मास्टर परिपत्र - गारंटियां, सह-स्वीकृतियां और साख पत्र - यूसीबी - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - गारंटियां, सह-स्वीकृतियां और साख पत्र - यूसीबी
आरबीआई/2022-23/06 01 अप्रैल 2022 प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यकारी अधिकारी महोदय/महोदया मास्टर परिपत्र - गारंटियां, सह-स्वीकृतियां और साख पत्र - यूसीबी कृपया उक्त विषय पर 2 नवंबर 2021 का मास्टर परिपत्र विवि. एसटीआर. आरईसी.65/09/27.000/2021-22 देखें (आरबीआई की वेबसाइट /en/web/rbi पर उपलब्ध है)। संलग्न मास्टर परिपत्र में उपर्युक्त विषय पर 31 मार्च 2022 तक जारी अनुदेशों/ दिशानिर्देश का समेकन और अद्यतन किया गया है। भवदीय (मनोरंजन मिश्रा) मास्टर परिपत्र- गारंटियां, सह-स्वीकृतियां और साख पत्र मास्टर परिपत्र गारंटियां जारी करने के कारोबार में निहित जोखिम को देखते हुए प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों (यूसीबी) को प्रतिबंधित सीमा के अंदर ही गारंटियां जारी करनी चाहिए ताकि उनकी वित्तीय स्थिति को हानि न पहुंचे। अत: बैंक अपने गारंटी कारोबार के संबंध में निम्नलिखित परिच्छेदों में बताए गए व्यापक दिशानिर्देशों का पालन करें। (i) सामान्य नियम के अनुसार, बैंक केवल वित्तीय गारंटियां प्रदान करें, निष्पादन गारंटियां नहीं। (ii) तथापि, अनुसूचित बैंक मामले में यथोचित सावधानी बरतते हुए अपने ग्राहक की ओर से निष्पादन गारंटियां जारी कर सकते हैं। यूसीबी के लिए यह वांछनीय होगा कि वे अपनी गारंटियों को अल्पावधि गारंटियों तक ही सीमित रखें। किसी भी स्थिति में गारंटी दस वर्ष से अधिक अवधि के लिए जारी नहीं की जानी चाहिए। गारंटी संबंधी देनदारियों की बकाया राशि किसी भी समय प्रदत्त पूंजी, आरक्षित निधियों और जमाराशियों जैसे बैंक के कुल स्वाधिकृत संसाधनों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। सकल उच्चतम सीमा के अंदर गैर-जमानती गारंटियों की बकाया राशि का अनुपात किसी भी समय बैंक की स्वाधिकृत निधियों (प्रदत्त पूंजी + आरक्षित निधियां) की 25% राशि के बराबर या गारंटियों की कुल राशि के 25% तक, इनमें से जो भी कम हो, सीमित रखा जाना चाहिए। बैंक अधिमान्यत: जमानती गारंटियां ही जारी करें। जमानती गारंटी का मतलब है अस्तियों की जमानत पर दी गई गारंटी (नकदी मार्जिन सहित) जिसका बाजार मूल्य किसी भी समय गारंटी पर आकस्मिक देनदारियों की राशि से कम न हो या वह गारंटी जिसकी केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं और/या बीमा कंपनियों की प्रतिपक्षी गारंटी/गारंटियों द्वारा पूर्णत: जमानत दी गई हो। बैंकों को ग्राहक समूह विशेष और/ या व्यवसाय विशेष के लिए गैर-जमानती गारंटियों की प्रतिबद्धता पर अनावश्यक रुप से ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। बैंक के निदेशक मंडल को किसी भी वैयक्तिक संघटक की ओर से गैर-जमानती गारंटियां जारी करने का अनुपात तय कर देना चाहिए ताकि ये गारंटियां; (ए) बैंक द्वारा किसी भी समय ऐसे ग्राहकों को दी गई गैर-जमानती गारंटियों से संबंधित कुल देयताओं से यथोचित अनुपात से और (बी) बैंक में शेयरधारिता के यथोचित गुणकों से अधिक न हों। 