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पूर्णकालि‍क नि‍देशक/ मुख्य कार्यपालक अधि‍कारी/महत्त्वपूर्ण जोखि‍म लेने वाले और नि‍यंत्रण का कार्य करने वाले स्टाफ आदि‍ के पारि‍श्रमि‍क के संबंध में दि‍शानि‍र्देश

भारिबैं/2019-20/89
विवि.नियु.बीसी.23/29.67.001/2019-20

4 नवंबर 2019

नि‍जी क्षेत्र के सभी बैंक (स्थानीय क्षेत्र बैंक, लघु वित्त बैंक, भुगतान बैंक समेत) तथा
भारत में परि‍चालन करने वाले वि‍देशी बैंक

महोदय/ महोदया,

पूर्णकालि‍क नि‍देशक/ मुख्य कार्यपालक अधि‍कारी/महत्त्वपूर्ण जोखि‍म लेने वाले और नि‍यंत्रण का कार्य करने वाले स्टाफ आदि‍ के पारि‍श्रमि‍क के संबंध में दि‍शानि‍र्देश

2008 के वैश्वि‍क वि‍त्तीय संकट के पीछे जो कारण हैं, उनमें एक प्रमुख कारण पारि‍श्रमि‍क प्रथाएं थीं, खास कर बड़ी वि‍त्तीय संस्थाओं की पारि‍श्रमि‍क प्रथाएं। अक्सर कर्मचारि‍यों को उनकी गति‍वि‍धि‍यों से संगठन पर पड़ने वाले दीर्घकालि‍क प्रभावों और जोखि‍म का समुचि‍त रूप से मूल्यांकन कि‍ए बि‍ना अल्पावधि‍ में होने वाले लाभ में वृद्धि‍ करने के लि‍ए पुरस्कृत कि‍या जाता था। इन प्रति‍कूल प्रोत्साहनों के कारण अत्यधि‍क जोखि‍म लेने की प्रवृत्ति‍ बढ़ी जि‍ससे वैश्वि‍क वि‍त्तीय प्रणाली पर गहरा संकट उत्पन्न हो गया। अत: पारि‍श्रमि‍क का मुद्दा वि‍नि‍यामक सुधारों का केंद्रीय मुद्दा बन गया है।

2. वि‍त्तीय संकट की स्थिति को देखते हुए, इन मुद्दों पर सभी क्षेत्रों में समन्वि‍त रूप से नि‍र्णय करने के लि‍ए, वि‍त्तीय स्थि‍रता फोरम (बाद में वित्तीय स्थिरता बोर्ड – अर्थात एफएसबी) ने उत्कृष्ट पारि‍श्रमि‍क प्रथाओं के सि‍द्धांतों और कार्यान्वयन मानदंडों (पारिश्रमिक प्रथाओं के लिए एफएसएफ सिद्धांत - दिनांक 02 अप्रैल 2009) और कार्यान्वयन के मानकों (पारिश्रमिक प्रथाओं के लिए एफएसबी सिद्धांत - कार्यान्वयन मानक - दिनांक 25 सितंबर 2009) का संकलन प्रकाशि‍त कि‍या है। इन सि‍द्धांतों का उद्देश्य पारि‍श्रमि‍क व्यवस्थाओं की संरचनाओं के कारण उत्पन्न होने वाली अत्यधि‍क जोखि‍म उठाने की प्रवृत्ति‍ को हतोत्साहि‍त करना है। इन सि‍द्धांतों में पारि‍श्रमि‍क का प्रभावी अभिशासन, वि‍वेकपूर्ण जोखि‍म उठाने की प्रवृत्ति‍ के अनुरूप पारि‍श्रमि‍क, प्रभावी पर्यवेक्षीय नि‍गरानी और हितधारकों की भागीदारी की अपेक्षा की गयी है। इन सि‍द्धांतों की पुष्टि‍ जी-20 राष्ट्रों और बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल समि‍ति‍ (बीसीबीएस) द्वारा की गयी है। कार्यान्वयन मानक विशिष्ट मानदंड हैं तथा उन विषयों को प्राथमिकता देते हैं जिन पर फर्मों और पर्यवेक्षकों को ध्यान देने की आवश्यकता है, जिससे कि इन सिद्धांतों का वैशिविक स्तर पर प्रभावी कार्यान्वयन किया जा सकें।

3. बीसीबीएस ने मई 2011 में ‘पारि‍श्रमि‍क में जोखि‍म और कार्य नि‍ष्पादन की समरूपता के लि‍ए विभिन्न क्रि‍यावि‍धि‍यां’ पर अंति‍म रि‍पोर्ट प्रकाशि‍त की। रि‍पोर्ट का मुख्य उद्देश्य (ए) कति‍पय पारि‍श्रमि‍क प्रथाओं और क्रि‍यावि‍धि‍यों को प्रस्तुत करना है, जो स्वस्थ प्रोत्साहनों का समर्थन करती हैं तथा (बी) ऐसे तत्वों को दर्शाना है जो जोखि‍म समरूपता की प्रभावोत्पादकता को प्रभावि‍त करते हैं तथा जि‍न पर बैंकों द्वारा अपनी क्रि‍यावि‍धियों को‍ वि‍कसि‍त करते समय और पर्यवेक्षकों द्वारा बैंकों की प्रथाओं की समीक्षा और मूल्यांकन करते समय वि‍चार कि‍या जाना चाहि‍ए। जुलाई 2011 में बीसीबीएस ने एफएसबी के परामर्श से पारि‍श्रमि‍क के लि‍ए पि‍लर 3 की प्रकटीकरण अपेक्षाएं भी प्रकाशि‍त की हैं।

4. इन दस्तावेजों के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए रि‍ज़र्व बैंक ने पूर्णकालि‍क नि‍देशकों/ मुख्य कार्यपालक अधि‍कारियों/ जोखि‍म लेने वाले और नि‍यंत्रण का कार्य करने वाले स्टाफ आदि के लिए ‍पारि‍श्रमि‍क संबंधी दि‍शानि‍र्देश 13 जनवरी 2012 के परिपत्र डीबीओडी.बीसी.72/29.67.001/2011-12 के माध्यम से जारी करे थे, जिनका अनुपालन नि‍जी क्षेत्र के बैंक और वि‍देशी बैंक वि‍त्त वर्ष 2012-13 से करते आए हैं।

