मास्टर परिपत्र - अग्रिमों पर ब्याज दरें - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - अग्रिमों पर ब्याज दरें
आरबीआई/2015-16/37 1 जुलाई 2015 सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक महोदय/ महोदया मास्टर परिपत्र - अग्रिमों पर ब्याज दरें कृपया आप 1 जुलाई 2014 का मास्टर परिपत्र बैंपविवि.सं.डीआइआर.बीसी.13/13.03.00/2014-15 देखें जिसमें अग्रिमों पर ब्याज दरों के संबंध में बैंकों को 30 जून 2014 तक जारी किये गये अनुदेश/दिशानिर्देश समेकित किये गये थे। इस मास्टर परिपत्र में उपुर्यक्त विषय पर 30 जून 2015 तक जारी किये गये अनुदेशों को समेकित किया गया है। भवदीया, (लिलि वडेरा) अग्रिमों पर ब्याज-दरों से संबंधित मास्टर परिपत्र अग्रिमों पर ब्याज दरों के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए गए निदेशों को समेकित करना। बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया गया सांविधिक निदेश। इस मास्टर परिपत्र में उपर्युक्त विषय पर परिशिष्ट में सूचीबद्ध किए गए परिपत्रों में निहित अनुदेशों को समेकित तथा अद्यतन किया गया है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक। बैंकों को अधिक कार्यात्मक स्वायत्ता प्रदान करने के परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 18 अक्तूबर 1994 से अग्रिमों पर ब्याज दरों को क्रमिक रूप से अविनियमित किया गया। अतएव, बैंक उनके बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति के अनुसार अग्रिमों पर ब्याज दरों का निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते कि वे निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन करें: बैंकों से अपेक्षित था कि वे मूल उधार दर (पीएलआर), जो कि 2 लाख रुपये से अधिक ऋण सीमाओं के लिए उनके द्वारा लगाई जाने वाली न्यूनतम दर थी, निर्धारित करने के लिए अपने संबंधित बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त करें। 2 लाख रुपये तक के ऋणों के मामले में यह निर्णय लिया गया कि उधार दरों का निर्धारण करके इन उधारकर्ताओं को संरक्षण देना जारी रखा जाए। यह निर्णय लिया गया कि 29 अप्रैल 1998 से 2 लाख रुपये तक और उससे कम की ऋण सीमा के लिए ब्याज पीएलआर, जो कि संबंधित बैंक के सर्वश्रेष्ठ ग्राहक को उपलब्ध है, से अधिक नहीं होगा। बैंकों द्वारा अपने ऋणों के मूल्य-निर्धारण में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए और साथ ही, यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीएलआर में सच में वास्तविक लागत प्रतिबिंबित हो रही है, वर्ष 2003 में दो लाख रुपये से अधिक ऋण सीमाओं के लिए न्यूनतम उधार दर को समाप्त करने का निर्णय लिया गया और बैंकों को यह स्वतंत्रता दी गई कि वे ऐसी ऋण सीमाओं के लिए बेंचमार्क न्यूनतम उधार दर (बीपीएलआर) तथा कीमत-लागत अंतर के अधीन अपनी उधार दरें तय करें। बैंकों से अपेक्षित था कि वे बीपीएलआर के लिए अपने संबंधित बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त करें, जो कि 2 लाख रुपये से ऊपर की ऋण सीमाओं के लिए संदर्भ दर रहेगी। प्रत्येक बैंक को बेंचमार्क मूल उधार दर घोषित करनी होगी और वह सभी शाखाओं में एकसमान रूप से लागू होगी। 