मास्टर परिपत्र - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंक वित्त - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंक वित्त
आरबीआई/2023-24/09 03 अप्रैल 2023 सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) महोदय / महोदया मास्टर परिपत्र - गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को बैंक वित्त कृपया आप उपर्युक्त विषय पर दिनांक 01 अप्रैल 2022 का हमारा मास्टर परिपत्र विवि.सीआरई.आरईसी.सं.07/21.04.172/202-23 देखें। इस मास्टर परिपत्र में 31 मार्च 2023 तक विषय पर जारी अनुदेशों का समेकन किया गया है। भवदीय (मनोरंजन मिश्रा) मास्टर परिपत्र उद्देश्य बैंकों द्वारा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के वित्तपोषण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की विनियामक नीति निर्धारित करना वर्गीकरण बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35क के अधीन जारी सांविधिक दिशानिर्देश पूर्ववर्ती दिशानिर्देश ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त’ संबंधी 01 अप्रैल 2022 का मास्टर परिपत्र विवि.सीआरई.आरईसी.सं.07/21.04.172/2022-23। प्रयोज्यता सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) संरचना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अध्याय III ख के प्रावधानों के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की वित्तीय गतिविधियों को विनियमित करता आ रहा है। जनवरी 1997 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधन कर दिए जाने के बाद, उक्त अधिनियम की धारा 45 झक और अगस्त 2019 में राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 में संशोधन, राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 29 ए के अनुसार आवास वित्त कंपनियों सहित सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक में अपना पंजीकरण कराना अनिवार्य है। (क) ‘एनबीएफसीज़’ से तात्पर्य है भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, जिसमें राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत हाउसिंग फाइनेंस कंपनी (एचएफसी) भी शामिल होगी। (ख) ‘चालू निवेशों’ से तात्पर्य ऐसे निवेशों से है, जो उधारकर्ता के तुलनपत्र में ‘चालू परिसंपत्ति’ के रूप में वर्गीकृत हैं और जिन्हें एक वर्ष से कम अवधि के लिए रखा जाने वाला है। (ग) ‘दीर्घावधि निवेशों’, से तात्पर्य ‘चालू परिसंपत्तियों’ के रूप में वर्गीकृत निवेशों को छोड़कर सभी प्रकार के निवेशों से है। (घ) ‘बेज़मानती ऋणों’ से तात्पर्य ऐसे ऋणों से है जो किसी मूर्त परिसंपत्ति द्वारा रक्षित नहीं हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों के ऋण संबंधी मामलों को क्रमिक रूप से अविनियमित कर दिया है। ऋण वितरण के मामले में बैंकों को अधिक परिचालनगत स्वतंत्रता प्रदान करने की नीति के अनुरूप तथा रिज़र्व बैंक के पास गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के अनिवार्य पंजीकरण के परिप्रेक्ष्य में, बैंकों द्वारा गैर-बैंकिंग कंपनियों को वित्तपोषण करने से संबंधित अंधिकांश पहलुओं को भी अविनियमित किया जा चुका है। तथापि, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की कुछ विशिष्ट प्रकार की गतिविधियों के वित्तपोषण से संबद्ध संवेदनशीलता को देखते हुए ऐसी गतिविधियों के वित्तपोषण पर प्रतिबंध लागू रहेगा। 2. भारतीय रिज़र्व बैंक में पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त 2.1 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निवल स्वाधिकृत निधि (एनओएफ) के साथ संबद्ध बैंक ऋण की अधिकतम सीमा ऐसी सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संबंध में हटा ली गई है जो सांविधिक तौर पर रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत हैं तथा मुख्यतया आस्ति वित्तपोषण, ऋण और निवेश संबंधी कारोबार कर रही हैं। तदनुसार, बैंक रिज़र्व बैंक में पंजीकृत तथा इंफ्रास्ट्रक्चर वित्तपोषण, उपस्कर पट्टे पर देने, किराया-खरीद, ऋण, आढ़तिया और निवेश कार्य करनेवाली सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को आवश्यकता पर आधारित कार्यशील पूंजी की सुविधाएं तथा मीयादी ऋण प्रदान कर सकते हैं। 