1.1.7 आस्थगित भुगतान गारंटियां (i) बैंकों को आम तौर पर पर्याप्त मूर्त प्रतिभूतियों या केंद्र या राज्य सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों या बीमा कंपनियों और अन्य बैंकों की काउंटर गारंटी द्वारा समर्थित आस्थगित भुगतान गारंटी प्रदान करनी चाहिए। (ii) पूंजीगत आस्तियों के अधिग्रहण के लिए अपने उधारकर्ताओं की ओर से आस्थगित भुगतान वाली गारंटियां जारी करने के इच्छुक बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रस्तावित आस्थगित भुगतानवाली गारंटियों सहित कुल ऋण सुविधाएं निर्धारित ऋण सीमा से अधिक नहीं हो। (iii) बैंकों को चूंकि देय किस्तों के संबंध में निरंतर अंतरालों पर देनदारियों को पूरा करना होता है, इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए उधारकर्ता इकाई पर्याप्त बेशी उप्तादन तैयार करती है, आस्थगित भुगतानवाली गारंटियों के प्रस्तावों की जांच परियोजना की लाभप्रदता/ नकदी प्रवाह को ध्यान में रख कर की जानी चाहिए। पूंजीगत आस्तियों के अधिग्रहण के लिए मीयादी ऋण प्रस्तावों के मूल्यांकन के लिए सामान्यत: जिन मानदंडों का पालन किया जाता है, आस्थगित भुगतानवाली गारंटियां जारी करते समय भी उन्ही मानदंडों को अपनाना चाहिए। 1.2 चयनात्मक ऋण नियंत्रण के अंतर्गत शामिल वस्तुओं के संबंध में गारंटियां जारी करना यूसीबी को गारंटी जारी करने के लिए जमानत के तौर पर गारंटी के अंतर्गत देय राशि की कम से कम आधी राशि के बराबर नकदी मर्जिन राशि लिए बगैर आवश्यक वस्तुओं के आयात के संबंध में देय सीमा शुल्क और/ या आयात शुल्क या अन्य करों का भुगतान करने की गारंटी देने के लिए किसी आयातक की ओर से या उसके लिए किसी कोर्ट या सरकार या अन्य किसी व्यक्ति को गारंटी जारी नहीं करनी चाहिए। "आवश्यक वस्तुओं" शब्दों का अभिप्राय उन वस्तुओं से है जो भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय समय पर विनिर्दिष्ट की जाए। 1.3 गारंटियां जारी करने के बारे में सुरक्षा उपाय वित्तीय गारंटियां जारी करते समय बैंकों को निम्नलिखित सुरक्षा उपायों का पालन करना चाहिए :
जब ऐसी गारंटियां जारी करना अनिवार्य हो तो संबंधित बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्धारित राशि से अधिक गारंटी के प्रलेख, उचित मंजूरी और प्राधिकार प्राप्त करने के बाद, एक अधिकारी द्वारा नहीं बल्कि दो प्राधिकृत अधिकारियों द्वारा संयुक्त रुप से हस्ताक्षरित किए जाते हैं, और जारी की गई ऐसी गारंटियों का उचित रेकार्ड रखा जाता है। उधारकार्ता बैंक द्वारा ऋण प्रस्ताव की सामान्य रुप से समीक्षा की जानी चाहिए जिससे यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रस्ताव निर्धारित मानदंडों और दिशानिर्देशों के अनुरुप है और ऋण सुविधाएं प्रस्ताव के गुण-दोषों से बैंक के आश्वस्त हो जाने के बाद ही दी जाती हैं और दूसरे बैंक की गारंटी की उपलब्धता से प्रस्ताव के मूल्यांकन के स्तर में और उधार देने के वित्तीय अनुशासन में कोई कमी नहीं आती है। 1.4 बैंक गारंटियों के अंतर्गत भुगतान - मामलों का तुरंत निपटान
1.5 निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने में विलंब (i) वित्त मंत्रालय ने सूचित किया है कि राजस्व विभाग, भारत सरकार जैसे कुछ विभागों को विभिन्न कोर्टों द्वारा उनके पक्ष में दिए गए निर्णयों को निष्पादित करने में कठिनाई हो रही हैं क्यों कि बैंकों को जब तक न्यायालयों के निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त नहीं हो जाती वे गारंटियों को नहीं सकार रहे हैं । (ii) इन कठिनाइयों को ध्यान मे रखते हुए बैंक निम्नलिखित क्रियाविधि का पालन करें: (ए) जहां बैंक गारंटी की हकदारी के लिए सरकार द्वारा शुरु की गई कार्यवाही में बैंक एक पक्षकार रहा हो, और अदालत द्वारा मामला सरकार के पक्ष में निर्णित किया गया हो