अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करना तथा ऋण पुनर्रचना प्रणाली कार्यनीतिक हेतु ढांचा की समीक्षा - आरबीआई - Reserve Bank of India
अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करना तथा ऋण पुनर्रचना प्रणाली कार्यनीतिक हेतु ढांचा की समीक्षा
भारिबैं/2015-16/408 26 मई 2016 सभी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) महोदया/महोदय, अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करना तथा ऋण पुनर्रचना प्रणाली कार्यनीतिक हेतु ढांचा की समीक्षा भारतीय रिज़र्व बैंक (रिज़र्व बैंक) ने अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने के उद्देश्य से विभिन्न दिशानिर्देश जारी किए हैं। रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए उपायों में कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना प्रणाली, अर्थव्यवस्था में दबावग्रस्त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा तथा बैंकों द्वारा दिए गए अग्रिमों की पुनर्रचना संबंधी दिशानिर्देशों में संशोधन शामिल है। 21 मार्च 2014, 23 जुलाई 2015 तथा 29 अक्तूबर 2015 के परिपत्रों द्वारा उपर्युक्त ढांचा यथा लागू एनबीएफसी पर लागू किया गया था। 2. रिज़र्व बैंक के बैंकिंग विनियमन विभाग ने 25 फरवरी 2016 के परिपत्र बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.82/21.04.132/2015-16 द्वारा कुछ संशोधन किया है। यह निर्णय लिया गया है कि उपर्युक्त परिपत्र के द्वारा ढांचा में किए गए संशोधन को, यथोचित परिवर्तनों सहित, एनबीएफसी पर लागू किया जाए। 3. प्रणालीगत महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (जमा राशि नहीं स्वीकार करने वाली अथवा धारण नहीं करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015 को संशोधित करने वाली 26 मई 2016 की अधिसूचना सं: गैबैंविवि.041/मुमप्र(सीडीएस)-2016; गैर-प्रणालीगत महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (जमा राशि नहीं स्वीकार करने वाली अथवा धारण नहीं करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015 को संशोधित करने वाली 26 मई 2016 की अधिसूचना सं: गैबैंविवि.042/मुमप्र(सीडीएस)-2016 तथा गैर बैंकिंग वित्तीय ( जमाराशि स्वीकार अथवा धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2007 को संशोधित करने वाली 26 मई 2016 की अधिसूचना सं: गैबैंविवि.043/मुमप्र(सीडीएस)-2016 इसके साथ संलग्न है। भवदीय (सी डी श्रीनिवासन) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं: गैबैंविवि 041/मुमप्र(सीडीएस)-2016 26 मई 2016 भारतीय रिजर्व बैंक (रिज़र्व बैंक), जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से 27 मार्च 2015 की अधिसूचना सं. गैबैंविवि.009/मुमप्र(सीडीएस) 2015 द्वारा जारी प्रणालीगत महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि स्वीकार नहीं करने अथवा नहीं धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015, यथा संशोधित 07 अप्रैल 2016 तक को संशोधित करना आवश्यक है, भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा- 1. निदेश के अनुबंध III के पैराग्राफ 7 को हटाया जाए । 2. निदेश के अनुबंध III के पैराग्राफ 8 में विविध के बाद तथा उप पैराग्राफ 8.1 के पहले निम्नलिखित को शामिल किया जाए; पुनर्रचना के सभी मामलों में निम्नलिखित सामान्य शर्तें लागू होंगे: 3. निदेश के अनुबंध III के पैराग्राफ 8 में उप पैराग्राफ 8.4 के बाद निम्नलिखित पैराग्राफ शामिल किया जाए। 