5. प्राप्त अनुभव और उभरती हुई अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के आधार पर इन दिशा-निर्देशों की समीक्षा की गई है। इसका उद्देश्य कदाचार जोखिम से निपटने के लिए पारिश्रमिक व्यवस्थाओं के उपयोग पर मार्च 2018 में एफएसबी द्वारा जारी अनुपूरक मार्गदर्शन तथा एफ़एसबी द्वारा जारी उत्कृष्ट पारिश्रमिक प्रथाओं के सिद्धांतों और कार्यान्वयन मानाकों के साथ इन दिशा-निर्देशों को बेहतर ढंग से संरेखित करना भी रहा है। फलस्वरूप, आरबीआई की वेबसाइट पर प्रस्तावित दिशानिर्देशों पर एक चर्चा पत्र प्रकाशित किया गया था और 31 मार्च 2019 तक बैंकों और अन्य हितबद्ध पार्टियों से टिप्पणियां आमंत्रित की गई थीं।

6. प्राप्त प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखते हुए अंतिम दिशा-निर्देश अनुबंध में दिए गए हैं ।

7. ये दिशानिर्देश 01 अप्रैल, 2020 से अथवा उसके बाद शुरू होने वाले वेतन चक्रों के लिए लागू होंगे। पूर्णकालिक निदेशकों (डब्ल्यूटीडी)/ मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) की नियुक्ति/ पुनर्नियुक्ति या पारिश्रमिक/ पारिश्रमिक में संशोधन के अनुमोदन के लिए सभी आवेदन परिशिष्ट 1 में निर्धारित पूर्ण विवरण के साथ प्रस्तुत किए जाए।

8. नि‍जी क्षेत्र के बैंकों, भारत में पूर्ण स्वाधिकृत सहायक कंपनी (डबल्यूओएस) के रूप में परिचालित विदेशी बैंकों तथा शाखा के रूप में कार्य करने वाले वि‍देशी बैंकों को बैंककारी वि‍नि‍यमन अधि‍नि‍यम, 1949 की धारा 35ख के अनुसार पूर्णकालि‍क नि‍देशकों/ मुख्य कार्यपालक अधि‍कारि‍यों को पारि‍श्रमि‍क (अर्थात प्रतिफल) देने के लि‍ए वि‍नि‍यामकीय अनुमोदन प्राप्त करना होगा। अनुमोदन प्रक्रि‍या में अन्य बातों के साथ-साथ यह मूल्यांकन कि‍या जाएगा कि‍ पारि‍श्रमि‍क नीति‍ और प्रथाएं अनुबंध में वर्णित दिशानिर्देशों और परिशिष्ट 2 में दी गई बीसीबीएस क्रियाविधियों के अनुरूप हैं या नहीं ।

9. उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए दिनांक 13 जनवरी 2012 के परिपत्र डीबीओडी.बीसी 72/29. 67.001/2011-12 के माध्यम से जारी किए गए दिशानिर्देश 01 अप्रैल 2020 से लागू रूप में निरसित होंगे।

भवदीय

(श्रीमोहन यादव)
मुख्य महाप्रबंधक

संलग्न : यथोक्त


अनुबंध

पूर्णकालि‍क नि‍देशकों/ मुख्य कार्यपालक अधि‍कारि‍यों/ महत्त्वपूर्ण जोखि‍म लेने वाले और नियंत्रण प्रकार्य कर्मचारि‍यों के पारि‍श्रमि‍क के संबंध में दि‍शानि‍र्देश

क. सुदृढ़ पारि‍श्रमि‍क प्रथाओं के संबंध में वि‍त्तीय स्थि‍रता बोर्ड (एफएसबी) के सि‍द्धांत

1. अप्रैल 2009 में एफएसबी द्वारा जारी सुदृढ़ पारि‍श्रमि‍क प्रथाओं के सि‍द्धांत का उद्देश्य का प्रभावी अभिशासन सुनि‍श्चि‍त करना, पारि‍श्रमि‍क को वि‍वेकपूर्ण जोखि‍म लेने की प्रवृत्ति‍ और प्रभावी पर्यवेक्षीय नि‍गरानी के अनुरूप बनाना, पारि‍श्रमि‍क में हितधारकों की भागीदारी सुनि‍श्चि‍त करना है। संक्षेप में ये सि‍द्धांत इस प्रकार हैं:

(i) पारि‍श्रमि‍क का प्रभावी अभिशासन

  • फर्म के नि‍देशक मंडल को पारि‍श्रमि‍क प्रणाली के डि‍जाइन और परि‍चालन की सक्रि‍य नि‍गरानी करनी चाहि‍ए।

  • फर्म के नि‍देशक मंडल को पारि‍श्रमि‍क प्रणाली की नि‍गरानी और समीक्षा यह सुनि‍श्चि‍त करने के लि‍ए करनी चाहि‍ए कि‍ उक्त प्रणाली उसी रूप में कार्य कर रही है जि‍स रूप में उससे अपेक्षि‍त था।

  • वि‍त्तीय और जोखि‍म नि‍यंत्रण से जुड़े स्टाफ स्वतंत्र होने चाहि‍ए, उनके पास समुचि‍त प्राधि‍कार होना चाहि‍ए और उनको पारि‍श्रमि‍क इस रूप में दि‍या जाना चाहि‍ए जो उनके कारोबारी क्षेत्रों से स्वतंत्र हो और फर्म में उनकी मुख्य भूमि‍का के अनुरूप हो।

(ii) पारि‍श्रमि‍क को वि‍वेकपूर्ण जोखि‍म लेने की प्रवृत्ति‍ के अनुरूप बनाना

  • पारि‍श्रमि‍क में सभी प्रकार के जोखि‍मों के लि‍ए समायोजन होना चाहि‍ए।

  • जोखि‍म परि‍णामों के अनुसार ही पारि‍श्रमि‍क परि‍णाम होना चाहि‍ए।

  • पारि‍श्रमि‍क भुगतान समयावधि में जोखि‍म की कालावधि‍ का ध्यान रखना चाहि‍ए ।

  • नकदी, ईक्वि‍टी और अन्य प्रकार के पारि‍श्रमि‍कों का मि‍श्रण जोखि‍म के अनुरूप होना चाहि‍ए ।

