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मास्टर परिपत्र - माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को उधार

भारिबैं/2015-16/74
विसविवि.सं.एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी. 07/06.02.31/2015-16

1 जुलाई 2015

अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय/ महोदया

मास्टर परिपत्र - माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को उधार

जैसा कि आपको ज्ञात है, भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को उधार से संबंधित मामलों में समय-समय पर दिशा-निर्देश/ अनुदेश/ निदेश जारी किए हैं। बैंकों को सभी वर्तमान अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के प्रयोजन से उपर्युक्त विषय पर विद्यमान दिशा-निर्देशों/ अनुदेशों /निदेशों को समाहित करते हुए एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है जो संलग्न है। इस मास्टर परिपत्र में, परिशिष्ट में सूचीबद्ध किए हुए, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 30 जून 2015 तक जारी वाणिज्य बैंकों द्वारा माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को उधार देने से संबंधित सभी अनुदेशों को समेकित किया गया है।

2. कृपया प्राप्ति सूचना दें ।

भवदीया

(माधवी शर्मा)
मुख्य महाप्रबंधक


खण्ड – I

1॰ माइक्रो , लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006

भारत सरकार ने दिनांक 16 जून 2006 को माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 बनाया है जिसे 2 अक्तूबर 2006 को अधिसूचित किया गया। एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 लागू हो जाने से जो स्पष्ट परिवर्तन आया है वह है उक्त क्षेत्र में मध्यम उद्यमों को सम्मिलित करने के अलावा माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम की परिभाषा में सेवा क्षेत्र को शामिल करना है। माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 ने विनिर्माण या उत्पादन तथा सेवाएं उपलब्ध या प्रदान करने में लगे माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम की परिभाषा आशोधित की है। रिज़र्व बैंक ने सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को परिवर्तन के बारे में सूचित कर दिया है। इसके साथ ही, अधिनियम में दी गई परिभाषा को, रिज़र्व बैंक के दिनांक 4 अप्रैल 2007 के परिपत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी.सं. 63/06.02.31/2006-07 के अनुसार बैंक ऋण के प्रयोजनों के लिए अपनाया गया है।

1.1 माइक्रो , लघु और मध्यम उद्यम की परिभाषा

(क) विनिर्माण उद्यम अर्थात नीचे विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार वस्तुओं के विनिर्माण, प्रसंस्करण या परिरक्षण के कार्य में लगे उद्यम :

i) माइक्रो उद्यम एक ऐसा उद्यम है जिसका संयंत्र और मशीनों में निवेश 25 लाख रुपए से अधिक न हो;

ii) लघु उद्यम एक ऐसा उद्यम है जिसका संयंत्र और मशीनों में निवेश 25 लाख रुपए से अधिक हो परंतु 5 करोड़ रुपए से अधिक न हो; तथा

iii) मध्यम उद्यम एक ऐसा उद्यम है जिसका संयंत्र और मशीनों में निवेश 5 करोड़ रुपए से अधिक हो परंतु 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो।

उपर्युक्त उद्यमों के मामले में, संयंत्र और मशीनों में निवेश वह मूल लागत है जिसमें भूमि और भवन तथा लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. एसओ.1722 (ई) में निर्दिष्ट मद शामिल नहीं हैं (अनुबंध I)।

(ख) सेवा उद्यम अर्थात सेवाएं उपलब्ध कराने अथवा प्रदान करने में लगे उद्यम एवं जिनका उपकरणों में निवेश (भूमि और भवन तथा फर्नीचर, फिटिंग्स और ऐसी अन्य मदों को, जो प्रदान की जाने वाली सेवाओं से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं हैं या एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 में यथा अधिसूचित मदों को छोड़कर मूल लागत) नीचे विनिर्दिष्ट किया गया है :

(i) माइक्रो उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरणों में निवेश 10 लाख रूपए से अधिक न हो;

(ii) लघु उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरणों में निवेश 10 लाख रुपए से अधिक हो परंतु 2 करोड़ रुपए से अधिक न हो; और

(iii) मध्यम उद्यम वह उद्यम है जिसका उपकरणों में निवेश 2 करोड़ रुपए से अधिक हो परंतु 5 करोड़ रुपए से अधिक न हो।

खण्‍ड II

2. माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के लिए दिशा-निर्देश

‘प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार- लक्ष्‍य और वर्गीकरण’ पर दिनांक 23 अप्रैल 2015 के परिपत्र विसविवि.केंका.प्‍लान.बीसी.सं.54/04.09.01/2014-15 के अनुसार विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों के माइक्रो, लघु और मध्‍यम उद्यमों को दिए गए बैंक ऋण निम्नलिखित मानदण्‍डों के अनुसार प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के पात्र होंगे।

2.1 विनिर्माण उद्यम

उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट और सरकार द्वारा समय-समय पर यथा अधिसूचित किसी उद्योग के लिए विनिर्माण या वस्तुओं के उत्पादन में लगी माइक्रो, लघु और मध्‍यम उद्यम संस्थाएं। विनिर्माण उद्यमों को संयंत्र और मशीनरी में निवेश के अनुसार परिभाषित किया गया है।

2.2 सेवा उद्यम

एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित और सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे माइक्रो और लघु उद्यमों को प्रति उधारकर्ता/ यूनिट 5 करोड़ रुपए और मध्‍यम उद्यमों को 10 करोड़ रुपए तक का बैंक ऋण।

2.3 खादी और ग्राम उद्योग क्षेत्र (केवीआई)

खादी और ग्राम उद्योग (केवीआई) क्षेत्र की इकाइयों को दिए गए सभी ऋण प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत माइक्रो उद्योगों हेतु नियत 7 प्रतिशत/ 7.5 प्रतिशत के उप-लक्ष्य के अधीन वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे।

2.4 खाद्यान्‍न और एग्रो प्रसंस्करण यूनिटों को दिए गए बैंक ऋण कृषि का भाग होंगे।

2.5 एमएसएमई को अन्‍य वित्त

(i) काश्तकारों, ग्राम और कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति और उनके उत्पादन के विपणन के विकेंद्रीकृत सेक्टर को सहायता प्रदान करने में निहित संस्‍थाओं को ऋण।

(ii) विकेंद्रित सेक्टर अर्थात काश्तकार, ग्राम और कुटीर उद्योग के उत्पादकों की सहकारी समितियों को ऋण।

(iii) ‘प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार- लक्ष्‍य और वर्गीकरण’ पर वर्तमान मास्‍टर परिपत्र में निर्दिष्ट शर्तों के अनुसार एमएफआई को आगे एमएसएमई सेक्टर को ऋण देने के लिए बैंकों द्वारा स्वीकृत ऋण।

