मास्टर परिपत्र - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंक वित्त - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंक वित्त
आरबीआई/2012-13/96 2 जुलाई 2012 अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक / महोदय मास्टर परिपत्र - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंक वित्त कृपया आप उपर्युक्त विषय पर 1 जुलाई 2011 का हमारा मास्टर परिपत्र सं. आरबीआइ/2011-12/71 बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 20/21.04.172/2011-12 देखें। इस मास्टर परिपत्र को 30 जून 2012 तक जारी अनुदेशों को शामिल करते हुए यथोचित रूप में अद्यतन किया गया है तथा इसे भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी प्रदर्शित किया गया है। भवदीय (दीपक सिंघल) मास्टर परिपत्र उद्देश्य बैंकों द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के वित्तपोषण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की विनियामक नीति निर्धारित करना वर्गीकरण बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35क के अधीन जारी सांविधिक दिशानिर्देश पूर्ववर्ती दिशानिर्देशों का अधिक्रमण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त संबंधी 2जुलाई 2011 का मास्टर परिपत्र सं. आरबीआइ/ 2011-12/71 बैंपविवि. बीपी. बीसी. सं. 20/21.04.172/2011-12 प्रयोज्यता सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) संरचना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय III ख के प्रावधानों के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की वित्तीय गतिविधियों को विनियमित करता आ रहा है। जनवरी 1997 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन कर दिए जाने के बाद, उक्त अधिनियम की धारा 45 झक के अनुसार सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक में अपना पंजीकरण कराना अनिवार्य है। (क) `एनबीएफसीज़' से तात्पर्य है भारतीय रिज़र्व बैंक के गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग के पास पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी। (ख) अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियां (आरएनबीसीज़) वे कंपनियां हैं जो भारतीय रिज़र्व बैंक के गैर-बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग के पास उस प्रकार वर्गीकृत एवं पंजीकृत हैं। (ग) `चालू निवेशों' से तात्पर्य ऐसे निवेशों से है, जो उधारकर्ता के तुलनपत्र में `चालू परिसंपत्ति' के रूप में वर्गीकृत हैं और जिन्हें एक वर्ष से कम अवधि के लिए रखा जाने वाला है। (घ) `दीर्घावधि निवेशों', से तात्पर्य `चालू परिसंपत्तियों' के रूप में वर्गीकृत निवेशों को छोड़कर सभी प्रकार के निवेशों से है । (ङ) `बेज़मानती ऋणों' से तात्पर्य ऐसे ऋणों से है जो किसी मूर्त परिसंपत्ति द्वारा रक्षित नहीं हैं । भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों के ऋण संबंधी मामलों को क्रमिक रूप से अविनियमित कर दिया है। ऋण वितरण के मामले में बैंकों को अधिक परिचालनगत स्वतंत्रता प्रदान करने की नीति के अनुरूप तथा रिज़र्व बैंक के पास गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के अनिवार्य पंजीकरण के परिप्रेक्ष्य में, बैंकों द्वारा गैर-बैंकिंग कंपनियों को वित्तपोषण करने से संबंधित अंधिकांश पहलुओं को भी अविनियमित किया जा चुका है। तथापि, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की कुछ विशिष्ट प्रकार की गतिविधियों के वित्तपोषण से संबद्ध संवेदनशीलता को देखते हुए ऐसी गतिविधियों के वित्तपोषण पर प्रतिबंध लागू रहेगा । 