मास्टर परिपत्र - भारत में मोबाइल बैंकिंग लेनदेन - बैंकों के लिए परिचालनात्मक दिशानिर्देश - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - भारत में मोबाइल बैंकिंग लेनदेन - बैंकों के लिए परिचालनात्मक दिशानिर्देश
आरबीआई/2013-14/116 1 जुलाई 2013 अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदय/महोदया, मास्टर परिपत्र - भारत में मोबाइल बैंकिंग लेनदेन - बैंकों के लिए परिचालनात्मक दिशानिर्देश जैसा कि आप जानते हैं समय समय पर भारतीय रिजर्व बैंक ने मोबाइल बैंकिंग पर दिशा निर्देश देने वाले कई परिपत्र जारी किए हैं। इस मास्टर परिपत्र को तैयार करने के पीछे यह उदेश्य है कि बैंकों और अन्य हितधारकों को इस विषय पर सभी मौजूदा निर्देश एक ही स्थान पर उपलब्ध हो सकें। 2. इस मास्टर परिपत्र में 30 जून 2013 तक मोबाइल बैंकिंग पर जारी किए गए सभी निर्देशों / दिशानिर्देशों को शामिल करते हुए अद्यतन किया गया है और इसे भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट (/en/web/rbi) पर उपलब्ध करा दिया गया है। इस मास्टर परिपत्र में जिन परिपत्रों का संदर्भ लिया गया है, उनकी सूची अनुबंध के रूप में संलग्न है। भवदीय, विजय चुग
मास्टर परिपत्र - बैंकिंग मोबाइल भारत में मोबाइल बैंकिंग परिचालन के लिए बैंकों द्वारा पालन किए जाने वाले सभी नियमों/विनियमो ं/प्रक्रियाओं को शामिल करते हुए एक समेकित दस्तावेज़ उपलब्ध कराना। भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (2007 का 51) की धारा 18 के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए वैधानिक दिशानिर्देश। इस मास्टर परिपत्र में अनुबंध में सूचीबद्ध मोबाइल बैंकिंग पर जारी परिपत्रों को समेकित किया गया है। ये दिशानिर्देश सभी वाणिज्यिक बैंकों (सहित क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों , शहरी सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक और जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों पर लागू होंगे। 5.1 सभी जगहों पर उपलब्ध होने के कारण मोबाइल फोन बैंकिंग सेवाओं के विस्तार के लिए एक माध्यम के रूप में काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं. मोबाइल फोन नेटवर्क की व्यापक कवरेज के कारण भारत में मोबाइल उपयोगकर्ताओं की संख्या में हुई तेज वृद्धि ने इस माध्यम को सामान्य बैंकिंग ग्राहकों के सभी – समूहों, विषेश रूप से बैंक की सेवाओं से वंचित लोगों को बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बना दिया है। 5.2 सभी को समान अवसर उपलब्ध करने के उद्देश्य से और इस बात पर विचार करते हुए कि यह प्रौद्योगिकी अपेक्षाकृत नई है, रिजर्व बैंक ने बैंकों द्वारा अपनाए जाने वाले परिचालनात्मक दिशानिर्देशों का एक सेट तैयार किया है। हितधारकों के साथ एक व्यापक परामर्श प्रक्रिया के बाद दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दिया गया और इन्हें पहली बार अक्तूबर 2008 में जारी किया गया था और तब से गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए इसे अद्यतन किया गया है। 5.3 इस मास्टर परिपत्र में निहित निर्देशों के प्रयोजनार्थ 'मोबाइल बैंकिंग लेन - देन' का आशय है बैंक ग्राहकों द्वारा मोबाइल फोन का उपयोग करते हुए बैंकिंग लेनदेन करना जिसमें उनके खातों तक पहुँच/ क्रेडिट / डेबिट शामिल है। 