(iv) सामान्‍य क्रेडिट कार्ड (वर्तमान में प्रचलित और व्‍यक्तियों की कृषि से इतर उद्यमीय क्रेडिट आवश्‍यकताओं की पूर्ति करने वाले काश्तकार क्रेडिट कार्ड, लघु उद्यमी कार्ड, स्‍वरोजगार क्रेडिट कार्ड, तथा बुनकर कार्ड आदि सहित) के अंतर्गत बकाया ऋण।

(v) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र में कमी के कारण सिडबी के पास बकाया जमाराशियां।

2.6 यह सुनिश्चित करने के लिए कि एमएसएमई केवल प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र की स्थिति के लिए पात्र बने रहने हेतु लघु और मध्‍यम उद्यम इकाई नहीं रहती है, एमएसएमई यूनिट को संबंधित एमएसएमई श्रेणी से अधिक विकसित होने के बाद तीन वर्षों तक प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र उधार का लाभ मिलना जारी रहेगा।

2.7 इस बात को ध्‍यान में रखते हुए कि एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 में माइक्रो उद्यमों की परिभाषा के अधीन किसी उप-श्रेणी का कोई प्रावधान नहीं है और यह कि माइक्रो उद्यमों को उधार देने का उप-लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है, माइक्रो उद्यमों की परिभाषा के अंतर्गत प्रचलित उप-वर्गीकरण के वर्तमान दिशा-निर्देश समाप्‍त किए गए हैं।

2.8 चूँकि एमएसएमई अधिनियम, 2006 में उसी व्यक्ति/ कंपनी द्वारा स्थापित भिन्न-भिन्न उद्यमों के निवेशों को सूक्ष्म (माइक्रो), लघु और मध्यम उद्यमों के रूप में वर्गीकरण के प्रयोजनार्थ एक साथ मिलाने (क्लब करने) का प्रावधान नहीं है, इसलिए औद्योगिक उपक्रमों के लघु उद्योग के रूप में वर्गीकरण के प्रयोजन हेतु एक ही स्वामित्व के दो या अधिक उद्यमों के निवेशों को एक साथ मिलाने के संबंध में 1 जनवरी 1993 की गज़ट अधिसूचना सं. एस.ओ. 2 (ई) को 27 फरवरी 2009 की भारत सरकार की अधिसूचना सं. एस.ओ. 563 (ई) के द्वारा रद्द कर दिया गया है।

खंड III

3. घरेलू वाणिज्य बैंकों और भारत में कार्यरत विदेशी बैंकों द्वारा माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को उधार का लक्ष्य/ उप-लक्ष्य

3.1 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार पर वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार माइक्रो, लघु और मध्‍यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र अग्रिमों को समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) या तुलन पत्र से इतर एक्सपोज़र के बराबर ऋण राशि, इनमें से जो भी अधिक हो, के प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के 40 प्रतिशत के समग्र लक्ष्य की गणना में हिसाब में लिया जाएगा।

3.2 घरेलू अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को एएनबीसी अथवा तुलन-पत्र से इतर एक्सपोजर की सममूल्य राशि का ऋण, इनमें से जो भी अधिक हो के 7.5 प्रतिशत का उप-लक्ष्‍य चरणबद्ध रूप में प्राप्‍त करना है अर्थात मार्च 2016 तक 7 प्रतिशत और मार्च 2017 तक 7.5 प्रतिशत। ऐसे विदेशी बैंक जिनकी भारत में 20 और उससे अधिक शाखाएं कार्यरत हैं, के लिए माइक्रो उद्यम का उप-लक्ष्‍य 2017 में समीक्षा के बाद 2018 के पश्‍चात लागू किया जाएगा। तथापि ऐसे विदेशी बैंक जिनकी 20 से कम शाखाएं भारत में कार्यरत हैं, उनके लिए माइक्रो उद्यम को उधार देने का यह उप-लक्ष्‍य लागू नहीं है।

3.3 एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 के अंतर्गत उपकरणों में निवेश के अनुसार परिभाषित और सेवाएं उपलब्ध कराने या प्रदान करने में लगे माइक्रो और लघु उद्यमों को प्रति उधारकर्ता/ यूनिट 5 करोड़ रुपए से अधिक और मध्‍यम उद्यमों को 10 करोड़ रुपए से अधिक के बैंक ऋणों को उपर्युक्तानुसार समग्र प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र लक्ष्यों की गणना में हिसाब में नहीं लिया जाएगा। तथापि माइक्रो और लघु उद्यमों को प्रति उधारकर्ता/ यूनिट 5 करोड़ रुपए से अधिक के ऋणों को एमएसई क्षेत्र को उधार हेतु एमएसएमई पर प्रधानमंत्री टास्क फोर्स द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की बैंकों की उपलब्धि के संदर्भ में उनके कार्यनिष्पादन के मूल्यांकन के समय हिसाब में लिया जाएगा।

3.4 एमएसएमई पर प्रधानमंत्री टास्क फोर्स की सिफारिशों के अनुसार बैंकों को निम्‍नलिखित लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु सूचित किया गया है :

(i) माइक्रो और लघु उद्यमों को ऋण में 20 प्रतिशत वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि,

(ii) माइक्रो उद्यम खातों की संख्या में 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि और

(iii) माइक्रो उद्यमों को, पूर्ववर्ती 31 मार्च को एमएसई क्षेत्र के कुल उधार का 60 प्रतिशत देना

खंड IV

4. एमएसएमई क्षेत्र को उधार देने के लिए सामान्य दिशा-निर्देश/ अनुदेश

4.1 एमएसएमई उधारकर्ताओं को ऋण आवेदनपत्रों की प्राप्ति सूचना जारी करना

बैंकों को सूचित किया गया है कि वे अपने एमएसएमई उधारकर्ताओं द्वारा व्यक्तिगत रूप से अथवा ऑनलाइन प्रस्तुत किए गए सभी ऋण आवेदनपत्रों की प्राप्ति सूचना अनिवार्य रूप से दें तथा यह सुनिश्चित करें कि आवेदन फॉर्म एवं प्राप्ति सूचना रसीद पर रनिंग क्रम संख्या दर्ज की जाए। साथ ही बैंकों को ऋण आवेदनपत्रों का केंद्रीकृत पंजीकरण प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। ऋण आवेदनपत्रों को ऑनलाइन प्रस्तुत करने तथा ऋण आवेदनपत्रों की ऑनलाइन ट्रैकिंग के लिए इसी टेक्नॉलॉजी का प्रयोग किया जाए।

4.2 संपार्श्विक

बैंकों को अनिवार्य किया गया है कि एमएसई क्षेत्र में इकाइयों को 10 लाख रूपए तक दिए गए ऋणों के मामलों में संपार्श्विक जमानत स्वीकार न करें। बैंकों को यह भी सूचित किया गया है कि केवीआईसी के प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत वित्तपोषित सभी इकाइयों को 10 लाख रूपए तक संपार्श्विक-रहित ऋण प्रदान किया जाए।