2. भारतीय रिज़र्व बैंक में पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त 2.1 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निवल स्वाधिकृत निधि (एनओएफ) के साथ संबद्ध बैंक ऋण की अधिकतम सीमा ऐसी सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संबंध में हटा ली गई है जो सांविधिक तौर पर रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत हैं तथा मुख्यतया आस्ति वित्तपोषण, ऋण और निवेश संबंधी कारोबार कर रही हैं। तदनुसार, बैंक रिज़र्व बैंक में पंजीकृत तथा इंफ्रास्ट्रक्चर वित्तपोषण, उपस्कर पट्टे पर देने, किराया-खरीद, ऋण, आढ़तिया और निवेश कार्य करनेवाली सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को आवश्यकता पर आधारित कार्यशील पूंजी की सुविधाएं तथा मीयादी ऋण प्रदान कर सकते हैं। 2.2 `सेकंड हैंड' आस्तियों के वित्तपोषण में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्राप्त अनुभव को ध्यान में रखते हुए बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा वित्तपोषित `सेकंड हैंड' आस्तियों की जमानत पर उन्हें वित्त प्रदान कर सकते हैं । 2.3 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को विविध प्रकार की ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण मार्गदर्शी सिद्धांत और निवेश मानदंडों के अंदर बैंक अपने निदेशक बोर्ड के अनुमोदन से उचित ऋण नीति बना सकते हैं बशर्ते पैरा 5 और 6 में दर्शाये गये कार्यकलापों को उनके द्वारा वित्तपोषण नहीं किया जाता हो । 3. ऐसी कंपनियों को बैंक वित्त जिनके लिए पंजीकरण1 कराना आवश्यक नहीं है जिन कंपनियों के लिए रिज़र्व बैंक में पंजीकरण कराना आवश्यक नहीं है, ढजैसे - i) बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 3 के अंतर्गत पंजीकृत बीमा कंपनियाँ; ii) कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 620ए के अंतर्गत अधिसूचित निधि कंपनियाँ; iii) चिटफंड का कारोबार करनेवाली ऐसी चिटफंड कंपनियाँ जिनका प्रमुख कारोबार, रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-I (खख) के खण्ड (vii) के स्पष्टीकरण के अनुसार, चिटफंड कारोबार है; iv) भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत पंजीकृत स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियाँ /मर्चेंट बैंकिंग कंपनियाँ; और v) राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा नियंत्रित की जा रही ऐसी आवास वित्त कंपनियाँ जिन्हें रिज़र्व बैंक में पंजीकरण संबंधी अपेक्षा से छूट प्रात हैज् उनके मामले में ऋण के प्रयोजन, अन्तर्निहित आस्तियों के स्वरूप और गुणवत्ता, उधारकर्त्ताओं की चुकौती की क्षमता तथा जोखिम संबंधी अपनी समझ जैसे सामान्य कारकों के आधार पर बैंक ऋण देने के मामले में अपना निर्णय ले सकते हैं । 4. अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों को बैंक वित्त 4.1 अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों के लिए भी यह अपेक्षित है कि वे रिज़र्व बैंक में अनिवार्यत: अपना पंजीकरण कराएँ । रिज़र्व बैंक में पंजीकृत ऐसी कंपनियों के मामले में बैंक वित्त उन कंपनियों की निवल स्वाधिकृत निधि तक सीमित होगा । 4.2 निवल स्वाधिकृत निधि (एनओएफ) 4.2.1 बैंकों को चाहिए कि वे निवल स्वाधिकृत निधि के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45- झ क के स्पष्टीकरण में दी गयी परिभाषा का पालन करें, अर्थात़् 1. निवल स्वाधिकृत निधि का आशय है (क) कंपनी के नवीनतम तुलन-पत्र में बतायी गयी प्रदत्त ईक्विटी पूँजी और निर्बंध आरक्षित निधियों का योग, परंतु इसमें से निम्नलिखित को घटा दिया गया हो (i) संचित हानि शेष; (ii) आस्थगित राजस्व व्यय; और (iii) अन्य अमूर्त आस्तियाँ; तथा (ख) साथ ही, निम्नलिखित को भी घटा दिया गया हो (1) ऐसी कंपनी का निम्नलिखित के शेयरों में निवेश (i) उसकी सहायक कंपनियाँ; (ii) उसी समूह की कंपनियाँ; (iii) सभी अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ; और (2) डिबेंचरों, बांडों का बही मूल्य और निम्नलिखित को दिए गए बकाया ऋण तथा अग्रिम (हायर परचेज़ व लीज़ फाइनांस सहित) तथा निम्नलिखित के पास जमाराशियाँ (i) ऐसी कंपनी की सहायक कंपनियाँ; और (ii) उसी समूह की कंपनियाँ उपर्युक्त (क) के 10 प्रतिशत से जितनी अधिक राशि है उतनी घटायी जाएगी। II. "सहायक कंपनियाँ" और "उसी समूह की कंपनियाँ" का वही अर्थ होगा जो कंपनी अधिनियम; 1956 (1956 का 1) में दिया गया है। 