मास्टर परिपत्र – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण
भारिबैं/2014-15/95 1 जुलाई 2014 अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक / महोदय, मास्टर परिपत्र – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के बारे में बैंकों को समय-समय पर कई दिशा-निर्देश / अनुदेश / निदेश जारी किए हैं । बैंकों को सभी अद्यतन अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के प्रयोजन से उपर्युक्त विषय पर विद्यमान दिशा-निर्देशों / अनुदेशों / निदेशों को समाहित करते हुए एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है जो संलग्न है । इस मास्टर परिपत्र में, इसके परिशिष्ट में निर्दिष्ट किए गए अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपर्युक्त विषय पर दिनांक 30 जून 2014 तक जारी सभी परिपत्रों में सूचित वर्तमान अनुदेशों / मेल बॉक्स स्पष्टीकरणों को समेकित किया गया है । 2. कृपया प्राप्ति सूचना दें । भवदीय (ए. उदगाता) अनुलग्नक : यथोक्त जुलाई 1968 में आयोजित राष्ट्रीय ऋण परिषद की बैठक में इस बात पर जोर दिया गया था कि वाणिज्य बैंक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र, अर्थात़् कृषि और लघु उद्योग क्षेत्र के वित्तपोषण हेतु ज्यादा प्रतिबद्धता दिखाएं। बाद में, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को अग्रिम से सम्बन्धित आंकड़ों के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मई 1971 में गठित अनौपचारिक अध्ययन दल की रिपोर्ट के आधार पर 1972 के दौरान प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के स्वरुप को औपचारिक अभिव्यक्ति प्रदान की गई । उक्त रिपोर्ट के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को अग्रिम की रिपोर्ट मंगवाने हेतु एक संशोधित विवरणी निर्धारित की और प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के विभिन्न वर्गों के अंतर्गत शामिल की जाने वाली मदों को इंगित करने के प्रयोजन से कतिपय दिशा-निर्देश भी जारी किये। हालांकि, प्रारम्भ में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधारों के अंतर्गत कोई विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया था, नवम्बर 1974 में बैंकों को सूचित किया गया कि वे मार्च 1979 तक अपने सकल अग्रिमों में इन क्षेत्रों को देय अग्रिमों का प्रतिशत बढ़ाकर 33 1/3 प्रतिशत कर दें । केन्द्रीय वित्त मंत्री और सरकारी क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों के बीच मार्च 1980 में आयोजित एक बैठक में इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को देय अग्रिमों का अनुपात मार्च 1985 तक बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने हेतु बैंक लक्ष्य निर्धारित करें। बाद में, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार तथा 20 - सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम को बैंकों द्वारा लागू किये जाने विषयक तौर-तरीकों के निरुपण हेतु गठित कार्यकारी दल (अध्यक्षः डॉ. के.एस.कृष्णस्वामी) की सिफारिशों के आधार पर सभी वाणिज्य बैंकों को सूचित किया गया कि वे सकल बैंक अग्रिमों का 40 प्रतिशत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने का लक्ष्य 1985 तक प्राप्त करें । कृषि तथा कमज़ोर वर्गों की ऋण सहायता हेतु प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के दायरे में ही उप-लक्ष्य भी निर्दिष्ट किये गए थे । तब से अब तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत देय उधारों तथा विभिन्न बैंक समूहों पर लागू लक्ष्यों तथा उप-लक्ष्यों में कई बार परिवर्तन हुए हैं । भारतीय रिज़र्व बैंक में गठित आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्षः श्री सी.एस.मूर्ति) द्वारा सितंबर 2005 में की गई सिफारिशों के आधार पर उक्त दिशानिर्देशों में वर्ष 2007 में संशोधन किया गया था। माइक्रो वित्त संस्थान (एमएफआइ) क्षेत्र में मामलों और मुद्दों के अध्ययन हेतु गठित रिज़र्व बैंक के केन्द्रीय बोर्ड की उप-समिति (अध्यक्ष : श्री वाय.एच.