प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण
भारिबैं/2014-15/573 23 अप्रैल 2015 अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक / महोदय / महोदया, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधार संबंधी वर्तमान दिशा-निर्देशों की पुनः समीक्षा करने के लिए जुलाई 2014 में आंतरिक कार्यकारी दल (आईडब्ल्यूजी) गठित किया गया था। जनता से टिप्पणियां पाने हेतु उक्तदल की रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन पर रखा गया था। उक्तदल की सिफारिशों की भारत सरकार, बैंकों एवं अन्य स्टेकधारियों से प्राप्त टिप्पणियों/सुझावों के परिप्रेक्ष्य में जांच की गई और प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार - लक्ष्य और वर्गीकरण पर 1 जुलाई 2014 के मास्टर परिपत्र ग्राआऋवि.केंका.प्लान.बीसी.10/04.09.01/2014-15 में उल्लिखित दिशा-निर्देशों के अधिक्रमण में संशोधित दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे हैं। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएं निम्नानुसार हैं : (i) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की श्रेणियां: प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में वर्तमान श्रेणियों के अलावा मध्यम उद्यम, सामाजिक बुनियादी संरचना और नवीकरणीय ऊर्जा का समावेश होगा। (ii) कृषि : प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कृषि के बीच का अंतर समाप्त किया गया है। (iii) लघु और सीमांत किसान : कृषि के अंतर्गत लघु और सीमांत किसानों के लिए एएनबीसी के 8 प्रतिशत अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो, का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसे चरणबद्ध रूप में प्राप्त करना है अर्थात मार्च 2016 तक 7 प्रतिशत और मार्च 2017 तक 8 प्रतिशत। (iv) माइक्रो उद्यम : माइक्रो उद्यमों के लिए एएनबीसी के 7.5 प्रतिशत अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो, का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसे चरणबद्ध रूप में प्राप्त करना है अर्थात मार्च 2016 तक 7 प्रतिशत और मार्च 2017 तक 7.5 प्रतिशत। (v) कमजोर वर्गों के लिए एएनबीसी के 10 प्रतिशत अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो, के लक्ष्य में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। (vi) विदेशी बैंकों के लिए लक्ष्य : ऐसे विदेशी बैंक जिनकी 20 और उससे अधिक शाखाएं हैं, को पहले से ही प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य और कृषि एवं कमज़ोर वर्गों के लिए उप-लक्ष्य दिए गए हैं जिन्हें उनके द्वारा प्रस्तुत तथा रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित कार्य योजनाओं के अनुसार 31 मार्च 2018 तक प्राप्त करना है। लघु और सीमांत किसानों तथा माइक्रो उद्यमों के लिए उप-लक्ष्य वर्ष 2017 में समीक्षा किए जाने के बाद 2018 के पश्चात लागू किए जाएंगे। ऐसे विदेशी बैंक जिनकी 20 से कम शाखाएं हैं को वर्ष 2019-20 तक अन्य बैंकों के समान एएनबीसी के 40 प्रतिशत अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो का कुल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य लागू होगा तथा इन बैंकों के लिए उप-लक्ष्य यदि 2020 के बाद लागू करने होंगे तो उस पर यथासमय निर्णय लिया जाएगा। (vii) खाद्यान्न और एग्रो प्रसंस्करण यूनिटों को दिए गए बैंक ऋण कृषि का भाग होंगे। (viii) निर्यात ऋण : ऐसे विदेशी बैंक जिनकी 20 से कम शाखाएं हैं के लिए एएनबीसी के 32 प्रतिशत का निर्यात ऋण अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र का भाग होगा। अन्य बैंकों के लिए ऐसे वृद्धिशील निर्यात ऋण जो पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख को विद्यमान निर्यात ऋण से अधिक है की गणना एएनबीसी के 2 प्रतिशत अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो, तक की जाएगी । (ix) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत समाविष्ट करने योग्य आवास ऋणों और एमएफआई ऋण सीमाओं में संशोधन किया गया है। (x) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत प्राप्त न किए गए लक्ष्यों का मूल्यांकन इस समय वार्षिक आधार पर किया जाता है जिसे 2016-17 से आगे संबंधित वर्ष के अंत में तिमाही औसत आधार पर किया जाएगा। संशोधित दिशा-निर्देश इस परिपत्र की तारीख से प्रभावी हुए हैं। इस तारीख से पहले जारी दिशा-निर्देशों के अधीन स्वीकृत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के ऋण उनकी चुकौती / अवधि पूर्ण होने / नवीकरण तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाते रहेंगे। भवदीय (ए. उदगाता) I. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत श्रेणियां