5.4 बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक के भुगतान और निपटान प्रणाली विभाग, से आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के बाद मोबाइल बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने की अनुमति है। बैंक ग्राहकों के लिए मोबाइल बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध हैं चाहे कोई भी मोबाइल नेटवर्क हो। मोबाइल बैंकिंग के लिए ग्राहक को पहले अपने बैंकर के साथ पंजीकृत करना होता है और अपने मोबाइल हैंडसेट पर मोबाइल बैंकिंग एप्लीकेशन को डाउनलोड करने की आवश्यकता होती है। 6. विनियामक और पर्यवेक्षी मुद्दे 6.1 ऐसे बैंक जिन्हें लाइसेन्स प्राप्त है, जिनका पर्यवेक्षण किया जाता है और जो भौतिक रूप से भारत में उपस्थित हैं, उन्हें मोबाइल बैंकिंग सेवा प्रदान करने की अनुमति प्राप्त है। केवल वे ही बैंक जिन्होंने कोर बैंकिंग सेवाएँ (CBS) लागू की हैं, मोबाइल बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध करा सकते हैं। 6.2 ये सेवाएं केवल बैंकों के ग्राहकों और /अथवा भारतीय रिजर्व बैंक के वर्तमान निर्देशों के अनुसार जारी किए गए डेबिट / क्रेडिट कार्ड धारकों के लिए ही होंगी। 6.3 केवल भारतीय रुपया आधारित घरेलू सेवाएं ही प्रदान की जाएंगी। सीमापारीय आवक और जावक धन हस्तांतरण के लिए मोबाइल बैंकिंग सेवाओं का उपयोग सर्वथा वर्जित है। 6.4 बैंक अपने ग्राहकों को यह सुविधा उपलब्ध कराने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों के अनुसार नियुक्त किए गए व्यवसाय प्रतिनिधि की सेवाएँ भी ले सकते हैं। 6.5 दिनांक 4 फरवरी 1998 के परिपत्र संख्या डीबीएस.सीओ.आईटीसी.बीसी. 10 / 31.09.001/ 97-98 के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा “कम्प्यूटर और दूरसंचार में जोखिम और नियंत्रण” पर जारी किए गए दिशानिर्देश यथोचित परिवर्तनों सहित मोबाइल बैंकिंग पर लागू होंगे। 6.6 रिजर्व बैंक द्वारा समय - समय पर "अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी)", "एंटी मनी लाँडरिंग (एएमएल)" और "आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला (सीएफटी)" पर जारी किए गए दिशानिर्देश, मोबाइल आधारित बैंकिंग सेवाओं पर भी लागू होंगे। 6.7 बैंक, मोबाइल बैंकिंग लेनदेन के संबंध में संदेहास्पद लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) वित्तीय आसूचना इकाई-भारत (एफआईयू-इंडिया) को उसी प्रकार दर्ज कराएंगे जैसे कि वे सामान्य बैंकिंग लेनदेन के मामले में करते हैं। 7. मोबाइल सेवा के लिए ग्राहकों का पंजीकरण 7.1 बैंक मोबाइल बैंकिंग सेवा शुरू होने से पहले, अनिवार्य रूप से अपने ग्राहक की भौतिक उपस्थिति में दस्तावेज़ आधारित पंजीकरण की व्यवस्था करेंगे। प्रस्तावों का अनुमोदन करते हुए रिजर्व बैंक विशिष्ट मामलों में छूट प्रदान करने पर विचार करेगा। 7.2 ग्राहक पंजीकरण के पश्चात बैंक द्वारा दी जा रही सेवाओं के संबंध में नियमों और शर्तों की पूरी जानकारी ग्राहक को दी जाएगी। 