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प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार संबंधी दिशानिर्देशों के मास्टर निदेशों पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

ख. समायोजित निवल बैंक ऋण की गणना (एएनबीसी)

उत्तर: निवल पीएसएलसी बकाया (खरीदी गई पीएसएलसी घटाव(-) बेची गई पीएसएलसी) को निवल बैंक ऋण में जोड़ा जाता है, जैसा कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार, 2025 पर मास्टर निदेश के पैरा 6 (समय-समय पर अद्यतन) में उल्लिखित है। इसके अलावा, एक पीएसएलसी अपनी समाप्ति तक बकाया रहता है (दिनांक 07 अप्रैल 2016 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार प्रमाणपत्र  पर परिपत्र के अनुबंध की क्रम सं. ix) सभी पीएसएलसी 31 मार्च तक समाप्त हो जाएंगे और रिपोर्टिंग तिथि (अर्थात 31 मार्च) से आगे मान्य नहीं होंगे, भले ही पूर्व में उसके खरीद / बेचने की तिथि कुछ भी हो। तदनुसार, एएनबीसी में पीएसएलसी खरीद संबंधी प्रभाव में वृद्धि होती है और इसके विपरीत पीएसएलसी की बिक्री का प्रभाव एएनबीसी में कम होता है तथा पीएसएलसी की खरीद/बिक्री का निवल प्रत्येक तिमाही के लिए एएनबीसी में समायोजित किया जाता है। अतः किसी भी तिमाही में खरीदे या बेचे गए पीएसएलसी को वित्त वर्ष के अंत तक सभी बाद की तिमाहियों में ध्यान में रखना होगा, जिससे वह संबंधित है।

 

उत्तर: (i) पी.एस.एल. में कमी के कारण नाबार्ड के पास बकाया जमाराशियां कृषि उप-लक्ष्य के लिए गणना योग्य हैं तथा समग्र पी.एस.एल. के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भी गणना योग्य हैं।
(ii) सिडबी और मुद्रा के पास बकाया जमाराशियां एमएसएमई उधार के अंतर्गत गिनी जाने योग्य हैं तथा समग्र पीएसएल लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गिनी जाती हैं।
(iii) एनएचबी के पास बकाया जमाराशियां आवास के अंतर्गत गिनी जाने योग्य हैं तथा समग्र पीएसएल लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गिनी जाएंगी।
(iv) उपरोक्त सभी बकाया जमाराशियों को एएनबीसी की गणना के लिए नेट बैंक क्रेडिट (एनबीसी) में जोड़ा जाएगा।

उत्तर: (i) उपर्युक्त परिपत्र के अनुसार, एएनबीसी से अपवर्जन के लिए पात्र राशि, पात्र वृद्धिशील एफसीएनआर (बी)/ एनआरई जमाराशियों से उत्पन्न संसाधनों से दिए गए वृद्धिशील अग्रिम हैं। वृद्धिशील अग्रिम की गणना 7 मार्च 2014 को भारत में बकाया अग्रिमों और आधार तिथि (26 जुलाई 2013) के बीच के अंतर के रूप में की जाती है।
(ii) उपर्युक्त परिपत्रों के अनुसार, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य की गणना के लिए एएनबीसी से बाहर की जाने वाली राशि सीआरआर/एसएलआर के रखरखाव से छूट के लिए पात्र वृद्धिशील एफसीएनआर (बी)/ एनआरई जमाराशियों से अधिक नहीं होगी।
(iii) यदि 7 मार्च 2014 और आधार तिथि के बीच बकाया अग्रिमों की राशि में अंतर शून्य या ऋणात्मक है, तो कोई भी राशि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से एएनबीसी से कटौती के लिए पात्र नहीं होगी।