वहां, बैंकों को निर्णय की प्रमाणित प्रति के लिए आग्रह नहीं करना चाहिए क्यों कि निर्णय खुली अदालत में पक्षकारों/ उनके सलाहकारों की उपस्थिति में दिया जाता है और दिया गया निर्णय बैंक को पता भी होता है और निर्णय की एक प्रति न्यायालयों की वेबसाइटों पर उपलब्ध है। (बी) यदि मामले में बैंक एक पक्षकार न हो तो, निबंधक/ उप/ सहायक निबंधक द्वारा प्रमाणित कोर्ट के कार्यवाही आदेश को हस्तारित प्रति जिसे सरकारी कौंसिल द्वारा सत्यप्रति के रुप में सत्यापित किया गया हो, गारंटियों के अंतर्गत प्रतिबध्दताटों को सकारने के लिए पर्याप्त होगा, अलबत्ता, बैंक ने उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कोई अपील करने का निश्चय किया हो । 1.6 सरकारी विभागों के साथ पत्राचार (i) भारत का संविधान बताता है कि भारत संघ से संबंधित सभी तरह की निष्पादक कार्रवाई भारत के राष्ट्रपति के नाम से होंगी। तथापि, भारत सरकार का कारोबार विभिन्न मंत्रालयों/ विभागों के मार्फत चलाया जाता है। इसलिए, गारंटियों जैसे दस्तावेजों में भारत के राष्ट्रपति को इक पक्षकार बताया गया हो, तथापि, संबंधित पत्राचार राष्ट्रपति के साथ नही किया जाना चाहिए, बल्कि संबंधित सरकारी मंत्रालयों/ विभागों के साथ किया जाना चाहिए । (ii) अत: बैंक यह सुनिश्चित करें कि सरकारी विभागों के पक्ष में भारत के राष्ट्रपति के नाम प्रस्तुत गारंटियों से संबंधित कोई भी पत्राचार भारत के राष्ट्रपति को संबोधित न किया जाए जिससे राष्ट्रपति के सचिवालय को असुविधा होती है जिसे टाला जा सकता है । 2.1 बिलों की सह-स्वीकृति में अनियमितता
उपुर्यक्त के परिप्रेक्ष्य में, सभी बैंकों को निम्नलिखित सुरक्षा उपायों पर ध्यान देना चाहिए:
3.1 एलसी सुविधा प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश यूसीबी को साधारणत: उन पक्षकारों के लिए साख-पत्र जारी नहीं करना चाहिए जिन्होंने नाममात्र के लिए बैंक में चालू खाता खोला हुआ है। केवल चालू खाता रखनेवाले उधारकर्ता यदि बेंक से साख-पत्र खोलने का अनुरोध करता है तो बैंकों को उधारकर्ताओं के मौजूदा बैंकरों से अनिवार्यत: उन कारणों का पता लगाना चाहिए कि वे संबंधित उधारकर्ताओं को साखपत्र सुविधा क्यों नही दे रहे हैं। बैंकों को उन बैंकरों से जिनसे उधारकर्ता मूल सीमाएं ले रहे हैं, उधारकर्ताओं के पूर्ववृत्तों, उनकी वित्तीय स्थिति और बिल भुगतान करने की उनकी क्षमता के बारे में पूरी जांच - पड़ताल करने के बाद ही ऐसे पक्षकारों के संबंध में साखपत्र खोलने चाहिए। उन्हें यथोचित मार्जिन भी निर्धारित करनी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो अन्य जमानत भी प्राप्त करनी चाहिए। 3.2 चयनात्मक ऋण नियंत्रणों के अंतर्गत शामिल वस्तुओं के लिए एलसी आवश्यक मदों के आयात के लिए साख-पत्र खोले जाने के लिए बैंकों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। तथापि, बैंकों को अंतर्देशी साख-पत्र खोलने की अनुमति नहीं है, बशर्तेकि यह खंड निहित होनी चाहिए जिससे साख-पत्र के अंतर्गत दूसरे बैंक मीयादी बिलों को भुना सकें। 3.3 साख-पत्र खोलने के लिए सुरक्षा उपाय साख-पत्र खोलने से पहले बैंक यह सुनिश्चित करें कि:
