आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र - आरबीआई - Reserve Bank of India
आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र
आरबीआइ/2013-14/67 1 जुलाई 2013 सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक महोदय/महोदया आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र कृपया दिनांक 2 जुलाई 2012 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी. 07/08.12.001/ 2012-13 देखें जिसमें आवास वित्त के संबंध में उस दिनांक तक बैंकों को जारी किए गए अनुदेश/दिशानिर्देश समेकित किए गए हैं। उक्त मास्टर परिपत्र को अब 30 जून 2013 तक जारी किए गए अनुदेशों को शामिल करते हुए उचित रूप से अद्यतन कर दिया गया है और रिज़र्व बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी प्रदर्शित किया गया है। मास्टर परिपत्र की एक प्रति संलग्न है। भवदीय (प्रकाश चंद्र साहू) अनुलग्नक : यथोक्त विषय-वस्तु
आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र आवास वित्त पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए गए नियमों/विनियमों तथा स्पष्टीकरणों को समेकित करना । बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 तथा 35 क द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया गया सांविधिक निदेश । ग. समेकित किए गए पूर्व अनुदेश इस मास्टर परिपत्र में परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित सभी अनुदेशों तथा वर्ष के दौरान जारी सभी स्पष्टीकरणों को समेकित तथा अद्यतन किया गया है । क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों पर लागू 1. प्रस्तावना केंद्र सरकार की राष्ट्रीय आवास नीति के अनुसरण में भारतीय रिज़र्व बैंक आवास क्षेत्र में ऋण प्रवाह को सुकर बनाता रहा है । चूंकि आवास क्षेत्र अपनी ओर बड़ी मात्रा में बैंक वित्त आकर्षित करनेवाले क्षेत्र के रूप में उभरकर आया है, अत: भारतीय रिज़र्व बैंक के विनियमन का मौजूदा उद्देश्य बैंकों के आवास ऋण संविभाग में सुव्यवस्थित वृद्धि सुनिश्चित करना है । 1.1. आवास ऋण नीति 1.1.1 अत्यधिक आवासीय कमी को दूर करने की कार्यनीति के एक भाग के रूप में केंद्र सरकार ने एक व्यापक राष्ट्रीय आवास नीति अपनाई है जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित उद्देश्य हैं: (i) आवास वित्त प्रदान करने के लिए एक सक्षम तथा अभिगम्य संस्थागत प्रणाली का विकास (ii) एक ऐसी प्रणाली स्थापित करना जहां आवास बोर्ड तथा विकास प्राधिकारी भूमि तथा मूलभूत सुविधाओं के अर्जन तथा विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे; तथा (iii) ऐसी परिस्थितियां निर्माण करना जिनमें व्यक्तियों को मकान/फ्लैट निर्माण करने/ खरीदने के लिए संस्थागत वित्त तक पहुंच आसान तथा सस्ती होगी । इसमें सरकारी एजेंसियों द्वारा अथवा उनके तत्वावधान में निर्मित आवास/फ्लैट की एकमुश्त खरीद शामिल हो सकती है । देश के कोने-कोने में अपनी शाखाओं का व्यापक नेटवर्क होने के कारण बैंकों का वित्तीय प्रणाली में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है और इसलिए आवास क्षेत्र को ऋण प्रदान करने में उन्हें राष्ट्रीय आवास नीति के अनुरूप एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ी । 1.1.2 आवास वित्त विनियोजन राष्ट्रीय आवास वित्त नीति के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक वर्ष 2002-03 तक पिछले वर्ष के दौरान रिकार्ड की गई जमाराशियों की वृद्धि के आधार पर वार्षिक तौर पर न्यूनतम आवास वित्त विनियोजन की घोषणा करता था। आवास वित्त विनियोजन के अंतर्गत बैंक अपनी निधियां निम्नलिखित तीन श्रेणियों में से किसी भी श्रेणी में अभिनियोजित कर सकते थे : (i) प्रत्यक्ष वित्त 2.1 प्रत्यक्ष आवास-वित्त व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूहों को प्रदत्त वित्त है तथा इसके अंतर्गत सहकारी समितियों को वित्त प्रदान किया जाना भी शामिल है । 2.2 प्रतिभूति /जमानत, मार्जिन, मकान की आयु, चुकौती की अवधि इत्यादि मामलों में बैंक अपने निदेशक मंडलों के अनुमोदन से स्वयं दिशानिर्देश तैयार करने के मामले में स्वतंत्र है । 2.3 अन्य दिशानिर्देश: प्रत्यक्ष आवास वित्त के अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार का बैंक वित्त शामिल किया जाए :
