भारतीय रिज़र्व बैंक (सह-उधार व्यवस्था) निदेश, 2025 - आरबीआई - Reserve Bank of India
भारतीय रिज़र्व बैंक (सह-उधार व्यवस्था) निदेश, 2025
आरबीआई/विवि/2025-26/139 06 अगस्त 2025 भारतीय रिज़र्व बैंक (सह-उधार व्यवस्था) निदेश, 2025 मौजूदा विवेकपूर्ण विनियमों के अनुपालन के अधीन विनियमित संस्थाएँ (आरई) द्वारा, उधारकर्ताओं को ऋण प्रदान करने के लिए अन्य आरई के साथ ऋण व्यवस्था की जा सकती हैं। यद्यपि, ऐसी ऋण व्यवस्थाओं के लिए कोई सामान्य विनियामक फ्रेमवर्क उपलब्ध नहीं है, फिर भी दिनांक 5 नवंबर, 2020 के परिपत्र एफआईडीडी.केंका.प्लान.बीसी.सं.8/04.09.01/2020-21 के अनुसार प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के उद्देश्य से एक विशिष्ट विनियामक फ्रेमवर्क निर्धारित किए जाने के बाद बैंकों और एनबीएफसी को शामिल करते हुए सह-उधार व्यवस्थाओं ने गति पकड़ी है। इसे देखते हुए और सह-उधार के दायरे को व्यापक बनाने के लिए, सह-उधार व्यवस्थाओं (सीएलए) पर व्यापक संशोधित निदेश जारी किए जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य ऐसी व्यवस्थाओं की अनुमेयता पर विशिष्ट विनियामक स्पष्टता प्रदान करना है, साथ ही कुछ विवेकपूर्ण और आचरण संबंधी पहलुओं का समाधान करना भी है। यह निदेश बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35ए के साथ पठित अधिनियम की धारा 56; भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय IIIबी; और राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 30ए, 32 और 33 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किए गए हैं। 1. इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक (सह-उधार व्यवस्था) निदेश, 2025 कहा जाएगा। 2. यह निदेश 1 जनवरी 2026 से अथवा किसी आरई द्वारा अपनी आंतरिक नीति के अनुसार तय की गई किसी भी पूर्व तिथि से लागू होंगे ("प्रभावी दिनांक")। प्रभावी दिनांक के बाद की गई कोई भी नई सीएलए इन निदेशों के अनुपालन में शामिल होगी। 3. मौजूदा सीएलए (अर्थात इन निदेशों के जारी होने की तिथि से पहले निष्पादित उधार व्यवस्थाएँ) और प्रभावी दिनांक से पहले किए गए नए सीएलए, मौजूदा विनियमों के अनुरूप होंगे। 4. यह निदेश निम्नलिखित विनियमित संस्थाओं (आरई) द्वारा किए गए सीएलए पर लागू होंगे:
5. डिजिटल उधार व्यवस्थाएँ भारतीय रिज़र्व बैंक (डिजिटल उधार) निदेश, 2025 (एमडी-डीएलडी) जिन्हें समय-समय पर संशोधित किया गया है, उनके द्वारा अधिशासित होती रहेंगी।