2.2 ‘सेकंड हैंड’ आस्तियों के वित्तपोषण में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्राप्त अनुभव को ध्यान में रखते हुए बैंक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा वित्तपोषित ‘सेकंड हैंड’ आस्तियों की जमानत पर भी उन्हें वित्त प्रदान कर सकते हैं। 2.3 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को विविध प्रकार की ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों और निवेश मानदंडों के भीतर बैंक अपने निदेशक बोर्ड के अनुमोदन से उचित ऋण नीति बना सकते हैं बशर्ते पैरा 4 और 6 में दर्शाये गये कार्यकलापों को उनके द्वारा वित्तपोषण नहीं किया जाता हो। 3. ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त जिनके लिए पंजीकरण1 कराना आवश्यक नहीं है 25 अगस्त 2016 को "मास्टर निदेश - आरबीआई अधिनियम, 1934 के प्रावधानों से छूट" के संदर्भ में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की कुछ श्रेणियों को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (आरबीआई अधिनियम, 1934) के कुछ प्रावधानों से छूट दी गई है जिसमें रिजर्व बैंक के साथ पंजीकरण की आवश्यकता भी शामिल है। ऐसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए जिन्हें रिज़र्व बैंक में पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है, बैंक अपने ऋण संबंधी निर्णय सामान्य कारकों जैसे क्रेडिट के उद्देश्य, अंतर्निहित परिसंपत्तियों की प्रकृति और गुणवत्ता, उधारकर्ताओं की चुकौती क्षमता के साथ-साथ जोखिम धारणा आदि के आधार पर ले सकते हैं। 4. किन गतिविधियों के लिए बैंक ऋण नहीं दिया जा सकता 4.1 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की निम्नलिखित गतिविधियाँ बैंक ऋण के लिए पात्र नहीं हैं: (i) एनबीएफसी द्वारा भुनाए गए/पुनर्भुनाए गए बिल, एनबीएफसी द्वारा भुनाए गए निम्नलिखित की बिक्री से उपजे बिलों की पुनर्भुनाई को छोड़ कर – (क) वाणिज्यिक वाहन (हल्के वाणिज्यिक वाहनों सहित), तथा (ख) निम्नलिखित शर्तों के अधीन दुपहिया और तिपहिया वाहन:
(ii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किसी कंपनी/संस्था के शेयरों, डिबेंचरों इत्यादि के रूप में वर्तमान और दीर्घावधि स्वरूप के किए गए निवेश। तथापि स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियों को, उनके स्टॉक-इन-ट्रेड के रूप में रखे गए शेयरों और डिबेंचरों के आधार पर उनकी आवश्यकता के अनुसार ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है। (iii) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा किसी कंपनी को/में गैर जमानती ऋण / अंतर-कंपनी जमाराशियां। (iv) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा अपनी सहायक कंपनियों, समूह कंपनियों/संस्थाओं को दिए गए सभी प्रकार के ऋण और अग्रिम। (v) प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) में अभिदान तथा द्वितीयक बाज़ार से शेयरों की खरीद के लिए व्यक्तियों को ऋण देने के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का वित्तपोषण। 4.2 पट्टे पर तथा उप-पट्टे पर दी गई आस्तियां चूंकि उपस्कर पट्टे पर देनेवाली (इक्विपमेंट लीजिंग) कंपनियों को बैंक वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते है, इसलिए बैंकों को चाहिए कि वे ऐसी कंपनियों के साथ तथा उपस्कर पट्टे पर देने का काम करने वाली अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के साथ विभागीय तौर पर पट्टा संबंधी करार न करें। 