विदेश में कार्यालयों की स्थापना - आरबीआई - Reserve Bank of India
विदेश में कार्यालयों की स्थापना
आरबीआइ/2006-07/197 दिसंबर 4, 2006 सेवा में सभी श्रेणी I के प्राधिकृत व्यापारी बैंक महोदया/महोदय, विदेश में कार्यालयों की स्थापना प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों का ध्यान मई 3, 2000 की अधिसूचना सं.फेमा.10/2000-आरबी द्वारा अधिसूचित और समय-समय पर यथासंशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में निवासी व्यक्ति का विदेशी मुद्रा खाता) विनियमावली, 2000 तथा अप्रैल 21, 2006 के ए.पी. (डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.32 की ओर आकर्षित किया जाता है। वर्तमान में, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, विदेश स्थित शाखा अथवा कार्यालय अथवा प्रतिनिधि के सामान्य व्यापार परिचालन के प्रयोजन के लिए, भारतीय कंपनी के अंतिम दो लेखा वर्षों के दौरान प्रारंभिक और आवर्ती खर्च के लिए औसत वार्षिक बिक्री/आय अथवा पण्यावर्त के क्रमशः दस प्रतिशत और पांच प्रतिशत तक के विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं। 2. प्रक्रिया को और उदार बनाने और ज़्यादा लचीलापन देने की दृष्टि से, वर्तमान शर्तों के अधीन, प्रारंभिक तथा आवर्ती खर्च की सीमाओं को निम्नानुसार बढ़ाने का निर्णय लिया गया है : (i) प्रारंभिक खर्च प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, अंतिम दो वित्तीय वर्ष के दौरान औसत वार्षिक बिक्री/आय अथवा पण्यावर्त के पंद्रह प्रतिशत तक अथवा निवल संपत्ति के पच्चीस प्रतिशत, जो भी अधिक हो, तक के विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं। (ii) आवर्ती खर्च प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक अंतिम दो वित्तीय वर्ष के दौरान औसत वार्षिक बिक्री/आय अथवा पण्यावर्त के दस प्रतिशत तक के विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं। 3. अचल संपत्ति का अभिग्रहण मई 3, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा.7/2000आरबी द्वारा अधिसूचित तथा समय-समय पर यथासंशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत से बाहर अचल संपत्ति का अभिग्रहण और अंतरण) विनियमावली, 2000 के विनियम 5(3) के अनुसार, विदेशी कार्यालय वाले भारत में निगमित कंपनी को, आवश्यक समझी जानेवाली शर्तों के अधीन, अपने व्यापार तथा अपने स्टाफ के आवासीय प्रयोजनों के लिए भारत से बाहर अचल संपत्ति के अभिग्रहण के लिए रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति की आवश्यकता होती है। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक अब विदेशी कार्यालयवाले भारत में निगमित कंपनी को, उनके व्यापार तथा उनके स्टाफ के आवासीय प्रयोजनों के लिए भारत से बाहर अचल संपत्ति के अभिग्रहण हेतु उक्त सीमाओं के अंदर प्रारंभिक और आवर्ती खर्च के लिए विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं। 5. विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत में निवासी व्यक्ति का विदेशी मुद्रा खाता) विनियमावली, 2000 तथा विदेशी मुद्रा प्रबंध (भारत के बाहर अचल संपत्ति का अभिग्रहण और अंतरण) विनियमावली, 2000 में आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जा रहे हैं। 6. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने घटकों और ग्राहकों को अवगत करा दें। 7. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है। भवदीय (एम. सेबेस्टियन) |