मास्टर निदेश – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण (दिसंबर 04, 2018 में अद्यतन) - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर निदेश – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण (दिसंबर 04, 2018 में अद्यतन)
आरबीआई/विसविवि/2016-17/33 7 जुलाई 2016 अध्यक्ष/ प्रबंध निदेशक/ महोदय / महोदया, मास्टर निदेश – प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार पर बैंकों को समय-समय पर कई दिशानिर्देश/ अनुदेश/ निदेश जारी किए हैं। संलग्न मास्टर निदेश में इस विषय पर अद्यतन दिशानिर्देश/ अनुदेश/ परिपत्र समाविष्ट किए गए हैं। इस मास्टर निदेश में समेकित परिपत्रों की सूची परिशिष्ट में दी गई है। निदेश को समय-समय पर जब नए अनुदेश जारी किए जाते हैं तब अद्यतन किया जाएगा। इस मास्टर निदेश को रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर रखा गया है। 2. दिनांक 23 अप्रैल 2015 के हमारे परिपत्र द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार पर दिशानिर्देश संशोधित किए गए थे। दिनांक 23 अप्रैल 2015 से पहले जारी दिशा-निर्देशों के अधीन स्वीकृत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के ऋण उनकी चुकौती/ अवधि पूर्ण होने/ नवीकरण तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाते रहेंगे। भवदीय, (गौतम प्रसाद बोरा) मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35 ए द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक इस बात से संतुष्ट होने पर कि जनहित में ऐसा करना आवश्यक और समीचीन है, एतद्द्वारा, इसके बाद विनिर्दिष्ट किए गए निदेश जारी करता है। अध्याय - I 1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ (क) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक (प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार – लक्ष्य और वर्गीकरण) निदेश, 2016 कहलाएंगे। (ख) ये निदेश भारतीय रिज़र्व बैंक की आधिकारिक वेबसाइट पर रखे जाने के दिन से प्रभावी होंगे। 2. प्रयोज्यता इन निदेशों के उपबंध भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में कार्य करने के लिए लाइसेंसीकृत प्रत्येक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक {क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) और लघु वित्त बैंक को छोड़कर} पर लागू होंगे। 3. परिभाषा/ स्पष्टीकरण (क) इन निदेशों में, जब तक कि प्रसंग से अन्यथा अपेक्षित न हो, दिए गए शब्दों (टर्मस) के अर्थ वही होंगे जो नीचे विनिर्दिष्ट हैं: i. ऑन लेंडिंग का आशय है बैंकों द्वारा पात्र मध्यस्थ संस्थाओं (इंटरमिडियरीज) को केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र आस्तियां निर्मित करने के लिए आगे ऋण प्रदान करने हेतु स्वीकृत ऋण। इस प्रकार निर्मित प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र आस्तियों की औसत परिपक्वता बैंक ऋण के परिपक्व हो जाने के साथ-साथ समाप्त होनेवाली हो। ii. आकस्मिक देयताएं/ तुलन-पत्र से इतर मदें प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य की उपलब्धि का भाग नहीं होती हैं। तथापि, 20 से कम शाखा वाले विदेशी बैंकों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्यों की प्राप्ति की गणना के प्रयोजन के लिए प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के साथ पात्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र गतिविधियों के लिए दिए गए तुलन-पत्र से इतर मदों की ऋण सममूल्य राशि की गणना करने का विकल्प है। इस मामले में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्यों की गणना के प्रयोजन के लिए सभी तुलन-पत्र से इतर मदों (अंतर बैंक को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और गैर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र दोनों ही) की ऋण सममूल्य राशि को एएनबीएस में डिनामनेटर में जोड़ा जाए। iii. तुलन पत्र से इतर अंतर बैंक एक्सपोजरों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्यों के लिए तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजरों के ऋण सममूल्य की गणना हेतु हिसाब में नहीं लिया जाता है। iv. "सर्व समावेशक ब्याज" शब्द से आशय है ब्याज (प्रभावी वार्षिक ब्याज), प्रोसेसिंग शुल्क और सेवा प्रभार। (ख) बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत प्रदान किए जाने वाले ऋण अनुमोदित प्रयोजनों के लिए होते हैं और उसके अंतिम उपयोग पर निरंतर निगरानी रखी जाती है। बैंकों को इस संबंध में उचित आंतरिक नियंत्रण और प्रणालियां स्थापित करनी चाहिए। (ग) यहाँ परिभाषित न की गई अन्य सभी अभिव्यक्तियों के आशय, यथास्थिति वही होंगे, जो बैंककारी विनियमन अधिनियम अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, अथवा किसी अन्य सांविधिक संशोधन अथवा उनके पुन: अधिनियमन के अंतर्गत विनिर्दिष्ट किये जाएँ अथवा वाणिज्यिक शब्दावली में प्रयुक्त हैं। अध्याय – II 4. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत श्रेणियां निम्नानुसार है