उत्तर: एलसी के तहत खरीदे गए/ भुनाए गए/ परक्रामित बिलों (लाभार्थी को भुगतान जो रिज़र्व के तहत नहीं है) को केवल एक्सपोजर और पूंजी आवश्यकताओं की गणना के सीमित उद्देश्य के लिए अंतर बैंक एक्सपोजर के रूप में मानने की अनुमति है। इसे 'भारत में बैंक ऋण' की गणना से बाहर नहीं किया जाना चाहिए [जैसा कि आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 42(2) के तहत फॉर्म 'ए' के मद सं. VI में निर्धारित है] जो अंतर बैंक अग्रिम को बाहर रखने की अनुमति देता है। एक्सपोजर, एलसी जारी करने वाले बैंक के लिए हो सकता है, जबकि खरीदे गए बिल/ भुनाई गई राशि को उधारकर्ता को दिए गए बैंक ऋण के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि यह अग्रिम प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र वर्गीकरण के लिए पात्र है, तो बैंक इसे पीएसएल के रूप में दावा कर सकता है। बैंकों को भारत में निवल बैंक ऋण को रिपोर्ट करने के साथ-साथ पीएसएल लक्ष्यों और उपलब्धि के लिए समायोजित निवल बैंक ऋण की गणना करते समय उपरोक्त पहलू पर ध्यान देना चाहिए।

आवास ऋण

बैंक द्वारा आपके आवास ऋण की पात्रता तय करते समय आपकी भुगतान क्षमता का आकलन किया जाएगा। चुकौती क्षमता आपकी मासिक प्रयोज्य (डिस्पोजेबल) / अधिशेष आय पर आधारित है, (जो बदले में कुल मासिक आय / अधिशेष घटा मासिक व्यय जैसे कारकों पर आधारित है) और अन्य कारक जैसे पति या पत्नी की आय, संपत्ति, देनदारियां, आय की स्थिरता इत्यादि। बैंक की मुख्य चिंता यह सुनिश्चित करना है कि आप आराम से समय पर ऋण का भुगतान करें और अंतिम उपयोग सुनिश्चित करें। मासिक प्रयोज्य आय जितनी अधिक होगी, उतनी ही अधिक राशि आप ऋण के लिए पात्र होंगे। आमतौर पर एक बैंक यह मानता है कि आपकी मासिक प्रयोज्य/अतिरिक्त आय का लगभग 55-60% ऋण चुकाने के लिए उपलब्ध है। हालांकि, कुछ बैंक किसी व्यक्ति की सकल आय के आधार पर ईएमआई भुगतान के लिए उपलब्ध आय की गणना करते हैं, न कि उसकी प्रयोज्य आय पर।

ऋण की राशि ऋण की अवधि और ब्याज की दर पर भी निर्भर करती है क्योंकि ये चर (प्रभावित करने वाली वस्तुएँ)आपके मासिक व्यय/बहिर्प्रवाह को निर्धारित करते हैं जो बदले में आपकी प्रयोज्य आय पर निर्भर करता है। बैंक आम तौर पर आवास ऋण आवेदकों के लिए ऊपरी आयु सीमा तय करते हैं।

लक्षित दीर्घकालिक रिपो परिचालन (टीएलटीआरओ)

उत्तर: टीएलटीआरओ योजना के तहत, बैंकों को टीएलटीआरओ के तहत उधार ली गई राशि का निवेश प्राथमिक / द्वितीयक बाजार से प्रतिभूतियों (अर्थात, 26 मार्च 2020 तक निर्दिष्ट प्रतिभूतियों में उनके लंबित विवरण से अधिक और अतिरिक्त) के नए अधिग्रहण में करना होगा। यद्यपि, टीएलटीआरओ योजना में भागीदारी से बैंक के मौजूदा निवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और बैंक वर्तमान नियामकों / आंतरिक दिशा-निर्देशों के संदर्भ में अपने एएफएस / एचएफटी पोर्टफोलियो का संचालन जारी रख सकते हैं।

FAQs on Non-Banking Financial Companies

Registration

The company can keep its capital funds invested in any type of deposits with a bank until it is granted a Certificate of Registration by RBI enabling it to commence its business as a financial institution. Investment in any other type of securities will attract the provisions of section 45-I(c) of the RBI Act.