(क) बैंक अपने द्वारा पहले से ही वित्तपोषित मकान /फ्लैट में परिवर्तन / परिवर्द्धन / मरम्मत का काम करने के लिए, समग्र अधिकतम सीमा के भीतर अतिरिक्त वित्त प्रदान किए जाने संबंधी अनुरोध पर विचार कर सकते हैं । (ख) जिन व्यक्तियों ने आवास के निर्माण / क्रय हेतु अन्य स्रोतों से धन की व्यवस्था की है और वे पूरक वित्त चाहते हैं, उनके मामले में, अन्य ऋणदाताओं के पक्ष में पहले से ही गिरवी रखी हुई संपत्ति पर समरूप या द्वितीय बंधक प्रभार प्राप्त करके और / या अपने विचार से किसी अन्य उपयुक्त प्रतिभूति / जमानत के आधार पर बैंक पूरक वित्त प्रदान कर सकते हैं। 3.1 सामान्य बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका अप्रत्यक्ष आवास-वित्त, आवास-वित्त संस्थाओं, आवास बोर्डों, अन्य सरकारी आवास एजेंसियों इत्यादि को मुख्यत: विकसित भूमि व निर्मित भवनों की आपूर्ति में वृद्धि करने के लिए मीयादी ऋणों के रूप में उपलब्ध कराया जाता है। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भूखंडो / मकानो की आपूर्ति एक निश्चित समय-सीमा के भीतर की जाती है और सरकारी एजेंसियाँ बैंक के ऋणों का उपयोग केवल भूमि अर्जित करने के लिए नहीं कर रही हैं। उसी प्रकार, इन एजेन्सियों को चाहिए कि वे विकसित भूखंड सहकारी समितियों, प्रोफेशनल डेवलपर्स और व्यक्तियों को इस शर्त पर बेचें कि संबंधित भूखंडों पर एक उपयुक्त अवधि के भीतर मकान बना लिए जाएँगे तथा यह अवधि तीन साल से अधिक नहीं होगी । इस प्रयोजन हेतु, बैंक विकसित भूखंडों तथा निर्मित भवनों की आपूर्ति में वृद्धि करने के मामले में राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों का लाभ ले सकते हैं । 3.2 आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों को ऋण देना 3.2.1 आवास-वित्त संस्थाओं को ऋण देना
3.2.2 आवास बोर्डों और अन्य एजेन्सियों को ऋण दिया जाना बैंक राज्यस्तरीय आवास बोर्डों और अन्य सरकारी एजेन्सियों को मीयादी ऋण दे सकते हैं । लेकिन आवास-वित्त प्रणाली की स्वस्थ परंपरा विकसित करने के लिए, ऐसा करते समय बैंकों को चाहिए कि वे लाभग्राहियों से की गई वसूली के मामले में इन एजेन्सियों के केवल पिछले कार्यनिष्पादन पर ही नजर न रखें, बल्कि यह शर्त भी लगा दें कि बोर्ड लाभग्राहियों से तत्परतापूर्वक और नियमित रूप से ऋणों की किस्तों की वसूली करेंगे । 3.2.3 भूमि के अधिग्रहण के लिए वित्त प्रदान करना देश में मकानों का स्टॉक बढ़ाने के लिए भूमि और आवासीय स्थलों की उपलब्धता में वृद्धि करने की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए बैंक भूमि अधिग्रहण तथा भूमि को मकानों के लिए विकसित करने हेतु सरकारी एजेंसियों को वित्त प्रदान कर सकते हैं बशर्ते यह संपूर्ण परियोजना का अंग है जिसमें मूलभूत सुविधाओं जैसे जलप्रणाली, ड्रेनेज, सड़क, बिजली की व्यवस्था इत्यादि, का विकास शामिल है। ऐसा ऋण मीयादी ऋण के रूप में दिया जा सकता है। परियोजना यथाशीघ्र पूरी की जानी चाहिए तथा हर हालत में इसमें तीन साल से अधिक का समय नहीं लगना चाहिए ताकि इष्टतम परिणामों के लिए बैंक की निधि की तेजी से रिसाइकिलिंग सुनिश्चित की जा सके। यदि परियोजना के अंतर्गत भवनों का निर्माण भी शामिल है तो उसके लिए वैयक्तिक लाभार्थियों को उन्हीं शर्तों पर वित्त