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विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999

ए पी(डीआइआर सिरीज़)परिपत्र सं.28

30 मार्च ,2001

सेवा में
सभी श्रेणी-Iप्राधिकृतव्यापारीबैंक

महोदया/महोदय,

विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999

प्राधिकृत व्यापारियों को ज्ञात है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए अधिसूचनाओं के द्वारा कतिपय विनियम बनाये हैं। अधिसूचित विनियम अर्थात् अधिसूचना संख्या 1 से 25 तक की जानकारी 16 मई 2000 के प्राधिकृत व्यापारी (एम.ए.सिरीज) परिपत्र सं. 11 द्वारा परिचालित की गयी थीं । भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा क्रम सं. 26 से लेकर क्रम सं. 39 तक कुछ और अधिसूचनाएं जारी की गयी हैं। इन अधिसूचनाओं का सारांश निम्नलिखित पैराग्राफों में दिया गया है ।

3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 3/2000-आरबी के आंशिक संशोधन में 14 अगस्त, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 26/2000-आरबी

विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा में उधार लेना अथवा देना) विनयमावली, 2000 के अनुसार, प्राधिकृत व्यापारियों को विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते  में धारित शेष पर ऋण सुविधाएं प्रदान करने हेतु अनुमति दी गयी थी। यह निर्णय लिया गया है कि निधि आधारित तथा गैर-निधि आधारित दोनों ही ऋण सुविधाएं विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते  में धारित शेष पर   नहीं दी जाएं। इस संबध में प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान 14 अगस्त 2010 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं. 6 की ओर आकर्षित किया जाता है।

2. 3 मई  2000 की अधिसूचना सं. फेमा 10/2000-आरबी के आंशिक संशोधन में 14 अगस्त, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 27/2000-आरबी

विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते खोलने/बनाये रखने की प्रक्रिया, विदेशी मुद्रा प्रबंध ((भारत में रहने वाले व्यक्ति का विदेशी मुद्रा खाता ) विनियमावली, 2000 में दी गयी है। विनियम (9) में विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाता योजना के तहत जमाराशि का प्रकार  जैसे मान्य चालू खाता, बचत खाता अथवा मीयादी जमा खाता दर्शाते हैं तथा विनियमों की अनुसूची के पैराग्राफ 1(1) में वे सीमाएं दी गयी हैं जिन तक विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खातों में आवक विप्रेषण क्रेडिट किये जा सकते हैँ। उपर्युक्त अधिसूचना उक्त विनियम (9) को संशोधित करते हुए जारी की है थी और मीयादी जमाओं(टर्म डिपाजिट) के रूप में विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाता खोलने ने पर प्रतिबंध लगाती है। विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खातों में पात्र ऋण सीमाएं निर्यातोन्मुख इकाइयों अथवा (क) निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र अथवा (ख) सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क अथवा (ग) इलेक्टॉनिक हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क की इकाइयों के लिए 35% और भारत में निवास करने वाले अन्य व्यक्तियों के लिए 14 अगस्त 2000 से 25 % संशोधित कर दी गयी हैं। इस संबंध में प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान 14 अगस्त 2000 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं.6 की ओर आकर्षित किया जाता है।

3. 3 मई, 2000 की अधिसूचना सं.फेमा 25/2000-आरबी के आंशिक संशोधन में 5 सितंबर, 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 28/2000-आरबी

विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न संविदाएं) विनिमावली ,2000 उपर्युक्त अधिसूचना से संशोधित की गयी है जिससे कि कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयातक/निर्यातक उनके मूल्य में होने वाले जोखिमों से बचाव कर सकें। इस संबंध में प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान 5 सितंबर, 2000 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं.11 की ओर आकर्षित किया जाता है।

4. 3 मई, 2000 की अधिसूचना सं.फेमा 16/2000-आरबी के आंशिक संशोधन में 26 सितंबर , 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 29/2000-आरबी

