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विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए वायदा रक्षा - रद्द की गई संविदाओं की पुनः बुकिंग

आरबीआइ/2006-07/253
ए पी(डीआइआर सिरीज़)परिपत्र सं.32

फरवरी 08, 2007

सेवा में
सभी प्राधिकृत व्यापारी बैंक श्रेणी I

महोदया/महोदय,

विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिए वायदा रक्षा -
रद्द की गई संविदाओं की पुनः बुकिंग

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंकों का ध्यान दिसंबर 21, 2002 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.63 के साथ पठित नवंबर 16, 2002 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.50 और समय-समय पर यथासंशोधित मई 3, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा.25/आरबी-2000 के विनियम 5 की ओर आकर्षित किया जाता है। अधिसूचना के अनुसूची 2 के पैरा 1(क) के अनुसार एक पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशक को भारत में अपने निवेश जोखिमों की रक्षा के लिए भारत में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक के साथ मुद्रा के रूप में रुपये के साथ वायदा संविदा करने की अनुमति दी गई है बशर्ते एक बार रद्द की गई वायदा संविदाओं को पुनः बुक नहीं किया जाएगा, किन्तु परिपक्वता अवधि पर अथवा उसके पहले उन्हें रोलओवर किया जा सकता है।

2. वर्ष 2006-07 के वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा (पैरा 104) में की गई घोषणा के अनुसार विदेशी संस्थागत निवेशकों को रद्द की गई वायदा संविदाओं के एक भाग या यूं कहें 25 प्रतिशत की पुनः बुकिंग की अनुमति दी जाएगी बशर्ते ऐसी संविदाएं मूल निवेश जोखिमों द्वारा समर्थित हैं। इसकी रूपरेखा को बाज़ार के सहभागियों के परामर्श से अंतिम रूप दिया गया है। रद्द की गई संविदाओं के 25 प्रतिशत के भीतर रद्द करने और पुनः बुकिंग करने की निगरानी के संबंध में बाज़ार के सहभागियों द्वारा व्यक्त की गई चिन्ताओं को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि रद्द की गई संविदाओं की पुनः बुकिंग को पोर्टफोलियो मूल्य के साथ जोड़ दिया जाए। इसके अलावा भारत में बाज़ार के आकार और विदेशी सस्थागत निवेशकों द्वारा धारित भारी हैसियत को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि रद्द की गई संविदाओं की पुनः बुकिंग के लिए लोचकता को क्रमिक और चरणबद्ध रूप से कार्यान्वित किया जाए।

3. तदनुसार प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक, विदेशी संस्थागत निवेशकों को भारत में ईक्विटी और/ अथवा ऋण में उनके संपूर्ण निवेश के बाज़ार मूल्य के 2 प्रतिशत की सीमा तक वायदा संविदा को रद्द करने और पुनः बुकिंग करने की अनुमति दे सकते हैं। पुनः बुकिंग के लिए पात्रता का हिसाब लगाने की सीमा का आधार वित्तीय वर्ष (अप्रैल - मार्च) के प्रारंभ में पोर्टफोलियो का बाज़ार मूल्य होना चाहिए। शेष संविदाएं अनिवार्य रूप से हमेशा मूल निवेश जोखिम द्वारा विधिवत समर्थित हों।

4. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों को यह सुनिश्चित करना है कि (i) कुल वायदा संविदा बकाया शेष पोर्टफोलियो के बाज़ार मूल्य से अधिक नहीं होनी चाहिए, तथा (ii) पुनः बुकिंग के लिए अनुमत वायदा संविदाएं वित्तीय वर्ष के आरंभ में यथानिर्धारित बाज़ार मूल्य के 2 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। वायदा रक्षा की निगरानी अनिवार्य रूप से पाक्षिक आधार पर की जाए। उसी अधिसूचना की अनुसूची II में दिए गए अन्य सभी अनुदेश अपरिवर्तित रहेंगे। योजना की समीक्षा सतत आधार पर की जाती रहेगी।

5. इन परिवर्तनों को दर्शाने के लिए एक संशोधित रिपोर्टिंग फार्मेट शुरू किया जा रहा है। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे संलग्न संशोधित फार्मेट में अपने विदेशी संस्थागत निवेशक ग्राहकों द्वारा लिए गए शेष वायदा रक्षाओं की रिपोर्टिंग करें।

6. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित ग्राहकों को अवगत करा दें।

7. मई 3, 2000 की अधिसूचना सं.फेमा.25/आरबी-2000 [विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियमावली, 2000] में आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जा रहे हैं।

8. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है।

भवदीय

(एम. सेबेस्टियन)
मुख्य महाप्रबंधक

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