मालेगाम) ने अन्य बातों के साथ-साथ यह सिफारिश की थी कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार संबंधी दिशानिर्देशों की समीक्षा की जाए। तदनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधार संबंधी वर्तमान वर्गीकरण की पुनः समीक्षा करने और इस वर्गीकरण और संबंधित विषयों पर संशोधित दिशानिर्देश सुझाने के लिए अगस्त 2011 में एक समिति (अध्यक्ष एम. वी. नायर) गठित की थी । जनता से टिप्पणियां पाने हेतु उक्त समिति की सिफारिशों को पब्लिक डोमेन पर रखा गया था । उक्त समिति की सिफारिशों की विभिन्न स्टेकधारियों के इंटरफेस एवं भारत सरकार, बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, उद्योगों के एसोसिएशनों, जनता एवं भारतीय बैंक संघ से प्राप्त टिप्पणियों/सुझावों के परिप्रेक्ष्य में जांच की गई और प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार पर 2 जुलाई 2012 के मास्टर परिपत्र का अधिक्रमण करते हुए 20 जुलाई 2012 को संशोधित दिशानिर्देश जारी किए गए। उक्त संशोधित दिशानिर्देश 20 जुलाई 2012 से परिचालन में हैं। इस तारीख से पहले जारी उक्त दिशानिर्देशों के अंतर्गत मंजूर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों को परिपक्वता/नवीकरण किए जाने तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता रहेगा। I. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत श्रेणियां
उपर्युक्त श्रेणियों के अंतर्गत पात्र गतिविधियां पैरा III में निर्दिष्ट की गई हैं । II. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए लक्ष्य / उप लक्ष्य (i) भारत में कार्यरत घरेलू वाणिज्य बैंकों और विदेशी बैंकों के लिए प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के लिए निर्धारित लक्ष्य और उप लक्ष्य नीचे दिए गए हैं:
(ii) 20 और उससे अधिक शाखाओं वालें विदेशी बैंकों के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य और उप-लक्ष्य 1 अप्रैल 2013 से प्रारंभ होनेवाली तथा 31 मार्च 2018 को समाप्त होनेवाली पांच वर्षों की अधिकतम अवधि में उनके द्वारा प्रस्तुत और रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित कार्य योजनाओं के अनुसार प्राप्त करने हैं। इस परिपत्र में इन बैंकों के लिए किए जानेवाले बाद के संदर्भ उक्त अनुमोदित योजनाओं के अनुसरण में होंगे। (iii) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के चालू वर्ष के लक्ष्यों तथा उप-लक्ष्यों की गणना समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) अथवा पिछले 31 मार्च के तुलनपत्र से इतर एक्सपोजरों के समकक्ष ऋण के आधार पर की जाएगी। चालू वर्ष के 31 मार्च को विद्यमान बकाया प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों की गणना प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्यों और उप-लक्ष्यों की उपलब्धि के लिए की जाएगी। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के ऋणों के प्रयोजन के लिए एएनबीसी से आशय है भारत में बकाया बैंक ऋण [भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (2) के अंतर्गत फार्म ए (31 मार्च की स्थिति संबंधी विशेष विवरणी) की मद सं.VI में यथा निर्धारित़] में से घटाए गए रिज़र्व बैंक और अन्य अनुमोदित वित्तीय संस्थाओं के पास पुन: भुनाए गए बिल अधिक परिपक्वता के लिए धारित (एचटीएम) श्रेणी के अनुमत गैर एसएलआर बांडों / डिबेंचरों अधिक ऐसे अन्य श्रेणियों में किए गए निवेश जो प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधार के भाग के रूप में माने जाने के पात्र हों (प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश) को जोड़ा जाए। आरआईडीएफ, नाबार्ड के पास रखी गोदाम बुनियादी निधि, अल्पावधि सहकारी ग्रामीण ऋण पुनर्वित्त निधि और अल्पावधि आरआरबी निधि के अंतर्गत पूर्ववर्ती 31 मार्च को बकाया जमाराशियां एएनबीएस का भाग बनेंगी। बैंकों द्वारा सिडबी/एनएचबी जैसा भी मामला हो, के पास प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधार संबंधी लक्ष्यों/ उप-लक्ष्यों को पूरा न करने के बदले में रखी जानेवाली जमाराशियों को एएनबीसी के लिए गणना हेतु हिसाब में नहीं लिया जाएगा हालांकि उन्हें तुलनपत्र की मद I (vi) - 'अन्य' में अनुसूची 8 - 'निवेश' के अंतर्गत दर्शाया जाता है। वृद्धिशील एफसीएनआर (बी) / एनआरई जमाराशियां जो रिजर्व बैंक के 31 जनवरी 2014 के परिपत्र डीबीओडी सं.