बैंकों और एनबीएफसी द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को सह-उधार - आरबीआई - Reserve Bank of India
बैंकों और एनबीएफसी द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को सह-उधार
आरबीआई/2020-21/63 05 नवंबर 2020 अध्यक्ष/ प्रबंध निदेशक/ महोदया / महोदय, बैंकों और एनबीएफसी द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को सह-उधार कृपया प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के लिए बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा ऋण की सह-उत्पत्ति (को-ओरिजिनेशन) पर दिनांक 21 सितंबर 2018 के परिपत्र विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.08/04.09.01/2018-19 का संदर्भ ग्रहण करें। इस व्यवस्था में जोखिम और लाभ में भागीदारी के साथ दोनों उधारदाताओं द्वारा सुविधा स्तर पर ऋण के संयुक्त योगदान की शुरुआत की गई थी। 2. हितधारकों से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर तथा सहयोगात्मक प्रयासों के द्वारा बैंकों और एनबीएफसी से संबंधित तुलनात्मक लाभों का बेहतर ढंग से फायदा उठाने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि उधारदात्री संस्थानों को और अधिक परिचालनात्मक लचीलापन प्रदान किया जाए, हालांकि इसके लिए उन्हें आउटसोर्सिंग, केवाईसी, आदि पर विनियामक दिशानिर्देशों के पालन को सुनिश्चित करना होगा। संशोधित योजना, "सह-उधार मॉडल" (सीएलएम) के रूप में फिर से नामकरण, का प्राथमिक उद्देश्य अर्थव्यवस्था के सेवा रहित और अपर्याप्त सेवा वाले क्षेत्र के लिए ऋण प्रवाह में सुधार लाना तथा बैंकों से मिलने वाले ऋण की कम लागत एवं एनबीएफसी की विस्तृत पहुंच को देखते हुए अंतिम लाभार्थी को किफायती कीमत पर ऋण उपलब्ध कराना है। सीएलएम की विस्तृत विशेषताओं को अनुबंध में प्रस्तुत किया गया है। 3. सीएलएम के संदर्भ में, बैंकों को पूर्व करार के आधार पर सभी पंजीकृत एनबीएफसी (एचएफसी सहित) के साथ सह-उधार प्रदान करने की अनुमति है। सह-उधार देने वाले बैंक अपनी बहियों में व्यक्तिगत ऋणों के हिस्से को बैक-टू-बैक आधार पर लेंगे। हालाँकि, एनबीएफसी को अपनी बहियों में व्यक्तिगत ऋणों के न्यूनतम 20 प्रतिशत हिस्से को बनाए रखने की आवश्यकता होगी। 4. बैंक और एनबीएफसी सीएलएम में प्रवेश के लिए बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों को तैयार करेंगे और अनुमोदित नीतियों को अपनी वेबसाइटों पर रखेंगे। उनके बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों के आधार पर, दो भागीदार संस्थानों के बीच एक मास्टर करार किया जा सकता है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ व्यवस्था के निमय एवं शर्तें, भागीदार संस्थानों के चयन के मानदंड, विशिष्ट उत्पाद व्यवस्था और परिचालन के क्षेत्र सहित जिम्मेदारियों के पृथक्करण से संबंधित प्रावधानों के साथ ग्राहक इंटरफ़ेस एवं सुरक्षा के मुद्दों, जैसा कि अनुबंध में वर्णित है, को शामिल किया गया हो। 5. मास्टर करार बैंकों को करार के शर्तों के अनुसार अपनी बहियों में एनबीएफसी द्वारा उत्पन्न व्यक्तिगत ऋणों में से अपने हिस्से को अनिवार्य रूप से लेने की सुविधा उपलब्ध करा सकता है या अनुबंध में निर्दिष्ट शर्तों के अधीन, अपनी बहियों में लेने से पूर्व किसी ऋण को समुचित सावधानी बरतने के उपरांत अस्वीकार करने का अधिकार सुरक्षित रख सकता है। 6. बैंक सीएलएम व्यवस्था में शामिल होने पर निर्दिष्ट शर्तों का पालन करते हुए अपने क्रेडिट के हिस्से के संबंध में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की स्थिति का दावा कर सकते हैं। 