5. किन गतिविधियों के लिए बैंक ऋण नहीं दिया जा सकता 5.1 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निम्नलिखित गतिविधियाँ बैंक ऋण के लिए पात्र नहीं हैं : (i) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा भुनाये गये/पुन: भुनाये गये बिल, परन्तु निम्नलिखित की बिक्री के चलते गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा भुनाये गए बिलों की पुनर्भुनाई इसके अंतर्गत शामिल नहीं होगी- क) वाणिज्यिक वाहन (हल्के वाणिज्यिक वाहनों सहित), और ख) दो पहिये और तीन पहिये वाले वाहन, परन्तु इस मामले में निम्नलिखित शर्तें लागू होंगी: * निर्माता ने डीलर के नाम से ही बिल आहरित किया हो; * बिल से वास्तविक बिक्री संबंधी लेने देन की जानकारी मिलती हो, जैसे चेसिस / इंजन नंबर द्वारा उसकी जानकारी मिल सके; और * बिल की पुनर्भुनाई करने से पहले बैंकों को चाहिए कि वे बिलों की भुनाई करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की विश्वसनीयता तथा उनके पिछले रिकार्ड के संबंध में स्वत: संतुष्ट हो लें । (ii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किसी कंपनी/संस्था के शेयरों, डिबेंचरों इत्यादि के रूप में वर्तमान और दीर्घ अवधि स्वरूप के किए गए निवेश। तथापि स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियों को, उनके स्टॉक-इन-ट्रेड के रूप में रखे गए शेयरों और डिबेंचरों के आधार पर उनकी आवश्यकता के अनुसार ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है। (iii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किसी कंपनी को/में गैर जमानतीण/अंतर-कंपनीजमा। (iv) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा अपनी सहायक कंपनियों, समूह कंपनियों/संस्थाओं को दिए गए सभी प्रकार के ऋण और अग्रिम। (v) प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गमों में अभिदान हेतु तथा द्वितीयक बाज़ार से शेयरों की खरीद के लिए व्यþक्तयों को ऋण देने के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का वित्तपोषण। 5.2 पट्टे पर तथा उप-पट्टे पर दी गई आस्तियां चूंकि उपस्कर पट्टे पर देनेवाली (इक्विपमेंट लीजिंग) कंपनियों को बैंक वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते है, इसलिए बैंकों को चाहिए कि वे ऐसी कंपनियों के साथ तथा उपस्कर पट्टे पर देने का काम करने वाली अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के साथ विभागीय तौर पर पट्टा संबंधी करार न करें । 6. आढ़तिया (फैक्टरिंग) कंपनियों को बैंक वित्त उक्त पैरा 5.1 (i) और 5.1 (iv) में उल्लिखित प्रतिबंधों के बावजूद निम्नलिखित मानदंडों का अनुपालन करने वाली आढ़तिया कंपनियों के आढ़तिया व्यवसाय के समर्थन के लिए बैंक वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते हैं। क) उक्त कंपनियाँ मानक आढ़तिया कार्य अर्थात् प्राप्य राशियों का वित्तपोषण, बिक्री-लेज़र प्रबंधन तथा प्राप्य राशियों की वसूली आदि जैसे सभी कार्य करती हैं। ख) वे अपनी कम-से-कम 80 प्रतिशत आय आढ़तिया कार्य से प्राप्त करती हैं। ग) इस बात पर ध्यान दिए बिना कि वे `भुगतान अधिकार (रिकोर्स) सहित' हैं अथवा `भुगतान अधिकार (रिकोर्स) रहित'हैं, खरीदी गई/वित्तपोषित प्राप्य राशियां आढ़तिया कंपनी की आस्तियों का कम-से-कम 80 प्रतिशत होनी चाहिए। घ) उपर्युक्त उल्लिखित आस्तियों /आय में