विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य - आरबीआई - Reserve Bank of India
विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य
5 फरवरी 2021 विकासात्मक और विनियामक नीतियों पर वक्तव्य यह वक्तव्य विभिन्न विकासात्मक और विनियामक नीति उपायों (i) चलनिधि प्रबंधन और लक्षित क्षेत्रों के लिए समर्थन (ii) विनियमन और पर्यवेक्षण (iii) वित्तीय बाजारों को व्यापक बनाना; (iv) भुगतान और निपटान प्रणाली को उन्नत करना और (v) उपभोक्ता संरक्षण, को निर्धारित करता है। I. चलनिधि उपाय 1. मांग पर टीएलटीआरओ - एनबीएफसी का समावेश विशिष्ट क्षेत्रों, जिनका पिछले और आगे दोनों से जुड़ाव और वृद्धि पर बहुस्तरीय प्रभाव हैं, में गतिविधि के पुनरुद्धार पर चलनिधि उपायों पर ध्यान को बढ़ाने के उद्देश्य से, रिज़र्व बैंक ने 9 अक्टूबर 2020 को मांग पर टीएलटीआरओ की घोषणा की जो 31 मार्च 2021 तक उपलब्ध है। 21 अक्टूबर 2020 को योजना के तहत घोषित पांच क्षेत्रों के अलावा, कामथ समिति द्वारा पहचान किए गए 26 दबावग्रस्त्र क्षेत्रों को भी 4 दिसंबर 2020 को मांग पर टीएलआरओ के तहत पात्र क्षेत्रों के दायरे में लाया गया था। इस योजना के तहत बैंकों द्वारा प्राप्त चलनिधि को संस्थाओं द्वारा इन क्षेत्रों के लिए जारी कॉरपोरेट बॉन्ड, वाणिज्यिक पेपर और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर में नियोजित किया जाना है। इस योजना के तहत प्राप्त चलनिधि का उपयोग इन क्षेत्रों को ऋण और अग्रिम प्रदान करने के लिए भी किया जा सकता है। इस सुविधा के तहत बैंकों द्वारा किए गए निवेश को परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा, यहां तक कि कुल निवेश का 25 प्रतिशत से अधिक एचटीएम पोर्टफोलियो में शामिल करने की अनुमति है। इस सुविधा के तहत सभी एक्सपोज़र को बड़े एक्सपोज़र फ्रेमवर्क (एलईएफ) के तहत गणना से छूट दी जाएगी। यह देखते हुए कि एनबीएफसी को आखरी मील तक ऋण पहुंचाने हेतु प्रख्यात वाहिक समझा जाता है और यह विभिन्न क्षेत्रों में ऋण विस्तार में एक बल गुणक के रूप में कार्य करता है, अब इन क्षेत्रों को वृद्धिशील ऋण देने के लिए एनबीएफसी को मांग पर टीएलटीआरओ योजना के तहत बैंकों से फंड उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है। 2. मार्च 2021 से नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) की दो चरणों में बहाली COVID-19 के कारण होने वाले व्यवधान पर बैंकों की मदद करने के लिए, 28 मार्च 2020 के रिपोर्टिंग पखवाड़े से प्रभावी, सभी बैंकों के नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 100 आधार अंकों से घटाकर 3.0 किया गया था। यह वितरण 26 मार्च 2021 को समाप्त होने वाले एक वर्ष की अवधि के लिए उपलब्ध था। मौद्रिक और चलनिधि स्थितियों की समीक्षा पर, गैर-विघटनकारी तरीके से सीआरआर को दो चरणों में धीरे-धीरे बहाल करने का निर्णय लिया गया है। बैंकों को अब 27 मार्च 2021 से शुरू होने वाले रिपोर्टिंग पखवाड़े से प्रभावी एनडीटीएल के 3.5 प्रतिशत पर सीआरआर बनाए रखने की आवश्यकता होगी और 22 मई 2021 से शुरू होने वाले पखवाड़े से प्रभावी एनडीटीएल का 4.0 प्रतिशत बनाए रखने की आवश्यकता होगी । 3. सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) – छूट में विस्तार 27 मार्च 2020 को बैंकों को सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) में निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के एक प्रतिशत तक की गिरावट अर्थात संचयी रूप से एनडीटीएल के 3 प्रतिशत तक सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के तहत फंड का लाभ उठाने की अनुमति दी गई थी। यह सुविधा, जो शुरू में 30 जून 2020 तक उपलब्ध थी, बाद में 31 मार्च 2021 तक चरणों में विस्तारित की गई थी, जो बैंकों को उनकी चलनिधि आवश्यकताओं पर सहजता और उन्हें उनकी चलनिधि कवरेज अनुपात (एलसीआर) आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बना रही है। यह वितरण ₹1.53 लाख करोड़ की राशि तक पहुंच को बढ़ाता है और एलसीआर के लिए उच्च गुणवत्ता वाली चल आस्ति (एचक्यूएलए) के रूप में अर्हता प्राप्त करता है। अपनी चलनिधि आवश्यकताओं के लिए बैंकों को सहजता प्रदान करने की दृष्टि से, अब एमएसएफ छूट को छह महीने की अगली अवधि अर्थात् 30 सितंबर 2021 तक के लिए जारी रखने का निर्णय लिया गया है। II. विनियमन और पर्यवेक्षण 4. परिपक्वता तक धारित (एचटीएम) श्रेणी में एसएलआर धारिता 1 सितंबर 2020 को, रिज़र्व बैंक ने सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) पात्र प्रतिभूतियों के संबंध में 1 सितंबर 2020 को या इसके बाद ली गई सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) प्रतिभूतियों के संबंध में एचटीएम श्रेणी के अंतर्गत निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) की सीमा 31 मार्च 2021 से 19.5 प्रतिशत से 22 प्रतिशत तक बढ़ा दी। यह वितरण 31 मार्च 2022 तक उपलब्ध कराया गया था। 2021-22 के लिए केंद्र और राज्यों के उधार कार्यक्रम के संदर्भ में बाजार सहभागियों को निश्चितता प्रदान करने के लिए, अब 1 अप्रैल 2021 और 31 मार्च 2022 के बीच अधिग्रहित प्रतिभूतियों को शामिल करते हुए 22 प्रतिशत तक के विस्तारित एचटीएम के वितरण को 31 मार्च 2023 तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। 30 जून 2023 को समाप्त तिमाही से एचटीएम की सीमा को 22 प्रतिशत से 19.5 प्रतिशत तक चरणबद्ध तरीके से सीमित किया जाएगा। यह उम्मीद की जाती है कि बैंक एचटीएम सीमाओं की बहाली के लिए स्पष्ट ग्लाइड पथ के साथ एक इष्टतम तरीके से एसएलआर प्रतिभूतियों में अपने निवेश की योजना बनाने में सक्षम होंगे। 5. एमएसएमई उद्यमियों को ऋण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) के उधारकर्ताओं को नए ऋण प्रवाह प्रोत्साहित करने के लिए, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) की गणना के लिए उनके निवल मांग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) से 'नए एमएसएमई उधारकर्ताओं' को दिए गए ऋण में कटौती करने की अनुमति दी जाएगी। इस छूट के उद्देश्य के लिए, ''नए एमएसएमई उधारकर्ताओं'' को उन एमएसएमई उधारकर्ताओं के रूप में परिभाषित किया जाएगा, जिन्होंने 1 जनवरी 2021 को बैंकिंग प्रणाली से कोई ऋण सुविधा नहीं ली है। यह छूट केवल 1 अक्टूबर 2021 को समाप्त होने वाले पखवाड़े में प्रदान ऋण के लिए प्रति उधारकर्ता के लिए ₹25 लाख तक के उधार के लिए, ऋण की उत्पत्ति की तारीख से एक वर्ष की अवधि के लिए या ऋण की अवधि, जो भी पहले हो, के लिए उपलब्ध होगी। 6. बासेल III पूंजी विनियमन : पूर्ण रूप से लागू पूंजी संरक्षण बफर का आस्थगन COVID-19 के मद्देनजर उठाए गए विनियामक उपायों के हिस्से के रूप में, 0.625 प्रतिशत के पूंजी संरक्षण बफर (सीसीबी) की अंतिम ट्रांच का कार्यान्वयन, जो 1 अप्रैल 2020 से प्रभावी होने वाला था, को 1 अप्रैल 2021 तक के लिए आस्थगित कर दिया गया था। COVID-19 के कारण निरंतर दवाब को ध्यान में रखते हुए, और बहाली प्रक्रिया में सहायता के लिए, 1 अप्रैल 2021 के 0.625 प्रतिशत सीसीबी के अंतिम ट्रांच के कार्यान्वयन को 1 अक्टूबर 2021 तक स्थगित करने का निर्णय लिया गया है। 