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अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्‍त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) तथा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी) के संबंध में दिशानिर्देशों की समीक्षा

आरबीआई/2015-16/182
बैंविवि. बीपी. बीसी. सं.39/21.04.132/2015-16

24 सितंबर 2015

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
अखिल भारतीय मीयादी ऋण तथा पुनर्वित्‍त प्रदान करने वाली संस्‍थाएं
(एक्जिम बैंक, नाबार्ड, एनएचबी तथा सिडबी)

महोदय

अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्‍त ऋणदाता फोरम
(जेएलएफ) तथा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी) के संबंध में दिशानिर्देशों की समीक्षा

कृपया अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के संबंध में 30 जनवरी 2014 को हमारी वेबसाइट में डाले गए अनुदेश तथा इस संबंध में जारी किए गए अन्य परिपत्र देखें अर्थात

  1. 26 फरवरी 2014 का बैंपविवि. सं.बीपी. बीसी. 97/21.04.132/2013-14 - ‘संयुक्‍त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) तथा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी) के संबंध में दिशानिर्देश’ और

  2. 26 फरवरी 2014 का बैंपविवि. सं.बीपी. बीसी. 98/21.04.132/2013-14 - ‘परियोजना ऋणों को पुनर्वित्‍त प्रदान करना, एनपीए का विक्रय तथा अन्‍य विनियामक उपाय’ जिसे

  3. 13 फरवरी 2014 के बैंपर्यवि.केंका.ओसमोस संख्या.9862/33.01.018/2013-14 - ‘बड़े ऋणों से संबंधित सूचनाओं की सेंट्रल रिपोजीटरी (सीआरआईएलसी) - रिपोर्टिंग में संशोधन’ और

  4. 22 मई 2014 का बैंपर्यवि.केंका.ओसमोस संख्या 14703 /33.01.001/2013-14 – ‘बड़ी राशि के ऋणों की सूचनाओं की सेंट्रल रिपोजीटरी (सीआरआईएलसी) को रिपोर्टिंग’ के साथ पढ़ा जाना है।

2. उपर्युक्त अनुदेशों की समीक्षा की गई थी और 21 अक्तूबर 2014 के हमारे परिपत्र बैंपविवि. सं.बीपी.बीसी.45/21.04.132/2014-15 द्वारा कुछ स्पष्टीकरण /संशोधन जारी किए गए थे। साथ ही, दबावग्रस्त खातों को सशक्त करने के लिए प्रवर्तकों की अधिक हितधारिता सुनिश्चित करने की दृष्टि से तथा बैंकों को ऐसे खातों के स्वामित्व परिवर्तन हेतु संवर्धित क्षमताएं प्रदान करने के लिए, जो अर्थक्षमता के संबंध में निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रहते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक ने 8 जून 2015 के परिपत्र बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.101/21.04.132/2014-15 द्वारा ‘कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना’ (एसडीआर) आरंभ की। ढांचे की प्रभावोत्पादकता के सतत आकलन के एक भाग के रूप में तथा बैंकों से प्राप्त सुझावों के आधार पर भी, ढांचे की समीक्षा की गई है और यह निर्णय लिया गया है कि ढांचे को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसमें निम्नलिखित परिवर्तन/परिवर्धन किए जाएं।

3. संयुक्त ऋणदाता फोरम शक्ति प्राप्त समूह (जेएलएफ – ईजी)

3.1 यह अभ्यावेदन किया गया है कि कभी-कभी बोर्डों को जेएलएफ द्वारा किए गए निर्णयों का अनुमोदन करने में कठिनाई आती है क्योंकि संयुक्त ऋणदाता फोरमों में प्रतिभागी ऋणदाताओं की ओर से वरिष्ठ स्तर पर प्रतिनिधित्व नहीं होता है। इस संबंध में, यह स्पष्ट किया जाता है कि, यद्यपि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से प्रतिनिधित्व का स्तर निर्धारित नहीं किया है, तथापि बैंकों से अपेक्षित है कि जेएलएफ की बैठकों में चर्चा और निर्णय के लिए पर्याप्त रूप से शक्ति प्राप्त वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों को प्रतिनियुक्त करें।

3.2 तथापि, यह निर्णय किया गया है कि जेएलएफ, सीएपी को अंतिम रूप देगा और इसे ऋणदाताओं के एक शक्ति प्राप्त समूह (ईजी) के समक्ष रखा जाएगा जिसका कार्य सीएपी के अंतर्गत संशोधन/पुनर्रचना पैकेजों को अनुमोदन देना होगा। जेएलएफ-ईजी की संरचना निम्नानुसार होगी:

  1. स्थायी सदस्य के रूप में भारतीय स्टेट बैंक और आईसीआईसीआई में से प्रत्येक का एक प्रतिनिधि;

  2. उधारकर्ता के सबसे बड़े 3 ऋणदाताओं के एक-एक प्रतिनिधि। यदि भारतीय स्टेट बैंक या आईसीआईसीआई बैंक सबसे बड़े 3 ऋणदाताओं में से हों, तो चौथे सबसे बड़े ऋणदाता, या चौथे और पाँचवे सबसे बड़े ऋणदाता का एक-एक प्रतिनिधि, जैसा भी मामला हो;