विप्रेषण (धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) तथा रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए))

रुपया आहरण व्यवस्था(आरडीए)

ये ऐसी कंपनियां तथा वित्तीय संस्थाएं हैं जिन्हें विप्रेषकों से निधियों की सोर्सिंग के लिए प्रेषक देश के सक्षम प्राधिकरण द्वारा लाइसेन्सिकृत तथा विनियमित किया जाता है।

देशी जमा

I . देशी जमा

बैंक बचत बैंक खातों पर तिमाही या उससे लंबी अवधि के अंतराल पर ब्याज दे सकते हैं।

फेमा 1999 के तहत विदेशी देयताओं और परिसंपत्तियों (एफएलए) पर वार्षिक रिटर्न

एफएलए रिटर्न जमा करने के लिए पात्र संस्थाएं और आवश्यकताएं

उत्तर: प्रश्न 1 में उल्लिखित मानदंड का अनुपालन करने वाली इकाईयों को अनिवार्य रूप से प्रत्येक वर्ष 15 जुलाई तक इकाई के लेखापरीक्षित/अलेखा-परीक्षित खातों के आधार पर फेमा 1999 के तहत एफ़एलए रिटर्न जमा करना आवश्यक है।

समझौता निपटान और तकनीकी रूप से बट्टे खाते डालने (राइट-ऑफ) के लिए रूपरेखा

ए. इरादतन कर्ज़ न चुकाने और धोखाधड़ी के मामलों में समझौता निपटान

नहीं। क्रमशः, धोखाधड़ी पर दिनांक 1 जुलाई 2016 को जारी मास्टर दिशानिर्देश और दिनांक 1 जुलाई 2015 के इरादतन चूककर्ताओं पर जारी मास्टर परिपत्र के अनुसार, वर्तमान में धोखाधड़ी अथवा इरादतन चूककर्ताओं के रूप में वर्गीकृत उधारकर्ताओं पर लागू दंडात्मक प्रावधान अपरिवर्तित रहेंगे और उक्त दिशानिर्देश उन सभी मामलों पर लागू होंगे जहां बैंक ऐसे उधारकर्ताओं के साथ समझौता निपटान करते हैं।

ऐसे दंडात्मक प्रावधानों में अन्य बातों के साथ-साथ यह भी शामिल है कि इरादतन चूककर्ता के रूप में सूचीबद्ध उधारकर्ताओं को किसी भी बैंक/वित्तीय संस्था द्वारा कोई अतिरिक्त सुविधाएं नहीं दी जानी चाहिए और ऐसी कंपनियों (उनके उद्यमियों/प्रमोटरों सहित) को इरादतन चूककर्ताओं की सूची से अपना नाम हटाने की तारीख से पांच वर्ष की अवधि के लिए नए उद्यम स्थापित करने के लिए संस्थागत वित्त से वंचित कर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत उधारकर्ताओं को धोखाधड़ी की गई राशि के पूर्ण भुगतान की तारीख से पांच वर्ष की अवधि के लिए बैंक वित्त प्राप्त करने से वंचित कर दिया जाना चाहिए।

रिटेल डायरेक्ट योजना

योजना संबन्धित प्रश्न

आरडीजी खाता खोलने से व्यक्ति प्राथमिक बाज़ार (नीलामी) के साथ ही साथ द्वितीयक बाज़ार में भी सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदा/बेचा जा सकता है। रिटेल निवेशक के लिए, सरकारी प्रतिभूति दीर्घावधि निवेश के लिए एक विकल्प है। रिटेल निवेशकों के लाभ निम्न है:

i. जी-सेक जोखिम मुक्त है: घरेलू बाजार के संदर्भ में जी-सेक जोखिम मुक्त है और कोई क्रेडिट जोखिम नहीं है।

ii. जी-सेक लंबी अवधि के लिए उचित प्रतिफल देता है। जी-सेक प्रतिफल वक्र 40 साल तक के लिए है। सरकार द्वारा यील्ड वक्र पर विभिन्न बिंदुओं पर प्रतिभूतियां जारी करने के साथ, जी-सेक उन बचतकर्ताओं के लिए एक आकर्षक विकल्प प्रदान करता है जिन्हें लंबी अवधि के लिए कम जोखिम वाले निवेश विकल्पों की आवश्यकता होती है।

iii. जी-सेक पूंजीगत लाभ की संभावना प्रदान करता है: चूंकि बांड मूल्य और ब्याज दर के बीच एक विपरीत संबंध है, इसलिए ब्याज दरों में नरमी आने पर पूंजीगत लाभ की संभावना है। हालांकि बाज़ार जोखिम के लिए सतर्क होना चाहिए जो ब्याज दर के विपरीत होने पर हानि में बदल सकता है।