(iii) प्रभावी पर्यवेक्षीय नि‍गरानी और हितधारकों की भागीदारी

  • पारि‍श्रमि‍क प्रथाओं की पर्यवेक्षीय समीक्षा सख्त और नि‍रंतर होनी चाहि‍ए और कि‍सी भी प्रकार की कमी पर तुरंत पर्यवेक्षीय कार्रवाई होनी चाहि‍ए।

  • फर्मों को अपनी पारि‍श्रमि‍क प्रथाओं के संबंध में स्पष्ट, संपूर्ण और सामयि‍क सूचना प्रकट करते रहना चाहि‍ए ताकि‍ सभी हितधारक रचनात्मक भागीदारी कर सकें ।

2. नीचे दि‍ये गये दि‍शानि‍र्देश एफएसबी के उपर्युक्त सि‍द्धांतों और कार्यान्वयन मानकों, उभरते अंतर्राष्ट्रीय मानक तथा भारत के मौजूदा सांवि‍धि‍क और वि‍नि‍यामक ढांचे पर आधारि‍त हैं। बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि‍ वे आवश्यक नीति‍/ इन्फ्रास्ट्रक्चर स्थापि‍त कर इन दि‍शानि‍र्देशों को कार्यान्वि‍त करने के लि‍ए शीघ्र कदम उठायें।

ख. निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी बैंकों के लिए पारिश्रमिक पर दिशानिर्देश

I. प्रयोज्यता और क्षेत्र:

क) नीचे दिए गए दिशानिर्देश निजी क्षेत्र के बैंकों पर लागू होते हैं, जिनमें स्थानीय क्षेत्र बैंक, लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंक शामिल हैं।

ख) शाखा के रूप में भारत में काम करने वाले विदेशी बैंकों को अपने प्रधान कार्यालयों से इस आशय का एक वार्षिक घोषणा पत्र रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करना जारी रखना होगा कि भारत में उनके पारिश्रमिक की संरचना जिसमें सीईओ का पारिश्रमिक भी शामिल है, एफएसबी सिद्धांतों और मानदंडों के अनुरूप है। भारतीय रिज़र्व बैंक, सीईओ के पारिश्रमिक को मंजूरी देते समय इसे ध्यान में रखेगा।

ग) भारत में कार्यरत ऐसे विदेशी बैंक,जिन्होंने अपने देश में एफएसबी सिद्धांतों को नहीं अपनाया है, के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के लिए पारिश्रमिक के प्रस्ताव के सबंध में भारत में निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए निर्धारित पारिश्रमिक दिशानिर्देशों के अनुसार उन पर लागू सीमा तक कार्यान्वित करने होंगे।

घ) पूर्ण स्वाधिकृत सहायक कंपनी (डब्ल्यूओएस) के रूप में भारत में कार्यरत विदेशी बैंकों के लिए, भारत में निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए निर्धारित पारिश्रमिक दिशानिर्देश लागू होंगे।

II दिशानिर्देश:

1. पारिश्रमिक का प्रभावी अभिशासन

1.1 दिशानिर्देश 1: पारिश्रमिक नीति

बैंकों को अपने सभी कर्मचारियों के लिए एक व्यापक पारिश्रमिक नीति बनाना और उसे लागू करना जारी रखना होगा तथा उसकी वार्षिक समीक्षा करनी होगी। इस नीति में इन दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए पारिश्रमिक संरचना के सभी पहलू होने चाहिए, जैसे नियत वेतन, परिलब्धि, कार्यनिष्पादन बोनस, गारंटीकृत बोनस (ज्वाइनिंग/ साइन-ऑन बोनस), पृथक्करण पैकेज, शेयर- लिंक्ड लिखत, उदाहरणार्थ कर्मचारी स्टॉक ऑपशन योजना (ईएसओपी), पेंशन योजना, ग्रेच्युटी आदि।

1.2 दिशानिर्देश 2: नामांकन और प्रतिफल समिति (एनआरसी)

बैंकों के निदेशक मंडल को बोर्ड की ओर से बैंक की पारिश्रमिक नीति के निर्धारण, समीक्षा और कार्यान्वयन की देखरेख के लिए बोर्ड की ‘नामांकन और प्रतिफल समिति ’(एनआरसी) का गठन करना चाहिए। एनआरसी में तीन या इससे अधिक गैर-कार्यकारी निदेशक होने चाहिए, जिनमें से कम से कम आधे स्वतंत्र निदेशक होने चाहिए और बोर्ड की जोखिम प्रबंधन समिति के कम से कम एक सदस्य को शामिल होना चाहिए। एनआरसी को पारिश्रमिक और जोखिमों के बीच प्रभावी संरेखण के लिए, बैंक की जोखिम प्रबंधन समिति के साथ निकट समन्वय में काम करना चाहिए। एनआरसी को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बैंक का लागत/ आय अनुपात पारिश्रमिक पैकेज को समर्थित करता है जो सुदृढ़ पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखने के लिए सुसंगत हो।

2. विवेकपूर्ण जोखिम लेने के साथ पारि‍श्रमि‍क का प्रभावी संरेखन

2.1 दिशानिर्देश 3: पूर्णकालिक निदेशकों/ मुख्य कार्यकारी अधिकारियों/ महत्त्वपूर्ण जोखिम लेने वालों (एमआरटी)के लिए

बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पूर्णकालिक निदेशक (डब्ल्युटीडी)/ मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ)/ वास्तविक जोखिम लेने वालों के लिए (एमआरटी):

(क) पारिश्रमिक में सभी प्रकार के जोखिम के लिए समायोजन किया जाता है,

(ख) पारिश्रमिक परिणाम जोखिम परिणाम के अनुरूप हैं,

(ग) पारिश्रमिक के भुगतान में जोखिम की कालावधि को ध्यान में रखा जाता है, और

(घ) नकदी, ईक्विटी और पारिश्रमिक के अन्य रूपों का मिश्रण जोखिम से सुसंगत है ।

जोखिम समायोजन के कार्यान्वयन में बैंकों द्वारा ऋण, बाजार, चलनिधि और अन्य विभिन्न प्रकार के जोखिमों उपायों के विस्तृत प्रकारों का उपयोग किया जाना चाहिए। जोखिम समायोजन विधियों में मात्रात्मक और निर्णयात्मक दोनों तत्व होना वांछित है। पारिश्रमिक सभी वैधानिक आवश्यकताओं के अनुपालन में भी होना चाहिए।

बैंक के डब्ल्यूटीडी/ सीईओ / एमआरटी के लिए पारिश्रमिक का ढांचा निम्नानुसार होगा:

