स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र - आरबीआई - Reserve Bank of India
स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र
भारिबैं/2018-19/07 02 जुलाई 2018 अध्यक्ष/ प्रबंध निदेशक/ महोदया/ महोदय स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय-समय पर बैंकों को स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम के संबंध में अनेकों दिशा-निर्देश/अनुदेश जारी किए हैं। बैंकों को सभी अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के प्रयोजन से इस विषय पर विद्यमान दिशा-निर्देशों/अनुदेशों को समाहित करते हुए इस मास्टर परिपत्र को अद्यतन किया गया है जो इसके साथ संलग्न है। इस मास्टर परिपत्र में, परिशिष्ट में दिए गए अनुसार, रिज़र्व बैंक द्वारा 30 जून 2018 तक उक्त विषय पर जारी सभी परिपत्र समेकित किए गए हैं। भवदीय (गौतम प्रसाद बोरा) अनुलग्नक : यथोक्त स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) - बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र स्वयं सहायता समूहों में औपचारिक बैंकिंग ढांचे और ग्रामीण गरीबों को आपसी लाभ के लिए एकसाथ लाने की संभाव्यता है। नाबार्ड द्वारा कुछ राज्यों में परियोजना सहलग्नता के प्रभाव के मूल्यांकन के संबंध में किए गए अध्ययन से प्रोत्साहनपूर्ण तथा सकारात्मक विशेषताएं सामने आई हैं यथा स्वयं सहायता समूहों के ऋण की मात्रा में वृद्धि, सदस्यों के ऋण ढांचे में आय न होने वाली गतिविधियों से उत्पादक गतिविधियों में निश्चित परिवर्तन, लगभग 100 प्रतिशत वसूली कार्यनिष्पादन, बैंकों और उधारकर्ताओं दोनों के लिए लेन-देन लागत में भारी कटौती इत्यादि के साथ-साथ स्वयं सहायता समूह सदस्यों के आय स्तर में क्रमिक वृद्धि। सहलग्नता परियोजना की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि बैंकों से सहलग्न लगभग 85 प्रतिशत समूह केवल महिलाओं द्वारा गठित थे। 2. स्वयं सहायता समूह बैंक सहलग्नता के महत्व को ध्यान में रखते हुए, बैंकों को सूचित किया गया है कि वे वर्ष 2008-09 के लिए माननीय वित्त मंत्री द्वारा घोषित केंद्रीय बजट के पैरा 93, जिसमें निम्नानुसार कहा गया था : "बैंकों को समग्र वित्तीय समावेशन की अवधारणा अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। सरकार सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों से कुछेक सरकारी क्षेत्र के बैंकों के नक्शे कदम पर चलने और एसएचजी के सदस्यों की सभी ऋण संबंधी आवश्यकताएं अर्थात् (क) आय उपार्जक क्रियाकलाप, (ख) सामाजिक आवश्यकताएं जैसे आवास, शिक्षा, विवाह, आदि और (ग) ऋण अदला-बदली (स्वैप) की आवश्यकताओं को पूरा करने का अनुरोध करेगी”।, में की गई परिकल्पना के अनुसार एसएचजी के सदस्यों की संपूर्ण ऋण आवश्यकताओं को पूरा करें। भारतीय रिज़र्व बैंक के मौद्रिक नीति वक्तव्य और केंद्रीय बजट घोषणाओं में समय-समय पर बैंकों के साथ एसएचजी को जोड़ने पर बल दिया गया है और इस संबंध में बैंकों को विभिन्न दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। 3. बैंकों को सरल और आसान प्रक्रिया बनाते हुए अपनी शाखाओं को स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को वित्तपोषित करने और उनके साथ सहलग्नता स्थापित करने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन देना चाहिए। एसएचजी की कार्यप्रणाली की सामूहिक प्रगति उन पर ही छोड़ दी जाए और न उन्हें विनियमित किया जाए और न ही उन पर औपचारिक ढांचा थोपा जाए। एसएचजी के वित्तपोषण के प्रति दृष्टिकोण बिल्कुल बाधारहित होना चाहिए तथा उनमें उपभोग व्यय भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। तदनुसार, बैंकिंग क्षेत्र के साथ एसएचजी के प्रभावी सहलग्नता को सक्षम करने के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। 