3.4 एलसी के तहत भुगतान – दावों का तुरंत निपटान (i) ऐसी कुछ घटनाएं हुई हैं जहां बैंक के अधिकारियों द्वारा अनधिकृत रुप से साख-पत्र खोले गए हैं। कुछेक मामलों में जारीकर्ता अधिकारियों द्वारा साख-पत्र लेनदेनों को शाखा की बहियों में दर्ज नहीं किया गया जब कि कुछ अन्य मामलों में जारी किए गए साख-पत्रों की राशि इस प्रयोजन के लिए अधिकारियों को दी गई शक्तियों से काफी अधिक थी। बाद में जब बैंकों को साख-पत्रों के कपटपूर्ण ढंग से जारी किए जाने की बात पता चली तो उन्होंने अपनी देयताओं को इस आधार पर नकार दिया कि ये लेनदेन लाभार्थी और ग्राहक के बीच षडयंत्र/ मिलीभगत से हुए हैं। (ii) यह समझ लिया जाए कि साख-पत्र के अंतर्गत जारी बिल सकारे नहीं जाने से साख-पत्रों और संबंधित बिलों की हैसियत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिन्हें कि भुगतान का स्वीकृत साधन मान लिया गया है। इससे बैंकें के माध्यम से की जानेवाली संपूर्ण भुगतान प्रणाली की विश्वसनीयता प्रभावित होगी और बैंकों की छवि खराब होगी। इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि बैंक साख पत्र के अंतर्गत अपनी प्रतिबध्दताओं को पूरा करें और इस संबंध में किसी शिकायत का मौका न देते हुए उचित रूप से भुगतान करें। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि बैंक, यदि अपराधिक षडयंत्र का मामला हो तो, संबंधित अधिकारियों के साथ-साथ उन ग्राहकों जिनकी ओर से साखपत्र जारी किये गये थे और साख पत्र के लाभार्थियों के विरुध्द यथोचित कार्रवाई करें। 4.1 गैर –निधिक आधारित सीमाओं पर ऋण एक्सपोज़र मानदंड और सांविधिक/ अन्य प्रतिबंध (i) शहरी सहकारी बैंकों को चाहिए कि वे “एक्सपोजर मानदंडों और सांविधिक/अन्य प्रतिबंधों” पर मास्टर परिपत्र में दिए गए अनुसार गैर-निधिक सीमाओं के लिए ऋण सीमा संबंधी मानदंडों और सांविधिक/ अन्य प्रतिबंधों (उदा. साख- पत्र, गांरटियां, सह-स्वीकृतियां आदि) और आरबीआई द्वारा समय-समय पर जारी अन्य मानदंडों का सख्ती से पालन करें। (ii) एक्सपोजर की उच्चतम सीमा और अन्य प्रतिबंध विशेष रूप से निम्न के लिए निर्धारित हैं क) गैर-निधि आधारित सीमाएं सहित कुल ऋण एक्सपोजर, ख) गैर-जमानती गारंटियां, ग) बैंक निदेशकों को दिए गए अग्रिम, घ) निदेशकों के रिश्तेदारों को दिए गए ऋण और अग्रिम, ङ) नाममात्र सदस्यों के लिए अग्रिम का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए 4.2 बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुलन पत्र से इतर लेनदेनों के ब्योरों को दर्ज करने की प्रणाली का सभी शाखाओं द्वारा यथोचित पालन किया जाता है। इन अभिलेखों का आवधिक तौर पर मिलान किया जाना चाहिए और आंतरिक निरीक्षक को उसका सत्यापन करके विवेचनात्मक टिप्पणी प्रस्तुत करनी चाहिए। 4.3 बैंक यह सुनिश्चित करें कि अनधिकृत साख-पत्र जारी नहीं किए गए हैं। 4.4 बैंकों को अपने शाखा कर्मचारियों के लिए उन ऋण खातों के संबंध में स्पष्ट निर्देश देना चाहिए जहां ऐसी गैर-निधिक सुविधाएं बैंक के एलसी के तहत कवर किए गए बिलों के हस्तांतरण के कारण या बैंक द्वारा जारी गारंटी के आह्वान के कारण वित्त पोषित हो जाती हैं। बैंकों को यह सुनिश्चित करने के लिए कि उन खातों की जहां गैर-निधिक सीमाएं "निधिक" सीमाएं बन जाती है, बारीकी से निगरानी की जाती है और शामिल किए गए बिलों के अंतर्गत सम्मिलित माल, विशेषत: उन मामलों में जहां बदनीयत की आशंका हो, बैंक के नियंत्रण/ दृष्टिबंधन में ही रहता है । आयात साख-पत्र के अंतर्गत शामिल माल के मामले में बैंकों को आयात बिल की कस्टम कार्यालय की प्रति को तुरंत प्रस्तुत करना सुनिश्चित करना चाहिए और विदेशी मुद्रा नियंत्रण विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में निर्धारित किए गए अनुसार कार्रवाई करनी चाहिए। 