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भारतीय कंपनियों के विदेश में संयुक्‍त उद्यमों/पूर्ण स्‍वामित्‍व वाली सहायक कंपनियों/पूर्ण स्‍वामित्‍व वाले स्‍टेप-डाउन सहायक कंपनियों को निधि/निधीतर आधारित ऋण सुविधाएं

आरबीआई/2013-14/568
बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.107/21.04.048/2013-14

22 अप्रैल 2014

अध्‍यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्‍य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(स्‍थानीय क्षेत्र बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय

भारतीय कंपनियों के विदेश में संयुक्‍त उद्यमों/पूर्ण स्‍वामित्‍व वाली
सहायक कंपनियों/पूर्ण स्‍वामित्‍व वाले स्‍टेप-डाउन सहायक कंपनियों
को निधि/निधीतर आधारित ऋण सुविधाएं

कृपया 10 मई 2007 का हमारा परिपत्र बैंपविवि. आईबीडी. बीसी. सं. 96/23.37.001/2006-07 देखें, जिसके अनुसार बैंकों को कतिपय शर्तों के अधीन भारतीय कंपनियों की सहायक कंपनियों के विदेश में संयुक्‍त उद्यमों (जेवी)/पूर्ण स्‍वामित्‍व वाली सहायक कंपनियों (डब्‍ल्‍यूओएस)/पूर्ण स्‍वामित्‍व वाली स्‍टेप-डाउन सहायक कंपनियों (डब्‍ल्‍यूओएसडीएस)को उनकी अक्षत पूंजी निधियों (टियर l और टियर ॥ पूंजी) के 20 प्रतिशत तक निधि/निधीतर आधारित ऋण सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति दी गई थी। ऐसे उधारों के लिए संसाधन आधार विदेशी मुद्रा खातों जैसे एफसीएनआर(बी), ईईएफसी, आरएफसी, आदि में धारित निधियां होना चाहिए, जिनके संबंध में बैंकों को विनिमय जोखिम का प्रबंध करना पड़ता है।

2. इसके अतिरिक्‍त, 03 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 8/2000-आरबी के पैरा 5(ख) के अनुसार प्राधिकृत व्‍यापारी बैंकों को किसी भारतीय कंपनी के विदेश में जेवी/डब्‍ल्‍यूओएस को या उसकी ओर से अपने कारोबार के संबंध में गारंटियां देने की अनुमति दी गई थी। दिनांक 27 मार्च 2006 के ए. पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 29 के अनुसार भारतीय कंपनियों के विदेश में जेवी/डब्‍ल्‍यूओएस के पक्ष में भारत में स्थित बैंकों द्वारा जारी की गई गारंटियां भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए गए विवेकपूर्ण मानदंडों के अधीन होंगी।

3. उक्‍त उपायों का उद्देश्‍य भारतीय कंपनियों को विदेश में उनके कारोबार में सहायता करना था। तथापि, यह पाया गया है कि बैंक जेवी/डब्‍ल्‍यूओएस/डब्‍ल्‍यूओएसडीएस की ओर से ऐसे प्रयोजनों के लिए गारंटियां/स्‍टैंडबाय साख पत्र/चुकौती आश्‍वासन पत्र आदि जैसी निधीतर आधारित ऋण सुविधाएं दे रहे हैं,जो उनके कारोबार से संबंधित नहीं हैं, बल्कि कुछ मामलों में रुपया ऋण की चुकौती हेतु विदेशी मुद्रा ऋण लेने के लिए इनका प्रयोग किया गया है।

4. तदनुसार, यह सूचित किया जाता है कि भारतीय बैंकों की विदेशों में शाखाओं/सहायक कंपनियों सहित सभी बैंक भारतीय कंपनियों के जेवी/डब्‍ल्‍यूओएस/डब्‍ल्‍यूओएसडीएस की ओर से विदेश में सामान्‍य कारोबार को छोड़कर अन्‍य संस्‍थाओं से किसी भी प्रकार का ऋण/अग्रिम जुटाने के लिए स्‍टैंडबाय साखपत्र/गारंटी/चुकौती आश्‍वासन पत्र जारी नहीं करेंगे। हम आगे यह भी सूचित करते हैं कि भारतीय कंपनियों के विदेश में जेवी/डब्‍ल्‍यूओएस/डब्‍ल्‍यूओएसडीएस को उनके कारोबार के संबंध में भारत में शाखाओं के माध्‍यम से या विदेश में शाखाओं/सहायक कंपनियों के माध्‍यम से निधि/निधीतर ऋण सुविधाएं प्रदान करते समय बैंकों को ऐसी सुविधाओं के अंतिम उपयोग की प्रभावी निगरानी तथा ऐसी संस्‍थाओं की कारोबारी आवश्‍यकताओं के साथ उनकी अनुकूलता सुनिश्चित करनी चाहिए।

5. दिनांक 25 जून 2012 के ए. पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.134 के अनुसार विनिर्माण और आधारभूत सुविधाएं क्षेत्र की भारतीय कंपनियों को देशी बैंकिंग प्रणाली से लिए गए रुपया ऋणों को चुकाने के लिए तथा/अथवा नए रुपया पूंजी व्‍यय के लिए कुछ शर्तें पूरी करने के अधीन अनुमोदित मार्ग से बाह्य वाणिज्यिक उधारों (ईसीबी) का लाभ उठाने की अनुमति दी गई थीl तथापि, यदि ईसीबी भारतीय बैंकों की विदेश में शाखाओं/सहायक कंपनी से लिए जाते हैं, तो जोखिम भारतीय बैंकिंग प्रणाली के भीतर ही रहता हैl अतएव, यह निर्णय लिया गया है कि अब से देशी बैंकिंग प्रणाली से लिये गये रुपया ऋण को भारतीय बैंकों की विदेश में शाखाओं/सहायक कंपनियों के माध्‍यम से लिए गए ईसीबी द्वारा चुकाने की अनुमति नहीं दी जाएगीl

6. दिनांक 03 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 8/2000-आरबी के पैराग्राफ (1) (i) में निहित अनुदेशों के अनुसार प्राधिकृत व्‍यापारी बैंकों को भारत से निर्यात के कारण किसी निर्यातक द्वारा लिए गए ऋण, दायित्‍व या अन्‍य देयताओं के संबंध में गारंटियां जारी करने की अनुमति दी गई हैl इसका उद्देश्‍य निर्यातकों की निर्यात संविदाओं के निष्‍पादन में सहायता करना था। यह अन्‍य किसी प्रयोजन के लिए नहीं थाl तथापि, हमारे ध्‍यान में आया है कि कुछ निर्यातक उधारकर्ता भारतीय बैंकों द्वारा जारी गारंटियों के बल पर प्राप्‍त निर्यात अग्रिमों का प्रयोग भारतीय बैंकों से लिए गए ऋणों की चुकौती के लिए कर रहे हैंl उन मामलों को छोड़कर जहां बैंकों को फेमा के अधीन अनुमोदन प्राप्‍त है, यह हमारे अनुदेशों का स्‍पष्‍टतः उल्‍लंघन है। बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे ऐसी प्रथा का अनुसरण न करेंl

भवदीय,

(राजेश वर्मा)
मुख्‍य महाप्रबंधक

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