आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र - आरबीआई - Reserve Bank of India
आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र
आरबीआई/2015-16/46 1 जुलाई 2015 सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक महोदय/महोदया आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र कृपया दिनांक 1 जुलाई 2014 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि.सं.डीआईआर.बीसी.18/08.12.001/2014-15 देखें जिसमें आवास वित्त के संबंध में 30 जून 2014 तक बैंकों को जारी किए गए अनुदेश/दिशानिर्देश समेकित किए गए हैं। इस मास्टर परिपत्र में उपर्युक्त विषय पर 30 जून 2015 तक जारी किए गए अनुदेशों को शामिल किया गया है। भवदीया (लिली वडेरा) आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र आवास वित्त पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए गए नियमों/विनियमों तथा स्पष्टीकरणों को समेकित करना। बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 तथा 35 क द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया गया सांविधिक निदेश। ग. समेकित किए गए पूर्व अनुदेश इस मास्टर परिपत्र में परिशिष्ट में सूचीबद्ध परिपत्रों में निहित सभी अनुदेशों तथा वर्ष के दौरान जारी सभी स्पष्टीकरणों को समेकित तथा अद्यतन किया गया है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों पर लागू। पूरे देश की लंबाई और चौड़ाई में फैली अपनी शाखाओं के विशाल नेटवर्क के साथ बैंक वित्तीय प्रणाली में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थिति में हैं तथा आवासीय क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। केंद्र सरकार की राष्ट्रीय आवास नीति के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने आवास वित्त आवंटन की योजना शुरू की है, जिसमें बैंकों से अपेक्षित है कि वे प्रति वर्ष वार्षिक रूप से घोषित आवास वित्त के निर्धारित लक्ष्य को पूरा करें। बैंक तीन संवर्गों, अर्थात् प्रत्यक्ष वित्त, परोक्ष वित्त या एनएचबी/हुडको के बांडों में अथवा इनके मिश्रण में निवेश कर के आवास वित्त आवंटन के अंतर्गत अपनी निधियों का परिनियोजन कर सकते हैं। वर्तमान में, बैंकों को यह स्वतंत्रता है कि वे अपने बोर्ड के अनुमोदन से आवास वित्त प्रदान करने के विभिन्न पहलुओं पर अपने स्वयं के दिशानिर्देश विकसित करें। अपनी स्वयं की नीतियां बनाते समय बैंकों को रिज़र्व बैंक के निम्नलिखित दिशानिर्देशों को ध्यान में रखना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंक ऋण का उपयोग उत्पादन और निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिए किया जाता है, न कि स्थावर संपदा में सट्टेबाजी के लिए। (a) भूमि का अधिग्रहण केवल प्लॉट खरीदने के लिए बैंक का वित्त प्रदान किया जाता है, बशर्ते कि उधारकर्ता से यह घोषणापत्र प्राप्त किया जाए कि वह बैंक वित्त की सहायता से या उसके बिना, ऐसी अवधि के भीतर उक्त प्लॉट पर मकान का निर्माण करने का इरादा रखता है, जो बैंकों द्वारा सवयं निर्धारित की जाएगी। (b) भवन निर्माण/ तैयार मकान (i) बैंक व्यक्तियों को प्रति परिवार मकान खरीदने/बनाने के लिए ऋण दे सकते हैं, तथा परिवारों के क्षतिग्रस्त मकानों की मरम्मत के लिए दिए गए ऋण। (ii) किसी व्यक्ति के पास जिस कस्बे/गांव में वह रहता है, वहां पहले से ही एक मकान है, तो भी बैंक उसे स्वयं के उपयोग के प्रयोजन से उसी या अन्य कस्बे/गांव में मकान खरीदने के लिए वित्त दे सकता