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वायदा संविदाओं की बुकिंग पर प्रारूप परिपत्र - उदारीकरण

आरबीआई/2006-07/
एपी (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.

1 जून 2007

प्रति,

सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक

महोदया/महोदय

वायदा संविदाओं की बुकिंग पर प्रारूप परिपत्र - उदारीकरण

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I (एडी श्रेणी-I) बैंकों का ध्यान 24 जनवरी 2002 के एपी (डीआईआर सीरीज) परिपत्र संख्या 19, 21 दिसंबर 2002 के एपी (डीआईआर सीरीज) परिपत्र संख्या 63, दिनांक 1 नवंबर 2004 के एपी (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 26, दिनांक 13 दिसंबर 2006 के एपी (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 22 और दिनांक 8 मई 2007 के एपी (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 52 की ओर आकृष्ट किया जाता है, जिसके अनुसार भारत में निवासी व्यक्तियों को अंतर्निहित एक्‍सपोज़र के आधार पर वायदा संविदा करने की अनुमति दी गई है। इसके अलावा, निर्यातकों और आयातकों को भी निर्दिष्ट शर्तों के अधीन एक्सपोजर की घोषणा के आधार पर और पिछले कार्य-निष्‍पादनों के आधार पर वायदा संविदाएं बुक करने की अनुमति दी गई है।

2. जैसा कि वर्ष 2007-08 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य (पैरा 142 और 143) में घोषित किया गया था, लघु और मध्यम उद्यम (एसएमई) क्षेत्र और निवासी व्यक्तियों में निर्यातकों और आयातकों को अधिक सुगमता प्रदान करने की दृष्टि से, यह निर्णय लिया गया है ऐसी संस्थाओं को गतिशील आधार पर अपने एक्‍सपोज़रों को हेज करने की सुविधा प्रदान करने के लिए वायदा संविदाओं के दायरे और सीमा को और अधिक उदार बनाया जाए।

लघु और मध्यम उद्यम (एसएमई) (पैरा 142)

3. एसएमई को पहले से ही विदेशी मुद्रा में मूल्यवर्गित किए गए लेकिन भारतीय रुपये में निपटान किए गए लेनदेन के संबंध में वायदा संविदाएं बुक करने की अनुमति दी गई है। इसी तरह, एसएमई सहित आयातकों को आयात के सीमा शुल्क घटक के लिए वायदा संविदाएं बुक करने की अनुमति है। यह भी निर्णय लिया गया है कि घरेलू उत्पादकों/उपयोगकर्ताओं को उनके अंतर्निहित आर्थिक एक्‍सपोज़र के आधार पर अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी एक्सचेंजों में एल्यूमीनियम, तांबा, सीसा, निकल और जस्ता पर उनके मूल्य जोखिम को हेज करने की अनुमति दी जाए।

4. निर्यात और आयात के कारोबार में शामिल लघु और मध्‍यम उद्यमों (एसएमई) को उनके विदेशी मुद्रा एक्‍सपोज़रों को प्रभावी और बेहतर ढंग से प्रबंधित करने हेतु सक्षम करने के लिए, यह निर्णय लिया गया है कि प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी - I बैंकों को यह अनुमति प्रदान की जाए कि वे ऐसी संस्थाओं को, निम्नलिखित शर्तों के अधीन, उनके विदेशी मुद्रा और आर्थिक एक्‍सपोजरों के आधार पर वायदा संविदाएं बुक करने / रद्द करने / पुन: बुक करने की अनुमति दे सकते हैं।

(i) इस तरह की संविदाओं को यह सुनिश्चित करने के बाद बुक करने की अनुमति दी जा सकती है कि संस्‍था ग्रामीण आयोजना और ऋण विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक के दिनांक 4 अप्रैल 2007 के परिपत्र आरपीसीडी.पीएलएनएस.बीसी.सं.63/06.02.31/2006-07 द्वारा यथापरिभाषित एसएमई के रूप में अर्हताप्राप्‍त है।

(ii) ऐसी संविदाएं प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों के माध्यम से बुक की जा सकती हैं जिनके साथ एसएमई की क्रेडिट सुविधाएं और/या बैंकिंग संबंध हैं और बुक की गई कुल वायदा संविदाएं उन्हें उपलब्ध कराई गई क्रेडिट सुविधाओं और मुद्रा जोखिम के प्रति संवेदनशील उनके कारोबार के टर्नओवर के अनुरूप होनी चाहिए।

(iii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक ऐसी संविदाओं की बुकिंग/पुनः बुकिंग के समय एसएमई के लिए विदेशी मुद्रा या आर्थिक एक्‍सपोज़र की विद्यमानता/ के अस्तित्व से स्‍वयं को आश्‍वस्‍त करें।