प्रदान किया जाना चाहिए जिन शर्तों पर प्रत्यक्ष वित्त प्रदान किया गया है । यह पाया गया है कि स्थावर संपदा को विकसित करने वालों को वित्त प्रदान करते समय कुछ बैंक जमानत के प्रयोजन के लिए भूमि का मूल्यांकन, संपत्ति के विकास के बाद के मूल्य में से विकास की लागत को घटाकर मिलने वाले बट्टागत मूल्य के आधार पर करते हैं। ऐसा करना निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन है। इस संबंध में यह सूचित किया जाता है कि बैंकों के पास संपत्तियों के मूल्यांकन तथा बैंकों के एक्सपोजरों के लिए स्वीकार किए गए संपार्श्विक के मूल्यांकन के लिए एक बोर्ड अनुमोदित नीति होनी चाहिए और वह मूल्यांकन व्यावसायिक अर्हता प्राप्त स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता द्वारा किया जाना चाहिए। संपार्श्विक के रूप में ली गई भूमि तथा भूमि के अधिग्रहण के लिए वित्त प्रदान करते समय भूमि के मूल्यांकन के लिए बैंक निम्नानुसार कार्रवाई करें : (क) बैंक भूमि अधिग्रहण तथा भूमि को विकसित करने हेतु गैर-सरकारी भवन निर्माताओं को तो नहीं, परंतु सरकारी एजेंसियों को वित्त प्रदान कर सकते हैं बशर्ते भूमि अधिग्रहण और भूमि विकास संपूर्ण परियोजना का अंग हो जिसमें मूलभूत सुविधाओं जैसे जलप्रणाली, ड्रेनेज, सड़क, बिजली की व्यवस्था इत्यादि, का विकास शामिल है । ऐसे सीमित मामलों में जहां भूमि अधिग्रहण के लिए वित्त प्रदान किया जा सकता है वहां अधिग्रहण की लागत (वर्तमान मूल्य) में विकास की लागत को मिलाकर पाई जाने वाली राशि तक वित्तपोषण को सीमित रखना चाहिए। ऐसी भूमि का मुख्य जमानत के रूप में मूल्यांकन वर्तमान बाजार मूल्य तक सीमित रखना चाहिए। (ख) जहां कहीं भूमि को संपार्श्विक के रूप में स्वीकार किया गया है वहां ऐसी भूमि का मूल्यांकन केवल वर्तमान बाजार मूल्य पर ही किया जाए। 3.2.4 आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों को ऋण दिए जाने से संबंधित शर्तें
3.3 निजी बिल्डरों को मीयादी ऋण 3.3.1 आवास के क्षेत्र में निर्माण संबंधी सेवाएँ प्रदान करने वालों के रूप में प्रोफेशनल बिल्डरों द्वारा अदा की गयी भूमिका को दृष्टिगत रखते हुए, वह भी विशेषत: उन मामलों में जहाँ राज्य आवास बोर्डों एवं अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा भूमि अधिग्रहीत और विकसित की जाती है, वाणिज्यिक बैंक निजी बिल्डरों को प्रत्येक खास परियोजना के लिए वाणिज्यिक शर्तों पर ऋण उपलब्ध करा सकते हैं । बैंकों द्वारा निजी बिल्डरों को दिए जाने वाले ऋणों की अवधि के मामले में कोई भी निर्णय बैंक अपने वाणिज्यिक विवेक के आधार पर स्वयं लें लेकिन ऐसा करते समय वे सामान्य सावधानियाँ बरतें और ऋण देने से पहले उपयुक्त प्रतिभूति/जमानत भी प्राप्त कर लें । ऐसे ऋण उन प्रतिष्ठित बिल्डरों को दिए जाने चाहिए जो निर्माण-व्यवसाय से जुड़ी अर्हता रखने वाले व्यक्तियों को नियोजित करते हैं। बारीकी से नजर रखते हुए यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसे ऋण के किसी भी भाग का उपयोग जमीन की सट्टेबाजी के लिए नहीं किया जा रहा है। यह सुनिश्चित करने के लिए भी सावधानी बरती जानी चाहिए कि अंतिम लाभग्राहियों से लिए जाने वाले मूल्य में सट्टेबाजी का कोई भी तत्व मौजूद न हो, अर्थात् लिया जाने वाला मूल्य भूमि के दस्तावेजी मूल्य, निर्माण की वास्तविक लागत और उपयुक्त लाभ-मार्जिन पर आधारित होना चाहिए । 3.3.2 यह सूचित किया जाता है कि बैंक, विशेषकर प्राकृतिक आपदाओं से भवनों की सुरक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) द्वारा बनाई गई राष्टीय भवन निर्माण संहिता (एनबीसी) का कड़ाई से पालन करें। बैंक इस पहलू को अपनी ऋण नीतियों में शामिल करने पर विचार कर सकते हैं। बैंकों को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के दिशानिर्देशों को भी अपनाना चाहिए और अपनी ऋण नीतियों, प्रक्रियाओं और प्रलेखन के अंग के रूप में उन्हें उपयुक्त रीति से शामिल करना चाहिए । 