  3. अग्रिमों1 के अनुसार दो सबसे बड़े बैंकों, जिनका उधारकर्ता के प्रति कोई एक्सपोजर न हो, के एक-एक प्रतिनिधि; और

  4. जेएलएफ – ईजी में प्रतिभागिता किसी सरकारी क्षेत्र के बैंक या उसके समान बैंक में कार्यपालक निदेशक (ईडी) से कम रैंक की नहीं होनी चाहिए।

जेएलएफ का संयोजन करने वाला बैंक जेएलएफ-ईजी का संयोजन करेगा तथा इसे सचिवीय सहायता प्रदान करेगा।

4. जे एल एफ के अंतर्गत संदिग्ध खातों की पुनर्रचना

4.1 26 फरवरी 2014 के परिपत्र बैंपविवि. सं.बीपी. बीसी. 97/21.04.132/2013-14 के पैरा 4.3.6 के अनुसार जबकि सामान्‍य तौर पर संदिग्‍ध के रूप में वर्गीकृत कोई भी खाता पुनर्रचना के लिए जेएलएफ द्वारा विचार नहीं किया जाना चाहिए। जिन मामलों में कर्ज का छोटा हिस्‍सा संदिग्‍ध है अर्थात् खाता कम से कम 90% ऋणदाताओं की बहियों में (मूल्‍य के आधार पर) मानक/अवमानक है, जेएलएफ द्वारा पुनर्रचना के लिए खाते पर विचार किया जा सकता है।

4.2 उपर्युक्त में आंशिक संशोधन करते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि जेएलएफ, एसएमए 2 और अवमानक आस्तियों की भांति एक या एकाधिक ऋणदाताओं की बहियों में ‘संदिग्ध’ के रूप में वर्गीकृत किसी खाते की पुनर्रचना कर सकते हैं यदि टीईवी के अंतर्गत खाते का अर्थक्षम के रूप में मूल्यांकन किया गया है और जेएलएफ-ईजी मूल्यांकन से सहमत है तथा प्रस्ताव का अनुमोदन करता है।

5. सीएपी और एक्ज़िट विकल्प के रूप में पुनर्रचना के संबंध में असहमति

5.1. दिनांक 21 अक्तूबर 2014 के हमारे परिपत्र बैंविवि. सं.बीपी. बीसी. 45/21.04.132/2014-15 के पैरा 10.3 के अनुसार बैंक, इस बात पर ध्‍यान दिए बिना कि वे न्‍यूनतम 75 प्रतिशत और 60 प्रतिशत के भीतर है या बाहर है, अब से अतिरिक्‍त वित्‍त प्रदान करने हेतु उपर्युक्‍त एक्जिट विकल्‍प का प्रयोग केवल नए या विद्यमान ऋणदाता द्वारा उसके हिस्‍से के लिए दिए जाने वाले अतिरिक्‍त वित्‍त उपलब्‍ध कराये जाने के तहत कर सकते हैं।

5.2. हमारे ध्यान में यह लाया गया है कि कभी-कभी संशोधन या पुनर्रचना पर सीएपी निर्धारित करने के बारे में ऋणदाताओं के बीच असहमति उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप समय से सुधारात्मक कार्रवाई आरंभ करने में विलंब होता है। यद्यपि, किसी अर्थक्षम खाते के समयनिष्ठ रूपान्तरण के लिए सर्वसम्मति से सीएपी निर्धारित करने के लिये उधारकर्ताओं के बीच सहयोग वांछनीय है, यह भी महत्वपूर्ण है कि सभी ऋणदाता खाते की अर्थक्षमता के संबंध में स्वतंत्र राय रख सकें और इसके परिणामस्वरूप खाते की पुनर्रचना, संशोधन में दूसरों के प्रयासों का बेजा फायदा न लेते हुए प्रतिभाग कर सकें। इसके मद्देनजर, यह निर्णय लिया गया है कि अलग राय रखने वाले उन उधारकर्ताओं जो सीएपी के रूप में खाते के संशोधन या पुनर्रचना, जिसमें अतिरिक्त वित्तपोषण हो भी सकता है और नहीं भी, में प्रतिभाग नहीं करना चाहते हैं, के लिए एक विकल्प होगा कि वे सहमति प्राप्त सीएपी लागू करने की निर्धारित समयसीमा के भीतर नए या विद्यमान ऋणदाताओं को अपना एक्सपोजर बेचकर अपने एक्सपोजर से पूरी तरह एक्ज़िट कर जाएं। एक्ज़िट करनेवाले ऋणदाता के पास यह विकल्प नहीं होगा कि वह अपने वर्तमान एक्सपोजर को जारी भी रखे और साथ ही, सीएपी के रूप में संशोधन या पुनर्रचना के लिए सहमत भी न हो। जिस नए ऋणदाता को एक्ज़िट करने वाला ऋणदाता अपना हित बेचता है, उससे किसी अतिरिक्त वित्त की प्रतिबद्धता नहीं होगी, यदि सहमति प्राप्त कैप में अतिरिक्त वित्त भी शामिल है। ऐसे मामलों में, यदि नया ऋणदाता अतिरिक्त वित्त में प्रतिभाग न करने का चुनाव करता है, एक्ज़िट करने वाले उधारदाता से संबंधित अतिरिक्त वित्त के भाग को वर्तमान उधारदाताओं से आनुपातिक आधार पर पूरा किया जाएगा।

