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बाह्य व्यापार – सुविधा सेवा – माल और सेवाओं का निर्यात

भा.रि.बैंक/2020-21/77
ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्रसं.08

04 दिसंबर 2020

सेवा में,

सभी श्रेणी-I प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदया/महोदय

बाह्य व्यापार – सुविधा सेवा – माल और सेवाओं का निर्यात

कृपया भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिनांक 04 दिसंबर 2020 को जारी द्वैमासिक मौद्रिक नीति वक्तव्य के एक भाग के रूप में जारी विकासात्मक एवं विनियामक नीतियों पर वक्तव्य का संदर्भ ग्रहण करें। कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देने और अनुमोदन प्रक्रिया को तेज़ बनाने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है किप्राधिकृतव्यापारी श्रेणी-I बैंकों (प्रा.व्या. श्रेणी-I)को निम्नलिखित मामलों में अधिक शक्तियाँ प्रत्यायोजित की जाए ।

1. शिपिंग संबंधी दस्तावेजों का सीधे प्रेषण :

1.1 दिनांक 13 अगस्त 2008 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 6 के पैराग्राफ 2 के अनुसार, जहां माल अंततः पहुँचना है, उस देश के निवासी प्रेषिती को अथवा उसके एजेंट को प्रति निर्यात शिपमेंट 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर अथवा उसके समतुल्य राशि के शिपिंग संबंधी दस्तावेज निर्यातक द्वारा सीधे भेजे जाने के मामलों को नियमित करने की अनुमति एडी बैंकों को दी गई है ।

1.2 उक्त क्रियाविधि को सरल बनाने की दृष्टि से, यह निर्णय लिया गया है कि प्रति निर्यात शिपमेंट 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सीमा को समाप्त कर दिया जाए।

1.3 तदनुसार एडी बैंक, निर्यात शिपमेंट की राशि पर गौर किए बिना ही निर्यातक द्वारा शिपिंग के दस्तावेज सीधे प्रेषित करने संबंधी मामलों को निम्नलिखित शर्तों के अधीन नियमित कर सकते हैं:

  1. राइट-ऑफ संबंधी मौजूदा प्रावधानों के अनुरूप राइट-ऑफ की गई राशि, यदि कोई हो, को छोड़ कर निर्यात से प्राप्त होने वाली राशि पूरी तरह से वसूल की जा चुकी है ।

  2. निर्यातक कम से कम छह महीनों के लिए एडी बैंक का नियमित ग्राहक है।

  3. निर्यातक का एडी बैंक के पास रखा हुआ खाता भारतीय रिज़र्व बैंक के वर्तमान केवाईसी / एएमएल दिशा-निर्देशों का पूर्णत: अनुपालन करता है।

  4. एडी बैंक उस लेनदेन की वास्तविकता/ प्रामाणिकता से संतुष्ट है।

2. वसूल न किए गए निर्यात बिलों को “राइट-ऑफ” करना :

2.1 दिनांक 12 मार्च 2013 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 88 की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है, जो वसूल न किए गए निर्यात-बिलों को “राइट-ऑफ” किए जाने से संबंधित है। इन मामलों में ए.डी. बैंकों को अधिक लचीलापन प्रदान करने और इस प्रकार के अनुमोदन देने में लगने वाले समय को कम करने के उद्देश्य से वर्तमान क्रियाविधियों को निम्नलिखित के अनुरूप संशोधित किया गया है:

विवरण सीमा निम्नलिखित के संबंध में सीमा (%)
निर्यातक द्वारा स्वयं “राइट-ऑफ” करना
[प्रतिष्ठित (स्टेटस होल्डर) निर्यातकों को छोड़कर]
5% जिस वर्ष “राइट ऑफ” किया जा रहा है, उसके पूर्ववर्ती कैलेंडर वर्ष के दौरान वसूल की गयी निर्यात की कुल राशि।
प्रतिष्ठित निर्यातकों द्वारा स्वयं “राइट-ऑफ” करना 10%
प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों द्वारा “राइट-ऑफ” करना 10%