7. निवल स्थायी निधियन अनुपात (एनएसएफआर) के कार्यान्वयन का आस्थगन COVID-19 के मद्देनजर उठाए गए विनियामक उपायों के एक भाग के रूप में, भारत में बैंकों द्वारा निवल स्थायी निधियन अनुपात (एनएसएफआर) का कार्यान्वयन 1 अप्रैल 2021 तक आस्थगित किया गया था। जबकि बैंकों को चलनिधि के मोर्चे पर सहज रखा गया है, COVID-19 से संबंधित जारी तनाव को देखते हुए, एनएसएफआर के कार्यान्वयन को 1 अक्टूबर 2021 तक आस्थगित करने का निर्णय लिया गया है। 8. माइक्रोफाइनेंस के लिए नियामक ढांचे की समीक्षा हाल ही में, रिज़र्व बैंक ने एनबीएफसी के लिए संशोधित नियामक ढ़ांचा- एक स्केल आधारित दृष्टिकोण पर एक चर्चा पत्र जारी किया है। वित्तीय क्षेत्र में लगातार विकसित होने वाले परिवेश को ध्यान में रखते हुए, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी – सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं (एनबीएफसी-एमएफआई) के लिए नियामक ढांचे की समीक्षा करने का प्रस्ताव है। अकेले एनबीएफसी-एमएफआई के लिए इन दिशानिर्देशों को निर्धारित करने के बजाय, माइक्रोफाइनेंस स्पेस में विभिन्न विनियमित उधारदाताओं जिसमें अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, लघु वित्त बैंक और एनबीएफसी- निवेश और क्रेडिट कंपनियां शामिल हैं, के लिए समान नियामक ढांचे के साथ सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है। तदनुसार, रिज़र्व बैंक मार्च 2021 में सूक्ष्म वित्त स्पेस में विभिन्न विनियमित उधारदाताओं के लिए नियामक रूपरेखा के सामंजस्य के लिए एक परामर्शी दस्तावेज लेकर आएगा। 9. प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक क्रेडिट संरचना का एक महत्वपूर्ण खंड हैं। बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अधिनियम, 2020 के प्रावधान प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों (यूसीबी) पर 26 जून 2020 से लागू हैं। संशोधनों ने प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों और वाणिज्यिक बैंकों के बीच नियामक और पर्यवेक्षी शक्तियों के साथ-साथ उनमें भी जो अभिशासन, लेखा परीक्षा और संकल्प से संबंधित हैं, में समानता ला दी है। नतीजतन, इन संशोधनों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र के प्रति विनियामक / पर्यवेक्षी दृष्टिकोण की व्यापक समीक्षा आवश्यक है। तदनुसार, यह निर्णय किया गया है कि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए एक मध्यावधि रोड मैप प्रदान करने, यूसीबी के तेजी से पुनर्वास / समाधान को सक्षम करने के साथ-साथ इन संस्थाओं से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की जांच करने के लिए सभी हितधारकों को शामिल करते हुए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए। समिति के गठन के साथ-साथ संदर्भों की जानकारी अलग से दी जाएंगी। 10. उदारीकृत विप्रेषण योजना के तहत अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (आईएफएससी) को विप्रेषण वर्तमान में, निवासी व्यक्तियों को आईएफ़एससी को उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) के तहत विप्रेषण करने की अनुमति नहीं है। आईएफएससी को और विकसित करने और निवासी व्यक्तियों को अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने का अवसर प्रदान करने हेतु समीक्षा करने पर, योजना के तहत भारत में स्थापित आईएफएससी को विप्रेषण करने के लिए निवासी व्यक्तियों को अनुमति देने का निर्णय लिया गया है। चूंकि भारत में आईएफएससी के संबंध में चालू खाता लेनदेन में यात्रा, शिक्षा, उपहार और पूंजीगत खाता लेनदेन जैसे अचल संपत्ति की खरीद प्रासंगिक नहीं हैं, इसलिए केवल आईएफएससी में अनिवासी संस्थाओं द्वारा जारी प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए विप्रेषण की अनुमति होगी। एलआरएस के तहत निवेश करने के लिए