है। (iii) बैंक ऐसे उधारकर्ता को मकान खरीदने के लिए वित्त दे सकता है, जो अपनी मुख्यालय से बाहर तैनाती अथवा नियोक्ता द्वारा आवास उपलब्ध कराए जाने के कारण उसे किराए पर देने का प्रस्ताव करता है। (iv) बैंक ऐसे व्यक्ति को वित्त दे सकता है, जो उस पुराने मकान को खरीदना चाहता है, जिसमें वह फिलहाल किराएदार के रूप में रह रहा है। (v) झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्र की परिस्थितियों को सुधारने के लिए किए गए निर्माण के लिए दिया गया वित्त जिसके लिए झुग्गी-झोपड़ियों में रहनेवालों को सरकार की गारंटी पर प्रत्यक्ष ऋण दिया जाएगा अथवा राज्य सरकारों के माध्यम से अप्रत्यक्ष ऋण दिया जाएगा। (vi) बैंक स्लम क्लियरंस बोर्डों तथा अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा कार्यान्वित की जानेवाली झोपड़ी क्षेत्र सुधार योजनाओं के लिए ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। (vii) बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे अनधिकृत निर्माण के संबंध में माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणियों के प्रकाश में निम्नलिखित शर्तों का भी पालन करें: (a) जिन मामलों में आवेदक के पास भूखंड/भूमि है और वह मकान बनवाने के लिए ऋण सुविधा हेतु बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं के पास आता है तो बैंकों /वित्तीय संस्थाओं को गृह कर्ज मंजूर करने के पहले, ऋण सुविधा के लिए आवेदन करनेवाले व्यक्ति के नाम सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूर योजना की एक प्रति प्राप्त करनी होगी। (b) ऐसी ऋण सुविधा के लिए आवेदन करनेवाले व्यक्ति से एक शपथपत्र-व-वचनपत्र प्राप्त करना होगा कि वह मंजूर योजना का उल्लंघन नहीं करेगा, निर्माण कार्य पूर्णत: मंजूर योजना के मुताबिक होगा और ऐसा निष्पादन करने वाले की ही यह जिम्मेदारी होगी कि निर्माण-कार्य पूरा हो जाने के 3 महीने के भीतर वह पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त करें। ऐसा न कर पाने पर ब्याज़, लागत और अन्य प्रचलित बैंक प्रभारों सहित सारा ऋण वापस मांगने का अधिकार बैंक को होगा। (c) बैंक द्वारा नियुक्त किसी वास्तुविद को भी भवन निर्माण के विभिन्न स्तरों पर यह प्रमाणित करना होगा कि भवन का निर्माण पूरी तरह मंजूर योजना के मुताबिक है तथा उसे एक विशिष्ट समय पर यह भी प्रमाणित करना होगा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया जानेवाला भवन संबंधी पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया है। (d) जिन मामलों में आवेदक तैयार मकान/फ्लैट खरीदने के लिए ऋण सुविधा हेतु बैंकों /वित्तीय संस्थाओं के पास आता है, तो उसके लिए एक शपथपत्र-व-वचनपत्र के ज़रिए यह घोषित करना अनिवार्य होना चाहिए कि तैयार संपत्ति मंजूर योजना और/या भवन उप-विधियों के मुताबिक बनाई गई है और जहां तक संभव हो सके उसे पूर्णता प्रमाणपत्र भी मिल चुका है। (e) ऋण के वितरण के पहले, बैंक द्वारा नियुक्त किसी वास्तुविद को भी यह प्रमाणित करना होगा कि तैयार संपत्ति पूरी तरह मंजूर योजना के मुताबिक और/या भवन उप-विधियों के मुताबिक है। (f) जो संपत्ति अनधिकृत कॉलोनियों की श्रेणी में आती है उनके मामले में तब तक ऋण नहीं दिया जाना चाहिए जब तक वे विनियमित नहीं की जातीं और विकास तथा अन्य प्रभार अदा नहीं किए जाते। (g) आवासीय इस्तेमाल के लिए बनी परंतु आवेदक जिसका उपयोग वाणिज्य प्रयोजन के लिए करना चाहता है और ऋण के लिए आवेदन करते समय वैसा घोषित करता