6. यह निदेश बहु-बैंकिंग, संघीय उधार अथवा समूहन के अंतर्गत स्वीकृत ऋणों पर लागू नहीं होंगे। 7. इन निदेशों के अनुसार अन्यथा अनुमत को छोड़कर, कोई भी विनियमित संस्था ऐसे किसी भी सीएलए में भागीदारी नहीं करेगी जो इन निदेशों का अनुपालन नहीं करती हो। 8. इन निदेशों के प्रयोजनार्थ, सीएलए एक ऐसी व्यवस्था को संदर्भित करता है, जो एक प्रत्याशित करार द्वारा औपचारिक रूप से, एक विनियमित संस्था जो ऋण प्रदान करती है ('प्रारंभिक आरई') और एक अन्य विनियमित संस्था जो सह-उधार प्रदान करती है ('साझेदार आरई'), के बीच पूर्व-सहमत अनुपात में जमानती अथवा गैर जमानती उधार से युक्त ऋणों के एक संविभाग को संयुक्त रूप से वित्तपोषित करने के लिए होती है, जिसमें राजस्व और जोखिम हिस्सेदारी शामिल होती है। 9. अन्य सभी अभिव्यक्तियों, जब तक कि यहाँ परिभाषित न किया गया हो के वही अर्थ होंगे जो उन्हें बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 अथवा उसके किसी सांविधिक संशोधन अथवा पुनर्अधिनियमन अथवा किसी अन्य सुसंगत विनियमन अथवा वाणिज्यिक शब्दावली में प्रयुक्त, जैसा भी मामला हो, के अंतर्गत निर्दिष्ट किया गया है। 10. सीएलए के अंतर्गत प्रत्येक आरई को अपने खातों में व्यक्तिगत ऋणों का न्यूनतम 10 प्रतिशत हिस्सा बनाए रखना आवश्यक होगा। 11. आरई की ऋण नीति में सीएलए से संबंधित प्रावधानों को उचित रूप से शामिल किया जाएगा, जिसमें सीएलए के अंतर्गत उनके ऋण संविभाग के अनुपात की आंतरिक सीमा; लक्षित उधारकर्ता खंड; साझेदार संस्थाओं की समुचित सावधानी; ग्राहक सेवा और शिकायत निवारण तंत्र शामिल हैं। 12. सीएलए भागीदारों के बीच किए जाने वाले करार में व्यवस्था की विस्तृत नियम व शर्तें; उधारकर्ताओं के चयन के लिए मानदंड; विशिष्ट उत्पाद लाइनें और कार्य-क्षेत्र; उधार सेवाओं1 के लिए देय शुल्क, यदि कोई हो; जिम्मेदारियों के पृथक्करण से संबंधित प्रावधान; महत्वपूर्ण जानकारी के आदान-प्रदान के लिए समय-सीमा; ग्राहक इंटरफ़ेस तथा ग्राहक संरक्षण के मुद्दे और शिकायत निवारण तंत्र शामिल होंगे। 13. उधारकर्ता के साथ हस्ताक्षरित ऋण करार में संबंधित विनियमित संस्थाओं (आरई) की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों (जैसे सोर्सिंग और सर्विसिंग) के पृथक्करण के बारे में प्रारंभिक प्रकटीकरण किया जाएगा, जिसमें ग्राहक के साथ इंटरफेस के एकल बिंदु के रूप में संस्था की स्पष्ट पहचान भी शामिल होगी। ग्राहक इंटरफेस में बाद में कोई भी परिवर्तन उधारकर्ता को पूर्व सूचना देने के बाद ही किया जाएगा। ऋण करार में ग्राहक संरक्षण और शिकायत निवारण तंत्र से संबंधित उपयुक्त प्रावधानों का भी उचित रूप से प्रकटीकरण किया जाएगा। 14. सीएलए के सभी आवश्यक विवरण संबंधित उधारकर्ता को उचित रूप से प्रकट किए जाएंगे, जैसा कि समय-समय पर संशोधित 15 अप्रैल 2024 के आरबीआई परिपत्र ‘ऋण और अग्रिमों के लिए मुख्य तथ्य विवरण (केएफएस)’ के तहत निर्धारित किया गया है। 15. मास्टर निदेश - भारतीय रिज़र्व बैंक (प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार - लक्ष्य और वर्गीकरण) निदेश 2025 (समय-समय पर संशोधित) के अनुसार प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार के तहत वर्गीकृत किए जाने हेतु पात्र ऋणों के लिए सीएलए के कार्य में लगी आरई, सीएलए के तहत क्रेडिट के अपने हिस्से के संबंध में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र की स्थिति का दावा कर सकती हैं। 