उपर्युक्त श्रेणियों के अंतर्गत पात्र गतिविधियों के ब्योरे पैरा III में निर्दिष्ट किए गए हैं। 5. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए लक्ष्य/ उप-लक्ष्य (i) भारत में कार्यरत सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए प्राथमिकता- प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत निर्धारित लक्ष्य और उप-लक्ष्य नीचे दिए गए हैं :
(ii) ऐसे विदेशी बैंक जिनकी 20 से कम शाखाएं हैं को निम्नानुसार चरणबद्ध रूप में 40 प्रतिशत का कुल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य प्राप्त करना है :-
वर्ष 2016-17 से 2019-20 तक प्रति वर्ष एएनबीसी के 2 प्रतिशत का अतिरिक्त प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने का लक्ष्य निर्यात से इतर अन्य क्षेत्रों को उधार दे कर प्राप्त करना है। इन बैंकों के लिए उप-लक्ष्य यदि 2020 के बाद लागू करने होंगे तो उस पर यथासमय निर्णय लिया जाएगा। (iii) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/उप-लक्ष्यों की प्राप्ति की गणना पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख को एएनबीसी अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो, के आधार पर की जाएगी। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के प्रयोजन के लिए एएनबीसी से आशय है भारत में बकाया बैंक ऋण [भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 42 (2) के अंतर्गत फार्म ‘ए’ की मद सं.VI में यथा निर्धारित़] में से घटाए गए रिज़र्व बैंक और अन्य अनुमोदित वित्तीय संस्थाओं के पास पुन: भुनाए गए बिल अधिक परिपक्वता के लिए धारित (एचटीएम) श्रेणी के अंतर्गत अनुमत गैर एसएलआर बांडों/डिबेंचरों अधिक ऐसे अन्य श्रेणियों में किए गए निवेश जो प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के भाग के रूप में माने जाने के पात्र हों (अर्थात प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश) को जोड़ा जाए। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्य/उप-लक्ष्यों को प्राप्त न करने के बदले में आरआईडीएफ और नाबार्ड, एनएचबी और सिडबी और मुद्रा लि. के पास रखी अन्य निधियों के अंतर्गत बकाया जमाराशियां एएनबीसी का भाग बनेंगी। रिजर्व बैंक के 31 जनवरी 2014 के परिपत्र डीबीओडी.सं.आरईटी.बीसी.93/12.01.001/2013-14 के साथ पठित 14 अगस्त 2013 के परिपत्र डीबीओडी सं.आरईटी.बीसी.36/12.01.001/2013-14 और 6 फरवरी 2014 को जारी डीबीओडी मेलबाक्स स्पष्टीकरण के अनुसार सीआरआर/ एसएलआर अपेक्षाओं से छूट प्राप्त वृद्धिशील एफसीएनआर (बी)/ एनआरई जमाराशियां जिनके आधार पर भारत में अग्रिम दिए गए हैं, को उनकी चुकौती किए जाने तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्यों की गणना के लिए एएनबीसी से छोड दिया जाएगा। रिज़र्व बैंक के 15 जुलाई 2014 के परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.25/08.12.014/2014-15 के अनुसार बुनियादी संरचना और किफायती आवास के लिए दीर्घावधि बाण्ड जारी करने के कारण छूट के लिए पात्र राशि को भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार के लक्ष्यों की गणना के लिए एएनबीसी से छोड दिया जाएगा। एएनबीसी की गणना के प्रयोजन हेतु भारत सरकार द्वारा जारी किए गए पुनर्पूंजीकरण बांड में, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा किए गए निवेश को शामिल नहीं किया जाएगा। तुलनपत्र से इतर एक्सपोजरों के सममूल्य राशि के ऋण की गणना के लिए बैंक हमारे बैंक के बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा एक्सपोजर मानदंडों पर जारी मास्टर परिपत्र से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) की गणना
यह देखा गया है कि कुछ बैंक उपर्युक्त प्रकार से बैंक ऋण की रिपोर्टिंग में कारपोरेट/ प्रधान कार्यालय स्तर पर विवेकसम्मत बट्टे खाते डाली गई राशि को घटाते हैं। ऐसे मामलों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और अन्य सभी उप क्षेत्रों को बैंक ऋण जो इस प्रकार बट्टे खाते डाला गया हो, को भी प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र और उप-लक्ष्य की प्राप्ति में से श्रेणी-वार घटाया जाना चाहिए। सभी प्रकार के ऋण, निवेश अथवा ऐसी अन्य मदें जिन्हें प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्य / उप-लक्ष्य के अंतर्गत प्राप्ति के लिए पात्र माना गया हो, समायोजित निवल बैंक ऋण का भी एक भाग होना चाहिए। अध्याय – III कृषि क्षेत्र को उधार को परिभाषित किया गया है ताकि उसमें (i) कृषि ऋण (जिसमें किसानों को अल्पावधि फसल ऋण और मध्यावधि / दीर्घावधि ऋण शामिल होगा) (ii) कृषि बुनियादी संरचना और (iii) संबद्ध गतिविधियों को शामिल किया जा सके। तीन उप श्रेणियों के अंतर्गत पात्र क्रियाकलापों की सूची नीचे दी गई है :
