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निर्यात और आयात प्रक्रियाओं का उदारीकरण

आरबीआइ/2006-07/268
ए पी(डीआइआर सिरीज़)परिपत्र सं.33

फरवरी 28,  2007

सेवा में

सभी प्राधिकृत व्यापारी बैंक श्रेणी I

महोदया/महोदय,

निर्यात और आयात प्रक्रियाओं का उदारीकरण

वर्ष 2006-07 की वार्षिक नीति की मध्यावधि समीक्षा में की गई घोषणा (पैरा 93) के अनुसार रिज़र्व बैंक ने विदेशी मुद्रा और भुगतान व्यवस्था की समीक्षा के लिए एक आंतरित कार्यदल का गठन किया है। कार्यदल ने व्यापार से संबंधित क्षेत्रों में कुछ औचित्यपूर्ण और प्रक्रियागत सरलीकरण के सुझाव दिए हैं। तदनुसार बाह्य व्यापार को सुविधापूर्ण बनाने और प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंकों को और अधिक लोच प्रदान करने के लिए आयात और निर्यात और विदेशी मुद्रा लेखे में निम्नलिखित छूट दी गई हैं।

अ. निर्यात

I.          निर्यात प्राप्तियों की वसूली के लिए अवधि विस्तार

अप्रैल 21, 2006 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.31 के साथ पठित जनवरी 28, 2002 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.20 के अनुसार प्राधिकत व्यापारी श्रेणी I बैंकों को कतिपय मामलों में निर्यात प्राप्तियों की वसूली अवधि को 6 महीने से परे, एक बार में 3 महीने की अवधि तक, बढ़ाने के अधिकार प्रत्यायोजित किए गए हैं, जहां निर्यात का बीजक मूल्य एक मिलियन अमरीकी डॉलर अथवा उसके समकक्ष से अधिक नहीं है। अब यह निर्णय लिया गया है कि प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंकों को और अधिक अवधि विस्तार देने की अनुमति के साथ ही बीजक मूल्य पर एक मिलियन अमरीकी डॉलर की सीमा को हटा दिया जाए।

तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक अब निम्नलिखित शर्तों के अधीन निर्यात प्राप्तियों की वसूली के संबंध में निर्यात की तारीख से 6 महीने से परे, निर्यात के बीजक मूल्य पर ध्यान दिये बगैर एक बार में 6 महीने की अवधि के लिए अवधि विस्तार दे सकते हैं।

(क)      बीजक द्वारा कवर किए गए निर्यात लेनदेन प्रवर्तन निदेशालय/ केन्द्रीय जांच ब्यूरो अथवा किसी अन्य जांच एजेंसियों द्वारा जांच के तहत नहीं हैं।
(ख)      प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक इस बात से संतुष्ट हैं कि निर्यातक उनके नियंत्रण से बाहर के कारणों से निर्यात प्राप्तियों की वसूली नहीं कर पाए हैं।
(ग)       निर्यातक एक घोषणा प्रस्तुत करता है कि विस्तारित अवधि के दौरान निर्यात प्राप्तियों की वसूली की जाएगी।
(घ)       निर्यात की तारीख से एक वर्ष से अधिक विस्तार अवधि पर विचार करते समय निर्यातक का कुल बकाया एक मिलियन अमरीकी डॉलर अथवा पिछले 3 वित्तीय वर्षों के दौरान औसत निर्यात वसूली के 10 प्रतिशत, जो भी अधिक हो, से अधिक नहीं है।
(ङ)       स्वीकृत किए गए विस्तार की तारीख अब तक की तरह एक्सओएस विवरण के "टिप्पणी" स्तंभ में दर्शाई जाती है।

ऐसे मामलों में जहां निर्यातक ने विदेश में क्रेता पर मुकदमा दायर किया है, शामिल राशि/ बकाया पर ध्यान दिए बगैर विस्तारित अवधि स्वीकृत की जाए।

उपर्युक्त अनुदेशों के अंतर्गत शामिल न किए गए मामलों को रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी।

II.        वसूल न किए गए निर्यात बिलों को बट्टे खाते डालना

दिसंबर 5, 2003 के ए.पी.(डीआइ आर सिरीज़) परिपत्र सं.40 के साथ पठित अप्रैल 4, 2001 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.30 के अनुसार हैसियतवाले निर्यातकों को कतिपय शर्तों के अधीन पिछले 3 कैलण्डर वर्ष के दौरान उनकी औसत वार्षिक वसूली के 5 प्रतिशत की वार्षिक सीमा तक बकाया बिलों को बट्टे खाते डालने की अनुमति है। इसके अलावा हैसियतवाले निर्यातकों सहित सभी निर्यातकों को कतिपय शर्तों के अधीन कैलण्डर वर्ष के दौरान प्राप्य निर्यात प्राप्तियों के 10 प्रतिशत को बट्टे खाते डालने की अनुमति है।

वर्तमान सुविधा को तर्कसंगत बनाने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि हैसियतवाले निर्यातक (i) पिछले 3 वित्तीय वर्षों के दौरान अपने औसत वार्षिक वसूली के 5 प्रतिशत, अथवा (ii) वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्य निर्यात प्राप्तियों के 10 प्रतिशत, जो भी अधिक हो, की सीमा तक बकाया निर्यात प्राप्य राशियों को बट्टे खाते डाल सकते हैं।