2 लाख रुपये तक के अग्रिमों के लिए बीपीएलआर का ब्याज की अधिकतम दर रहना जारी रहेगा। बीपीएलआर प्रणाली के अधीन ब्याज दरें दिनांक 30 जून 2010 तक मंजूर किए गए सभी ऋणों पर लागू थीं। 30 जून 2010 तक मंजूर किए गए विद्यमान ऋणों पर बीपीएलआर तथा कीमत-लागत अंतर तथा उसके निर्धारण संबंधी दिशानिर्देश अनुबंध 2 तथा अनुबंध 3 में दिए गए हैं। आधार दर प्रणाली की शुरुआत बैंकों की उधार दरों में पारदर्शिता बढ़ाने तथा मौद्रिक नीति के प्रसारण का बेहतर मूल्यांकन संभव बनाने के उद्देश्य से की गई थी। 3.1 1 जुलाई 2010 से घरेलू रुपये ऋण की सभी श्रेणियों का ब्याज दर निर्धारण केवल आधार दर का संदर्भ लेते हुए किया जाना चाहिए। तदनुसार, आधार दर प्रणाली सभी नये ऋणों पर और पुराने ऋणों के नवीकरण पर लागू होगी। बीपीएलआर प्रणाली पर आधारित वर्तमान ऋण परिपक्वता तक जारी रह सकते हैं। यदि वर्तमान उधारकर्ता वर्तमान संविदा की समाप्ति के पहले नई प्रणाली अपनाना चाहें तो परस्पर सहमत शर्तों पर उन्हें यह विकल्प प्रदान किया जा सकता है। तथापि, बैंकों को इस बदलाव के लिए कोई शुल्क नहीं लगाना चाहिए। 3.2 आधार दर की गणना आधार दर में उधार दरों के वे सब तत्व होंगे जो उधारकर्ताओं के सभी संवर्गों में सर्वसामान्य हैं। प्रत्येक बैंक के लिए केवल एक ही आधार दर हो सकती है। बैंक आधार दर निर्धारित करने के लिए कोई भी बेंचमार्क तय कर सकते हैं, जिसे पारदर्शी तरीके से प्रकट किया जाना चाहिए। आधार दर की गणना का एक उदाहरण अनुबंध1 में दिया गया है। बैंक कोई और उपयुक्त विधि अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते वह सुसंगत हो और आवश्यकता पड़ने पर पर्यवेक्षीय समीक्षा/जांच के लिए उपलब्ध हो।
3.3 आधार दर की समीक्षा बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे तिमाही में कम-से-कम एक बार बैंक की प्रथा के अनुसार, बोर्ड या आस्ति देयता प्रबंध समिति के अनुमोदन से आधार दर की समीक्षा करें। चूंकि उधार उत्पादों के ब्याज निर्धारण की पारदर्शिता एक प्रमुख लक्ष्य है, बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी आधार दर के संबंध में सूचना अपनी सभी शाखाओं तथा वेबसाइट पर प्रदर्शित करें। आधार दर में परिवर्तन की सूचना भी समय-समय पर समुचित माध्यमों से सामान्य जनता को दी जानी चाहिए। बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पहले की तरह ही तिमाही आधार पर रिज़र्व बैंक को वास्तविक न्यूनतम और उच्चतम उधार दरों की सूचना देते रहें। 3.4 आधार दर कार्य-प्रणाली की समीक्षा
3.5 कीमत-लागत अंतर
3.6 उधार दरों का निर्धारण बैंक ऋणों और अग्रिमों के संबंध में अपनी वास्तविक उधार दरों का निर्धारण आधार दर को संदर्भ मानते हुए तथा यथोपयुक्त अन्य ग्राहक - विशेष प्रभारों को शामिल करते हुए कर सकते हैं। वास्तविक उधार दरें पारदर्शी और सुसंगत होनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर पर्यवेक्षीय समीक्षा/जांच के लिए उपलब्ध होनी चाहिए। चूंकि आधार दर सभी ऋणों के लिए न्यूनतम दर होगी, बैंकों को आधार दर से कम में उधार देने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, आधार दर में परिवर्तन बिना किसी भेदभाव के पारदर्शी तरीके से आधार दर से जुड़े सभी वर्तमान ऋणों पर लागू होगा। आधार दर प्रणाली के आरंभ के बाद भी बैंकों के पास ऋण की सभी श्रेणियों को नियत अथवा अस्थायी दर पर