निवासी व्यक्ति आईएफएससी में एक ब्याजरहित विदेशी मुद्रा खाता (एफसीए) भी खोल सकते हैं। एफसीए में फंड का उपयोग केवल आईएफएससी में अनुमेय निवेश करने के उद्देश्य से किया जाएगा और खाते में निष्क्रिय पड़े किसी भी निधि को भारत में निवेशक के निवासी खाते में प्राप्ति से 15 दिनों की अवधि के भीतर वापस कर दिया जाएगा। विस्तृत दिशानिर्देश जल्द ही एपी डीआईआर परिपत्र के रूप में जारी किए जाएंगे। III. वित्तीय बाजार में गहनता लाना 11. खुदरा निवेशकों को रिज़र्व बैंक में गिल्ट खाते खोलने की अनुमति देना सरकारी प्रतिभूति बाजार में खुदरा भागीदारी को प्रोत्साहित करना भारत सरकार और रिज़र्व बैंक का प्रमुख क्षेत्र रहा है। तदनुसार, कई पहलें अर्थात् प्राथमिक नीलामियों में गैर-प्रतिस्पर्धी बोली की शुरुआत, खुदरा निवेशकों के लिए एग्रीगेटर्स / फैसिलिटेटर के रूप में कार्य करने के लिए स्टॉक एक्सचेंजों को अनुमति देना और एनडीएस-ओएम द्वितीयक बाजार में ऑड-लॉट सेगमेंट की अनुमति देना, पहले किए जा चुके हैं। सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा भागीदारी को बढ़ाने और एक्सेस आसान बनाने के लगातार प्रयासों के तहत, एग्रीगेटर मॉडल से आगे बढ़ने और खुदरा निवेशकों को सरकारी प्रतिभूति बाजार, प्राथमिक और माध्यमिक दोनों, तक ऑनलाइन एक्सेस प्रदान करने के साथ-साथ रिज़र्व बैंक में अपना गिल्ट प्रतिभूति खाता ('रिटेल डायरेक्ट') खोलने की सुविधा प्रदान करने का निर्णय लिया गया है। सुविधा का विवरण अलग से जारी किया जाएगा। 12. चूक (डिफॉल्टेड) बॉण्ड में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफ़पीआई) निवेश वर्तमान में, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफ़पीआई) आस्ति पुनर्संरचना कंपनियों द्वारा जारी प्रतिभूति प्राप्तियों और ऋण लिखतों में तथा दिवालिया एवं शोधन अक्षमता कोड, 2016 के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण द्वारा अनुमोदित समाधान योजना के अनुसार कॉर्पोरेट दिवालिया समाधान प्रक्रिया के तहत संस्था द्वारा जारी ऋण लिखतों में निवेश कर सकते हैं और इन निवेशों को कॉर्पोरेट बॉन्ड में एफ़पीआई द्वारा निवेश के लिए मध्यम अवधि ढांचे (एमटीएफ़) के तहत अल्पकालिक सीमा और न्यूनतम अवशिष्ट परिपक्वता की आवश्यकता से छूट दी गई है। कॉरपोरेट बॉन्ड में एफ़पीआई द्वारा निवेश को और बढ़ावा देने के लिए, डिफॉल्टेड कॉरपोरेट बॉन्ड्स के लिए इसी तरह की छूट देने का प्रस्ताव है। तदनुसार, डिफ़ॉल्ट कॉरपोरेट बॉन्ड में एफपीआई निवेश को एमटीएफ के तहत अल्पकालिक सीमा और न्यूनतम अवशिष्ट परिपक्वता आवश्यकता से छूट दी जाएगी । विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जा रहे हैं। IV. भुगतान और निपटान प्रणाली 13. डिजिटल भुगतान सेवाओं के लिए एक 24x7 हेल्पलाइन की स्थापना शिकायतों के निवारण के लिए कई सुरक्षा और सतर्कता सुविधाएँ और उपाय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपयोगकर्ताओं के डिजिटल भुगतान अनुभव को बढ़ाने के लिए किए गए हैं। रिज़र्व बैंक के भुगतान प्रणाली विज़न दस्तावेज़ में विभिन्न डिजिटल भुगतान उत्पादों के संबंध में ग्राहक के प्रश्नों को संबोधित करने के लिए 24x7 हेल्पलाइन स्थापित करने की परिकल्पना की गई है। भरोसा और विश्वास के निर्माण के अलावा, हेल्पलाइन, वित्तीय और मानव संसाधन दोनों पर खर्च को कम करती है, जो अन्यथा प्रश्नों और शिकायतों को दूर करने के लिए उपचित किया जाता है। प्रमुख भुगतान प्रणाली परिचालकों को विभिन्न डिजिटल भुगतान उत्पादों के संबंध में ग्राहक के प्रश्नों का निपटान करने और उपलब्ध शिकायत निवारण तंत्र की जानकारी देने के लिए सितंबर 2021 तक एक केंद्रीकृत उद्योग-व्यापी 24x7 हेल्पलाइन स्थापित करने की आवश्यकता होगी। आगे बढ़ते हुए, हेल्पलाइन के माध्यम से ग्राहकों की शिकायतों को पंजीकृत करना और उसके निपटान पर विचार किया जाएगा। 