मास्टर परिपत्र - प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार- शहरी सहकारी बैंक - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार- शहरी सहकारी बैंक
आरबीआई/2014 -15/22 1 जुलाई 2014 मुख्य महाप्रबंधक महोदय/ महोदया, मास्टर परिपत्र - प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार- शहरी सहकारी बैंक कृपया शहरी सहकारी बैकों के लिए प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार देने से संबंधित संशोधित दिशा-निर्देश (www.rbi.org.in वेबसाइट पर उपलब्ध) पर 8 अक्तूबर 2013 का हमारा परिपत्र सं. शबैंवि केंका बीपीडी (पीसीबी) एमसी सं.18/09.09.001/2013-14 देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में उपर्युक्त विषय से संबंधित 30 जून 2014 तक जारी अनुदेशों / दिशा-निर्देशों को समेकित एवं अद्यतन करके परिशिष्ट में उल्लिखित किया गया है। भवदीय, (ए.के.बेरा) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर मास्टर परिपत्र
प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार – शहरी सहकारी बैंक 1. प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार – एक परिचय जुलाई 1968 में आयोजित राष्ट्रीय ऋण परिषद की बैठक में इस बात पर जोर दिया गया था कि वाणिज्य बैंक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र, अर्थात़् कृषि और लघु उद्योग क्षेत्र के वित्तपोषण हेतु ज्यादा प्रतिबद्धता दिखाएं। बाद में, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को अग्रिम से सम्बन्धित आंकड़ों के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मई 1971 में गठित अनौपचारिक अध्ययन दल की रिपोर्ट के आधार पर 1972 के दौरान प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के स्वरुप को औपचारिक अभिव्यक्ति प्रदान की गई । उक्त रिपोर्ट के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को अग्रिम की रिपोर्ट मंगवाने हेतु एक संशोधित विवरणी निर्धारित की और प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के विभिन्न वर्गों के अंतर्गत शामिल की जाने वाली योग्य मदों को इंगित करने के प्रयोजन से कतिपय दिशा-निर्देश भी जारी किये । हालांकि, प्रारम्भ में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधारों के अंतर्गत कोई विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गए थे , नवम्बर 1974 में बैंकों को सूचित किया गया कि वे मार्च 1979 तक अपने सकल अग्रिमों में इन क्षेत्रों को देय अग्रिमों का प्रतिशत बढ़ाकर 33 1/3 प्रतिशत कर दें। 1.2 केन्द्रीय वित्त मंत्री और सरकारी क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों के बीच मार्च 1980 में आयोजित एक बैठक में इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को देय अग्रिमों का अनुपात मार्च 1985 तक बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने हेतु बैंक लक्ष्य निर्धारित करें। बाद में, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार तथा 20 - सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम को बैंकों द्वारा लागू किये जाने विषयक तौर-तरीकों के निरुपण हेतु गठित कार्यकारी दल (अध्यक्षः डॉ. के.एस.कृष्णस्वामी) की सिफारिशों के आधार पर सभी वाणिज्य बैंकों को सूचित किया गया कि वे सकल बैंक अग्रिमों का 40 प्रतिशत प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार देने का लक्ष्य 1985 तक प्राप्त करें ।कृषि तथा कमज़ोर वर्गों की ऋण सहायता हेतु प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के दायरे में ही उप-लक्ष्य भी निर्दिष्ट किये गए थे ।