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लॉटरी, धनराशि संचलन योजना, सस्ती निधियों (चीप फंड) के अन्य काल्पनिक प्रस्ताव, आदि में सहभागिता के लिए विप्रेषण

आरबीआइ 2009-10/474
ए.पी.(डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं.54

26 मई 2010

सभी श्रेणी - । प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदय/महोदया

लॉटरी, धनराशि संचलन योजना, सस्ती निधियों (चीप फंड) के अन्य काल्पनिक प्रस्ताव, आदि में सहभागिता के लिए विप्रेषण

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। (एडी श्रेणी -।) बैंकों का ध्यान 7 दिसंबर 2000 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.22, 27 जुलाई 2001 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.02 और 4 जून 2002 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.49 की ओर आकर्षित किया जाता है, जिसके अनुसार, यह सूचित किया गया था कि लॉटरी में सहभागिता के लिए किसी प्रकार के विप्रेषण को विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के तहत प्रतिबंधित किया गया है । इसके अतिरिक्त, ये प्रतिबंध विभिन्न नामों के तहत मौजूद लॉटरी जैसी किसी भी योजनाओं में सहभागी होने के कारण किये गये विप्रेषणों पर भी लागू है जैसे धनराशि संचलन योजना अथवा पुरस्कार राशि/इनामआदिप्राप्तकरनेकेउद्देश्यसेकियेगयेविप्रेषणआदि।

2. यह देखा गया है कि हाल ही में,  धोखेबाज़ो से पत्र, ई-मेल्स, मोबाइल फोन्स, एसएमएस, आदि के जरिए सस्ती निधियों के बोगस प्रस्तावों में काफी बढ़ोतरी हुई है।  भारतीय रिज़र्व बैंक के फर्जी पत्र-शीर्षों(लेटर हेड) पर इस संबंध में सूचनाएं भेजी जा रही हैं और लोगों को फसाने के उद्देश्य से इन्हें जानबूझकर बैंक के उच्च अधिकारियों/वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षरित किया हुआ दिखाया जा रहा है।

कई निवासी इस प्रकार की लुभावनी पेशकशों (आफरों) के शिकार बने हैं और इस प्रक्रिया में उन्होंने काफी बड़ी धनराशि गंवायी है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने पहले भी  इस प्रकार की धोखाधड़ी वाली योजनाओं/आफरों के संबंध में मुद्रित और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जनता को सतर्क किया है । जनता को शिक्षित करने के लिए इस प्रकार के कई और अभियानों की योजना बनायी जा रही है ।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक के ध्यान में यह भी लाया गया है कि धोखेबाज़ विभिन्न शीर्षों के तहत, जैसे प्रक्रिया शुल्क/ लेनदेन शुल्क/ कर निपटान प्रभार/ परिवर्तन प्रभारों, निकासी (क्लियरिंग) शुल्कों आदि के रूप में भोले-भाले लोगों से पैसे की मांग करते हैं । धोखेबाज़ अपने शिकारों को भारत में इन खातों में कुछ निश्चित धनराशि जमा कराने के लिए उनके पीछे पड़ते हैं और यह धनराशि तत्काल ही निकाल ली जाती है । यह भी पाया गया है कि धोखेबाज़ लेन-देन प्रभार एकत्र करने के लिए वैयक्तिक नामों से या संबंधित स्वामित्व (प्रोप्राइटरी) के नाम से बैंकों की विविध शाखाओं में कई खाते खोल लेते हैं । अत: प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंकों को सूचित किया जाता है कि ऐसे खाते खोलने तथा उनमें लेन-देन की अनुमति देते समय पूर्ण सावधानी बरतें और अत्यधिक सतर्क रहें । यह स्पष्ट किया जाता है कि भारत में रहनेवाला कोई भी व्यक्ति यदि भारत के बाहर से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रकार के भुगतानों का संग्रहण करने और भुगतान करने/भेजने में शामिल होता है तो वह विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 के उल्लंघन के कारण अपने प्रति कार्रवाईयों का उत्तरदायी होगा और इसके अलावा अपने ग्राहक को जानिये मानदंडों (केवायसी)/धनशोधन निवारण (एंटी मनी लॉंडरिंग) मानकों से संबंधित विनियमों के उल्लंघन के लिए भी जिम्मेदार होगा ।

4. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक इस परिपत्र की विषय वस्तु अपने संबंधित घटकों तथा ग्राहकों की जानकारी में भी लायें । प्राधिकृत व्यापारी  उपर्युक्त में उल्लिखित ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्रों में निहित अनुदेश तथा काल्पनिक प्रस्ताव/लॉटरी जीतना/सस्ती निधि के प्रस्तावों पर 07 दिसंबर 2007 और 30 जुलाई 2009 को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी प्रेस प्रकाशनी (प्रतिलिपि संलग्न) का व्यापक प्रचार-प्रसार करें ।

5. इस परिपत्र में समाहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और धारा 11 (1) के अधीन जारी किये गये हैं ।

भवदीय

(सलीम गंगाधरन)
प्रभारी  मुख्य महाप्रबंधक

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