है तो ऐसी संपत्तियों के मामले में भी ऋण नहीं दिया जाना चाहिए। (viii) पूरक वित्त (a) बैंक अपने द्वारा पहले से ही वित्तपोषित मकान /फ्लैट में परिवर्तन / परिवर्द्धन / मरम्मत का काम करने के लिए, समग्र अधिकतम सीमा के भीतर अतिरिक्त वित्त प्रदान किए जाने संबंधी अनुरोध पर विचार कर सकते हैं। (b) जिन व्यक्तियों ने आवास के निर्माण / अधिग्रहण हेतु अन्य स्रोतों से धन की व्यवस्था की है और वे पूरक वित्त चाहते हैं, उनके मामले में, अन्य ऋणदाताओं के पक्ष में पहले से ही गिरवी रखी हुई संपत्ति पर समरूप या द्वितीय बंधक प्रभार प्राप्त करके और / या अपने विचार से किसी अन्य उपयुक्त प्रतिभूति / जमानत के आधार पर बैंक पूरक वित्त प्रदान कर सकते हैं। (c) बैंक निम्नलिखित को वित्त प्रदान करने पर विचार कर सकते हैं:
(ix) तथापि, निम्नलिखित को बैंक वित्त न दिया जाए: (क) केवल सरकारी /अर्ध-सरकारी कार्यालयों के लिए बनाए जाने वाले भवनों के निर्माण के लिए बैंक को वित्त प्रदान नहीं करना चाहिए जिनमें नगरपालिका तथा पंचायत कार्यालय शामिल हैं। तथापि, बैंक ऐसे कार्यों के लिए ऋण प्रदान कर सकते हैं जिनके लिए नाबार्ड जैसी संस्थाओं द्वारा पुनर्वित्त दिया जाएगा। (ख) बैंक कंपनी निकाय (अर्थात् ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जो कि कंपनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत नहीं हैं अथवा जो संबंधित कानून के अंतर्गत स्थापित निगम नहीं है) न होने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा प्रारंभ की गई परियोजनाओं का वित्तपोषण नहीं करेंगे। उपर्युक्त परिभाषित कंपनी निकायों द्वारा प्रारंभ की गई परियोजनाओं के संबंध में भी बैंकों को अपने आप को इस बात से संतुष्ट करना होगा कि परियोजना वाणिज्यिक आधार पर चलाई जा रही है और बैंक वित्त परियोजना के लिए परिकल्पित बजटीय संसाधनों के बदले में अथवा उन्हें प्रतिस्थापित करने के लिए नहीं है। तथापि, यह ऋण बजटीय संसाधनों का अनुपूरक हो सकता है यदि परियोजना की रूपरेखा में ही ऐसा प्रावधान किया गया हो। अत:, किसी आवास परियोजना के मामले में जहां परियोजना वाणिज्यिक आधार पर चलाई जाती है और समाज के कमज़ोर वर्गों के लाभ के लिए अथवा अन्यथा, उस परियोजना का प्रवर्तन करने में सरकार रुचि रखती है और उपलब्ध कराई गई आर्थिक सहायता तथा / अथवा परियोजना प्रारंभ करने वाली संस्थाओं की पूंजी में अंशदान करके परियोजना की लागत का एक हिस्सा सरकार पूरा करती है तो बैंक वित्त, परियोजना की कुल लागत में से सरकार से प्राप्य आर्थिक सहायता/पूंजीगत अंशदान की राशि तथा सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले कोई भी अन्य प्रस्तावित संसाधनों को घटाकर प्राप्त राशि तक सीमित होना चाहिए। (ग) बैंकों ने राज्य पुलिस आवास निगम जैसे सरकार द्वारा स्थापित निगमों को कर्मचारियों को आंबटित करने के लिए रिहाइशी क्वार्टर्स निर्माण करने के लिए पूर्व में मीयादी ऋण मंजूर किए थे। ऐसे ऋणों की चुकौती बजटीय विनियोजनों द्वारा करने की परिकल्पना की गई थी। चूंकि इन परियोजनाओं को वाणिज्यिक आधार पर चलाई जा रही परियोजनाएं नहीं समझा जा सकता है, अत: ऐसी परियोजनाओं को ऋण प्रदान करना बैंकों के लिए उचित नहीं होगा। (ग) आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों को ऋण देना (i) भूमि के अधिग्रहण के लिए वित्त प्रदान करना (क) देश में मकानों का स्टॉक बढ़ाने के लिए भूमि और आवासीय स्थलों की उपलब्धता में वृद्धि करने की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए बैंक भूमि अधिग्रहण तथा भूमि को मकानों के लिए विकसित करने हेतु सरकारी एजेंसियों को वित्त प्रदान कर सकते हैं, बशर्ते यह संपूर्ण परियोजना का अंग है जिसमें मूलभूत सुविधाओं जैसे जलप्रणाली, ड्रेनेज, सड़क, बिजली की व्यवस्था इत्यादि, का विकास शामिल है। ऐसा ऋण मीयादी ऋण के रूप में दिया जा सकता है। परियोजना यथाशीघ्र पूरी की जानी चाहिए तथा हर हालत में इसमें तीन साल से अधिक का समय नहीं लगना चाहिए ताकि इष्टतम परिणामों के लिए बैंक की निधि की तेजी से रिसाइकिलिंग सुनिश्चित की जा सके। यदि परियोजना के अंतर्गत भवनों का निर्माण भी शामिल है तो उसके लिए वैयक्तिक लाभार्थियों को उन्हीं शर्तों पर वित्त प्रदान किया जाना चाहिए जिन शर्तों पर प्रत्यक्ष वित्त प्रदान किया गया है। (ख) बैंकों के पास संपत्तियों के मूल्यांकन तथा बैंकों के एक्सपोजरों के लिए स्वीकार किए गए संपार्श्विक के मूल्यांकन के लिए एक बोर्ड अनुमोदित नीति होनी चाहिए और वह मूल्यांकन व्यावसायिक अर्हता प्राप्त स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता द्वारा किया जाना चाहिए। (ग) संपार्श्विक के रूप में ली गई भूमि तथा भूमि के अधिग्रहण के लिए वित्त प्रदान करते समय भूमि के मूल्यांकन के लिए बैंक निम्नानुसार कार्रवाई करें :
(ii) आवास वित्त संस्थाओं को ऋण देना बैंक आवास-वित्त संस्थाओं को उनके (दीर्घावधि) ऋण-इक्विटी अनुपात, पिछले रिकार्ड, वसूली संबंधी कार्यनिष्पादन और लागू विनियामक दिशानिर्देशों सहित अन्य संगत तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए मीयादी ऋण मंजूर कर सकते हैं। (iii) आवास बोर्डों और अन्य एजेन्सियों को ऋण दिया जाना बैंक राज्य-स्तरीय आवास बोर्डों और अन्य सरकारी एजेन्सियों को मीयादी ऋण दे सकते हैं। लेकिन आवास-वित्त प्रणाली की स्वस्थ परंपरा विकसित करने के लिए, ऐसा करते समय बैंकों को चाहिए कि वे लाभग्राहियों से की गई वसूली के मामले में इन एजेन्सियों के केवल पिछले कार्यनिष्पादन पर ही नजर न रखें, बल्कि यह शर्त भी लगा दें कि बोर्ड लाभग्राहियों से तत्परतापूर्वक और नियमित रूप से ऋणों की किस्तों की वसूली करेंगे। (iv) निजी बिल्डरों को मीयादी ऋण (a) आवास के क्षेत्र में निर्माण संबंधी सेवाएँ प्रदान करने वालों के रूप में प्रोफेशनल बिल्डरों द्वारा अदा की गयी भूमिका को दृष्टिगत रखते हुए, वह भी विशेषत: उन मामलों में जहाँ राज्य आवास बोर्डों एवं अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा भूमि अधिग्रहीत और विकसित की जाती है, वाणिज्यिक बैंक निजी बिल्डरों को प्रत्येक खास परियोजना के लिए वाणिज्यिक शर्तों पर ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। (b) तथापि, बैंकों को निजी बिल्डरों को भूमि- अधिग्रहण के लिए निधि-आधारित या गैर निधि-आधारित सुविधाएं देने की अनुमति नहीं है, चाहे वह आवासीय परियोजना के एक भाग के रूप में ही क्यों न हो। (c) बैंकों द्वारा निजी बिल्डरों को दिए जाने वाले ऋणों की अवधि के मामले में कोई भी निर्णय बैंक अपने वाणिज्यिक विवेक के आधार पर स्वयं लें लेकिन ऐसा करते समय वे सामान्य सावधानियाँ बरतें और ऋण देने से पहले उपयुक्त प्रतिभूति/जमानत भी प्राप्त कर लें। (d) ऐसे ऋण उन प्रतिष्ठित बिल्डरों को दिए जाने चाहिए जो निर्माण-व्यवसाय से जुड़ी अर्हता रखने वाले व्यक्तियों को नियोजित करते हैं। बारीकी से नजर रखते हुए यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसे ऋण के किसी भी भाग का उपयोग जमीन की