8.5 सभी पुनर्रचना पैकेज समयबद्ध तरीके से लागू किया जाना अपेक्षित होगा। सीडीआर/ जेएलएफ/ कंसोर्टियम/ एमबीए व्यवस्था के अंतर्गत सभी पुनर्रचना पैकेज अनुमोदन की तारीख से 90 दिनों के भीतर लागू किए जाने चाहिए। अन्य पुनर्रचना पैकेज एनबीएफसी द्वारा आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 120 दिनों के भीतर लागू किए जाने चाहिए। 8.6 पुनर्रचना के सभी मामलों में प्रवर्तकों को अतिरिक्त निधियां लानी चाहिए। प्रवर्तकों द्वारा लाई गई अतिरिक्त निधियां एनबीएफसी के त्याग का कम से कम 20 प्रतिशत अथवा पुनर्रचित ऋण का 2 प्रतिशत, में से जो भी अधिक हो, होनी चाहिए। उधारकर्ताओं को पुनर्रचना लाभ प्रदान करते समय प्रवर्तकों का योगदान अनिवार्यत: पहले लाया जाना चाहिए। प्रवर्तकों का योगदान नकद में ही लाया जाना आवश्यक नहीं है और इसे प्रवर्तकों द्वारा गैर-जमानती ऋण को इक्विटी में रूपांतरण के रूप में भी लाया जा सकता है; 8.7 एनबीएफसी को नकद प्रवाह और टेक्नो आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन (टीईवी) के आधार पर एक ऐसी उचित अवधि का निर्धारण करना चाहिए, जिसके दौरान खाते के अर्थक्षम होने की संभावना हो; 8.8 एनबीएफसी को आश्वस्त होना चाहिए कि पुनर्रचना के बाद चुकौती अवधि उचित है, तथा खाते में अनुमानित नकद प्रवाहों और अपेक्षित डीएससीआर बोर्ड अनुमोदित नीति के अनुरूप है। 8.9 प्रत्येक एनबीएफसी को टीईवी तथा पुनर्रचित चुकौती की शर्तों में अंतर्निहित पूर्वधारणाओं की व्यवहार्यता का मूल्यांकन के लिए अपनाई गई उचित सावधानी प्रक्रिया का स्पष्ट रूप से प्रलेखन करना चाहिए। 4. निदेश के अनुबंध III के परिशिष्ट 3 के पैराग्राफ 5 के खंड 5.1 के उप खंड 5.1.3 के बाद निम्नलिखित को शामिल किया जाए। अर्थक्षम खातों के आर्थिक मूल्य का संरक्षण करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि धोखाधड़ी / भ्रष्टाचार के मामलों में जहां नए प्रवर्तकों ने मौजूदा प्रवर्तकों का स्थान ले लिया है, और ऋण लेने वाले कंपनी पूरी तरह से ऐसे पूर्व- प्रवर्तकों/ प्रबंधन से अलग हो चुकी है, एनबीएफसी और जेएलएफ पूर्व-प्रवर्तकों/ प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की निरंतरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे खातों की व्यवहार्यता के आधार पर उनकी पुनर्रचना का विचार कर सकते हैं। इसके अलावा, ऐसे खाते भी स्वामित्व में परिवर्तन के बाद पुनर्वित्त पर उपलब्ध परिसंपत्ति वर्गीकरण लाभों के लिए पात्र होंगे जिसमें स्वामित्व में परिवर्तन 'उधारकर्ता संस्थाओं (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) के स्वामित्व में परिवर्तन पर विवेकपूर्ण मानदंड' पर दिनांक 24 सितंबर 2015 के परिपत्र डीबीआर/बीपी.बीसी.सं.41/21.04.048/2015-16 में निहित दिशानिर्देशों के तहत किया जाता है, तो प्रत्येक एनबीएफसी अपने बोर्ड के अनुमोदन से ऐसी आस्तियों की पुनर्रचना पर अपनी नीति और अपेक्षाएं तैयार कर सकती है। (सी. डी. श्रीनिवासन) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं: गैबैंविवि 042/मुमप्र(सीडीएस)-2016 26 मई 2016 भारतीय रिजर्व बैंक (रिज़र्व बैंक), जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से 27 मार्च 2015 की अधिसूचना सं. गैबैंविवि.008/मुमप्र(सीडीएस) 2015 द्वारा जारी गैर-प्रणालीगत महत्वपूर्ण गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशि स्वीकार नहीं करने अथवा नहीं धारण करने वाली) कंपनी विवेकपूर्ण मानदंड (रिज़र्व बैंक) निदेश, 2015 यथा संशोधित 10 मार्च 2016 तक को संशोधित करना आवश्यक है, भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा- 1. निदेश के अनुबंध III के पैराग्राफ 7 को हटाया जाए । 2. निदेश के अनुबंध III के पैराग्राफ 8 में विविध के बाद तथा उप पैराग्राफ 8.1 के पहले निम्नलिखित को शामिल किया जाए; पुनर्रचना के सभी मामलों में निम्नलिखित सामान्य शर्तें लागू होंगे: 3. निदेश के अनुबंध III के पैराग्राफ 8 में उप पैराग्राफ 8.4 के बाद निम्नलिखित पैराग्राफ शामिल किया जाए। 