16. एनबीएफसी को सीएलए के तहत अप्राप्त लाभ, यदि लागू हो, दर्ज करते समय लागू लेखांकन मानकों का पालन करना होगा। हालाँकि, ऐसे ऋणों की परिपक्वता तक विनियामक पूंजी पर्याप्तता आवश्यकता को पूरा करने के लिए ऐसे लाभों को सीईटी 1 पूंजी या निवल स्वाधिकृत निधियों से घटाया जाएगा। 17. अंतर्निहित ऋणों पर उधारकर्ता से ली जाने वाली ब्याज दर और कोई अन्य शुल्क/प्रभार संविदात्मक करार पर आधारित होंगे, जो विनियमित संस्थाओं पर लागू विनियामक मानदंडों के अधीन होंगे। विशेष रूप से, उधारकर्ता से ली जाने वाली अंतिम ब्याज दर मिश्रित ब्याज दर होगी, जिसकी गणना संबंधित विनियमित संस्थाओं द्वारा ली जाने वाली ब्याज दरों से प्राप्त औसत ब्याज दर के रूप में की जाएगी, जो उनकी आंतरिक उधार नीतियों और समान या समरूप उधारकर्ता के जोखिम प्रोफाइल के अनुसार होगी तथा जिसे सीएलए के तहत संबंधित विनियमित संस्थाओं के आनुपातिक निधीयन हिस्से द्वारा भारित किया जाएगा। 18. सीएलए के अंतर्गत संबंधित विनियमित संस्थाओं द्वारा दरों में कोई भी परिवर्तन उनकी क्रेडिट नीति और मौजूदा विनियामक मानदंडों के अनुसार किया जाएगा तथा इसे अद्यतन मिश्रित दर में दर्शाया जाएगा तथा उधारकर्ता को सूचित किया जाएगा। 19. मिश्रित ब्याज दर के अतिरिक्त उधारकर्ता द्वारा देय कोई भी शुल्क/प्रभार वार्षिक प्रतिशत दर (एपीआर) की गणना में शामिल किया जाएगा तथा इन निदेशों के पैराग्राफ 14 में निर्धारित अनुसार केएफएस में उचित रूप से प्रकट किया जाएगा। 20. क्रेडिट नीति के भाग के रूप में, आरई ऋण सेवाओं के लिए देय शुल्क/प्रभार के लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड निर्धारित करेगी, जो प्रदान की गई सेवा की प्रकृति, ऋण की मात्रा आदि जैसे प्रासंगिक कारकों पर निर्भर होगा। ऐसे शुल्क/प्रभार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऋण वर्धन2/ डिफॉल्ट हानि गारंटी3 का कोई तत्व शामिल नहीं होगा, जब तक कि अन्यथा अनुमति न दी जाए। 21. सीएलए में साझेदार आरई की ओर से एक अप्रतिसंहरणीय प्रतिबद्धता शामिल होगी कि वह प्रारंभिक आरई द्वारा शुरू किए गए व्यक्तिगत ऋणों में अपने हिस्से को, बैक-टू-बैक आधार पर, अपनी बहियों में शामिल करें। 22. सीएलए यह सुनिश्चित करेगा कि आरई के संबंधित शेयर, प्रारंभिकआरई द्वारा उधारकर्ता को संवितरण के बाद बिना किसी देरी के दोनों आरई की बहियों में दर्शाए जाएं, जो किसी भी मामले में संवितरण की तारीख से 15 कैलेंडर दिवसों के बाद नहीं होना चाहिए। 23. प्रारंभिक आरई को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वह सीएलए के तहत ऋण को केवल साझेदार आरई को ही अंतरित करे, जैसा कि पूर्व-अनुबंध के अनुसार और ऋण की मंजूरी के समय केएफएस में विनिर्दिष्ट किया गया है। 