प्राधिकृत व्यापारियों को ज्ञात है कि दो निवासियो के बीच भारतीय रुपयों में उधार लेने अथवा देने से विदेशी मुद्रा अधिनियम ,1999 के प्रावधानों की आवश्यकता नहीं होती है।  उन परिस्थियों में जहाँ , किसी अनिवासी द्वारा दी गयी गारंटी पर रुपयों में ऋण प्रदान किया जाता है , वहाँ जब तक कि गारंटी नहीं मागी जाती है और गारंटी के तहत अनिवासी गारंटी देने वाले के लिए गारंटी की राशि जमा कर देना अपेक्षित है विदेशी मुद्रा का कोई लेनदेन नहीं होता है । अनिवासी गारंटी देने वाला , देयता की अदायगी, (iध) भारत में धारित रुपया शेष में से भुगतान के द्वारा (ii ) भारत को निधियों के विप्रेषण द्वारा (iii) भारत में किसी प्राधिकृत व्यापारी के पास रखे गये उसके एफसीएनआर/ एनआरई खाते को डेबिट करके , कर सकता है । ऐसे मामलों में, अनिवासी गारंटी देने वाला , निवासी उधारकर्ता पर अपने दावे की राशि की वसूली के लिए दबाव डाल सकता है और वसूली हो जाने के बाद , यदि देयता की अदायगी आवक विप्रेषण अथवा एफसीएनआर/ एनआरई खाते को डेबिट करके हो जाती है तो इस राशि का प्रत्यावर्तन ले सकता है । तथापि , देयता को रुपया शेष में से पूरा कर दिया जाता है तो , वसूल की गयी राशि अनिवासी गारंटी देने वाले के एनआर/अथवा एनआरएसआर खाते में क्रेडिट की जा सकती है ।

भारतीय रिजर्व बैंक ने 26 सितंबर 2000 की अपनी अधिसूचना फेमा सं.29/2000-आरबी द्वारा किसी निवासी को, जिसने गारंटी की देनदारी अदा की है,मूल देनदार होने के कारण उसे भारत से बाहर  रहने वाले किसी व्यक्ति को भुगतान करने की सामान्य अनुमति प्रदान की है । तदनुसार, उन मामलों में जहाँ अनिवासी व्यक्ति द्वारा देयताओं की अदायगी भारत को प्रेषित निधियों में से की गई हो अथवा उसके एफसीएनआर /एनआरई खाते को डेबिट करते हुए की गई हो , गारंटीदाता के एफसीएनआर /एनआरई / एनआरओ /एनआरएसआर खाते को क्रेडिट करते हुए पुनर्भुगतान किया जा सकता है, बशर्ते कि प्रेषित/ क्रेडिट की गई राशि अनिवासी गारंटीदाता द्वारा अदा की गई गारंटी की राशि के सममूल्य से अधिक न हो ।

5. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.10 के आंशिक संशोधन में 17 नवंबर,2000 की अधिसूचना फेमा.सं.26

विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते खोलने, और बनाए रखने की प्रक्रिया विदेशी मुद्रा प्रबंध ( भारत में किसी व्यक्ति द्वारा विदेशी मुद्रा खाता) विनियमावली, 2000 में दी गई है । उपर्युक्त अधिसूचना विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते खोलने,रखने और बनाए रखने की प्रक्रिया में संशोधन की मांग करती है । संशोधन इस प्रकार हैं:-

विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खाते केवल बिना ब्याज वाले चालू खाते के रूप में खोले जा सकते हैं, धारण किए जा सकते हैं और बनाए रखे जा सकते हैं और विदेशी मुद्रा अर्जक विदेशी मुद्रा खातों में पात्र क्रेडिट सीमाएं संशोधित करते हुए,निर्यातोन्मुख इकाइयों अथवा (क) निर्यात प्रसंस्करण जोन अथवा सॉफ्टवेयर टेक्नॉलॉजी पार्क अथवा (ग) इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर टेक्नॉलॉजी पार्क के लिए 70% और भारत में अन्य व्यक्तियों के 50 % तक कर दी  गई हैं। प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान, 10 अक्तूबर 2000 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं. 16 की ओर आकर्षित किया जाता है ।

6. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.4/2000-आरबी के आंशिक संशोधन में 27 नवंबर,2000 की अधिसूचना फेमा.सं.27/2000-आरबी

विदेशी मुद्रा प्रबंध( रुपयों में उधार और उधार देना)विनियमावली, 2000 का विनियम (7) में यह व्वस्था है कि प्राधिकृत व्यापारी, अनिवासी भारतीय उधारकर्ता को अपनी निजी/ कारोबार के सिलसिले की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें ऋण मंजूर करे। चूँकि ऋण , विनियम (7) के परंतुक (घ) में संशोधन किया जाना है जिसमें उधारकर्ता के अनिवासी सामान्य खाते में ऋण क्रेडिट करने की व्यवस्था है। यह स्पष्ट किया जाता है कि ऋण की  रकम अनिवासी उधारकर्ता के एनआरई/एफसीएनआर/एनआरएनआर खाते में क्रेडिट अथवा भारत से बाहर प्रेषित नही की जासकती है ।

7. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.20/2000-आरबी. के आंशिक संशोधन में 26 दिसंबर,2000 की अधिसूचना फेमा.सं.32/2000-आरबी

उपर्युक्त अधिसूचना, विदेशी मुद्रा प्रबंध( भारत से बाहर रहने वाले किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति का अंतरण अथवा जारी करना ) विनियमावली, 2000 में संशोधन की मांग करता करती है जिसमें पंजीकृत विदेशी जोखिम पूंजी निवेशकों को(एफवीसीआई)को भारतीय  जोखिम पूंजी उपक्रमों/ जोखिम पूंजी निधियों में निवेश करने की शक्ति प्रदान करता हे । प्राधिकृत व्यापारियों का ध्यान, 6 जनवरी 2001 के ए.पी.(डीआईआर सिरीज) परिपत्र सं.24 की ओर आकर्षित किया जाता है ।

8. अधिसूचना सं.33- जारी नहीं

9. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.10/2000-आरबी.के आंशिक संशोधन में 22 जनवरी,2001 की अधिसूचना फेमा.सं.34/2000-आरबी

भारत में रहने वाले विदेशी राष्ट्रिकों को भारत से बाहर के बैंक में , विदेशी मुद्रा खाते खोलने,रखने और बनाए रखने में सुगमता देने के उद्देश्य से उपर्युक्त संशोधन किए गये हैं। यह सुविधा उन विदेशी राष्ट्रिकों को उपलब्ध है जो कि विदेशी कंपनी के कर्मचारी हैं और भारत में किसी विदेशी कंपनी के कार्यालय/शाखा/ संयुक्त उद्यम में प्रतिनियुक्ति पर हैं । भारत में सेवा करने के उपलक्ष्य में मिलने वाला  वेतन उनके खाते में क्रेडिट किया  जा सकती है बशर्ते कि ऐसे खाते में क्रेडिट की जाने वाली राशि विदेशी कंपनी से मिलने वाले वेतन के 75% से अधिक न हो और शेष वेतन की अदायगी भारत में रुपयों मे की जायेगी । आयकर अधिनियम 1961 के तहत आयकर का भुगतान पूरे वेतन पर उसी प्रकार किया जायेगा जैसे कि वह भारत में उपचित हुआ हो।

10. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.20/2000-आरबी.के आंशिक संशोधन में 16 फरवरी,2001 की अधिसूचना फेमा.सं.35/2000-आरबी

यह अधिसूचना,विदेशी मुद्रा प्रबंध( भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति द्वारा प्रतिभूति अंतरण अथवा जारी करना ) विनियमावली, 2000 में संशोधन की मांग करता करती है । अब यह निर्णय किया गया है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों,अनिवासी भारतीयों/समुद्रपारीय निगमित निकायों तथा विदेशी जोखिम पूँजी निवेशकों द्वारा प्रिंट मीडिया में लगी भारतीय भारतीय कंपनियों में विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है । यह प्रतिबंध, अनिवासी भारतीयों/समुद्रपारीय निगमित निकायों द्वारा निवेश पर अप्रत्यावर्तनीय आधार पर भी लागू है ।

11. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.23/2000-आरबी.के आंशिक संशोधन में 27 फरवरी,2001 की अधिसूचना फेमा.सं.36/2001-आरबी

विदेशी मुद्रा प्रबंध( माल और सेवाओं का निर्यात)विनियमावली, 2000 में किए गए संशोधन निम्नवत हैं:-

विनियम 4 में, (i) कतिपय निर्यातों को निर्धारित फॉर्म में घोषणापत्र की  अपेक्षा से छूट दी गई है । इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर टेक्नोलॉजी पार्क, इलेक्ट्रॉनिक सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क और विशेष आर्थिक अंचल की इकाइयों को भी इसी प्रकार की छूटें प्राप्त हैं।

(II) भारतीय रिजर्व बैंक को,जी.आर.फॉर्म पर घोषणापत्र की  अपेक्षा से छुट देने तथा पुन:आयात की शर्त पर,मरम्मत के लिए खराब माल के निर्यात की अनुमति देने के लिए प्राधिकृत किया गया है ।

विनियम 6 में: विशेष आर्थिक अंचल की इकाइयों द्वारा कंप्यूटर सॉफ्टवेयर तथा श्रव्य/ दृश्य/दूरदर्शन सॉफ्टवेयर के निर्यात के लिए सॉफ्टेक्स में की जाने वाली घोषणापत्र को उप-विनियम 3(i) से प्रतिस्थापित किया गया है ।