8.5 सभी पुनर्रचना पैकेज समयबद्ध तरीके से लागू किया जाना अपेक्षित होगा। सीडीआर/ जेएलएफ/ कंसोर्टियम/ एमबीए व्यवस्था के अंतर्गत सभी पुनर्रचना पैकेज अनुमोदन की तारीख से 90 दिनों के भीतर लागू किए जाने चाहिए। अन्य पुनर्रचना पैकेज एनबीएफसी द्वारा आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 120 दिनों के भीतर लागू किए जाने चाहिए। 8.6 पुनर्रचना के सभी मामलों में प्रवर्तकों को अतिरिक्त निधियां लानी चाहिए। प्रवर्तकों द्वारा लाई गई अतिरिक्त निधियां एनबीएफसी का त्याग के कम से कम 20 प्रतिशत अथवा पुनर्रचित ऋण का 2 प्रतिशत, में से जो भी अधिक हो, होनी चाहिए। उधारकर्ताओं को पुनर्रचना लाभ प्रदान करते समय प्रवर्तकों का योगदान अनिवार्यत: पहले लाया जाना चाहिए। प्रवर्तकों का योगदान नकद में ही लाया जाना आवश्यक नहीं है और इसे प्रवर्तकों द्वारा गैर-जमानती ऋण को इक्विटी में रूपांतरण के रूप में भी लाया जा सकता है; 8.7 एनबीएफसी को नकद प्रवाह और टेक्नो आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन (टीईवी) के आधार पर एक ऐसी उचित अवधि का निर्धारण करना चाहिए, जिसके दौरान खाते के अर्थक्षम होने की संभावना हो; 8.8 एनबीएफसी को आश्वस्त होना चाहिए कि पुनर्रचना के बाद चुकौती अवधि उचित है, तथा खाते में अनुमानित नकद प्रवाहों और अपेक्षित डीएससीआर बोर्ड अनुमोदित नीति के अनुरूप है। 8.9 प्रत्येक एनबीएफसी को टीईवी तथा पुनर्रचित चुकौती की शर्तों में अंतर्निहित पूर्वधारणाओं की व्यवहार्यता का मूल्यांकन के लिए अपनाई गई उचित सावधानी प्रक्रिया का स्पष्ट रूप से प्रलेखन करना चाहिए। 4. निदेश के अनुबंध III के परिशिष्ट 3 के पैराग्राफ 5 के खंड 5.1 के उप खंड 5.1.3 के बाद निम्नलिखित को शामिल किया जाए। अर्थक्षम खातों के आर्थिक मूल्य का संरक्षण करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि धोखाधड़ी / भ्रष्टाचार के मामलों में जहां नए प्रवर्तकों ने मौजूदा प्रवर्तकों का स्थान ले लिया है, और ऋण लेने वाले कंपनी पूरी तरह से ऐसे पूर्व- प्रवर्तकों/ प्रबंधन से अलग हो चुकी है, एनबीएफसी और जेएलएफ पूर्व-प्रवर्तकों/ प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की निरंतरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे खातों की व्यवहार्यता के आधार पर उनकी पुनर्रचना का विचार कर सकते हैं। इसके अलावा, ऐसे खाते भी स्वामित्व में परिवर्तन के बाद पुनर्वित्त पर उपलब्ध परिसंपत्ति वर्गीकरण लाभों के लिए पात्र होंगे जिनमें स्वामित्व में परिवर्तन 'उधारकर्ता संस्थाओं (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) के स्वामित्व में परिवर्तन पर विवेकपूर्ण मानदंड' पर दिनांक 24 सितंबर 2015 के परिपत्र डीबीआर/बीपी.बीसी.सं.41/21.04.048/2015-16 में निहित दिशानिर्देशों के तहत किया जाता है, प्रत्येक एनबीएफसी अपने बोर्ड के अनुमोदन से ऐसी आस्तियों की पुनर्रचना पर अपनी नीति और अपेक्षाएं तैयार कर सकती है। (सी. डी. श्रीनिवासन) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिसूचना सं: गैबैंविवि 043/मुमप्र(सीडीएस)-2016 26 मई 2016 भारतीय रिजर्व बैंक, जनता के हित में यह आवश्यक समझकर और इस बात से संतुष्ट होकर कि देश के हित में ऋण प्रणाली को विनियमित करने के लिए, बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजन से 22 फरवरी 2007 की अधिसूचना सं. डीएनबीएस.192/डीजी(वीएल)-2007 द्वारा जारी गैर बैंकिंग वित्तीय (जमाराशियां स्वीकारने या धारण करने वाली) कंपनियां विवेकपूर्ण मानदण्ड (रिजर्व बैंक) निदेश 2007 यथा संशोधित 10 मार्च 2016 तक को संशोधित करना आवश्यक है, भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम , 1934 (1934 का 2) की धारा 45 ञक द्वारा प्रदत्त शक्तियों और इस संबंध में प्राप्त समस्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त निदेश को तत्काल प्रभाव से निम्नवत संशोधित करने का निदेश देता है यथा- 1. निदेश के अनुबंध ए के पैराग्राफ 7 को हटाया जाए । 