उपर्युक्त श्रेणियों के अंतर्गत पात्र गतिविधियों के ब्योरे पैरा III में निर्दिष्ट किए गए हैं। II. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए लक्ष्य / उप-लक्ष्य (i) भारत में कार्यरत सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए प्राथमिकता- प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत निर्धारित लक्ष्य और उप-लक्ष्य नीचे दिए गए हैं :
(ii) ऐसे विदेशी बैंक जिनकी 20 से कम शाखाएं हैं को निम्नानुसार चरणबद्ध रूप में 40 प्रतिशत का कुल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य प्राप्त करना है :-
वर्ष 2016-17 से 2019-20 तक प्रति वर्ष एएनबीसी के 2 प्रतिशत का अतिरिक्त प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने का लक्ष्य निर्यात से इतर अन्य क्षेत्रों को उधार दे कर प्राप्त करना है। इन बैंकों के लिए उप-लक्ष्य यदि 2020 के बाद लागू करने होंगे तो उस पर यथासमय निर्णय लिया जाएगा। (iii) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/उप-लक्ष्यों की प्राप्ति की गणना पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख को एएनबीसी अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो, के आधार पर की जाएगी। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के प्रयोजन के लिए एएनबीसी से आशय है भारत में बकाया बैंक ऋण [भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (2) के अंतर्गत फार्म ‘ए’ की मद सं.VI में यथा निर्धारित़] में से घटाए गए रिज़र्व बैंक और अन्य अनुमोदित वित्तीय संस्थाओं के पास पुन: भुनाए गए बिल अधिक परिपक्वता के लिए धारित (एचटीएम) श्रेणी के अंतर्गत अनुमत गैर एसएलआर बांडों/डिबेंचरों अधिक ऐसे अन्य श्रेणियों में किए गए निवेश जो प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के भाग के रूप में माने जाने के पात्र हों (अर्थात प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश) को जोड़ा जाए। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्य/उप-लक्ष्यों को प्राप्त न करने के बदले में आरआईडीएफ और नाबार्ड, एनएचबी और सिडबी के पास रखी अन्य निधियों के अंतर्गत बकाया जमाराशियां एएनबीसी का भाग बनेंगी। रिजर्व बैंक के 31 जनवरी 2014 के परिपत्र डीबीओडी.सं.आरईटी.बीसी.93/12.01.001/2013-14 के साथ पठित 14 अगस्त 2013 के परिपत्र डीबीओडी सं.आरईटी.बीसी.36/12.01.001/2013-14 और 6 फरवरी 2014 को जारी डीबीओडी मेलबाक्स स्पष्टीकरण के अनुसार सीआरआर/ एसएलआर अपेक्षाओं से छूट प्राप्त वृद्धिशील एफसीएनआर (बी) / एनआरई जमाराशियां जिनके आधार पर भारत में अग्रिम दिए गए हैं, को उनकी चुकौती किए जाने तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्यों की गणना के लिए एएनबीसी से छोड दिया जाएगा। रिज़र्व बैंक के 15 जुलाई 2014 के परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.25/08.12.014/2014-15 के अनुसार बुनियादी संरचना और किफायती आवास के लिए दीर्घावधि बाण्ड जारी करने के कारण छूट के लिए पात्र राशि को भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्यों की गणना के लिए एएनबीसी से छोड दिया जाएगा। तुलनपत्र से इतर एक्सपोजरों के सममूल्य राशि के ऋण की गणना के लिए बैंक हमारे बैंक के बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा एक्सपोजर मानदंडों पर जारी मास्टर परिपत्र से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। समायोजित निवल बैंक ऋण (एनबीसी) की गणना
* केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की गणना के लिए। बैंकों को चाहिए कि वे एनबीसी से प्रावधान, उपचित ब्याज, आदि जैसी किसी राशि को न घटाए / न निवल करें। यह देखा गया है कि कुछ बैंक उपर्युक्त प्रकार से बैंक ऋण की रिपोर्टिंग में कारपोरेट / प्रधान कार्यालय स्तर पर विवेकसम्मत बट्टे खाते डाली गई राशि को घटाते हैं। ऐसे मामलों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और अन्य सभी उप क्षेत्रों को बैंक ऋण जो इस प्रकार बट्टे खाते डाला गया हो, को भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और उप-लक्ष्य की प्राप्ति में से श्रेणी-वार घटाया जाना चाहिए। सभी प्रकार के ऋण, निवेश अथवा ऐसी अन्य मदें जिन्हें प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य / उप-लक्ष्य के अंतर्गत प्राप्ति के लिए पात्र माना गया हो, समायोजित निवल बैंक ऋण का भी एक भाग होना चाहिए। III प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत पात्र श्रेणियों का विवरण 1. कृषि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कृषि के बीच का अंतर समाप्त किया गया है। इसके स्थान पर कृषि क्षेत्र को उधार को पुन: परिभाषित किया गया है ताकि उसमें (i) कृषि ऋण (जिसमें किसानों को अल्पावधि फसल ऋण और मध्यावधि / दीर्घावधि ऋण शामिल होगा) (ii) कृषि बुनियादी संरचना और (iii) संबद्ध गतिविधियों को शामिल किया जा सके। तीन उप श्रेणियों के अंतर्गत पात्र क्रियाकलापों की सूची नीचे दी गई है :
7 प्रतिशत / 8 प्रतिशत लक्ष्य की गणना के लिए छोटे और सीमांत किसानों में निम्नलिखित शामिल होंगे :- - एक हेक्टेयर तक के भूधारक किसान सीमांत किसान कृषक माने जाते हैं। एक हेक्टेयर से अधिक परंतु 2 हेक्टेयर तक के भूधारक किसान छोटे किसान के रूप में माने जाते हैं। - भूमिहीन कृषि श्रमिक, काश्तकार, मौखिक पट्टेदार तथा बंटाईदार। - स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) या संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) अर्थात कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े अलग-अलग छोटे और सीमांत किसानों के समूहों को ऋण, बशर्ते बैंक ऐसे ऋणों का अलग से ब्योरा रखते हों। - अलग-अलग किसानों की कृषक उत्पादक कंपनियों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी किसानों की सहकारी संस्थाओं को ऋण, जहां छोटे और सीमांत किसानों की सदस्यता संख्या की दृष्टि से 75 प्रतिशत से कम न हो और जिनकी भू-धारिता का शेयर कुल भू-धारिता के 75 प्रतिशत से कम न हो। 2. माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) 2.1. सूक्ष्म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा 9 सितम्बर 2006 के एस.ओ.1642(ई) द्वारा अधिसूचित प्रकार से विनिर्माण / सेवा उद्यम के लिए संयंत्र और मशीनरी/उपकरणों में निवेश की सीमाएं निम्नानुसार हैं :
विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों के माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों को दिए जानेवाले बैंक ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत निम्नानुसार वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे । 2.2. विनिर्माण उद्यम उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट और सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित प्रकार से किसी उद्योग के लिए विनिर्माण या वस्तुओं के उत्पादन में लगी माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम संस्थाएं। विनिर्माण उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी में निवेश के अनुसार परिभाषित किया गया है। 2.3. सेवा उद्यम एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित और सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे माइक्रो और लघु उद्यमों को प्रति यूनिट ₹ 5 करोड़ और मध्यम उद्यमों को ₹ 10 करोड़ तक का बैंक ऋण। 2.4. खादी और ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआई) खादी और ग्राम उद्योग (केवीआई) क्षेत्र की इकाइयों को दिए गए सभी ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत माइक्रो उद्योगों हेतु नियत 7 प्रतिशत/ 7.5 प्रतिशत के उप-लक्ष्य के अधीन वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे। 