6. विद्यमान दंडात्मक प्रावधान (मानक खाते के मामले में 5% तथा एनपीए मामले के संबंध में वृद्धिशील प्रावधान) के लिए आवेदन करने हेतु समयावधि

6.1 दिनांक 26 फरवरी 2014 के परिपत्र बैंपविवि.बीपी.बीसी.97/21.04.132/2013-14 के पैरा 7 और 8 के अनुसार कतिपय मामलों पर दंडात्मक प्रावधान लागू हैँ। निलंब खाता रखने वाले बैंक के मामले में, जो उधारकर्ता द्वारा चुकौती के आगमों को निर्धारित शर्तों के अनुसार ऋणदाताओं में वितरित नहीं करता है जिसके परिणामस्वरूप अन्य ऋणदाताओं की बहियों में खाते के आस्ति वर्गीकरण में गिरावट होती है, के मामले में ऐसे दंडात्मक प्रावधानों की अवधि विनिर्दिष्ट की गई है, (21 अक्तूबर 2014 के परिपत्र बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.45/21.04.132/2014-15 का पैरा 9.4) जबकि अन्य मामलों में यह अवधि निर्धारित नहीं की गयी है।

6.2 उपर्युक्तको ध्यान में रखते हुए, बैंकों को सूचित किया जाता है कि इस संरचना के अंतर्गत अन्य मामलों में दंडात्मक प्रावधान निम्नलिखित अवधियों के लिए लागू होंगे:

क्रम सं. दंडात्मक प्रावधान के कारण अवधि
(i) बैंक सीआरआईएलसी को खातों की एसएमए स्थिति रिपोर्ट करने में असफल रहते हैं या खातों की वास्तविक स्थिति को छुपाने के लिए युक्तियों का सहारा लेते हैं या खाते को सदाबहार बनाए रखते हैं। आरबीआई निरीक्षण / सांविधिक लेखा परीक्षकों द्वारा सूचित दंडात्मक प्रावधान लागू करने की तिथि से एक वर्ष तक या कमियो में सुधार तक जो भी बाद में हो।
(ii) ऐसे ऋणदाता, जो जेएलएफ द्वारा सीएपी के अंतर्गत पुनर्रचना निर्णय के लिए सहमत हुए हैं तथा जो सीआईसीए और डीसीए पर हस्ताक्षरकर्ता हैं, लेकिन बाद में अपना रुख बदल देते हैं, या पैकेज को लागू करने से मना/विलंब करते हैं।
(iii) ऋणदाता जेएलएफ संयोजित करने में असफल रहते हैं या निर्धारित समय सीमा के भीतर एक सामान्य सीएपी पर सहमति बनाने में असमर्थ रहते हैं।
(iv) बैंक के ऐसी कंपनियों को दिए गए मौजूदा ऋणों / एक्सपोजर के संबंध में वृद्धिशील प्रावधान करना जिनमें एक या अधिक ऐसे निदेशक हैं (दबाव के समय में बोर्ड पर लाये गए सरकार / वित्तीय संस्थाओं के नामिती निदेशकों को छोड़कर) जिनका नाम इरादतन चूककर्ताओं की सूची में एक से अधिक बार प्रकाशित होता है। इरादतन चूककर्ता की सूची में इरादतन चूककर्ता के रूप में अधिसूचित होने की तिथि से इरादतन चूककर्ता सूची से नाम हटाए जाने तक।

7. कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना (एसडीआर) योजना

"कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना" पर 8 जून 2015 के परिपत्र बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी. 101/21.04.132/2013-14 में निहित प्रावधानों के संबंध में यह सूचित किया जाता है कि 26 फरवरी 2014 के परिपत्र बैंपविवि. सं.बीपी. बीसी. 97/21.04.132/2013-14 के पैरा 3 में जेएलएफ द्वारा निर्धारित किए गए अनुसार सीएपी के रूप में सुधार या पुनर्रचना करने में असफल रहने के मामलों में जेएलफ के पास यह विकल्प होगा कि वह उधारकर्ता कंपनी के प्रबंधन में बदलाव के लिए एसडीआर प्रारंभ करे, बशर्ते कि उक्त 8 जून 2015 के परिपत्र में निहित शर्तों का पालन किया जाता है।

भवदीय,

(सुदर्शन सेन)
प्रधान मुख्य महाप्रबंधक


1 अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के अग्रिम भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम ‘भारत में बैंकों से संबंधित सांख्यिकीय तालिकाएं’ में ‘तालिका 2: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की आस्तियां और देयताएं’

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