3.3.3 बैंक को संपत्ति बंधक रखने से संबंधित सूचना पुस्तिकाओं /ब्रोशर /विज्ञापनों में प्रकट करने की अपेक्षा को शर्तों में शामिल करना माननीय उच्च न्यायालय, बम्बई के समक्ष आए एक मामले में माननीय न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि आवास/विकास परियोजनाओं को वित्त मंजूर करने वाला बैंक इस बात के लिए जोर दे कि भू-खंड का विकासकर्ता/मालिक जन-सामान्य को फ्लैट तथा संपत्ति खरीदने के लिए आमंत्रित करने के लिए अपने द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले ब्रोशर, पुस्तिका आदि में उक्त भू-खंड पर सृजित भार/अथवा अन्य किसी देयता से संबंधित सूचना प्रकट करे। न्यायालय ने अपने फैसले में आगे यह भी कहा है कि उक्त अपेक्षा को स्पष्ट रूप से उन शर्तों का एक हिस्सा बनाया जाए जिनके अंतर्गत बैंक द्वारा ऋण मंजूर किया जाता है । उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए विनिर्दिष्ट आवास /विकास परियोजनाओं को वित्त मंजूर करते समय बैंक शर्तों के एक हिस्से के रूप में निम्नलिखित को शामिल करें : (i) भवन निर्माता /विकासकर्ता/कंपनी अपनी पुस्तिकाओं /ब्रोशरों आदि में उस बैंक (बैंकों) का नाम प्रकट करें जिसको संपत्ति बंधक रखी गई हो। (ii) भवन निर्माता /विकासकर्ता/कंपनी किसी विशेष योजना के विज्ञापन को समाचार पत्रो/ पत्रिकाओं आदि में प्रकाशित करते समय बंधक से संबंधित सूचनाओं को विज्ञापन में शामिल करें । (iii) भवन निर्माता /विकासकर्ता /कंपनी अपनी पुस्तिकाओं /ब्रोशरों में यह दर्शाएं कि वे फ्लैटों / संपत्ति की बिक्री के लिए यदि आवश्यक हो तो बंधकग्राही बैंक से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी)/अनुमति प्रदान करेंगे । बैंकों को यह भी सूचित किया जाता है कि वे उपर्युक्त शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करें और भवन निर्माता/ विकासकर्ता /कंपनी द्वारा उपर्युक्त अपेक्षाओं के पूरा किए जाने के बाद ही उन्हें निधि जारी करें। इसकी समीक्षा करने पर यह निर्णय लिया गया है की उपर्युक्त प्रावधान वाणिज्यिक स्थावर संपदा पर भी आवश्यक परिवर्तनों सहित लागू होंगे । 4. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत आवास ऋण कृपया ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को दिए उधारों संबंधी जारी मास्टर परिपत्र देखें। 5. रिज़र्व बैंक द्वारा पुनर्वित्त प्रदान किया जाना बैंकों द्वारा दिया गया वित्त रिज़र्व बैंक द्वारा पुनर्वित्त सुविधा के लिए पात्र नहीं होगा । 6. बैंक ऋण के लिए पात्र निर्माण कार्य आवास वित्त के रूप में समझे जाने के लिए निम्नलिखित प्रकार का बैंक ऋण पात्र होगा :
(क) मकानों की मरम्मत करने के लिए गठित निकायों, तथा (ख) भवन/आवास/फ्लैट चाहे वे उनके मालिकों के कब्जे में हो अथवा किराएदारों के, मालिकों को उनकी मरम्मत/अतिरिक्त निर्माण के लिए आवश्यकता आधारित अपेक्षाओं को पूर्ण करने के लिए अनुमानित लागत (जिसके लिए जहां आवश्यक हो वहां किसी अभियंता/ आर्किटेक्ट से अपेक्षित प्रमाणपत्र प्राप्त किया जाए) के संबंध में अपने आपको संतुष्ट करने तथा उचित समझी गई ऐसी जमानत प्राप्त करने के बाद दिया गया वित्त;
