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प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा विदेशी मुद्रा उधार

भारिबैं/2014-15/649
ए.पी.(डीआइआर सीरीज) परिपत्र सं.112

दिनांक 25 जून 2015

सभी श्रेणी-। प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदया/महोदय,

प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा विदेशी मुद्रा उधार

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। (एडी श्रेणी-।) बैंकों का ध्यान समय-समय पर यथा संशोधित अधिसूचना सं.फेमा 3/आरबी2000 दिनांक 3 मई 2000 के विनियम सं.(4)(2)(i) की ओर आकृष्ट किया जाता है, जिसके अनुसार एडी श्रेणी-। बैंक अपने प्रधान कार्यालय से या समुद्रपार शाखाओं या भारत के बाहर करेसपौंडेंटों से या किसी अन्य प्रतिष्ठान से, जैसाकि रिज़र्व बैंक अनुमति दे, पिछली तिमाही की समाप्ति पर अपनी अक्षत टीयर-1 पूँजी के एक सौ प्रतिशत की सीमा तक या 10 मिलियन युएसडी (या इसके बराबर) तक निधियाँ, जो भी अधिक हो उन शर्तों के अधीन उधार ले सकते हैं, जैसाकि रिज़र्व बैंक निदेश दे । ए.पी.(डीआइआर सीरीज) परिपत्र सं.61 दिनांक 10 अक्तूबर 2013 की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया जाता है, जिसके अनुसार एडी श्रेणी-। बैंकों को अंतरराष्ट्रीय/बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं से एक सीमित अवधि के लिए 30 नवंबर 2013 तक उधार लेने की अनुमति प्रदान की गयी थी ।

2. समुद्रपारीय निधियों तक पहुँच प्राप्त करने के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से अब यह निर्णय लिया गया है कि एडी श्रेणी-। बैंकों को मामला-दर-मामला आधार पर रिज़र्व बैंक से संपर्क किये बिना अंतरराष्ट्रीय/बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं से उधार लेने की अनुमति दी जाये । इनमें वे अंतरराष्ट्रीय/बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाएँ शामिल होंगी, जिनका भारत सरकार एक शेयरधारक सदस्य है या जिनकी स्थापना एक से अधिक सरकारों द्वारा की गयी है या जिनमें एक से अधिक सरकारों और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों का शेयरधारण है ।

3. ऐसे उधार सामान्य बैंकिंग कारोबार के प्रयोजनार्थ लिये जाने चाहिए, न कि पूँजी बढ़ाने के लिए और वे ए.पी.(डीआइआर सीरीज) परिपत्र सं.40, 2013 दिनांक 10 सितंबर 2013 में अनुबद्ध प्रयोज्य विवेकपूर्ण शर्तों के अधीन होंगे ।

4. इस परिपत्र में अंतर्विष्ट निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और 11(1) के अंतर्गत जारी किये गये हैं और इनसे किसी अन्य कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि हो, पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता ।

भवदीय,

(आर. सुब्रमणियन)
मुख्य महाप्रबंधक

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