2.1.1 नियत वेतन और परिलब्धि

बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पारिश्रमिक का नियत भाग यथोचित हो, जिसमें सांविधिक आवश्यकताओं और बैंकिंग उद्योग की प्रचलित प्रथाओं सहित सभी संबंधित घटकों को ध्यान में रखते हुए परिलब्धि सहित पारिश्रमिक के सभी नियात मदों को नियत वेतन के हिस्से के रूप में माना जाएगा। यह नोट किया जाए कि ऐसी सभी प्रतिपूर्ति आधारित परिलब्धियां नियत वेतन में शामिल करी जानी चाहिए जिनकी प्रतिपूर्ति पर मौद्रिक सीमा लगी हो। अधिवर्षिता/ सेवानिवृत्ति लाभों के लिए योगदान को नियत वेतन के हिस्से के रूप में माना जाएगा।

2.1.2 परिवर्तनशील वेतन

(क) परिवर्तनशील वेतन के घटक:

परिवर्तनशील वेतन शेयर-लिंक्ड लिखत1 या नकद और शेयर-लिंक्ड लिखत के मिश्रण के रूप में हो सकता है। परिवर्तनशील वेतन में नकदी और शेयर-लिंक्ड घटकों के बीच उचित संतुलन होना चाहिए। केवल उन मामलों में जहां कानून/ नियमों द्वारा शेयर-लिंक्ड लिखत के माध्यम से पारिश्रमिक की अनुमति नहीं है, संपूर्ण परिवर्तनशील वेतन का भुगतान नकद में हो सकता है।

(ख) परिवर्तनशील वेतन पर सीमा:

  1. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नियत वेतन और परिवर्तनशील वेतन के बीच समुचित संतुलन रहे। परिशिष्ट 2 में दी गई बीसीबीएस शर्तों के पैरा 2.1.2 (बी)(iv) और बुलेट (ए) के साथ पठित एफएसबी कार्यान्वयन मानकों के अनुसार, इन दिशानिर्देशों के पैरा 2.1.2 (बी)(iii) और पैरा 2.2 में उल्लिखित मामलों को छोड़कर, पारिश्रमिक का ठोस हिस्सा अर्थात कम से कम 50% परिवर्तनशील होना चाहिए, जिसका भुगतान व्यक्तिगत, व्यापार-इकाई तथा पूरे फर्म के स्तर पर निष्पादन का उचित आकलन करने वाले मापकों के अनुसार किया जाना चाहिए। उत्तरदायित्व के उच्च स्तर पर, परिवर्तनशील वेतन का अनुपात अधिक होना चाहिए। कुल परिवर्तनशील वेतन नियत वेतन के अधिकतम 300% (संकलित निष्पादन माप अवधि के लिए) तक सीमित होगा।

  2. यदि परिवर्तनशील वेतन नियत वेतन का 200% तक है, तब परिवर्तनशील वेतन का न्यूनतम 50%; और यदि परिवर्तनशील वेतन 200% से अधिक है, तब परिवर्तनशील वेतन का न्यूनतम 67% गैर नकद लिखत के माध्यम से होना चाहिए।

  3. यदि किसी कार्यकारी को शेयर लिंक्ड लिखत दिए जाने पर क़ानून या विनियम द्वारा रोक है तो, उनके परिवर्तनशील वेतन की उच्चतम सीमा नियत वेतन के 150% तक होगी, लेकिन यह नियत वेतन के 50% से कम नहीं होगा।

  4. बैंक के वित्तीय प्रदर्शन में गिरावट से सामन्यत: परिवर्तनशील पारिश्रमिक की कुल राशि में कमी आनी चाहिए, जिसे कम करके शून्य तक भी किया जा सकता है।

(ग) परिवर्तनशील वेतन का आस्थगन:

  1. वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारियों के लिए, जिनमें डब्ल्यूटीडी और एमआरटी के रूप में कार्यरत अन्य कर्मचारी, शामिल हैं (नीचे पैरा 2.4 देखें), एफएसबी कार्यान्वयन मानकों के अनुपालन में, वेतन की मात्रा को न देखते हुए, परिवर्तनशील वेतन के लिए आस्थगन की व्यवस्था अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। बैंक के ऐसे कार्यकारी अधिकारियों के लिए, कुल परिवर्तनशील वेतन का न्यूनतम 60% अनिवार्य रूप से आस्थगन व्यवस्था के तहत होना चाहिए। इसके अलावा, यदि नकद घटक परिवर्तनशील वेतन का हिस्सा है, तो कम से कम 50% नकद बोनस भी आस्थगित किया जाना चाहिए।

  2. हालाँकि, ऐसे मामलों में जहां परिवर्तनशील वेतन का नकद घटक रु 25 लाख से कम है, वहाँ आस्थगन अपेक्षाओं की जरूरत नहीं होगी।

(घ) आस्थगन व्यवस्था की अवधि:

आस्थगन अवधि न्यूनतम तीन वर्ष की होनी चाहिए। यह परिवर्तनशील वेतन के नकद और गैर-नकद दोनों घटकों पर लागू होगी ।

(ड) पारिश्रमिक सन्निहित करना (वेस्टिंग):

आस्थगित पारिश्रमिक या तो पूरी तरह से आस्थगन अवधि के अंत में सन्निहित (वेस्टिंग) करना चाहिए या इसे पूरी आस्थगन अवधि के दौरान प्रसारित (स्प्रेड) करना चाहिए। ऐसी पहली वेस्टिंग आस्थगन अवधि की शुरुआत से एक साल से पहले नहीं होनी चाहिए। वेस्टिंग आनुपातिक आधार2 से अधिक तेज़ नहीं होनी चाहिए। साथ ही, यथार्थ समायोजन लागू करने से पहले जोखिमों का उचित मूल्यांकन सुनिश्चित करने के लिए वेस्टिंग वार्षिक आधार पर ही की जानी चाहिए।

(च) शेयर-लिंक्ड लिखत:

