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इरादतन चूककर्ताओं से संबंधि‍त मास्टर परि‍पत्र

आरबीआई/2015-16/100
बैंवि‍वि‍.सं.सीआइडी. बीसी. 22/20.16.003/2015-16

1 जुलाई 2015

i) सभी अनुसूचि‍त वाणि‍ज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) तथा

ii) अखि‍ल भारतीय अधि‍सूचि‍त वि‍त्तीय संस्थाएँ

महोदय /महोदया,

इरादतन चूककर्ताओं से संबंधि‍त मास्टर परि‍पत्र

कृपया 1 जुलाई 2014 का मास्टर परि‍पत्र बैंवि‍वि‍.सं.सीआईडी.बीसी.57/20.16.03/2014-15 देखें जि‍समें इरादतन चूककर्ताओं से संबंधि‍त वि‍षयों पर 30 जून 2014 तक बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं को जारी कि‍ये गये तथा 7 जनवरी 2015 तक अद्यतन किए अनुदेश / दि‍शानि‍र्देश समेकि‍त कि‍ये गये हैं।

2. इस मास्टर परि‍पत्र में 30 जून 2015 तक विषय पर जारी अनुदेशों को समेकित कि‍या गया है।

भवदीय,

(सुधा दामोदर)
मुख्य महाप्रबंधक


"इरादतन चूककर्ताओं " से संबंधि‍त मास्टर परि‍पत्र

1. प्रस्तावना

25 लाख रुपये और उससे अधि‍क राशि‍ के इरादतन चूककर्ताओं के संबंध में रि‍ज़र्व बैंक द्वारा जानकारी एकत्रि‍त करने तथा सूचना देने वाले बैंकों और वि‍त्तीय संस्थाओं में इसका प्रसार करने के संबंध में केंद्रीय सतर्कता आयोग के अनुदेशों का अनुसरण करते हुए भारतीय रि‍ज़र्व बैंक द्वारा 1 अप्रैल 1999 से प्रभावी एक योजना तैयार की गई जि‍सके अंतर्गत बैंकों और अधि‍सूचि‍त अखि‍ल भारतीय वि‍त्तीय संस्थाओं से यह अपेक्षा की गयी कि‍ वे इरादतन चूककर्ताओं का वि‍वरण भारतीय रि‍ज़र्व बैंक को प्रस्तुत करें। इस योजना को मई 2002 में इरादतन चूककर्ताओं पर कार्यदल की सिफरीशों के आधार पर संशोधित किया गया, जिन्हें डेटा फॉरमेंट फॉर फरनिशिंग ऑफ क्रेडिट इनफॉरमेशन कंपनिज तथा विविध हितधारकों से प्राप्त प्रतिसूचना के आधार पर भी समय-समय पर संशोधित किया गया।

2. इरादतन चूककर्ताओं पर दि‍शानि‍र्देश

2.1 उधारकर्ता, इकाई, तथा इरादतन चूककर्ताओं की परि‍भाषा

2.1.1 उधारकर्ता : उधारकर्ता शब्द में सभी बैंक/ वित्तीय संस्थाएं शामिल हैं जिनके प्रति कोई भी राशि देय है, बशर्ते यह तुलनपत्रेतर लेनदेन जैसे डेरिवेटीव गारंटियां तथा साख पत्र सहित बैंकिंग लेन देन के कारण उत्पन्न हो।

2.1.2 इकाई : इकाई शब्द में व्यक्ति, विधिक व्यक्ति तथा अन्य सभी कारोबारी उद्यमों के प्रकार, चाहे वे दर्ज है या नहीं। कारोबारी उद्यम (कंपनी से इतर) के मामलें में, बैंकों / वित्तीय संस्थाओं को (अनुबंध के निदेशक स्तंभ में)

1) प्रभारी व्यक्तियों के नाम तथा कारोबारी उद्यम के कार्य के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के नाम भी रिपोर्ट करने चाहिए।

2.1.3 इरादतन चूक: नि‍म्नलि‍खि‍त में से कि‍सी भी घटना के पाये जाने पर "इरादतन चूक" घटि‍त मानी जाएगी :-

(क) इकाई ने उधारदाता के प्रति‍ भुगतान /चुकौती दायि‍त्व पूरा करने में चूक की है जबकि‍ वह उपर्युक्त दायि‍त्व पूरा करने की क्षमता रखती है।

(ख) इकाई ने उधारदाता के प्रति‍ भुगतान /चुकौती दायि‍त्व पूरा करने में चूक की है तथा उधारदाता से प्राप्त वि‍त्त को उन वि‍शि‍ष्ट प्रयोजनों के लि‍ए उपयोग में नहीं लाया है जि‍नके लि‍ए वि‍त्त प्राप्त कि‍या गया था, बल्कि‍ नि‍धि‍ का वि‍पथन अन्य प्रयोजनों के लि‍ए कि‍या है।

(ग) इकाई ने उधारदाता के प्रति‍ भुगतान /चुकौती दायि‍त्व पूरा करने में चूक की है तथा नि‍धि‍ को गलत ढंग से अन्यत्र अंतरि‍त (साइफनिंग) कर दि‍या है और उस वि‍शि‍ष्ट प्रयोजन के लि‍ए उपयोग में नहीं लाया है जि‍सके लि‍ए नि‍धि‍ प्राप्त की गई थी और न ही इकाई के पास अन्य आस्ति‍यों के रूप में उक्त नि‍धि‍ उपलब्ध है।

(घ) इकाई ने उधारदाता के प्रति‍ भुगतान / चुकौती दायि‍त्व पूरा करने में चूक की है तथा मीयादी ऋण की जमानत के प्रयोजन से उसने जो चल स्थायी आस्ति‍ या अचल संपत्ति‍ दी थी उसे भी बैंक/ उधारदाता को सूचि‍त कि‍ये बि‍ना हटाया है या बेच दि‍या है।