एमएसई इकाइयों का अच्छा रिकार्ड तथा वित्तीय स्थिति के आधार पर बैंक, ऋण हेतु संपार्श्विक अपेक्षाओं में छूट की सीमा को (उचित प्राधिकारी के अनुमोदन से) 25 लाख रुपए तक बढ़ा सकते हैं।

बैंकों को सूचित किया गया है कि वे अपने शाखा स्तरीय अधिकारियों को ऋण गारंटी योजना कवर का उपभोग कराने हेतु प्रभावशाली ढंग से प्रोत्साहित करें तथा इस सबंध में उनके फील्ड स्टाफ के कार्य-निष्पादन को उनके मूल्यांकन में मानदंड के रूप में शामिल करें।

4.3 संमिश्र ऋण

बैंकों द्वारा 1 करोड़ रुपए तक की संमिश्र ऋण सीमा स्वीकृत की जा सकती है ताकि एमएसई उद्यमी एक ही स्थान पर अपनी कार्यशील पूंजी और मीयादी ऋण अपेक्षाओं का उपयोग कर सके।

4.4 एमएसएमई की विशेषीकृत शाखाएं

सरकारी क्षेत्र के बैंकों को सूचित किया गया है कि वे प्रत्येक जिले में कम से कम एक विशेषीकृत शाखा खोलें। साथ ही, बैंकों को अनुमति दी गई है कि वे 60 प्रतिशत या उससे अधिक एमएसएमई क्षेत्र को अग्रिम वाली अपनी सामान्य बैंकिंग शाखाओं को विशेषीकृत एमएसएमई शाखाओं के रूप में वर्गीकृत कर सकते हैं ताकि वे समग्र रूप से इस क्षेत्र को बेहतर सेवा उपलब्ध कराने हेतु और अधिक विशेषीकृत एमएसएमई शाखाएं खोल सकें। एमएसएमई क्षेत्र को ऋण में वृध्दि हेतु भारत सरकार द्वारा घोषित पॉलिसी पैकेज के अनुसार सरकारी क्षेत्र के बैंक लघु उद्यमों की अधिकता वाले पहचाने गये समूहों /केन्द्रों में विशेषीकृत एमएसएमई शाखाएं सुनिश्चित करेंगे ताकि उद्यमी आसानी से बैंक ऋण ले सकें तथा बैंक कार्मिक आवश्यक विशेषज्ञता विकसित कर सकें। विद्यमान विशेषीकृत लघु उद्योग शाखाओं को एमएसएमई शाखाओं के रूप में पुनःनामित किया जाए। हालांकि उनकी महत्वपूर्ण क्षमता एमएसएमई क्षेत्र को वित्त और अन्य सेवाएं प्रदान करने हेतु उपयोग में लायी जाएगी, उनके पास अन्य क्षेत्रों /उधारकर्ताओं को वित्त /अन्य सेवाएं प्रदान करने का परिचालनात्मक लचीलापन रहेगा।

4.5 विलंबित भुगतान

लघु उद्योग और अनुषंगी औद्योगिक उपक्रमों को विलंबित भुगतान पर ब्याज से संबंधित संशोधन अधिनियम, 1998 के अंतर्गत एमएसएमई इकाइयों को विलंबित भुगतान की देख-रेख के लिए दंडात्मक प्रावधान शामिल किए गए हैं। माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम (एमएसएमईडी), 2006 लागू होने के बाद लघु एवं अनुषंगी औद्योगिक उपक्रमों के लिए विलंबित भुगतान पर ब्याज अधिनियम, 1998 के वर्तमान प्रावधानों को मजबूत किया गया है जो निम्नानुसार हैं :

(i) क्रेता को उसके और आपूर्तिकर्ता के बीच लिखित रूप में सहमत तारीख को या उससे पूर्व आपूर्तिकर्ता को भुगतान करना होगा और यदि कोई समझौता नहीं हुआ हो तो नियत दिन से पूर्व भुगतान करना होगा। आपूर्तिकर्ता और क्रेता के बीच की सहमत अवधि स्वीकरण की तारीख अथवा माने गए स्वीकरण दिन से 45 (पैंतालीस) दिनों से अधिक नहीं होगी।

(ii) यदि क्रेता आपूर्तिकर्ता को राशि का भुगतान नहीं कर पाया तो वह राशि पर नियत दिन या निर्धारित तारीख से रिज़र्व बैंक द्वारा अधिसूचित बैंक दर का तीन गुना चक्रवृद्धी ब्याज, मासिक अंतराल सहित भुगतान करने हेतु बाध्य होगा।

(iii) आपूर्तिकर्ता द्वारा माल या सेवा की आपूर्ति के लिए क्रेता उक्त (ii) में सूचित ब्याज के भुगतान हेतु बाध्य होगा।

(iv) देय राशि में विवाद होने पर संबंधित राज्य सरकार द्वारा गठित माइक्रो और लघु उद्यम सुविधा सेवा परिषद से संपर्क किया जाएगा।

साथ ही, बैंकों को सूचित किया गया है कि वे विशेषतः एमएसएमई से खरीद से संबंधित भुगतान बाध्यता की पूर्ति हेतु बड़े उधारकर्ताओं के लिए समग्र कार्यकारी पूंजी सीमाओं के भीतर उप-सीमाएं निर्धारित करें।

4.6 रुग्ण माइक्रो और लघु उद्यमों के पुनर्वास पर संशोधित दिशा-निर्देश

संभाव्य रूप से अर्थक्षम रुग्ण एमएसई यूनिटों के पुनर्वास पर कार्यकारी दल (अध्यक्ष : डॉ. के.सी.चक्रवर्ती) की सिफ़ारिशों के परिप्रेक्ष्य में रुग्णता की परिभाषा में परिवर्तन करने और एमएसई यूनिटों की अर्थक्षमता का निर्धारण करने के लिए एक क्रियाविधि बनाने के संबंध में एमएसएमई मंत्रालय द्वारा इस विषय पर विचार करने के लिए एक समिति गठित की गई थी। उक्त समिति की सिफारिशों के आधार पर 01 नवम्‍बर 2012 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.एमएसएमई एण्‍ड एनएफएस सं.40/06.02.31/2012-13 द्वारा एमएसई क्षेत्र के रुग्ण यूनिटों के पुनर्वास पर संशोधित दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।

संशोधित दिशा-निर्देशों का उद्देश्य किसी यूनिट की रुग्ण के रूप में पहचान करने की प्रक्रिया में तेजी लाना, आरंभिक रुग्णता का पहले ही पता लगाना और किसी यूनिट को गैर-अर्थक्षम घोषित करने से पहले बैंकों द्वारा अपनायी जानेवाली एक क्रियाविधि बनाना है।

नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, माइक्रो या लघु उद्यमों (एमएसएमईडी अधिनियम, 2006 में यथा परिभाषित) को तभी रुग्‍ण कहा जाएगा जब (क) उद्यम का कोई उधारकर्ता खाता तीन महीने या अधिक समय से एनपीए बना हुआ हो; अथवा (ख) पिछले लेखा वर्ष के दौरान उसकी निवल संपत्ति में 50 प्रतिशत तक संचित हानि होने के कारण निवल संपत्ति का क्षरण हुआ हो।

संशोधित दिशा-निर्देशों में किसी यूनिट को गैर-अर्थक्षम घोषित करने से पहले बैंकों द्वारा अपनायी जानेवाली क्रियाविधि भी उपलब्ध करायी गयी है। बैंकों को यह सूचित किया गया है कि यूनिट की अर्थक्षमता संबंधी निर्णय शीघ्र परंतु किसी भी परिस्थिति में यूनिट के रूग्ण बन जाने के 3 महीनों के भीतर लिया जाए और किसी यूनिट को ‘संभाव्य रूप से अर्थक्षम/ अर्थक्षम’ घोषित किए जाने की तारीख से छ: महीनों के भीतर पुनर्वास पैकेज को पूर्णत: कार्यान्वित किया जाना चाहिए।

4.7 माइक्रो और लघु उद्यम क्षेत्र – वित्तीय साक्षरता और परामर्शी सहायता की अनिवार्यता

एमएसएमई क्षेत्र में वित्तीय वंचन (एक्‍सक्‍लूजन) की काफी अधिक मात्रा को देखते हुए बैंकों के लिए यह अनिवार्य है कि उक्त वंचित यूनिटों को औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र के भीतर लाया जाए। लेखाकरण तथा वित्त, कारोबारी आयोजना आदि सहित वित्तीय साक्षरता, परिचालनगत कौशल का अभाव एमएसई के उधारकर्ताओं के लिए कठिन चुनौती बनी है, जिसके कारण इन जटिल वित्तीय क्षेत्रों में बैंकों द्वारा सुविधा प्रदान किए जाने की जरूरत अधोरेखित हो जाती है। साथ ही साथ, एमएसई उद्यम माप (स्केल) एवं आकार के अभाव के कारण इस संबंध में और असहाय बन जाते हैं। इन कमियों को कारगर ढ़ंग से तथा निर्णायक रूप से दूर करने के लिए अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को 1 अगस्त 2012 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.सं.एमएसएमई एण्ड एनएफएस. बीसी.20/06.02.31/2012-13 द्वारा सूचित किया गया कि बैंक या तो अपनी शाखाओं में अपनी तुलनात्मक सुविधानुसार अलग से विशेष कक्ष स्थापित करें अथवा उनके द्वारा स्थापित वित्तीय साक्षरता केंद्रों में इसके लिए अलग कार्य मद (वर्टिकल) बनाएं। इस क्षेत्र की जरुरतों को पूरा करने के लिए बैंक के स्टाफ को भी अनुकूलित प्रशिक्षण के माध्यम से प्रशिक्षित कराया जाए।

4.8 एमएसई क्षेत्र को ऋण की वृद्धि पर निगरानी के लिए संरचित तंत्र

एमएसई क्षेत्र को ऋण की वृद्धि में कमी के कारण उत्‍पन्‍न चिंताओं को देखते हुए, इस क्षेत्र में ऋण संबंधी सभी मुद्दों की निगरानी के लिए बैंकों द्वारा सुनियोजित कार्यविधि का सुझाव देने के लिए भारतीय बैंक संघ की अगुवाई में एक उप-समिति (अध्यक्ष : श्री के.आर.कामथ) गठित की गई थी। समिति की सिफारिशों के आधार पर बैंकों को सूचित किया गया है कि :

  • इस क्षेत्र को ऋण वृद्धि पर निगरानी के लिए वर्तमान प्रणालियों को सुदृढ़ करें और प्रत्‍येक पर्यवेक्षी स्‍तर पर (शाखा, क्षेत्र, अंचल, प्रधान कार्यालय) व्‍यापक निष्‍पादन प्रबंध सूचना प्रणाली (एमआईएस) स्‍थापित करें जिसकी नियमित आधार पर विवेचना की जाए;

  • बैंकों में ऋण आवेदन निपटान प्रक्रिया की निगरानी तथा एमएसई ऋण आवेदन की ई-ट्रैकिंग सिस्‍टम, जिसमें शाखा-वार, क्षेत्र-वार, अंचल-वार और राज्‍य-वार स्थिति दी जाए। इस संबंध में स्थिति बैंकों द्वारा उनकी वेबसाइट पर दिखाई जाए, और

  • रुग्ण एमएसई इकाइयों के समय पर पुनर्वास पर निगरानी रखें। रुग्ण एमएसई इकाइयों के पुनर्वास की प्रगति बैंकों की वेबसाइट पर दिखाई जाए।

दिनांक 9 मई 2013 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.एमएसएमई एण्ड एनएफएस. बीसी.सं.74/06.02.31/ 2012-13 के द्वारा सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को विस्‍तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।

4.9 संशोधित सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) योजना

समग्र प्राथमिकता-प्राप्त दिशा-निर्देशों के भीतर सभी उत्पादक गतिविधियों के लिए उच्चतर ऋण संबद्धता को सुनिश्चित करने के लिए जीसीसी योजना की व्याप्ति को बढ़ाने और व्यक्तियों को कृषीतर उद्यमी गतिविधि के लिए बैंकों द्वारा दिए गए समस्त क्रेडिट को पा लेने की दृष्टि से जीसीसी दिशा-निर्देशों को 2 दिसंबर 2013 को संशोधित किया गया है।

4.10. राज्य स्तरीय अंतर संस्थागत समिति

रुग्ण माइक्रो एवं लघु उद्योग इकाइयों के पुनर्वास हेतु समन्वय की समस्याओं से निपटने के लिए राज्यों में राज्य स्तरीय अंतर संस्थागत समितियाँ गठित की गई थीं। तथापि, राज्य स्तरीय अंतर संस्थागत समिति मंच का जारी रहना अथवा समाप्त किया जाना हर राज्य/ संघशासित क्षेत्र पर छोड़ दिया गया है। इन समितियों की बैठकें भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा संबंधित राज्य सरकार के उद्योग सचिव की अध्यक्षता में की जाती हैं। यह समिति एक तरफ राज्य सरकार के अधिकारियों और राज्य स्तरीय संस्थानों तथा दूसरी तरफ मीयादी ऋण संस्थानों और बैंकों के बीच पर्याप्त आदान-प्रदान हेतु उपयोगी मंच उपलब्ध कराता है। यह उन इकाइयों को कार्यकारी पूंजी स्वीकृत करने पर कड़ी निगरानी रखता है जिन्हें एसएफसी द्वारा मीयादी ऋण उपलब्ध कराया गया हो, विशेष योजनाओं जैसे राज्य सरकार की मार्जिन मनी योजना का कार्यान्वयन करता है तथा बैंकों द्वारा प्रस्तुत ब्योरे के आधार पर उद्योगों की सामान्य समस्याओं तथा एमएसई क्षेत्र में रूग्णता की समीक्षा करता है। दूसरों के साथ-साथ, स्थानीय राज्य स्तरीय एमएसई संघ के प्रतिनिधियों को तिमाही आधार पर आयोजित एसएलआईआईसी की बैठकों में आमंत्रित किया जाता है। एसएलआईआईसी की एक उप-समिति प्रत्येक रूग्ण एमएसई इकाई की समस्याओं की जांच करती है तथा अपनी सिफारिश एसएलआईआईसी के मंच के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत करती है ।

