृत छोटी संस्थाओं का प्रवेश भी हुआ है । इन संस्थाओं को संबंधित विनियमों के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने का आदेश है । तथापि, इन नए प्रवेशकों में से कुछ संस्थाओं के समक्ष सरकारी प्रतिभूति बाजार के विभिन्न पहलुओं को समझने और आँकने में कठिनाई आई है । अत: भारतीय रिज़र्व बैंक ने इन छोटे निवेशकों के बीच सरकारी प्रतिभूति बाजार के बारे में जागरूकता लाने के लिए कई कदम उठाए हैं । इनमें स्थायी आय प्रतिभूतियों/बॉण्डों यथा सरकारी प्रतिभूतियों, वर्तमान कारोबारी और निवेश प्रक्रियाओं, संबंधित विनियामक पहलुओं और दिशानिर्देशों से संबंधित मूल पहलुओं पर कार्यशालाएँ आयोजित करना सम्मिलित है ।यह प्रवेशिका, छोटे संस्थागत सहभागियों के साथ-साथ जनता के बीच सरकारी प्रतिभूति बाजार से संबंधित सूचना के प्रसार हेतु एक अन्य पहल है । इस प्रवेशिका में बाजार के बारे में व्यापक ब्योरा प्रस्तुत करने के साथ-साथ विभिन्न प्रक्रियाओं और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश से संबंधित विभिन्न प्रक्रियागत और परिचालनगत पहलुओं को आसान और प्रश्न-उत्तर के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है ।इस प्रवेशिका में, अनुबंध के रूप में, प्राथमिक व्यापारियों (पीडी) की सूची, उपयोगी एक्सेल कार्य तथा महत्वपूर्ण बाजार शब्दावली दी गई है । मुझे आशा है कि संस्थागत निवेशकों विशेष रूप से छोटे संस्थागत निवेशकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने का निर्णय लेने में यह प्रवेशिका उपयोगी सिद्ध होगी । भारतीय रिज़र्व बैंक इस प्रवेशिका को और अधिक उपयोगी बनाने में आपके सुझावों का स्वागत करेगा ।श्रीमती एस. गोपीनाथउप गवर्नर

प्रस्तावनाभारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार में पिछले दशक में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं । इलैक्ट्रॉनिक क्रीन आधारित कारोबार प्रणाली लागू करना, अमूर्त धारिता, सीधा प्रसंस्करण, तयशुदा समायोजन के लिए केद्रीय प्रतिरूप (सीसीपी) के रूप में भारतीय समाशोधन निगम लिमि. (सीसीआइएल) की स्थापना, नई लिखतों तथा कानूनी परिवेश में परिवर्तन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ हैं जिन्होने इस बाजार को तेजी से विकसित होने में सहयोग दिया है ।ऐतिहासिक रूप से सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रमुख सहभागी बड़े संस्थागत निवेशक रहे हैं । विकास हेतु विभिन्न उपायों के साथ बाजार में सहकारी बैंकों, छोटे पेंशन तथा अन्य निधियों इत्यादि जैसी अपेक्षाकृत छोटी संस्थाओं का प्रवेश भी हुआ है । इन संस्थाओं को संबंधित विनियमों के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने का आदेश है । तथापि, इन नए प्रवेशकों में से कुछ संस्थाओं के समक्ष सरकारी प्रतिभूति बाजार के विभिन्न पहलुओं को समझने और आँकने में कठिनाई आई है । अत: भारतीय रिज़र्व बैंक ने इन छोटे निवेशकों के बीच सरकारी प्रतिभूति बाजार के बारे में जागरूकता लाने के लिए कई कदम उठाए हैं । इनमें स्थायी आय प्रतिभूतियों/बॉण्डों यथा सरकारी प्रतिभूतियों, वर्तमान कारोबारी और निवेश प्रक्रियाओं, संबंधित विनियामक पहलुओं और दिशानिर्देशों से संबंधित मूल पहलुओं पर कार्यशालाएँ आयोजित करना सम्मिलित है ।यह प्रवेशिका, छोटे संस्थागत सहभागियों के साथ-साथ जनता के बीच सरकारी प्रतिभूति बाजार से संबंधित सूचना के प्रसार हेतु एक अन्य पहल है । इस प्रवेशिका में बाजार के बारे में व्यापक ब्योरा प्रस्तुत करने के साथ-साथ विभिन्न प्रक्रियाओं और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश से संबंधित विभिन्न प्रक्रियागत और परिचालनगत पहलुओं को आसान और प्रश्न-उत्तर के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है ।इस प्रवेशिका में, अनुबंध के रूप में, प्राथमिक व्यापारियों (पीडी) की सूची, उपयोगी एक्सेल कार्य तथा महत्वपूर्ण बाजार शब्दावली दी गई है । मुझे आशा है कि संस्थागत निवेशकों विशेष रूप से छोटे संस्थागत निवेशकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने का निर्णय लेने में यह प्रवेशिका उपयोगी सिद्ध होगी । भारतीय रिज़र्व बैंक इस प्रवेशिका को और अधिक उपयोगी बनाने में आपके सुझावों का स्वागत करेगा ।श्रीमती एस. गोपीनाथउप गवर्नर

1.1. सरकारी प्रतिभूति एक व्यापारयोग्य लिखत है जो केद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं । ये सरकार का ऋण दायित्व दर्शाते हैं । यह प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (सामान्यत: इन्हें खजाना बिल कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता 1 वर्ष से कम होती है) अथवा दीर्घावधि (सामान्यत: इन्हें सरकारी बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता एक वर्ष अथवा अधिक होती है) होती हैं । भारत में केद्र सरकार, खजाना बिल तथा बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती है जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं जिन्हें राज्य विकास ऋण (एसडीएल) कहा जाता है । सरकारी प्रतिभूतियों में, व्यावहारिक रूप से, चूक का कोई जोखिम नहीं होता है, तथा इस प्रकार इन्हें जोखिम मुक्त अथवा श्रेष्ठ प्रतिभूतियाँ कहा जाता है । भारत सरकार बचत लिखत (बचत बॉण्ड, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), इत्यादि) अथवा विशेष प्रतिभूतियाँ (तेल बॉण्ड, भारतीय खाद्य निगम बॉण्ड, उर्वरक बॉण्ड, ऊर्जा बॉण्ड इत्यादि) भी जारी करती है । ये पूर्णतया व्यापार योग्य नहीं होते हैं, अत: सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होते हैं ।