5. फैक्टरिंग कंपनियों को बैंक वित्त 5.1 तदनुसार उपर्युक्त पैराग्राफ 4.1 (i) और 4.1 (iii) में उल्लिखित प्रतिबंधों के बावजूद बैंक अब से निम्नलिखित मानदण्डों का पालन करने वाली फैक्टरिंग कंपनियों (एनबीएफसी-फैक्टर्स' और 'एनबीएफसी-आईसीसी जिनके पास फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011 के तहत पंजीकरण का प्रमाण पत्र है) के फैक्टरिंग कारोबार को समर्थन देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते है। बैंक वित्त के लिए पात्र होने के लिए, फैक्टरिंग कंपनियों द्वारा निम्नलिखित मानदंडों को पूरा किया जाना चाहिए - (क) कंपनियां, फैक्टरिंग कंपनियों के रूप में पात्र हैं और अपना कारोबार फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 तथा इस संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी अधिसूचनाओं में दिए गए प्रावधानों के अंतर्गत करती हैं। (ख) फैक्टरिंग कंपनियों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता दृष्टिबंधक द्वारा या अपने पक्ष में प्राप्य राशियों के असाइनमेंट द्वारा सुरक्षित की जाती हैं। 5.2 उपरोक्त के अलावा, बैंक वित्त के लिए पात्र होने के लिए एनबीएफसी-फैक्टरों को निम्नलिखित मानदंडों को भी पूरा करना चाहिए -
6. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को बैंक वित्त दिए जाने पर अन्य प्रतिबंध बैंकों को चाहिए कि वे सभी श्रेणियों की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को किसी तरह का पूरक ऋण, या कैपिटल/डिबेंचर निर्गमों के आधार पर अंतरिम वित्त और /या पूंजी, जमाराशियों इत्यादि के रूप में बाजार से दीर्घावधिक निधि की उगाही के लम्बित रहने के आधार पर तात्कालिक स्वरूप का कोई ऋण मंजूर न करें। बैंकों को चाहिए कि वे इन अनुदेशों का कड़ाई से पालन करें तथा यह सुनिश्चित करें कि इन अनुदेशों का जाने-अनजाने घुमा फिराकर कुछ अन्य अर्थ लगाकर निर्बंध परक्राम्य नोट, अस्थायी ब्याज दर वाले बांड इत्यादि के भिन्न नाम से तथा अल्पावधि ऋण के रूप में कोई ऐसा ऋण मंजूर न किया जाए जिसकी चुकौती बाहरी/अन्य स्रोतों से जुटाई जाने वाली निधि से की जानी प्रस्तावित/की जाने वाली हो, न कि आस्तियों के उपयोग से होने वाले अधिशेष से। 6.2 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को शेयरों की संपार्श्विक जमानत पर अग्रिम किसी भी प्रयोजन के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उधारकर्ताओं को प्रदत्त जमानती ऋणों के लिए शेयरों तथा डिबेंचरों की संपार्श्विक जमानत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। 6.3 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास निधियाँ रखने के लिए गारंटियों पर प्रतिबंध बैंकों को चाहिए कि वे अंतर-कंपनी जमाराशियों/ऋणों के संबंध में गारंटी न दें जिससे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/फर्मों द्वारा अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों/फर्मों से स्वीकृत जमाराशियों/ऋणों की वापसी की गारंटी दी जाती हो। यह प्रतिबंध सभी प्रकार की जमाराशियों/ऋणों पर उनके स्रोत पर विचार किये बिना, न्यासों तथा दूसरी संस्थाओं से गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्राप्त जमाराशियों/ऋणों को शामिल करते हुए, लागू है। गारंटियां इसलिए नहीं जारी की जानी चाहिए, ताकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास जमाराशियां रखने के लिए वे अप्रत्यक्ष रूप से सहायक न हों। हालांकि, बैंकों को एनबीएफसी-एनडी-एसआई और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (एचएफसी) द्वारा जारी बांडों को 09 नवंबर 2021 के गारंटी और सह-स्वीकृति पर मास्टर परिपत्र के पैरा 2.4, जो कि समय-समय पर अद्यतन किया जाता है, निहित दिशानिर्देशों के अनुसार आंशिक ऋण वृद्धि (पीसीई) प्रदान करने की अनुमति है। 7. एनबीएफसी को बैंकों के एक्सपोजर के लिए विवेकपूर्ण उच्चतम सीमा 7.1 एक्सपोजर की गणना की परिभाषा और विधि 03 जून 2019 के वृहत् एक्सपोज़र ढांचा पर परिपत्र और समय-समय पर किए गए संशोधनों में निर्धारित होगी। 