इरादतन चूक की पहचान उधारकर्ताओं के पि‍छले रि‍कार्ड को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहि‍ए और इसका नि‍र्णय इक्के-दुक्के लेनदेन / घटनाओं के आधार पर नहीं कि‍या जाना चाहि‍ए। इरादतन चूक के रूप में वर्गीकृत की जानेवाली चूक आवश्यक रूप से उदेश्य के साथ, जान बूझकर और सोच-समझकर की गई चूक होनी चाहि‍ए।

2.2 नि‍धि‍ का वि‍पथन और गलत ढंग से अन्यत्र उपयोग (साइफनिंग) करना

2.2.1 नि‍धि‍ का वि‍पथन जो उपर्युक्त पैरा 2.1.3 (ख) में उल्लि‍खि‍त है, तब माना जाएगा यदि‍ नि‍म्नलि‍खि‍त में से कोई भी एक घटि‍त होता हो:

(क) अल्पकालि‍क कार्यशील पूँजीगत नि‍धि‍यों का उपयोग दीर्घकालि‍क प्रयोजनों के लि‍ए करना जो मंजूरी की शर्तों के अनुरूप न हो;

(ख) उधार ली गई नि‍धि‍यों का वि‍नि‍योजन जि‍न प्रयोजनों / गति‍वि‍धि‍यों के लि‍ए ऋण मंजूर कि‍या गया है उन्हें छोड़कर अन्य प्रयोजनों /गति‍वि‍धि‍यों के लि‍ए करना अथवा परि‍संपत्ति‍यों का नि‍र्माण करना;

(ग) कि‍सी भी तौर-तरीके से नि‍धि‍यों का अंतरण सहयोगी संस्थाओँ /समूह कंपनि‍यों अथवा अन्य कंपनि‍यों में करना;

(घ) उधारदाता की पूर्व अनुमति‍ प्राप्त कि‍ये बि‍ना नि‍धि‍यों को उधारदाता बैंक अथवा सहायता संघ के सदस्यों को छोड़कर कि‍सी अन्य बैंक के माध्यम से प्रेषि‍त करना;

(ङ) उधारदाताओं के अनुमोदन के बि‍ना ईक्वि‍टी/ऋण लि‍खत अर्जि‍त करते हुए अन्य कंपनि‍यों में नि‍वेश करना;

(च) सं‍वितरि‍त / आहरि‍त राशि‍ की तुलना में नि‍धि‍यों के वि‍नि‍योजन में कमी तथा अंतर का कोई हि‍साब न देना।

2.2.2 नि‍धि‍ की साइफनिंग जो उपर्युक्त पैरा 2.1.3 (ग) में उल्लि‍खि‍त है, को तब घटि‍त माना जाए जब बैंकों/ वि‍त्तीय संस्थाओं से उधार ली गई कि‍सी भी नि‍धि‍ का उपयोग उधारकर्ता के परि‍चालनों से असंबद्ध कि‍सी अन्य प्रयोजन के लि‍ए कि‍या जाए जो उस संस्था अथवा उधारदाता की वि‍त्तीय स्थि‍ति‍ के लि‍ए अहि‍तकर हो। कि‍सी वि‍शि‍ष्ट घटना का अर्थ नि‍धि‍ की साइफनिंग है अथवा नहीं, इसका नि‍र्णय वस्तुपरक तथ्यों और मामले की परि‍स्थि‍ति‍यों के आधार पर उधारदाताओं के वि‍नि‍श्चय पर नि‍र्भर होगा।

2.3 उच्चतम सीमाएँ

यद्यपि‍ नीचे पैरा 2.5 में नि‍र्दि‍ष्ट कि‍ये गये दंडात्मक उपाय सामान्यत: इरादतन चूककर्ताओं के रूप में पहचान कि‍ये गये सभी उधारकर्ताओं अथवा नि‍धि‍यों के वि‍पथन / साइफनिंग में लि‍प्त प्रवर्तकों पर लागू होते हैं, बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा भारतीय रि‍ज़र्व बैंक को इरादतन चूक के मामलों की सूचना देने के लि‍ए केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा नि‍र्धारि‍त 25 लाख रुपये की वर्तमान सीमा को ध्यान में रखते हुए 25 लाख रुपये अथवा उससे अधि‍क की बकाया शेष राशि‍ के कि‍सी भी इरादतन चूककर्ता पर नीचे पैरा 2.5 में नि‍र्धारि‍त दंडात्मक उपाय लागू होंगे। 25 लाख रुपये की यह सीमा नि‍धि‍यों के `साइफनिंग' / `वि‍पथन' की घटनाओं की पहचान करने के प्रयोजन के लि‍ए भी लागू होगी।

2.4 नि‍धि‍यों का उद्दि‍ष्ट उपयोग

परि‍योजना वि‍त्तपोषण के मामलों में बैंक /वि‍त्तीय संस्थाएँ नि‍धि‍यों के उद्दि‍ष्ट उपयोग को सुनि‍श्चि‍त करने के लि‍ए अन्य बातों के साथ-साथ इस प्रयोजन के लि‍ए सनदी लेखाकारों से प्रमाणीकरण की भी माँग करें। अल्पकालीन कंपनी /बेजमानती ऋणों के मामले में, इस दृष्टि‍कोण के पूरक के रूप में उधारदाताओं द्वारा स्वयं `उचि‍त सावधानी' बरती जानी चाहि‍ए, तथा इस प्रकार के ऋण यथासंभव ऐसे उधारकर्ताओं तक ही सीमि‍त होने चाहि‍ए जि‍नकी ईमानदारी और वि‍श्वसनीयता उपयुक्त स्तर तक हो। अत: बैंक और वि‍त्तीय संस्थाएँ पूर्णत: सनदी लेखाकारों द्वारा जारी प्रमाणपत्रों पर ही नि‍र्भर न रहें, बल्कि‍ वे अपने ऋण संवि‍भाग की गुणवत्ता बढ़ाने के लि‍ए अपने आंतरि‍क नि‍यंत्रण तथा ऋण जोखि‍म प्रबंध प्रणाली को मजबूत बनाएं।