iv. जी-सेक में उचित तरलता होती है: जी-सेक में उचित तरलता होती है और एनडीएस-ओम पर लेनदेन किया जा सकता है। रिटेल डायरेक्ट पोर्टल की शुरुआत के साथ, खुदरा निवेशक अब प्राथमिक और माध्यमिक बाजार में आसानी से भाग ले सकते हैं।

v. जी-सेक पोर्टफोलियो में विविधता लाने में मदद: सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश पोर्टफोलियो विविधीकरण में मदद करेगा और फलस्वरूप खुदरा निवेशकों के लिए जोखिम को कम करेगा।

vi. रिटेल डायरेक्ट योजना के अंतर्गत शून्य प्रभार: रिटेल डायरेक्ट खाता पूरी तरह से नि: शुल्क है और इसमें कोई मध्यस्थ शामिल नहीं है। यह व्यक्तिगत निवेशकों के लिए उन शुल्कों के संदर्भ में समग्र लेनदेन शुल्क को कम करेगा जो उन्हें अन्यथा एग्रीगेटर के माध्यम से निवेश करने या म्यूचुअल फंड के माध्यम से अप्रत्यक्ष एक्सपोजर लेने के लिए भुगतान करने की आवश्यकता होती है।

दिनांक 31 जनवरी 2024 और 16 फरवरी 2024 की प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड पर लगाए गए कारोबारी प्रतिबंध

पेटीएम पेमेंट्स बैंक में बैंक खाते

नहीं। 15 मार्च 2024 के बाद आप पेटीएम पेमेंट्स बैंक के अपने खाते में धनराशि जमा नहीं कर पाएंगे। ब्याज, कैशबैक, साझेदार बैंकों से स्वीप-इन या रिफंड के अलावा किसी भी क्रेडिट या जमाराशि को जमा करने की अनुमति नहीं।