सट्टेबाजी के लिए नहीं किया जा रहा है। (e) यह सुनिश्चित करने के लिए भी सावधानी बरती जानी चाहिए कि अंतिम लाभग्राहियों से लिए जाने वाले मूल्य में सट्टेबाजी का कोई भी तत्व मौजूद न हो, अर्थात् लिया जाने वाला मूल्य भूमि के दस्तावेजी मूल्य, निर्माण की वास्तविक लागत और उपयुक्त लाभ-मार्जिन पर आधारित होना चाहिए। (V) आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों को ऋण दिए जाने से संबंधित शर्तें (a) आवास क्षेत्र को संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि करने के लिए, आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों द्वारा मंजूर किए गए / मंजूर किए जाने वाले प्रत्यक्ष ऋणों के बदले बैंक इन एजेन्सियों को मीयादी ऋण मंजूर कर सकते हैं, इन एजेन्सियों द्वारा प्रति उधारकर्ता को दिए गए ऋण का आकार चाहे कुछ भी हो। ऐसे मीयादी ऋणों की गणना बैंकों के आवास वित्त विनियोजन की लक्ष्य प्राप्ति के प्रयोजन हेतु की जाएगी। (b) आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों द्वारा अनिवासी भारतीयों को मंजूर किए गए / मंजूर किए जाने वाले प्रत्यक्ष ऋणों के बदले भी बैंक इन एजेन्सियों को मीयादी ऋण मंजूर कर सकते हैं। लेकिन चूँकि भारतीय रिज़र्व बैंक ने सभी आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों को अनिवासी भारतीयों को आवास-वित्त उपलब्ध कराने के प्रयोजनार्थ प्राधिकृत नहीं किया है, इसलिए बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे जिन आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों को वित्त उपलब्ध करा रहे हैं, वे अनिवासी भारतीयों को आवास-ऋण मंजूर करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत हैं। (c) बैंक 30 जून 2010 तक बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) का संदर्भ लिए बिना आवासीय मध्यवर्ती एजेन्सियों पर ब्याज दर लगाने के लिए स्वतंत्र हैं। 1 जुलाई 2010 से लागू आधार दर प्रणाली के अंर्तगत ऋण की सभी श्रेणियों की ब्याज दरें आधार दर के संदर्भ में निर्धारित की जाएंगी, जो कि सभी ऋणों के लिए न्यूनतम ब्याज दर है। (vi) वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) एक्सपोजर पर दिशानिर्देशों का पालन करना आवासीय मध्यवर्ती संस्थाओं को ऋण प्रदान करना वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) एक्सपोजर पर दिशानिर्देशों के अधीन होगा। (क) आवास वित्त के रूप में प्रदान किए जाने वाले ऋण की मात्रा तय करते समय बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऋणों के लिए एलटीवी अनुपात निम्नलिखित के अनुसार है:
(ख) ऋण मंजूर करते समय आवासीय संपत्ति का मूल्य तय करने के लिए अपनाई गई प्रणालियों में एकरूपता लाने की दृष्टि से बैंकों को चाहिए कि उनके द्वारा वित्तपोषित आवासीय संपत्ति की लागत में स्टॉम्प ड्यूटी, पंजीकरण और अन्य प्रलेखीकरण प्रभारों को शामिल नहीं करें, ताकि एलटीवी मानदंडों की प्रभावशीलता कम न हो। (ग) तथापि, ऐसे मामलों में जहां आवास/ रिहायशी इकाई की लागत 10 लाख रूपए से अधिक नहीं है, बैंक एलटीवी अनुपात की गणना के प्रयोजन के लिए आवास/रिहायशी इकाई की लागत में स्टैम्प ड्यूटी, पंजीकरण और अन्य प्रलेखीकरण प्रभारों को शामिल कर सकते हैं। (घ) यह पाया गया है कि कुछ बैंकों ने डेवेलपर्स/भवन निर्माताओं के साथ मिलकर कतिपय नवोन्मेषी आवास ऋण योजनाएं शुरू की हैं, जैसे कि मंजूर किए गए वैयक्तिक आवासीय ऋणों के संवितरण को आवासीय परियोजना के निर्माण के विभिन्न