24. यदि प्रारंभिक आरई किसी भी कारण से 15 कैलेंडर दिनों के भीतर सीएलए के तहत साझेदार आरई को एक्सपोजर का हिस्सा अंतरित करने में असमर्थ है, तो ऋण प्रारंभिक आरई की बहियों में बने रहेंगे और उन्हें केवल मास्टर निदेश - ऋण एक्सपोजर का अंतरण, 2021 (एमडी-टीएलई) के प्रावधानों के तहत अन्य पात्र उधारदाताओं को अंतरित किया जा सकता है। 25. प्रत्येक आरई अपने संबंधित हिस्से के लिए वैयक्तिक रूप से उधारकर्ता का खाता बनाए रखेगा। 26. विनियमित संस्थाओं के साथ-साथ उधारकर्ता के बीच सभी लेन-देन (संवितरण/पुनर्भुगतान) बैंक में रखे गए एस्क्रो खाते के माध्यम से किए जाएंगे (जो सीएलए में शामिल विनियमित संस्थाओं में से एक भी हो सकता है)। करार में प्रारंभिक एवं साझेदार विनियमित संस्थाओं के बीच विनियोजन के तरीके को स्पष्ट रूप से विनिर्दिष्ट किया जाएगा। 27. सीएलए के अंतर्गत ऋणों को प्रत्येक विनियमित संस्था में आंतरिक/सांविधिक लेखापरीक्षा के दायरे में शामिल किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके संबंधित आंतरिक दिशानिर्देशों,करार की शर्तों और लागू विनियामक आवश्यकताओं का अनुपालन किया जा रहा है। 28. विनियमित संस्थाओं के बीच सीएलए की समाप्ति की स्थिति में, विनियमित संस्थाओं को ऋण की चुकौती तक अपने उधारकर्ताओं को निर्बाध सेवा सुनिश्चित करने के लिए एक कारोबार निरंतरता योजना लागू करनी होगी। 29. सीएलए के अंतर्गत शामिल आरई को यथासामय संशोधित मास्टर निदेश - अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) निदेश, 2016 के अंतर्गत निर्धारित मानदंडों का अनुपालन करना होगा। साझेदार आरई, केवाईसी पर उक्त मास्टर निदेशों के प्रावधानों के अनुसार “ग्राहक पहचान प्रक्रिया” के लिए प्रारंभिक आरई पर भरोसा कर सकते हैं। 30. विनियमित संस्थाओं को उन पर लागू उचित व्यवहार संहिता और शिकायत निवारण तंत्र द्वारा निर्देशित किया जाएगा। साख सूचना कंपनियों (सीआईसी) को रिपोर्ट करना 31. प्रत्येक विनियमित संस्था को साख सूचना कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 के प्रावधानों और यथासमय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी नियमों और विनियमनों के अनुसार, ऋण खाते में अपने हिस्से के लिए सीआईसी को रिपोर्ट करने की मौजूदा आवश्यकताओं का अनुपालन करना होगा। 32. प्रारंभिक आरई सीएलए के तहत ऋणों के संबंध में बकाया ऋणों के पांच प्रतिशत तक चूक हानि गारंटी प्रदान कर सकता है। ऐसी चूक हानि गारंटी का प्रावधान यथासमय संशोधित एमडी-डीएलडी के अनुसार यथावश्यक परिवर्तनों सहित शासित होगा। 