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भुगतान प्रणाली के लिए एक्सेस संबंधी मानदंड –केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में उप सदस्यता

आरबीआई/2011-12/489
भु.नि.प्र.वि.(कें.का.) ओडी 1848/06.07.003/ 2011-12

09 अप्रैल 2012

अध्यक्ष मुख्य कार्यपालक अधिकारी  /प्रबंध निदेशक/
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक/शहरी सहकारी बैंक/
राज्य सहकारी बैंक/ जिला केंद्रीय सहकारी बैंक सहित
सभी अनुसूचित वाणिज्यक बैंक

महोदय महोदया

भुगतान प्रणाली के लिए एक्सेस संबंधी मानदंड –केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में उप सदस्यता

भुगतान और निपटान प्रणाली बोर्ड के समग्र निर्देशन में, पिछले कुछ वर्षों में रिज़र्व बैंक देश में इलेक्ट्रानिक भुगतान प्रणाली को लोकप्रिय बनाने के लिए कई कदम उठाता रहा है। इस संबंध में दिनांक 21 सितंबर 2011 का परिपत्र भु.नि.प्र.वि. (कें.का.) ओडी 494/04.04.009 / 2011-12 को देखें जिसके अंतर्गत केंद्रीकृत और विकेंद्रीकृत भुगतान प्रणालियों के लिए उदार संशोधित एक्सेस मानदंडों की घोषणा की गई थी।

2. केंद्रीकृत भुगतान प्रणालियां, नामतः तत्काल सकल भुगतान प्रणाली (आरटीजीएस) और राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक निधि अंतरण (एनईएफ़टी) वर्तमान में केवल प्रत्यक्ष सदस्यों के लिए है। अपवाद के रूप में, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को उनके प्रयोजक बैंकों के माध्यम से एनईएफ़टी में एक्सेस दी गई है ।

3. समीक्षा करने  पर यह निर्णय लिया गया कि उप सदस्यता का दायरा बढ़ाया जाए ताकि सभी लाइसेन्स प्राप्त बैंक एनईएफ़टी और आरटीजीएस प्रणालियों में भाग ले सकें। सभी लाइसेन्स प्राप्त बैंक जो या तो एक्सेस मानदंडॉ को पूरा न कर पाने के कारण अथवा लागत के चलते प्रौद्योगिकीय क्षमता होते हुए भी केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में भाग नहीं ले पा रहे हैं उनके लिए यह एक वैकल्पिक तंत्र होगा। यह व्यवस्था निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगी:

क) उप-सदस्य, केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में  अपने प्रायोजक बैंक के माध्यम से भाग लेंगे जो कि केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में  प्रत्यक्ष सदस्य हैं।

ख) समय से जमा और प्रतिफल अनुशासन की अनुपलना को सुनिश्चित करना जिसका केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में  काफी महत्व है, उप सदस्यों की शाखाएँ जो कि कोर बैंकिंग प्रणाली के अंतर्गत नहीं आती हैं उन्हें केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली से उस समय तक बाहर रखा जाएगा जब तक उन्हें कोर बैंकिंग के अंतर्गत नहीं लाया जाता है।

ग) प्रयोजक बैंक अपने उप सदस्यों की ओर से लेनदेनों/संदेशों को भेजने/ प्राप्त करने के लिए उत्तरदायी होंगे।

घ) एक प्रयोजक बैंक द्वारा प्रायोजित किए जाने वाले बैंकों की संख्या के संबंध में कोई रोक नहीं है। प्रयोजक बैंक द्वारा उप सदस्यों को प्रायोजित करने से पूर्व परिचालनात्मक व्यवहार्यता, जोखिम कम करने, निधि निपटान, संपार्श्विक इत्यादि से संबन्धित पक्षों पर ध्यान देना चाहिए।

ङ) प्रयोजक बैंक को एक जोखिम प्रबंधन  ढांचा और जिन्हें वे प्रायोजित करना चाहते हैं उन उप सदस्यों की जोखिम प्रबंधन प्रथाओं के सतत निरीक्षण की एक प्रणाली बनानी चाहिए। जोखिम प्रबंधन  ढांचा  प्रयोजक बैंक के बोर्ड द्वारा अनुमोदित होना चाहिए।