4.11 माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) के लिए अधिकार-प्राप्त समिति

भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों में यूनियन वित्त मंत्री द्वारा की गई घोषणा के अनुसार क्षेत्रीय निदेशकों की अध्यक्षता में माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यमों पर अधिकार-प्राप्त समितियां गठित की गई हैं। इन समितियों में राज्य स्तरीय बैंकर समिति संयोजक के प्रतिनिधि, दो बैंकों, जिनका राज्य में माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम को वित्तपोषण में सर्वाधिक हिस्सा हो, के वरिष्ठ स्तर के अधिकारी, सिडबी क्षेत्रीय कार्यालय के प्रतिनिधि, राज्य सरकार उद्योग के निदेशक, राज्य में माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम संघ के एक या दो वरिष्ठ स्तर के प्रतिनिधि तथा एसएफसी/एसआईडीसी से एक वरिष्ठ अधिकारी सदस्य के रूप में होते हैं। इस समिति की बैठक नियत अवधि पर होगी तथा माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम के वित्तपोषण में हुई प्रगति और रुग्ण माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम इकाइयों के पुनर्वास की भी समीक्षा करेगी। यह क्षेत्र को सहज ऋण उपलब्धता सुनिश्चित करने में आने वाली बाधाओं, यदि कोई हों, के निवारण हेतु अन्य बैंकों/ वित्तीय संस्थानों और राज्य सरकार के साथ समन्वय करेगी। ये समितियां समूह/ जिला स्तर पर ऐसी ही समितियां गठित करने की आवश्यकता का निर्णय लेंगी।

4.12 एमएसएमई हेतु ऋण पुनर्संरचना तंत्र

(i) बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग द्वारा सभी वाणिज्‍य बैंकों को बैंकों द्वारा एसएमई ऋण पुनर्संरचना पर विवेकपूर्ण दिशा-निर्देश सूचित किए गए हैं देखें दिनांक 30 मई 2013 के परिपत्र बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.99/21.04.132/2012-13 के साथ पठित 27 अगस्त 2008 का परिपत्र बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.37/21.04.132/2008-09 और 6 जून 2013 तथा 30 मार्च 2015 के बैंपविवि के मेल बॉक्स स्पष्टीकरण एवं बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्संरचना पर समय-समय पर जारी बाद के दिशा-निर्देश।

ii) रुग्ण एमएसई के पुनर्वास के लिए कार्यदल (अध्यक्ष : डॉ. के.सी.चक्रवर्ती) की सिफारिशों के परिप्रेक्ष्य में दिनांक 4 मई 2009 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.एसएमई.एंडएनएफएस.बीसी.सं.102/ 06.04.01/2008-09 द्वारा सभी वाणिज्य बैंकों को सूचित किया गया था कि वे :

क) निदेशक मंडल के अनुमोदन से ऋण सुविधाएं प्रदान करने की नियंत्रक ऋण नीति, संभाव्य अर्थक्षम रुग्ण इकाइयों/ उद्यमों के पुनर्जीवन के लिए पुनर्संरचना/ पुनर्वास नीति तथा एमएसई क्षेत्र के लिए अनर्जक ऋण की वसूली के लिए नॉन-डिसक्रीशनरी एकबारगी निपटान योजना लागू करें तथा

ख) एमएसई क्षेत्र को समय पर तथा पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराने के संबंध में सिफारिशों को कार्यान्वित करें।

(iii) बैंकों को सूचित किया गया है कि वे उनके द्वारा कार्यान्वित एकबारगी निपटान योजना बैंक की वेबसाइट पर डालकर तथा अन्य संभावित प्रचार विधि के माध्यम से प्रचार करें। वे उधारकर्ताओं को आवेदन प्रस्तुत करने तथा देय राशि की चुकौती करने के लिए भी पर्याप्त समय दें ताकि पात्र उधारकर्ताओं को योजना के लाभ प्रदान किए जा सकें।

4.13 समूह (क्लस्टर) दृष्टिकोण

सभी एसएलबीसी संयोजक बैंकों को सूचित किया गया है कि वे अपनी वार्षिक ऋण योजनाओं में माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पहचाने गए समूहों की ऋण आवश्यकताओं को दर्ज करें ।

(i) गांगुली समिति की सिफारिशों (4 सितंबर 2004) के अनुसार बैंकों को सूचित किया गया है कि वे 4 – सी दृष्टिकोण अपनाकर - अर्थात् ग्राहक फोकस, लागत नियंत्रण, प्रति बिक्री (क्रॉस सेल) तथा जोखिम रोकथाम - पहचाने गए एमएसई समूहों को बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने के माध्यम से एसएसआई क्षेत्र (अब एमएसई क्षेत्र) की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संपूर्ण-सेवा दृष्टिकोण प्राप्त करें। उधार हेतु समूह आधारित दृष्टिकोण निम्नलिखित में अधिक लाभकारी होगा :

क. सुपरिभाषित तथा मान्यता-प्राप्त समूहों से व्यवहार;
ख. जोखिम निर्धारण हेतु उपयुक्त जानकारी की उपलब्धता तथा
ग. उधारदाता संस्थानों द्वारा निगरानी।

समूहों को व्यापार रिकार्ड, प्रतिस्पर्धात्मकता तथा वृद्धि संभावनाओं और/ या अन्य समूह विशिष्ट डाटा के आधार पर पहचाना जा सकता है।

(ii) वार्षिक नीति वक्तव्य 2007-08 के पैरा 157 में गवर्नर द्वारा की गई घोषणा के अनुसार दिनांक 8 मई 2007 के पत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.सं.10416/06.02.31/2006-07 द्वारा सभी एसएलबीसी संयोजक बैंकों को सूचित किया गया था कि वे एमएसएमई क्षेत्र को ऋण प्रदान करने हेतु अपने संस्थागत व्यवस्था की समीक्षा करें, विशेषकर देश के विभिन्न भागों में 21 राज्यों में फैले 388 समूहों में जो युनाइटेड नेशन औद्योगिक विकास संघ (यूएनआईडीओ) द्वारा पहचाने गए हैं। यूएनआईडीओ द्वारा पहचाने गए एसएमई समूहों की सूची अनुबंध II में दी गई है।