बैंकों और वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा नि‍धि‍यों के उद्दि‍ष्ट प्रयोग की आवश्यकता और संबंधित उचित उपाय सुनि‍श्चि‍त करना उनके ऋण नीति‍ प्रलेख का अंग होना चाहि‍ए जि‍सके लि‍ए उचि‍त उपाय कि‍ये जाने चाहि‍ए। नि‍धि‍यों का उद्दि‍ष्ट उपयोग सुनि‍श्चि‍त करने तथा इसकी नि‍गरानी के लि‍ए उधारकर्ताओं द्वारा कि‍ये जाने हेतु नीचे उदाहरण स्वरूप कुछ उपाय दि‍ये जा रहे हैं :

(क) उधारकर्ताओं की ति‍माही प्रगति‍ रि‍पोर्टों /परि‍चालन वि‍वरणों /तुलन-पत्रों की सार्थक जाँच;

(ख) उधारदाताओं को जमानत के रूप में प्रभारि‍त की गई उधारकर्ताओं की परि‍संपत्ति‍यों का नि‍यमि‍त रूप से नि‍रीक्षण;

(ग) उधारकर्ताओं की खाता बहि‍यों और अन्य बैंकों के पास रखे गए ग्रहणाधि‍कार रहि‍त (नो-लि‍यन) खातों की आवधि‍क संवीक्षा;

(घ) सहायता प्राप्त यूनि‍टों के आवधि‍क दौरे;

(ङ) कार्यशील पूँजी वि‍त्त के मामले में स्टॉक की आवधि‍क लेखा-परीक्षा की प्रणाली;

(च) उधारदाताओ के 'ऋण' कार्य की आवधि‍क तौर पर व्यापक प्रबंध लेखा-परीक्षा, जि‍ससे ऋण-व्यवस्था में वि‍द्यमान प्रणालीगत कमजोरि‍यों की पहचान की जा सके।

(कृपया यह ध्यान रखें कि‍ उपायों की यह सूची केवल उदाहरण स्वरूप है और कि‍सी भी प्रकार से संपूर्ण नहीं है ।)

2.5 दंडात्मक उपाय

बैंकों और वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा उपर्युक्त पैरा 2.1.3 पर नि‍र्दि‍ष्ट परि‍भाषा के अनुसार अभि‍नि‍र्धारि‍त इरादतन चूककर्ताओं के वि‍रुद्ध नि‍म्नलि‍खि‍त उपाय कि‍ये जाने चाहि‍ए :

क) कि‍सी भी बैंक /वि‍त्तीय संस्था द्वारा सूचीबद्ध इरादतन चूककर्ताओं को कोई अति‍रि‍क्त सुवि‍धा मंजूर नहीं की जानी चाहि‍ए। इसके अति‍रि‍क्त, जहाँ बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं ने उद्यमि‍यों / कंपनि‍यों के प्रवर्तकों द्वारा नि‍धि‍यों का वि‍पथन, उनका गलत ढंग से दूसरी जगह अंतरण, गलत जानकारी देना, लेखों का मि‍थ्याकरण और धोखाधड़ी वाले लेनदेनों का पता लगाया हो, वहाँ उन्हें भारतीय रि‍ज़र्व बैंक द्वारा इरादतन चूककर्ताओं की सूची में, इरादतन चूककर्ताओं को हटाने की तारीख से 5 वर्ष के लि‍ए नये उद्यम शुरू करने के लि‍ए अनुसूचि‍त वाणि‍ज्य बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं, की ओर से संस्थागत वि‍त्त से वि‍वर्जि‍त करना चाहि‍ए।

(ख) जहाँ आवश्यक हो, वहाँ उधारकर्ताओं / गारंट़ीकर्ताओं के खि‍लाफ वि‍धि‍क कार्यवाही तथा प्राप्य राशि‍यों की वसूली के लि‍ए मोचन-नि‍षेध लगाने की कार्यवाही त्वरि‍त रूप से करनी चाहि‍ए। जहाँ भी आवश्यक हो, वहाँ उधारदाता इरादतन चूककर्ताओं के वि‍रुद्ध दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ कर सकते हैं।

(ग) जहां भी संभव हो, वहां बैंकों और वि‍त्तीय संस्थाओं को इरादतन चूक करनेवाली उधारकर्ता इकाई के प्रबंध तंत्र के परि‍वर्तन के लि‍ए व्यवहार्य दृष्टि‍कोण अपनाना चाहि‍ए।

(घ) उन कंपनि‍यों के साथ, जि‍नकों बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं ने निधि / गैर निधि क्रेडिट सुविधा दी है, कि‍ए जानेवाले ऋण करारों में बैंकों /वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा इस आशय का एक प्रति‍ज्ञापत्र शामि‍ल कि‍या जाना चाहिए कि‍ उधारकर्ता कंपनी ऐसे कि‍सी व्यक्ति‍ को अपने बोर्ड पर न रखें तथा यदि‍ यह पाया जाता है कि‍ ऐसा व्यक्ति‍ उधारकर्ता कंपनी के बोर्ड पर है, तो वह अपने बोर्ड से उस व्यक्ति‍ को हटाने के लि‍ए शीघ्र और प्रभावी कदम उठाए।

बैंकों और वि‍त्तीय संस्थाओं के लि‍ए यह अनि‍वार्य होगा कि‍ वे समूची प्रक्रि‍या के लि‍ए एक पारदर्शी तंत्र कायम करें ताकि‍ दंडात्मक प्रावधानों का दुरुपयोग न हो तथा ऐसे वि‍वेकाधि‍कारों की व्याप्ति‍ को बि‍लकुल न्यूनतम रखा जा सके। यह भी सुनि‍श्चि‍त कि‍या जाना चाहि‍ए कि‍ कि‍सी एकमात्र अथवा इक्के-दुक्के उदाहरण को दंडात्मक कार्यवाही करने के लि‍ए आधार न बनाया जाए।