III.       ऑन-साइट सॉफ्टवेअर करारों के मामले में निधियों का प्रत्यावर्तन

जून 29, 2002 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.54 के अनुसार सॉफ्टवेअर निर्यातक कंपनी/ फर्म के समुद्रपारीय कार्यालय/ शाखा प्रत्येक ऑफ-साइट करार के करार मूल्य के 100 प्रतिशत और प्रत्येक ऑन-साइट करार के करार मूल्य के कम-से-कम 30 प्रतिशत तक भारत मे प्रत्यावर्तित करने के लिए बाध्य हैं।

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए सॉफ्टवेअर निर्यातक कंपनी/ फर्म द्वारा ऑन-साइट करार के संबंध में करार मूल्य के 30 प्रतिशत के प्रत्यावर्तन की आवश्यकता को हटा दिया गया है। फिर भी कंपनी को उपर्युक्त करार के पूर्ण होने के बाद ऑन-साइट करार के लाभ को प्रत्यावर्तित करना चाहिए।

IV.       बीजक मूल्य में कमी

दिसंबर 5, 2003 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.40 के साथ पठित सितंबर 9, 2000 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.12 के पैरा इ.12 के अनुसार प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I के बैंकों को ऊपर उल्लिखित शर्तों के अधीन बीजक के 10 प्रतिशत तक बीजक मूल्य में कमी को अनुमोदित करने की अनुमति दी गई है। इसके अलावा सितंबर 9, 2000 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.12 के पैरा इ.14 के अनुसार रिज़र्व बैंक के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता उस स्थिति में नहीं है जब माल का पोत में लदान हो जाता है और बाद उन्हें मूल क्रेता द्वारा चूक किए जाने की स्थिति में मूल क्रेता से इतर किसी अन्य क्रेता को हस्तांतरित करना पड़ता है बशर्ते मूल्य में कमी, यदि कोई हो, वह 10 प्रतिशत से अधिक न हो तथा निर्यात प्राप्तियों की वसूली में निर्यात की वसूली की तारीख से 6 महीने से अधिक की अवधि के लिए विलंब न हुआ हो।

यह निर्णय लिया गया है कि बीजक के 25 प्रतिशत तक मूल्य में कमी को अनुमति प्रदान की जाए। तदनुसार प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक सितंबर 9, 2000 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़त्र परिपत्र सं.12 में उल्लिखित शर्तों के अधीन बीजक के 25 प्रतिशत तक बीजक मूल्य में कमी की अनुमति दे सकते हैं।

ख.        आयात

आयात बिल - समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ताओं के संबंध में क्रेडिट रिपोर्ट

फरवरी 6, 2004 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.66 के साथ पठित जून 19, 2003 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.106 के पैरा अ.12(ii) के अनुसार प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंकों को विदेशी आपूर्तिकर्ता के आयातक ग्राहकों के अनुरोध पर सीधे प्राप्त आयात बिलों की जांच-पड़ताल के पहले उनके बैंकर/ ख्याति प्राप्त क्रेडिट एजेंसी से समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ता के संबंध में क्रेडिट रिपोर्ट प्राप्त करना जरूरी है।

अब से, समुद्रपारीय आपूर्तिकर्ताओं (जहां आयात दस्तावेज़ सीधे प्राप्त किए जाते हैं) के संबंध में क्रेडिट रिपोर्ट, ऐसे मामलों में प्राप्त करना जरूरी नहीं है जहां बीजक मूल्य 100,000 अमरीकी डॉलर से अधिक नहीं है, बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक उस लेनदेन और आयातक ग्राहक के पिछले कार्य निष्पादन रेकार्ड की सच्चाई के संबंध में आश्वस्त है।

इ.         सामान्य

भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेशां में निर्धारित विभिन्न समय आधार

समय-समय पर फेमा के अंतर्गत जारी विभिन्न निदेशों/ परिपत्रों/ अधिसूचनाओं में रिज़र्व बैंक ने विभिन्न व्यापार संबंधी सुविधाओं की पात्रता पर विचार करने के लिए विभिन्न निर्धारित समय सीमा, अर्थात् कैलण्डर वर्ष, वित्तीय वर्ष, पिछला वर्ष, आदि नियत किए हैं।

मुद्दों को सरल बनाने के लिए, अब से, व्यापार संबंधी मुद्दों से संबंधित सभी लेनदेन के लिए "वित्तीय वर्ष" (अप्रैल से मार्च) को समय आधार के रूप में माना जाएगा। कैलण्डर/ पिछले वर्ष से वित्तीय वर्ष में समय आधार के परिवर्तन के कारण समय अवधि में हुए बेमेल को कम करने के लिए प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक, मार्च 31, 2007 तक ही, समय आधार को माने जो उनके ग्राहकों के लिए लाभदायक है।

2.         प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित ग्राहकों को अवगत करा दें।

3.         इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है।

भवदीय

(एम. सेबेस्टियन)
 मुख्य महाप्रबंधक

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