33. आरई, सीएलए के तहत उधारकर्ता के प्रति अपने संबंधित एक्सपोजर के लिए उधारकर्ता-स्तरीय आस्ति वर्गीकरण लागू करेंगे, इसका तात्पर्य यह है कि यदि दोनों में से कोई भी विनियमित संस्था सीएलए के तहत किसी उधारकर्ता के प्रति अपने एक्सपोजर को सीएलए एक्सपोजर में चूक के कारण एसएमए/एनपीए के रूप में वर्गीकृत करती है, तो सीएलए के तहत उधारकर्ता के लिए अन्य आरई के एक्सपोजर पर भी यही वर्गीकरण लागू होगा। विनियमित संस्थाएं इस संबंध में प्रासंगिक जानकारी को लगभग वास्तविक समय के आधार पर साझा करने के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करेंगी, और किसी भी स्थिति में अगले कार्य दिवस के अंत तक ऐसा किया जाएगा। 34. सीएलए के अंतर्गत उत्पन्न ऋण एक्सपोजर का किसी तीसरे पक्ष को बाद में किया गया अंतरण, या आरई के बीच ऐसे ऋण एक्सपोजर का कोई भी पारस्परिक अंतरण, एमडी-टीएलई के प्रावधानों के अनुपालन में सख्ती से किया जाएगा। तथापि, किसी तीसरे पक्ष को ऐसे अंतरण केवल प्रारंभिक और साझेदार आरई दोनों की आपसी सहमति से ही किए जा सकते हैं। 35. मौजूदा विनियमों के तहत लागू प्रकटीकरण आवश्यकताओं के अतिरिक्त, आरई को अपनी वेबसाइट पर सभी सक्रिय सीएलए साझेदारों की सूची भी प्रमुखता से प्रदर्शित करनी होगी। 36. विनियमित संस्थाएं अपने वित्तीय विवरणों में ‘लेखों पर नोट्स’ के अंतर्गत समग्र आधार पर सीएलए के आवश्यक विवरणों से संबंधित उचित प्रकटीकरण भी करेंगी। विवरण में अन्य बातों के साथ-साथ सीएलए की मात्रा, ब्याज की भारित औसत दर, लीया गया/भुगतान किया गया शुल्क, व्यापक क्षेत्र जिनमें सीएलए किया गया था, सीएलए के तहत ऋणों का प्रदर्शन, चूक हानि गारंटी से संबंधित विवरण, यदि कोई हो, आदि शामिल हो सकते हैं। प्रकटीकरण तिमाही/वार्षिक आधार पर किया जाएगा, जैसा कि संबंधित विनियमित संस्थाओं पर लागू होता है। 37. इन निदेशों के पैरा 3 के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इन निदेशों के जारी होने के साथ ही निम्नलिखित परिपत्र निरस्त हो जाएगा।
1 उधार सेवा से तात्पर्य उधार से संबंधित गतिविधियों जैसे ग्राहक अधिग्रहण, हामीदारी, कीमत निर्धारण, सर्विसिंग, निगरानी और विशिष्ट ऋण या ऋण पोर्टफोलियो की वसूली आदि से है, जो विनियमित संस्थाओं या उनके एजेंटों द्वारा किया जाता है (रिज़र्व बैंक द्वारा जारी मौजूदा आउटसोर्सिंग दिशानिर्देशों के अनुरूप)। 2 ऋण वर्धन का अर्थ एक संविदात्मक व्यवस्था है जिसमें कोई इकाई किसी लेनदेन में अन्य पक्षों को उनके अर्जित एक्सपोजर के क्रेडिट जोखिम को कम करने के लिए कुछ हद तक अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती है; 3 डिफ़ॉल्ट हानि गारंटी एक संविदात्मक व्यवस्था है, जिसे किसी भी नाम से जाना जाए, जो प्रारंभिक आरई और साझेदार आरई के बीच होती है, जिसके तहत आरई के ऋण पोर्टफोलियो के एक निश्चित प्रतिशत तक, जो पहले से निर्दिष्ट है, डिफ़ॉल्ट के कारण होने वाली हानि के लिए पहला पक्ष दूसरे पक्ष को क्षतिपूर्ति करने की गारंटी देता है। आरई के ऋण पोर्टफोलियो के निष्पादन से जुड़ी और पहले से निर्दिष्ट समान प्रकृति की कोई अन्य अंतर्निहित गारंटी भी डीएलजी की परिभाषा के अंतर्गत आएगी। |