आढ़तिया कंपनी द्वारा प्रदान की गई किसी बिल भुनाई सुविधा से संबंधित आस्तियां /आय शामिल नहीं होंगी। ङ) आढ़तिया कंपनियों द्वारा प्रदान की गई वित्तीय सहायता उनके पक्ष में प्राप्य राशियों के दृष्टिबंधक अथवा समनुदेशन द्वारा रक्षित होनी चाहिए। बैंकों को चाहिए कि वे सभी श्रेणियों की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और अवशिष्ट गैर-बैंकिंग कंपनियों को भी किसी तरह का पूरक ऋण, या कैपिटल/डिबेंचर निर्गमों के आधार पर अंतरिम वित्त और /या पूंजी, जमाराशियों इत्यादि के रू प में बाजार से दीर्घावधिक निधि की उगाही के लम्बित रहने के आधार पर तात्कालिक स्वरूप का कोई ऋण मंजूर न करें । बैंकों को चाहिए कि वे इन अनुदेशों का कड़ाई से पालन करें तथा यह सुनिश्चित करें कि इन अनुदेशों का जाने-अनजाने घुमा फिराकर कुछ अन्य अर्थ लगाकर निर्बंध परक्राम्य नोट, अस्थायी ब्याज दर वाले बांड इत्यादि के भिन्न नाम से तथा अल्पावधि ऋण के रूप में कोई ऐसा ऋण मंजूर न किया जाय जिसकी चुकौती बाहरी/अन्य स्रोतों से जुटाई जाने वाली निधि से की जानी प्रस्तावित/की जाने वाली हो, न कि आस्तियों के उपयोग से होने वाले अधिशेष से । 7.2 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को शेयरों की संपार्श्विक जमानत पर अग्रिम किसी भी प्रयोजन के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उधारकर्ताओं को प्रदत्त जमानती ऋणों के लिए शेयरों तथा डिबेंचरों की संपार्श्विक जमानत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता । 7.3 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास निधियाँ रखने के लिए गारंटियों पर प्रतिबंध बैंकों को चाहिए कि वे अंतर-कंपनी जमाराशियों/ऋणों के संबंध में गारंटी न दें जिससे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/फर्मों द्वार अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/फर्मों से स्वीकृत जमाराशियों/ऋणों की वापसी की गारंटी दी जाती हो। यह प्रतिबंध सभी प्रकार की जमाराशियों/ऋणों पर उनके स्रोत पर विचार किये बिना, न्यासों तथा दूसरी संस्थाओं से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्राप्त जमाराशियों/ऋणों को शामिल करते हुए, लागू है। गारंटियां इसलिए नहीं जारी की जानी चाहिए, ताकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास जमाराशियां रखने के लिए वे अप्रत्यक्ष रूप से सहायक न हों । 8. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में बैंकों के एक्सपेाज़र की विवेकपूर्ण सीमा 8.1 किसी एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-आस्ति वित्तपोषण कंपनी (एनबीएफसी -एएफसी), जो मुख्य रूप से स्वर्ण आभूषण के संपार्श्विक पर उधार देने का कार्य नहीं करती है, में किसी एक बैंक का एक्सपोज़र (ऋण, निवेश और गैर-तुलनपत्र एक्सपोज़र सहित) उसके अंतिम लेखा परीक्षित तुलनपत्र के अनुसार बैंक की पूंजी निधियों के क्रमश: 10% /15% से अधिक नहीं होना चाहिए। बैंक किसी एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी /एनबीएफसी -एएफसी में अपनी पूंजी निधियों का क्रमश: 15% /20% तक एक्सपोज़र रख सकते हैं, बशर्ते क्रमश: 10%/15% से अधिक एक्सपोज़र गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी / एनबीएफसी -एएफसी द्वारा संरचनात्मक क्षेत्र को उधार दी गयी निधि के कारण हो। इसके अतिरिक्त, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों - इंफ्रास्ट्रक्चर वित्त कंपनियों (आरएफसी) में किसी बैंक का एक्सपोजर उसके अंतिम लेखा परीक्षित तुलनपत्र के अनुसार उसकी पूंजीगत निधि के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए जिसके साथ यह प्रावधान हो कि इस सीमा को बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया जा सकता है यदि उक्त एक्सपोजर इंफ्रास्ट्रक्चर वित्त कंपनियों द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को उधार पर दी गई निधियों के कारण हुआ है। 