2.2 स्वयं “राइट-ऑफ” करने तथा एडी बैंकों द्वारा “राइट-ऑफ” किए जाने संबंधी उपर्युक्त सीमाओं की गणना संचित रूप में की जाएगी एवं वह निम्नलिखित शर्तों के अधीन उपलब्ध होगी:

(ए) संबंधित राशि एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए बकाया रही है;

(बी) निर्यातक ने उस राशि को वसूल करने के लिए सारी कोशिशें कर ली हैं,इसके बारे में संतोषजनक दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किये गए हों;

(सी) निर्यातक कम-से-कम 6 महीने की अवधि के लिए बैंक का ग्राहक है, केवाईसी/ एएमएल दिशा-निर्देशों का पूर्णतः अनुपालन करता हो तथा एडी बैंक संबंधित लेनदेन की वास्तविकता/ प्रामाणिकता से संतुष्ट हो;

(डी) संबंधित मामला नीचे उल्लखित श्रेणियों में से किसी एक श्रेणी में आता हो ;

  1. विदेशी खरीददार को दिवालिया घोषित किया गया हो और आधिकारिक परिसमापक (official liquidator) द्वारा जारी इस आशय का एक प्रमाणपत्र कि निर्यात राशि की वसूली की आगे कोई संभावना नहीं है, प्रस्तुत किया गया है।

  2. वसूल न की गई राशि, भारतीय दूतावास, विदेशी चेंबर ऑफ कॉमर्स अथवा उसके समतुल्य किसी संगठन के हस्तक्षेप के माध्यम से निपटाए गए मामले में देय बकाया शेष राशि को दर्शाती है।

  3. आयात करने वाले देश में पोर्ट/ कस्टम्स/ स्वास्थ्य प्राधिकारियों द्वारा निर्यात किये गये माल को नीलाम अथवा नष्ट कर दिया गया हो।

  4. विदेशी खरीददार का पर्याप्त लंबी समयावधि तक कोई अता-पता न हो;

  5. वसूल न की गई राशि बकाया बन चुके और निर्यातक द्वारा सारी कोशिशें करने के बावजूद वसूल न करने योग्य बने रहे निर्यात बिलों की शेष अनाहरित राशि (इन्वाइस मूल्य की 10% से अनधिक) है;

  6. कानूनी कारवाई करने की लागत निर्यात बिल की वसूल न की गई राशि के अनुपात में न हो अथवा जहां निर्यातक ने न्यायालय में विदेशी खरीददार के विरुद्ध दायर मामला जीत भी लिया हो किन्तु वह न्यायालय द्वारा जारी डिक्री को अपने नियंत्रण से बाहर के कतिपय कारणों से निष्पादित नहीं कर पाया हो;

  7. साख-पत्र के मूल्य और निर्यात के वास्तविक मूल्य अथवा अनंतिम और वास्तविक माल ढुलाई शुल्क के बीच के अंतर के लिए आहरित किये गये बिलों की राशि विदेशी खरीददार द्वारा बिलों को न भुनाये जाने के कारण वसूल नहीं की जा सकी हो और उसके वसूल किये जाने की कोई संभावना भी न हो।

2.3 उपर्युक्त पैरा 2.1 तथा 2.2 में निहित बातों के होते हुए भी एडी बैंक निर्यातक के अनुरोध पर उपर्युक्त 2.2 (डी) (i), (ii) तथा (iii) पर विनिर्दिष्ट किसी भी श्रेणी के अंतर्गत आने वाले मामलों के संबंध में वसूल न किए गए निर्यात बिलों को बिना किसी सीमा के राइट-ऑफ कर सकते हैं, बशर्ते कि प्राधिकृत व्यापारी बैंक प्रस्तुत की गई दस्तावेजी साक्ष्य से संतुष्ट है।