1.1. सरकारी प्रतिभूति एक व्यापारयोग्य लिखत है जो केद्र सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं । ये सरकार का ऋण दायित्व दर्शाते हैं । यह प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (सामान्यत: इन्हें खजाना बिल कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता 1 वर्ष से कम होती है) अथवा दीर्घावधि (सामान्यत: इन्हें सरकारी बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है, जिनकी मूल परिपक्वता एक वर्ष अथवा अधिक होती है) होती हैं । भारत में केद्र सरकार, खजाना बिल तथा बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती है जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड अथवा दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं जिन्हें राज्य विकास ऋण (एसडीएल) कहा जाता है । सरकारी प्रतिभूतियों में, व्यावहारिक रूप से, चूक का कोई जोखिम नहीं होता है, तथा इस प्रकार इन्हें जोखिम मुक्त अथवा श्रेष्ठ प्रतिभूतियाँ कहा जाता है । भारत सरकार बचत लिखत (बचत बॉण्ड, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), इत्यादि) अथवा विशेष प्रतिभूतियाँ (तेल बॉण्ड, भारतीय खाद्य निगम बॉण्ड, उर्वरक बॉण्ड, ऊर्जा बॉण्ड इत्यादि) भी जारी करती है । ये पूर्णतया व्यापार योग्य नहीं होते हैं, अत: सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होते हैं ।

(क) खजाना बिल (टी-बिल्स)

1.2. खजाना बिल अथवा टी बिल्स, जो मुद्रा बाजार लिखत हैं, भारत सरकार द्वारा जारी अल्पावधि ऋण लिखत हैं तथा वर्तमान में तीन प्रकार के यथा 91 दिवसीय, 182 दिवसीय और 364 दिवसीय रूप में जारी किए जाते हैं । खजाना बिल शून्य कूपन प्रतिभूतियाँ हैं तथा इन पर ब्याज का भुगतान नहीं किया जाता । वे बट्टे पर जारी किए जाते हैं तथा परिपक्वता पर इनका मोचन अंकित मूल्य पर किया जाता है । उदाहरणार्थ, 100 रु. (अंकित मूल्य) का 91 दिवसीय खजाना बिल यदि 98.20 रु. पर जारी किया जाता है, जो 1.80 रु. के बट्टे पर है, उसका मोचन 100 रु. के अंकित मूल्य पर किया जाएगा । निवेशकों को परिपक्वता मूल्य अथवा अंकित मूल्य (अर्थात 100 रु.) तथा जारी मूल्य के बीच अंतर आय के रूप में प्राप्त होगा (खजाना बिलों पर आय की गणना के लिए कृपया प्रश्न सं.26 का उत्तर देखें) । रिज़र्व बैंक खजाना बिल जारी करने के लिए प्रत्येक बुधवार को नीलामी करता है । खरीदे गए खजाना बिलों के लिए भुगतान आगामी शुक्रवार को किया जाता है । 91 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी प्रत्येक बुधवार को की जाती है । 182 दिवसीय तथा 364 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी वैकल्पिक बुधवार को होती है । 364 दिवसीय अवधि वाले खजाना बिलों की नीलामी रिपोर्टिंग शुक्रवार के पिछले बुधवार को होती है जबकि 182 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी गैर रिपोर्टिंग शुक्रवार से पहले बुधवार को होती है । रिज़र्व बैंक द्वारा वित्तीय वर्ष के लिए खजाना बिल जारी करने का वार्षिक कैलेंडर पिछले वित्तीय वर्ष के मार्च के अंतिम सप्ताह में जारी किया जाता है । भारतीय रिज़र्व बैंक खजाना बिल जारी करने का ब्योरा प्रत्येक सप्ताह में प्रैस विज्ञप्ति के माध्यम से करता है ।

(ख) दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ

1.3. दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियाँ दीर्घावधि प्रतिभूतियाँ होती हैं और उन पर स्थायी अथवा अस्थायी कूपन (ब्याज दर) दिया जाता है जो एक निश्चित अवधि (सामान्यतया छमाही) पर अंकित मूल्य पर देय होता है दिनांकित प्रतिभूतियों की अवधि 30 वर्ष तक हो सकती है ।

रिज़र्व बैंक का लोक ऋण कार्यालय सरकारी प्रतिभूतियों की रजिस्ट्री/निक्षेपागार का कार्य करता है तथा उन्हें जारी करने, ब्याज अदा करने तथा परिपक्वता मूलधन की चुकौती संबंधी कार्य करता है । अधिकांश दिनांकित प्रतिभूतियाँ स्थायी कूपन प्रतिभूतियाँ हैं ।

प्रतीकात्मक दिनांकित नियत कूपन सरकारी प्रतिभूतियों की नाम पद्धति में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं - कूपन, जारीकर्ता का नाम, परिपक्वता और अंकित मूल्य । उदाहरणार्थ : 7.49% जीएस 2017 का अर्थ होगा :-

कूपन

7.49% अंकित मूल्य पर भुगतान

जारीकर्ता का नाम

भारत सरकार

जारी करने की तारीख 16 अप्रैल 2007
परिपक्वता 16 अप्रैल 2017
कूपन भुगतान की तारीख छमाही (16 अक्तूबर और 16 अप्रैल) प्रत्येक वर्ष
जारी/बिक्री की न्यूनतम राशि 10,000 रु.