प्रस्तावित करने की स्वतंत्रता होगी, बशर्ते वे एएलएम दिशानिर्देशों के अनुरूप हों। जहां ऋण नियत दर के आधार पर दिए जाते हैं वहां आधार दर की तिमाही समीक्षा के बावजूद नियत दर ऋणों पर लगाई जाने वाली ब्याज की दर इस शर्त के अधीन वही बनी रहेगी कि ऐसी नियत दर ऋण मंजूरी के समय आधार दर से कम नहीं होगी। तथापि, यदि उसके बाद आधार दर में वृद्धि की जाती है और इस क्रम में नियत दर नई आधार दर से कम हो जाए तो इसे आधार दर संबंधी दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। 3.7 आधार दर दिशानिर्देशों से छूट 3.7.1 निम्नलिखित ऋण की श्रेणियों का ब्याज दर निर्धारण आधार दर का संदर्भ लिए बिना किया जा सकता है : (क) डीआरआई अग्रिम (ख) सेवानिवृत्त कर्मचारियों सहित बैंक के अपने कर्मचारियों को ऋण (ग) बैंक के जमाकर्ताओं को उनकी अपनी जमाराशियों की जमानत पर ऋण 3.7.2 उन मामलों में जहां उधारकर्ताओं को ब्याज दर सहायता उपलब्ध हैं, वहां निम्नानुसार स्पष्टीकरण दिया जाता है : (i) फसल ऋणों पर ब्याज दर सहायता
ii) निर्यात ऋण पर ब्याज दर सहायता रुपया निर्यात ऋण की सभी अवधियों पर लागू होने वाली ब्याज की दरें आधार दर के बराबर या उससे अधिक होंगी। उन मामलों में जहां ब्याज दर सहायता उपलब्ध है, वहां बैंकों को आधार दर प्रणाली के अनुसार निर्यातकों को प्रभार्य ब्याज दर को ब्याज दर सहायता की उपलब्ध राशि से घटाना होगा। यदि, ऐसा करने के परिणामस्वरूप निर्यातकों को प्रभारित ब्याज दर आधार दर से कम हो जाती है तो ऐसे उधार को आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं समझा जाएगा। (भारत सरकार की पिछली रुपया निर्यात ऋण पर ब्याज दर सहायता योजना 31 मार्च 2014 तक वैध थी)। 3.7.3 पुनर्रचित ऋण पुनर्रचित ऋणों के मामले में यदि अर्थक्षमता के प्रयोजन के लिए कुछ कार्यशील पूंजी मीयादी ऋण (डबल्यूसीटीएल), निधिक ब्याज मीयादी ऋण (एफआईटीएल), आदि को आधार दर से कम दर पर मंजूरी दी जाती है और उनमें क्षतिपूर्ति आदि की शर्तें शामिल हैं तो ऐसे उधारों को आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। 3.7.4 निम्नलिखित मामलों में, जहां बैंकों को पुनर्वित्त उपलब्ध है, वहाँ बैंकों को पुनर्वित्त की उपलब्धता की सीमा तक योजनाओं के अंतर्गत निर्धारित ब्याज दर प्रभारित करने की अनुमति दी गई है। इस प्रकार से दिए गए उधार को, आधार दर से कम दर पर होने के बावजूद, हमारे आधार दर दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। तथापि, पुनर्वित्त के अंतर्गत नहीं आने वाले अंश पर प्रभारित ब्याज दर आधार दर से कम नहीं होनी चाहिए।
4. मासिक अंतराल पर ब्याज लगाना (i) बैंकों को 1 अप्रैल 2002 से मासिक अंतरालों पर ब्याज प्रभारित करने के लिए सूचित किया गया था। प्रभारित ब्याज को निकटतम रुपये में पूर्णांकित नहीं किया जाना चाहिए। (ii) मासिक अंतराल पर ब्याज लगाने से संबंधित अनुदेश कृषि अग्रिमों पर लागू नहीं होंगे और बैंक फसल-मौसमों से संबद्ध कृषि अग्रिमों पर ब्याज लगाने /चक्रवृद्धि ब्याज लगाने की वर्तमान प्रथा जारी रखेंगे। 29 जून 1998 के परिपत्र आरपीसीडी.सं.पीएलएफएस.बीसी. 