8. प्रौद्योगिकी और सुरक्षा मानक 8.1 मोबाइल बैंकिंग सेवाओं के कारोबार और उनके अंतर्गत परिचालनों के लिए सूचना सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। अत: मोबाइल बैंकिंग के लिए उपयोग में लाई जाने वाली प्रौद्योगिकी सुदृढ़ होनी चाहिए और इसे गोपनीयता, अखंडता, प्रामाणिकता और गैर नामंजूरी योग्य सुनिश्चित करनी चाहिए। 8.2 5,000 रुपये तक के लेनदेन बैंकों द्वारा एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के बिना उपलब्ध कराए जा सकते हैं। ऐसे लेनदेनों में जोखिम के पहलू को बैंकों द्वारा यथोचित सुरक्षा उपायों के माध्यम से कम किया जाना चाहिए (परिपत्र डीपीएसएस सीओ सं. 2502/02.23.02/ 2010-11, दिनांक 4 मई 2011) 8.3 अनुबंध I में विस्तृत फ्रेमवर्क दिया गया है। 9.1 मोबाइल बैंकिंग सेवा प्रदान करने वाले बैंकों को यह बात सुनिश्चित करनी चाहिए कि किसी भी नेटवर्क ऑपरेटर के मोबाइल पर ग्राहक को ये सेवाएँ मिलनी चाहिए अर्थात यह सभी नेटवर्को पर उपलब्ध होनी चाहिए। यदि किसी विशेष मोबाइल ऑपरेटर (ओपरेटरों) के संबंध में कोई प्रतिबंध हो तो वह केवल सेवाएँ प्रदान करने के आरंभिक चरणों के लिए होगा जो कि अधिकतम छह महीनों के लिए होगा और जिसकी समीक्षा की जा सकती है। 9.2 भारत में मोबाइल बैंकिंग ढांचे का दीर्घकालिक लक्ष्य है कि ग्राहक किसी भी नेटवर्क ऑपरेटर का उपयोग कर एक बैंक के खाते से उसी बैंक के या किसी अन्य बैंक के खाते में तत्काल धन अंतरण कर सके। इस संबंध में मोबाइल सेवा प्रदाताओं और बैंकों के बीच अंतर परिचालनीयता एवं कई मैसेज प्रारूपों के विकास की आवश्यकता होगी। बैंकों और उनके मोबाइल सेवा प्रदाताओं के बीच अंतर परिचालनीयता सुनिश्चित करने के लिए और बैंक विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बैंकों को आईएसओ 8583 जैसे मैसेज फॉर्मेट का प्रयोग यथोचित सुधारों के साथ स्वीकार करना चाहिए। 10. अंतर बैंक धन हस्तांतरण संबंधी लेनदेन के लिए समाशोधन और निपटान 10.1 अंतर बैंक निपटान की सुविधा उपलब्ध कराने वाले देशव्यापी मोबाइल बैंकिंग ढांचे के उद्देश्य को पूरा करने के लिए 24x7 आधार पर चलने वाला एक मजबूत समाशोधन और निपटान ढांचा आवश्यक होगा। इस प्रकार की द्विपक्षीय या बहुपक्षीय प्रणालियों को लाने वाली बैंक या गैर बैंक कंपनियों को भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक से प्राधिकरण की आवश्यकता होगी। 11. ग्राहकों की शिकायतें और शिकायत निवारण तंत्र 11.1 चूंकि, मोबाइल फोन के माध्यम से बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराना अपेक्षाकृत रूप से नया है अत: ग्राहक/उपभोक्ता सुरक्षा संबंधी मुद्दे काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे अनुबंध II में दिये गए हैं। 12.1 बैंकों को यह अनुमति है कि वे अपने ग्राहकों को बिना किसी दैनिक सीमा के मोबाइल बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध कराएं जिसमें सामान / सेवाओं की खरीद शामिल है। (परिपत्र डीपीएसएस सीओ पीडी सं. 1098/02.23.001/2011-12, 22 दिसंबर 2011) 12.2 तथापि, बैंक अपनी जोखिम अवधारणा के आधार पर अपने बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त कर लेनदेन की सीमा तय कर सकते हैं। 