2.6 समूह कंपनि‍यों द्वारा दी गई गारंटि‍याँ

कि‍सी समूह में एक उधारकर्ता कंपनी द्वारा इरादतन की गई चूक के संबंध में कार्यवाही करते समय बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं को चाहि‍ए कि‍ वे एकल कंपनी द्वारा अपने उधारदाताओं को ऋण की चुकौती संबंधी व्यवहार के संदर्भ में उसके पि‍छले रि‍कार्ड को भी ध्यान में रखें। तथापि‍, उन मामलों में जहाँ इरादतन चूककर्ता इकाइयों की ओर से समूह के भीतर कंपनि‍यों द्वारा दि‍ये गये आश्वासन पत्र (लेटर ऑफ कम्फर्ट) और /या दी गई गारंटि‍यों को बैंकों /वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा अपेक्षा करने पर भुगतान नहीं कि‍या गया हो, ऐसी समूह कंपनि‍यों को भी इरादतन चूककर्ता कंपनि‍यों के रूप में गि‍ना जाना चाहि‍ए।

जमानतदारों के संबंध में, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 128 के अनुसार जमानतदार की देयता मुख्य ऋणी की देयता के साथ बढती है जब तक कि संविदा में इसके विपरीत कोई प्रावधान न किए गए हों। अत: जब मुख्य ऋणी द्वारा चुकौती किए जाने में किसी प्रकार की चूक की गई हो तब बैंकर मुख्य ऋणी के विरुद्ध उपचारों का सहारा लिए बिना भी जमानदार/प्रतिभू के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है। इस प्रकार, जब बैंकर ने मुख्य ऋणी द्वारा चूक किए जाने के कारण जमानतदार पर दावा किया हो तो जमानतदार की देयता अविलंब उत्पन्न होती है। यदि, कथित जमानतदार द्वारा पर्याप्त राशि के होते हुए भी देयराशि के भुगतान के लिए लेनदार/बैंकर द्वारा की गई मांग को पूरा करने से मना कर दिया गया हो तो ऐसे जमानतदार को भी इरादतन चूककर्ता माना जाएगा। यह ट्रीटमेंट 9 सितंबर 2014 से गैर समूह कारपोरेट तथा व्यक्तिगत जमानतकर्ता पर लागू कर दिया गया है और ऐसे मामलों में, जहां जमानत इस परिपत्र के जारी किए जाने की तारीख से पहले स्वीकार की गई है, लागू नहीं होगा। बैंक/वित्तीय संस्थाएं यह सुनिश्चित करें कि जमानत स्वीकार करते समय सभी भावी जमानतदारों को इस आशय की जानकारी दी जाती है।

2.7 लेखा-परीक्षकों की भूमि‍का

यदि‍ बैंकों /वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा उधारकर्ताओं की ओर से जाली हि‍साब की प्रस्तुति‍ पायी जाती है तथा यह देखा जाता है कि‍ लेखा-परीक्षा करने में लेखा-परीक्षक लापरवाह अथवा अक्षम हैं, तो उन्हें चाहि‍ए कि‍ वे भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आईसीएआई) के पास उधारकर्ताओं के लेखा-परीक्षकों के वि‍रुद्ध औपचारि‍क शि‍कायत दर्ज करें जि‍ससे आईसीएआई जाँच-पड़ताल कर उक्त लेखा-परीक्षकों की जवाबदेही तय कर सके। आईसीएआई के द्वारा अनुशासनिक कार्रवाई लंबित होने तक शिकायतों को अभिलेख के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग, केंद्रीय कार्यालय) तथा आईबीए को भी भेजा जा सकता है। आईबीए सभी बैंकों के बीच ऐसी सीए फर्मों के नाम परिचालित करेगा, जिनके विरुद्ध अनेक शिकायतें प्राप्त हुई हैं, ताकि बैंक उन्हें कोई भी काम सौंपने से पहले इस पहलू पर विचार करें। भारतीय रिज़र्व बैंक भी ऐसी सूचना वित्तीय क्षेत्र के अन्य विनियामकों/ कंपनी मामलों के मंत्रालय (एमसीए)/ लेखा –नियंता तथा महालेखाकार (सीएजी) के बीच प्रसारित करेगा।

नि‍धि‍यों के उद्दि‍ष्ट उपयोग की नि‍गरानी के उद्देश्य से यदि‍ उधारदाता यह चाहते हैं कि‍ उधारकर्ता द्वारा नि‍धि‍यों के वि‍पथन / गलत ढंग से दूसरी जगह उनके अंतरण के संबंध में उधारकर्ता के लेखा-परीक्षकों से वि‍शि‍ष्ट प्रमाणीकरण प्राप्त करें, तो उधारदाता को चाहि‍ए कि‍ वे इस प्रयोजन के लि‍ए लेखा-परीक्षकों को अलग अधि‍देश (मैंडेट) दें। लेखा-परीक्षकों द्वारा इस प्रकार के प्रमाणीकरण को सुसाध्य बनाने के लि‍ए बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं के लि‍ए यह सुनि‍श्चि‍त करने की भी आवश्यकता होगी कि‍ ऋण करारों में उपयुक्त प्रति‍ज्ञापत्र शामि‍ल कि‍ए जाएँ जि‍ससे उधारदाताओं द्वारा उधारकर्ताओं / लेखा-परीक्षकों को इस प्रकार का अधि‍देश दि‍या जा सके।

उपर्युक्त के अतिरिक्त, बैंकों को सूचित किया जाता है कि उधारकर्ताओं द्वारा निधियों का उचित उद्दिष्ट उपयोग सुनिश्चित करने तथा विपथन/ सायफोनिंग रोकने की दृष्टि से उधारदाता उधारकर्ता के लेखापरीक्षकों द्वारा दिए गए प्रमाणीकरण वपर निर्भर रहने के बजाए ऐसे विनिर्दिष्ट प्रमाणीकरण के प्रयोजन से अपने स्वयं के लेखापरीक्षकों की नियुक्ति पर विचार कर सकते हैं। तथापि, इस मामले में बैंक की अपनी बुनियादी न्यूनतम उचित सावधानी का विकल्प नहीं हो सकता।