(iii) माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने पारंपरिक उद्योगों के पुनर्सृजन हेतु निधि योजना (एसएफयूआरटीआई) तथा माइक्रो एवं लघु उद्यम समूह विकास कार्यक्रम (एमएसई-सीडीपी) के अंतर्गत 121 अल्पसंख्यक बहुल जिलों में स्थित समूहों की सूची अनुमोदित की है। तदनुसार, देश के अल्पसंख्यक बहुल जिलों में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदायों में से माइक्रो और लघु उद्यमियों के पहचाने गए समूहों को ऋण उपलब्ध कराने हेतु उचित उपाय किये गये हैं।

(iv) एमएसएमई पर प्रधानमंत्री टास्क फोर्स की सिफारिशों के अनुसार बैंकों को विभिन्न एमएसई समूहों में एमएसई केन्द्रित अधिक शाखा कार्यालय खोलने चाहिए जो एमएसई के लिए परामर्श केन्द्रों के रूप में कार्य कर सकें। जिले के प्रत्येक अग्रणी बैंक द्वारा कम से कम एक एमएसई समूह को अपनाया जाए।

4.14 लघु उद्यम वित्‍तीय केंद्र (एसईएफसी) योजना

वार्षिक नीति वक्तव्य 2005-06 में गवर्नर द्वारा की गई घोषणा के अनुसार बैंकों की शाखाओं और समूहों में स्थित सिडबी के बीच नीतिगत गठबंधन के लिए तत्‍कालीन लघु उदयोग मंत्रालय और बैंकिंग प्रभाग, वित्‍त मंत्रालय, भारत सरकार, सिडबी, आईबीए और चुनिंदा बैंकों के साथ परामर्श से “लघु उद्यम वित्‍तीय केंद्रों“ के रूप में योजना बनाई गई है और 20 मई 2005 को उन केंद्रों की सूची सभी अनुसूचित वाणिज्‍य बैंकों को कार्यान्‍वयन हेतु परिचालित की गई है। सिडबी ने अब तक 15 बैंकों (बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक, यस बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स, पंजाब नैशनल बैंक, देना बैंक, आंध्र बैंक, इंडियन बैंक, कारपोरेशन बैंक, आईडीबीआई बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, युनियन बैंक ऑफ इंडिया, भारतीय स्‍टेट बैंक और फेडरल बैंक) के साथ एमओयू निष्पादित किया है। विद्यमान सिडबी शाखाओं द्वारा समावेशित एमएसएमई समूहो की सूची अनुबंध III दी गई है।

4.15 ऋण सहलग्न पूंजीगत सब्सिडी योजना (सीएलएसएस)

भारत सरकार, माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने निम्नलिखित शर्तों के अधीन माइक्रो और लघु उद्यमों को प्रौद्योगिकी के X प्लान से XI प्लान (2007-12) में उन्नयन के लिए ऋण सहलग्न पूंजीगत सब्सिडी योजना (सीएलएसएस) को जारी रखने के लिए अपना अनुमोदन दे दिया है :

i) योजना के अंतर्गत ऋण की अधिकतम सीमा एक करोड़ रुपए है।

ii) ऊपर क्रम संख्या (i) में बताई गई अधिकतम सीमा वाले माइक्रो और लघु उद्यमों की सभी इकाइयों के लिए सब्सिडी की दर 15 प्रतिशत है।

iii) स्वीकार्य सब्सिडी की गणना संयंत्र और मशीनरी के खरीदी मूल्य के आधार पर की जाएगी नकि लाभार्थी इकाई को दिए गए मीयादी ऋण के आधार पर।

iv) सिडबी और नाबार्ड योजना की कार्यान्वयनकर्ता एजेंसियां बनी रहेंगी।

4.16 भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड (बीसीएसबीआई)

भारतीय बैंकिंग संहिता और मानक बोर्ड ने माइक्रो और लघु उद्यमों के लिए बैंक प्रतिबध्दता की संहिता तैयार की है। यह स्वैच्छिक संहिता है जो बैंको द्वारा, जब वे माइक्रो और लघु उद्यमों से संव्यवहार करते हैं, माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 में परिभाषित किए गए अनुसार, अपनाए जाने के लिए बैंकिंग संव्यवहार के न्यूनतम मानक तय करती है। यह माइक्रो और लघु उद्यमों को संरक्षण प्रदान करती है और बैंकों को यह बताती है कि माइक्रो और लघु उद्यमों के साथ संव्यवहार करते समय उनके दैनिक परिचालन में और वित्तीय समस्याओं की घड़ी में बैंकों से क्या अपेक्षा की गई है।

यह संहिता भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियामक या पर्यवेक्षी अनुदेशों को न तो परिवर्तित करती है और न ही अधिक्रमित करती है और बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी ऐसे अनुदेशों/ निदेशों का पालन करते रहेंगे।

4.16.1 बीसीएसबीआई संहिता के उद्देश्य

यह संहिता इसलिए तैयार की गई है कि यह :

क) सक्षम बैंकिंग सेवाओं तक माइक्रो और लघु उद्यम क्षेत्र की पहुंच को आसान बनाने के लिए उन्हें एक सकारात्मक बल प्रदान करती हैं।

ख) माइक्रो और लघु उद्यमों के साथ लेनदेन करने में न्यूनतम मानक तय करके अच्छे और उचित बैंकिंग संव्यवहारों का प्रसार करती है।

ग) पारदर्शिता बढ़ाती है ताकि सेवाओं से यथोचित रूप से क्या अपेक्षित है इसे भलिभांति समझा जा सके।

घ) प्रभावी संप्रेषणीयता के जरिए कारोबार की समझ में सुधार लाती है।

ड.) उच्चतर परिचालनगत मानकों को प्राप्त करने के लिए स्पर्धा के जरिए बाजारी शक्तियों को प्रोत्साहित करती है।

च) माइक्रो और लघु उद्यमों और बैंकों के बीच स्वच्छ और सौहार्दपूर्ण संबंध बढ़ाने के साथ-साथ बैंकिंग आवश्यकताओं के प्रति सामयिक और त्वरीत प्रतिसाद सुनिश्चित करती है।

छ) बैंकिंग प्रणाली में विश्वास को बढ़ाती है।

संहिता का पूरा पाठ बीसीएसबीआई की वेबसाइट (www.bcsbi.org.in) पर उपलब्ध है।

खण्‍ड - V

5. माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसई) क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने के लिए समिति