यदि एकसमान कूपन की दो प्रतिभूतियाँ हैं और एक ही वर्ष में परिपक्व हो रही हैं, तो एक प्रतिभूति के नाम में माह जुड़ जाएगा ।  उदाहरणार्थ : 6.05% जीएस 2019 फरवरी का अर्थ होगा कि 6.05% कूपन वाली सरकारी प्रतिभूति, उसी कूपन वाली अन्य प्रतिभूति, जिसका नाम 6.05% 2019 है और जो जून 2019 को परिपक्व हो रही है, के साथ फरवरी 2019 को परिपक्व होगी ।

यदि कूपन भुगतान की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन है, तो कूपन भुगतान अगले कार्य दिवस को किया जाता है । तथापि, यदि परिपक्वता की तारीख रविवार अथवा छुट्टी के दिन होती है तो शोधन की आय का भुगतान पिछले कार्य दिवस को किया जाता है ।

1.4. भारत सरकार द्वारा जारी सभी दिनांकित प्रतिभूतियों का ब्योरा भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट प्ूज्://ैैै.ींi.दीु.iह/एम्ीiज्ूे/iिर्हीहर्र्म्iीत्स्ीीर्वूेैीूर्म्प्.ीेज्x . पर उपलब्ध हैं । खजाना बिलों के समानही, भारत सरकार और राज्य सरकारों, दोनों की दिनांकित प्रतिभूतियाँ रिज़र्व बैंक के माध्यम से नीलामी द्वारा जारी कि जाती हैं । रिज़र्व बैंक नीलामी की घोषणा प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से एक सप्ताह पहले करता है । सरकारी प्रतिभूति की नीलामी की घोषणा प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों के माध्यम से विज्ञापनों द्वारा भी की जाती है । इस प्रकार निवेशों को ऐसी नीलामी के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदने की योजना बनाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाता है ।

दिनांकित प्रतिभूति का नमूना परिशिष्ट 1 में दिया गया है ।

1.5. लिखत

(i) स्थायी दर बॉण्ड - इन बॉण्डों पर बाँण्ड की पूरी अवधि के लिए कूपन दर स्थायी होती है । अधिकांश सरकारी बॉण्ड स्थायी दर बॉण्डों के रूप में जारी किए जाते हैं ।

उदाहरण - 8.24 प्रतिशत जीएस 2018 दस वर्ष के अवधि के लिए 22 अप्रैल 2008 को जारी किया गया जिसकी परिपक्वता 22 अप्रैल 2018 को है । इस प्रतिभूति पर कूपन प्रत्येक वर्ष छ:माही आधार पर 4.12 प्रतिशत की दर से अंकित मूल्य पर 22 अक्तूबर और 22 अप्रैल को अदा किया जाएगा ।

(ii) अस्थायी दर बॉण्ड - अस्थायी दर बॉण्ड वे प्रतिभूतियाँ हैं जिनकी कूपन दर स्थायी नहीं होती । इनका कूपन, आधार दर पर स्पैड जमा करके पहले से घोषित अंतरालों पर (छ:माह/एक वर्ष) दुबारा निर्धारित किया जाता है । अब तक भारत सरकार द्वारा जारी अधिकांश अस्थायी दर बॉण्डों के मामले में स्पैड नीलामी के दौरान निर्धारित किया जाता है जबकि आधार पर पिछले कूपन पुन:निर्धारित करने की तारीख के पिछले तीन 364 दिवसीय खजाना बिलों की नीलामी की निर्धारित दर की भारित औसत होगी ।भारत में पहले अस्थायी दर बॉण्ड सितंबर 1995 में जारी किए गए थे ।

उदाहरणार्थ : एक अस्थायी दर बॉण्ड 15 वर्ष की अवधि के लिए 2 जुलाई 2002 को जारी किया गया जो 2 जुलाई 2017 को परिपक्व होगा । कूपन भुगतान के लिए बॉण्ड पर आधार दर 6.50 प्रतिशत निर्धारित की गयी जो पिछली छ: नीलामियों के दौरान 364 दिवसीय खजाना बिलों पर अंतर्निहित आय की भारित औसत दर थी। बॉण्ड नीलामी में 34 आधार पाइंट (0.34%) का निर्दिष्ट अंतराल (चिन्हित दर से अधिक मूल्य) निर्धारित किया गया । अत: पहले छ:माह के लिए कूपन 6.84% पर निर्धारित किया गया ।

(iii) शून्य कूपन बॉण्ड - शून्य कूपन बॉण्ड वे कूपन बॉण्ड हैं जिन पर कोई कूपन भुगतान नहीं किया जाता । खजाना बिलों के समान ये अंकित मूल्य पर बट्टे पर जारी किए जाते हैं । भारत सरकार ने ऐसी प्रतिभूतियाँ 90 के दशक में जारी की थी । उसके बाद शून्य कूपन बॉण्ड जारी नहीं किए गए ।

(iv) पूंजी सूचकांक बॉण्ड - ये बॉण्ड, जिनका मूल धन मुद्रास्फीति के स्वीकार्य सूचकांक से सहलग्न हैं, मुद्रास्फीति से धारक का बचाव करता हैं । पूंजी सूचकांक बॉण्ड, जिसके मूलधन की प्रतिरक्षा मुद्रास्फीति से की गयी थी, दिसंबर 1997 में जारी किए गए थे । ये बॉण्ड 2002 में परिपक्व हो गये थे । सरकार मुद्रस्फीति सूचकांक बॉण्डों के निर्गम पर कार्य कर रही है जिनमें बॉण्डों पर कूपन और मूलधन, दोनों, मुद्रस्फीति सूचकांक (थोक मूल्य सूचकांक) से सहलग्न होंगे ।

(v) मांग/विक्रय विकल्प वाले बाँण्ड - विकल्प की विशेषताओं वाले बॉण्ड भी जारी किये जा सकते हैं जहाँ जारीकर्ता के पास बाय बैक (मांग/विकल्प) का विकल्प होगा अथवा निवेशक के पास यह विकल्प होगा कि वह बॉण्ड की अवधि के दौरान जारीकर्ता को बॉण्ड बेच (विक्रय विकल्प) सकते हैं । 6.72% जीएस 2012, 18 जुलाई 2002 को जारी किए गए थे जिनकी परिपक्वता अवधि दस वर्ष की है तथा परिपक्वता की तारीख 18 जुलाई 2012 है। बॉण्ड पर विकल्प का प्रयोग उसके बाद आने वाली किसी कूपन तारीख को जारी करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि पूरा होने के बाद किया जा सकता है । सरकार को सममूल्य पर (अंकित मूल्य के बराबर) बॉण्ड बाय बैक (मांग/विकल्प) करने का अधिकार है जब कि निवेशक को 18 जुलाई 2007 से आरंभ होने वाली किसी भी छमाही कूपन तारीखों में सममूल्य पर सरकार को बेचने का अधिकार होगा ।