2.8 आंतरि‍क लेखा-परीक्षा / नि‍रीक्षण की भूमि‍का

उधारकर्ताओं द्वारा नि‍धि‍यों के वि‍पथन के पहलू पर उनके कार्यालयों / शाखाओं की आंतरि‍क लेखा-परीक्षा / नि‍रीक्षण करते समय पर्याप्त रूप से ध्यान दि‍या जाना चाहि‍ए तथा इरादतन चूककर्ताओं के मामलों पर आवधि‍क समीक्षा बैंक की लेखा-परीक्षा समि‍ति‍ को प्रस्तुत की जानी चाहि‍ए।

2.9 ऋण सूचना कंपनियों को रिपोर्ट करना

(क) भारतीय रिज़र्व बैंक ने ऋण सूचना कंपनी (वि‍नि‍यम) अधि‍नि‍यम, 2005 की धारा 5 तथा अधिनियम और उसके अंतर्गत बने नियमों और विनियमावली द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए (i) एक्सपीरियन क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (ii) इक्विफैक्स क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड (iii) सीआरआईएफ हाई मार्क क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड और (iv) क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड (सिबिल) को ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने/जारी रखने के लिए पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदान किया है।

(ख) बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं को चाहि‍ए कि‍ वे 25 लाख रुपये और उससे अधि‍क राशि‍ के इरादतन चूककर्ताओं के वाद दाखि‍ल खातों की सूची मासिक या उससे कम अंतराल पर सभी चार क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनियों को प्रस्तुत करें। इससे बैंकों/वित्‍तीय संस्‍थाओं को लगभग वास्‍तविक समय में ऐसी सूचना उपलब्‍ध हो सकेगी।

स्पष्टीकरण

इस संबंध में यह स्पष्ट कि‍या जाता है कि‍ नि‍म्नलि‍खि‍त मामलों की सूचना देना बैंकों के लि‍ए आवश्यक नहीं है :

(i) जब बकाया राशि‍ 25 लाख रुपये से कम हो जाए और

(ii) ऐसे मामले जि‍नमें बैंक समझौता नि‍पटान के लि‍ए सहमत हुए हैं और उधारकर्ता ने समझौता राशि‍ का पूरा भुगतान कर दि‍या है।

(ग) ऋण सूचना कंपनियों (सीआईसी) को यह भी सूचित किया गया है इरादतन चूककर्ताओं के खाते जिन पर वाद दायर किया गया हैं की जानकारी उनकी वेबसाइट पर प्रदर्शित करें।

3. इरादतन चूककर्ता की पहचान करने की प्रणाली

बैंक / वि‍त्तीय संस्थाएँ इरादतन चूक के दृष्टांतों की पहचान करने और सूचना देने के संबंध में नि‍म्नलि‍खि‍त उपाय करें :

(a) इरादतन चूक करने के मामलों की पहचान करने में अधि‍क वस्तुपरकता लाने की दृष्टि‍ से इरादतन चूककर्ता के रूप में उधारकर्ता का वर्गीकरण करने के लि‍ए नि‍र्णय करने का कार्य उच्चतर अधि‍कारि‍यों की एक समि‍ति‍ को सौंपा जाना चाहि‍ए जि‍सकी अध्यक्षता कार्यपालक नि‍देशक करें तथा जि‍समें संबंधि‍त बैंक/वि‍त्तीय संस्था के बोर्ड के नि‍र्णयानुसार दो महाप्रबंधक/उप महाप्रबंधक हों।

(b) अगर समिति इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि इरादतन चूक की घटना घटी है तो वह संबंधित उधारकर्ता कंपनी तथा उसके प्रमोटर/पूर्णकालिक निदेशक को कारण बताओ नोटिस जारी करेगी और उनसे उत्तर मांगेगी और उनसे प्राप्त उत्तर पर विचार करने के बाद इरादतन चूक के तथ्यों तथा इसके कारणों को अभिलिखित करते हुए एक आदेश जारी करेगी। यदि समिति जरूरी समझे तो उधारकर्ता कंपनी तथा उसके प्रमोटर/पूर्णकालिक निदेशक को व्यक्तिगत रूप से सुनवाई का मौका भी दिया जाना चाहिए।

(c) समिति के आदेश की समीक्षा एक अन्य समिति द्वारा की जाए जिसके प्रमुख अध्यक्ष/मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंधक निदेशक होंगे और इसमें उनके अलावा बैंक के दो स्वतंत्र निदेशक भी शामिल होंगे तथा उपर्युक्त समीक्षा समिति द्वारा पुष्टि किए जाने के बाद ही आदेश को अंतिम रूप दिया जाए। तथापि, यदि पहचान समिति उधारकर्ता को`इरादतन चूककर्ता' के रूप में घोषित करते हुए आदेश पारित नहीं करती, तो ऐसे निर्णयों की समीक्षा करने के लिए समीक्षा समिति का गठन करने की आवश्यकता नहीं है।

(d) गैर-प्रमोटर/गैर-पूर्णकालिक निदेशक के संबंध में, इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(60) में की गई व्याख्या में चूक कर्ता अधिकारी उसी को माना जाएगा जो निदेशकों की निम्नलिखित श्रेणियों में आता हो:

(i) पूर्णकालिक निदेशक

(ii) जहां कोई प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक न हो, ऐसा निदेशक अथवा ऐसे निदेशक जिनको बोर्ड द्वारा इस संबंध में विनिर्दिष्ट किया गया है और जिन्होंने ऐसे विनिर्देशन के लिए बोर्ड को लिखित रूप से अपनी सहमति दी है, अथवा यदि किसी भी निदेशक को विनिर्दिष्ट न किया गया हो तो उस स्थिति में सभी निदेशक;

(iii) इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन की स्थिति में प्रत्येक निदेशक, जिसे ऐसे उल्लंघन की जानकारी बोर्ड की किसी भी कार्यवाही के प्राप्त होने के आधार पर रही हो अथवा उसने ऐसी कार्यवाही में भाग लिया हो और इस बारे में आपत्ति दर्ज न की हो, या जहां ऐसा उल्लंघन उसकी सहमति या साँठगाँठ से हुआ हो।