7. बैंक ऋण के लिए अपात्र निर्माण कार्य 7.1 केवल सरकारी /अर्ध-सरकारी कार्यालयों के लिए बनाए जाने वाले भवनों के निर्माण के लिए बैंक को वित्त प्रदान नहीं करना चाहिए जिनमें नगरपालिका तथा पंचायत कार्यालय शामिल हैं। तथापि, बैंक ऐसे कार्यों के लिए ऋण प्रदान कर सकते हैं जिनके लिए नाबार्ड जैसी संस्थाओं द्वारा पुनर्वित्त दिया जाएगा। 7.2 बैंक कंपनी निकाय (अर्थात् ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जो कि कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत नहीं हैं अथवा जो संबंधित कानून के अंतर्गत स्थापित निगम नहीं है) न होने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा प्रारंभ की गई परियोजनाओं का वित्तपोषण नहीं करेंगे। उपर्युक्त परिभाषित कंपनी निकायों द्वारा प्रारंभ की गई परियोजनाओं के संबंध में भी बैंकों को अपने आप को इस बात से संतुष्ट करना होगा कि परियोजना वाणिज्यिक आधार पर चलाई जा रही है और बैंक वित्त परियोजना के लिए परिकल्पित बजटीय संसाधनों के बदले में अथवा उन्हें प्रतिस्थापित करने के लिए नहीं है। तथापि, यह ऋण बजटीय संसाधनों का अनुपूरक हो सकता है यदि परियोजना की रूपरेखा में ही ऐसा प्रावधान किया गया हो। अत:, किसी आवास परियोजना के मामले में जहां परियोजना वाणिज्यिक आधार पर चलाई जाती है और समाज के कमज़ोर वर्गों के लाभ के लिए अथवा अन्यथा, उस परियोजना का प्रवर्तन करने में सरकार रुचि रखती है और उपलब्ध कराई गई आर्थिक सहायता तथा / अथवा परियोजना प्रारंभ करने वाली संस्थाओं की पूंजी में अंशदान करके परियोजना की लागत का एक हिस्सा सरकार पूरा करती है तो बैंक वित्त, परियोजना की कुल लागत में से सरकार से प्राप्य आर्थिक सहायता/पूंजीगत अंशदान की राशि तथा सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले कोई भी अन्य प्रस्तावित संसाधनों को घटाकर प्राप्त राशि तक प्रतिबंधित होना चाहिए। 7.3 बैंकों ने राज्य पुलिस आवास निगम जैसे सरकार द्वारा स्थापित निगमों को कर्मचारियों को आंबटित करने के लिए रिहाइशी क्वार्टर्स निर्माण करने के लिए पूर्व में मीयादी ऋण मंजूर किए थे। ऐसे ऋणों की चुकौती बजटीय विनियोजनों द्वारा करने की परिकल्पना की गई थी। चूंकि इन परियोजनाओं को वाणिज्यिक आधार पर चलाई जा रही परियोजनाएं नहीं समझा जा सकता है, अत: ऐसी परियोजनाओं को ऋण प्रदान करना बैंकों के लिए उचित नहीं होगा। बैंकों को चाहिए कि वे अनुबंध में दिए गए फॉर्मेट के अनुसार अर्ध-वार्षिक अंतरालों पर आवास वित्त संबंधी आंकड़ों को संकलित करें और उन्हें बैंक के आंतरिक निरीक्षकों/भारतीय रिज़र्व बैंक के निरीक्षकों को उपलब्ध कराने के लिए तैयार रखें । 9. राष्ट्रीय आवास बैंक के लिए गृह ऋण खाता योजना (एचएलएएस) 9.1 अन्य स्रोतों से लिए गए ऋणों के मोचन का निषेध 9.1.1 गृहऋण खाता योजना के अंतर्गत, गृहऋण खाता योजना का कोई सदस्य इस योजना में कम से कम 5 साल तक अभिदान देने के बाद ऋण प्राप्त करने के लिए पात्र होता है । इस योजना का सदस्य बनते समय सदस्य को इस आशय की घोषणा करनी पड़ती है कि उसका अपना कोई मकान/फ्लैट नहीं है । लेकिन कोई सदस्य सामान्य ब्याजदर पर किसी बैंक से या मित्रों और रिश्तेदारों से ऋण लेकर किसी सरकारी एजेंसी /सहकारी समिति /प्राइवेट बिल्डर से या किसी आवास बोर्ड /विकास प्राधिकरण की हायर-परचेज़ योजना के जरिये मकान या फ्लैट खरीद सकता है । उसके बाद जब वह सदस्य गृहऋण खाता योजना के अंतर्गत ऋण के लिए पात्र हो जाएगा तब वह अन्य स्रोतों से पहले लिए गए ऋणों को चुकता करने के लिए ऋण प्राप्ति हेतु बैंक से संपर्क कर सकता है । 9.1.2 विशेष मामले के रूप में, गृहऋण खाता योजना के अंतर्गत बैंक ऋणों का अन्य स्रोतों से पहले लिए गए ऋणों को चुकता करने के लिए इस्तेमाल करने पर कोई आपत्ति नहीं होगी । 9.2 गृह ऋण खाता योजना के अंतर्गत जमाओं / ऋणों का वर्गीकरण गृह ऋण खाता योजना के अंतर्गत, सहभागी बैंक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राष्ट्रीय आवास बैंक की ओर से जमाराशियाँ स्वीकार करे और राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा समय-समय पर अनुमोदित किसी भी योजना के अंतर्गत पुनर्वित्त के रूप में इन जमाराशियों का उपयोग करे। सहभागी बैंक इस तरीके से इस्तेमाल न की गई शेष राशि (अर्थात् पुनर्वित्त की तुलना में जमाराशियों का अधिक भाग) या तो राष्ट्रीय बैंक को भेज देगा या अपने पास रख सकेगा परन्तु सहभागी बैंक को इस मामले में सांविधिक चलनिधि संबंधी अपेक्षाओं का निम्नानुसार अनुपालन करना होगा : -