8.2बैंक सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के प्रति अपने कुल एक्सपोज़र के संबंध में आंतरिक सीमा निश्चित करने पर विचार कर सकते हैं। 8.3 किसी बैंक का किसी ऐसी एकल गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के प्रति एक्सपोज़र (ऋण और निवेश, दोनों तथा तुनपत्रेतर एक्सपोजर सहित),जो मुख्य रूप से स्वर्ण आभूषण के संपार्श्विक पर ऋण देने के कार्य में लगी है ( अर्थात् ऐसे ऋणों का उसकी कुल वित्तीय आस्तियों में 50 प्रतिशत या उससे अधिक अंश है), बैंक की पूंजी निधि के 7.5 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। तथापि उक्त एक्सपोज़र सीमा 5 प्रतिशत तक अर्थात बैंकों की पूंजी निधियों के 12.5 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है यदि अतिरिक्त एक्सपोज़र गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा बुनियादी ढांचा क्षेत्र को आगे उधार दी गई निधियों के कारण है। जिन बैंकों का 18 मई 2012 की स्थिति के अनुसार ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में उक्त विनियामक सीमा से अधिक एक्सपोज़र था उनसे यह अपेक्षित है कि वे यथाशीघ्र, लेकिन 17 नवंबर 2012 से पहले अपने एक्सपोज़र को कम कर निर्धारित सीमा के भीतर लायेँ। 8.4 बैंक कुल वित्तीय आस्तियों के 50 प्रतिशत या उससे अधिक स्वर्ण ऋण वाली ऐसी सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में अपने कुल एक्सपोज़र की एक आंतरिक उप-सीमा बनाएँ। यह उप-सीमा बैंकों द्वारा सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के प्रति अपने सकल एक्सपोज़र के लिए निर्धारित की गई आंतरिक सीमा, जैसा कि ऊपर पैरा 8.2 में निर्धारित किया गया है, के भीतर होनी चाहिये। 8.5 एक्सपोज़र सीमा की गणना करने के लिए प्रकाशित तुलनपत्र की तारीख के बाद बढ़ायी गयी पूंजी निधि को भी शामिल किया जा सकता है। बैंकों को पूंजी वृद्धि का कार्य पूरा करने के बाद किसी बाह्य लेखा परीक्षक का प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहिए तथा उसे भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग) को प्रस्तुत करना चाहिए। उसके बाद ही पूंजी निधि की वृद्धि को गणना में शामिल करना चाहिए। 9. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जारी प्रतिभूतियों/लिखतों में बैंकों द्वारा किए जाने वाले 9.1 बैंकों को शून्य कूपन बांडों (जेडसीबी) में तब तक निवेश नहीं करना चाहिए जब तक निर्गमकर्ता गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनी सभी उपचित ब्याजों के लिए एक निक्षेप निधि न रखे तथा उस निधि को तरल निवेश/प्रतिभूतियों (सरकारी बांडों) में निविष्ट न रखे। 9.2 बैंकों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जारी एक वर्ष तक की मूल परिपक्वता अवधि वाले अपरिवर्तनीय डिबेंचरों (एनसीडी) में निवेश करने की अनुमति दी गई है। तथापि, ऐसे लिखतों में निवेश करते समय बैंकों को विद्यमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए, यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अपरिवर्तनीय डिबेंचर जारी करने वाले ने प्रकटीकरण दस्तावेज के अंतर्गत अपरिवर्तनीय डिबेंचर जारी करने का प्रयोजन प्रकट किया है और ऐसे प्रयोजन पूर्ववर्ती पैराग्राफों में दिए गए अनुदेशों के अनुसार बैंक वित्त के लिए पात्र हैं। मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
1ऐसे एनबीएफसी को वित्तपोषित करते समय, जिनका भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, बैंकों को कारपोरेट कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशानिर्देशों/ अधिसूचनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। |