उप लक्ष्य की गणना के लिए छोटे और सीमांत किसानों में निम्नलिखित शामिल होंगे :-
7. माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) 7.1. सूक्ष्म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा 9 सितम्बर 2006 के एस.ओ.1642(ई) द्वारा अधिसूचित प्रकार से विनिर्माण/ सेवा उद्यम के लिए संयंत्र और मशीनरी/ उपकरणों में निवेश की सीमाएं निम्नानुसार हैं :
विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों के माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों को दिए जानेवाले बैंक ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत निम्नानुसार वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे । 7.2. विनिर्माण उद्यम उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट और सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित प्रकार से किसी उद्योग के लिए विनिर्माण या वस्तुओं के उत्पादन में लगी माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम संस्थाएं। विनिर्माण उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी में निवेश के अनुसार परिभाषित किया गया है। 7.3. सेवा उद्यम एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित एवं सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे एमएसएमई को दिए गए सभी बैंक ऋण बिना किसी क्रेडिट सीमा के प्राथमिकता-प्राप्त के अंतर्गत वर्गीकरण हेतु पात्र होंगे । 7.4. फैक्टरिंग लेनदेन (i) बैंकों, जिनसे फैक्टरिंग कारोबार विभागीय रूप से होता है, द्वारा ‘दायित्व सहित’ आधार पर किए जाने वाले फैक्टरिंग लेनदेन, जहां फैक्टरिंग लेनदेन में ‘समनुदेशक’ (असाईनर) संयंत्र और मशीनरी/ उपकरण में निवेश के लिए तदनुरूपी सीमाओं तथा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के वर्गीकरण के लिए लागू अन्य दिशानिर्देशों के अधीन माइक्रो, लघु अथवा मध्यम उद्यम हो, बैंकों द्वारा रिपोर्टिंग तारीख को ऐसे बकाया फैक्टरिंग पोर्टफोलियो को एमएसएमई श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है। (ii) बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा ‘बैंकों द्वारा फैक्टरिंग सेवाओं का प्रावधान – समीक्षा’ पर जारी दिनांक 30 जुलाई 2015 के परिपत्र बैंविवि.सं.एफएसडी.बीसी.32/24.01.007/2015-2016 के पैरा 9 के अनुसार उधारकर्ता का बैंक अन्य बातों के साथ-साथ दोहरे वित्तपोषण/ गणना से बचने के लिए, उधारकर्ता से आवधिक आधार पर “फैक्टर” प्राप्य राशियों के संबंध में प्रमाणपत्र प्राप्त करेगा। साथ ही, “फैक्टर” को चाहिए कि वह दोहरे वित्तपोषण से बचने का दायित्व लेते हुए संबंधित बैंकों को उधारकर्ता को स्वीकृत सीमाओं तथा “फैक्टर ऋण” के ब्योरों के बारे में अवश्य सूचित करें। (iii) ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (TReDS) के माध्यम से किए जाने वाले फैक्टरिंग लेनदेन भी, प्लेटफॉर्म के शुरू हो जानेपर, प्राथमिकता प्राप्त -क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे। 7.5. खादी और ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआई) खादी और ग्राम उद्योग (केवीआई) क्षेत्र की इकाइयों को दिए गए सभी ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत माइक्रो उद्योगों हेतु नियत 7.5 प्रतिशत के उप-लक्ष्य के अधीन वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे। 7.6. एमएसएमई को अन्य वित्त (i) काश्तकारों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादन के विपणन के विकेंद्रीकृत सेक्टर को सहायता प्रदान करने में निहित संस्थाओं को ऋण। (ii) विकेंद्रित सेक्टर अर्थात काश्तकार, ग्राम और कुटीर उद्योग के उत्पादकों की सहकारी समितियों को ऋण। (iii) एमएफआई को आगे इस परिपत्र के पैरा 19 में निर्दिष्ट शर्तों के अनुसार एमएसएमई सेक्टर को ऋण देने के लिए बैंकों द्वारा स्वीकृत ऋण। (iv) सामान्य क्रेडिट कार्ड (वर्तमान में प्रचलित और व्यक्तियों की कृषि से इतर उद्यमीय क्रेडिट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले काश्तकार क्रेडिट कार्ड, लघु उद्यमी कार्ड, स्वरोजगार क्रेडिट कार्ड, तथा