14. अधिकृत भुगतान प्रणालियों के परिचालकों और प्रतिभागियों के लिए आउटसोर्सिंग पर दिशानिर्देश विभिन्न अधिकृत भुगतान प्रणालियों के परिचालक और प्रतिभागी उनके द्वारा ऑफर किए जाने वाले उत्पादों तथा उनके द्वारा परिचालित की जाने वाली भुगतान प्रणालियों के डिजाइन के लिए विभिन्न विशेष गतिविधियां करते हैं। अक्सर, ऐसी गतिविधियों को इष्टतम दक्षता और कम लागत के लिए आउटसोर्स किया जाता है। हालांकि, इस तरह की आउटसोर्स सेवाएं प्रदान करने वाली संस्थाओं की प्रणालियों में कमियाँ, मुख्य संस्था के लिए साइबर सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकती हैं। आउटसोर्सिंग में अनुवर्ती जोखिमों का प्रबंधन करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि भुगतान और निपटान संबंधी सेवाओं की आउटसोर्सिंग करते समय आचार संहिता का पालन किया जाता है, रिज़र्व बैंक प्राधिकृत भुगतान प्रणालियों के परिचालकों और प्रतिभागियों को दिशानिर्देश जारी करेगा। 15. देश के सभी बैंक शाखाओं का सीटीएस समाशोधन में भागीदारी को सक्षम बनाना चेक ट्रंकेशन प्रणाली (सीटीएस) 2010 से उपयोग में है और वर्तमान में तीन चेक प्रोसेसिंग ग्रिड में लगभग 1,50,000 शाखाएँ शामिल हैं। तब से सभी 1219 गैर-सीटीएस समाशोधन गृहों को सीटीएस में स्थानांतरित कर दिया गया है। यह देखा गया है कि लगभग 18,000 बैंक शाखाएं अभी भी किसी औपचारिक समाशोधन व्यवस्था से बाहर हैं। कागज आधारित समाशोधन में परिचालन दक्षता लाने और चेकों के संग्रहण और निपटान की प्रक्रिया को तेज करने के लिए, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर ग्राहक सेवा हो सके , सितंबर 2021 तक सीटीएस समाशोधन व्यावस्था के तहत ऐसी सभी शाखाओं को लाने का प्रस्ताव है। एक माह के भीतर अलग परिचालन दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। V. उपभोक्ता संरक्षण 16. एकीकृत लोकपाल योजना वित्तीय उपभोक्ता संरक्षण ने सभी क्षेत्राधिकार में महत्वपूर्ण नीतिगत प्राथमिकता प्राप्त की है। उपभोक्ता संरक्षण पर वैश्विक पहलों के अनुरूप, रिज़र्व बैंक ने विनियमित संस्थाओं के शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करने के लिए कई पहल की हैं। वैकल्पिक विवाद समाधान व्यवस्था के रूप में, तीन लोकपाल योजनाएं, (i) बैंकिंग लोकपाल योजना (ii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए लोकपाल योजना और (iii) डिजिटल लेन-देन के लिए लोकपाल योजना पूरे देश में भारतीय रिज़र्व बैंक के 22 लोकपाल कार्यालयों से परिचालन में हैं। रिज़र्व बैंक ने शिकायत प्रबंध प्रणाली (सीएमएस) पोर्टल को विनियमित संस्थाओं द्वारा नहीं निपटाए गए ग्राहक के शिकायतों के लिए वैकल्पिक विवाद निपटान हेतु एक समाधान के रूप में संचालित किया था। वैकल्पिक विवाद निपटान व्यवस्था को विनियमित संस्थाओं के ग्राहकों के लिए आसान और अधिक उत्तरदायी बनाने के लिए, यह निर्णय लिया गया है कि शिकायत निवारण के लिए, अन्य बातों के साथ-साथ, तीन लोकपाल योजनाओं के एकीकरण को लागू किया जाए और 'एक देश एक लोकपाल' दृष्टिकोण को अपनाया जाए। इसका उद्देश्य बैंकों, एनबीएफसी और पीपीआई के गैर-बैंक जारीकर्ताओं के ग्राहकों को एकीकृत योजना के तहत एक केंद्रीकृत संदर्भ बिंदु के साथ अपनी शिकायतों को दर्ज करने में सक्षम करके शिकायतों के निवारण की प्रक्रिया को आसान बनाना है। एकीकृत लोकपाल योजना जून 2021 में शुरू की जाएगी। (योगेश दयाल) प्रेस प्रकाशनी: 2020-2021/1051 |