2.5. एमएसएमई को अन्य वित्त (i) काश्तकारों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादन के विपणन के विकेंद्रीकृत सेक्टर को सहायता प्रदान करने में निहित संस्थाओं को ऋण। (ii) विकेंद्रित सेक्टर अर्थात काश्तकार, ग्राम और कुटीर उद्योग के उत्पादकों की सहकारी समितियों को ऋण। (iii) एमएफआई को आगे इस परिपत्र के पैरा IX में निर्दिष्ट शर्तों के अनुसार एमएसएमई सेक्टर को ऋण देने के लिए बैंकों द्वारा स्वीकृत ऋण। (iv) सामान्य क्रेडिट कार्ड (वर्तमान में प्रचलित और व्यक्तियों की कृषि से इतर उद्यमीय क्रेडिट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले काश्तकार क्रेडिट कार्ड, लघु उद्यमी कार्ड, स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड, तथा बुनकर कार्ड आदि सहित) के अंतर्गत बकाया ऋण। (v) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण सिडबी के पास बकाया जमाराशियां। 2.6. इस बात को ध्यान में रखते हुए कि एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 में माइक्रो उद्यमों की परिभाषा के अधीन किसी उप-श्रेणी का कोई प्रावधान नहीं है और यह कि माइक्रो उद्यमों को उधार देने का उप-लक्ष्य निर्धारित किया गया है, माइक्रो उद्यमों की परिभाषा के अंतर्गत प्रचलित उप-वर्गीकरण के वर्तमान दिशा-निर्देश समाप्त किए गए हैं। 2.7. यह सुनिश्चित करने के लिए कि एमएसएमई केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की स्थिति के लिए पात्र बने रहने हेतु लघु और मध्यम उद्यम इकाई नहीं रहती है, एमएसएमई यूनिट को संबंधित एमएसएमई श्रेणी से अधिक विकसित होने के बाद तीन वर्षों तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार का लाभ मिलना जारी रहेगा। 3. निर्यात ऋण नीचे दिए गए विवरणों के अनुसार दिया गया निर्यात ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के रुप में वर्गीकृत किया जाएगा।
निर्यात ऋण में हमारे बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा रुपया/ विदेशी मुद्रा निर्यात ऋण और निर्यातकों को ग्राहक सेवा पर जारी मास्टर परिपत्र में परिभाषित किए गए अनुसार पोतलदान-पूर्व और पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण (तुलन पत्र से इतर मदों को छोड़कर) शामिल है। 4. शिक्षण व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित शिक्षा के प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों को ₹ 10 लाख तक का ऋण चाहे स्वीकृत राशि कुछ भी हो, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए पात्र माना जाएगा। 5. आवास (i) प्रति परिवार निवासी यूनिट की खरीद / निर्माण करने के लिए व्यक्तियों को महानगरीय केंद्रों (दस लाख और उससे अधिक की आबादी वाले) में ₹ 28 लाख तक के ऋण और अन्य केंद्रों में ₹ 20 लाख तक के ऋण बशर्ते निवासी यूनिट की समग्र सीमा महानगरीय केंद्रों और अन्य केंद्रों में क्रमश: ₹ 35 लाख और ₹ 25 लाख से अधिक न हो। बैंक के अपने कर्मचारी को स्वीकृत ऋण को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा। चूंकि ऐसे आवास ऋण जो दीर्घावधि बांड से समर्थित होते हैं को एएनबीसी से छूट प्राप्त हैं, बैंकों को या तो व्यक्तियों को महानगरीय केंद्रों में ₹ 28 लाख तक के आवास ऋण और अन्य केंद्रों में ₹ 20 लाख तक के आवास ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत शामिल करने चाहिए अथवा एएनबीसी से छूट का लाभ लेना चाहिए परंतु दोनों की अनुमति नहीं होगी। (ii) परिवारों के क्षतिग्रस्त निवासी यूनिटों की मरम्मत के लिए महानगरीय केंद्रों में ₹ 5 लाख तक और अन्य केंद्रों में ₹ 2 लाख तक का ऋण। (iii) किसी सरकारी एजेंसी को निवासी यूनिटों के निर्माण अथवा गंदी बस्ती हटाने और गंदी बस्ती में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए अधिकतम सीमा ₹ 10 लाख प्रति निवास यूनिट की शर्त पर बैंक ऋण। (iv) केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और निम्न आय समूह के लोगों के लिए मकान बनवाने के प्रयोजन संबंधी आवास परियोजनाओं हेतु जिनकी कुल लागत प्रति निवासी यूनिट ₹ 10 लाख से अधिक नहीं है, बैंकों द्वारा स्वीकृत ऋण। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और निम्न आय समूह के लोगों की पहचान के प्रयोजन के लिए वार्षिक ₹ 2 लाख की पारिवारिक आय सीमा निर्धारित है, चाहे स्थान कुछ भी क्यों न हो। (v) एनएचबी द्वारा उनके पुनर्वित्त के लिए अनुमोदित आवास वित्त कंपनी (एचएफसी) को आगे अलग-अलग निवासी यूनिटों की खरीद / निर्माण / पुन: निर्माण अथवा गंदी बस्ती हटाने और गंदी बस्ती में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए ऋण देने के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 10 लाख की सकल ऋण सीमा की शर्त पर दिए गए बैंक ऋण। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण के अंतर्गत एचएफसी को ऋण की पात्रता निरंतर आधार पर अलग-अलग बैंकों के कुल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार के पांच प्रतिशत तक सीमित है। बैंक ऋणों की समाप्ति अवधि एचएफसी द्वारा दिए जानेवाले ऋणों की औसत परिपक्वता के साथ-साथ समाप्त होनेवाली होनी चाहिए। बैंकों को आधारभूत संविभाग के उधारकर्ता वार आवश्यक ब्योरे बनाए रखने चाहिए। (vi) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण एनएचबी के पास रखी बकाया जमाराशियां। 6. सामाजिक बुनियादी संरचना टियर II से टियर VI के केंद्रों में स्कूल, स्वास्थ्य रक्षा सुविधाएं, पेयजल सुविधाएं और स्वच्छता सुविधाओं हेतु सामाजिक बुनियादी संरचना के निर्माण के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 5 करोड़ की सीमा तक के बैंक ऋण। 7. नवीकरणीय ऊर्जा सौर आधारित बिजली जनित्र, बायो मास आधारित बिजली जनित्र, पवन मिल, माइक्रो-हैडल संयंत्र और रास्ते पर बत्ती लगाने की प्रणाली और सुदूर गांव में विद्युतिकरण जैसे गैर पारंपरिक ऊर्जा आधारित सार्वजनिक उपयोग के प्रयोजन के लिए उधारकर्ताओं को ₹ 15 करोड़ की सीमा तक के बैंक ऋण। अलग-अलग परिवारों को प्रति उधारकर्ता के लिए ₹ 10 लाख की ऋण सीमा होगी। 8. अन्य 8.1 बैंकों द्वारा व्यक्तियों और उनके एसएचजी/ जेएलजी को सीधे दिए जानेवाले प्रति उधारकर्ता ₹ 50,000/- से अनधिक के ऋण, बशर्ते उधारकर्ता की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 100,000/- से अनधिक हो और गैर-ग्रामीण क्षेत्रों में यह ₹ 1,60,000/- से अधिक न हो। 8.2 आपदाग्रस्त व्यक्तियों (पहले ही III (1.1) क (v) के अंतर्गत शामिल किसानों को छोड़कर) को उनके गैर संस्थागत ऋणदाताओं के कर्जं की पूर्व अदायगी के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 100,000/- से अनधिक के ऋण। 8.3 प्रधान मंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) खातों के अंतर्गत बैंकों द्वारा प्रदत्त ₹ 5,000/- तक के ओवरड्राफ्ट, बशर्ते उधारकर्ता की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 100,000/- और गैर ग्रामीण क्षेत्रों में यह ₹ 1,60,000/- से अधिक न हो। 8.4 अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठनों को इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति और/या उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत ऋण। IV. कमज़ोर वर्ग निम्नलिखित उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले प्राथमिताकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण कमज़ोर वर्गो की श्रेणी के अंतर्गत शामिल हैं :
V. बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश (i) बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश, जो ‘अन्य’ श्रेणी को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों के ऋण का द्योतक हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत निहित आस्तियों के आधार पर वर्गीकरण के लिए पात्र है बशर्ते: (क) बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियां मूलत: बनायी गई हैं और वे प्रतिभूतिकरण के पहले प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत जाने की पात्र हैं और प्रतिभूतिकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों को पूरा करती हैं। (ख) मूल संस्था द्वारा अंतिम उधारकर्ता से लिया जानेवाला सर्वसमावेशक ब्याज निवेशक बैंक की आधार दर और वार्षिक 8 प्रतिशत से अधिक न हो। एमएफआई द्वारा मूलत: निर्मित प्रतिभूतिकृत आस्तियों में ऐसे निवेश जो इस परिपत्र के पैरा IX में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं, इस उच्चतम ब्याज से छूट प्राप्त हैं क्योंकि मार्जिन और ब्याज दर पर अलग से उच्चतम सीमाएं हैं। ii) एनबीएफसी द्वारा मूलत: निर्मित प्रतिभूतिकृत आस्तियों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश जिनमें निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषण की जमानत पर होती हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र स्थिति के लिए पात्र नहीं हैं । VI. सीधे एसाइनमेंट / आउटराइट खरीद के माध्यम से आस्तियों का अंतरण i) बैंकों द्वारा एसाइनमेंट/आस्तियों के समूह की आउटराइट खरीद जो 'अन्य' श्रेणी