(vi) विशेष प्रतिभूतियाँ - बाजार उधार के कार्यक्रम के अंतर्गत खजाना बिल और दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करने के साथ-साथ समय-समय पर तेल विपणन कंपनियों, उर्वरक कंपनियों, भारतीय खाद्य निगम इत्यादि को नकदी सब्सिडी के स्थान पर प्रतिपूर्ति के रूप में विशेष प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं । ये प्रतिभूतियाँ सामान्यत: लंबित अवधि की होती है जिन पर तुलनात्मक परिपक्वता की दिनांकित प्रतिभूतियों के आय पर लगभग 20-25 आधार पाइंट का स्प्रैड होता है । तथापि ये प्रतिभूतियाँ एसएलआर प्रतिभूतियों के लिए पात्र नहीं होती हैं लेकिन बाजार रिपो लेन-देनों के लिए संपाश्दिवक के रूप में पात्र होती हैं । हिताधिकारी तेल विपणन कंपनियाँ इन प्रतिभूतियों को द्वितीय बाजार में बैंकों, बीमा कंपनियों/प्राथमिक व्यापारियों इत्यादि को नकदी जुटाने के लिए बेच सकती हैं ।

(vii) स्ट्रिप्स (प्रतिभूतियों के पंजीकृत ब्याज और मूलधन का पृथक कारोबार) जैसे नये स्वरुप के लिखत लागू करने के उपाय किये गए हैं । स्ट्रिप्स वे लिखत हैं जिनमें स्थायी कूपन प्रतिभूति का प्रत्येक नकदी प्रवाह पृथक कारोबार योग्य शून्य कूपन बॉण्ड में परिवर्तित हो जाता है तथा उस पर कारोबार किया जाता है । उदाहरणार्थ : जब 100 रु. के 8.24% जीएस 2018 को स्ट्रिप किया जाता है, तो कूपन (4.12 रु. प्रत्येक छमाही) स्ट्रिप का प्रत्येक नकदी प्रवाह कूपन स्ट्रिप बन जाता है तथा मूल भुगतान (परिपक्वता पर 100 रु.) मूल स्ट्रिप बन जाएगा । द्वितीयक बाजार में इन नकदी प्रवाहों के संबंध में अलग प्रतिभूतियों के रूप में कारोबार होता है ।

(ग) राज्य विकास ऋण (एसडीएल)

1.6. राज्य सरकारें भी बाजार से ऋण जुटाती हैं । एसडीएल दिनांकित प्रतिभूतियाँ होती हैं जो केद्र सरकार द्वारा दिनांकित प्रतिभूतियों के लिए की जाने वाली नीलामियों के समान नीलामी के माध्यम से जारी की जाती हैं (नीचे प्रश्न सं.3 देखें) । ब्याज का भुगतान छमाही आधार पर किया जाता है तथा मूल की चुकौती परिपक्वता तारीख को होती है । केद्र सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियों के समान राज्य सरकारों द्वारा जारी एसडीएल सांविधिक चलनिधि अनुपात के लिए गिनी जाएंगी । ये बाजार रिपो के माध्यम से उधार के लिए संपाश्दिवक के रूप में तथा चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक से पात्र संस्थाओं द्वारा उधार लेने के लिए पात्र होंगी ।

रिटेल डायरेक्ट योजना

रिटेल डायरेक्ट योजना के बारे में

भारत में सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) बाजार में निवेशकों में ज्यादातर वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, भविष्य निधि, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों जैसे संस्थान हैं। रिटेल भागीदारी यानी जी-सेक बाज़ार में व्यक्तियों की भागीदारी अब तक बहुत सीमित रही है।

जी-सेक बाजार में रिटेल भागीदारी को बढ़ावा देना जारीकर्ता और निवेशक दोनों के लिए फायदेमंद है। जारीकर्ता के नजरिए से, सरकारी बांड के लिए एक विविध निवेशक आधार जी-सेक के लिए स्थिर मांग सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, विभिन्न समय में, जोखिम वरीयताओं और व्यापारिक उद्देश्यों के साथ एक विषम निवेशक आधार सक्रिय व्यापार सुनिश्चित करता है, तरलता बनाता है और सरकार को उचित लागत पर उधार जुटाने की अनुमति देता है। दूसरी ओर, निवेशकों के नजरिए से, यह अच्छा रिटर्न और पूंजी प्रतिभूति के साथ एक वैकल्पिक निवेश विकल्प प्रदान करता है।

कुछ देशों ने विशेष गैर-व्यापार योग्य साधनों के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों की रिटेल मांग बनाने की कोशिश की है, हालांकि यह सरकारी प्रतिभूति बाजार के विकास में योगदान नहीं देता है। भारत में, खुदरा निवेशक छोटे बचत साधनों जैसे राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र, सार्वजनिक भविष्य निधि आदि में निवेश करते हैं, जिनमें से कुछ को कर लाभ होता है, जिससे उनका आकर्षण बढ़ा होता है। हालांकि, इन निवेशों से बाहर निकलना आसान नहीं है क्योंकि इन उपकरणों के पास द्वितीयक बाजार नहीं है, जिससे उनकी तरलता और पूंजी मूल्य-वृद्धि के अवसर सीमित हो जाते हैं ।

इस संदर्भ में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा खुदरा निवेशकों को जी-सेक बाजार में भाग लेने की अनुमति देने की घोषणा-प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार दोनों में-रिटेल डायरेक्ट नामक एक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से खुदरा निवेशकों के साथ-साथ जारीकर्ता दोनों के लिए हर दृष्टिकोण से एक अच्छा प्रस्ताव है।