ऐसी लिखतों को परिवर्तनशील वेतन के एक घटक के रूप में शामिल किया जाएगा। शेयर-लिंक्ड लिखत के अनुदान के लिए मानदंड बैंकों द्वारा संबंधित प्रासंगिक प्रावधानों के अनुरूप तैयार किए जाने चाहिए और यह बैंक की पारिश्रमिक नीति का हिस्सा होना चाहिए। इन दिशानिर्देशों में निर्धारित प्रकटीकरण अपेक्षाओं के अनुसार दिए गए शेयर लिंक्ड लिखत का विवरण भी प्रकट किया जाना चाहिए। बैंक द्वारा ब्लैक-शोल्स मॉडल का उपयोग कर दिए जाने की तिथि पर शेयर-लिंक्ड लिखत का उचित मूल्य (फेयर वेल्यू) निर्धारित किया जाना चाहिए।

2.1.3 मालस /क्‍लॉबैक

क) परिवर्तनशील पा‍रिश्रमिक बैंक के और/ अथवा किसी भी वर्ष प्रासंगिक व्यवसाय के क्षेत्र में धीमे या नकारात्मक वित्तीय प्रदर्शन की स्थिति में मालस3 /क्‍लॉबैक4 व्‍यवस्‍थाओं के अधीन होगा।

ख) बैंकों से अपेक्षित है कि वे कदाचार जोखिम के समाधान के लिए पा‍रिश्रमिक टूल के उपयोग पर एफएस‍बी द्वारा मार्च 2018 को जारी पूरक मार्गदशर्नों, और सभी प्रासंगिक सांविधिक और विनियामक शर्तों, जैसे भी लागू हों, को ध्यान में रखते हुए परिवर्तनशील पा‍रिश्रमिक के संबंध में मालस /क्‍लॉबैक व्‍यवस्‍थाओं को शामिल करने के लिए तौर तरीके बनाएं। बैंक अपनी पारिश्रमिक नीतियों में स्थितियों के एक द्योतक सेट की पहचान करेंगे, जिसके लिए उन्हें पूरे परिवर्तनशील वेतन पर लागू होने वाले मालस और क्लॉबैक क्लॉज़ को लागू करना होगा। मालस और क्‍लॉबैक लागू होने के मानदंड स्थापित करते समय, बैंकों को एक अवधि भी निर्दिष्ट करनी चाहिए, जिसके दौरान कम से कम आस्‍थगन और प्रतिधारण अवधि5 को कवर करते हुए, मालस और / या क्‍लॉबैक को लागू किया जा सकता है।

ग) जहां भी अनर्जक आस्तियों (एनपीए) या आस्‍ति वर्गीकरण के लिए बैंक के प्रावधान में मूल्‍यांकित विचलन सार्वजनिक प्रकटीकरण6 के लिए निर्धारित सीमा से अधिक होता है, बैंक आकलन वर्ष के लिए ‘मालस क्लॉज के तहत परिवर्तनशील वेतन के अप्रयुक्त (अनवेस्टेड) हिस्से का भुगतान नहीं करेगा। इसके अलावा, ऐसी स्थितियों में, परिवर्तनशील वेतन (मूल्यांकन वर्ष के लिए) में वृद्धि के किसी प्रस्ताव पर सकारात्मक रूप से विचार नहीं किया जाएगा। यदि बैंक का मूल्‍यांकन पश्‍चात सकल एनपीए 2.0% से कम हैं, तो ये प्रतिबंध केवल तभी लागू होंगे जब सार्वजनिक प्रकटीकरण के मानदंड प्रावधानीकरण या प्रावधानीकरण और आस्‍ति वर्गीकरण दोनों में विचलन के कारण लागू हो जाते हैं।

2.1.4 गारंटीकृत बोनस

गारंटीकृत बोनस सुदृढ़ जोखि‍म प्रबंधन या निष्पादन के लि‍ए वेतन सि‍द्धांत के अनुरूप नहीं है और यह पारि‍श्रमि‍क योजना का अंग नहीं होना चाहि‍ए । इसलिए, गारंटीकृत बोनस केवल नए कर्मचारियों को भर्ती करने के संदर्भ में कार्यग्रहण / साइन-ऑन बोनस के रूप में होना चाहिए और पहले वर्ष तक सीमित होना चाहिए। इसके अलावा, कार्यग्रहण / साइन-ऑन बोनस केवल शेयर-लिंक्ड लिखत के रूप में होना चाहिए, क्योंकि सीधे नकद में भुगतान से भ्रष्‍ट आचरण को प्रोत्साहन मिलेगा। इस तरह के बोनस को न तो नियत वेतन का हिस्सा माना जाएगा और न ही परिवर्तनशील वेतन का। इसके अलावा, बैंकों को उपार्जित लाभ (ग्रेच्युटी, पेंशन, इत्यादि) के अलावा, जहां किसी संविधि के अंतर्गत अनिवार्य नहीं हो, अन्य पृथक्करण पारिश्रमिक का भुगतान नहीं करना चाहिए।

2.1.5 हेजिंग

बैंकों को कर्मचारि‍यों को अपनी पारि‍श्रमि‍क व्यवस्था में नि‍हि‍त जोखि‍म संरेखन प्रभाव को नि‍ष्प्रभावी करने के लि‍ए अपनी पारि‍श्रमि‍क व्‍यवस्‍था का बीमा या हेजिंग करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। इसके परिवर्तन के लिए बैंक को उपयुक्‍त अनुपालन व्‍यवस्‍था स्‍थापित करनी चाहिए।