5.1 लघु उद्योग (अब एमएसई) को ऋण पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट (कपूर समिति)

भारतीय रिज़र्व बैंक ने लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण की सुपुर्दगी प्रणाली सुधारने तथा कार्य-विधि के सरलीकरण हेतु उपाय सुझाने के लिए एकल व्यक्ति उच्च स्तरीय समिति नियुक्त की थी (30 जून 1998) जिसके अध्यक्ष श्री एस.एल.कपूर, (आई.ए.एस.,सेवानिवृत्त), भूतपूर्व सचिव, भारत सरकार, उद्योग मंत्रालय थे। समिति ने 126 सिफारिशें की जिनमें लघु उद्योग क्षेत्र के वित्तपोषण से संबधित व्यापक क्षेत्र शामिल हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इन सिफारिशों की जांच की गई तथा 88 सिफारिशों को स्वीकार करने का निर्णय लिया गया जिसमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण सिफारिशें शामिल हैं :

  1. तदर्थ सीमाएं प्रदान करने हेतु शाखा प्रबंधकों को अधिक शक्तियाँ प्रदान करना;

  2. आवेदन फार्मों का सरलीकरण;

  3. ऋण अपेक्षाओं के मूल्यांकन हेतु बैंकों को स्वयं के मानदंड निर्धारित करने की स्वतंत्रता;

  4. और अधिक विशेषीकृत लघु उद्योग शाखाएं खोलना;

  5. संमिश्र ऋण की सीमा में 5 लाख रुपए तक की वृद्धि (अब बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए);

  6. वसूली तंत्र को मजबूत करना;

  7. बैंकों द्वारा पिछड़े राज्यों के प्रति अधिक ध्यान देना;

  8. छोटी परियोजनाओं के मूल्यांकन हेतु शाखा प्रबंधकों को प्रशिक्षित करने हेतु विशेष कार्यक्रम;

  9. बैंक द्वारा ग्राहक शिकायत तंत्र को अधिक पारदर्शी बनाना तथा शिकायतों के निपटान और उनकी निगरानी की प्रक्रिया सरल बनाना।

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को दिनांक 28 अगस्त 1998 को परिपत्र ग्राआऋवि.सं.पीएलएनएफएस. बीसी.सं. 22/06.02.31/98-99 जारी किया गया जिसमें कपूर समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन के बारे में सूचित किया गया।

5.2 लघु उद्योग क्षेत्र (अब एमएसई) को संस्थागत ऋण की पर्याप्तता और संबंधित पहलुओं की जाँच हेतु समिति की रिपोर्ट (नायक समिति)

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा तत्कालीन उप गवर्नर श्री पी.आर.नायक की अध्यक्षता में दिसंबर 1991 में लघु उद्योगों (अब एमएसई) द्वारा वित्त प्राप्त करने से संबंधित मुद्दों की जाँच हेतु एक समिति गठित की गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट 1992 में प्रस्तुत की। समिति की सभी मुख्य सिफारिशें स्वीकार कर ली गई हैं तथा बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ सूचित किया गया है कि वे -

  1. लघु उद्योग क्षेत्र की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करते समय ग्रामीण उद्योगों, अत्यन्त लघु उद्योगों और अन्य छोटी इकाइयों को उसी क्रम में वरीयता दें;

  2. उन लघु उद्योग (अब एमएसई) इकाइयों को कार्यशील पूंजी ऋण सीमा उनकी अनुमानित वार्षिक आय के कम से कम 20 प्रतिशत के आधार पर प्रदान करें; जिनकी प्रत्येक इकाई की ऋण सीमा 2 करोड़ रुपए तक (अब 5 करोड रुपए हो गई है ) हो;

  3. ‘बॉटम-अप’ आधार पर वार्षिक ऋण बजट तैयार करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लघु उद्योग (अब एमएसई) क्षेत्र की विधिसंगत आवश्यकताएँ पूरी होती हैं;

  4. लघु उद्योगों (अब एमएसई) की वित्तीय आवश्यकताओं (कार्यशील पूंजी और मीयादी ऋण दोनों) को पूरा करने के लिए सभी जिलों को सिडबी की एक ही काउंटर पर सभी सुविधाएँ प्रदान करने की योजना उपलब्ध कराई जाए;

  5. यह सुनिश्चित करें कि ऋण स्वीकृत होने और उसके संवितरण में विलम्ब नहीं होना चाहिए। ऋण प्रस्ताव की ऋण सीमा में कमी/ अस्वीकृति होने पर संदर्भ उच्च अधिकारियों के पास भेजा जाना चाहिए;

  6. ऋण स्वीकृति के लिए बदले में आवश्यक जमाराशि पर जोर न दिया जाए;

  7. विशेषीकृत लघु उद्योग (अब एमएसई) बैंक शाखाएँ खोलें अथवा बड़ी संख्या में लघु उद्योग (अब एमएसई) उधार खातों वाली शाखाओं को विशेषीकृत लघु उद्योग (अब एमएसई) शाखाओं में परिवर्तित करें;

  8. रुग्ण लघु उद्योग (अब एमएसई) इकाइयों की पहचान करें और उनमें सुधार के लिए तुरन्त आवश्यक कार्रवाई करें;

  9. लघु उद्योग (अब एमएसई) उधारकर्ताओं के लिए मानकीकृत ऋण आवेदन फार्म तैयार करें; एवं

  10. विशेषीकृत शाखाओं में कार्यरत स्टाफ में स्थिति संबंधी परिवर्तन लाने के लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए।

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को दिनांक 2 मार्च 2001 को परिपत्र ग्राआऋवि. पीएलएनएफएस. बीसी.सं. 61/06.02.62/2000-01 जारी किया गया जिसमें नायक समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन के बारे में सूचित किया गया।

5.3 लघु उद्योगों (अब एमएसई) क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने पर कार्यकारी दल की रिपोर्ट (गांगुली समिति)

भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा मौद्रिक और ऋण नीति 2003-04 की मध्यावधि समीक्षा में की गई घोषणा के अनुसार डॉ. ए.एस.गांगुली की अध्यक्षता में "लघु उद्योग क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने पर कार्यकारी दल" का गठन किया गया।

समिति ने लघु उद्योग क्षेत्र के वित्तपोषण से संबंधित क्षेत्रों को व्यापक रूप से कवर करते हुए 31 सिफारिशें की हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक और बैंकों से संबंधित सिफारिशों की जाँच की गई जिसमें से अभी तक निम्नलिखित 8 सिफारिशें स्वीकार की गईं और बैंकों को उनके कार्यान्वयन हेतु दिनांक 4 सितंबर 2004 के परिपत्र ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस.बीसी. 28/06.02.31(डब्ल्यूजी)/2004-05 द्वारा सूचित किया गया जो निम्नानुसार हैं :