बुनकर कार्ड आदि सहित) के अंतर्गत बकाया ऋण। (v) दिनांक 24 सितंबर 2018 को वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवाएं विभाग, द्वारा जारी संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार प्रधान मंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) खाताधारकों के लिए ओवरड्राफ्ट की सीमा को बढ़ाकर ₹ 10,000/- कर दिया गया है, 18 से 60 वर्ष की आयु सीमा को 18 से 65 वर्ष के रूप में संशोधित किया गया है तथा ₹ 2,000/- तक के ओवरड्राफ्ट हेतु कोई शर्त नहीं राखी गई है। ये ओवरड्राफ्ट माइक्रो उद्यमों को उधार देने हेतु जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है उस हेतु उपलब्धि के रूप में माने जाएँगे। (vi) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण सिडबी और मुद्रा लि. के पास बकाया जमाराशियां। 7.7. यह सुनिश्चित करने के लिए कि एमएसएमई केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की स्थिति के लिए पात्र बने रहने हेतु लघु और मध्यम उद्यम इकाई नहीं रहती है, एमएसएमई यूनिट को संबंधित एमएसएमई श्रेणी से अधिक विकसित होने के बाद तीन वर्षों तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार का लाभ मिलना जारी रहेगा। नीचे दिए गए विवरणों के अनुसार दिया गया निर्यात ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के रुप में वर्गीकृत किया जाएगा।
निर्यात ऋण में हमारे बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा रुपया/ विदेशी मुद्रा निर्यात ऋण और निर्यातकों को ग्राहक सेवा पर जारी मास्टर परिपत्र में परिभाषित किए गए अनुसार पोतलदान-पूर्व और पोतलदानोत्तर निर्यात ऋण (तुलन पत्र से इतर मदों को छोड़कर) शामिल है। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित शिक्षा के प्रयोजनों के लिए व्यक्तियों को ₹ 1 मिलियन तक का ऋण चाहे स्वीकृत राशि कुछ भी हो, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लिए पात्र माना जाएगा। 10.1 प्रति परिवार निवासी यूनिट की खरीद/ निर्माण करने के लिए व्यक्तियों को महानगरीय केंद्रों (एक मिलियन और उससे अधिक की आबादी वाले) में ₹ 3.5 मिलियन तक के ऋण और अन्य केंद्रों में ₹ 2.5 मिलियन तक के ऋण बशर्ते निवासी यूनिट की समग्र सीमा महानगरीय केंद्रों और अन्य केंद्रों में क्रमश: ₹ 4.5 मिलियन और ₹ 3 मिलियन से अधिक न हो। बैंक के अपने कर्मचारी को स्वीकृत ऋण को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा। चूंकि ऐसे आवास ऋण जो दीर्घावधि बांड से समर्थित होते हैं को एएनबीसी से छूट प्राप्त हैं, बैंकों को या तो व्यक्तियों को महानगरीय केंद्रों में ₹3.5 मिलियन तक के आवास ऋण और अन्य केंद्रों में ₹ 2.5 मिलियन तक के आवास ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत शामिल करने चाहिए अथवा एएनबीसी से छूट का लाभ लेना चाहिए परंतु दोनों की अनुमति नहीं होगी। 10.2 परिवारों के क्षतिग्रस्त निवासी यूनिटों की मरम्मत के लिए महानगरीय केंद्रों में ₹ 0.5 मिलियन तक और अन्य केंद्रों में ₹ 0.2 मिलियन तक का ऋण। 10.3 किसी सरकारी एजेंसी को निवासी यूनिटों के निर्माण अथवा गंदी बस्ती हटाने और गंदी बस्ती में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए अधिकतम सीमा ₹ 1 मिलियन प्रति निवास यूनिट की शर्त पर बैंक ऋण। 10.4 केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) और निम्न आय समूह (एलआईजी) के लोगों के लिए मकान बनवाने के प्रयोजन संबंधी आवास परियोजनाओं हेतु मौजूदा पारिवारिक आय सीमा वार्षिक ₹ 1 मिलियन को प्रधान मंत्री आवास योजना के तहत निर्दिष्ट आय मानदंडों के साथ संरेखण करते हुए उसे ईडब्लूएस के लिए ₹ 0.3 मिलियन लाख प्रति वर्ष और एलआईजी के लिए ₹ 0.6 मिलियन प्रति वर्ष के रूप में संशोधित किया गया है। 10.5 एनएचबी द्वारा उनके पुनर्वित्त के लिए अनुमोदित आवास वित्त कंपनी (एचएफसी) को आगे अलग-अलग निवासी यूनिटों की खरीद / निर्माण / पुन: निर्माण अथवा गंदी बस्ती हटाने और गंदी बस्ती में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए ऋण देने के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 1 मिलियन की सकल ऋण सीमा की शर्त पर दिए गए बैंक ऋण। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण के अंतर्गत एचएफसी को ऋण की पात्रता निरंतर आधार पर अलग-अलग बैंकों के कुल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार के पांच प्रतिशत तक सीमित है। बैंक ऋणों की समाप्ति अवधि एचएफसी द्वारा दिए जानेवाले ऋणों की औसत परिपक्वता के साथ-साथ समाप्त होनेवाली होनी चाहिए। बैंकों को आधारभूत संविभाग के उधारकर्ता वार आवश्यक ब्योरे बनाए रखने चाहिए। 