तब से अब तक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत देय उधारों तथा विभिन्न बैंक समूहों पर लागू लक्ष्यों तथा उप-लक्ष्यों में कई बार परिवर्तन हुए हैं। 1.3 भारतीय रिज़र्व बैंक में गठित आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्षः श्री सी.एस.मूर्ति) द्वारा सितंबर 2005 में की गई सिफारिशों के आधार पर उक्त दिशानिर्देशों में इसके पहले वर्ष 2007 में संशोधन किया गया था। साथ ही, माइक्रो वित्त संस्थान (एमएफआइ) क्षेत्र में मामलों और मुद्दों के अध्ययन हेतु गठित रिज़र्व बैंक के केन्द्रीय बोर्ड की उप-समिति (अध्यक्ष: श्री वाय.एच.मालेगाम ) ने अन्य बातों के साथ-साथ यह सिफारिश की थी कि प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार संबंधी दिशानिर्देशों की समीक्षा की जाए। 1.4 तदनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के उधार संबंधी वर्तमान वर्गीकरण की पुनः समीक्षा करने और इस वर्गीकरण और संबंधित विषयों पर संशोधित दिशानिर्देश सुझाने के लिए अगस्त 2011 में एक समिति (अध्यक्ष एम.वी.नायर) गठित की थी। उक्त समिति की सिफारिशों की विभिन्न स्टेकधारियों के इंटरफेस एवं भारत सरकार, बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, उद्योगों के एसोसिएशनों, जनता एवं भारतीय बैंक संघ से प्राप्त टिप्पणियों/सुझावों के परिप्रेक्ष्य में जांच की गई और प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार पर 2 जुलाई 2012 के मास्टर परिपत्र शबैंवि बीपीडी (पीसीबी) एमसी सं.7/09.001/2012-13 का अधिक्रमण करते हुए 8 अक्तूबर 2013 को संशोधित दिशानिर्देश जारी किए गए। 2. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत श्रेणियां
उपर्युक्त श्रेणियों के अंतर्गत पात्र गतिविधियां पैरा 4 में निर्दिष्ट की गई हैं। 3. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र उधार के लक्ष्य/ उप-लक्ष्य 3.1 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लिए निर्धारित लक्ष्य समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) (कुल ऋण और अग्रिम माइनस (-) रिज़र्व बैंक तथा अन्य अनुमोदित वित्तिय संख्याओं के पास पुनः भुनाए गए बिल प्लस (+) 31 अगस्त 2007 की स्थिति के अनुसार एचटीएम वर्ग में गैर एसएलआर बांडों में किया गया निवेश) या तुलन पत्र से इतर एक्सपोज़र (ओबीई) के सममूल्य ऋणराशि, इनमें से जो भी उच्चतर हो, से सहबद्ध होगी। तुलनपत्र से इतर एक्सपोज़र के बराबर ऋण राशि की गणना करने के प्रयोजन के लिए बैंक वर्तमान एक्सपोजर प्रणाली का उपयोग करें। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लक्ष्यों / उप-लक्ष्यों के प्रयोजन के लिए अंतर-बैंक एक्सपोज़र, तुलन पत्र से इतर एक्सपोज़र सहित को हिसाब में नहीं लिया जाएगा। 3.2 शहरी सहकारी बैंकों के लिए प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत उधार के लक्ष्य / उप-लक्ष्य नीचे दिए गए हैं। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत उधार संबंधी विनिर्देश वेतन अर्जक बैंकों के लिए लागू नहीं है।