योजना संबन्धित प्रश्न

रिटेल डायरेक्ट योजना व्यैकतिक निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश को सुगम बनाने के लिए समग्र समाधान है। इस योजना के अंतर्गत रिटेल निवेशक आरबीआई के साथ गिल्ट प्रतिभूति खाता- “रिटेल डायरेक्ट गिल्ट (आरडीजी)” खाता खोल सकता है। इस खाते को प्रयोग करते हुए, रिटेल निवेशक ऑनलाइन पोर्टल https://rbiretaildirect.org.in के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों को खरीद और बेच सकता है।

आवास ऋण

आप आम तौर पर घर या फ्लैट खरीदने, अपने मौजूदा घर के नवीनीकरण, विस्तार और मरम्मत के लिए पहली बार आवास ऋण ले सकते हैं। जो लोग दूसरा घर खरीदने जा रहे हैं, उनके लिए ज्यादातर बैंकों की अलग नीति (पॉलिसी) होती है। कृपया ऊपर उल्लिखित मुद्दों पर अपने वाणिज्यिक बैंक से विशिष्ट स्पष्टीकरण प्राप्त करना याद रखें।

फेमा 1999 के तहत विदेशी देयताओं और परिसंपत्तियों (एफएलए) पर वार्षिक रिटर्न

सामान्य निर्देश

विदेशी देयताओं और परिसंपत्तियों पर वार्षिक रिटर्न (एफएलए) को फेमा 1999 (ए.पी. (डीआईआर सीरीज) दिनांक 15 मार्च, 2011 के परिपत्र संख्या 45) के तहत अधिसूचित किया गया है और इसे सभी भारतीय-निवासी कंपनियों/एलएलपी/अन्य [(सेबी पंजीकृत वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ), साझेदारी फर्म, सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) सहित) (इसके बाद 'इकाईयों' के रूप में संदर्भित) जिन्होंने पिछले किसी भी वर्ष चालू वर्ष सहित, में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त किया है और/या विदेशी निवेश किया है, द्वारा प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।

रिज़र्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा आयोजित समन्वित प्रत्यक्ष निवेश सर्वेक्षण (सीडीआईएस) और समन्वित पोर्टफोलियो निवेश सर्वेक्षण (सीपीआईएस) में भाग लेता है। यहां इन संस्थाओं के पिछले वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष) के मार्च के अंत और नवीनतम वित्तीय वर्ष के मार्च के अंत में विदेशी वित्तीय देयताओं और परिसंपत्तियों की स्थिति से संबंधित एफएलए रिटर्न से एकत्र की गई समेकित जानकारी की सूचना दी जाती है। इस जानकारी का उपयोग भारत के भुगतान संतुलन (बीओपी) और अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी) के संकलन में भी किया जाता है।

गोपनीय धाराएँ

एफएलए रिटर्न के तहत एकत्र की गई इकाई-वार जानकारी को गोपनीय रखा जाता है और रिज़र्व बैंक द्वारा केवल समेकित समुच्चय ही जारी किए जाते हैं।

एफएलए रिटर्न जमा करने के लिए पात्र संस्थाएं और आवश्यकताएं

उत्तर: विदेशी देयताओं और परिसंपत्तियों (एफएलए) पर वार्षिक रिटर्न को निम्नलिखित इकाईयों, जिन्होंने पिछले वर्ष (ओं) में वर्तमान वर्ष सहित एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) प्राप्त किया है और/या विदेश में एफडीआई (अर्थात विदेशी निवेश) किया है, यानि जो अपनी तुलन पत्र में विदेशी संपत्ति या/और देनदारियां रखते हैं, द्वारा प्रस्तुत करना आवश्यक है;

  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 1(4) के तहत एक कंपनी।

  • सीमित देयता भागीदारी अधिनियम, 2008 के तहत पंजीकृत एक सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी)।

  • अन्य [सेबी पंजीकृत वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ), भागीदारी फर्म, सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) आदि शामिल हैं।]

कोर निवेश कंपनियां

प्रस्तावना

भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय III बी में निहित शक्तियों के आधार पर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के विनियमन और पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक को सौंपी गई है। विनियामक और पर्यवेक्षी उद्देश्य इस प्रकार हैं:क) वित्तीय कंपनियों का सुदृढ़ विकास सुनिश्चित करना;ख) सुनिश्चित करें कि ये कंपनियां नीतिगत ढांचे के भीतर वित्तीय प्रणाली के एक हिस्से के रूप में कार्य करती हैं, और इस तरह से कार्य करतीं हैं कि उनके अस्तित्व और कामकाज से प्रणालीगत विचलन नहीं होता है; और किग) वित्तीय प्रणाली के इस क्षेत्र में होने वाले विकास के साथ तालमेल रखते हुए एनबीएफसी पर बैंक द्वारा की जाने वाली निगरानी और पर्यवेक्षण की गुणवत्ता बनी हुई है।पिछले कुछ वर्षों में, आरबीआई द्वारा उत्कीर्ण कुछ विशेष एनबीएफसी जैसे कोर इन्वेस्टमेंट कंपनियां (सीआईसी), एनबीएफसी- इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनियां (आईएफसी), इंफ्रास्ट्रक्चर डेट फंड- एनबीएफसी, एनबीएफसी-एमएफआई और एनबीएफसी-फैक्टर सबसे हालिया हैं।एनबीएफसी, आम जन, रेटिंग एजेंसियों, चार्टर्ड एकाउंटेंट आदि के हितों के लिए विनियामक परिवर्तनों के अंतर्निहित तर्क की व्याख्या करना और कुछ परिचालन मामलों पर स्पष्टीकरण प्रदान करना आवश्यक महसूस किया गया है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए, प्रश्नों के रूप में स्पष्टीकरण और जवाब, विशिष्ट एनबीएफसी पर भारतीय रिजर्व बैंक (गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग) द्वारा इस आशा के साथ लाया जा रहा है कि यह विनियामक ढांचे की बेहतर समझ प्रदान करेगा।प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण कोर निवेश कंपनियों (सीआईसी-एनडी-एसआई) पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों में दी गई जानकारी आम जन की सुविधा के लिए सामान्य प्रकृति की होती है और दिए गए स्पष्टीकरण विशिष्ट एनबीएफसी को बैंक द्वारा जारी मौजूदा विनियामक निर्देशों/अनुदेशों को प्रतिस्थापित नहीं करते हैं।