10 स्थावर संपदा क्षेत्र में बैंक का एक्सपोजर (i) जहां स्थावर संपदा का विकास स्वागत योग्य है, बैंकों के लिए यह ज़रूरी है कि वे अच्छे चयन तथा सुदृढ़ ऋण अनुमोदन प्रक्रिया अपनाकर अत्यधिक जोखिम वाले उधारों पर नियंत्रण रखें। बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित उधारकर्ता ने, जहां कहीं आवश्यक हो, सरकार/ स्थानीय निकाय /अन्य सांविधिक प्राधिकारियों से परियोजना के लिए पूर्व अनुमति प्राप्त कर ली है। हालाँकि संबंधित प्रस्तावों को सामान्य रूप से मंजूर किया जा सकता है, उधारकर्ता द्वारा सरकारी प्राधिकारियों से आवश्यक अनुमति प्राप्त कर लेने के बाद ही वितरण किया जाना चाहिए। (ii) चूंकि समग्र सीआरई क्षेत्र की तुलना में वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) क्षेत्र के अंतर्गत रिहाइशी आवास परियोजनाओं को दिये गये ऋणों में कम जोखिम और उतार-चढ़ाव देखा जाता है, यह निर्णय लिया गया है कि सीआरई क्षेत्र से वाणिज्यिक स्थावर संपदा-रिहाइशी आवास (सीआरई-आरएच) नामक एक पृथक उप-क्षेत्र बनाया जाए। सीआरई-आरएच में सीआरई सेगमेंट के अंतर्गत रिहाइशी आवास परियोजनाओं के लिए भवन निर्माताओं/डेवलपर्स को दिये गये ऋण (आंतरिक उपभोग के लिए दिए गए ऋण को छोड़कर) शामिल रहेंगे। ऐसी परियोजनाओं में आम तौर पर गैर-रिहाइशी वाणिज्यिक स्थावर संपदा नहीं होगी। तथापि, ऐसी एकीकृत आवासीय परियोजनाएं जिनमें कुछ वाणिज्यिक स्थान (जैसे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, विद्यालय, इत्यादि) शामिल हों उन्हें भी सीआरई-आरएच के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है बशर्ते कि रिहाइशी आवासीय परियोजना में वाणिज्यिक स्थान परियोजना के कुल फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) के 10 प्रतिशत से अधिक न हो। यदि मुख्यतया रिहाइशी आवास संकुल में वाणिज्यिक क्षेत्र का एफएसआई 10 प्रतिशत की सीमा से अधिक है, तो परियोजना ऋणों को सीआरई के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए न कि सीआरई-आरएच के रूप में। बैंक बासल III पूंजी विनियमन पर मास्टर परिपत्र देखें। 12. मूल्य के प्रति ऋण (एलटीवी) अनुपात पूर्व अनुदेशों के अनुसार आवास ऋण के संबंध में एलटीवी अनुपात 80 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । परंतु, कम मूल्य के आवास ऋण अर्थात् 20 लाख रुपये तक के आवास ऋण (जिन्हें प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र अग्रिम के रूप में श्रेणीबद्ध किया जाता है) के मामले में एलटीवी अनुपात 90 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । 21 जून 2013 से मानदंडों को संशोधित किया गया हैं तथा वैयक्तिक आवास ऋण के मामलों में बैंकों को निम्नलिखित एलटीवी अनुपात बनाए रखना चाहिए।
ऋण मंजूरी के सभी नये मामलों में एलटीवी अनुपात निर्धारित अधिकतम सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए। यदि किन्हीं कारणों से वर्तमान में एलटीवी अनुपात निर्धारित अधिकतम सीमा से अधिक है तो इसे सीमा के भीतर लाने के प्रयास किये जाने चाहिए। हमारे ध्यान में यह बात लायी गयी है कि बैंक आवास ऋण मंजूर करते समय आवासीय संपत्ति का मूल्य तय करने के लिए अलग-अलग प्रणाली अपनाते हैं । कुछ बैंक आवासीय संपत्ति की लागत में स्टॉम्प ड्यूटी, पंजीकरण और अन्य प्रलेखीकरण प्रभारों को शामिल करते हैं । यह लागत संपत्ति के वसूली योग्य मूल्य से अधिक है, क्योंकि स्टॉम्प ड्यूटी, पंजीकरण और अन्य प्रलेखीकरण प्रभारों की वसूली नहीं हो सकती । इसके फलस्वरूप निर्धारित मार्जिन कम हो जाता है । अतः, बैंक जिस आवासीय संपत्ति को वित्तपोषित करते हैं, उसकी लागत में इन प्रभारों को शामिल नहीं करें, ताकि एलटीवी मानदंडों की प्रभावशालिता कम न हो । 