2.4 यदि मामला उपर्युक्त 2.2 (डी) (i), (ii) तथा (iii) पर विनिर्दिष्ट किसी भी श्रेणी के अंतर्गत आता हो, तो जहां पर माल अंतत: पहुँचना है, उस देश के निवासी प्रेषिती को अथवा उसके एजेंट को निर्यातक द्वारा दस्तावेज सीधे ही भेजे जाने के मामले में एडी बैंक उपर्युक्त पैरा 2.1 में दर्शाई गई विनिर्दिष्ट सीमाओं तक निर्यात बिलों की बकाया राशि को राइट-ऑफ करने की अनुमति दे सकते हैं।

2.5 एडी बैंक यह सुनिश्चित करेगा कि राइट-ऑफ करने की मांग करने वाले निर्यातक द्वारा संबंधितनिर्यात बिलों के लिए प्राप्त प्रोत्साहन राशि यदिकोई हो, को आनुपातिक आधार पर अभ्यर्पित किये जाने के संबंध में दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत की गई है।

2.6 स्वयं द्वारा राइट-ऑफ किए जाने के मामले में निर्यातक संबंधित एडी बैंक को सनदी लेखाकारों द्वारा जारी किया गया इस आशय का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करें, जिसमें यह दर्शाया गया हो कि पिछले कैलेण्डर वर्ष के दौरान कितनी निर्यात की राशि वसूल की गई है और यदि वर्तमान कैलेण्डर वर्ष के दौरान पहले ही कोई राशि राइट-ऑफ की गई हो, तो वह कितनी है; और राइट-ऑफ करने के लिए किए गए अनुरोध से संबंधित ईडीएफ/ निर्यात बिल के ब्यौरे भी उस प्रमाणपत्र में दर्शाए गए हों। सनदी लेखाकारों द्वारा जारी किये गये प्रमाणपत्र में यह भी दर्शाया जाए कि निर्यातक ने यदि कोई निर्यात लाभ प्राप्त किये हैं, तो उसने उन्हें अभ्यर्पित किया है।

2.7 तथापि, निर्यात राशि को राइट-ऑफ करने के लिए निम्नलिखित मामले पात्र नहीं होंगे :

  1. बाह्यीकरण [एक्सटरन्लाईजेशन] की समस्या से ग्रस्त देशों को किये गये निर्यात, जहां विदेशी खरीदार ने निर्यात का मूल्य स्थानीय मुद्रा में जमा किया है, लेकिन उस देश के केन्द्रीय बैंकिंग प्राधिकरण ने उसे प्रत्यावर्तित करने के लिए अनुमति नहीं दी है;

  2. प्रवर्तन निदेशालय, राजस्व आसूचना निदेशालय, केन्द्रीय जांच ब्यूरो, आदि जैसी एजेंसियों द्वारा जांच किये जा रहे ईडीएफ/ सोफ़्टेक्स तथा ऐसे बकाया बिल जिनपर सिविल / आपराधिक मामले चल रहे हैं।

2.8 एडी बैंक निर्यात बिलों को राइट-ऑफ करने संबंधी सूचना को निर्यात डेटा प्रसंस्करण एवं निगरानी प्रणाली (ईडीपीएम्एस) में रिपोर्ट करेंगे |

2.9 एडी बैंकों को एक ऐसी प्रणाली सुस्थापित करने के लिए सूचित किया जाता है कि जिसमें उनके आतंरिक निरीक्षक अथवा लेखा परीक्षक [बाहरी लेखा परीक्षकों सहित] इस प्रकार से राइट-ऑफ किए गये बकाया निर्यात बिलों की आकस्मिक नमूना जांच / प्रतिशत जांच करते हैं।

2.10 राइट ऑफ करने के लिए किए गए अनुरोध के उपर्युक्त अनुदेशों में शामिल न किये गये मामले भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों के पास भेजे जाएं।

