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अक्तू॰ 26, 2018
स्वतंत्र विनियामकीय संस्थाओं का महत्व – केंद्रीय बैंक का मामला - डॉ. विरल वी. आचार्य, उप गवर्नर, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मुंबई में 26 अक्तूबर 2018 को दिया गया ए. डी. श्रॉफ स्मारक व्याख्यान
कोई भी समरूपता पूर्ण नहीं होती है; फिर भी, समरूपताओं के जरिए बातों को बेहतर ढंग कहने में मदद मिलती है। कई बार, मामूली आदमी भी व्यवहारिक और यहां तक कि अकादमिक बात भी सारगर्भित तरीके से कह देता है। लेकिन, संप्रेषणकर्ता के कार्य को आसान बनाने के उदाहरण असल जीवन में कभी-कभार ही सुंदरता के साथ आते हैं। मैं 2010 की एक घटना के साथ अपनी बात शुरू करता हूं क्योंकि यह मेरे वक्तव्य के विषय के लिए सर्वथा उपयुक्त हैः “इस केन्‍द्रीय बैंक में मेरा समय पूरा हुआ और यही कारण है कि मैंन
कोई भी समरूपता पूर्ण नहीं होती है; फिर भी, समरूपताओं के जरिए बातों को बेहतर ढंग कहने में मदद मिलती है। कई बार, मामूली आदमी भी व्यवहारिक और यहां तक कि अकादमिक बात भी सारगर्भित तरीके से कह देता है। लेकिन, संप्रेषणकर्ता के कार्य को आसान बनाने के उदाहरण असल जीवन में कभी-कभार ही सुंदरता के साथ आते हैं। मैं 2010 की एक घटना के साथ अपनी बात शुरू करता हूं क्योंकि यह मेरे वक्तव्य के विषय के लिए सर्वथा उपयुक्त हैः “इस केन्‍द्रीय बैंक में मेरा समय पूरा हुआ और यही कारण है कि मैंन

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