2.2 दि‍शानि‍र्देश 4 : जोखि‍म नि‍यंत्रण और अनुपालन स्टाफ के लि‍ए

आंतरिक लेखापरीक्षा सहित वि‍त्तीय और जोखि‍म नि‍यंत्रण में लगे स्टाफ सदस्यों को इस रूप में पारि‍श्रमि‍क दि‍या जाना चाहि‍ए जो उनके कारोबार क्षेत्रों से स्वतंत्र हों और बैंक में उनकी महत्वपूर्ण भूमि‍का के अनुरूप हो। ऐसे स्टाफ की प्रभावी स्वतंत्रता और समुचि‍त प्राधि‍कार, प्रोत्साहन पारि‍श्रमि‍क पर वि‍त्तीय और जोखि‍म प्रबंधन के प्रभाव की अखंडता निष्‍ठा बनाए रखने के लि‍ए आवश्यक है। जोखि‍म मापों की परि‍शुद्धता सुनि‍श्चि‍त करने में बैक ऑफि‍स और जोखि‍म नि‍यंत्रण से संबद्ध कर्मचारी महत्वपूर्ण भूमि‍का नि‍भाते हैं। यदि‍ अल्पकालि‍क उपायों से उनका अपना पारि‍श्रमि‍क ही प्रभावि‍त होने लगे तो उनकी स्वतंत्रता नहीं रह जाएगी। यदि‍ उनका पारि‍श्रमि‍क काफी कम है तो ऐसे कर्मचारि‍यों की गुणवत्ता उनके कार्य के लि‍ए अपर्याप्त हो सकती है और इससे उनका प्राधि‍कार कम हो सकता है। नि‍यंत्रण कार्य करने वाले कार्मि‍कों को दि‍ये जाने वाले नि‍यत और परि‍वर्तनशील पारि‍श्रमि‍क के मि‍श्रण में नि‍यत पारि‍श्रमि‍क का अंश अधि‍क होना चाहि‍ए। इसलिए, कुल पारिश्रमिक का न्यूनतम 50% हिस्सा परि‍वर्तनशील वेतन के रूप में भुगतान किए जाने की अपेक्षा इस श्रेणी के कर्मचारियों के लिए लागू नहीं होगी। फिर भी, पारिश्रमिक का एक समुचित हिस्सा अनुपात परि‍वर्तनशील वेतन के रूप में होना ही चाहिए, ताकि आवश्‍यकता पड़ने पर मालस/ या क्लॉबैक विकल्प का विकल्प खुला रहे करना निष्‍फल नहीं हो। उपर्युक्त के अधीन, इस प्रकार के कर्मचारियों के लिए पारिश्रमिक संरचना तैयार करते समय, बैंकों को पूर्णकालिक निदेशकों / सीईओ के लिए उपयुक्त सिद्धांतों के समान सिद्धांतों, जो भी उचित हो को अपनाना चाहिए।

2.3 दि‍शानि‍र्देश 5: स्टाफ के अन्य संवर्गों के लि‍ए

हालाकि ये दिशानिर्देश पूर्णकालिक निदेशकों/ सीईओ/ एमआरटी और नियंत्रण कार्य करने वाले स्टाफ के अलावा बैंक के अन्‍य कर्मचारियों पर लागू नहीं होते हैं, बैंकों को उचित संशोधनों के साथ इसी के समान सिद्धांतों को, उनके लिए भी अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है।

2.4 दि‍शानि‍र्देश 6: बैंक के महत्‍वपूर्ण जोखिम लेने वालों की पहचान

2.4.1 बैंकों को अपने ऐसे महत्‍वपूर्ण जोखिम लेने वालों (एमआरटी) की पहचान करनी चाहिए, जिनके कार्यों का बैंक के जोखिम एक्‍सपोजर पर काफी प्रभाव पड़ता है, और जो नीचे दिए गए गुणात्मक और किसी भी एक मात्रात्मक मानदंडों को पूरा करते हैं :

मानक गुणात्‍मक मानदंड

  • संयुक्त रूप से या व्यक्तिगत रूप से ऐसा अधिकार रखने वाले स्‍टाफ (जैसे, वरिष्ठ प्रबंधक, प्रबंधन निकाय के सदस्य) जोखिम एक्‍सपोजर आदि के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तथा निर्णय लेने की शक्ति रखने वाले हों।

मानक मात्रात्‍मक मानदंडः

  • उनका कुल पारिश्रमिक एक नियत की गई सीमा से अधिक है; जिसका निर्धारण बैंक द्वारा विवेकपूर्ण तरीके से किया जा सकता है, या

  • वे बैंक में उच्चतम पारिश्रमिक वाले 0.3% कर्मचारियों में शामिल हैं, या

  • उनका पारिश्रमिक वरिष्ठ प्रबंधन और अन्य जोखिम लेने लेने वाले अधिकारियों के सबसे कम कुल पारिश्रमिक के बराबर या उससे अधिक है।

2.4.2 बैंकों को सूचित क‍िया जाता है कि वे मार्गदर्शन के लिए ‘रेंज ऑफ़ मेथडोलोजिस फ़ॉर रिस्क एंड परफॉरमेंस अलाइन्मेंट ऑफ़ रेमुनरेशन’ विषय पर मई 2011 में प्रकाशित बीसीबीएस रिपोर्ट का संदर्भ लें। इन कार्यप्रणालियों (मेथडोलोजिस) का सार परिशिष्ट 2 में दिया गया है। यह रिपोर्ट बैंकों और पर्यवेक्षकों की जोखिम-समायोजित पारिश्रमिक से संबंधित समझ को बढ़ाएगी। यह रिपोर्ट, जोखिम-समायोजित पारिश्रमिक योजनाओं के डिजाइन पर कुछ स्पष्टीकरण प्रदान करते हुए, बैंकिंग क्षेत्र में सुदृढ प्रथाओं को अधिक से अधिक अपनाने की सुविधा और समर्थन प्रदान करती है।

3. प्रकटीकरण और हित धारकों की भागीदारी

3.1 दि‍शानि‍र्देश 7 : प्रकटीकरण

बैंकों से यह अपेक्षि‍त है कि‍ वे कम-से-कम वार्षि‍क आधार पर अपने वार्षि‍क वि‍त्तीय वि‍वरणों में पूर्णकालिक निदेशकों/ सीईओ/ एमआरटी के पारि‍श्रमि‍क के संबंध में सूचना प्रकट करें।

3.2 प्रकट की गयी सूचना को अधि‍क स्पष्ट बनाने के लि‍ए बैंकों को सारणी या चार्ट फार्मेट में सूचना प्रकट करनी चाहि‍ए तथा वर्तमान रि‍पोर्टिंग वर्ष के साथ-साथ पि‍छले रि‍पोर्टिंग वर्ष की भी सूचना प्रकट की जानी चाहि‍ए (यदि‍ सूचना पहली बार प्रकट की जा रही हो तो पि‍छले वर्ष की सूचना देने की आवश्यकता नहीं है)। दि‍शानि‍र्देश के परि‍शि‍ष्ट 3 में बैंकों से अपेक्षि‍त महत्वपूर्ण प्रकटीकरणों की सूची दी गयी है। साथ ही बैंकों को समय समय पर अद्यतन दिनांक 1 जुलाई 2015 के परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी.बीसी1/21.06.201/2015-16 के माध्‍यम से निर्धारित पारिश्रमिक के लिए प्रकटीकरण अपेक्षाओं का भी पालन करना चाहिए।