विनियम 9 में, वर्तमान विनियम का क्रमांकन इस प्रकार है :- (1) उप-विनियम (2) विशेष आर्थिक अंचल की इकाइयों को निर्यात माल अथवा सॉफ्टवेयर की पूरी कीमत की निर्यात की तारीख से बारह माह के भीतर वसूली तथा भारत को प्रत्यावर्तन के परमिट । भारतीय रिजर्व बैंक को अब यह भी अधिकार दिया गया है कि वह बारह माह की अवधि को और बढ़ा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक को निर्देश जारी करने का भी अधिकार दिया गया है कि वह , यदि आवश्यक हो, कोई इकाई उप-विनियम (2) से नियंत्रित नहीं होगी और ऐसा होने पर वह इकाई उप-विनियम (1) से नियंत्रित होगी ।

फॉर्म सॉफ्टेक्स के फॉर्मेट में संशोधिन किया गया है ।

12. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.10/2000-आरबी.के आंशिक संशोधन में 27 फरवरी,2001 की अधिसूचना फेमा.सं.27/2001-आरबी

यह अधिसूचना,विदेशी मुद्रा प्रबंध( भारत से बाहर रहने वाले व्यक्ति का विदेशी खाता) विनियमावली, 2000 में संशोधन की मांग करता करती है । विशेष आर्थिक अंचल की किसी अन्य  इकाइई को छोड़कर भारत में निवासी किसी व्यक्ति से रुपयों के बदले खरीद के जरिये अर्जित विदेशी मुद्रा को छोड़कर,विशेष आर्थिक अंचल की इकाइयों को अब अपनी विदेशी मुद्रा प्राप्तियों 100% अपने ईईएफसी खाते में जमा करने की अनुमति प्रदान की गई है ।

13. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.6 /2000-आरबी.के आंशिक संशोधन में 27 फरवरी,2001 की अधिसूचना फेमा.सं.38/2001-आरबी

यह अधिसूचना,विदेशी मुद्रा प्रबंध( मुद्रा का निर्यात और आयात) विनियमावली, 2000 में संशोधन की मांग करता करती है । उपर्युक्त विनियमावली के विनियम (3) के अनुसार, भारत का रहने वाला कोई व्यक्ति भारत से बाहर जाने पर , नेपाल और भुटान को छोड़कर, अपने साथ भारतीय रिजर्व बैंक तथा भारत सरकार के करेंसी नोट ले जा सकता है किंतु यह राशि  5000/ रुपयों से अधिक न हो । यह संशोधन भारतीय रिजर्व बैंक को यह अब यह अधिकार प्रदान करता है कि वह किसी व्यक्ति को, आवेदनपत्र देने पर तथा उससे संतुष्ट होने पर भारत से बाहर जाने पर अथवा बाहर से भारत आने पर , भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्धारित शर्तों के अधीन भारतीय रिजर्व बैंक तथा भारत सरकार के 5000/ रुपयों से अधिक के करेंसी नोट अपने साथ लाने/ले जाने की अनुमति दे सकता है ।

14. 3 मई 2000 की अधिसूचना फेमा.सं.16/2000-आरबी.के आंशिक संशोधन में 27 फरवरी,2001 की अधिसूचना फेमा.सं.39/2001-आरबी

यह संशोधन, भारत की किसी कंपनी को प्राधिकृत करता है कि वह अपने गैर-पूर्ण-कालीन निदेशक को जो कि भारत से बाहर का रहने वाला है और कंपनी के कार्य से भारत आया है,रुपयों में भुगतान करे। ये भुगतान, संबंधित कंपनी के अंतर्नियम-ज्ञापन, अथवा संस्था के अंतर्नियमों अथवा एसके द्वारा निष्पादित किसी करार के अनुसार, अथवा उसकी किसी महासभा/ निदेशक मंडल की बैठक द्वारा पारित किसी संल्प के प्रावधानों के अनुसार, बैठक फीस, कमीशन,पारितोषिक, यात्रा-व्यय के मद में किये जाने चाहिए । ये भुगतान किसी और कानून, नियमावली, विनियमावली अथवा निदेशों का अनुपालन करते हुए किए जाएंगे।

15. सभी प्राधिकृत व्यापारी इस परिपत्र की विषय-वस्तु से अपने ग्राहकों को वगत कराएं।

16 इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुदा प्रबंध अधिनियम 1999 (1999 की 42) धारा 10(4) और धारा 11 (1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानुन के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति / अनुमोन यदि कोई हो ,परप्रतिकूलप्रभावडालेबगैरहै।

भवदीया

(के.जी.उदेशी )
 मुख्य महाप्रबंधक

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