चरणों से जोड़े बिना पहले से ही भवन निर्माताओं को संवितरित कर देना, निर्माण काल/विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान वैयक्तिक उधारकर्ता द्वारा लिए गए आवास ऋण पर भवन निर्माताओं द्वारा ब्याज/ईएमआई की सर्विस किया जाना, आदि। इसके अंतर्गत बैंक, भवन निर्माता और आवासीय इकाई के क्रेता के मध्य त्रिपक्षी करारों पर हस्ताक्षर करना भी शामिल हो सकता है। ये ऋण उत्पाद 80:20, 75:25 योजना जैसे विविधि नामों से लोकप्रिय हैं। (ङ) इन ऋण उत्पादों के कारण बैंक और उनके आवास ऋण उधारकर्ताओं के अतिरिक्त जोखिम के प्रति एक्सपोज होने की संभावना बनती है, उदाहरण के लिए वैयक्तिक उधारकर्ताओं/भवन निर्माताओं के बीच विवाद की स्थिति में, सहमत अवधि के दौरान उधारकर्ता की ओर से भवन निर्माता/डेवलपर द्वारा ब्याज/मासिक किस्त की चुकौती में डिफाल्ट/विलंब की स्थिति में, परियोजना के समय से पूरा न होने की स्थिति में, इत्यादि। इसके साथ ही, बैंकों को भवन निर्माताओं/डेवलपर्स द्वारा वैयक्तिक उधारकर्ताओं की ओर से किए गए किसी प्रकार के विलंबित भुगतान के परिणामस्वरूप साख सूचना कंपनियों द्वारा इन उधारकर्ताओं की क्रेडिट रेटिंग/स्कोरिंग नीचे गिर सकती है क्योंकि ऋणों की चुकौती से संबंधित सूचना नियमित आधार पर साख सूचना कंपनियों (सीआईसी) को प्रेषित की जाती है। ऐसे मामलों में, जहां वैयक्तिक उधारकर्ताओं की ओर से बैंक द्वारा भवन निर्माताओं/डेवलपर्स को निर्माण के चरणों से संबद्ध किए बिना पहले ही एकमुश्त बैंक ऋण प्रदान कर दिए जाते हैं, बैंक निधियों के दुरुपयोग से संबद्ध विषमतापूर्ण उच्चतर जोखिम के एक्सपोजर का शिकार हो सकते हैं। (च) बैंकों को सूचित किया जाता है कि व्यक्तिगत तौर पर मंजूर किए गए आवास ऋणों के संवितरण को पूरी तरह से आवासीय परियोजनाओं/आवास के निर्माण के साथ जोड़ा जाना चाहिए तथा अपूर्ण/निर्माणाधीन/हरित क्षेत्र आवासीय परियोजनाओं के मामलों में पहले ही संवितरण नहीं किया जाना चाहिए। (छ) तथापि, सरकारी/सांविधिक प्राधिकरणों द्वारा प्रायोजित परियोजनाओं के मामले में ऋण का संवितरण ऐसे प्राधिकरणों द्वारा निर्धारित भुगतान चरणों के अनुसार कर सकते हैं, ऐसे मामलों में भी जहां आवास के क्रेताओं से मांगा गया भुगतान निर्माण के चरणों से जुड़ा हुआ न हो, बशर्ते ऐसे प्राधिकरणों की कोई परियोजना विगत में अधूरी रह जाने का कोई इतिहास न रहा हो। (ज) इस पर जोर दिया जाता है कि किसी प्रकार का उत्पाद शुरू करते समय बैंक को ग्राहक की उपयुक्तता तथा मामलों के औचित्य को ध्यान में रखना चाहिए तथा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उधारकर्ताओं/ग्राहकों को ऐसी परियोजनाओं के अंतर्गत जोखिमों एवं देयताओं से पूर्ण रूप से अवगत कराया गया है। बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा "अग्रिमों पर ब्याज दरें" पर समय-समय पर जारी अनुदेशों के अनुसार उनके द्वारा दिए गए आवास वित्त पर ब्याज लगाना चाहिए। 5. सांविधिक/विनियामक प्राधिकारियों का अनुमोदन स्थावर संपदा के संबंध में ऋण प्रस्तावों का मूल्यांकन करते समय बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित उधारकर्ता ने, जहां कहीं आवश्यक हो, सरकार/ स्थानीय निकाय /अन्य सांविधिक प्राधिकारियों से परियोजना के लिए पूर्व अनुमति प्राप्त कर ली है। इसके कारण ऋण अनुमोदन की प्रक्रिया में रुकावट न हों, इसके लिए संबंधित प्रस्तावों को सामान्य रूप से मंजूर किया जा सकता है, हालांकि उधारकर्ता द्वारा सरकारी प्राधिकारियों से आवश्यक