13. नकदी के रूप में वितरण के लिए धन का प्रेषण 13.1 मोबाइल फोन के उपयोग के द्वारा नकदी का प्रेषण सुगम करने के लिए बैंकों को धन अंतरण की ऐसी सेवाएँ उपलब्ध कराने की अनुमति प्रदान की गयी है, जिसके अंतर्गत वे प्राप्तकर्ता को नकदी प्रदान करने के लिए अपने ग्राहकों के खातों से धन का अंतरण कर सकते हैं। प्राप्तकर्ता को निधि की सुपुर्दगी एटीएम के माध्यम से अथवा व्यवसाय प्रतिनिधि के रूप में बैंक द्वारा नियुक्त किसी एजेंट (एजेंटों) के माध्यम से की जा सकती है। प्राप्तकर्ता गैर-खाताधारी भी हो सकता है।(परिपत्र डीपीएसएस.सीओ.सं. 1357/02.23.02/ 2009-10, दिनांक 24 दिसंबर 2009)। 13.2 बैंकों द्वारा इस तरह की धन अंतरण सेवा निम्नलिखित शर्तों के अधीन उपलब्ध कराई जाएगी : - क) कैश आउट के मामले में इस तरह के अंतरणों की अधिकतम सीमा 10,000 रुपये प्रति लेनदेन होगी। बैंक इस तरह के लेनदेनों की गति के संबंध में यथोचित सीमा निर्धारित कर सकता है, बशर्ते प्रति माह, प्रति लाभग्राही अधिकतम सीमा 25,000 रुपये होना चाहिए (परिपत्र डीपीएसएस सीओ पीडी सं. 622/02.27.019/2011-12, दिनांक 5 अक्तूबर 2011)। ख) एजेंट / एटीएम द्वारा धन के वितरण की अनुमति केवल प्राप्तकर्ता की पहचान के बाद दी जाएगी। इस संबंध में भारत सरकार द्वारा 12 नवंबर 2009 को धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 के तहत जारी और समय समय पर यथा संशोधित अधिसूचना के प्रावधानों, की ओर बैंकों का ध्यान आकर्षित किया जाता है। ग) बैंकों से यह अपेक्षित है कि वे इस तरह की सेवाओं के लिए अधिकृत एजेंट के रूप में व्यक्तियों को नियुक्त करने से पहले उनकी समुचित जांच कर लें। घ) बैंक अपने एजेंटों द्वारा की गई भूल-चूक संबंधी सभी गतिविधियों के लिए प्रमुख (प्रिंसिपल) के रूप में उत्तरदायी होंगे। 14.1 स्कीम को लागू करने से पूर्व उत्पाद और संभावित जोखिम और उनके शमन संबंधी प्रस्तावित उपाय के लिए निदेशक बोर्ड (विदेशी बैंकों के मामले में क्षेत्रीय बोर्ड) का अनुमोदन प्राप्त कर लेने चाहिए। 15. भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमोदन 15.1 मोबाइल बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के इच्छुक बैंकों को प्रस्ताव की पूरी जानकारी प्रस्तुत कर भारतीय रिजर्व बैंक से एक बार मंजूरी लेनी होगी। प्रौद्योगिकी और सुरक्षा मानक
3. प्रमाणीकरण मोबाइल बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने वाले बैंकों को मोबाइल बैंकिंग लेनदेनों के प्रमाणीकरण के लिए निम्नलिखित सुरक्षा सिद्धांतों और प्रथाओं का पालन करना होगा: क) सभी मोबाइल बैंकिंग लेनदेनों को दोहरे प्रमाणीकरण के माध्यम से ही अनुमति प्राप्त होगी। ख) प्रमाणीकरण के कारकों में से एक एम पिन या कोई उच्चतर स्तर का होगा। ग) जहां एम पिन का प्रयोग किया जाता है, वहाँ एम पिन का एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन वांछनीय है अर्थात नेटवर्क में कहीं भी एम पिन का स्पष्ट पाठ नहीं होना चाहिए। घ) एम पिन को सुरक्षित रखा जाएगा। 