129/05.02.27/97-98 में दिये गये अनुदेशों के अनुसार बैंकों को लंबे समय की फसलों के लिए कृषि अग्रिमों पर वार्षिक अंतराल पर ब्याज लगाना चाहिए। अल्प समय की फसलों और संबद्ध कृषि कार्यकलापों जैसे डेरी, मछली पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन आदि के संबंध में यदि ऋण/ किस्त का भुगतान अतिदेय हो जाये तो बैंक ब्याज लगाते समय और चक्रवृद्धि ब्याज लगाते समय ऋण लेने वालों के साथ लचीलेपन और फसल काटने /बेचने के मौसम के आधार पर तय की गयी तारीखों को ध्यान में रखें। साथ ही, बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छोटे और सीमांत किसानों को दिए जाने वाले अल्पावधि अग्रिमों के संबंध में, किसी खाते पर नामे कुल ब्याज मूलधन की राशि से अधिक नहीं होना चाहिए। 5. माइक्रो और लघु उद्यमों (एमएसई) के लिए विभेदक ब्याज दर एमएसई उधारकर्ताओं को दिए जाने वाले ऋणों की कीमत निर्धारित करते समय बैंकों को चाहिए कि वे एमएसई के लिए ऋण गारंटी निधि न्यास (सीजीटीएमएसई) की क्रेडिट गारंटी कवर तथा ऋण के सीजीटीएमएसई द्वारा गारंटीकृत अंश के लिए पूंजी पर्याप्तता के उद्देश्य के लिए शून्य जोखिम भार के रूप में उपलब्ध प्रोत्साहन को ध्यान में रखें तथा ऐसे एमएसई उधारकर्ताओं को अन्य उधारकर्ताओं की तुलना में विभेदक ब्याज दर प्रदान करें। तथापि, बैंक यह नोट करें कि ऐसी विभेदक ब्याज दर बैंक की आधार दर से कम नहीं होनी चाहिए। 6. संघीय व्यवस्था के अंतर्गत ऋण बैंकों को संघीय व्यवस्था के अंतर्गत भी एकसमान दर पर ब्याज लगाना आवश्यक नहीं है। प्रत्येक सदस्य-बैंक को ऋणकर्ताओं को दी गयी ऋण-सीमा के भाग पर अपनी आधारभूत मूल उधार दर के अधीन ब्याज लगाना चाहिए। 7. समाशोधित न हुए चेक आदि पर आहरण ग्राहक-सेवा के एक उपाय के रूप में उगाही के लिए भेजे गये चेकों के संबंध में तत्काल राशि जमा करने संबंधी जमाकर्ताओं को दी गयी सुविधा पर कोई ब्याज लागू नहीं होगा। बैंकों को अपने निदेशक-मंडल के अनुमोदन से दंडात्मक ब्याज लगाने के लिए पारदर्शी नीति बनाने की अनुमति दी गई है। परंतु प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के उधारकर्ताओं को दिये गये ऋणों के संबंध में रुपए 25,000/- तक के ऋणों के लिए कोई दंडात्मक ब्याज नहीं लगाया जाना चाहिए। चुकौती में चूक, वित्तीय विवरण प्रस्तुत न करने आदि कारणों के लिए दंडात्मक ब्याज लगाया जा सकता है। परन्तु दंडात्मक ब्याज संबंधी नीति पारदर्शिता, निष्पक्षता, ऋण की चुकौती के लिए प्रोत्साहन और ग्राहकों की वास्तविक कठिनाइयों को ध्यान में रखने के सम्यक्-स्वीकृत सिद्धांतों को आधार बनाकर तैयार की जानी चाहिए। 9. उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए शून्य प्रतिशत ब्याज-दर वाली ऋण योजनाएं बैंकों को निर्माताओं / डीलरों से प्राप्त डिस्काउंट के समायोजन के माध्यम से ऋणकर्ताओं को उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के लिए कम / शून्य प्रतिशत ब्याज-दर पर अग्रिम देने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसी ऋण- योजनाओं में परिचालनगत पारदर्शिता की कमी होती है और इनके चलते ऋण उत्पादों की मूल्यन-व्यवस्था विकृत हो जाती है। ये उत्पाद लगाये गए ब्याज की दरों के संबंध में ग्राहकों को स्पष्ट जानकारी भी नहीं देते। बैंकों को विभिन्न समाचार-पत्रों और प्रचार माध्यमों में विज्ञापन देकर ऐसी योजनाओं को बढ़ावा भी नहीं देना चाहिए कि वे ऐसी योजनाओं के अंतर्गत उपभोक्ताओं को सुविधा /वित्त प्रदान कर रहे हैं। बैंकों को किसी भी ऐसे प्रोत्साहन-आधारित विज्ञापन के साथ किसी भी रूप में/प्रकार से अपना नाम जोड़ने से बचना चाहिए जहां ब्याज दर के संबंध में स्पष्टता न हो। 