4.5 कई बैंक उधारकर्ताओं की साख पत्र और आह्वानकृत गारंटियों की देय राशियों को एक अलग खाते में रखने की प्रथा अपना रहे हैं जो कि मंजूर की गई नियमित सुविधा नहीं है। फलस्वरुप, ये राशियां उधारकार्त के प्रधान परिचालन खाते में दिखाई नहीं देती हैं। यह प्रथा एनपीए का पता लागने के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों को लागू करने में कठिनाई खड़ी कर देती हैं। अत: यह सूचित किया जाता है कि साख-पत्रों या आह्वानकृत गारंटियों से उत्पन्न ऋणों को यदि किसी अलग खाते में रखा जाता है तो उस खाते में बकाया शेष को भी आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंडों को लागू करने के प्रयोजन के लिए उधारकर्ता के प्रधान परिचालन खाते का एक भाग माना जाना चाहिए। 4.6 बैंकों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अन्य बैंकों से पहले से प्राप्त ऋण सुविधाओं के बारे में उधारकर्ताओं से घोषणा प्राप्त करके कई बैंकों से ऋण सुविधाओं का आनंद लेने वाले उधारकर्ताओं के बारे में अपनी जानकारी को मजबूत करें। विद्यमान उधारकर्ताओं के मामले में, सभी बैंकों को अपने ऐसे उधारकर्ताओं से घोषणा प्राप्त करनी चाहिए जो रु.5.00 करोड़ रुपये और उससे अधिक की स्वीकृत सीमा का उपभोग कर रहे हैं या बैंकों को यह पता है कि उनके उधारकर्ता अन्य बैंकों से ऋण सुविधा प्राप्त कर रहे हैं और बैंकों को अन्य बैंकों के साथ सूचना के आदान-प्रदान की प्रणाली आरंभ करनी चाहिए। इसके अलावा बैंकों को अन्य बैंकों के साथ उधारकर्ताओं के खातों के परिचालन के संबंध में कम-से-कम तिमाही अंतराल पर सूचना का आदान-प्रदान करना चाहिए। बैंकों को सीआरआईएलसी या ऋण सूचना कंपनियों से प्राप्त क्रेडिट रिपोर्टों का भी अधिक उपयोग करना चाहिए। बैंकों को चाहिए कि वे ऋण करारों में ऋण सूचना के आदान-प्रदान के संबंध में उपयुक्त खंड शामिल करें ताकि गोपनीयता संबंधी मुद्दों का समाधान हो सके। बैंकों को किसी प्रोफेशनल से, अधिमानतः किसी कंपनी सेक्रेटरी, सनदी लेखाकार या लागत लेखाकार से प्रचलित विभिन्न सांविधिक अपेक्षाओं के अनुपालन के संबंध में नियमित प्रमाणन प्राप्त करना चाहिए। 9 अप्रैल 2009 के हमारे परिपत्र शबैंवि.पीसीबी.सं.59/13.05.000/2008-09 के साथ पठित 21 जनवरी 2009 के परिपत्र सं शबैंवि.पीसीबी.सं.36/13.05.000/2008-09 में उधारकर्ता से जानकारी प्राप्त करने के लिए, बैंकों के बीच सूचना के आदान-प्रदान के लिए तथा प्रोफेशनल से प्रमाणन प्राप्त करने के लिए फॉर्मेट प्रस्तुत किए गए हैं। 4.7 गारंटी, सह-स्वीकृति, एलसी आदि के रूप में प्रतिबद्धताओं सहित प्रत्येक वित्तीय लेनदेन में बैंकों को विभिन्न जोखिमों का सामना करना पड़ता है। शहरी सहकारी बैंकों के प्रबंधन को अपने जमाकर्ताओं तथा हितधारियों के हित में सुदृढ़ जोखिम प्रबंधन प्रणाली के आधार पर अपने कारोबार के निर्णय लेने चाहिए। अत: शहरी सहकारी बैंकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे प्रभावी आस्ति- देयता प्रबंधन (एएलएम) प्रणाली अपनाए ताकि तरलता, ब्याजदर तथा मुद्रा जोखिम से संबंधित समस्याओं का सामना कर सके। बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी एएलएम संबंधी दिशानिर्देशों का नियमित रूप से पालन करना चाहिए। अ. मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
बी. उन परिपत्रों की सूची जिनसे गारंटियों, सह-स्वीकृतियों और साख-पत्रों से संबन्धित अनुदेशों को मास्टर परिपत्र में समेकित किया गया है।
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