अनुमति प्राप्त कर लेने के बाद ही वितरण किया जाना चाहिए। माननीय उच्च न्यायालय, बम्बई द्वारा की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए विनिर्दिष्ट आवास /विकास परियोजनाओं को वित्त मंजूर करते समय बैंक शर्तों के एक हिस्से के रूप में निम्नलिखित को शामिल करें : (a) भवन निर्माता /विकासकर्ता/कंपनी अपनी पुस्तिकाओं /ब्रोशरों आदि में उस बैंक (बैंकों) का नाम प्रकट करें जिसको संपत्ति बंधक रखी गई हो। (b) भवन निर्माता /विकासकर्ता/कंपनी किसी विशेष योजना के विज्ञापन को समाचार पत्रों/ पत्रिकाओं आदि में प्रकाशित करते समय बंधक से संबंधित सूचनाओं को विज्ञापन में शामिल करें। (c) भवन निर्माता /विकासकर्ता /कंपनी अपनी पुस्तिकाओं /ब्रोशरों में यह दर्शाएं कि वे फ्लैटों / संपत्ति की बिक्री के लिए यदि आवश्यक हो तो बंधकग्राही बैंक से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी)/अनुमति प्रदान करेंगे। (d) बैंकों को यह भी सूचित किया जाता है कि वे उपर्युक्त शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करें और भवन निर्माता/ विकासकर्ता /कंपनी द्वारा उपर्युक्त अपेक्षाओं के पूरा किए जाने के बाद ही उन्हें निधि जारी करें। (e) उपर्युक्त प्रावधान आवश्यक परिवर्तनों सहित वाणिज्यिक स्थावर संपदा पर भी लागू होंगे। 7. स्थावर संपदा के लिए एक्सपोजर बैंकों को उचित रूप से सूचित किया गया है कि वे स्थावर संपदा ऋणों की कुल राशि पर अधिकतम सीमा, ऐसे ऋणों की एकल/समूह एक्सपोजर सीमा, मार्जिन, प्रतिभूति, चुकौती कार्यक्रम तथा पूरक वित्त की उपलब्धता के संबंध में विस्तृत विवेकपूर्ण मानदंड बनाएं तथा यह नीति बैंक के निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित होनी चाहिए। बैंक की नीती तैयार करते समय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी दिशानिर्देशों को ध्यान में रखना चाहिए। 8. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत आवास ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधारों संबंधी लक्ष्य, जिनमें रिपोर्टिंग अपेक्षाएं भी शामिल हैं, के प्रयोजन से आवास ऋण प्रदान करना "प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार" पर समय-समय पर यथा-संशोधित अनुदेशों के अधीन होगा। 9. इन्फ्रास्ट्रक्चर और किफायती दरों पर आवास का वित्तपोषण- बैंकों द्वारा दीर्घावधि बांड जारी करना "बैंकों द्वारा दीर्घावधि बांड जारी करना- इन्फ्रास्ट्रक्चर और किफायती दरों पर आवास का वित्तपोषण" पर 15 जुलाई 2014 के बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.25/08.12.014/2014-15 में उल्लिखित शर्तों के अधीन बैंक किफायती मकानों के लिए ऋण देने हेतु संसाधन जुटाने के लिए दीर्घावधि बांड जारी कर सकते हैं, जिनकी न्यूनतम परिपक्वता अवधि सात वर्ष होगी। यह सूचित किया जाता है कि बैंक, विशेषकर प्राकृतिक आपदाओं से भवनों की सुरक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा बनाई गई राष्टीय भवन निर्माण संहिता (एनबीसी) का कड़ाई से पालन करें। बैंक इस पहलू को अपनी ऋण नीतियों में शामिल करने पर विचार कर सकते हैं। बैंकों को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के दिशानिर्देशों को भी अपनाना चाहिए और अपनी ऋण नीतियों, प्रक्रियाओं और प्रलेखन के अंग के रूप में उन्हें उपयुक्त रीति से शामिल करना चाहिए। आवास वित्त पर मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
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