कोर निवेश कंपनियां (सीआईसी)

उत्तर- सीआईसी-एनडी-एसआई एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है

(i) 100 करोड़ रुपये और उससे अधिक की आस्ति आकार हो

(ii) शेयरों और प्रतिभूतियों के अधिग्रहण का व्यवसाय करना और जो अंतिम लेखापरीक्षित तुलनपत्र की तारीख को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता है: -

(iii) समूह कंपनियों में इक्विटी शेयरों, वरीयता शेयरों, बांडों, डिबेंचर, डेट या ऋण में निवेश के रूप में अपनी निवल आस्ति का 90% से कम नहीं धारित करता है;

(iv) समूह कंपनियों में इक्विटी शेयरों में इसका निवेश (निर्गम की तारीख से 10 साल से अधिक की अवधि के भीतर अनिवार्य रूप से इक्विटी शेयरों में परिवर्तनीय सहित) इसकी निवल आस्ति का 60% से कम नहीं है जैसा कि उपर्युक्त खंड (iii) में उल्लिखित है;

(v) यह ह्रासमान होने या विनिवेश के उद्देश्य से ब्लॉक बिक्री के अलावा समूह कंपनियों में शेयरों, बांडों, डिबेंचर, डेट या ऋण में अपने निवेश में व्यापार नहीं करता है;

(vi) यह भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45आई (सी) और 45आई (एफ) में निर्दिष्ट किसी भी अन्य वित्तीय गतिविधि को कारित नहीं करता है, सिवाय बैंक जमा, मुद्रा बाजार लिखतों, सरकारी प्रतिभूतियों, डेट और ऋण में निवेश,समूह कंपनियों को निर्गम या समूह कंपनियों की ओर से जारी गारंटियों को छोड़कर।

(vii) यह सार्वजनिक निधि स्वीकार करता है।

भारत में विदेशी निवेश

“अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्न’ नामक यह शृंखला इस विषय पर उपयोगकर्ताओं द्वारा समान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर सरल भाषा में देने का प्रयास है। तथापि कोई लेनदेन करने के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (फेमा) तथा उसके अंतर्गत बनाए गए विनियमों/ नियमों अथवा निदेशों का संदर्भ लें। इससे संबंधित मूल विनियमावली 07 नवंबर 2017 को अधिसूचित एवं समय समय पर यथासंशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत के बाहर के निवासी किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम) विनियमावली, 2017 [जिसे समान्यतः फेमा 20(आर) नाम से जाना जाता है] के मार्फत जारी की गई है। प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा उसके ग्राहकों और घटकों के साथ विदेशी मुद्रा संबंधी कारोबार को कैसे संचालित किया जाएगा, ताकि संबन्धित विनियमों का अनुपालन हो सके, इसके संबंध में दिशानिर्देश भारत में विदेशी निवेश पर जारी मास्टर निदेश में दिये गए हैं।

उत्तर: जिन मार्गों के अंतर्गत विदेशी निवेश किया जा सकता है, वे निम्नानुसार हैं:

ए. स्वचालित मार्ग: फेमा 20(आर) के विनियम-16 में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार सभी गतिविधियों/ क्षेत्रों में सरकार अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन के बिना स्वचालित मार्ग के अंतर्गत विदेशी निवेश अनुमत है।

बी. सरकारी अनुमोदन मार्ग: स्वचालित मार्ग के अंतर्गत कवर न की गई गतिविधियों में विदेशी निवेश के लिए सरकार का पूर्वानुमोदन आवश्यक है। सरकार के अनुमोदन के लिए आवेदन करने की विधि http://fifp.gov.in/Forms/SOP.pdf पर दी गई है।

भारतीय मुद्रा

अपडेट हो गया है: अप्रैल 15, 2025

क) भारतीय मुद्रा/मुद्रा प्रबंधन से जुड़ी आधारभूत जानकारी

भारतीय मुद्रा का नाम भारतीय रुपया (आईएनआर) है । एक रुपया में 100 पैसे होते हैं । भारतीय रुपये का प्रतीक "₹" है । यह रूपरेखा (डिजाइन) देवनागरी अक्षर "₹" (र) तथा लैटिन के बड़े “आर/R” अक्षर के समान है जिसमें शीर्ष पर दोहरी क्षैतिज रेखा है ।

समन्वित संविभागीय निवेश सर्वेक्षण - भारत

अपडेट हो गया है: जून 02, 2025

सामान्य सूचना

समन्वित संविभागीय निवेश सर्वेक्षण (सीपीआईएस) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के तत्वावधान में आयोजित एक स्वैच्छिक डेटा संग्रह कार्य है। सीपीआईएस का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी) में संविभागीय निवेश के आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार करना है - यानि इक्विटी और निवेश फंड शेयरों, दीर्घकालिक ऋण प्रतिभूतियों और लघुकालिक ऋण प्रतिभूतियों के रूप में संविभागीय निवेश संपत्तियों की होल्डिंग और सावधि ऋण प्रतिभूतियां और समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं द्वारा इन आंकड़ों को उपलब्ध कराना है। अतः, सीपीआईएस सीमा पार किससे किसको के आंकड़े विकसित करने के उद्देश्य का समर्थन करता है और वित्तीय अंतर्संबंधों की बेहतर समझ में योगदान देता है।

भारत वर्ष ने 2004 से आईएमएफ़ के वार्षिक सीपीआईएस में भाग लेना शुरू किया है। इसके बाद, G-20 डेटा गैप्स इनिशिएटिव (डीजीआई) के तहत आईएमएफ़ की सिफारिश के अनुसार, भारत वर्ष 2014 से विशेष डेटा प्रसार मानकों (एसडीडीएस) के तहत इसकी प्रतिबद्धता के अनुसार सीपीआईएस की अर्ध-वार्षिक रिपोर्टिंग करता है । भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत की ओर से आईएमएफ़ को सीपीआईएस डेटा प्रस्तुत करता है।

गोपनीयता खंड

सीपीआईएस के तहत एकत्रित इकाई-वार जानकारी को गोपनीय रखा जाता है और केवल समेकित योग ही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आईएमएफ़ को प्रस्तुत किए जाते हैं।