को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत ऋणों की द्योतक है, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने की पात्र होगी, बशर्ते : (क) आस्तियां बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा मूलत: निर्मित हों और वे खरीद से पहले प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने की पात्र हैं और आउटराइट खरीद / एसाइनमेंट के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों को पूरा करती हैं। (ख) इस प्रकार खरीदी जाने वाली पात्र ऋण आस्तियों का निपटान चुकौती को छोड़कर किसी अन्य रूप से नहीं किया जाना चाहिए। (ग) मूल संस्था द्वारा अंतिम उधारकर्ता से लिया जाने वाला सर्वसमावेशक ब्याज खरीदार बैंक की आधार दर और वार्षिक 8 प्रतिशत से अधिक न हो। एमएफआई से पात्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के एसाइनमेंट / आउटराइट खरीद जो इस परिपत्र के पैरा IX में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं, इस उच्चतम ब्याज से छूट प्राप्त हैं क्योंकि मार्जिन और ब्याज दर पर अलग से उच्चतम सीमाएं हैं । ii) बैंकों / वित्तीय संस्थाओं से प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत करने के लिए ऋण आस्तियों की आउटराइट खरीद करने पर बैंक को अंतिम प्राथमिकता-प्राप्त उधारकर्ता को वास्तविक रूप में वितरित सांकेतिक राशि की सूचना देनी चाहिए और न कि विक्रेता को अदा की गई प्रीमियम राशि की। iii) बैंकों द्वारा एनबीएफसी के साथ किए जाने वाले क्रय / एसाइनमेंट / निवेश लेनदेन जिसमें निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषणों की जमानत पर लिए गए ऋण हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र स्थिति के लिए पात्र नहीं हैं । VII. अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र बैंकों द्वारा जोखिम शेयरिंग आधार पर खरीदे गए अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र (आईबीपीसी) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे बशर्तें, निहित आस्तियां प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने की पात्र हों और बैंक आईबीपीसी पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों का पालन करते हों। VIII. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र बैंकों द्वारा खरीदे गए बकाया प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र (पीएसएलसी) (इस संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिशा-निर्देश जारी किए जाने के बाद) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे बशर्तें, आस्तियां बैंकों द्वारा मूलत: जारी की गई हों, और प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र हों और प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों की पूर्ति करते हों। IX. माइक्रो फाइनांस संस्थाओं (एमएफआई) को आगे उधार दिए जाने हेतु बैंक ऋण (क) व्यक्तियों तथा स्व-सहायता समूहों / संयुक्त देयता समूहों के सदस्यों को भी आगे उधार दिए जाने हेतु माइक्रो फाइनांस संस्थाओं (एमएफआई) को दिया गया बैंक ऋण संबंधित श्रेणियों अर्थात कृषि, माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम एवं अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में 'अन्य' श्रेणी में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिम के रूप में वर्गीकृत किए जाने का पात्र होगा। परंतु शर्त यह है कि उक्त माइक्रो फाइनांस संस्था की कुल आस्तियों (नकदी, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के पास शेष राशियों, सरकारी प्रतिभूतियों और मुद्रा बाजार के लिखतों से भिन्न) में "अर्हक स्वरूप की आस्तियाँ" 85 प्रतिशत से कम न हों। इसके अतिरिक्त आय सृजन के कार्यकलाप के लिए प्रदान की गई सकल ऋण राशि, माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा दिए गए कुल ऋण के 50 प्रतिशत से कम न हो। (ख) माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा वितरित वह ऋण "अर्हक आस्ति" होगा, जो निम्नलिखित मानदण्डों को पूरा करता हो : (i) ऋण किसी ऐसे उधारकर्ता को दिया गया हो, जिसकी ग्रामीण क्षेत्र में पारिवारिक वार्षिक आय ₹ 1,00,000/- से अधिक न हो जबकि गैर ग्रामीण क्षेत्र में वह ₹ 1,60,000/- से अधिक नहीं होनी चाहिए। (ii) पहले दौर में ऋण ₹ 60,000 से अधिक न