4. लेनदेन प्रसंस्करण के सभी चरणों में एन्क्रिप्शन और सुरक्षा को समुचित स्तर पर लागू किया जाएगा। मोबाइल बैंकिंग लेन–देन में एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। मनी लॉंन्ड्रिंग और धोखाधड़ी इत्यादि में मोबाइल बैंकिंग के इस्तेमाल को रोकने के लिए यथोचित रक्षोपाय किए जाने चाहिए। नेटवर्क और प्रणाली की सुरक्षा के संबंध में निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा: क) जहाँ भी संभव हो वहाँ नेटवर्क और ट्रांसपोर्ट लेयर एन्क्रिप्शन के स्थान पर एप्लीकेशन लेवल एन्क्रिप्शन को लागू करें। ख) उचित फायरवॉल, घुसपैठिए का पता लगाने वाली प्रणालियां (आईडीएस), डेटा फ़ाइल और सिस्टम इंटेग्रिटी की जाँच, निगरानी और घटना की प्रतिक्रिया संबंधी प्रक्रियाओं और नियंत्रण प्रक्रियाओं को स्थापित करना। ग) वर्ष में कम से कम एक बार आवधिक जोखिम प्रबंधन विश्लेषण, एप्लीकेशन और नेटवर्क का सुरक्षा जोखिम मूल्यांकन इत्यादि करना। घ) मोबाइल बैंकिंग और भुगतान प्रणालियों में इस्तेमाल की जाने वाली सुरक्षा प्रथाओं, दिशानिर्देशों, तरीकों और प्रक्रियाओं के उचित और पूर्ण दस्तावेजीकरण का रखरखाव और उन्हें आवधिक जोखिम प्रबंधन, विश्लेषण और किए गए जोखिम मूल्यांकन के आधार पर अद्यतन रखना। ङ) प्रणाली गेटवे, नेटवर्क उपकरणों, सर्वर, होस्ट कंप्यूटर और अनधिकृत उपयोग और छेड़छाड़ से इस्तेमाल किए गए अन्य हार्डवेयर / सॉफ्टवेयर की रक्षा के लिए यथोचित सुरक्षा उपायों को लागू करें। बैंक और सेवा प्रदाता के डेटा सेंटर में उचित वायर्ड और वायरलेस डाटा नेटवर्क सुरक्षा तंत्र होना चाहिए। 5. मोबाइल बैंकिंग सेवा प्रदाताओं पर बैंकों की निर्भरता के कारण बैंक प्रणालियों और ग्राहकों की जानकारी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हो सकती है। मोबाइल बैंकिंग प्रणाली बैंकों को छोटी कंपनियों (अर्थात मोबाइल बैंकिंग सेवा प्रदाता) जहाँ कर्मचारी बार बार बदले जाते हें, पर निर्भर बना सकती है। अत: यह आवश्यक हो जाता है कि ग्राहकों के संवेदनशील डेटा, और लेनदेन जानकारी की सुरक्षा की जाए। यह आवश्यक है कि, बैंक अथवा मोबाइल बैंकिंग सेवा प्रदाता के पास मोबाइल बैंकिंग सर्वर, यदि कोई हो, मान्यता प्राप्त बाहरी एजेंसी द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बैंकों को मोबाइल बैंकिंग सिस्टम के संबंध में नियमित सूचना सुरक्षा निरीक्षण करना चाहिए। 6. ऐसी मोबाइल बैंकिंग सुविधा जिसमें पहचान के रूप में दूरभाष नंबर नहीं है उसमें समुचित प्रमाणीकरण सुनिश्चित करने के लिए एक अलग लॉगिन आईडी और पासवर्ड वांछनीय है। ग्राहक संरक्षण संबंधी मुद्दे 1. उपयोगकर्ताओं के सत्यापन के लिए बैंकों द्वारा अपनाई गई कोई भी सुरक्षा प्रक्रिया, हस्ताक्षर के विकल्प के रूप में कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के सत्यापन के लिए विशिष्ट प्रौद्योगिकी का प्रावधान करता है। प्रमाणीकरण के लिए बैंकों द्वारा इस्तेमाल की गई कोई अन्य प्रक्रिया कानूनी जोखिम का स्रोत होगी। ग्राहकों को साइन अप करने से पूर्व उक्त कानूनी जोखिम से अवगत कराया जाना चाहिए। 2. बैंकों से अपेक्षित है कि वे ग्राहकों के खातों की गोपनीयता बनाए रखें। मोबाइल बैंकिंग परिदृश्य में, उक्त बाध्यताओं कों पूरा न करने वाले बैंकों का जोखिम अधिक है। हैकिंग / अन्य तकनीकी विफलताओं के कारण गोपनीयता भंग करना, सेवा प्रदान करने से इनकार इत्यादि के कारण बैंकों का ग्राहकों के प्रति दायित्व संबंधी जोखिम बढ़ सकता है। अत: बैंकों कों इस तरह के जोखिमों का प्रबंधन करने के लिए पर्याप्त जोखिम नियंत्रण के उपाय करने चाहिए। 