च) किसी उप-सदस्य द्वारा/ के प्रति लेनदेन का निपटान प्रायोजक बैंक के भारतीय रिज़र्व बैंक में खोले गए निपटान खाते में किया जाएगा। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रायोजक बैंक उप-सदस्य द्वारा/ के प्रति सभी लेनदेनों की पूरी ज़िम्मेदारी लेगा।

छ) प्रयोजक बैंकों को हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए की उनके उप-सदस्य समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यथा निर्धारित केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली के नियमों, विनियमों, परिचालनात्मक आवश्यकताओं, अनुदेशों, आदेशों, निर्णयों इत्यादि का पालन करते हैं।

ज) ग्राहकों की शिकायतों का निपटान प्रयोजक बैंक का उत्तरदायित्व होगा। इस प्रक्रिया को और भी कारगर बनाने के लिए प्रयोजक बैंक को इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा की उप सदस्यों ने ग्राहकों की शिकायतों का तेजी से और कुशल तरीके से निपटान करने के लिए केंद्रीय भुगतान प्रणाली के प्रक्रियात्मक दिशानिर्देशों, कारोबारी नियमों, विनियमों में यथा विहित एक निष्पक्ष और मजबूत तंत्र की स्थापना की है।

झ) प्रयोजक बैंक और उप सदस्यों के बीच होने वाले सभी विवाद उनके बीच द्विपक्षीय रूप से निपटाए जाएंगे।

ञ) प्रयोजक बैंक को निम्नलिखित बातों को भारतीय रिज़र्व बैंक के ध्यान में तुरंत लाना चाहिए:

(i) इसके उप सदस्यों के किसी संदिग्ध लेनदेन, घोटाले इत्यादि में शामिल होने की स्थिति में,

(ii) किसी उप-सदस्य द्वारा केंद्रीय भुगतान प्रणाली में भाग लेने से संबन्धित किसी गलत प्रथा का पालन करने पर;

(iii) इसके किसी सदस्य द्वारा केंद्रीय भुगतान प्रणाली के नियमों, विनियमों, परिचालनात्मक आवश्यकताओं, अनुदेशों इत्यादि के पालन न करने पर;

ट) प्रयोजक बैंक को किसी उप-सदस्य को केंद्रीय भुगतान प्रणाली में प्रायोजित करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति  की आवश्यकता नहीं पड़ती है। तथापि, जब भी वे उप-सदस्य को प्रायोजित करते हैं उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक को उप-सदस्य  का विस्तृत विवरण, उप-सदस्यों की शाखा/शाखाओं को आबंटित आईएफ़एससी/एमआईसीआर कोड, उप सदस्यता के आरंभ होने की तिथि इत्यादि के बारे में तुरंत सूचित करना चाहिए।

ठ) प्रयोजक बैंक और उप-सदस्य के बीच प्रयोजकता की व्यवस्था के समाप्त होने की स्थिति में प्रयोजक बैंक द्वारा इसकी सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक को तुरंत दी जानी चाहिए।

ड) उप-सदस्यों के ग्राहक लेनदेनों के प्रभार, प्रयोजक बैंकों के सदस्यों/ केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली नमत: आरटीजीएस और  एनईएफ़टी के प्रत्यक्ष सदस्यों के संबंध में लागू प्रभारों से अधिक नहीं होने चाहिए।

4. केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली के लिए उप सदस्यता की योजना इस परिपत्र के लागू होने की तिथि से प्रभावी होगी।

5. इन उपायों के कार्यान्वयन से होने वाले अनुभवों के आधार पर एक्सेस मानदंडों में किसी और यौक्तिकीकरण/उदारीकरण पर बाद में विचार किया जाएगा।

6. कृपया इस परिपत्र के प्राप्ति सूचना दें।

(विजय चुग)
मुख्य महाप्रबंधक

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