निवासी व्यक्तियों के लिए 50,000 अमरीकी डॉलर की उदारीकृत विप्रेषण योजना - आरबीआई - Reserve Bank of India
निवासी व्यक्तियों के लिए 50,000 अमरीकी डॉलर की उदारीकृत विप्रेषण योजना
आरबीआइ/2006-07/216 दिसंबर 20, 2006 सेवा में महोदया/महोदय, निवासी व्यक्तियों के लिए 50,000 अमरीकी डॉलर की उदारीकृत विप्रेषण योजना प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंकों का ध्यान फरवरी 4, 2004 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.64, समय-समय पर यथा संशोधित विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000 (नियम) तथा जनवरी 13, 2003 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.66 की ओर आकर्षित किया जाता है।उपर्युक्त विनियमावली तथा निदेशों के अनुसार -ध कतिपय प्रयोजनों के लिए विप्रेषण सुविधा उपलब्ध न कराने सहित निर्दिष्ट शर्तों के अधीन, किसी निवासी व्यक्ति को किसी चालू अथवा पूंजी खाता लेनदेन अथवा दोनों के समूहित लेनदेन के लिए 25,000 अमरीकी डॉलर की उदारीकृत विप्रेषण योजना (योजना) के अंतर्गत एक कैलण्डर वर्ष में 25,000 अमरीकी डॉलर तक की विप्रेषण की अनुमति है,ध चालू खाता लेनदेन नियमावली के अनुसार
ध एक निवासी व्यक्ति को ऐसे समुद्रपारीय कंपनियों में (क) जो विदेश में मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है तथा (ख) जिसकी भारत में मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किसी भारतीय कंपनी में न्यूनतम 10 प्रतिशत की शेयरधारिता है (निवेश के वर्ष में 1 जनवरी की स्थिति में) निवेश करने की अनुमति है। 2. प्रक्रिया को सरल बनाने तथा विदेशी मुद्रा लेनदेनों में ज्यादा लचीलापन लाने की दृष्टि से, 25,000 अमरीकी डॉलर की उदारीकृत विप्रेषण योजना (योजना) को किसी चालू अथवा पूंजी खाता लेनदेन अथवा दोनों के समझिहत लेनदेनों के लिए 25,000 अमरीकी डॉलर प्रति कैलण्डर वर्ष की सीमा को बढ़ाकर 50,000 अमरीकी डॉलर प्रति वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) कर दिया गया है। इसके अलावा, क्रियाविधि को सरल और कारगर बनाने के लिए यह भी निर्णय लिया गया है किध योजना के अंतर्गत 50,000 अमरीकी डॉलर की सीमा में निवासी व्यक्ति द्वारा उपहार और दान के तौर पर विप्रेषण भी सम्मिलित होगा,ध निवासी व्यक्ति द्वारा समुद्रपारीय कंपनियों में निवेश को 50,000 अमरीकी डॉलर की योजना में शामिल किया जाएगा। ऐसी समुद्रपारीय कंपनियों द्वारा सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों में 10 प्रतिशत की पारस्परिक शेयरधारिता की आवश्यकता को हटा दिया गया है।तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक संशोधित योजना के अंतर्गत किसी निवासी व्यक्ति द्वारा प्रति वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में 50,000 अमरीकी डॉलर के विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं। फरवरी 4, 2004 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.64 और मार्च 18, 2004 की सं.80 में निर्धारित अन्य शर्तें यथावत रहेंगी। 3. इसके अलावा, किसी देश (नेपाल और भूटान से इतर) की एक या उससे अधिक निजी दौरों के लिए घोषण आधार पर एक कैलण्डर वर्ष में 10,000 अमरीकी डॉलर अथवा उसके समकक्ष तक की विदेशी मुद्रा प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा जारी करने की वर्तमान सुविधा स्वतःघोषणा आधार पर उपलब्ध होना जारी रहेगी। तथापि, यह सुविधा अब वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) आधार पर उपलब्ध होगी। 4. मार्च 18, 2004 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.80 में दर्शाए अनुसार योजना के अंतर्गत भारत में परिचालनात्मक तौर पर उपस्थित न रहनेवाली कंपनियों द्वारा जमा आदि के लिए अनुरोध, पर्यवेक्षी चिन्ताओं को बढ़ाता है। इसलिए यह स्पष्ट किया जाता है कि सभी बैंक, भारतीय और विदेशी दोनों, जिनमें भारत में परिचालनात्मक तौर पर उपस्थित न रहनेवाले भी शामिल हैं, भारत में निवासियों से अपने विदेशी/समुद्रपारीय शाखाओं के लिए विदेशी मुद्रा जमा करने अथवा समुद्रपारीय म्यूच्युअल फंडों अथवा अन्य किसी विदेशी वित्तीय सेवा कंपनी के लिए एजेंट के रूप में कार्य करने की योजना का प्रस्ताव रखने के लिए, रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन प्राप्त करें। 5. विप्रेषण के इच्छुक निवासी व्यक्ति संलग्नक-1 में दिए गए संशोधित फार्मेट के अनुसार एक आवेदान-व-घोषणा प्रस्तुत करें। 6. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक रिपोर्टिंग तिमाही के 10 दिन के अंदर संलग्नक-2 में दिए गए फार्मेट में, तिमाही आधार पर, आवेदकों की संख्या और योजना के अंतर्गत विप्रेषित कुल राशि के ब्योरे प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक, विदेशी मुद्रा विभाग, विदेशी निवेश प्रभाग (बाह्य भुगतान अनुभाग), भारतीय रिज़र्व बैंक, केन्द्रीय कार्यालय, मुंबई 400001 को प्रस्तुत करें। विवरण की एक सॉफ्ट प्रति (एक्ज़ेल फार्मेट में) ई-मेल से भी भेजी जाए। 7. (i) विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000 (ii)विदेशी मुद्रा प्रबंध (अनुमत चालू खाता लेनदेन) विनियमावली, 2000 और (iii) विदेशी मुद्रा प्रबंध (किसी विदेशी प्रतिभूति का अंतरण अथवा निर्गम) विनियमावली, 2000 में आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जा रहे हैं। 8. प्राधिकृत व्यापारी - श्रेणी I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत करा दें। 9. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है। भवदीय (सलीम गंगाधरन) |