आरईफ.बीसी.93/12.01.001/2013-14 के साथ पठित 14 अगस्त 2013 के परिपत्र डीबीओडी सं.आरईफ.बीसी.36/12.01.001/2013-14 और 6 फरवरी 2014 को जारी डीबीओडी मेलबाक्स स्पष्टीकरण के अनुसार सीआरआर/ एसएलआर अपेक्षाओं से छूट प्राप्त हैं को उनकी चुकौती किए जाने तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधार संबंधी लक्ष्यों की गणना के लिए एएनबीसी छोड दिया जाएगा। तुलनपत्र से इतर एक्सपोजरों के समकक्ष ऋण की गणना के लिए हमारे बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग द्वारा एक्सपोजर मानदंडों पर जारी मास्टर परिपत्र से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। समायोजित निवल बैंक ऋण की गणना
यह देखा गया है कि कुछ बैंक उपर्युक्त प्रकार से बैंक ऋण की रिपोर्टिंग में कारपोरेट प्रधान कार्यालय स्तर पर विवेकसम्मत बट्टे खाते डाली गई राशि को घटाते हैं। ऐसे मामलों में यह सुनिश्चित किया जाना चहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और अन्य सभी उप क्षेत्रों को बैंक ऋण जो इस प्रकार बट्टे खाते डाला गया हो, को भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और उप-लक्ष्य की उपलब्धि में से श्रेणी-वार घटाया जाना चाहिए। सभी प्रकार के ऋण, निवेश अथवा ऐसी मदें जिन्हें प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य /उप-लक्ष्य के अंतर्गत उपलब्धि के लिए पात्र माना गया हो, समायोजित निवल बैंक ऋण का भी एक भाग होना चाहिए। iv) माइक्रो और लघु उद्यम खंड (एमएसई) के भीतर माइक्रो उद्यमों के लिए लक्ष्यों की गणना पूर्ववर्ती 31 मार्च को विद्यमान एमएसई को दिए गए बकाया ऋण के संदर्भ में की जाएगी । III प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाली श्रेणियों का वर्णन 1. कृषि 1.1 प्रत्यक्ष कृषि 1.1.1 अलग-अलग किसानों [(स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) या संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) अर्थात अलग-अलग किसानों के समूहों सहित, बशर्ते बैंक ऐसे ऋणों का अलग से ब्योरा रखते हों)] को कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों जैसे डेरी उद्योग, मत्स्यपालन, पशुपालन, मुर्गीपालन, मधु-मक्खीपालन और रेशम उद्योग (ककून स्तर तक) के लिए ऋण (i) किसानों को फसल उगाने के लिए अल्पावधि ऋण अर्थात फसल ऋण । (ii) कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापोंके लिए मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण (अर्थात कृषि उपकरणों और मशीनरी की खरीद, खेत में सिंचाई तथा किए जाने वाले अन्य विकासात्मक कार्यकलाप एवं संबद्ध कार्यकलापों के लिए विकास ऋण) । (iii) किसानों को फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद के कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, छंटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), तथा अपने स्वयं के फार्म की उपज के परिवहन के लिए ऋण। (iv) किसानों को 12 माह से अनधिक अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी / दृष्टिबंधक रखकर 50 लाख रू. तक के ऋण, चाहे किसानों को फसल ऋण दिए गए हों या नहीं। (v) कृषि प्रयोजन हेतु जमीन खरीदने के लिए छोटे और सीमांत किसानों को ऋण । (vi) गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त आपदाग्रस्त किसानों को ऋण। (vii) ऐसी प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (पीएसीएस), कृषक सेवा समितियां (एफएसएस) और बडे आकारवाली आदिवासी बहुउद्देशीय समितियां (एलएएमपीएस) जो कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए किसानों को आगे ऋण प्रदान करने के लिए ऐसे बैंकों द्वारा स्वीकृत अथवा प्रबंधित/नियंत्रित हों, को दिए जानेवाले बैंक ऋण (viii) किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को ऋण । (ix) अपने स्वयं के कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए किसानों को निर्यात ऋण । 