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समझौता निपटान और तकनीकी रूप से बट्टे खाते डालने (राइट-ऑफ) के लिए रूपरेखा

'समझौता निपटान और तकनीकी रूप से बट्टे खाते डालने (राइट-ऑफ) के लिए रूपरेखा' पर दिनांक 8 जून 2023 को जारी परिपत्र

ए. इरादतन कर्ज़ न चुकाने और धोखाधड़ी के मामलों में समझौता निपटान

नहीं। धोखाधड़ी अथवा इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत उधारकर्ताओं के संबंध में बैंकों को समझौता निपटान में समर्थ करने वाला उक्त प्रावधान कोई नया विनियामक निर्देश नहीं है और यह 15 वर्षों से अधिक समय से मानित विनियामक उद्देश्य रहा है। इस खंड को समर्थित करने के लिए मौजूदा निर्देश बैंकों के लिए पहले से ही उपलब्ध है, जैसा कि नीचे दिया गया है:

  1. आरबीआई द्वारा अपने 10 मई 2007 को जारी पत्र के माध्यम से आईबीए को सूचित किया गया था कि, “(i) बैंक ऐसे उधारकर्ताओं के विरुद्ध चल रही आपराधिक कार्यवाही पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना इरादतन चूककर्ता/धोखाधड़ी करने वाले उधारकर्ताओं के साथ समझौता निपटान कर सकते हैं; (ii) समझौता निपटान के ऐसे सभी मामलों की जांच प्रबंधन समिति/बैंकों के बोर्ड द्वारा की जानी चाहिए।”

  2. इरादतन चूककर्ताओं पर 1 जुलाई 2015 को जारी मास्टर परिपत्र में ऋणदाताओं को इरादतन चूककर्ता के रूप में वर्गीकृत उधारकर्ताओं के साथ समझौता निपटान करने पर सहमत होने की परिकल्पना की गई है और कहा गया है कि ऐसे मामलों को क्रेडिट सूचना कंपनियों को सूचित करने की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते कि, अन्य बातों के साथ-साथ, "उधारकर्ता ने समझौता की गई राशि का पूरा भुगतान कर दिया हो।"

  3. धोखाधड़ी पर जारी दिनांक 1 जुलाई 2016 के मास्टर दिशानिर्देशों में धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत उधारकर्ताओं के साथ समझौता निपटान का प्रावधान, इस शर्त के अधीन किया गया हैं कि, "धोखाधड़ी वाले उधारकर्ता से जुड़े किसी भी समझौता निपटान की अनुमति तब तक नहीं है जब तक कि शर्तें यह निर्धारित न करें कि आपराधिक शिकायत जारी रखी जाएगी अथवा नहीं।"

विप्रेषण (धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) तथा रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए))

विप्रेषण पारिवारिक तथा राष्ट्रीय आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और बाह्य वित्तपोषण का एक सबसे बड़ा स्रोत भी है। भारत के हिताधिकारी बैंकिंग तथा डाक के माध्यम से सीमापारीय आंतरिक विप्रेषण प्राप्त कर सकते हैं। बैंकों को विप्रेषण का कारोबार करने हेतु अन्य बैंकों के साथ भागीदारी करने के लिए सामान्य अनुमति है। डाक के माध्यम हेतु समान्यतः यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन के (यूपीयू) अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली (आईएफ़एस) प्लैटफ़ार्म का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा आवक विप्रेषण प्राप्त करने के लिए दो और चैनल हैं, अर्थात रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए) तथा धन अंतरण सेवा योजना (एमटीएसएस) जोकि देश में विप्रेषण प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली व्यवस्था है।

ये अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्न आरडीए तथा एमटीएसएस से संबंधित सामान्य प्रश्न है और सामान्य मार्गदर्शन के लिए इनसे संदर्भ क्यी अजाए। प्राधिकृत व्यक्ति तथा उनके घटक यदि आवश्यक हो तो विस्तृत जानकारी के लिए संबंधित परिपत्र/ दिशानिर्देश देखें।

रुपया आहरण व्यवस्था(आरडीए)

रुपया आहरण व्यवस्था (आरडीए) समुद्रपारीय अधिकार क्षेत्रों से सीमापारीय विप्रेषण प्राप्त करने का चैनल है। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्राधिकृत श्रेणी-I के बैंक एफ़एटीएफ़ का अनुपालन करने वाले देशों में स्थित अनिवासी विनिमय गृहों के साथ अपने वोस्टरों खाते खोलने तथा बनाए रखने के लिए गठबंधन करते हैं।