अत: कुछ दुर्लभ मामलों को छोड़कर, एक गैर-पूर्णकालिक निदेशक को इरादतन चूककर्ता नहीं माना जाएगा जब तक कि निर्णायक रूप से यह साबित न हो जाए कि -

I. उसे उधारकर्ता द्वारा की गई इरादतन चूक संबंधी बात की जानकारी बोर्ड अथबा बोर्ड की समिति के कार्यवृत्त में दर्ज की गई किसी भी कार्यवाही के आधार पर रही है और उसने इस संबंध में अपनी आपत्ति कार्यवृत्त में दर्ज नहीं कराई है, अथवा,

II. ऐसा उल्लंघन उसकी सहमति या साँठगाँठ से हुआ है ।

तथापि, उपर्युक्त अपवाद प्रमोटर निदेशक पर लागू नहीं होंगे भले ही वह एक पूर्णकालिक निदेशक न हो।

(iv) एक बारगी उपाय के रूप में बैंक / वित्तीय संस्थाएं, क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनियों को `इरादतन चूककर्ता' की जानकारी देते समय गैर-पूर्णकालिक निदेशक (नामिति निदेशक/ स्वतंत्र निदेशक) का नाम हटा सकते है जिसके संदर्भ में उनके पास उधारकर्ता कंपनी की चूक / इरादतन चूक में उसकी जटिलता की जानकारी न हो। तथापि इरादतन चूककर्ता कंपनी के बोर्ड मे शामिल प्रमोटर निदेशकों के नाम, भले ही वे पूर्णकालिक निदेशक न हो, इरादतन चूककर्ता की विद्यमान सूची से हटा नहीं सकते।

(e) ऊपर दिए गए उप पैरा (क) से (ग) में दी गई प्रकिया जैसी ही प्रक्रिया कापालन प्रमोटर निदेशक को छोड़कर गैर-पूर्णकालिक निदेशक की इरादतन चूककर्ता के रूप में पहचान करते समय किया जाना चाहिए।”

4. इरादतन चूककर्ताओं के वि‍रुद्ध दंडात्मक कार्यवाही

4.1 संयुक्त संसदीय समि‍ति‍ की सि‍फारि‍शें

रि‍ज़र्व बैंक ने संयुक्त संसदीय समि‍ति‍ की नि‍म्नलि‍खि‍त सि‍फारि‍शों के संदर्भ में तथा वि‍शेष रूप से संबंधि‍त उधारकर्ताओं के वि‍रुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने की आवश्यकता को देखते हुए वि‍त्तीय वि‍नि‍यमन संबंधी स्थायी तकनीकी सलाहकार समि‍ति‍ के साथ परामर्श करने के उपरांत इरादतन चूककर्ताओं को नि‍यंत्रि‍त करने से संबंधि‍त मुद्दों की जाँच की, अर्थात्

क. यह आवश्यक है कि‍ वि‍श्वासभंग अथवा धोखाधड़ी के अपराधों को, जि‍नके संबंध में यह समझा गया हो कि‍ वे ऋणों के मामले में कि‍ये गये हैं, बैंकों को नि‍यंत्रि‍त करने वाली मौजूदा संवि‍धि‍यों के अंतर्गत स्पष्ट रूप से परि‍भाषि‍त कि‍या जाना चाहि‍ए तथा जहाँ उधारकर्ता नि‍धि‍यों को असद्भावी इरादों से अन्यत्र अंतरि‍त करते हैं वहाँ सभी मामलों में दंडात्मक कार्यवाही की व्यवस्था की जानी चाहि‍ए।

ख. यह आवश्यक है कि‍ बैंक नि‍धि‍यों के उद्दि‍ष्ट उपयोग की गहन नि‍गरानी करें तथा उधारकर्ताओं से यह प्रमाणपत्र प्राप्त करें कि‍ बैंक नि‍धि‍यों का उपयोग उसी उद्देश्य के लि‍ए कि‍या गया है जि‍सके लि‍ए उन्हें दि‍या गया था।

ग. गलत प्रमाणीकरण करने पर उधारकर्ता के वि‍रुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जानी चाहि‍ए।

4.2 तद्नुसार बैंकों / वित्तीय संस्थओं को निमन्नुसार सूचित किया गया है:

(i) निधि उपयोग की नि‍गरानी

इस परिपत्र के पैरा 2.4 के संदर्भ में, यह सूचित किया जाता है कि बैंक/ वित्तीय संस्थाएं नि‍धि‍यों के उपयोग की गहरी नि‍गरानी करें और उधारकर्ताओं से यह प्रमाण पत्र प्राप्त करें कि‍ बैंक नि‍धि‍यों का उपयोग उसी उद्देश्य के लि‍ए कि‍या गया है जि‍सके लि‍ए उन्हें दि‍या गया था। उधारकर्ताओं द्वारा गलत प्रमाणीकरण के मामले में आवश्यकता पड़ने पर उधारकर्ताओं के वि‍रुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने पर भी वि‍चार करना चाहि‍ए।

(ii) बैंकों /वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा अपराधिक कार्यवाही

यह जानना आवश्यक है कि‍ इरादतन चूककर्ताओं के वि‍रुद्ध मौजूदा वि‍धान के अंतर्गत भी भारतीय दंड प्रक्रि‍या संहि‍ता (आइपीसी) 1860 की धारा 403 और 415 के प्रावधानों के अंतर्गत मामले के तथ्यों और परि‍स्थि‍ति‍यों के आधार पर दंडात्मक कार्यवाही करने के लि‍ए गुंजाइश है। अत: बैंकों /वि‍त्तीय संस्थाओं को सूचि‍त कि‍या जाता है कि‍ वे हमारे अनुदेशों और संयुक्त संसदीय समि‍ति‍ की सि‍फारि‍शों का पालन करने के लि‍ए भारतीय दंड प्रक्रि‍या संहि‍ता (आइपीसी) के उपर्युक्त प्रावधानों के अंतर्गत प्रत्येक मामले के तथ्यों और परि‍स्थि‍ति‍यों के आधार पर, जहाँ भी आवश्यक समझा जाए, इरादतन चूककर्ताओं अथवा उधारकर्ताओं द्वारा गलत प्रमाणीकरण के वि‍रुद्ध अपराधिक कार्यवाही करने पर गंभीरतापूर्वक और तत्परता से वि‍चार करें।