1.1.2 निम्नलिखित कार्यकलापों के लिए अलग-अलग किसानों की कृषक उत्पादक कंपनियों सहित कारपोरेटों, साझेदारी फर्मों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों जैसे डेरी उद्योग, मत्स्यपालन, पशुपालन, मुर्गीपालन, मधु-मक्खीपालन, रेशम उद्योग (ककून स्तर तक) में प्रत्यक्ष रूप से लगे किसानों की सहकारी समितियों को प्रति उधारकर्ता 2 करोड़ रुपए की कुल सीमा तक ऋण i. किसानों को फसल उगाने के लिए अल्पावधि ऋण अर्थात् फसल ऋण । ii. कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापोंके लिए मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण (अर्थात कृषि उपकरणों और मशीनरी की खरीद, खेत में सिंचाई तथा किए जानेवाले अन्य विकासात्मक कार्यकलापों के लिए ऋण एवं संबद्ध कार्यकलापों के लिए विकास ऋण) iii. किसानों को फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद के कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), छंटाई के लिए ऋण। iv. अपने स्वयं के कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए निर्यात ऋण । 1.2 अप्रत्यक्ष कृषि 1.2.1. अलग-अलग किसानों की कृषक उत्पादक कंपनियों सहित कारपोरेटों, साझेदारी फर्मों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों जैसे डेरी उद्योग, मत्स्यपालन, पशुपालन, मुर्गीपालन, मधु-मक्खीपालन, रेशम उद्योग (ककून स्तर तक) को ऋण (i) इस परिपत्र के पैरा III (1.1.2) के संबंध में यदि प्रति उधारकर्ता कुल ऋण सीमा 2 करोड़ रुपए से अधिक है तो पूरे ऋण को कृषि को दिए गए अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में माना जाए। (ii) किसानों को 12 माह से अनधिक अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी / दृष्टिबंधक रखकर 50 लाख रुपए तक के ऋण, चाहे किसानों को फसल ऋण दिए गए हों या नहीं। 1.2.2 इस परिपत्र के पैरा III (1.1.1) (vii) में शामिल न की गई प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस), कृषक सेवा समितियों (एफएसएस) और बड़े आकारवाली आदिवासी बहु-उद्देश्य समितियों (एलएएमपीएस) को दिए गए बैंक ऋण। 1.2.3 अन्य अप्रत्यक्ष कृषि ऋण (i) उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों, बीजों पशु खाद्य, मुर्गी आहार, कृषि औजारों और अन्य कृषि/संबद्ध निविष्टियों के व्यापारियों / विक्रेताओं को प्रति उधारकर्ता 5 करोड़ रुपए तक के ऋण। (ii) एग्री क्लिनिक और एग्री बिजनेस केंद्रों की स्थापना के लिए ऋण। (iii) सदस्यों के उत्पाद का निपटान करने के लिए कृषकों की सहकारी समितियों को 5 करोड़ रुपए तक ऋण। (iv) कस्टम सेवा इकाइयों को ऋण, जिनका प्रबंध व्यक्तियों, संस्थाओं या ऐसे संगठनों द्वारा किया जाता है, जिनके पास ट्रैक्टरों, बुलडोज़रों, कुआं खोदने के उपस्करों, थ्रेशर, कंबाइन्स, आदि का दस्ता है और वे किसानों का काम ठेके पर करते हैं। (v) भंडारण सुविधाओं (भंडारघर, बाज़ार प्रांगण, गोदाम और साइलो) जिनमें कृषि उत्पाद / उत्पादनों के भंडारण के लिए बनाई गई कोल्ड स्टोरेज इकाइयां शामिल हैं, चाहे वे कहीं भी स्थित हों, के निर्माण और उन्हें चलाने के लिए ऋण। यदि स्टोरेज इकाई सूक्ष्म या लघु उद्योग इकाई है तो ऐसे ऋणों को सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाएगा। (vi) इस परिपत्र के पैरा VIII में निर्दिष्ट शर्तों के अनुसार कृषि और संबद्ध कार्यकलापों के लिए किसानों को आगे ऋण प्रदान करने हेतु एमएफआइ को ऋण। (vii) एसएचजी – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम के अंतर्गत एसएचजी सदस्यों को कृषि और संबद्ध कार्यकलापों के लिए आगे उधार दिए जाने हेतु एसएचजी को बढ़ावा देनेवाले एनजीओ को स्वीकृत ऋण। एनजीओ / एसएसजी को बढ़ावा देनेवाली संस्था द्वारा लगाए जानेवाला सर्वसमावेशक ब्याज उधार देनेवाले बैंक की आधार दर अधिक वार्षिक आठ प्रतिशत से अनधिक हो। (viii) कृषि और संबद्ध कार्यकलापों के लिए आगे उधार देने हेतु क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मंजूर ऋण। (ix) आरआईडीफ, नाबार्ड के पास रखी गोदाम बुनियादी निधि, अल्पावधि सहकारी ग्रामीण ऋण पुनर्वित्त निधि और अल्पावधि आरआरबी निधि के अंतर्गत चालू वर्ष की 31 मार्च को बकाया जमाराशियां। 2. माइक्रो और लघु उद्यम माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा 9 सितम्बर 2006 के एस.ओ.1642(ई) द्वारा अधिसूचित प्रकार से विनिर्माण / सेवा उद्यम के लिए संयंत्र और मशीनरी/उपकरणों में निवेश की सीमाएं निम्नानुसार हैं :