भारत में सरकारी प्रतिभूति बाजार – एक प्रवेशिका

2.1. बैंक द्वारा अपनी दैनिक आवश्यकताओं से अधिक नकदी रखने से उसे कुछ लाभ नहीं होता । सोने में निवेश से बहुत सी समस्याएँ होती हैं जैसे उसकी शुद्धता, मूल्यांकन, सुरक्षित अभिरक्षा इत्यादि । सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के निम्नलिखित लाभ हैं :-कूपन (ब्याज) के रूप में प्रतिफल मिलने के साथ-साथ सरकारी प्रतिभूतियों में अधिकतम सुरक्षा मिलती है क्योंकि उनमें ब्याज के भुगतान और मूल की चुकौती की सॉवेरन की प्रतिबद्धता होती है ।वे पुस्तक में प्रविष्टि के रूप में धारित की जा सकती हैं अर्थात डीमेट/क्रिप के रूप में, अत: उसके लिए सुरक्षित अभिरक्षा की आवश्यकता नहीं होती ।सरकारी प्रतिभूतियाँ 91 दिन से लेकर 30 वर्ष की लम्बी अवधि के लिए, जो भी बैंक की देयताओं के अनुरूप हों, उपलब्ध रहती हैं ।नकदी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए द्वितीयक बाजार में इन्हें आसानी से बेचा जा सकता है ।सरकारी प्रतिभूतियों का उपयोग रिपो बाजार से निधि उधार लेने के लिए संपाश्दिवक के रुप में प्रयोग में लाई जा सकती हैं ।सरकारी प्रतिभूतियों में ब्यापार के लिए समायोजन प्रणाली, जो सुपुर्दगी बनाम भुगतान (अ्vझ्) पर आधारित है, जो समायोजन की बहुत आसान, सुरक्षित और सक्षम प्रणाली है । अ्vझ् तंत्र विक्रेता द्वारा प्रतिभूतियों के अंतरण के साथ-साथ क्रेता से निधि का अंतरण सुनिश्चित करके समायोजन जोखिम कम करता है ।सरकारी प्रतिभूति मूल्य तरल और सक्रिय द्वितीयक बाजार के कारण आसानी से उपलब्ध होते हैं तथा एक पारदर्शी प्रसारतंत्र है ।बैंकों के अतिरिक्त, बीमा कंपनियों और अन्य बड़े निवेशकों, छोटे निवेशकों जैसे सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, भविष्य निधि से भी अपेक्षा की जाती है कि वे नीचे निर्दिष्ट किए अनुसार सरकारी प्रतिभूतियाँ धारण करें :-(क) प्राथमिक (शहरी सहकारी बैंक)2.2. बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 24 (जैसा कि वह सहकारी समितियों पर लागू है) में प्रावधान है कि प्रत्येक प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक किसी भी दिन की समाप्ति पर, अपनी मांग और मीयादी देयताओं के 25% से अनधिक तरल आस्तियों का अनुरक्षण करेगा (न्यूनतम नकदी प्रारक्षित अपेक्षाओं के अतिरिक्त) । ये तरल आस्तियाँ नकदी, सोने अथवा भाररहित सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में होनी चाहिए । इन्हें सामान्यतया सांविधिक चलनिधि अनुपात (एसएलआर) अपेक्षा कहा जाता है ।2.3. सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी एसएलआर धारिताओं का कुछ न्यूनतम स्तर सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में निम्नानुसार निवेश करें :-(क) अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को अपनी एसएलआर अपेक्षा का 25 प्रतिशत सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में धारण करना चाहिए ।(ख) गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को, जिनकी मांग और मीयादी देयताएँ 25 करोड रु. से अधिक हैं, अपनी एसएलआर अपेक्षाओं का 15% सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में धारण करना चाहिए ।(ग) गैर अनुसूचित शहरी सहकारी बैंकों को, जिनकी मांग और मीयादी देयताएँ 25 करोड़ रु. से कम हैं, अपनी एसएलआर अपेक्षाओं का 10% सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में धारण करना चाहिए ।(ख) ग्रामीण सहकारी बैंक2.4. बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 24 के अनुसार राज्य सहकारी बैंकों और जिला केद्रीय सहकारी बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे एसएलआर अपेक्षा के भाग के रूप में नकदी, सोने अथवा भाररहित प्रतिभूतियों में धारित करें जिनका मूल्य वर्तमान बाजार मूल्य से अधिक न हो, अपनी मांग और मीयादी देयताओं के 25% से कम न हो । डीसीसीबी को अनुमति है कि वे अपने संबंधित शहरी सहकारी बैंक में एसएलआर की अपेक्षा को पूरा करने के लिए नकदी शेष का अनुरक्षण कर सकता है ।(ग) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक2.5. अप्रैल 2002 से सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी सारी एसएलआर का अनुरक्षण सरकारी और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में करें । वर्तमान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए एसएलआर अपेक्षा उनकी मांग और मीयादी देयताओं का 25% है ।2.6 वर्तमान में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपनी एसएलआर प्रतिभूतियों के संबंध में उनके दैनिक बाजार मूल्य से छूट प्रदान की गई है । तदनुसार, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को "परिपक्वता तक धारित" के अंतर्गत अपने पूरे निवेश संविभाग को वर्गीकृत करने तथा उन्हें उनके बही मूल्य पर मूल्यांकित करने की छूट दे दी गई है ।(घ) भविष्य निधि और अन्य संस्थाएँ2.7. केद्र सरकार की अपेक्षा के अनुसार गैर सरकारी भविष्य निधियों, पेंशन तथा उपदान निधियों को 24 जनवरी 2005 से अपनी क्रमिक आय का 40% केद्र और राज्य सरकार की प्रतिभूतियों तथा/अथवा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बौर्ड (सेबी) द्वारा विनियमित गिल्ट निधि की यूनिटों तथा केद्र/राज्य सरकारों द्वारा पूर्णतया तथा बिना किसी शर्त के अन्य परक्राम्य लिखत में निवेश करना अपेक्षित है । तथापि, किसी एक गिल्ट निधि में न्यास का जोखिम किसी भी समय उसके कुल संविभाग के पाँच प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । गैर सरकारी भविष्य निधियों के लिए निवेश दिशानिर्देशों में हाल ही में सुधार किया गया है जिसके अनुसार अप्रैल 2009 से निवेशयोग्य निधि के 55% तक निवेश केद्र सरकार की प्रतिभूतियों, राज्य सरकार की प्रतिभूतियों तथा गिल्ट निधि की यूनिटों में निवेश करने की अनुमति है ।