13. अनधिकृत निर्माण पर दिल्ली उच्च न्यायालय का आदेश अनधिकृत निर्माण, संपत्ति का गलत उपयोग तथा सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण के संबंध में माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा गठित निगरानी समिति ने बैंको/वित्तीय संस्थाओं को तत्काल अनुपालन के लिए निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं: क. भवन निर्माण के लिए आवास ऋण i) जिन मामलों में आवेदक के पास भूखंड/भूमि है और वह मकान बनवाने के लिए ऋण सुविधा हेतु बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं के पास आता है तो बैंकों /वित्तीय संस्थाओं को गृह कर्ज मंजूर करने के पहले, ऋण सुविधा के लिए आवेदन करनेवाले व्यक्ति के नाम सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूर योजना की एक प्रति प्राप्त करनी होगी। ii) ऐसी ऋण सुविधा के लिए आवेदन करनेवाले व्यक्ति से एक शपथपत्र-व-वचनपत्र प्राप्त करना होगा कि वह मंजूर योजना का उल्लंघन नहीं करेगा, निर्माण कार्य पूर्णत: मंजूर योजना के मुताबिक होगा और ऐसा निष्पादन करनेवाले की ही यह जिम्मेदारी होगी कि निर्माणकार्य पूरो हो जाने के 3 महीने के भीतर वह पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त करें। ऐसा न कर पाने पर ब्याज़, लागत और अन्य प्रचलित बैंक प्रभारों सहित सारा ऋण वापस मांगने का अधिकार बैंक को होगा। iii) बैंक द्वारा नियुक्त किसी वास्तुविद को भी भवन निर्माण के विभिन्न स्तरों पर यह प्रमाणित करना होगा कि भवन का निर्माण पूरी तरह मंजूर योजना के मुताबिक है तथा उसे एक विशिष्ट समय पर यह भी प्रमाणित करना होगा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया जानेवाला भवन संबंधी पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया है। ख. निर्मित संपत्ति/ तैयार संपत्ति की खरीद के लिए आवास ऋण i) जिन मामलों में आवेदक तैयार मकान/फ्लैट खरीदने के लिए ऋण सुविधा हेतु बैंकों /वित्तीय संस्थाओं के पास आता है, तो उसके लिए एक शपथपत्र-व-वचनपत्र के ज़रिए यह घोषित करना अनिवार्य होना चाहिए कि तैयार संपत्ति मंजूर योजना और/या भवन उप-विधियों के मुताबिक बनाई गई है और जहां तक संभव हो सके उसे पूर्णता प्रमाणपत्र भी मिल चुका है। ii) ऋण के वितरण के पहले, बैंक द्वारा नियुक्त किसी वास्तुविद को भी यह प्रमाणित करना होगा कि तैयार संपत्ति पूरी तरह मंजूर योजना के मुताबिक और/या भवन उप-विधियों के मुताबिक है। ग. अनधिकृत कॉलोनियां जो संपत्ति अनधिकृत कॉलोनियों की श्रेणी में आती है उनके मामले में तब तक ऋण नहीं दिया जाना चाहिए जब तक वे विनियमित नहीं की जातीं और विकास तथा अन्य प्रभार अदा नहीं किए जाते। घ. वाणिज्य संपत्ति आवासीय इस्तेमाल के लिए बनी परंतु आवेदक जिसका उपयोग वाणिज्य प्रयोजन के लिए करना चाहता है और ऋण के लिए आवेदन करते समय वैसा घोषित करता है तो ऐसी संपत्तियों के मामले में भी ऋण नहीं दिया जाना चाहिए। 14. बंधक द्वारा समर्थित प्रतिभूतियों में बैंकों के निवेश के लिए शर्तें 14.1 बंधक द्वारा समर्थित प्रतिभूतियो में बैंकों द्वारा किए जाने वाले निवेश के संबंध में निम्नलिखित शर्तें लागू होंगी: (i) प्रतिभूतिकृत आवास ऋणों तथा उसके अंतर्गत होनेवाली प्राप्तियों में आवास वित्त कंपनी का अधिकार, स्वत्वाधिकार और हित स्पेशल पर्पज़ वेहिकल/न्यास के पक्ष में अटल रूप से समनुदेशित किया जाना चाहिए । (ii) स्पेशल पर्पज़ वेहिकल/न्यास को चाहिए कि वह निवेशकों की ओर से और निवेशकों के हित के लिए प्रतिभूतिकृत आवास ऋणों से संबंधित बंधक रखी गयी प्रतिभूतियाँ केवल अपने