यह भी सुनि‍श्चि‍त कि‍या जाए कि‍ उक्त दंडात्मक प्रावधानों का प्रयोग प्रभावात्मक रूप से और नि‍श्चयात्मक तौर पर, परंतु सावधानीपूर्वक वि‍चार करने के बाद और उचि‍त सजगता के साथ कि‍या जाए। इस प्रयोजन के लि‍ए बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं को सूचि‍त कि‍या जाता है कि‍ वे अलग अलग मामले के तथ्यों के आधार पर दंडात्मक कार्यवाही करने के लि‍ए अपने बोर्ड के अनुमोदन से एक पारदर्शी तंत्र स्थापि‍त करें।

5. रिपोर्टिंग

5.1 सटीकता सुनि‍श्चि‍त करने की आवश्यकता

ऋण सूचना कंपनि‍यां इरादतन चूककर्ता क्रमश: वाद दाखि‍ल न कि‍ए गए और वाद दाखि‍ल कि‍ए गए खातों से संबंधि‍त सूचना का प्रसार करती हैं जैसा कि‍ उन्हें बैंकों / वि‍त्तीय संस्थाओं द्वारा सूचि‍त कि‍या जाता है तथा सही जानकारी सूचि‍त करने एवं तथ्यों और आंकड़ों की सत्यता की जि‍म्मेदारी संबंधि‍त बैंकों और वि‍त्तीय संस्थाओं की होती है। अत: बैंकों और वि‍त्तीय संस्थाओं को चाहि‍ए कि‍ वे जहाँ भी संभव हो, कंपनि‍यों के रजि‍स्ट्रार के साथ भी प्रति-जाँच करके नि‍देशकों के बारे में तथ्यों को सुनि‍श्चि‍त करें।

5.2 गारंटीकर्ता के संबंध में स्थि‍ति

बैंक / वित्तीय संस्थाएं इस परिपत्र के पैरा 3 में दिए गए प्रावधानों का अनुपालन करने के लिए उचित सावधानी बरते तथा गारंटीकर्ता के संबंध में भी इरादतन चूक की घटनाएं रिपोर्ट करें। भारतीय रिज़र्व बैंक को नाम रिपोर्ट करते समय, बैंक/ वित्तीय संस्थाएं गारंटीकर्ता के नाम के सामने ब्रेकट में 'गार' अर्थात (गार) शामिल करें और निदेशक स्तंभ में इसे रिपोर्ट करें।

5.3 सरकारी उपक्रम

सरकारी उपक्रमों के मामले में यह सुनि‍श्चि‍त कि‍या जाना चाहि‍ए कि‍ नि‍देशकों के नाम सूचि‍त नहीं कि‍ये जाते हैं। इसके बजाय, "-------सरकार का उपक्रम" शब्द जोड़ा जाना चाहि‍ए।

5.4 निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन) शामिल करना

कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2006 में धाराएं 266क से 266 छ का अंतर्वेश करके एक निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन) की अवधारणा प्रारंभ की है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि निदेशकों की सही-सही पहचान की जाती है और इरादतन चूककर्ताओं की सूची में शामिल निदेशकों के नामों से मिलते-जुलते नामों वाले व्यक्तियों को त्रुटिवश ऋण सुविधा से इस आधार पर इन्कार नहीं किया जाता है कि उनके नाम उक्त सूची में हैं, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को सूचित किया गया है कि वे भारतीय रिजर्व बैंक / साख सूचना कंपनियों को भेजे जाने वाले आंकड़ों में निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन) की भी सूचना दें।

यह पुन: दोहराया जाता है कि साख मूल्यांकन करते समय बैंकों को डीआईएन/पिन आदि का संदर्भ लेते हुए यह सत्यापन करना चाहिए कि क्या कंपनी के निदेशकों में से किसी के नाम चूककर्ताओं/ इरादतन चूककर्ताओं की सूची में हैं। इसके अतिरिक्त, एक समान नामों के कारण यदि कोई संदेह उत्पन्न हो, तो बैंकों को उधारकर्ता कंपनी से घोषणापत्र लेने के बजाए निदेशकों की पहचान की पुष्टि के लिए अपने स्वतंत्र स्रोतों का उपयोग करना चाहिए।