(iv) इस सुविधा को लेनेवाले एसएमई को इस सुविधा के तहत अन्य प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों के साथ पहले से बुक किए गए वायदा संविदाओं, यदि कोई हो, की राशि के संबंध में प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक को एक घोषणा-पत्र प्रस्तुत करना चाहिए।

5. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक अपने एसएमई घटकों की वास्तविक आवश्यकताओं से आश्‍वस्‍त होने के बाद ही इस सुविधा की अनुमति दे सकते हैं। एसएमई घटकों को इस सुविधा को लेने से पहले वास्तविक एक्‍सपोज़र के बिना हेजिंग से जुड़े जोखिमों और ठोस जोखिम प्रबंधन नीतियों और प्रक्रियाओं की आवश्यकता के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। यह वांछनीय होगा कि एसएमई इस सुविधा का उपयोग करने से पहले विदेशी मुद्रा बाजारों का पर्याप्त अनुभव प्राप्त करें और वायदा संविदाओं और ऑप्शन (विकल्पों) से जुड़े जोखिमों को समझें। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक को एसएमई ग्राहकों के लिए वायदा संविदाओं के "उपयोगकर्ता औचित्‍य" और "उपयुक्तता" के संबंध में समुचित सावधानी बरतनी चाहिए।

6. यह ध्यान दिया जाए कि इस सुविधा के तहत, और 21 जून 2003 के एपी (डीआईआर सीरीज) परिपत्र संख्या 108 के अनुसार, एसएमई को अपने वास्तविक एक्‍सपोज़रों की हेजिंग के लिए वायदा संविदाओं के साथ-साथ विदेशी मुद्रा रुपया ऑप्शन का उपयोग करने की अनुमति होगी।

निवासी व्यक्ति (पैरा 143)

7. वर्तमान में, निवासी व्यक्तियों को उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) के तहत किसी भी अनुमत चालू या पूंजी खाता लेनदेन या दोनों के संयोजन के लिए प्रति वित्तीय वर्ष यूएसडी 100,000 तक विप्रेषित करने की अनुमति है। निवासी व्यक्तियों को इस तरह के वास्तविक या प्रत्याशित विप्रेषणों से उत्पन्न होने वाले अपने विदेशी मुद्रा एक्‍सपोज़रों को प्रबंधित / हेज करने में सक्षम बनाने के लिए, यह निर्णय लिया गया है कि उन्हें अंतर्निहित दस्तावेजों को प्रस्‍तुत किए बिना एक वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में यूएसडी 100,000 की सीमा तक स्व घोषणा के आधार पर वायदा संविदाएं बुक करने की अनुमति दी जाए। इस सुविधा के तहत बुक की गई संविदाएं सामान्य रूप से सुपुर्दगी पर होंगी । हालांकि, नकदी प्रवाह या अन्य आकस्मिकताओं में विसंगति के मामले में, इस सुविधा के तहत बुक की गई संविदाओं को रद्द करने और फिर से बुक करने की अनुमति दी जा सकती है। बकाया संविदाओं का कल्पित मूल्य किसी भी समय 100,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, संविदाओं को केवल एक वर्ष की अवधि तक बुक करने की अनुमति दी जा सकती है। यह सुविधा केवल निवासी व्यक्तियों को दी जाएगी न कि कॉरपोरेट, भागीदारी फर्मों, एचयूएफ, ट्रस्टों आदि को।

8. यह सुविधा लेने के लिए, निवासी व्यक्ति को एलआरएस के तहत उसके द्वारा नामित प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक की शाखा से संपर्क करना होगा और संलग्न प्रारूप में एक आवेदन-सह-घोषणा प्रस्तुत करनी होगी । प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों को स्वयं को आश्‍वस्‍त करना चाहिए कि निवासी व्यक्तियों के पास वास्तविक एक्‍सपोज़र हैं और यह कि वे वायदा संविदाओं की बुकिंग में निहित जोखिम की प्रकृति को समझते हैं और उन्हें ऐसे ग्राहकों के लिए वायदा संविदाओं की "उपयोगकर्ता औचित्‍य" और "उपयुक्तता" के संबंध में समुचित सावधानी बरतनी चाहिए।

9. दिनांक 3 मई 2000 के अधिसूचना संख्या 25/2000-आरबी [विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव संविदाएं) विनियमावली, 2000] में किए गए आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जा रहे हैं।

10. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक इस परिपत्र की विषय-वस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत कराएं।

11. इस परिपत्र में निहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के तहत जारी किए गए हैं और किसी अन्य विधि के तहत आवश्यक अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना है।

भवदीय,

(सलीम गंगाधरन)
मुख्य महाप्रबंधक

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