पास ही रखे। (iii) स्पेशल पर्पज़ वेहिकल /न्यास को यह अधिकार होना चाहिए कि वह प्रतिभूतिकृत ऋणों के अंतर्गत होने वाली प्राप्तियों को, बंधक द्वारा समर्थित प्रतिभूति के निर्गम की शर्तों के अनुसार निवेशकों के बीच वितरित कर सके। इसके लिए मूल आवास वित्त कंपनी को सर्विसिंग और भुगतानकर्ता एजेंट के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए । तथापि प्रतिभूतिकरण संबंधी लेनदेन में चलनिधि सुविधाओं के ऋणों में वृद्धि के मामले में विक्रेता, प्रबंधक, या ऋणदाता के रूप में काम करने वाली मूल आवास वित्त कंपनी पर निम्नलिखित शर्तें भी लागू होंगी :- क. ऐसी कंपनी स्पेशल पर्पज़ वेहिकल में कोई शेयर पूँजी नहीं रखेगी या आस्तियों के क्रय और प्रतिभूतिकरण के लिए वेहिकल के रूप में प्रयुक्त होने वाले न्यास में हिताधिकारी नहीं बन सकेगी। इस प्रयोजन के लिए हर तरह की सामान्य और अधिमान शेयर पूँजी, शेयर पूँजी के अंतर्गत शामिल मानी जाएगी । ख. ऐसी कंपनी स्पेशल पर्पज़ वेहिकल का नाम इस प्रकार नहीं रखेगी जिससे यह अर्थ निकलता हो कि वह बैंक से किसी तरह का संबंध रखती है। ग. जहाँ निदेशक-मंडल का गठन कम से कम तीन सदस्यों के साथ न किया गया हो और जहाँ स्वतंत्र निदेशकों का बहुमत न हो, वहाँ वह कंपनी स्पेशल पर्पज़ वेहिकल के निदेशक-मंडल में अपना कोई निदेशक, अधिकारी या कर्मचारी नहीं रखेगी। इसके अलावा, बैंक का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकारियों के पास कोई निषेधाधिकार नहीं होगा। घ. ऐसी कंपनी स्पेशल पर्पज़ वेहिकल पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण नहीं रखेगी; या ङ. ऐसी कंपनी प्रतिभूतिकरण संबंधी लेनदेन के चलते होने वाले या निवेशकों को होने वाले घाटे को पूरा करने के लिए कोई वित्तीय सहायता नहीं देगी या लेनदेन संबंधी आवर्ती खर्चे स्वयं वहन नहीं करेगी। (iv) प्रतिभूतिकृत किए जाने वाले ऋण ऐसे ऋण होने चाहिए जो व्यक्तियों को ऐसे घर खरीदने के लिए दिए गए हों जिन्हें एकमात्र प्रभार के रूप में किसी आवास वित्त कंपनी के पास बंधक रखा गया हो। (v) प्रतिभूतिकृत किए जाने वाले ऋणों को किसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने स्पेशल पर्पज़ वेहिकल को समनुदेशन किए जाते समय निवेश श्रेणी की क्रेडिट रेटिंग दी हो। (vi) निवेशकों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे चूक की स्थिति में निर्गमकर्ता अर्थात स्पेशल पर्पज़ वेहिकल को वसूली के लिए कदम उठाने तथा बंधक द्वारा समर्थित प्रतिभूतियों के निर्गम की शर्तों के अनुसार निवल राशि के वितरण हेतु कह सकें। (vii) बंधक द्वारा समर्थित प्रतिभूतियों के निर्गम का काम करनेवाली स्पेशल पर्पज़ वेहिकल को वैयक्तिक आवास ऋणों की बंधक द्वारा समर्थित प्रतिभूतियों के निर्गम और प्रशासन के काम के अलावा कोई दूसरा काम नहीं करना चाहिए। (viii) बंधक द्वारा समर्थित प्रतिभूतियों के निर्गम का काम करने के लिए नियुक्त की गई स्पेशल पर्पज़ वेहिकल या न्यासियों को भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के प्रावधानों की परिघि के अंतर्गत रखा जाना चाहिए । 14.2 बंधक द्वारा समर्थित प्रतिभूतियों का निर्गम यदि उपर्युक्त पैराग्राफ में निर्दिष्ट शर्तों के अनुसार होगा और उसके अंतर्गत, आवास ऋण संबंधी आस्तयों के जोखिम और लाभ का एसपीवी/न्यास को अविकल्पी अंतरण भी शामिल होगा तो बंधक द्वारा समर्थित ऐसी प्रतिभूतियों में किसी बैंक द्वारा किया गया निवेश प्रतिभूतिकृत आवास ऋण देने वाली आवास वित्त कंपनी को उपलब्ध कराया गया वित्त नहीं माना जाएगा। तथापि उस निवेश को स्पेशल पर्पज़ वेहिकल /न्यास की संबंधित आस्ति से संबद्ध वित्त माना जाएगा। आवास वित्त पर मास्टर पारिपत्र में समेकित पारिपत्रों की सूची
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