7.2 एकल एनबीएफसी (स्वर्ण ऋण कंपनियों को छोड़कर) में बैंकों का एक्सपोजर उनके पात्र पूंजी आधार (टियर I पूंजी) के 20 प्रतिशत तक सीमित होगा। हालांकि, जोखिम की धारणा के आधार पर, बैंकों द्वारा एनबीएफसी की कुछ श्रेणियों के संबंध में अधिक कठोर एक्सपोजर सीमाओं पर विचार किया जा सकता है। जुड़े हुए एनबीएफसी के समूह या समूह में एनबीएफसी वाले जुड़े प्रतिपक्षकारों के समूह के लिए बैंकों का एक्सपोजर उनकी टियर I पूंजी के 25 प्रतिशत तक सीमित होगा, जैसा कि दिनांक 12 सितंबर 2019 वृहत् एक्सपोज़र ढांचा पर परिपत्र के साथ पठित 03 जून 2019 के वृहत् एक्सपोज़र ढांचा पर परिपत्र में विस्तृत है। 7.3 किसी एकल एनबीएफसी को बैंक का एक्सपोजर जो मुख्य रूप से सोने के आभूषणों के संपार्श्विक (अर्थात उनकी वित्तीय आस्ति का 50 प्रतिशत या उससे अधिक शामिल ऋण) के एवज में उधार देने से जुडा है, बैंक की पूंजीगत निधि (टियर I एवं टियर II पूंजी)के 7.5 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। तथापि, यह जोखिम सीमा 5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है, अर्थात बैंकों की पूंजीगत निधियों के 12.5 प्रतिशत तक, यदि अतिरिक्त जोखिम ऐसी एनबीएफसी द्वारा बुनियादी ढांचा क्षेत्र को उधार दी गई निधियों के कारण है, जैसा कि 18 मई 2012 के परिपत्र मुख्य रूप से सोने की जमानत पर उधार देने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए बैंक वित्त में वर्णित है। 7.4 बैंक सभी एनबीएफसी को एक साथ मिलाकर अपने कुल एक्सपोजर के लिए आंतरिक सीमा तय करने पर भी विचार कर सकते हैं। 7.5 बैंकों को अपनी कुल वित्तीय आस्तियों के 50 प्रतिशत या उससे अधिक की सीमा तक स्वर्ण ऋण रखने वाली सभी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में उनके कुल एक्सपोजर पर एक आंतरिक उप-सीमा होनी चाहिए। यह उप-सीमा बैंकों द्वारा सभी एनबीएफसी में उनके कुल एक्सपोजर के लिए निर्धारित आंतरिक सीमा, जैसा कि ऊपर पैरा 7.4 में निर्धारित है, के भीतर होनी चाहिए 7.6 एक्सपोजर सीलिंग की गणना के उद्देश्य से प्रकाशित तुलन पत्र की तारीख के बाद पात्र पूंजी निधियों के प्रवाह को भी ध्यान में रखा जा सकता है। पूंजी की वृद्धि के पूरा होने पर बैंकों को एक बाहरी लेखा परीक्षक का प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा और पूंजीगत निधियों में वृद्धि की गणना करने से पहले इसे भारतीय रिजर्व बैंक (पर्यवेक्षण विभाग) को जमा किया जाना चाहिए। 7.7. बैंकों को 11 फरवरी 2014 के अंतर-समूह लेनदेन और एक्सपोजर के प्रबंधन पर दिशानिर्देशों के अनुसार अंतर-समूह सीमाओं का पालन करना होगा। 8. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जारी प्रतिभूतियों/लिखतों में बैंकों द्वारा किए जाने वाले निवेशों पर प्रतिबंध 8.1 बैंकों को शून्य कूपन बांडों (जेडसीबी) में तब तक निवेश नहीं करना चाहिए जब तक निर्गमकर्ता गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनी सभी उपचित ब्याजों के लिए एक निक्षेप निधि न रखे तथा उस निधि को तरल निवेश/प्रतिभूतियों (सरकारी बांडों) में निविष्ट न रखे। 8.2 बैंकों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जारी एक वर्ष तक की मूल परिपक्वता अवधि वाले अपरिवर्तनीय डिबेंचरों (एनसीडी) में निवेश करने की अनुमति दी गई है। तथापि, ऐसे लिखतों में निवेश करते समय बैंकों को विद्यमान विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए, यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अपरिवर्तनीय डिबेंचर जारी करने वाले ने प्रकटीकरण दस्तावेज के अंतर्गत अपरिवर्तनीय डिबेंचर जारी करने का प्रयोजन प्रकट किया है और ऐसे प्रयोजन पूर्ववर्ती पैराग्राफों में दिए गए अनुदेशों के अनुसार बैंक वित्त के लिए पात्र हैं। परिशिष्ट मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
1 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को वित्तपोषण करते समय, जिन्हें आरबीआई के साथ पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है, बैंकों को इस संबंध में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों/अधिसूचनाओं का भी संदर्भ लेना चाहिए। |