भारतीय उद्योग में विदेशी सहयोग (एफसीएस) पर द्विवार्षिक सर्वेक्षण

सामान्य निर्देश

रिज़र्व बैंक लंबे समय से एफसीएस सर्वेक्षण कर रहा है क्योंकि यह न केवल शोधकर्ताओं के लिए फायदेमंद है बल्कि उद्योगों के लिए भी मददगार है क्योंकि यह उन्हें प्रतिस्पर्धा के संभावित क्षेत्रों का अंदाजा देता है। 2011 में अनिवार्य FLA संगणना की शुरुआत के बाद, इस सर्वेक्षण को 2012 में FLA संगणना के पूरक के रूप में पुनर्गठित किया गया था।

सर्वेक्षण प्रदर्शन के संकेतकों की एक विस्तृत श्रृंखला (उत्पादन, निर्यात, आयात, सामग्री की लागत, आदि) के साथ-साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों की महत्वपूर्ण विशेषताओं (प्रकृति, अवधि, भुगतान का तरीका, निर्यात प्रतिबंध, प्रावधान अनन्य अधिकार, समझौतों की समाप्ति के बाद प्रौद्योगिकी का उपयोग, आदि) पर जानकारी प्राप्त करता है।

सर्वेक्षण वर्तमान में भारतीय प्रत्यक्ष निवेश कंपनियों के लिए द्विवार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है, जिन्होंने दो वित्तीय वर्षों के मार्च के अंत में विदेशी कंपनियों के साथ विदेशी तकनीकी सहयोग समझौते किए हैं।

सर्वेक्षण आरबीआई प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से शुरू किया जाता है। इसके साथ ही, रिपोर्टिंग संस्थाओं को ईमेल सूचनाएं भी एक्सेल आधारित सर्वेक्षण अनुसूची के साथ भेजी जाती हैं। रिपोर्ट करने वाली संस्थाएं फिर आरबीआई की जेनेरिक ईमेल आईडी पर विधिवत भरी हुई सर्वेक्षण अनुसूची प्रस्तुत करती हैं, जिसे फिर आरबीआई के आंतरिक इंट्रानेट पोर्टल पर संसाधित किया जाता है।

रिपोर्टिंग संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों का आंतरिक विश्लेषण किया जाता है और समग्र स्तर के परिणाम आरबीआई की वेबसाइट पर द्विवार्षिक रूप से प्रकाशित किए जाते हैं।

गोपनीयता खंड

प्रदान की गई कंपनी-वार जानकारी को गोपनीय रखा जाएगा और रिज़र्व बैंक द्वारा केवल समेकित योग ही जारी किए जाएंगे।

नोट: प्रतिवादी कंपनियों को भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर उपलब्ध एक्सेल प्रारूप (*.xls प्रारूप) में सर्वेक्षण अनुसूची को भरना चाहिए। उत्तरदाताओं से अनुरोध है कि वे सर्वेक्षण अनुसूची भरने से पहले निर्देश पत्रक (सर्वेक्षण अनुसूची में उपलब्ध) को अच्छी तरह से पढ़ लें।

FCS सर्वेक्षण में भाग लेते समय याद रखने योग्य महत्वपूर्ण बिंदु

उत्‍तर: सर्वेक्षण अनुसूची भरते समय प्रतिवादी कंपनियों को निम्‍नलिखित बातों का पालन करना चाहिए:

(i) कंपनी को नवीनतम सर्वेक्षण अनुसूची का उपयोग करना चाहिए जो बिना किसी मैक्रोज़ के .xls प्रारूप में है।

(ii) कंपनी को सर्वेक्षण अनुसूची को एक्सेल 97-2003 वर्कबुक यानी केवल .xls फॉर्मेट में सेव करना होगा।

(iii) सर्वेक्षण अनुसूची को .xls प्रारूप में सेव के लिए, नीचे दिए गए चरणों का पालन करें

अ. ऑफिस बटन / फाइल पर जाएं → इस रूप में सहेजें → इस रूप में सहेजें

ब. "Excel 97-2003 वर्कबुक" चुनें और सर्वेक्षण अनुसूची को .xls फॉर्मेट में सेव करें।

(iv) कंपनी को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रदान किए गए सर्वेक्षण अनुसूची के .xls प्रारूप का उपयोग करना चाहिए और अनुरोध किया जाता है कि सर्वेक्षण अनुसूची में किसी मैक्रो को शामिल न करें।

(v) कृपया ध्यान दें कि किसी अन्य प्रारूप (.xls प्रारूप के अलावा) में प्रस्तुत किए गए सर्वेक्षण अनुसूची सिस्टम द्वारा स्वत: खारिज कर दिए जाएंगे।

(vi) कृपया सुनिश्चित करें कि सर्वेक्षण अनुसूची में दी गई सभी सूचनाएँ पूर्ण हैं और कोई सूचना छूटी नहीं है।