विनिर्माण और सेवा दोनों के माइक्रो और लघु उद्यमों को दिए जानेवाले बैंक ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत निम्नानुसार वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे । 2.1 प्रत्यक्ष वित्त 2.1.1 विनिर्माण उद्यम उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट और सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित प्रकार से किसी उद्योग के लिए विनिर्माण या वस्तुओं के उत्पादन में लगी माइक्रो और लघु उद्यम संस्थाएं। विनिर्माण उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी में निवेश के अनुसार परिभाषित किया गया है। 2.1.1.1 खाद्यान्न तथा एग्रो प्रसंस्करण के लिए ऋण खाद्यान्न तथा एग्रो प्रसंस्करण के लिए ऋणों को माइक्रो और लघु उद्यमों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाएगा बशर्ते यूनिट एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 में किए गए प्रावधान के अनुसार माइक्रो और लघु उद्यमों के लिए निर्धारित निवेश मानदंड पूरा करते हों । 2.1.2 सेवा उद्यम एमएसएमईडी अधिनियम 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित और सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे माइक्रो और लघु उद्यमों को प्रति यूनिट 5 करोड़ रुपए तक का बैंक ऋण। 2.1.3 एमएसई यूनिटों (विनिर्माण और सेवा दोंनों) को उनके द्वारा उत्पादित/दी जाने वाली वस्तुओं/सेवाओं के निर्यात के लिए निर्यात ऋण। 2.1.4 सामान्य क्रेडिट कार्ड के अंतर्गत बकाया कृषीतर उद्यमी ऋण 2.1.5. खादी और ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआई) परिचालनों के आकार, अवस्थिति तथा संयंत्र और मशीनरी में मूल निवेश की राशि पर ध्यान दिए बगैर खादी-ग्राम उद्योग क्षेत्र की इकाइयों को स्वीकृत सभी ऋण। ऐसे ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत माइक्रो और लघु उद्योगों में माइक्रो उद्योगों हेतु नियत उप-लक्ष्य (60 प्रतिशत) के अधीन वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे। 2.2 अप्रत्यक्ष वित्त i) काश्तकारों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादन के विपणन के विकेंद्रीकृत सेक्टर को सहायता प्रदान करनेवाले व्यक्तियों को ऋण। 3. शिक्षण व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित शिक्षा के प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों को भारत में अध्ययन के लिए 10 लाख रुपए तक का ऋण और विदेश में अध्ययन के लिए 20 लाख रुपए तक का ऋण। 4. आवास
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण के अंतर्गत एचएफसी को ऋण की पात्रता निरंतर आधार पर अलग-अलग बैंकों के कुल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार के पांच प्रतिशत तक सीमित है। बैंक ऋणों की समाप्ति अवधि एचएफसी द्वारा दिए जानेवाले ऋणों की औसत परिपक्वता के साथ-साथ समाप्त होनेवाली हो। बैंकों को आधारभूत संविभाग के उधारकर्ता वार आवश्यक ब्योरे बनाए रखने चाहिए। 5. निर्यात ऋण 20 से कम शाखाओं वाले विदेशी बैंकों द्वारा दिए जाने वाले निर्यात ऋण को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य की उपलब्धि के लिए हिसाब में लिया जाएगा। जहां तक देशी बैंकों तथा 20 और उससे अधिक शाखाओंवाले विदेशी बैंकों का प्रश्न है, निर्यात ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अलग श्रेणी नहीं है। इस परिपत्र के पैरा (III) (1.1.1) (ix), (III) (1.1.2) (iv), (III) (1.2.1) (i) और (2.1.3) में उल्लिखित निर्यात ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों अर्थात कृषि और एमएसई क्षेत्र में गिने जाएंगे। 6. अन्य 6.1 बैंकों द्वारा व्यक्तियों और उनके एसएचजी/ जेएलजी को सीधे दिए जानेवाले प्रति उधारकर्ता 50,000/- रुपए तक के ऋण, बशर्ते उधारकर्ता की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में 60,000/- रुपए से अनधिक हो और गैर-ग्रामीण क्षेत्रों में यह 1,20,000/- रुपए से अधिक न हो। 6.2 आपदाग्रस्त व्यक्तियों (पहले ही III (1.1) (vi) के अंतर्गत शामिल किसानों को छोड़कर) को उनके गैर संस्थागत ऋणदाताओं के कर्जं की पूर्व अदायगी के लिए प्रति उधारकर्ता 50,000/- रुपए से अनधिक के ऋण। 