10. बैंकों द्वारा प्रभारित अत्यधिक ब्याज हालांकि ब्याज दरों का अविनियमन किया गया है, फिर भी, एक विशिष्ट स्तर से अधिक ब्याज लगाने को सूदखोरी माना जाता है और उसे न तो निरंतर बनाए रखा जा सकता है और वह न ही सामान्य बैंकिंग प्रथाओं के अनुसार हो सकता है। अत: बैंकों के बोर्डों को सूचित किया गया है कि वे ऐसे उचित आंतरिक सिद्धांत तथा क्रियाविधियां निर्धारित करें कि जिससे वे ऋण तथा अग्रिमों पर अत्यधिक (सूदखोर) ब्याज, जिसमें प्रसंस्करण तथा अन्य प्रभार शामिल हैं, नहीं लगाएंगे। कम मूल्य के ऋणों, विशेषत: व्यक्तिगत ऋणों तथा उसी प्रकार के कुछ अन्य ऋणों के संबंध में ऐसे सिद्धांतों तथा क्रियाविधियों को निर्धारित करते समय बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित विस्तृत दिशानिर्देशों को ध्यान में लेना होगा :
30 जून 2010 तक स्वीकृत किए गए ऋणों पर लागू होने वाले बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) संबंधी दिशानिर्देश [कृपया पैराग्राफ 2 देखें] 18 अक्तूबर 1994 से भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2 लाख रुपयों से अधिक राशि के अग्रिमों पर ब्याज दरों का अविनियमन किया है और ऐसे अग्रिमों पर ब्याज की दरें बीपीएलआर और स्प्रेड संबंधी दिशानिर्देशों के अधीन बैंकों को अपने आप निर्धारित करनी है। 2 लाख रुपयों तक की ऋण सीमाओं के लिए बैंकों को उतना ही ब्याज प्रभारित करना चाहिए जो कि उनके बीपीएलआर से अधिक नहीं है। अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए और वाणिज्य बैंकों को अपनी उधार दरों को निश्चित करने में परिचालनगत लचीलापन प्रदान करने के लिए, बैंक अपने संबंधित बोर्डों द्वारा अनुमोदित पारदर्शी तथा वस्तुपरक नीति के आधार पर निर्यातकों अथवा अन्य ऋण देने के लिए पात्र उधारकर्ताओं को बीपीएलआर से कम दर पर ऋण दे सकते हैं, जिनमें सार्वजनिक उपक्रम शामिल हैं। बैंक बीपीएलआर से ऊपर ब्याज दरों के अधिकतम स्प्रेड को घोषित करना जारी रखेंगे। भारत में प्रचलित ऋण बाज़ार की स्थिति तथा छोटे उधारकर्ताओं को रियायत देना जारी रखने की आवश्यकता के परिप्रेक्ष्य में बीपीएलआर को 2 लाख रुपयों तक के ऋणों के लिए उच्चतम सीमा मानने की प्रथा जारी रहेगी। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं को खरीदने के लिए दिए गए ऋणों, शेयर तथा डिबेंचर्स/बांडों की जमानत पर व्यक्तियों के दिए गए ऋणों, अन्य गैर-प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र व्यक्तिगत ऋणों आदि के संबंध में नीचे दिए गए ब्यौरों के अनुसार बैंक बीपीएलआर से संदर्भ किए बिना तथा ऋण की मात्रा पर ध्यान दिए बिना ब्याज दरों का निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र हैं। न्यूनतम मूल उधार दर संबंधित बैंक की सभी शाखाओं में एकसमान रूप से लागू की जाएगी । बेंचमार्क मूल उधार दर का निर्धारण बैंकों के ऋण उत्पादों के मूल्य निर्धारण में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए तथा यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि मूल उधार दर वास्तविक लागत दर्शाये, बैंक