बाह्य वाणिज्यिक उधार(ईसीबी) तथा व्यापार ऋण

ए. कुछ बुनियादी प्रश्न

उत्तर: नहीं, एडी श्रेणी-I बैंकों द्वारा एफ़सीएनआर (बी) जमाराशियों की आगम राशियों में से घरेलू तौर पर दिए गए विदेशी मुद्रा ऋण ईसीबी ढांचे के अंतर्गत नहीं आते हैं।

एनबीएफसी के बारे में आपके जानने योग्य संपूर्ण जानकारी

A. परिभाषाएं

वित्तीय गतिविधि ‘प्रमुख व्यवसाय’ तब कहलाएगी, जब कंपनी की वित्तीय आस्तियां कुल आस्तियों की 50 प्रतिशत से अधिक हो और वित्तीय आस्तियों से होने वाली आय कुल आय के 50 प्रतिशत से अधिक हो। वह कंपनी जो ये दोनों मानदंड पूरा करती है, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा एनबीएफसी के रूप में पंजीकृत की जाएगी। 'प्रमुख व्यवसाय' शब्द को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है। रिज़र्व बैंक ने इसे इसलिए स्पष्ट किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल उन्हीं कंपनियों का उसके पास पंजीकरण, विनियमन और पर्यवेक्षण हो जो मुख्य रूप से वित्तीय गतिविधि से जुड़ी हैं। अत: यदि ऐसी कंपनी जिनका मूल कारोबार कृषि कार्य, औद्योगिक गतिविधि, किसी वस्तु की खरीद बिक्री, कोई सेवा प्रदान करना, अचल संपत्ति की खरीद/बिक्री/निर्माण है और वह अल्प स्वरूप में कुछ वित्तीय कारोबार करती हो, उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित नहीं किया जाएगा। दिलचस्पी से, इस परीक्षण को आमतौर पर 50-50 परीक्षण के रूप में जाना जाता है और इसका प्रयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि कंपनी वित्तीय व्यवसाय में है या नहीं।

कोर निवेश कंपनियां

कोर निवेश कंपनियां (सीआईसी)

उत्तर: मौजूदा सीआईसी जिन्हें पहले पंजीकरण से छूट दी गई थी और जिनकी आस्ति का आकार 100 करोड़ रुपये से कम है, उन्हें जैसा कि दिनांक 5 जनवरी 2011 की अधिसूचना संख्या डीएनबीएस (पीडी) 220/CGM(US)-2011 में वर्णित है, आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 45 एनसी के तहत पंजीकरण से छूट दी गई है, और इसलिए छूट के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।

भारत में विदेशी निवेश

उत्तर: "पूंजीगत लिखत" का तात्पर्य भारतीय कंपनी द्वारा जारी इक्विटी शेयर, डिबेंचर, अधिमनी शेयर तथा शेयर वारंटों से है।

इक्विटि शेयर: इक्विटि शेयर वे शेयर हैं जो कंपनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार जारी किए गए हैं तथा इनमें 8 जुलाई 2014 को अथवा उसके बाद जारी किए गए आंशिक रूप से प्रदत्त इक्विटि शेयर भी शामिल हैं ।

शेयर वारंट: 8 जुलाई 2014 को अथवा उसके बाद जारी किए गए शेयर वारंट को पूंजीगत लिखत माना जाएगा।

डिबैंचर : ‘डिबेंचर” शब्द का अर्थ पूर्ण रूप से, अनिवार्यतः एवं अधिदेशात्मक रूप से परिवर्तनीय डिबेंचर है।

अधिमानी शेयर: ‘अधिमानी शेयर” शब्द का अर्थ पूर्ण रूप से, अनिवार्यतः एवं अधिदेशात्मक रूप से परिवर्तनीय अधिमनी शेयर है।