10.6 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण एनएचबी के पास रखी बकाया जमाराशियां। 11.1 टियर II से टियर VI के केंद्रों में घरेलू स्वच्छता-गृहों के निर्माण/ नवीकरण और घरेलू स्तर पर जल आपूर्ति में सुधार सहित स्कूल, स्वास्थ्य रक्षा सुविधा, पेयजल सुविधा और स्वच्छता सुविधाओं, हेतु सामाजिक बुनियादी संरचना के निर्माण के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 50 मिलियन की सीमा तक के बैंक ऋण। 11.2 इस परिपत्र के पैरा 19 में निर्धारित मानदंड के अधीन जल और स्वच्छता सुविधाओं के लिए व्यक्तियों और एसएचजी/ जेएलजी के सदस्यों को भी आगे उधार देने के लिए माइक्रो वित्त संस्थाओं (एमएफआई) को दिया गया बैंक ऋण ‘सामाजिक बुनियादी संरचना’ के अंतर्गत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के रूप में वर्गीकरण के लिए पात्र होगा। सौर आधारित बिजली जनित्र, बायो मास आधारित बिजली जनित्र, पवन मिल, माइक्रो-हैडल संयंत्र और रास्ते पर बत्ती लगाने की प्रणाली और सुदूर गांव में विद्युतिकरण जैसे गैर पारंपरिक ऊर्जा आधारित सार्वजनिक उपयोग के प्रयोजन के लिए उधारकर्ताओं को ₹ 150 मिलियन की सीमा तक के बैंक ऋण। अलग-अलग परिवारों को प्रति उधारकर्ता के लिए एक मिलियन रुपया की ऋण सीमा होगी। 13.1 बैंकों द्वारा व्यक्तियों और उनके एसएचजी/ जेएलजी को सीधे दिए जानेवाले प्रति उधारकर्ता ₹ 50,000/- से अनधिक के ऋण, बशर्ते उधारकर्ता की घरेलू वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 0.1 मिलियन से अनधिक हो और गैर-ग्रामीण क्षेत्रों में यह ₹ 0.16 मिलियन से अधिक न हो। 13.2 आपदाग्रस्त व्यक्तियों (पहले ही 6(6.1) क (v) के अंतर्गत शामिल किसानों को छोड़कर) को उनके गैर संस्थागत ऋणदाताओं के कर्जं की पूर्व अदायगी के लिए प्रति उधारकर्ता ₹ 0.1 मिलियन से अनधिक के ऋण। 13.3 अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठनों को इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति और/या उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत ऋण। 14. कमज़ोर वर्ग निम्नलिखित उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले प्राथमिताकता-प्राप्त क्षेत्र ऋण कमज़ोर वर्गो की श्रेणी के अंतर्गत शामिल हैं :
ऐसे राज्य जहां अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय वास्तव में बहुसंख्यक है, मद (12) में केवल अन्य अधिसूचित अल्पसंख्यकों का समावेश होगा। ये राज्य/ संघशासित क्षेत्र हैं जम्मू और कश्मीर, पंजाब, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप। अध्ययन - IV 15. बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश (i) बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में निवेश, जो ‘अन्य’ श्रेणी को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों के ऋण का द्योतक हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत निहित आस्तियों के आधार पर वर्गीकरण के लिए पात्र है बशर्ते : (क) बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियां मूलत: बनायी गई हैं और वे प्रतिभूतिकरण के पहले प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत जाने की पात्र हैं और प्रतिभूतिकरण के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों को पूरा करती हैं। (ख) मूल संस्था द्वारा अंतिम उधारकर्ता से लिया जानेवाला सर्वसमावेशक ब्याज निवेशक बैंक की आधार दर और वार्षिक 8 प्रतिशत से अधिक न हो। एमएफआई द्वारा मूलत: निर्मित प्रतिभूतिकृत आस्तियों में ऐसे निवेश जो इस परिपत्र के पैरा 19 में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं, इस उच्चतम ब्याज से छूट प्राप्त हैं क्योंकि मार्जिन और ब्याज दर पर अलग से उच्चतम सीमाएं हैं। ii) एनबीएफसी द्वारा मूलत: निर्मित प्रतिभूतिकृत आस्तियों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश जिनमें निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषण की जमानत पर होती हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र स्थिति के लिए पात्र नहीं हैं । 