अपनी बेंचमार्क मूल उधार दर का निर्धारण करते समय नीचे दिये गये सुझावों पर विचार करें : बैंकों को बेंचमार्क मूल उधार दर निर्धारित करते समय अपनी (i) निधियों की वास्तविक लागत; (ii) परिचालन व्यय तथा (iii) प्रावधानीकरण / पूंजी प्रभार तथा लाभ मार्जिन संबंधी विनियामक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए न्यूनतम मार्जिन को ध्यान में रखना चाहिए । बैंकों को अपने निदेशक-मंडल के अनुमोदनसे बेंचमार्क मूल उधार दर घोषित करनी चाहिए । बेंचमार्क मूल उधार दर 2 लाख रुपये तक की ऋण-सीमा के लिए अधिकतम दर होगी । उपर्युक्त के अनुसार मीयादी प्रीमियम तथा /अथवा जोखिम प्रीमियम को विचार में लेते हुए निर्धारित की गई बेंचमार्क मूल उधार दर के संदर्भ में सभी अन्य उधार दरें निर्धारित की जा सकती हैं। बेंचमार्क मूल उधार-दर के परिचालनगत पहलुओं से संबंधित विस्तृत दिशानिर्देश भारतीय बैंक संघ ने 25 नवंबर 2003 को जारी किए हैं। ग्राहक संरक्षण के हित में और उधारकर्ताओं को प्रभारित की गई वास्तविक ब्याज दरों के संबंध में अधिक पारदर्शिता हो, इसके लिए बैंकों को चाहिए कि वे बेंचमार्क मूल उधार दर के साथ प्रभारित की जाने वाली अधिकतम तथा न्यूनतम ब्याज दरों संबंधी जानकारी देना जारी रखें। उधार दरें निश्चित करने की स्वतंत्रता निम्नलिखित ऋणों के संबंध में बैंकों को बीपीएलआर से संदर्भ किए बिना तथा ऋण की मात्रा पर ध्यान दिए बिना ब्याज दर निर्धारित करने की स्वतंत्रता है :
मध्यवर्ती एजेन्सियों की उदाहरणस्वरूप सूची 1. कमज़ोर वर्गों को आगे ऋण देने के लिए राज्य द्वारा प्रायोजित संगठन। कमज़ोर वर्गों में निम्नलिखित शामिल हैं -
समय-समय पर भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किए गए अनुसार अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों को उपर्युक्त (i) से (viii) के अंतर्गत प्रदान किये गये ऋण है। उन राज्यों में जहां अधिसूचित किए गए अल्पसंख्यक समुदाय में से एक वास्तव में अधिसंख्यक समुदाय है वहां मद (ix) के अंतर्गत केवल अन्य अधिसूचित अल्पसंख्यक कवर किए जाएंगे। वे राज्य/संघ शासित प्रदेश हैं, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, सिक्किम, मिज़ोरम, नागालैण्ड और लक्षद्वीप। 2. कृषि निविष्टियों /उपकरणों के वितरक। 3 राज्य वित्त निगम /राज्य औद्योगिक विकास निगम, उस सीमा तक जिस सीमा तक वे कमज़ोर वर्गों को ऋण प्रदान करते हैं। 4. राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम। 5. खादी और ग्रामोद्योग आयोग। 6. विकेंद्रीकृत क्षेत्र को मदद करनेवाली एजेंसियां। 7. कमज़ोर वर्गों को आगे ऋण प्रदान करने के लिए राज्य प्रायोजित संगठन। 8. आवास और शहरी विकास निगम लि. (हुडको)। 9. राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा पुनर्वित्त के लिए अनुमोदित आवास वित्त कंपनियां। 10. अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य प्रायोजित संगठन (इन संगठनों के लाभार्थियों को निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति के लिए और /अथवा उनके उत्पादन के विपणन के लिए)। 11. स्वयं सहायता समूहों को आगे ऋण देने के लिए व्यष्टि वित्त संस्थाएं/गैर सरकारी संगठन। ‘अग्रिमों पर ब्याज दरें’ संबंधी मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
|