हो और बाद के दौर में ₹ 1,00,000/- से अधिक न हो। (iii) उधारकर्ता की कुल ऋणग्रस्तता ₹ 1,00,000/- से अधिक न हो। (iv) यदि ऋण राशि ₹ 15,000/- से अधिक हो तो उधार लेने वाले को बिना दण्ड के पूर्व-भुगतान करने केअधिकार के साथ, ऋण की अवधि 24 महीने से कम न हो। (v) ऋण बिना कोलेटरल (संपार्श्विक जमानत) का हो। (vi) उधारकर्ता की इच्छानुसार ऋण साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक किस्तों में चुकौतीयोग्य हो। (ग) साथ ही, इन ऋणों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के रूप में वर्गीकृत किए जाने हेतु पात्र होने के लिए बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि एमएफआई द्वारा मार्जिन और ब्याज दर पर निम्नलिखित उच्चत्तम सीमा (कैप) और अन्य "मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों" का अनुपालन किया जाता है। (i) मार्जिन की अधिकतम सीमा : ₹ 100 करोड़ से अधिक के ऋण संविभाग वाले एमएफआई के लिए मार्जिन कैप 10 प्रतिशत और अन्यों के लिए 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। ब्याज लागत की गणना बकाया उधार राशियों के औसत पाक्षिक शेष के आधार पर तथा ब्याज आय की गणना अर्हक आस्तियों के बकाया ऋण संविभाग के औसत पाक्षिक शेष के आधार पर की जाएगी। (ii) व्यक्तिगत ऋणों पर ब्याज की अधिकतम सीमा : व्यक्तिगत ऋणों पर ब्याज दर 1 अप्रैल 2014 से आस्तियों के अनुसार पांच सबसे बड़े वाणिज्य बैंकों की औसत आधार दर को वार्षिक 2.75 से गुणा का फल अथवा निधियों की लागत और मार्जिन की उच्चतम सीमा का जोड़, इनमें से जो भी कम हो होगी। आधार दर का औसत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सूचित किया जाएगा। (iii) ऋणों के मूल्य निर्धारण में केवल तीन घटक शामिल किए जाने हैं यथा (क) प्रोसेसिंग शुल्क जो सकल ऋण राशि के 1 प्रतिशत से अधिक न हो, (ख) ब्याज प्रभार और (ग) बीमा प्रीमियम। (iv) प्रोसेसिंग शुल्क को मार्जिन कैप या ब्याज की अधिकतम सीमा में शामिल नहीं करना है। (v) केवल बीमा की वास्तविक लागत अर्थात उधारकर्ता तथा पति / पत्नी के लिए जीवन, स्वास्थ्य और पशुधन के समूह बीमा की वास्तविक लागत ही वसूली जाए; प्रशासनिक प्रभार आईआरडीए के दिशा-निर्देशों के अनुसार वसूल किए जाए। (vi) विलंबित भुगतान हेतु कोई दंड न हो। (vii) किसी प्रकार की जमानत जमाराशि / मार्जिन न लिया जाए। (घ) बैंकों को चाहिए कि वे प्रत्येक तिमाही के अंत में एमएफआई से चार्टर्ड एकाउंटेंट का एक प्रमाणपत्र प्राप्त करें, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ सूचित किया गया हो कि (i) अर्हक आस्ति (ii) आय सृजन कार्यकलापों के लिए प्रदान की गई सकल ऋण राशि और (iii) मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों संबंधी मानदंड का पालन किया गया है। X. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के लक्ष्यों पर निगरानी रखना प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को निरंतर ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान में बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को दिए गए उधार संबंधी अनुपालन पर वार्षिक आधार पर रखी जानेवाली निगरानी के स्थान पर अब ‘तिमाही’ आधार पर अधिक बार निगरानी रखी जाएगी। संशोधित रिपोर्टिंग फार्मेट, जिसके लिए दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे, में बैंकों द्वारा तिमाही और वार्षिक अंतराल के आधार पर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों पर आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे। XI. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य प्राप्त न करना प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार में कमी वाले अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्णीत प्रकार से नाबार्ड के पास स्थापित ग्रामीण बुनियादी विकास निधि (आरआईडीएफ) और नाबार्ड / एनएचबी / सिडबी के पास स्थापित अन्य निधियों में अंशदान करने के लिए राशियां आवंटित की जाएंगी । वर्ष 2015-16 के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/ उप-लक्ष्यों की प्राप्ति में कमी का मूल्यांकन 31 मार्च 2016 की स्थिति पर आधारित होगा। वित्तीय वर्ष 2016-17 से आगे उपलब्धि की गणना वित्तीय वर्ष के अंत में प्रत्येक तिमाही के अंत में औसत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/ उप-लक्ष्यों की प्राप्ति पर आधारित होगी। आरआईडीएफ अथवा किसी अन्य निधियों में बैंक के अंशदान पर ब्याज दरें, जमाराशियों की अवधि, आदि समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित की जाएगी। भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग द्वारा सूचित गलत वर्गीकरण को, बाद के वर्षों में विभिन्न निधियों के लिए आवंटन हेतु, उस वर्ष की उपलब्धि से उस राशि तक समायोजित / घटाया जाएगा जहां तक अवर्गीकरण / गलत वर्गीकरण हुआ हो। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य, उप-लक्ष्य पूरे न करने को विभिन्न प्रयोजनों के लिए विनियामक क्लियरेंस / अनुमोदन देते समय विचार में लिया जाएगा । XII. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को ऋण हेतु सामान्य दिशा-निर्देश बैंकों से अपेक्षित है कि वे प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी श्रेणियों के संबंध में निम्नलिखित सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करें। 1. ब्याज की दर बैंक ऋणों पर ब्याज दर बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी निदेशों के अनुसार रहेगी । 2. सेवा प्रभार ₹ 25,000/- तक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों पर ऋण संबंधी और तदर्थ सेवा प्रभार / निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाना चाहिए। 3. प्राप्ति, स्वीकृति / नामंजूर / वितरण रजिस्टर बैंक द्वारा एक रजिस्टर / इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारीख, मंजूरी / नामंजूरी / वितरण आदि का कारणों सहित उल्लेख किया जाए। सभी निरीक्षणकर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर / इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड उपलब्ध करवाया जाए । 4. ऋण आवेदनों की पावती जारी करना बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के अंतर्गत प्राप्त ऋण आवेदनों की पावती दी जाए। बैंक बोर्ड एक ऐसी समय सीमा निर्धारित करें जिसके पहले बैंक आवेदकों को अपना निर्णय लिखित रूप में सूचित करेंगे। XIII. संशोधन ये दिशानिर्देश रिजर्व बैंक द्वारा समय समय पर जारी किए जाने वाले अनुदेशों की शर्त के अधीन हैं। XIV. परिभाषाएं / स्पष्टीकरण 1. ऑन लेंडिंग : बैंकों द्वारा पात्र मध्यस्थ संस्थाओं (इंटरमिडियरीज) को केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र आस्तियां निर्मित करने के लिए आगे ऋण प्रदान करने हेतु स्वीकृत ऋण। इस प्रकार निर्मित प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र आस्तियों की औसत परिपक्वता बैंक ऋण के परिपक्व हो जाने के साथ-साथ समाप्त होनेवाली हो। 2. आकस्मिक देयताएं / तुलन-पत्र से इतर मदें प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य की उपलब्धि का भाग नहीं होती हैं। तथापि, 20 से कम शाखा वाले विदेशी बैंकों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्यों की प्राप्ति की गणना के प्रयोजन के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के साथ पात्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र गतिविधियों के लिए दिए गए तुलन-पत्र से इतर मदों की ऋण सममूल्य राशि की गणना करने का विकल्प प्राप्त है। इस मामले में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्यों की गणना के प्रयोजन के लिए सभी तुलन-पत्र से इतर मदों (अंतर बैंक को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और गैर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र दोनों ही) की ऋण सममूल्य राशि को एएनबीएस में डिनामनेटर में जोड़ा जाए। 3. तुलन पत्र से इतर अंतर बैंक एक्सपोजरों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्यों के लिए तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजरों के ऋण सममूल्य की गणना हेतु हिसाब में नहीं लिया जाता है। 4. "सर्व समावेशक ब्याज" शब्द से आशय है ब्याज (प्रभावी वार्षिक ब्याज), प्रोसेसिंग शुल्क और सेवा प्रभार। 5. बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत प्रदान किए जानेवाले ऋण अनुमोदित प्रयोजनों के लिए होते हैं और उसके अंतिम उपयोग पर निरंतर निगरानी रखी जाती है। बैंकों को इस संबंध में उचित आंतरिक नियंत्रण और प्रणालियां स्थापित करनी चाहिए। |