3. निर्यात से प्राप्य आय का आयात संबंधी देयताओं केसमक्ष समंजन (सेट-ऑफ) करना

3.1 वर्तमान में प्राधिकृत व्यापारी बैंक निर्यातकों/ आयातकों को एक ही समुद्रपारीय क्रेता/ विक्रेता से/ को अपने निर्यात से प्राप्य बकाया राशियों के आयात की बकाया देयताओं के समक्ष समंजन करने की अनुमति दे रहें हैं। रिज़र्व बैंक को प्राधिकृत व्यापारी बैंकों से उनके आयातक/ निर्यातक घटकों की ओर से उनके समुद्रपारीय समूह/ सम्बद्ध कंपनियों के साथ आंतरिक या बाहरी एजेंसी को सौंपी गई केंद्रीयकृत निपटान व्यवस्था के माध्यम से निवल आधार पर या सकल आधार पर इस प्रकार का समंजन करने की अनुमति के लिए अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं।

3.2 तदनुसार यह निर्णय लिया गया है कि इस प्रकार के समंजन के लिए प्राप्त अनुरोधों पर विचार करने संबंधी शक्तियां भी एडी बैंकों को प्रत्यायोजित की जाएं और 17 नवंबर 2011 के एपी. (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 47 में निहित अनुदेशों के अधिक्रमण में निम्नानुसार संशोधित दिशानिर्देश जारी किए जाते हैं:

प्राधिकृत व्यापारी बैंक निम्नलिखित शर्तों के अधीन निर्यात से प्राप्य बकाया राशियों का आयात की बकाया देयताओं के समक्ष समंजन करने की अनुमति दे सकते हैं:

  1. इस व्यवस्था को केवल एक ही प्राधिकृत व्यापारी बैंक के माध्यम द्वारा संचालित/ पर्यवेक्षित किया जाएगा।

  2. एडी बैंक लेनदेन की वास्तविकता से संतुष्ट है और यह सुनिश्चित करता है कि केवाईसी/ एएमएल/ सीएफ़टी के संबंध में कोई मामला नहीं हैं;

  3. लेनदेनों के अंतर्गत इन्वाइस की प्रवर्तन निदेशालय/ केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो अथवा अन्य जांच एजेंसी/ एजन्सियों द्वारा जांच नहीं की जा रही है;

  4. माल/ सेवाओं का आयात/ निर्यात वर्तमान विदेश व्यापार नीति के अनुसार किया गया है;

  5. एशियाई समाशोधन संघ [एसीयू] के देशों के साथ किये गए आयात/ निर्यात लेनदेन इस व्यवस्था से बाहर रखे गए हैं;

  6. माल के निर्यात से प्राप्य राशियों का सेवाओं के आयात संबंधी देयताओं के समक्ष समंजन करने तथा इसके विपरीत के लिए अनुमति नहीं होगी;

  7. एडी बैंक इस बात को सुनिश्चित करेगा कि समंजन की अनुमति देते समय आयात संबंधी देयताएं/ निर्यात से प्राप्य राशियाँ बकाया है।साथ ही समंजन करने की अनुमति केवल एक ही कैलंडर वर्ष के दौरान होने वाले निर्यात तथा आयात चरणों के मामले में दी जाएगी;

  8. द्विपक्षीय निपटान के मामले में एक ही समुद्रपारीय क्रेता और आपूर्तिकर्ता के संबंध में समंजन होगा और वह भी सत्यापन योग्य करार/ आपसीसहमति द्वारा समर्थित होने की शर्त के अधीन होगा;

  9. समूह/ सम्बद्ध कंपनियों के भीतर निपटान के मामले में यह व्यवस्था एक लिखित, विधिक रूप से प्रवर्तनीय करार/ संविदा द्वारा समर्थित होनी चाहिए। एडी बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि करार की शर्तों का कड़ाई से पालन किया जाए;

  10. समंजन के परिणामस्वरूप इस प्रकार की व्यवस्था में शामिल किसी भी संस्था/ संस्थाओं द्वारा कर अपवंचन/ परिवर्जन नहीं किया जाएगा;

  11. जहां कहीं पर भी लागू हो वहाँ संबंधित संस्थाओं द्वारा थर्ड पार्टी दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा;

  12. एडी बैंक लेनदेन के संबंध में सभी विनियामक अपेक्षाओं का अनुपालन सुनिश्चित करेंगे;