नोट करें: (i) बैंक एनबीसी में से प्रावधानों, उपचित ब्याज आदि जैसी राशि को न घटाएं या न ही निवल निर्धारण करें। (ii) बैंकों को सूचित किया जाता है कि 24 अगस्त 2013 को आरंभ होनेवाले पखवाड़े से बैंकों द्वारा 26 जुलाई 2013 की मूल तारीख के बाद जुटाई गई 3 वर्ष तथा उससे अधिक परिपक्वता अवधि वाली वृद्धिशील एफसीएनआर(बी) जमाराशियों तथा एनआरई जमाराशियों को सीआरआर तथा एसएलआर बनाए रखने से छूट होगी। वृद्धिशील एफसीएनआर(बी)/एनआरई जमाराशियों पर भारत में प्रदत्त अग्रिमों को भी, जो उक्त के अनुसार सीआरआर/एसएलआर अपेक्षाओं से छूट के लिए पात्र हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र से संबंधित ऋण के लक्ष्यों की गणना के लिए समायोजित निवल बैंक ऋण में शामिल नहीं किया जाएगा। (iii) समीक्षा के उपरांत यह निर्णय लिया गया है कि वृद्धिशील एफसीएनआर (बी)/एनआरई जमाराशियों को सीआरआर/एसएलआर बनाए रखने से प्रदत्त छूट को 14 जून 2014 से शुरू होने वाले रिपोर्टिंग पखवाड़े से वापस ले लिया जाएगा, अर्थात 26 जुलाई 2013 के आधार तिथि से 3 वर्ष या अधिक की परिपक्वता वाली तथा 13 जून 2014 को बकाया वृद्धिशील एफसीएनआर (बी) और एनआरई जमाराशियों की केवल पात्र राशियां, परिपक्वता/अवधिपूर्व आहरण होने तक, सीआरआर/एसएलआर छूट के लिए पात्र होंगी। साथ ही, वृद्धिशील एफसीएनआर(बी)/एनआरई जमाराशियों पर भारत में प्रदत्त अग्रिमों को भी, जो उक्त के अनुसार सीआरआर/एसएलआर अपेक्षाओं से छूट के लिए पात्र हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए ऋण के लक्ष्यों की गणना के लिए उनकी चुकौती होने तक समायोजित निवल बैंक ऋण में शामिल नहीं किए जाने के लिए पात्र होंगी। 4 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाली श्रेणियों का वर्णन 4.1.1 प्रत्यक्ष कृषि अलग-अलग किसानों (स्वयं सहायता समूहों या संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) अर्थात् अलग-अलग किसानों के समूहों सहित बशर्ते बैंक ऐसे वित्त का अलग से ब्योरा रखते हों) को कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों (डेरी उद्योग, मत्स्य पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधु-मक्खी पालन और रेशम उद्योग(ककून स्तर तक) (आदि) के लिए ऋण। निम्नलिखित कार्यकलापों के लिए अलग-अलग किसानों की कृषक उत्पादक कंपनियों सहित कारपोरेटों, साझेदारी फर्मों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों जैसे डेरी उद्योग, मत्स्य पालन,सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधु-मक्खी पालन आदि) में प्रत्यक्ष रूप से लगे किसानों की सहकारी समितियों की कुल सीमा प्रति उधारकर्ता `2 करोड़ रुपए तक ऋण: (i) किसानों को फसल उगाने के लिए अल्पावधि ऋण अर्थात् फसल ऋण । इसमें पारंपरिक / गैर-पारंपरिक बागान एवं उद्यान तथा संबद्ध गतिविधियां शामिल होंगी । (ii) कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण (अर्थात कृषि उपकरणों और मशीनरी की खरीद, खेत में सिंचाई तथा किए जानेवाले अन्य विकासात्मक कार्यकलाप एवं संबद्ध कार्यकलापों के लिए विकास ऋण) (iii) किसानों को फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद किए गए अपने कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), छंटाई तथा परिवहन के लिए ऋण। (iv) किसानों को 12 माह की अनधिक अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी / दृष्टिबंधक रखकर `50 लाख तक के अग्रिम, चाहे किसानों को फसल उगाने के लिए फसल ऋण दिए गए हों या नहीं। (v) कृषि प्रयोजन हेतु जमीन खरीदने के लिए छोटे और सीमांत किसानों को ऋण। (vi) गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त आपदाग्रस्त किसानों को उचित ऋणाधार के साथ दिये गए ऋण। (vii) अपने स्वयं के कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए किसानों को निर्यात ऋण। 