सीपीआईएस के तहत रिपोर्ट करने के लिए पात्र संस्थाएं और आवश्यकताएं

उत्तर: वर्तमान में सीपीआईएस के तहत बैंकों, म्यूचुअल फंड कंपनियों, गैर-वित्तीय कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और बीमा कंपनियों का सर्वेक्षण किया जाता है।

भारतीय उद्योग में विदेशी सहयोग (एफसीएस) पर द्विवार्षिक सर्वेक्षण

अपडेट हो गया है: जून 02, 2025

सामान्य निर्देश

रिज़र्व बैंक लंबे समय से एफसीएस सर्वेक्षण कर रहा है क्योंकि यह न केवल शोधकर्ताओं के लिए फायदेमंद है बल्कि उद्योगों के लिए भी मददगार है क्योंकि यह उन्हें प्रतिस्पर्धा के संभावित क्षेत्रों का अंदाजा देता है। 2011 में अनिवार्य FLA संगणना की शुरुआत के बाद, इस सर्वेक्षण को 2012 में FLA संगणना के पूरक के रूप में पुनर्गठित किया गया था।

सर्वेक्षण प्रदर्शन के संकेतकों की एक विस्तृत श्रृंखला (उत्पादन, निर्यात, आयात, सामग्री की लागत, आदि) के साथ-साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों की महत्वपूर्ण विशेषताओं (प्रकृति, अवधि, भुगतान का तरीका, निर्यात प्रतिबंध, प्रावधान अनन्य अधिकार, समझौतों की समाप्ति के बाद प्रौद्योगिकी का उपयोग, आदि) पर जानकारी प्राप्त करता है।

सर्वेक्षण वर्तमान में भारतीय प्रत्यक्ष निवेश कंपनियों के लिए द्विवार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है, जिन्होंने दो वित्तीय वर्षों के मार्च के अंत में विदेशी कंपनियों के साथ विदेशी तकनीकी सहयोग समझौते किए हैं।

सर्वेक्षण आरबीआई प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से शुरू किया जाता है। इसके साथ ही, रिपोर्टिंग संस्थाओं को ईमेल सूचनाएं भी Excel आधारित सर्वेक्षण प्रश्नावली के साथ भेजी जाती हैं। रिपोर्ट करने वाली संस्थाएं फिर आरबीआई की जेनेरिक ईमेल आईडी पर विधिवत भरी हुई सर्वेक्षण प्रश्नावली प्रस्तुत करती हैं, जिसे फिर आरबीआई के आंतरिक इंट्रानेट पोर्टल पर संसाधित किया जाता है।

रिपोर्टिंग संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों का आंतरिक विश्लेषण किया जाता है और समग्र स्तर के परिणाम आरबीआई की वेबसाइट पर द्विवार्षिक रूप से प्रकाशित किए जाते हैं।

गोपनीयता खंड

प्रदान की गई कंपनी-वार जानकारी को गोपनीय रखा जाएगा और रिज़र्व बैंक द्वारा केवल समेकित योग ही जारी किए जाएंगे।

नोट: प्रतिवादी कंपनियों को भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध Excel प्रारूप (*.xls प्रारूप) में सर्वेक्षण प्रश्नावली को भरना चाहिए। उत्तरदाताओं से अनुरोध है कि वे सर्वेक्षण प्रश्नावली भरने से पहले निर्देश पत्रक (सर्वेक्षण प्रश्नावली में उपलब्ध) को अच्छी तरह से पढ़ लें।

FCS सर्वेक्षण में भाग लेते समय याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बिंदु

उत्‍तर: सर्वेक्षण प्रश्नावली भरते समय प्रतिवादी कंपनियों को निम्‍नलिखित बातों का पालन करना चाहिए:

(i) कंपनी को नवीनतम सर्वेक्षण प्रश्नावली का उपयोग करना चाहिए जो बिना किसी Macro के .xls प्रारूप में है।

(ii) कंपनी को सर्वेक्षण प्रश्नावली को Excel 97-2003 वर्कबुक यानी केवल .xls फॉर्मेट में सेव करना होगा।

(iii) सर्वेक्षण प्रश्नावली को .xls प्रारूप में सेव के लिए, नीचे दिए गए चरणों का पालन करें

अ. ऑफिस बटन / फाइल पर जाएं → इस रूप में सहेजें → इस रूप में सहेजें

ब. "Excel 97-2003 वर्कबुक" चुनें और सर्वेक्षण प्रश्नावली को .xls फॉर्मेट में सेव करें।

(iv) कंपनी को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रदान किए गए सर्वेक्षण प्रश्नावली के .xls प्रारूप का उपयोग करना चाहिए और अनुरोध किया जाता है कि सर्वेक्षण प्रश्नावली में किसी Macro को शामिल न करें।

(v) कृपया ध्यान दें कि किसी अन्य प्रारूप (.xls प्रारूप के अलावा) में प्रस्तुत किए गए सर्वेक्षण प्रश्नावली सिस्टम द्वारा स्वत: खारिज कर दिए जाएंगे।

(vi) कृपया सुनिश्चित करें कि सर्वेक्षण प्रश्नावली में दी गई सभी सूचनाएँ पूर्ण हैं और कोई सूचना छूटी नहीं है।

(vii) पार्ट-I से III भरने के बाद कंपनी को डिक्लेरेशन भरना होता है। डिक्लेरेशन शीट इस बात की पुष्टि और सत्यापन करने में मदद करती है कि कंपनी द्वारा दर्ज की गई जानकारी को आरबीआई को सबमिट करने से पहले उसकी दोबारा जांच की जाती है। इससे डेटा एंट्री एरर, मिस्ड डेटा आदि जैसी त्रुटियों से बचने में मदद मिलेगी।

(viii) इसके अलावा, उत्तरदाताओं से अनुरोध है कि वे सर्वेक्षण प्रश्नावली के सभी भागों में डेटा फाइलिंग के दौरान किसी विशेष वर्ण अर्थात [!@#$%^&*_()] और अल्पविराम का उपयोग न करें।