  13. एडी बैंक जहां आवश्यक समझें वहाँ लेखा परीक्षकों/ सनदी लेखाकारों का प्रमाणपत्र मांग सकते हैं;

  14. प्रत्येकनिर्यात तथा आयात लेनदेन को यथालागू एफ़ईटीईआरएस/ ईडीपीएमएस/ आईडीपीएमएस में अलग (सकल आधार पर) से रिपोर्ट किया जाएगा;

  15. एडी बैंक उक्त लेनदेन का ईडीपीएमएस/ आईडीपीएमएस में “सेट-ऑफ संकेतक” का उपयोग करते हुए निपटान करेंगे तथा निपटान किए जाने वाले शिपिंग बिलों/ प्रवेश बिलों/ इन्वाइस के ब्यौरों का टिप्पणी स्तम्भ के अंतर्गत (शामिल संस्थाओं के ब्यौरों सहित) उल्लेख करेंगे।

4. निर्यात से प्राप्त राशियों की वापसी

4.1 दिनांक 5 अप्रैल 2007 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.37 की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिसके अनुसार जिन एडी बैंकों के माध्यम से मूलतः निर्यातकीराशिवसूलकी गयी थी,उन्हें भारत से निर्यात किये गये माल को उसके खराब स्तर के चलते भारत में फिर से आयात करने के कारण निर्यात से प्राप्त राशि की वापसी करने के लिए प्राप्त अनुरोध पर विचार करने की अनुमति दी गई थी।

4.2 ऐसे उदाहरण भी हैं जहां माल को पुनः आयात करना संभव नहीं हुआ है, क्योंकि निर्यात किए गए माल को कथित तौर पर आयात करने वाले देश में ही नीलाम अथवा नष्ट कर दिया गया है।

4.3 इन अनुदेशों की समीक्षा की गई है और अब से एडी बैंक भारत से निर्यात किए गए माल से प्राप्त निर्यात राशि की वापसी के लिए अनुमति प्रदान करते समय:

  1. निर्यातक के पिछले रिकार्ड की उचित सावधानी बरतते हुए जांच कर लें।

  2. लेनदेन की प्रमाणिकता/ वास्तविकता का सत्यापन कर लें;

  3. डीजीएफटी / कस्टम्स प्राधिकारियों द्वारा जारी किया गया इस आशय का प्रमाण-पत्र निर्यातक से प्राप्त किया जाए कि निर्यातक ने संबंधित निर्यात पर कोई प्रोत्साहन राशि नहीं पायी है अथवा यदि उसे उक्त निर्यात के अनुपात में कोई प्रोत्साहन राशि मिली हो तो उसने उसे अभ्यर्पित कर दिया है।

  4. जहां आयातक देश के पोर्ट / कस्टम्स/ स्वास्थ्य प्राधिकारियों/ किसी अन्य अधिकृत एजेंसी द्वारा निर्यात किए गए माल को नीलाम अथवा नष्ट किया गया है, वहाँ एडी बैंक संतोषजनक दस्तावेजी साक्ष्य की प्रस्तुति की शर्त के अधीन माल के पुनः आयात की अपेक्षा पर जोर नहीं देगा ।

4.4 सभी अन्य मामलों में एडी बैंक इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि सामान्य आयात पर लागू सभी क्रियाविधियों का पालन किया गया है और निर्यातक से इस आशय का एक वचन-पत्र प्राप्त किया जाए कि निर्यात से प्राप्त आय की वापसी की तारीख से तीन महीनों के भीतर उस माल का दोबारा आयात किया जाएगा।

5. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों को अवगत कराएं। उपर्युक्त परिवर्तनों को दर्शाने के लिए दिनांक 1 जनवरी 2016 के मास्टर निदेश सं. 16/ 2015 को अद्यतन किया जा रहा है।

6. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और 11 (1) के अंतर्गत और किसी अन्य विधि केअंतर्गत अपेक्षित किसी अनुमति/ अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किये गये हैं।

भवदीय

(अजय कुमार मिश्र)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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