4.1.2 अप्रत्यक्ष कृषि 4.1.2.1 निम्नलिखित कार्यकलापों के लिए अलग-अलग किसानों की कृषक उत्पादक कंपनियों सहित कारपोरेटों, साझेदारी फर्मों तथा कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों जैसे डेरी उद्योग, मत्स्य पालन,सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधु-मक्खी पालन, रेशिम उद्योग (ककून स्तर तक) यदि प्रत्यक्ष कृषि के अंतर्गत पात्र अग्रिम राशि प्रति उधारकर्ता के लिए कुल ऋण सीमा `2 करोड़ से अधिक है तो पूरे ऋण को कृषि को दिए गए अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में माना जाए। (i) किसानों को फसल उगाने अर्थात् फसल के लिए अल्पावधि ऋण। पारंपरिक / गैर-पारंपरिक बागान एवं उद्यान तथा संबद्ध गतिविधियां शामिल होंगी। (ii) कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापोंके लिए मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण (अर्थात कृषि उपकरणों और मशीनरी की खरीद, खेत में सिंचाई तथा किए जानेवाले अन्य विकासात्मक कार्यकलापों के लिए ऋण एवं संबद्ध कार्यकलापों के लिए विकास ऋण) (iii) किसानों को फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद किए गए अपने कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), छंटाई तथा परिवहन के लिए ऋण। (iv) किसानों को 12 माह की अनधिक अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी दृष्टिबंधक रखकर `50 लाख तक के अग्रिम, चाहे किसानों को फसल उगाने के लिए फसल ऋण दिए गए हों या नहीं। (v) कॉरपोरेटों, भागीदारी फर्म तथा संस्थाओं को अपने स्वंय के कृषि उत्पाद के निर्यात के लिए निर्यात क्रेडिट। (vi) छोटे एवं सीमांत कृषकों द्वारा कंपनी अधिनियम, 1956 के भाग IXA के तहत विशेष रूप से स्थापित की गई उत्पादक कंपनियों के लिए कृषि एवं संबद्ध कार्यकलापों हेतु `5 करोड़ तक के ऋण। 4.1.2.2 अन्य अप्रत्यक्ष कृषि ऋण (i) उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों, बीजों पशु खाद्य, मुर्गी आहार निविष्टियों आदि की खरीद और वितरण हेतु व्यापारी/ विक्रेता को प्रति उधारकर्ता `5 करोड़ तक के ऋण। (ii) एग्री क्लिनिक और एग्री बिजनेस की स्थापना के लिए वित्त। (iii) कस्टम सेवा इकाइयों को अग्रिम, जिनका प्रबंध व्यक्तियों, संस्थाओं या ऐसे संगठनों द्वारा किया जाता है, जिनके पास ट्रैक्टरों, बुलडोज़रों, कुआं खोदने के उपस्करों, थ्रेशर, कंबाइन्स आदि का दस्ता है और वे किसानों का काम ठेके पर करते हों। (iv) भंडारण सुविधाओं का निर्माण और उन्हें चलाने कृषि उत्पाद / उत्पादनों के भंडारण के लिए बनाई गई कोल्ड स्टोरेज इकाइयों सहित, (भंडारघर, बाज़ार प्रांगण, गोदाम और साइलो) चाहे वे कहीं भी स्थित हों, के लिए ऋण। यदि स्टोरेज इकाई को लघु उद्योग इकाई / व्यष्टि या लघु उद्यम के रुप में पंजीकृत किया गया हो, तो ऐसी इकाइयों को दिए गए ऋण को लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाएगा। 4.2. माइक्रो (व्यष्टि) और लघु उद्यम माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा 29 सितम्बर 2006 के एस.ओ. 1642(ई) द्वारा अधिसूचित प्रकार से विनिर्माण सेवा उद्यम के लिए संयंत्र और मशीनरी/उपकरणों में निवेश की सीमाएं निम्नानुसार हैं :
विनिर्माण और सेवा दोनों के माइक्रो और लघु उद्यमों को दिए जानेवाले बैंक ऋण प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत निम्नानुसार वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे । 4.2.1 प्रत्यक्ष वित्त 4.2.1.1 विनिर्माण उद्यम उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट ऐसे माइक्रो और लघु उ़द्यमों के लिए ऋण जो विनिर्माण या वस्तुओं के उत्पादन में शामिल हैं तथा भारत सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित गतिविधियों के लिए दिए जाने वाले ऋण को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत ऋण के रूप में वर्गीकरण किए जाने के लिए पात्र होंगे। मालों के विनिर्माण करने और तैयार करने में शामिल एमएसएमई उद्यमों को एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत दिए जाने वाले ऋण, प्रत्यक्ष वित्त के रूप में प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के तहत वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे। 4.2.1.2 खाद्यान्न तथा एग्रो प्रसंस्करण के लिए ऋण खाद्यान्न तथा एग्रो प्रसंस्करण के लिए ऋणों को माइक्रो और लघु उद्यमों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाएगा बशर्ते यूनिट एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 में किए गए प्रावधान के अनुसार माइक्रो और लघु उद्यमों के लिए निर्धारित निवेश मानदंड पूरा करते हों। 4.2.1.3 सेवा उद्यम एमएसएमईडी अधिनियम 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित और सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे माइक्रो और लघु उद्यमों को प्रति यूनिट `5 करोड़ तक का बैंक ऋण। 4.2.1.4 एमएसई यूनिटों (विनिर्माण और सेवा दोंनों) को उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं/सेवाओं के निर्यात के लिए निर्यात ऋण। 4.2.1.5 खादी और ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआई) परिचालनों के आकार, अवस्थिति तथा संयंत्र और मशीनरी में मूल निवेश की राशि पर ध्यान दिए बगैर खादी-ग्राम उद्योग क्षेत्र की ईकाइयों को प्रदान सभी अग्रिम। ऐसे अग्रिम प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत माइक्रो एवं लघु उद्यम क्षेत्र के माइक्रो उद्यम के लिए नियत उप-लक्ष्य (60 प्रतिशत) के अधीन विचार करने के लिए पात्र होंगे। 4.2.2 अप्रत्यक्ष वित्त i) कारीगरों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादन के विपणन के विकेंद्रीकृत सेक्टर को सहायता प्रदान करने वाले व्यक्तियों को ऋण। ii) विकेंद्रित सेक्टर अर्थात् कारीगरॉ तथा ग्राम और कुटीर उद्योग के उत्पादकों की सहकारी समितियों को ऋण। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित शिक्षा के प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों को भारत में अध्ययन के लिए ` 10 लाख रुपए तक का ऋण और विदेश में अध्ययन के लिए ` 20 लाख तक का ऋण। संस्थाओं को प्रदान किए गए ऋण प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र हेतु अग्रिम के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र नहीं होंगे। 4.4.व्यष्टि ऋण: प्रति उधारकर्ता के लिए ` 50,000 तक की राशि या अग्रिमों पर अधिकतम गैर-जमानती स्वीकार्य सीमा जो भी कम है, के ऋण और इसी सीमा के अंतर्गत अन्य वित्तीय सेवाएं और उत्पाद उपलब्ध कराना शामिल होगा।
4.6.1 बैंकों द्वारा व्यक्तियों को सीधे दिए जानेवाले ऋण जो प्रति उधारकर्ता ` 50,000/- से अधिक न हो। 4.6.2 आपदा ग्रस्त व्यक्तियों (पहले ही III (1.1) (vi) के अंतर्गत शामिल किसानों को छोड़कर) को उनके गैर संस्थागत ऋणदाताओं के कर्जं की पूर्व अदायगी के लिए प्रति उधारकर्ता को दिए जाने वाले ऋण जो ` 50,000/- से अधिक न हो। 4.6.3 स्वयं सहायता समूह /संयुक्त देयता समूह को कृषि या उससे संबंधित गतिविधियां के लिए दिए गए ऋण को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम समझा जाएगा । साथ ही स्वयं सहायता समूह /संयुक्त देयता समूह को ` 50,000/- तक दिए गए अन्य ऋण को माइक्रो क्रेडिट समझा जाएगा तथा वह प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम ही समझा जाएगा। 