दिनांक 30 अप्रैल 2007 की स्थिति के अनुसार तथा उस दिनांक तक जारी अपरिवर्तनीय/ वैकल्पिक रूप से परिवर्तनीय / आंशिक रूप से परिवर्तनीय अधिमनी शेयर तथा दिनांक 07 जून 2007 तक जारी एवं उनकी मूल परिपक्वता अवधि तक वैकल्पिक रूप से परिवर्तनीय / आंशिक रूप से परिवर्तनीय डिबेंचर को एफ़डीआई के लिए योग्य पूंजीगत लिखत माना जाएगा। दिनांक 30 अप्रैल 2007 के पश्चात जारी अ-परिवर्तनीय/ वैकल्पिक रूप से परिवर्तनीय / आंशिक रूप से परिवर्तनीय अधिमनी शेयरों तथा दिनांक 07 जून 2007 के पश्चात जारी वैकल्पिक रूप से परिवर्तनीय / आंशिक रूप से परिवर्तनीय डिबेंचरों को कर्ज़ (उधार) माना जाएगा और उन्हें विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा में उधार लेना एवं उधार देना) विनियमावली, 2000 के तहत जारी बाह्य वाणिज्यिक उधार संबंधी दिशा-निर्देशों का अनुपालन करना होगा।

भारतीय मुद्रा

क) भारतीय मुद्रा/मुद्रा प्रबंधन से जुड़ी आधारभूत जानकारी

ऐसे सिक्के अथवा बैंकनोट जिसे कानूनी रूप से कर्ज अथवा देयता के एवज में दी जा सके, वैध मुद्रा होगी ।

भारत सरकार द्वारा सिक्‍का निर्माण अधिनियम, 2011 की धारा 6 के तहत जारी सिक्के भुगतान अथवा अग्रिम के तौर पर वैध मुद्रा होंगे, बशर्ते कि उन्‍हें विकृत नहीं किया गया हो तथा निर्धारित वजन की तुलना में उसका वजन कम नहीं हुआ हो । एक रुपया से कम मूल्‍यवर्ग को छोड़कर किसी भी सिक्‍के को किसी एकल लेनदेन में एक हजार रुपये तक की किसी भी राशि के संबंध में वैध मुद्रा माना जाएगा । पचास पैसे (आधा रुपया) का सिक्का, दस रुपये तक की राशि के लिए वैध मुद्रा होगा । किसी को भी उल्लिखित सीमा से अधिक सिक्के स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, किंतु स्वेच्छा से उक्त सीमा से अधिक सिक्के स्वीकार करने पर रोक नहीं है ।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी प्रत्‍येक बैंकनोट (₹2, ₹5, ₹10, ₹20, ₹50, ₹100, ₹200, ₹500 तथा ₹2000*), जब तक कि उसे संचलन से वापस न ले लिया जाए, उसमें उल्लिखित राशि के लिए भुगतान अथवा अग्रिम के तौर पर भारत में वैध होगा, तथा भारत सरकार द्वारा प्रत्याभूत होगा जो भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26 की उप-धारा (2) के प्रावधानों के अधीन होगा । भारत सरकार द्वारा जारी ₹1 के नोट भी वैध मुद्रा होंगे । महात्मा गांधी शृंखला के अंतर्गत 08 नवंबर 2016 तक जारी किए गए ₹500 तथा ₹1000 के बैंकनोट 08 नवंबर 2016 की मध्यरात्रि से वैध मुद्रा नहीं रहे ।

*₹2000 मूल्यवर्ग के बैंक नोट अभी भी वैध मुद्रा हैं ।अधिक जानकारी के लिए 01 सितंबर 2023 के प्रेस विज्ञप्ति 2023-2024/851 का संदर्भ लें

(https://rbi.org.in/hi/web/rbi/-/press-releases/withdrawal-of-%E2%82%B92000-denomination-banknotes-status-56301).

समन्वित संविभागीय निवेश सर्वेक्षण - भारत

अपडेट हो गया है: जून 03, 2024

सीपीआईएस के तहत रिपोर्ट करने के लिए पात्र संस्थाएं और आवश्यकताएं

उत्तर: वर्तमान में, पिछले वित्तीय वर्ष (एफ़वाई) के मार्च -अंत और सितंबर- अंत की स्थिति को जानने के लिए भारत में अर्ध-वार्षिक सर्वेक्षण किया जाता है।

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पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: दिसंबर 10, 2022

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