6.3 बुनियादी (बेसीक) बैंकिंग /बचत खातों पर प्रदत्त 50,000/- रुपए (प्रति खाता) तक के ओवरड्राफ्ट, बशर्ते उधारकर्तां की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में 60,000/- रुपए से अधिक न हो और गैर ग्रामीण क्षेत्रों में यह 1,20,000/- रुपए से अधिक न हो। 6.4 अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठनों को इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति और/या उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत ऋण। 6.5 बैंकों द्वारा सीधे व्यक्तियों को ऑफ ग्रिड सौर (सोलार) स्थापित करने तथा परिवारों (हाउसहोल्ड) के लिए अन्य ऑफ ग्रिड नवीकरणीय ऊर्जां उपाय करने के लिए स्वीकृत ऋण। IV. कमज़ोर वर्ग निम्नलिखित उधारकर्ताओं को दिए जानेवाले प्राथमिताकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण कमज़ोर वर्गो की श्रेणी के अंतर्गत शामिल हैं : क) छोटे और सीमान्त किसान; ख) काश्तकार,ऐसे ग्रामीण और कुटीर उद्योग जिनकी व्यक्तिगत ऋण सीमा 50,000/- रुपए से अधिक न हो ; ग) स्वर्ण जयन्ती ग्रामस्वरोजगार योजना(एसजीएसवाइ) अब राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के लाभार्थी ; घ) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियां ; ङ) विभेदक ब्याज दर (डीआरआइ) योजना के लाभार्थी; च) स्वर्णजयन्ती शहरी रोजगार योजना (एसजेएसआरवाइ) के लाभार्थी; छ) स्वच्छकारों की पुनर्वास योजना (एसआरएमएस) के लाभार्थी; ज) स्वयं सहायता समूहों को ऋण; झ) गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त आपदाग्रस्त किसानों को ऋण; ञ) गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त किसानों को छोड़कर आपदाग्रस्त व्यक्तियों को अपने ऋण की पूर्व अदायगी हेतु 50,000/- रुपए से अनधिक के ऋण। ट) अलग-अलग महिला लाभार्थियों को प्रति उधारकर्ता 50,000/- रुपए तक के ऋण; ठ) समय-समय पर भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किये जाने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों को ऊपर्युक्त (क) से (ट) तक के अंतर्गत दिये गये ऋण। ऐसे राज्यों में जहां अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों में से एक समुदाय, वस्तुत: मेजॉरिटी में, है वहां मद सं. (ठ) में केवल अन्य अधिसूचित अल्पसंख्यक ही शामिल होंगे। ये राज्य /संघशासित क्षेत्र हैं - जम्मू और कश्मीर, पंजाब, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप। V. बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश (i) बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश, जो ‘अन्य’ श्रेणी को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों के ऋण का द्योतक हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) के अंतर्गत निहित आस्तियों के आधार पर वर्गीकरण के लिए पात्र है बशर्ते: (a) बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियां मूलत: बनायी जाती हैं और वे प्रतिभूतिकरण के पहले प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत जाने की पात्र हैं और प्रतिभूतिकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों को पूरा करती हैं। (b) मूल संस्था द्वारा अंतिम उधारकर्ता से लिया जानेवाला सर्वसमावेशक ब्याज निवेशक बैंक की आधार दर अधिक वार्षिक 8 प्रतिशत से अधिक न हो। एमएफआइ द्वारा मूलत: निर्मित प्रतिभूतिकृत आस्तियों में ऐसे निवेश जो इस परिपत्र के पैरा VIII में दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, इस उच्चतम ब्याज से छूट प्राप्त हैं क्योंकि मार्जिन और ब्याज दर पर अलग से उच्चतम सीमाएं हैं । ii) एनबीएफसी द्वारा मूलत: निर्मित प्रतिभूतिकृत आस्तियों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश जिनमें निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषण की जमानत पर होती हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र स्थिति के लिए पात्र नहीं हैं । VI. सीधे एसाइनमेंट/आउटराइट खरीद के माध्यम से आस्तियों का अंतरण i) बैंकों द्वारा एसाइनमेंट/आस्तियों के समूह की आउटराइट खरीद जो 'अन्य' श्रेणी को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत ऋणों की द्योतक है, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने की पात्र होगी, बशर्ते :