2. निदेश के अनुबंध ए के पैराग्राफ 8 में विविध के बाद तथा उप पैराग्राफ 8.1 के पहले निम्नलिखित को शामिल किया जाए; पुनर्रचना के सभी मामलों में निम्नलिखित सामान्य शर्तें लागू होंगे: 3. निदेश के अनुबंध ए के पैराग्राफ 8 में उप पैराग्राफ 8.4 के बाद निम्नलिखित पैराग्राफ शामिल किया जाए। 8.5 सभी पुनर्रचना पैकेज समयबद्ध तरीके से लागू किया जाना अपेक्षित होगा। सीडीआर/ जेएलएफ/ कंसोर्टियम/ एमबीए व्यवस्था के अंतर्गत सभी पुनर्रचना पैकेज अनुमोदन की तारीख से 90 दिनों के भीतर लागू किए जाने चाहिए। अन्य पुनर्रचना पैकेज एनबीएफसी द्वारा आवेदन प्राप्त होने की तारीख से 120 दिनों के भीतर लागू किए जाने चाहिए। 8.6 पुनर्रचना के सभी मामलों में प्रवर्तकों को अतिरिक्त निधियां लानी चाहिए। प्रवर्तकों द्वारा लाई गई अतिरिक्त निधियां एनबीएफसी के त्याग का कम से कम 20 प्रतिशत अथवा पुनर्रचित ऋण का 2 प्रतिशत, में से जो भी अधिक हो, होनी चाहिए। उधारकर्ताओं को पुनर्रचना लाभ प्रदान करते समय प्रवर्तकों का योगदान अनिवार्यत: पहले लाया जाना चाहिए। प्रवर्तकों का योगदान नकद में ही लाया जाना आवश्यक नहीं है और इसे प्रवर्तकों द्वारा गैर-जमानती ऋण को इक्विटी में रूपांतरण के रूप में भी लाया जा सकता है; 8.7 एनबीएफसी को नकद प्रवाह और टेक्नो आर्थिक व्यवहार्यता अध्ययन (टीईवी) के आधार पर एक ऐसी उचित अवधि का निर्धारण करना चाहिए, जिसके दौरान खाते के अर्थक्षम होने की संभावना हो; 8.8 एनबीएफसी को आश्वस्त होना चाहिए कि पुनर्रचना के बाद चुकौती अवधि उचित है, तथा खाते में अनुमानित नकद प्रवाहों और अपेक्षित डीएससीआर बोर्ड अनुमोदित नीति के अनुरूप है। 8.9 प्रत्येक एनबीएफसी को टीईवी तथा पुनर्रचित चुकौती की शर्तों में अंतर्निहित पूर्वधारणाओं की व्यवहार्यता का मूल्यांकन के लिए अपनाई गई उचित सावधानी प्रक्रिया का स्पष्ट रूप से प्रलेखन करना चाहिए। 4. निदेश के अनुबंध ए के परिशिष्ट 3 के पैराग्राफ 5 के खंड 5.1 के उप खंड 5.1.3 के बाद निम्नलिखित को शामिल किया जाए। अर्थक्षम खातों के आर्थिक मूल्य का संरक्षण करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि धोखाधड़ी / भ्रष्टाचार के मामलों में जहां नए प्रवर्तकों ने मौजूदा प्रवर्तकों का स्थान ले लिया है, और ऋण लेने वाले कंपनी पूरी तरह से ऐसे पूर्व- प्रवर्तकों/ प्रबंधन से अलग हो चुकी है, एनबीएफसी और जेएलएफ पूर्व-प्रवर्तकों/ प्रबंधन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की निरंतरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे खातों की व्यवहार्यता के आधार पर उनकी पुनर्रचना का विचार कर सकते हैं। इसके अलावा, ऐसे खाते भी स्वामित्व में परिवर्तन के बाद पुनर्वित्त पर उपलब्ध परिसंपत्ति वर्गीकरण लाभों के लिए पात्र होंगे जिनमें स्वामित्व परिवर्तन 'उधारकर्ता संस्थाओं (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) के स्वामित्व में परिवर्तन पर विवेकपूर्ण मानदंड' पर दिनांक 24 सितंबर 2015 के परिपत्र डीबीआर/बीपी.बीसी.सं.41/21.04.048/2015-16 में निहित दिशानिर्देशों के तहत किया जाता है, प्रत्येक एनबीएफसी अपने बोर्ड के अनुमोदन से ऐसी आस्तियों की पुनर्रचना पर अपनी नीति और अपेक्षाएं तैयार कर सकती है। (सी. डी. श्रीनिवासन) |