अनुबंध 2

मास्टर परि‍पत्र में समेकि‍त परि‍पत्रों की सूची

सं. परि‍पत्र संख्या दि‍नांक वि‍षय पैरा सं.
1. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 12/20.16.002(1)/98-99 20.02.1999 25 लाख रुपये और उससे अधि‍क राशि‍ के संबंध में इरादतन चूक के मामलों पर जानकारी एकत्रि‍त करना और प्रसार करना 1
2. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी. 46/20.16.002/98-99 10.05.1999 चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी का प्रकटन - चूककर्ताओं/वाद दाखि‍ल कि‍ये गये खातों की सूची और इरादतन चूक के संबंध में सूचना/आंकड़ें अनुबंध1
3. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 161/20.16.002/99-2000 01.04.2000 बैंकों और वि‍त्तीय संस्थाओं से संबद्ध चूककर्ता उधारकर्ताओं के संबंध में जानकारी एकत्रि‍त करना और प्रसार करना 5 और अनुबंध 1
4. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी.
54/20.16.001/2001-02
22.12.2001 चूककर्ताओं के संबंध में जानकारी को एकत्रि‍त करना और प्रसार करना 5
5. बैंपवि‍वि‍.सं. डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 110/20.16.003(1)/2001-02 30.05.2002 इरादतन चूककर्ता और उनके वि‍रुद्ध कार्यवाही 2, 2.1 से 2.8
6. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी.
111/20.16.001/2001-02
04.06.2002 ऋण सूचना ब्यूरो (सीआइबी) को ऋण सूचना प्रस्तुत करना 2.9
7. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल (डब्ल्यू). बीसी. 58/20.16.003/2002-03 11.01.2003 इरादतन चूक करनेवाले तथा नि‍धि‍यों का वि‍पथन - उनके वि‍रुद्ध कार्यवाही 2.1
2.2
8. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी.
7/20.16.003/2003-04
29.07.2003 इरादतन चूक करनेवाले और उन पर कार्यवाही 3
9 बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी.
95/20.16.002/2003-04
17.06.2004 वर्ष 2004-05 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य -साख सूचना प्रकट करना -सिबिल की भूमिका 2.9
10. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी.94 /20.16.003/2003-04 17.06.2004 वार्षि‍क नीति‍ वक्तव्य : 2004-05 - इरादतन चूक करनेवाले - प्रक्रि‍या के संबंध में स्पष्टीकरण 3
11. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी.16 /20.16.003/2004-05 23.07.2004 इरादतन चूक करनेवालों की जांच तथा इरादतन चूक करनेवालों के वि‍रुद्ध उपाय 4
12. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल(डब्ल्यु) बीसी. 87/20.16.003/2007-08 28.05.2008 इरादतन चूक करनेवाले तथा उनके वि‍रुद्ध कार्रवाई 2.1
13. मेल-बॉक्स स्पष्टीकरण 17.04.2008 समझौता नि‍पटान के अंतर्गत खातों की सूचना प्रस्तुत करना 2.9
14. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.12738/20.16.001/2008-09 03.02.2009 चूककर्ताओं (वाद दाखि‍ल न कि‍ये गये खातों ) / इरादतन चूककर्ताओं (वाद दाखि‍ल न कि‍ये गये खातों ) की सूची के संबंध में सूचना/आंकड़ें कॉम्पैक्ट डि‍स्क पर प्रस्तुत करना अनुबंध I
15. बैंपविवि.सं.डीएल.15214/
20.16.042/2009-10
04.03.2010 ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने के लिए ‘पंजीकरण प्रमाण पत्र‘ की स्वीकृति -एक्सपीरियन क्रेडिट इन्फार्मेशन कंपनी ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड 2.9
16. बैंपविवि.सं.डीएल.बीसी.83/20.16.042/2009-10 31.03.2010 ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने के लिए ‘पंजीकरण प्रमाण पत्र‘ की स्वीकृति - इक्विफैक्स क्रेडिट इन्फार्मेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड 2.9
17. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी.110/20.16.046/2009-10 11.06.2010 ऋण सूचना कंपनि‍यों को आंकड़े प्रस्तुत करना-ऋण संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत कि‍ए जाने वाले आंकड़ों का फॉर्मेट 2.9
18. बैंपवि‍वि‍. सं. डीएल.बीसी.40/20.16.046/2010-11 21.09.2010 साख सूचना कंपनियों को ऋण संबंधी आंकड़े देना – निदेशक पहचान संख्या (डीआईएन) शामिल करना 5.4 और अनुबंध 2
19. बैंपविवि.सं.सीआईडी. बीसी.64 /20.16.042/2010-11 01.12.2010 ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने के लिए ‘पंजीकरण प्रमाण पत्र‘ की स्वीकृति – हाई मार्क क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड 2.9
20. बैंपविवि.सं.सीआईडी.बीसी.30/ 16.042/2011-12 05.09.2011 ऋण सूचना कंपनियों को ऋण सूचना प्रस्तुत करना– 1 करोड़ रुपये और उससे अधिक राशि के चूककर्ता तथा 25 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के इरादतन चूककर्ता- वाद दाखिल खातों के संबंध में ऋण सूचना का प्रसार 2.9
21. बैंपविवि.सं.सीआईडी.बीसी 84 /20.16.042/2011-12 05.03.2012 ऋण सूचना का कारोबार आरंभ करने के लिए ‘पंजीकरण प्रमाण पत्र‘ की स्वीकृति – क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (इंडिया) लिमिटेड (सिबिल) 2.9
22. बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं. 97/21.04.132/2013-14 26.02.2014 अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्त ऋणदाताओं का फोरम तथा सुधारात्मक कार्य योजना पर दिशानिर्देश 2.9
23. बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं. 98/21.04.132/2013-14 26.02.2014 अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – परियोजना ऋणों को पुनर्वित्‍त प्रदान करना, एनपीए का विक्रय तथा अन्‍य विनियामक उपाय 2.7, 5.4
24. बैंपविवि.सीआडी.बीसी.सं.128/20.16.003/2013-14 27.6.2014 1 करोड़ रुपये और उससे अधिक राशि के चूककर्ता (वाद दाखिल न किए गए खाते) तथा 25 लाख रुपये और उससे अधिक राशि के इरादतन चूककर्ता (वाद दाखिल न किए गए खाते)- भारिबैंक/ सीआईसी को रिपोर्टिंग में परिवर्तन 2.9
25. बैंपविवि.सीआडी.बीसी.सं.41/
20.16.003/2014-15
09.09.2014 इरादतन चूककर्ताओं पर दिशानिर्देश – गारंटीकर्ता, ऋणदाता तथा इकाई के संबंध में स्पष्टीकरण 201, 2.6 तथा 5.2
26. बैंविवि.सीआडी.बीसी.सं.60/20.16.003/2014-15 15.01.2015 सीआइसी की सदस्यता 2.5 तथा अनु I
27. बैंविवि.सीआडी.बीसी.सं.90/20.16.003/2014-15 23.04.2015 इरादतन चूककर्ताओं की जानकारी का संग्रहण तथा प्रसारण 3
28. मेल-बॉक्स स्पष्टीकरण 05.06.2015 इरादतन चूककर्ता समीक्षा समिति का गठन 3
29. मेल-बॉक्स स्पष्टीकरण 05.06.2015 चूककर्ता/इरादतन चूककर्ता – वर्गीकृत और रिपोर्ट किए गए खातों से संबंधित गैर- पूर्णकालिक निदेशकों के नाम हटाना 3

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