16. सीधे एसाइनमेंट/ आउटराइट खरीद के माध्यम से आस्तियों का अंतरण i) बैंकों द्वारा एसाइनमेंट/ आस्तियों के समूह की आउटराइट खरीद जो 'अन्य' श्रेणी को छोड़कर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत ऋणों की द्योतक है, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने की पात्र होगी, बशर्ते : (क) आस्तियां बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा मूलत: निर्मित हों और वे खरीद से पहले प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने की पात्र हैं और आउटराइट खरीद/ एसाइनमेंट के संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों को पूरा करती हैं। (ख) इस प्रकार खरीदी जाने वाली पात्र ऋण आस्तियों का निपटान चुकौती को छोड़कर किसी अन्य रूप से नहीं किया जाना चाहिए। (ग) मूल संस्था द्वारा अंतिम उधारकर्ता से लिया जाने वाला सर्वसमावेशक ब्याज खरीदार बैंक की आधार दर और वार्षिक 8 प्रतिशत से अधिक न हो। एमएफआई से पात्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के एसाइनमेंट/ आउटराइट खरीद जो इस परिपत्र के पैरा 19 में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं, इस उच्चतम ब्याज से छूट प्राप्त हैं क्योंकि मार्जिन और ब्याज दर पर अलग से उच्चतम सीमाएं हैं । ii) बैंकों/ वित्तीय संस्थाओं से प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत करने के लिए ऋण आस्तियों की आउटराइट खरीद करने पर बैंक को अंतिम प्राथमिकता-प्राप्त उधारकर्ता को वास्तविक रूप में वितरित सांकेतिक राशि की सूचना देनी चाहिए और न कि विक्रेता को अदा की गई प्रीमियम राशि की। iii) बैंकों द्वारा एनबीएफसी के साथ किए जाने वाले क्रय/ एसाइनमेंट/ निवेश लेनदेन जिसमें निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषणों की जमानत पर लिए गए ऋण हैं, प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र स्थिति के लिए पात्र नहीं हैं । 17. अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र बैंकों द्वारा जोखिम शेयरिंग आधार पर खरीदे गए अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र (आईबीपीसी) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे बशर्तें, निहित आस्तियां प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने की पात्र हों और बैंक आईबीपीसी पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशा-निर्देशों का पालन करते हों। आईबीपीसी लेनदेनों की निहित आस्तियां पैरा 8 के अनुसार, ‘निर्यात ऋण’ के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए पात्र होने के संबंध में, बैंकों द्वारा, जोखिम शेयरिंग आधार पर, खरीदे गए आईबीपीसी को खरीदने वाले बैंक की दृष्टि से प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र वर्गीकरण के लिए वर्गीकृत किया जाए। तथापि ऐसी स्थिति में इस संबंध में दिशानिर्देशों के अनुसार जारी करने वाले और खरीदने वाले बैंक द्वारा आवश्यक समुचित सावधानी लिए जाने के अलावा जारी करने वाला बैंक प्रमाणित करेगा कि निहित आस्ति ‘निर्यात ऋण’ है। 18. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र बैंकों द्वारा खरीदे गए बकाया प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र (पीएसएलसी) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की संबंधित श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे बशर्तें, आस्तियां बैंकों द्वारा मूलत: बनाई गई हों, और प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र हों और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिनांक 7 अप्रैल 2016 के परिपत्र विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.23/04.09.01/2015-16 द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार प्रमाणपत्र पर जारी दिशा-निर्देशों की पूर्ति करती हों। 19. माइक्रो फाइनांस संस्थाओं (एमएफआई) को आगे उधार दिए जाने हेतु बैंक ऋण (क) व्यक्तियों तथा स्वयं-सहायता समूहों / संयुक्त देयता समूहों के सदस्यों को भी आगे उधार दिए जाने हेतु माइक्रो फाइनांस संस्थाओं (एमएफआई) को दिया गया बैंक ऋण संबंधित श्रेणियों अर्थात कृषि, माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम, सामाजिक बुनियादी संरचना [पैरा 11 (11.2) में उल्लिखित] एवं 'अन्य' श्रेणी में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिम के रूप में वर्गीकृत किए जाने का पात्र होगा। परंतु शर्त यह है कि उक्त माइक्रो फाइनांस संस्था की कुल आस्तियों (नकदी, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के पास शेष राशियों, सरकारी प्रतिभूतियों और मुद्रा बाजार के लिखतों से भिन्न) में "अर्हक स्वरूप की आस्तियाँ" 85 प्रतिशत से कम न हों। इसके अतिरिक्त आय सृजन के कार्यकलाप के लिए प्रदान की गई सकल ऋण राशि, माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा दिए गए कुल ऋण के 50 प्रतिशत से कम न हो। (ख) माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा वितरित वह ऋण "अर्हक आस्ति" होगा, जो निम्नलिखित मानदण्डों को पूरा करता हो : (i) ऋण किसी ऐसे उधारकर्ता को दिया गया हो, जिसकी ग्रामीण क्षेत्र में पारिवारिक वार्षिक आय ₹0.1 मिलियन से अधिक न हो जबकि गैर