समझौता निपटान और तकनीकी रूप से बट्टे खाते डालने (राइट-ऑफ) के लिए रूपरेखा

'समझौता निपटान और तकनीकी रूप से बट्टे खाते डालने (राइट-ऑफ) के लिए रूपरेखा' पर दिनांक 8 जून 2023 को जारी परिपत्र

ए. इरादतन कर्ज़ न चुकाने और धोखाधड़ी के मामलों में समझौता निपटान

नहीं। धोखाधड़ी अथवा इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत उधारकर्ताओं के संबंध में बैंकों को समझौता निपटान में समर्थ करने वाला उक्त प्रावधान कोई नया विनियामक निर्देश नहीं है और यह 15 वर्षों से अधिक समय से मानित विनियामक उद्देश्य रहा है। इस खंड को समर्थित करने के लिए मौजूदा निर्देश बैंकों के लिए पहले से ही उपलब्ध है, जैसा कि नीचे दिया गया है:

  1. आरबीआई द्वारा अपने 10 मई 2007 को जारी पत्र के माध्यम से आईबीए को सूचित किया गया था कि, “(i) बैंक ऐसे उधारकर्ताओं के विरुद्ध चल रही आपराधिक कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना इरादतन चूककर्ता/धोखाधड़ी करने वाले उधारकर्ताओं के साथ समझौता निपटान कर सकते हैं; (ii) समझौता निपटान के ऐसे सभी मामलों की जांच प्रबंधन समिति/बैंकों के बोर्ड द्वारा की जानी चाहिए।”

  2. इरादतन चूककर्ताओं पर 1 जुलाई 2015 को जारी मास्टर परिपत्र में ऋणदाताओं को इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत उधारकर्ताओं के साथ समझौता निपटान करने पर सहमत होने की परिकल्पना की गई है और कहा गया है कि ऐसे मामलों को क्रेडिट सूचना कंपनियों को सूचित करने की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते कि, अन्य बातों के साथ-साथ, "उधारकर्ता ने समझौता की गई राशि का पूरा भुगतान कर दिया हो।"

  3. धोखाधड़ी पर जारी दिनांक 1 जुलाई 2016 के मास्टर दिशानिर्देशों में धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत उधारकर्ताओं के साथ समझौता निपटान का प्रावधान, इस शर्त के अधीन किया गया हैं कि, "धोखाधड़ी वाले उधारकर्ता से जुड़े किसी भी समझौता निपटान की अनुमति तब तक नहीं है जब तक कि शर्तें यह निर्धारित न करें कि आपराधिक शिकायत जारी रखी जाएगी अथवा नहीं।"

विप्रेषण (धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) तथा रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए))

विप्रेषण पारिवारिक तथा राष्ट्रीय आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और बाह्य वित्तपोषण का एक सबसे बड़ा स्रोत भी है। भारत के हिताधिकारी बैंकिंग तथा डाक के माध्यम से सीमापारीय आंतरिक विप्रेषण प्राप्त कर सकते हैं। बैंकों को विप्रेषण का कारोबार करने हेतु अन्य बैंकों के साथ भागीदारी करने के लिए सामान्य अनुमति है। डाक के माध्यम हेतु समान्यतः यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन के (यूपीयू) अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली (आईएफ़एस) प्लैटफ़ार्म का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा आवक विप्रेषण प्राप्त करने के लिए दो और चैनल हैं, अर्थात रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए) तथा धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) जोकि देश में विप्रेषण प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली व्यवस्था है।

ये अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्न आरडीए तथा एमटीएसएस से संबंधित सामान्य प्रश्न है और सामान्य मार्गदर्शन के लिए इनसे संदर्भ क्यी अजाए। प्राधिकृत व्यक्ति तथा उनके घटक यदि आवश्यक हो तो विस्तृत जानकारी के लिए संबंधित परिपत्र/ दिशानिर्देश देखें।

रुपया आहरण व्यवस्था(आरडीए)

रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए) समुद्रपारीय अधिकार क्षेत्रों से सीमापारीय विप्रेषण प्राप्त करने का चैनल है। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्राधिकृत श्रेणी-I के बैंक एफ़एटीएफ़ का अनुपालन करने वाले देशों में स्थित अनिवासी विनिमय गृहों के साथ अपने वोस्टरों खाते खोलने तथा बनाए रखने के लिए गठबंधन करते हैं।

दिनांक 31 जनवरी 2024 और 16 फरवरी 2024 की प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड पर लगाए गए कारोबारी प्रतिबंध

पेटीएम पेमेंट्स बैंक में बैंक खाते

हाँ। आप अपने खाते में उपलब्ध शेष राशि तक धनराशि का उपयोग, आहरण या अंतरण जारी रख सकते हैं। इसी प्रकार, आप अपने खाते में उपलब्ध शेष राशि तक धनराशि निकालने या अंतरित करने के लिए अपने डेबिट कार्ड का उपयोग जारी रख सकते हैं।

बाह्य वाणिज्यिक उधार(ईसीबी) तथा व्यापार ऋण

भाग-I बाह्य वाणिज्यिक उधार

ए. कुछ बुनियादी प्रश्न

उत्तर: ईसीबी तथा ट्रेड क्रेडिट (टीसी) संबंधी मौजूदा ढांचे पर मार्गदर्शन के लिए बाह्य वाणिज्यिक उधार, व्यापार ऋण तथा संरचित प्रतिबद्धताएं विषय पर दिनांक 26 मार्च 2019 के मास्टर निदेश सं. 5 से संदर्भ करें। पूर्व ढांचों के अंतर्गत जुटाये गए ईसीबी तथा टीसी का उक्त ईसीबी तथा टीसी का लाभ उठाते समय यथालागू तदनुरूपी दिशानिर्देशों का अनुपालन करना जारी रहेगा।

प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार संबंधी दिशानिर्देशों के मास्टर निदेशों पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क. ऋणों का वर्गीकरण

उत्तर: 01 अप्रैल 2025 तक बकाया ऋणों की प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल) पात्रता का निर्धारण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार, 2025 पर मास्टर निदेश के प्रावधानों के संदर्भ में किया जाएगा।

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पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: दिसंबर 10, 2022

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