(vii) पार्ट-I से III भरने के बाद कंपनी को डिक्लेरेशन भरना होता है। डिक्लेरेशन शीट इस बात की पुष्टि और सत्यापन करने में मदद करती है कि कंपनी द्वारा दर्ज की गई जानकारी को आरबीआई को सबमिट करने से पहले उसकी दोबारा जांच की जाती है। इससे डेटा एंट्री एरर, मिस्ड डेटा आदि जैसी त्रुटियों से बचने में मदद मिलेगी।

(viii) इसके अलावा, उत्तरदाताओं से अनुरोध है कि वे सर्वेक्षण अनुसूची के सभी भागों में डेटा फाइलिंग के दौरान किसी विशेष वर्ण अर्थात [!@#$%^&*_()] और अल्पविराम का उपयोग न करें।

देशी जमा

I . देशी जमा

चालू खाते के अलावा किसी भी खाते में बैंक बिना ब्याज दिए जमा स्वीकार नहीं कर सकते हैं

रिटेल डायरेक्ट योजना

रिटेल डायरेक्ट योजना के बारे में

भारत में सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) बाजार में निवेशकों में ज्यादातर वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, भविष्य निधि, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों जैसे संस्थान हैं। रिटेल भागीदारी यानी जी-सेक बाज़ार में व्यक्तियों की भागीदारी अब तक बहुत सीमित रही है।

जी-सेक बाजार में रिटेल भागीदारी को बढ़ावा देना जारीकर्ता और निवेशक दोनों के लिए फायदेमंद है। जारीकर्ता के नजरिए से, सरकारी बांड के लिए एक विविध निवेशक आधार जी-सेक के लिए स्थिर मांग सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, विभिन्न समय में, जोखिम वरीयताओं और व्यापारिक उद्देश्यों के साथ एक विषम निवेशक आधार सक्रिय व्यापार सुनिश्चित करता है, तरलता बनाता है और सरकार को उचित लागत पर उधार जुटाने की अनुमति देता है। दूसरी ओर, निवेशकों के नजरिए से, यह अच्छा रिटर्न और पूंजी प्रतिभूति के साथ एक वैकल्पिक निवेश विकल्प प्रदान करता है।

कुछ देशों ने विशेष गैर-व्यापार योग्य साधनों के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों की रिटेल मांग बनाने की कोशिश की है, हालांकि यह सरकारी प्रतिभूति बाजार के विकास में योगदान नहीं देता है। भारत में, खुदरा निवेशक छोटे बचत साधनों जैसे राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र, सार्वजनिक भविष्य निधि आदि में निवेश करते हैं, जिनमें से कुछ को कर लाभ होता है, जिससे उनका आकर्षण बढ़ा होता है। हालांकि, इन निवेशों से बाहर निकलना आसान नहीं है क्योंकि इन उपकरणों के पास द्वितीयक बाजार नहीं है, जिससे उनकी तरलता और पूंजी मूल्य-वृद्धि के अवसर सीमित हो जाते हैं ।

इस संदर्भ में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा खुदरा निवेशकों को जी-सेक बाजार में भाग लेने की अनुमति देने की घोषणा-प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार दोनों में-रिटेल डायरेक्ट नामक एक ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से खुदरा निवेशकों के साथ-साथ जारीकर्ता दोनों के लिए हर दृष्टिकोण से एक अच्छा प्रस्ताव है।

योजना संबन्धित प्रश्न

रिटेल डायरेक्ट योजना व्यैकतिक निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश को सुगम बनाने के लिए समग्र समाधान है। इस योजना के अंतर्गत रिटेल निवेशक आरबीआई के साथ गिल्ट प्रतिभूति खाता- “रिटेल डायरेक्ट गिल्ट (आरडीजी)” खाता खोल सकता है। इस खाते को प्रयोग करते हुए, रिटेल निवेशक ऑनलाइन पोर्टल https://rbiretaildirect.org.in के माध्यम से सरकारी प्रतिभूतियों को खरीद और बेच सकता है।

लक्षित दीर्घकालिक रिपो परिचालन (टीएलटीआरओ)

अपडेट हो गया है: मई 28, 2021

उत्तर: हाँ। बैंकों को अपनी एचटीएम पुस्तक में टीएलटीआरओ में प्राप्त राशि के लिए निर्दिष्ट प्रतिभूतियों की मात्रा को टीएलटीआरओ की परिपक्वता तक हर समय बनाए रखना होगा।

आवास ऋण

आप आम तौर पर घर या फ्लैट खरीदने, अपने मौजूदा घर के नवीनीकरण, विस्तार और मरम्मत के लिए पहली बार आवास ऋण ले सकते हैं। जो लोग दूसरा घर खरीदने जा रहे हैं, उनके लिए ज्यादातर बैंकों की अलग नीति (पॉलिसी) होती है। कृपया ऊपर उल्लिखित मुद्दों पर अपने वाणिज्यिक बैंक से विशिष्ट स्पष्टीकरण प्राप्त करना याद रखें।