7. सीएलएम, 20 से कम शाखाओं वाले विदेशी बैंकों (डब्लूओएस सहित) पर लागू नहीं होगा। 8. यह परिपत्र दिनांक 21 सितंबर 2018 के परिपत्र विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.08/04.09.01/2018-19 को अधिक्रमित करेगा। हालांकि, उक्त परिपत्र के संदर्भ में बकाया ऋणों को उनकी चुकौती या परिपक्वता, जो भी पहले हो, तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में वर्गीकृत किया जाना जारी रहेगा। भवदीय, (गौतम प्रसाद बोरा) बैंकों और एनबीएफसी के बीच सह-उधार मॉडल की मूलभूत विशेषताएं I. व्यापकता 1. सीएलएम को लागू करने के लिए बैंकों और एनबीएफसी द्वारा किया गया मास्टर करार, बैंकों को अपनी बहियों में एनबीएफसी द्वारा उत्पन्न व्यक्तिगत ऋणों में से अपने हिस्से को अनिवार्य रूप से लेने की सुविधा उपलब्ध करा सकता है या किसी ऋण को समुचित सावधानी से संबंधित कारणों के आधार पर उसे अस्वीकार करने का अधिकार सुरक्षित रख सकता है। क) यदि करार में बैंक की ओर से अपनी बहियों में एनबीएफसी द्वारा उत्पन्न व्यक्तिगत ऋणों की अपनी हिस्सेदारी लेने के लिए एक पूर्व, अपरिवर्तनीय प्रतिबद्धता की व्यवस्था की गई है तो यह वयवस्था दिनांक 11 मार्च 2015 को बैंकों द्वारा वित्तीय सेवाएं आउटसोर्स करने के संबंध में जोखिम प्रबंधन और आचार संहिता पर जारी परिपत्र भारिबैं/2014-15/497 बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.76/21.04.158/2014-15 में निहित मौजूदा दिशानिर्देशों, और समय-समय पर अद्यतन, का अवश्य पालन करता हो। विशेष रूप से, बैंक द्वारा प्रत्याशित समुचित सावधानी हेतु भागीदार बैंक और एनबीएफसी को एक उपयुक्त तंत्र की व्यवस्था करनी होगी क्योंकि मौजूदा दिशानिर्देशों के तहत ऋण मंजूरी प्रक्रिया को आउटसोर्स नहीं किया जा सकता है। ख) बैंकों से यह भी अपेक्षित है कि वे दिनांक 25 फरवरी 2016 को भारिबैं/बैंविवि/2015-16/18 मास्टर निदेश डीबीआर.एएमएल.बीसी.सं.81/14.01.001/2015-16 के माध्यम से मास्टर निदेश- अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) निदेश, 2016 पर जारी दिशानिर्देशों, समय-समय पर अद्यतन, का पालन करें जो कि पहले ही निर्दिष्ट स्थितियों के अधीन, किसी तीसरे पक्ष द्वारा किए गए ग्राहक ड्यू डिलिजेंस पर भरोसा करने के लिए विनियमित संस्थाओं को, उनके विकल्प पर, अनुमति देता है। ग) यद्यपि, यदि बैंक करार के अनुसार एनबीएफसी द्वारा उत्पन्न ऋणों को अपनी बहियों में लेने के बारे में अपने विवेकाधिकार का उपयोग करता है, तो यह वयवस्था एक प्रत्यक्ष असाइनमेंट लेनदेन के समान होगी। तदनुसार, अधिग्रहण करने वाला बैंक, न्यूनतम प्रतिधारण अवधि (एमएचपी) के अपवाद के साथ जो इस सीएलएम के संदर्भ में किए गए ऐसे लेनदेन में लागू नहीं होगा, नकदी प्रवाह और अंतर्निहित प्रतिभूतियों के प्रत्यक्ष असाइनमेंट के माध्यम से आस्तियों के हस्तांतरण में शामिल लेनदेनों पर क्रमशः दिनांक 07 मई 2012 को भारिबैं/2011-12/540 डीबीओडी.सं.बीपी.बीसी-103/21.04.177/2011-12 तथा दिनांक 21 अगस्त 2012 को भारिबैं/2012-13/170 गैबैंपवि.नीप्र.सं:301/3.10.01/2012-13 के माध्यम से जारी दिशानिर्देशों, समय-समय पर अद्यतन, के संदर्भ में सभी आवश्यकताओं के अनुपालन को सुनिश्चित करेगा। घ) एमएचपी छूट केवल उन मामलों में उपलब्ध होगी जहां बैंक और एनबीएफसी के बीच पूर्व में किए गए करार में परस्पर ऋण से समर्थित शर्त का उल्लेख किया गया हो और प्रत्यक्ष असाइनमेंट के लिए दिशानिर्देशों में निर्धारित अन्य सभी शर्तों का अनुपालन होता हो। 