एमएफआइ से पात्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के एसाइनमेंट/आउटराइट खरीद जो इस परिपत्र के पैरा VIII में दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, इस उच्चतम ब्याज से छूट प्राप्त हैं क्योंकि मार्जिन और ब्याज दर पर अलग से उच्चतम सीमाएं हैं । ii) बैंकों/वित्तीय संस्थाओं से प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत करने के लिए ऋण आस्तियों की आउटराइट खरीद करने पर बैंक को अंतिम प्राथमिकता-प्राप्त उधारकर्ता को वास्तविक रूप में वितरित सांकेतिक राशि की सूचना देनी चाहिए और न कि विक्रेता को अदा की गई प्रीमियम राशि की। iii) एनबीएफसी के साथ किए जानेवाले क्रय/एसाइनमेंट/निवेश लेनदेन जिसमें निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषणों की जमानत पर लिए गए ऋण हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र स्थिति के लिए पात्र नही हैं । VII. बैंकों द्वारा खरीदे जानेवाले अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र बैंकों द्वारा जोखिम शेयरिंग आधार पर खरीदे जानेवाले अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र (आइबीपीसी) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे बशर्तें, निहित आस्तियां प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने की पात्र हों और बैंक आइबीपीसी पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों का पालन करते हों। VIII. माइक्रो फाइनांस संस्थाओं को आगे उधार दिए जाने हेतु बैंक ऋण (a) व्यक्तियों तथा स्व-सहायता समूहों / संयुक्त देयता समूहों के सदस्यों को भी आगे उधार दिए जाने हेतु माइक्रो फाइनांस संस्थाओं (एमएफआइ) को 01 अप्रैल 2011 को या उसके बाद दिया गया बैंक ऋण संबंधित श्रेणियों अर्थात कृषि, माइक्रो और लघु उद्यम एवं अप्रत्यक्ष वित्तपोषण के रूप में 'अन्य' श्रेणी में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिम के रूप में वर्गीकृत किए जाने का पात्र होगा। परंतु शर्त यह है कि उक्त माइक्रो फाइनांस संस्था की कुल आस्तियों (नकदी, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के पास शेष राशियों, सरकारी प्रतिभूतियों और मुद्रा बाजार के लिखतों से भिन्न) में "अर्हक स्वरूप की आस्तियाँ" 85 प्रतिशत से कम न हों। इसके अतिरिक्त आय सृजन के कार्यकलाप के लिए प्रदान की गई सकल ऋण राशि, माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा दिए गए कुल ऋण के 70 प्रतिशत से कम न हो। (b) माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा वितरित वह ऋण "अर्हक आस्ति" होगा, जो निम्नलिखित मानदण्डों को पूरा करता हो :
(c) साथ ही, इन ऋणों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के रूप में वर्गीकृत किए जाने हेतु पात्र होने के लिए बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि एमएफआइ द्वारा मार्जिन और ब्याज दर पर निम्नलिखित उच्चत्तम सीमा (कैप) और अन्य "मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों" का अनुपालन किया जाता हैं।
(d) बैंकों को चाहिए कि वे प्रत्येक तिमाही के अंत में एमएफआइ से चार्टर्ड एकाउंटेंट का एक प्रमाणपत्र प्राप्त करें, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह सूचित किया गया हो कि (i) एमएफआइ की कुल आस्तियों का 85 प्रतिशत "अर्हक आस्ति " के स्वरूप का है, (ii) आय सृजन कार्यकलापों के लिए प्रदान की गई सकल ऋण राशि, एमएफआइ द्वारा प्रदत्त कुल ऋण के 70 प्रतिशत से कम नहीं है और (iii) मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है। IX. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य प्राप्त न करना प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण के लक्ष्यों / उप-लक्ष्यों में कमीवाले सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्णीत प्रकार से नाबार्ड के पास स्थापित ग्रामीण बुनियादी विकास निधि (आरआइडीएफ) और नाबार्ड/एनएचबी/सिडबी/अन्य वित्तीय संस्थाओं के पास स्थापित अन्य निधियों में अंशदान करने के लिए राशियां आबंटित की जाएंगी । आरआइडीएफ और समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा निर्णीत प्रकार से अन्य निधियों के आबंटन के प्रयोजन के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण के 31 मार्च को विद्यमान उपलब्धि स्तर को हिसाब में लिया जाएगा। विभिन्न निधियों के अंतर्गत नाबार्ड अथवा इसी प्रकार की अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा योजना की शर्तों और निबंधनों के अनुसार जमाराशियां आमंत्रित की जाएंगी। बैंक के आरआइडीएफ अथवा किसी अन्य निधियों में अंशदान पर ब्याज दरें, जमाराशियों की अवधि, आदि समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित की जाएगी और हर वर्ष भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निधियों के आबंटन के समय संबंधित बैंकों को इसकी सूचना दी जाएगी । भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग द्वारा सूचित गलत वर्गीकरण को उस वर्ष की ऐसी उपलब्धि में समायोजित / से घटाकर किया जाएगा जिस मात्रा तक अवर्गीकरण/गलत वर्गीकरण बाद के वर्षों में विभिन्न निधियों के लिए आबंटन हेतु संबंधित हो। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य, उप-लक्ष्य पूरे न करने को विभिन्न प्रयोजनों के लिए विनियामक क्लियरेंस / अनुमोदन देते समय विचार में लिया जाएगा । X. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र - डाटा रिपोर्टिंग प्रणाली बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अग्रिमों का डाटा रिपोर्टिंग के संबंध में विद्यमान दिशानिर्देशों के अनुसार ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए। XI. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को ऋण हेतु सामान्य दिशा-निर्देश बैंकों से अपेक्षित है कि वे प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी श्रेणियों के संबंध में निम्नलिखित सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करें। 1. ब्याज की दरें प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों की विभिन्न श्रेणियों पर लागू ब्याज दर डीबीओडी द्वारा समय-समय पर जारी निदेशों के अनुसार रहेगी । 2. सेवा प्रभार 25,000/- रुपए तक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों पर सेवा प्रभार / निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाए। 3. प्राप्ति, स्वीकृति/ नामंजूर/ वितरण रजिस्टर बैंक द्वारा एक रजिस्टर/ इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारीख, मंजूरी/ नामंजूरी/वितरण आदि का कारणों सहित उल्लेख किया जाए। सभी निरीक्षणकर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर/ इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड उपलब्ध करवाया जाए । 4. ऋण आवेदनों की पावती जारी करना बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के अंतर्गत प्राप्त ऋण आवेदनों की पावती दी जाए। बैंक बोर्ड एक ऐसी समय सीमा निर्धारित करें जिसके पहले बैंक आवेदकों को अपना निर्णय लिखित रूप में सूचित करेंगे। XII. संशोधन ये दिशानिर्देश रिजर्व बैंक द्वारा समय समय पर जारी किए जानेवाले किन्ही अनुदेशों की शर्त के अधीन हैं । XIII. परिभाषाएं 1. ऑन लेंडिंग : बैंकों द्वारा पात्र मध्यस्थ संस्थाओं (इंटरमिडियरीज) को केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र आस्तियां निर्मित करने के लिए ही आगे ऋण प्रदान करने के लिए स्वीकृत ऋण। इस प्रकार निर्मित प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र आस्तियों की औसत परिपक्वता बैंक ऋण के परिपक्व हो जाने के साथ-साथ समाप्त होनेवाली हो। 2. छोटे और सीमांत किसान : एक हेक्टेयर तक के भूधारक किसान सीमांत किसान कृषक माने जाते हैं। एक हेक्टेयर से अधिक परंतु 2 हेक्टेयर से कम के भूधारक किसान छोटे किसान के रूप में माने जाते हैं। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण के प्रयोजन के लिए “छोटे और सीमांत किसान” की परिभाषा में भूमिहीन कृषि श्रमिक, काश्तकार, मौखिक पट्टेदार तथा बंटाइदार शामिल हैं जिनकी भूधारिता का अंश “छोटे और सीमांत किसान” की ऊपर निर्दिष्ट सीमाओं के भीतर हैं। XIV. स्पष्टीकरण
मास्टर परिपत्र
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