4.6.4 अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठनों को इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति और/या उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत ऋण। निम्नलिखित उधारकर्ताओं को दिए जानेवाले प्राथमिताकता प्राप्त क्षेत्र ऋण कमज़ोर वर्गो की श्रेणी के अंतर्गत शामिल हैं : ए) छोटे और सीमान्त किसान; बी) ऐसे करीगरों, ग्रामीण और कुटीर उद्योग जिनकी व्यक्तिगत ऋण सीमा `50,000/- से अधिक न हो; सी) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियां तथा महिलाएं; डी) ऐसे व्यक्तियों कों शैक्षिक ऋण जिनकी आय ` 5000/- से अधिक नहीं है। ई) स्वयं सहायता समूहों को ऋण; एफ) गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋणग्रस्त आपदाग्रस्त किसानों को ऋण; जी) गैर संस्थागत उधारदाताओं के प्रति ऋण ग्रस्त किसानों को छोड़कर व्यक्तियों को अपने ऋण की पूर्व अदायगी हेतु 50,000/- तक के ऋण। एच) समय-समय पर भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किये जाने वाले अल्प संख्यांक समुदाय के व्यक्तियों को दिये गये ऋण। उन राज्यों में जहां अल्पसंख्यक समुदायों में से एक समुदाय अधिसूचित, वस्तुत: मेजॉरिटी में है वहां मद सं (एच) में केवल अन्य अधिसूचित अल्पसंख्यक ही शामिल होंगे। ये राज्य /संघशासित क्षेत्र हैं - जम्मू और कश्मीर, पंजाब मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप। प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कारीगरों और हस्त शिल्पियों के साथ-साथ अल्प संख्यक समुदाय के सब्जी बेचनेवालों, बैलगाडी चलानेवालों, चर्मकारों आदि को ऋण की आपूर्ति को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए। इस संबंध में अल्प संख्यक समुदाय में सिख, मुस्लिम, ख्रिश्चियन, जोरोस्ट्रीयन और बुद्धिस्ट शामिल हैं। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के समग्र लक्ष्य तथा कमजोर वर्ग को 25% के उप-लक्ष्य के भीतर ऋण का न्यायोचित भाग अल्प संख्यक समुदाय को भी मिल रहा है यह सुनिश्चित करने के लिए उचित सावधानी बरते। 6. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र - डाटा रिपोर्टिंग प्रणाली (i) प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को सिफारिश किए गए उक्त लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कारगर उपाय करने चाहिए और प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र ऋण की मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से निगरानी करनी चाहिए। (ii) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने पर यथोचित ध्यान देना सुनिश्चित करने के लिए यह वांच्छनीय है कि कार्यनिष्पादन की आवधिक जांच की जाए। इस प्रयोजन के लिए सामान्य पुनरीक्षा के अलावा जैसे कि बैंक आवधिक आधार पर कर रहें हैं, बैंकों के निदेशक मंडल द्वारा छमाही आधार पर विशिष्ट समीक्षा की जानी चाहिए। तद्नुसार, बैंक उक्त अवधि के दौरान पिछली तिमाही की तुलना में घट-बढ़ दर्शाते हुए बैंक के कार्यनिष्पादन का विस्तृत लेखाजोखा अर्धवार्षिक आधार पर प्रत्येक वर्ष के 30 सितंबर और 31 मार्च को, (विवरण I) निदेशक मंडल को प्रस्तुत करें। (iii) साथ ही 31 मार्च की स्थिति के अनुसार प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के कार्यनिष्पादन की वार्षिक समीक्षा निदेशक मंडल के समक्ष (विवरण II भाग अ) अगले वित्तीय वर्ष की 15 तारीख तक प्रस्तुत करें। 