ग. वि‍नि‍यामक और पर्यवेक्षी अनुमोदन/नि‍गरानी

  1. जैसा कि बैंको को ज्ञात है, बैंककारी वि‍नि‍यमन अधि‍नि‍यम 1949 की धारा 10(1)(बी)(iii) के अनुसार कोई भी बैंकिंग कंपनी ऐसे व्यक्ति‍ को नि‍योजि‍त नहीं करेगी या उसका नि‍योजन जारी नहीं रखेगी, जि‍सका पारि‍श्रमि‍क रि‍ज़र्व बैंक की राय में अत्यधि‍क है।

  2. नि‍जी क्षेत्र के बैंकों और भारत में परि‍चालन करने वाले वि‍देशी बैंकों के लिए यह आवश्यक है है कि‍ वे बैंककारी वि‍नि‍यमन अधि‍नि‍यम 1949 की धारा 35क के अनुसार पूर्णकालि‍क नि‍देशकों/ मुख्य कार्यपालक अधि‍कारि‍यों को पारि‍श्रमि‍क की मंजूरी के लि‍ए वि‍नि‍यामक अनुमोदन प्राप्त करें ।

  3. बैंकों की पारि‍श्रमि‍क नीति‍ पर्यवेक्षीय नि‍गरानी के अधीन होगी, जि‍समें बासल ढांचे के अंतर्गत समीक्षा शामि‍ल है । इसमें कमी होने से बैंकों के जोखि‍म प्रोफाइल में वृद्धि‍ होगी जि‍सके परि‍णामों में अति‍रि‍क्त पूंजी अपेक्षा भी शामि‍ल है, यदि‍ कमी काफी महत्वपूर्ण हो ।


परिशिष्ट 2

प्रतिफल के जोखिम और निष्पादन संरेखन के लिए पद्धतियां

एफएसबी के परामर्श से बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बासल कमेटी (बीसीबीएस ) ने मई 2011 में ‘ रेंज ऑफ मेथोडोलॉजीज फॉर रिस्क एंड परफॉर्मेंस अलाइनमेंट ऑफ रेमुनरेशन’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य निम्न लिखित के संबंध में सूचना देना है (i) कुछ पारिश्रमिक और कार्यप्रणालियां जो सुदृढ़ प्रोत्साहन को समर्थित करती हैं और (ii) जोखिम संरेखन की प्रभावशीलता पर असर डालने वाली चुनौतियों या तत्वों को, जिन्हें बैंकों द्वारा उनकी कार्यपद्धति विकसित करते समय और पर्यवेक्षकों द्वारा बैंक की पद्धतियों की समीक्षा और आकलन करने के दौरान बैंकों को ध्यान में रखना चाहिए।

रिपोर्ट के कुछ मुख्य अंश निम्नानुसार हैं:

(क) प्रोत्साहन आधारित पारिश्रमिक के उचित कार्यान्वयन के लिए, पारिश्रमिक का परिवर्तनशील भाग सही मायने में और प्रभावी रूप से परिवर्तनशील होना चाहिए और इसे एफएसबी द्वारा परिभाषित समरूपता सिद्धांत के अनुरूप शून्य तक भी कम किया जा सकता है। एक प्रमुख तत्व जिसकी पर्यवेक्षक अपेक्षा करते हैं, वह यह है बैंकों में यह प्रदर्शित करने की क्षमता होनी चाहिए कि उनके द्वारा परिवर्तनशील प्रतिफल को जोखिम और निष्पादन से समायोजित करने के लिए विकसित किए गए तरीके अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के लिए कितने उपयुक्त हैं।

(ख) जोखिम और निष्पादन से पारिश्रमिक को समायोजित करने के तरीके सामान्य जोखिम प्रबंधन और कॉर्पोरेट अभिशासन ढांचे के अनुरूप होने चाहिएं।

(ग) निष्पादन मानकों और प्रतिफल पैकेजों से उनके संबंध को निष्पादन मापन अवधि की शुरुआत में ही स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कर्मचारी प्रोत्साहन तंत्र को समझते हैं। यह समझते हुए कि कुछ विवेकाधिकार की हमेशा आवश्यकता होगी, बोनस का सामान्य वार्षिक निर्धारण उन नियमों, प्रक्रियाओं और उद्देश्यों पर आधारित होना चाहिए जो पहले से स्पष्ट किया जा चुका हो।

(घ) बैंकों को कर्मचारी के निष्पादन का आकलन करने और प्रत्येक कर्मचारी की विशिष्ट स्थिति के लिए मापन को अनुकूलित करने के लिए वित्तीय और गैर-वित्तीय उपायों के संयोजन का उपयोग करना चाहिए। गुणात्मक कारक (जैसे ज्ञान, कौशल या क्षमताएं) निश्चित ही कुछ गतिविधियों को पहचानने और पुरस्कृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं- खासकर जब ये बैंक के जोखिम प्रबंधन लक्ष्यों को सुदृढ़ करने का काम करते हैं।

(ड) जोखिम समायोजन की प्रकृति और सीमा किस हद तक आवशयक है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि निष्पादन के मापक किस हद तक जोखिमों को माप पाते हैं, लेकिन सभी मामलों में, जोखिम समायोजन के किसी न किसी प्रकारों की आवश्यकता होती है, क्योंकि पारिश्रमिक अक्सर किसी गतिविधि के अंतिम परिणाम से पहले दे दिया जाता है। किया जाने वाला भुगतान, अनुमानित जोखिम (प्रत्याशित), पाए गए जोखिम परिणाम (यथार्थ) तथा प्रत्याशित अनुमान और यथार्थ स्थिति इन दोनों से प्रभावित होना चाहिए।

(च) जोखिम समायोजन में शामिल जोखिमों की प्रकृति और उस कालावधि को ध्यान में रखना होगा जिस में वे उभर कर सामने आ सकते हैं। पारिश्रमिक समायोजन का प्रभाव कर्मचारियों और/ या व्यावसायिक इकाइयों द्वारा किए गए कार्यों और बैंक द्वारा उठाए गए जोखिम के स्तर पर उनके प्रभाव से होना चाहिए।

(छ) पुरस्कार प्रक्रिया की प्रकृति, जो प्रत्येक व्यक्तिगत कर्मचारी के परिवर्तनशील पारिश्रमिक को बोनस पूल और बैंक स्तर पर परिवर्तनशील पारिश्रमिक की कुल राशि के साथ जोड़ती है, एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे बैंकों और पर्यवेक्षकों द्वारा सावधानीपूर्वक देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह सीधे प्रभावित करता है कि कैसे और कब निष्पादन और जोखिम समायोजन का उपयोग किया जाता है अथवा किया जा सकता है।