ग्रामीण क्षेत्र में वह ₹ 0.16 मिलियन से अधिक नहीं होनी चाहिए। (ii) पहले दौर में ऋण ₹ 60,000 से अधिक न हो और बाद के दौर में ₹ 0.1 मिलियन से अधिक न हो। (iii) उधारकर्ता की कुल ऋणग्रस्तता ₹ 0.1 मिलियन से अधिक न हो। (iv) यदि ऋण राशि ₹ ३०,०००/- से अधिक हो तो उधार लेने वाले को बिना दण्ड के पूर्व-भुगतान करने के अधिकार के साथ, ऋण की अवधि 24 महीने से कम न हो। (v) ऋण बिना कोलेटरल (संपार्श्विक जमानत) का हो। (vi) उधारकर्ता की इच्छानुसार ऋण साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक किस्तों में चुकौतीयोग्य हो। (ग) साथ ही, इन ऋणों को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के रूप में वर्गीकृत किए जाने हेतु पात्र होने के लिए बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि एमएफआई द्वारा मार्जिन और ब्याज दर पर निम्नलिखित उच्चत्तम सीमा (कैप) और अन्य "मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों" का अनुपालन किया जाता है। (i) मार्जिन की अधिकतम सीमा : ₹ एक अरब से अधिक के ऋण संविभाग वाले एमएफआई के लिए मार्जिन कैप 10 प्रतिशत और अन्यों के लिए 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। ब्याज लागत की गणना बकाया उधार राशियों के औसत पाक्षिक शेष के आधार पर तथा ब्याज आय की गणना अर्हक आस्तियों के बकाया ऋण संविभाग के औसत पाक्षिक शेष के आधार पर की जाएगी। (ii) व्यक्तिगत ऋणों पर ब्याज की अधिकतम सीमा : व्यक्तिगत ऋणों पर ब्याज दर 1 अप्रैल 2014 से आस्तियों के अनुसार पांच सबसे बड़े वाणिज्य बैंकों की औसत आधार दर को वार्षिक 2.75 से गुणा का फल अथवा निधियों की लागत और मार्जिन की उच्चतम सीमा का जोड़, इनमें से जो भी कम हो होगी। आधार दर का औसत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सूचित किया जाएगा। (iii) ऋणों के मूल्य निर्धारण में केवल तीन घटक शामिल किए जाने हैं यथा (क) प्रोसेसिंग शुल्क जो सकल ऋण राशि के 1 प्रतिशत से अधिक न हो, (ख) ब्याज प्रभार और (ग) बीमा प्रीमियम। (iv) प्रोसेसिंग शुल्क को मार्जिन कैप या ब्याज की अधिकतम सीमा में शामिल नहीं करना है। (v) केवल बीमा की वास्तविक लागत अर्थात उधारकर्ता तथा पति/ पत्नी के लिए जीवन, स्वास्थ्य और पशुधन के समूह बीमा की वास्तविक लागत ही वसूली जाए; प्रशासनिक प्रभार आईआरडीए के दिशा-निर्देशों के अनुसार वसूल किए जाए। (vi) विलंबित भुगतान हेतु कोई दंड न हो। (vii) किसी प्रकार की जमानत जमाराशि/ मार्जिन न ली जाए। (घ) बैंकों को चाहिए कि वे प्रत्येक तिमाही के अंत में एमएफआई से चार्टर्ड एकाउंटेंट का एक प्रमाणपत्र प्राप्त करें, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ सूचित किया गया हो कि (i) अर्हक आस्ति (ii) आय सृजन कार्यकलापों के लिए प्रदान की गई सकल ऋण राशि और (iii) मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों संबंधी मानदंड का पालन किया गया है। 20. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के लिए बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) द्वारा ऋण की सह-उत्पत्ति (को-ओरिजिनेशन) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की आस्तियों के सृजन हेतु, सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और लघु वित्त बैंकों को छोड़कर), एनबीएफसी-एनडी-एसआई (इसके उपरांत एनबीएफसी के रूप में माने जाने वाले) के साथ ऋण की सह-उत्पत्ति कर सकते हैं। सह-उत्पत्ति व्यवस्था, सुविधा स्तर पर दोनों उधारदाताओं द्वारा ऋण के संयुक्त योगदान तक सीमित होनी चाहिए। अपने संबंधित व्यावसायिक उद्देश्यों के उचित संरेखण को सुनिश्चित करने के लिए बैंकों और एनबीएफसी के बीच हुए पारस्परिक समझौते के अनुसार जोखिम और रिवार्ड को साझा करना भी शामिल होना चाहिए। इस संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश हमारे दिनांक 21 सितंबर 2018 के परिपत्र सं.विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.08/04.09.01/2018-19 के माध्यम से जारी किया गया है। 21. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के लक्ष्यों पर निगरानी रखना प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को निरंतर ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए बैंकों द्वारा किए जाने वाले अनुपालन पर ‘तिमाही’ आधार पर निगरानी रखी जाएगी। दिनांक 6 अक्तुबर 2016 के परिपत्र विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.सं.17/04.09.001/2016-17 द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार -संशोधित रिपोर्टिंग फार्मेट के अनुसार बैंकों को तिमाही और वार्षिक अंतराल के आधार पर प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिमों पर आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे। 22. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य प्राप्त न करना प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार में कमी वाले अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर निर्णीत प्रकार से नाबार्ड के पास स्थापित ग्रामीण बुनियादी विकास निधि (आरआईडीएफ) और नाबार्ड/ एनएचबी/ सिडबी/ मुद्रा लि. के पास स्थापित अन्य निधियों में अंशदान करने के लिए राशियां आवंटित की जाएंगी। उपलब्धि की गणना वित्तीय वर्ष के अंत में प्रत्येक तिमाही के अंत में औसत प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/ उप-लक्ष्यों की प्राप्ति पर आधारित होगी। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य की उपलब्धि की गणना करते समय हर तिमाही के लिए कमी/ अधिक उधार पर अलग से निगरानी रखी जाएगी। वर्ष के अंत में सभी तिमाहियों का सामान्य औसत निकाला जाएगा और समग्र कमी/अधिकता की गणना के लिए उसे ध्यान में लिया जाएगा। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उप-लक्ष्यों की उपलब्धि की गणना करते समय इसी पद्धति का पालन किया जाएगा। (अनुबंध में उदाहरण दिया गया है) आरआईडीएफ अथवा किसी अन्य निधियों में बैंक के अंशदान पर ब्याज दरें, जमाराशियों की अवधि, आदि समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित की जाएगी। भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग द्वारा सूचित गलत वर्गीकरण को, बाद के वर्षों में विभिन्न निधियों के लिए आवंटन हेतु, उस वर्ष की उपलब्धि से उस राशि तक समायोजित/ घटाया जाएगा जहां तक अवर्गीकरण/ गलत वर्गीकरण हुआ हो। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य, उप-लक्ष्य पूरे न करने को विभिन्न प्रयोजनों के लिए विनियामक क्लियरेंस/ अनुमोदन देते समय विचार में लिया जाएगा । 23. प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को ऋण हेतु सामान्य दिशा-निर्देश बैंकों से अपेक्षित है कि वे प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी श्रेणियों के संबंध में निम्नलिखित सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करें। (i) ब्याज की दर बैंक ऋणों पर ब्याज दर बैंकिंग विनियमन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी निदेशों के अनुसार रहेगी । (ii) सेवा प्रभार ₹ 25,000/- तक के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों पर ऋण संबंधी और तदर्थ सेवा प्रभार/ निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाना चाहिए। एसएचजी / जेएलजी के पात्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के मामले में, यह सीमा समग्र समूह की अपेक्षा हर सदस्य पर लागू होगी। (iii) प्राप्ति, स्वीकृति/ नामंजूर/ वितरण रजिस्टर बैंक द्वारा एक रजिस्टर/ इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारीख, मंजूरी/ नामंजूरी/ वितरण आदि का कारणों सहित उल्लेख किया जाए। सभी निरीक्षणकर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर/ इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड उपलब्ध करवाया जाए । (iv) ऋण आवेदनों की पावती जारी करना बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र ऋणों के अंतर्गत प्राप्त ऋण आवेदनों की पावती दी जाए। बैंक बोर्ड एक ऐसी समय सीमा निर्धारित करें जिसके पहले बैंक आवेदकों को अपना निर्णय लिखित रूप में सूचित करेंगे। समेकित परिपत्रों की सूची
प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य की उपलब्धि – कमी/ अधिकता की गणना उदाहरण : प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार पर संशोधित दिशानिर्देशों के अंतर्गत वित्तीय वर्ष के अंत में प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य की उपलब्धि – कमी/ अधिकता की गणना के लिए अपनाई जानेवाली पद्धति का उदाहरण टेबल संख्या 1 और 2 में प्रस्तुत है । टेबल – 1 में दिए गए उदाहरण में वित्तीय वर्ष के अंत में बैंक में समग्र कमी ₹ 27.93 अरबों की है। टेबल – 2 में वित्तीय वर्ष के अंत में बैंक में समग्र अधिकता ₹ 20.47 अरबों की है। प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उप-लक्ष्यों की तिमाही और वार्षिक उपलब्धि की गणना के लिए इसी पद्धति का पालन किया जाएगा। टिप्पणी : प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के लक्ष्य/ उप-लक्ष्य की उपलब्धि की गणना एएनबीसी अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर के सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूपी तारीख को जो भी अधिक हो के आधार पर की जाएगी। |