31 मार्च की स्थिति के अनुसार प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के कार्यनिष्पादन की वार्षिक समीक्षा भी निदेशक मंडल के प्रेक्षणों के साथ बैंक के कार्यनिष्पादन में सुधार लाने के लिए किए गए प्रस्ताव/उपायों का उल्लेख करके 31 मार्च की स्थिति के अनुसार वार्षिक समीक्षा की एक प्रति (विवरण II भाग अ से उ)भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को भेजी जाए। रिपोर्ट संबंधित अवधि की समाप्ति से 15 दिनों के अंदर क्षेत्रीय कार्यालय को पहुंच जानी चाहिए। (iv) बैंकों को 31 मार्च की स्थिति के अनुसार कृषि एवं संबंधित कार्यकलापों को दिए गए प्रत्यक्ष वित्त और अग्रिम दर्शानेवाली स्थिति 15 दिनों के अंदर विवरण III (भाग अ तथा आ) में उनके क्षेत्र से संबंधित भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत करना चाहिए। (v) संबंधित आंकड़ो के समेकन को सुगम बनाने के लिए बैंक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र की मदों के उल्लेख के लिए एक रजिस्टर रखें तथा दूसरे रजिस्टर में प्रत्येक कार्यकलाप के लिए एक अलग संविभाग बना कर कमजोर वर्ग के अंतर्गत दिए कुल अग्रिमों का ब्योरा दर्ज करें ताकि प्रत्येक कार्यकलाप के अंतर्गत प्रत्येक लाभार्थी को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र और कमजोरवर्ग के अंतर्गत दिए गए कुल अग्रिमों की जानकारी किसी भी समय आसानी से उपलब्ध हो सके। इन रजिस्टरों का प्रोफार्मा भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जानेवाली वार्षिक विवरणी के अनुसार होना चाहिए। 7. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण हेतु सामान्य दिशा-निर्देश बैंकों से अपेक्षित है कि वे प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी श्रेणियों के संबंध में निम्नलिखित सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करें । 7.1. सेवा प्रभार रु 25,000/- तक के प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र ऋणों पर तदर्थ सेवा प्रभार / निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाए। 7.2. प्राप्ति, स्वीकृति/ नामंजूर/ वितरण रजिस्टर बैंक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र ऋणों का एक रजिस्टर/ इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारीख के अलावा मंजूरी/ नामंजूरी/ वितरण आदि का कारणों सहित उल्लेख किया जाए। सभी निरीक्षण कर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर/ इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड उपलब्ध करवाया जाए। 7.3. ऋण आवेदनों की पावती जारी करना बैंकों द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र ऋणों के अंतर्गत प्राप्त आवेदनों की पावती दी जाए। बैंक बोर्ड एक ऐसी समय सीमा निर्धारित करें जिसके पहले बैंक आवेदकों को अपना निर्णय लिखित रूप में सूचित करेंगे। छोटे और सीमांत किसान: एक हेक्टेयर भूधारक किसान सीमांत किसान माने जाते हैं। एक हेक्टेयर परंतु 2 हेक्टेयर से कम के भूधारक किसान छोटे किसान के रुप में माने जाते हैं। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र ऋण के प्रयोजन के लिए छोटे और सीमांत किसान की परिभाषा में भूमिहीन कृषि श्रमिक, काश्तकार, मौखिक पट्टेदार तथा बंटाइदार शामिल हैं जिनकी भूधारिता का अंश छोटे और सीमांत किसान की ऊपर निर्दिष्ट सीमाओं के भीतर हैं। अल्पसंख्यक सघन जिलों की राज्यवार सूची
मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
अन्य परिपत्रों से लिए गए प्राथमिकताप्राप्त क्षत्र से संबंधित अनुदेशों को समेकित करते हुए मास्टर परिपत्र में दिए गए हैं, जिनकी सूची निम्नानुसार है:
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