3. इंटरनेट बैंकिंग जैसी ही मोबाइल बैंकिंग परिदृश्य में भी मोबाइल बैंकिंग लेनदेन के लिए भुगतान रोकने की सुविधा बहुत ही सीमित है अथवा नहीं है। बैंकों के लिए भुगतान रोकने के निर्देश प्राप्त होने के बावजूद भी भुगतान रोकना असंभव हो जाता है क्योंकि लेनदेन बहुत तेजी से होते हैं एवं उन्हें वापस नहीं किया जा सकता है। अत: मोबाइल बैंकिंग उपलब्ध कराने वाले बैंकों को अपने ग्राहकों को इस बात से अवगत करा देना चाहिए कि भुगतान रोकने के लिए समय सीमा कितनी है और परिस्थितियाँ कौन सी हैं। 4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत में उपभोक्ताओं के अधिकारों को स्पष्ट करता है और यह बैंकिंग सेवाओं पर भी लागू है। वर्तमान में, मोबाइल बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाने वाले ग्राहकों के अधिकार और उत्तरदायित्व बैंकों और ग्राहकों के बीच द्विपक्षीय समझौतों के द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। हैकिंग के माध्यम से अनधिकृत अंतरण, तकनीकी विफलता के कारण सेवाओं की अनुपलब्धता इत्यादि को ध्यान में रखते हुए मोबाइल बैंकिंग उपलब्ध कराने वाले बैंकों को ऐसी घटनाओं से उत्पन्न होने वाले उत्तरदायित्वों का मूल्यांकन करना होगा और इस संबंध में बचाव के यथोचित उपाय जैसे जोखिमों के विरुद्ध स्वयं का बीमा कराना होगा, इत्यादि करने होंगे और जैसे कि इन्टरनेट बैंकिंग के लिए किया जाता है। 5. आदाता और आदाता के बैंक के बीच तैयार किए गए द्विपक्षीय करार, भाग लेने वाले बैंक और सेवा प्रदाताओं को स्पष्ट रूप से प्रत्येक पक्ष के अधिकारों और दायित्वों को परिभाषित करना चाहिए। 6. बैंकों को अपनी वेबसाइटों पर और / या मुद्रित सामग्री के माध्यम से जोखिमों, उत्तरदायित्वों, ग्राहकों की जिम्मेदारियों और उत्तरदायित्वों कों अनिवार्य रूप से घोषित करना चाहिए। 7. ग्राहकों की शिकायतों से निपटने के लिए मौजूदा तंत्र का इस्तेमाल मोबाइल बैंकिंग लेनदेन से संभावित शिकायतों के लिए भी किया जा सकता है। हालांकि, कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि यह प्रौद्योगिकी अपेक्षाकृत नयी है, बैंकों को एक हेल्प डेस्क की स्थापना करनी चाहिए और अपनी वेबसाइटों पर, शिकायत दर्ज कराने के लिए हेल्प डेस्क और एस्कलेशन प्रक्रिया उपलब्ध करानी चाहिए। ऐसी जानकारी साइन अप करते समय ग्राहकों को भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए। 8. ऐसे मामलों में जहां ग्राहक लेन - देन संबंधी विवाद के संबंध में बैंक के पास शिकायत दर्ज कराता है, वहाँ शीघ्रता से शिकायत निवारण करने का उत्तरदायित्व सेवा प्रदाता बैंक का होगा। बैंक ग्राहकों की ऐसी शिकायतों के समाधान के लिए प्रक्रिया निर्धारित कर सकते हैं। शिकायत निवारण की प्रक्रिया सहित मुआवजे की नीति की घोषणा की जानी चाहिए। 9. मोबाइल बैंकिंग सुविधा से उत्पन्न होने वाली ग्राहकों की शिकायतें/परिवाद बैंकिंग लोकपाल योजना के अंतर्गत शामिल कर ली जाएंगी। 10. कानूनी निपटान के संबंध में क्षेत्राधिकार भारत में होगा। मास्टर परिपत्र के लिए समेकित परिपत्रों की सूची
|