भारतीय मुद्रा

क) मुद्रा प्रबंधन की मूल बातें

भारतीय मुद्रा का नाम भारतीय रुपया (आईएनआर) है । एक रुपया में 100 पैसे होते हैं । भारतीय रुपये का प्रतीक "₹" है । यह रूपरेखा (डिजाइन) देवनागरी अक्षर "₹" (र) तथा लैटिन के बड़े “आर/R” अक्षर के समान है जिसमें शीर्ष पर दोहरी क्षैतिज रेखा है ।

समन्वित संविभागीय निवेश सर्वेक्षण - भारत

अपडेट हो गया है: जून 03, 2024

सामान्य सूचना

समन्वित संविभागीय निवेश सर्वेक्षण (सीपीआईएस) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के तत्वावधान में आयोजित एक स्वैच्छिक डेटा संग्रह कार्य है। सीपीआईएस का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (आईआईपी) में संविभागीय निवेश के आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार करना है - यानि इक्विटी और निवेश फंड शेयरों, दीर्घकालिक ऋण प्रतिभूतियों और लघुकालिक ऋण प्रतिभूतियों के रूप में संविभागीय निवेश संपत्तियों की होल्डिंग और सावधि ऋण प्रतिभूतियां और समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं द्वारा इन आंकड़ों को उपलब्ध कराना है। अतः, सीपीआईएस सीमा पार किससे किसको के आंकड़े विकसित करने के उद्देश्य का समर्थन करता है और वित्तीय अंतर्संबंधों की बेहतर समझ में योगदान देता है।

भारत वर्ष ने 2004 से आईएमएफ़ के वार्षिक सीपीआईएस में भाग लेना शुरू किया है। इसके बाद, G-20 डेटा गैप्स इनिशिएटिव (डीजीआई) के तहत आईएमएफ़ की सिफारिश के अनुसार, भारत वर्ष 2014 से विशेष डेटा प्रसार मानकों (एसडीडीएस) के तहत इसकी प्रतिबद्धता के अनुसार सीपीआईएस की अर्ध-वार्षिक रिपोर्टिंग करता है । भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत की ओर से आईएमएफ़ को सीपीआईएस डेटा प्रस्तुत करता है।

गोपनीयता खंड

सीपीआईएस के तहत एकत्रित इकाई-वार जानकारी को गोपनीय रखा जाता है और केवल समेकित योग ही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आईएमएफ़ को प्रस्तुत किए जाते हैं।

सीपीआईएस के तहत रिपोर्ट करने के लिए पात्र संस्थाएं और आवश्यकताएं

उत्तर: वर्तमान में सीपीआईएस के तहत बैंकों, म्यूचुअल फंड कंपनियों, गैर-वित्तीय कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और बीमा कंपनियों का सर्वेक्षण किया जाता है।

प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार संबंधी दिशानिर्देशों के मास्टर निदेशों पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क) समायोजित निवल बैंक ऋण की गणना (एएनबीसी)

उत्तर: निवल पीएसएलसी बकाया (खरीदी गई पीएसएलसी घटाव(-) बेची गई पीएसएलसी) को निवल बैंक ऋण में जोड़ा जाता है, जैसा कि पीएसएल, 2020 पर मास्टर निदेश के पैरा 6 (समय-समय पर अद्यतन) में उल्लिखित है। इसके अलावा, एक पीएसएलसी अपनी समाप्ति तक बकाया रहता है (प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार प्रमाणपत्र पर दिनांक 07 अप्रैल 2016 की अधिसूचना के क्रमांक ix), सभी पीएसएलसी 31 मार्च तक समाप्त हो जाएंगे और रिपोर्टिंग तिथि (अर्थात 31 मार्च) से आगे मान्य नहीं होंगे, भले ही पूर्व में उसके खरीद / बेचने की तिथि कुछ भी हो। तदनुसार, एएनबीसी में पीएसएलसी खरीद संबंधी प्रभाव में वृद्धि होती है और इसके विपरीत पीएसएलसी की बिक्री का प्रभाव एएनबीसी में कम होता है तथा पीएसएलसी की खरीद/बिक्री का निवल प्रत्येक तिमाही के लिए एएनबीसी में समायोजित किया जाता है। अतः किसी भी तिमाही में खरीदे या बेचे गए पीएसएलसी को वित्त वर्ष के अंत तक सभी बाद की तिमाहियों में ध्यान में रखना होगा, जिससे वह संबंधित है।

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पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: दिसंबर 10, 2022

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