2. बैंकों को प्रवर्तक समूह से संबंधित एनबीएफसी के साथ सह-उधार व्यवस्था में प्रवेश करने हेतु अनुमति नहीं दी जाएगी। II. ग्राहक संबंधी मुद्दें 3. एनबीएफसी ग्राहकों के लिए इंटरफ़ेस का एकल बिंदु होगा और उधारकर्ता के साथ एक ऋण करार करेगा, जिसमें स्पष्ट रूप से व्यवस्था की विशेषताओं और एनबीएफसी एवं बैंकों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों का उल्लेख होगा। 4. ग्राहकों के सामने व्यवस्था के सभी विवरणों को अग्रिम तौर पर उजागर किया जाएगा तथा उनकी स्पष्ट सहमति प्राप्त की जाएगी। 5. दोनों उधारकर्ताओं पर लागू वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुरूप वे आपसी सहमति के माध्यम से अंतिम उधारकर्ता पर सर्व-समावेशी ब्याज दर लगा सकते हैं। 6. ग्राहक सेवा और उचित व्यवहार संहिता से संबंधित वर्तमान दिशानिर्देश तथा बैंकों और एनबीएफसी से संलग्न दायित्व, व्यवस्था के तहत दिए गए ऋण के संबंध में आवश्यक परिवर्तनों सहित लागू किया जाएगा। 7. एनबीएफसी, बैंक के साथ उचित सूचना साझा करने की व्यवस्था के माध्यम से ग्राहक का एक एकीकृत विवरण तैयार करने में सक्षम होने चाहिए। 8. शिकायत निवारण के संबंध में, सह-उधारदाताओं द्वारा एनबीएफसी के समक्ष उधारकर्ता द्वारा पंजीकृत किसी भी शिकायत को 30 दिनों के भीतर हल करने के लिए एक उपयुक्त प्रणाली की व्यवस्था की जानी चाहिए, यदि शिकायत का निपटान 30 दिनों के भीतर नहीं किया जाता है तो उधारकर्ता के पास संबंधित बैंकिंग लोकपाल / एनबीएफसी हेतु लोकपाल या आरबीआई के ग्राहक शिक्षण और संरक्षण कक्ष (सीईपीसी) के समक्ष इसे उठाने का विकल्प होना चाहिए। III. अन्य परिचालन पहलूएँ 9. सह-उधारदात्री बैंक और एनबीएफसी अपने संबंधित एक्सपोजरों के लिए प्रत्येक व्यक्तिगत उधारकर्ता के खाते को बनाए रखेंगे। यद्यपि, बैंकों और एनबीएफसी के बीच सीएलएम से संबंधित सभी लेनदेनों (संवितरण / चुकौती) को बैंकों के साथ बनाए गए एस्क्रौ खाते के माध्यम से संचालित किया जाएगा, ताकि धन के परस्पर मिश्रण से बचा जा सके। मास्टर करार स्पष्ट रूप से सह-उधारदाताओं के बीच विनियोजन के तरीके को निर्दिष्ट करेगा। 10. मास्टर करार में अभ्यावेदनों और वारंटियों पर आवश्यक शर्तें समाहित हो, एवं बैंक द्वारा अपनी बहियों में लिए गए ऋणों के हिस्से के संबंध में उत्पत्ति करने वाला एनबीएफसी उत्तरदायी होगा। 11. सह-उधारदाता पारस्परिक सहमति के आधार पर ऋण की निगरानी और वसूली के लिए एक ढांचा स्थापित करेंगे। 12. सह-उधारदाता पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों के अनुसार प्रतिभूति एवं प्रभार के सृजन हेतु व्यवस्था करेंगे। 13. प्रत्येक उधारदाता को ऋण खाते के अपने हिस्से के लिए लागू विनियमों के तहत साख सूचना कंपनियों को रिपोर्ट करने सहित एक दूसरे पर लागू संबंधित विनियामक दिशानिर्देशों के अनुसार आस्तियों के वर्गीकरण और प्रावधान की आवश्यकता का पालन करना होगा। 14. सीएलएम के तहत ऋणों को बैंकों और एनबीएफसी के भीतर आंतरिक / सांविधिक लेखा परीक्षा के दायरे में शामिल किया जाएगा ताकि वे अपने संबंधित आंतरिक दिशानिर्देशों, करार की शर्तों और मौजूदा विनियामक आवश्यकताओं का पालन सुनिश्चित कर सकें। 15. सह-उधारदाता द्वारा किसी तीसरे पक्ष को ऋण का कोई भी असाइनमेंट केवल दूसरे उधारदाता की सहमति से ही किया जा सकता है। 16. बैंक और एनबीएफसी दोनों, सह-उधारदाताओं के बीच सह-उधार व्यवस्था को समाप्त करने की स्थिति में, सह-उधार करार के तहत ऋणों की चुकौती तक अपने उधारकर्ताओं के लिए निर्बाध सेवा सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापार निरंतरता योजना को लागू करेंगे। |