4. बचत बैंक खाता खोलना a) पंजीकृत और अपंजीकृत एसएचजी जो अपने सदस्यों की बचत आदतों को बढ़ाने के कार्य में संलग्न हैं, बैंकों के साथ बचत खाते खोलने हेतु पात्र हैं। यह आवश्यक नहीं है कि इन एसएचजी ने बचत बैंक खाते खोलने से पहले बैंकों की ऋण सुविधा का उपयोग किया हो। ग्राहकों के संबंध में समुचित सावधानी (सीडीडी)1 को पूरा करने के दौरान बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा एसएचजी सदस्यों से संबंधित केवाईसी पर मास्टर निदेश (भाग VI- पैराग्राफ 43) में दिए गए निर्देशों का पालन किया जाए। b) तदनुसार, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के लिए सरलीकृत मानदंडों के तहत मौजूदा निर्देशों में यह उल्लेखित है कि एसएचजी के बचत बैंक खाते को खोलते समय उक्त निदेश में उल्लेख किए गए अनुसार एसएचजी के सभी सदस्यों की सीडीडी की आवश्यकता नहीं होगी। सभी पदाधिकारियों की सीडीडी ही पर्याप्त होगी। एसएचजी के क्रेडिट लिंकेज के समय सदस्यों या पदाधिकारियों की अलग से कोई सीडीडी की आवश्यकता नहीं होगी। 5. एसएचजी को उधार देना a) एसएचजी को बैंकों द्वारा दिए गए उधारों को प्रत्येक बैंक की शाखा ऋण योजना, ब्लॉक ऋण योजना, जिला ऋण योजना और राज्य ऋण योजना में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इन योजनाओं को तैयार करने में इस क्षेत्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसे बैंक की कारपोरेट ऋण योजना का एक महत्वपूर्ण भाग भी बनाया जाना चाहिए। b) नाबार्ड के परिचालनगत दिशानिर्देशों के अनुसार, बैंकों द्वारा एसएचजी को बचत सहलग्न ऋण स्वीकृत किया जा सकता है (यह बचत और ऋण अनुपात 1 : 1 से 1 : 4 तक भिन्न-भिन्न हो सकता है)। यद्यपि, परिपक्व एसएचजी के मामलों में, बैंक के विवेकानुसार बचत के चार गुणा तक ऋण सीमा से परे भी ऋण प्रदान किया जा सकता है। c) एक ऐसी आसान प्रणाली, जिसमें न्यूनतम क्रियाविधि और दस्तावेजीकरण की अपेक्षा हो, एसएचजी को ऋण के प्रवाह में वृद्धि करने की पूर्व शर्त है। बैंकों को अपने शाखा प्रबंधकों को पर्याप्त मंजूरी अधिकार प्रदान करके ऋण शीघ्र स्वीकृत और संवितरित करने की व्यवस्था करनी चाहिए तथा परिचालनगत सभी व्यवधानों को दूर करना चाहिए। ऋण आवेदन फार्मों, प्रक्रिया और दस्तावेजों को आसान बनाना चाहिए। इससे शीघ्र और सुविधाजनक रूप से ऋण उपलब्ध कराने में सहायता मिलेगी। 6. ब्याज दरें बैंकों द्वारा स्वयं सहायता समूहों/ सदस्य हिताधिकारियों को दिए गए ऋणों पर लागू होने वाली ब्याज दरों को उनके विवेकाधिकार पर छोड़ दिया गया है। 7. सेवा/ प्रक्रिया प्रभार रु.25,000/- तक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण पर ऋण संबंधी कोई और तदर्थ सेवा प्रभार/ निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाना चाहिए। एसएचजी/ जेएलजी को दिए जाने वाले पात्र प्राथमिकता-प्राप्त ऋणों के मामले में, यह सीमा समग्र समूह के बजाय समूह के प्रति सदस्य पर लागू होगी। 8. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत एक पृथक खंड बैंक एसएचजी को दिए गए अपने उधारों की रिपोर्ट बिना किसी कठिनाई के कर सकें, इसलिए यह निर्णय लिया गया है कि बैंकों को चाहिए कि वे अपनी रिपोर्ट में एसएचजी के सदस्यों को आगे उधार देने के लिए एसएचजी को दिए गए ऋण को संबंधित श्रेणी नामतः “एसएचजी को अग्रिम” दर्शाएं, चाहे एसएचजी के सदस्यों को दिए गए ऋण का प्रयोजन कुछ भी हों। एसएचजी को दिए गए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र से संबंधित ऋणों को “कमज़ोर वर्गों” के अंतर्गत दिया गया ऋण माना जाएगा। 9. एसएचजी में चूककर्ताओं की उपस्थिति एसएचजी के कुछ सदस्यों तथा/ अथवा उनके पारिवारिक सदस्यों द्वारा बैंक वित्त के प्रति चूक को सामान्यतया एसएचजी के वित्तपोषण में आड़े नहीं आना चाहिए, बशर्ते कि एसएचजी ने चूक न की हो। तथापि, एसएचजी द्वारा बैंक ऋण का उपयोग बैंक के चूककर्ता सदस्य को वित्त देने के लिए न किया जाए। 10. क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण a) बैंक, एसएचजी सहलग्नता परियोजना के आन्तरिककरण के लिए यथोचित कदम उठा सकते हैं तथा फील्ड स्तर के पदाधिकारियों के लिए विशिष्ट रूप से अल्पावधि कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, उनके मध्यम स्तर के नियंत्रक अधिकारियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों के लिए उचित जागरूकता/ सुग्राहीकरण कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। b) बैंक एसएचजी को लक्ष्य करके आवश्यकता आधारित कार्यक्रमों के संचालन हेतु, एफएलसी और ग्रामीण शाखाओं द्वारा वित्तीय साक्षरता - नीति समीक्षा पर दिनांक 02 मार्च 2017 के परिपत्र विसविवि.एफएलसी.बीसी.सं.22/12.01.018/2016-17 में उल्लेखित अनुदेशों का संदर्भ ग्रहण करें। 11. एसएचजी उधार की निगरानी और समीक्षा एसएचजी की संभाव्यता के मद्देनजर, बैंकों को विभिन्न स्तरों पर नियमित रूप से प्रगति की निगरानी करनी चाहिए। असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने के लिए चल रहे एसएचजी बैंक सहलग्नता कार्यक्रम को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) और जिला परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) की बैठकों में एसएचजी बैंक सहलग्नता कार्यक्रम की निगरानी पर चर्चा के लिए उसे कार्यसूची की एक मद के रूप में नियमित रूप से रखा जाना चाहिए। इसकी समीक्षा तिमाही आधार पर उच्चत्तम कारपोरेट स्तर पर की जानी चाहिए। साथ ही, बैंकों द्वारा नियमित अन्तराल पर कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा की जाए। एसएचजी-बीएलपी के अंतर्गत प्रगति, जैसा कि आरबीआई द्वारा दिनांक 26 अप्रैल 2018 के पत्र विसविवि.केंका.एफआईडी.सं. 3387/12.01.033/2017-18 में निर्धारित किया गया है, को तिमाही आधार पर नाबार्ड (सूक्ष्म ऋण नवप्रवर्तन विभाग), मुम्बई को रिपोर्ट करना है तथा रिटर्न को नियत तारीख से 15 दिनों के भीतर निर्धारित प्रारूप में परस्तुत करना है। 12. सीआईसी को रिपोर्टिंग वित्तीय समावेशन के लिए एसएचजी सदस्यों के संबंध में क्रेडिट सूचना रिपोर्टिंग के महत्व को ध्यान में रखते हुए, बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे दिनांक 16 जून 2016 को स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के सदस्यों के संबंध में ऋण सूचना रिपोर्टिंग पर तथा दिनांक 14 जनवरी 2016 को स्वयं सहायता समूह (एसएसजी) के सदस्यों के संबंध में ऋण सूचना रिपोर्टिंग पर बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करें। मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
1 ग्राहक संबंधी समुचित सावधानी – अर्थात ग्राहक और लाभार्थी की पहचान एवं सत्यापन करना है |