परिशिष्ट 3

पारिश्रमिक/ प्रतिफल के लिए प्रकटीकरण आवश्यकताएं
गुणात्मक प्रकटीकरण नामांकन और पारिश्रमिक समिति की संघटना/ संरचना और अधिदेश से संबंधित जानकारी।
प्रतिफल प्रक्रियाओं के डिजाइन और संरचना और पारिश्रमिक नीति की प्रमुख विशेषताओं और उद्देश्यों से संबंधित जानकारी।
वर्तमान और भावी जोखिमों को प्रतिफल प्रक्रियाओं में दर्शाए जाने के तरीकों का विवरण। इसमें इन जोखिमों के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रमुख मापकों की प्रकृति और प्रकार को शामिल किया जाना चाहिए।
किसी निष्पादन मापन अवधि के दौरान बैंक द्वारा निष्पादन को पारिश्रमिक के स्तरों के साथ जोड़ने वाले तरीकों का विवरण।
परिवर्तनशील पारिश्रमिक के आस्थगन और वेस्टिंग पर बैंक की नीति का विवरण और वेस्टिंग के पहले और बाद आस्थगित प्रतिफल को समायोजित करने के लिए बैंक की नीति और मानदंडों का विवरण
किसी परिवर्ती पारिश्रमिक के विभिन्न प्रकारों का वर्णन (यानी, नकद और शेयर-लिंक्ड लिखतों के प्रकार) जिनका बैंक उपयोग करता है, और इन विभिन्न प्रकारों का उपयोग करने का औचित्य।
मात्रात्मक प्रकटीकरण

(मात्रात्मक प्रकटीकरण में केवल पूर्णकालिक निदेशकों/ मुख्य कार्यपालक अधिकारियों/ महत्वपूर्ण जोखिम लेने वालों को शामिल करना चाहिए)
वित्तीय वर्ष के दौरान नामांकन और पारिश्रमिक समिति द्वारा आयोजित बैठकों की संख्या और उसके सदस्यों को प्रदत्त प्रतिफल।
• वित्तीय वर्ष के दौरान परिवर्तनशील प्रतिफल परिलब्धि प्राप्त करने वाले कर्मचारियों की संख्या।
• वित्तीय वर्ष के दौरान दिए गए साइन-ऑन / जॉइनिंग बोनस की संख्या और कुल राशि।
• उपार्जित लाभ, यदि कोई हो, के अतिरिक्त अन्य किसी पृथक्करण भुगतान का विवरण।
  • बकाया आस्थगित प्रतिफल की कुल राशि, नकदी, शेयर-लिंक्ड लिखत के सभी प्रकार और अन्य प्रकारों में विभाजित।
• वित्तीय वर्ष में भुगतान किए गए आस्थगित प्रतिफल की कुल राशि।
  नियत और परिवर्तनशील, आस्थगित और गैर-आस्थगित दर्शाते हुए वित्तीय वर्ष के लिए प्रतिफल परिलब्धियों की राशि का अलग-अलग विवरण
  • यथार्थ स्पष्ट रूप से समायोजित और / या अंतर्निहित रूप से समायोजित कुल बकाया आस्थगित और धारित प्रतिफल की राशि।
• यथार्थ स्पष्ट समायोजन के कारण वित्तीय वर्ष के दौरान कटौती की कुल राशि।
• यथार्थ अतर्निहित समायोजन के कारण वित्तीय वर्ष के दौरान कटौती की कुल राशि।
  चिन्हित एमआरटी की संख्या
  • उन मामलों की संख्या जहां मैलस का प्रयोग किया गया है।
• उन मामलों की संख्या जहां क्लॉबैक का प्रयोग किया गया है।
• उन मामलों की संख्या जहां मैलस और क्लॉबैक दोनों का प्रयोग किया गया है।
सामान्य मात्रात्मक प्रकटीकरण पूरे बैंक के लिए माध्य वेतन (सब-स्टाफ को छोड़कर) और माध्य वेतन से प्रत्येक डबल्यूटीडी के वेतन का विचलन

1 यह स्पष्ट किया जाता है कि कैश-लिंक्ड स्टॉक एप्रिसिएशन राइट्स (सीएसएआर) को भी शेयर-लिंक्ड लिखत के रूप में माना जाना है।

2 आनुपातिक आधार से अधिक तेज़ नहीं का अर्थ है - वेस्टिंग को फ्रंटलोड नहीं किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, यदि आस्थगन व्यवस्था तीन साल की है, पहले वर्ष के अंत में कुल दिए गए ईएसओपी का 33.3% से अधिक वेस्ट नहीं होना चाहिए। इसी तरह, दूसरे वर्ष के अंत तक कुल दिए गए ईएसओपी के 33.33% से अधिक वेस्ट नहीं होना चाहिए। इसी तरह, यदि आस्थगन व्यवस्था चार साल की है, तो पहले तीन वर्षों में से प्रत्येक में वेस्ट किए गए ईएसओपी की मात्रा 25% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

3 मालस व्यवस्था के अंतर्गत बैंक को यह अनुमति‍ मि‍लती है कि‍ वह आस्थगि‍त पारि‍श्रमि‍क के संपूर्ण या आंशि‍क राशि का भुगतान न करे । मालस व्यवस्था में पहले सन्निहित (वेस्ट) हो चुके अंश की वापसी की व्यवस्था नहीं है ।

4 जबकि,‍ क्लॉबैक व्यवस्था कर्मचारी और बैंक के बीच एक संवि‍दात्मक व्यवस्था है जि‍समें कर्मचारी इस बात के लि‍ए सहमत होता है कि‍ कुछ परि‍स्थि‍ति‍यों में वह पहले भुगतान कि‍या गया अथवा सन्निहित (वेस्ट) हो चुका पारि‍श्रमि‍क बैंक को लौटा देगा ।

5 प्रतिधारण अवधि: परिवर्तनशील वेतन के रूप में दिये गए लिखतों के सन्निहित (वेस्ट) होने के बाद की अवधि , जिसके दौरान उन्हें बेचा या एक्सेस नहीं किया जा सकता

6 समय समय पर यथासंशोधित दिनांक 1 अप्रैल 2019 का बैंविवि.बीपी.बीसी.सं 32/21.04.018/2018-19 देखें ।

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