  1. एमएसएमई क्षेत्र के वित्तपोषण के लिए समूह आधारित दृष्टिकोण अपनाना;

  2. छोटे और अत्यंत लघु उद्योगों और अलग-अलग उद्यमियों को सेवा देने वाले अग्रणी बैंकों द्वारा गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के सफल कार्य मॉडल के व्यापक प्रचार के साथ-साथ विशिष्ट परियोजनाओं को प्रायोजित करना;

  3. पहाड़ी क्षेत्रों की दिक्कतों, बार-बार बाढ़ से परिवहन में बाधा आने जैसी कठिनाइयों को देखते हुए अपने वाणिज्य निर्णय के आधार पर उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में कार्यरत बैंकों द्वारा लघु उद्योगों (अब एमएसई) को उच्चतर कार्यकारी पूंजी सीमा स्वीकृत करना;

  4. बैंकों द्वारा ग्रामीण उद्योग के उन्नयन तथा ग्रामीण कामगारों, ग्रामीण उद्योगों और ग्रामीण उद्यमियों को ऋण उपलब्ध कराने में सुधार के लिए नए उपाय खोजना; एवं

  5. विदेशी बैंकों द्वारा प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को निर्धारित लक्ष्य से कम ऋण देने के कारण सिडबी के पास जमा की गई शार्ट फाल की राशि की अवधि तथा उसके ब्याज दर ढाँचे में संशोधन।

5.4 रुग्ण एसएमई के पुनर्वास पर कार्यकारी दल (अध्यक्ष: डॉ. के.सी.चक्रवर्ती)

रुग्ण एमएसई के पुनर्वास पर कार्यकारी दल (अध्यक्ष: डॉ. के.सी.चक्रवर्ती, तत्कालीन अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, पंजाब नैशनल बैंक) की सिफारिशों के परिप्रेक्ष्य में सभी वणिज्यिक बैंकों को 4 मई 2009 के हमारे परिपत्र ग्राआऋवि.एसएमई एंड एनएफएस.बीसी.सं.102/06.04.01/2008-09 द्वारा सूचित किया गया कि :

क) वे अपने निदेशक बोर्ड के अनुमोदन से एमएसई क्षेत्र के लिए क्रेडिट सुविधाएं प्रदान करने के संबंध में ऋण नीतियां, संभाव्य रूप से अर्थक्षम रुग्ण यूनिटों/ उद्यमों के पुनरुज्जीवन के लिए पुनर्संरचना/ पुनर्वास नीतियां और गैर निष्पादक ऋणों की वसूली के लिए एकबारगी निपटान योजना स्थापित करें और

ख) उक्त सिफारिशों का ऊपर उल्लिखित परिपत्र में वर्णित प्रकार से एमएसई क्षेत्र को समय पर तथा पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराते हुए कार्यान्वयन करें।

उपर्युक्त 4 मई 2009 के परिपत्र द्वारा बैंकों को अन्य बातों के साथ-साथ उन सिफ़ारिशों को कार्यान्वित करने पर विचार करने के लिए भी सूचित किया गया था कि 2 करोड़ रुपए तक के सभी अग्रिमों के मामले में स्कोरिंग मॉडल के आधार पर उधार दिए जाएं। बैंकों को 15 अप्रैल 2014 के परिपत्र बैंपविवि.डीआईआर.बीसी.सं.106/13.03.00/2013-14 द्वारा यह भी सूचित किया गया कि वे एमएसई उधारकर्ताओं के ऋण प्रस्तावों के मूल्यांकन में बोर्ड अनुमोदित क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल का प्रयोग करने की दृष्टि से एमएसई क्षेत्र को क्रेडिट सुविधाएं प्रदान करने के संबंध में लागू अपनी ऋण नीति की समीक्षा करें।

5.5 माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम पर प्रधानमंत्री का टास्क फोर्स

माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) द्वारा उठाए विभिन्न मामलों पर विचार करने हेतु भारत सरकार द्वारा जनवरी 2010 में एक उच्च स्तरीय टास्क फोर्स (अध्यक्षः श्री टी.के.ए.नायर) गठित किया गया था। टास्क फोर्स ने एमएसएमई के कार्य अर्थात् ऋण, विपणन, श्रम, निकास नीति, मूलभूत सुविधाएं/ प्रौद्योगिकी/ कौशल उन्नयन तथा कर-निर्धारण से संबंधित विभिन्न उपायों की सिफारिश की। व्यापक सिफारिशों में वे उपाय जिन पर तुरंत कार्रवाई आवश्यक है तथा विधि और नियामक ढांचा सहित मध्यावधि संस्थागत उपाय भी तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों और जम्मू और कश्मीर के लिए सिफारिशें शामिल हैं।

बैंकों को टास्क फोर्स द्वारा की गई सिफारिशों को ध्यान में रखकर एमएसई क्षेत्र, विशेषतः माइक्रो उद्यमों को ऋण उपलब्धता बढ़ाने हेतु प्रभावी कदम उठाने हेतु प्रेरित किया जाता है।

एमएसएमई पर प्रधानमंत्री टास्क फोर्स की सिफारिशों के कार्यान्वयन की सूचना देते हुए सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को दिनांक 29 जून 2010 का परिपत्र ग्राआऋवि.एसएमई एंड एनएफएस. बीसी.सं.90/06.02.31/2009-10 जारी किया गया।

माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम पर प्रधानमंत्री टास्क फोर्स की रिपोर्ट माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय की निम्नलिखित वेबसाइट पर उपलब्ध है। (http://msme.gov.in/WriteReadData/DocumentFile/PM_MSME_Task_Force_Jan2010.pdf)

5.6 माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसई) हेतु ऋण गारंटी योजना की समीक्षा करने हेतु कार्यकारी दल

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सीजीटीएमएसई की ऋण गारंटी योजना के कार्य की समीक्षा करने, उसके प्रयोग को बढ़ाने के उपाय सुझाने तथा एमएसई को संपार्श्विक रहित ऋण में वृद्धि को सुगम बनाने हेतु श्री वी.के.शर्मा, कार्यपालक निदेशक की अध्यक्षता में एक कार्यकारी दल गठित किया गया था।

कार्यकारी दल की सिफारिशों में अन्य बातों के साथ-साथ माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसई) क्षेत्र को संपार्श्विक रहित ऋण सीमा को 5 लाख रुपए से 10 लाख रुपए तक अनिवार्यतः दुगुना करना तथा बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों को आदेश देना कि वे सीजीएस कवर का उपभोग करने हेतु शाखा स्तर के पदाधिकारियों को प्रभावशाली ढंग से प्रोत्साहित करें तथा उनके फील्ड स्टाफ, आदि का मूल्यांकन करने में इससे संबंधित कार्य-निष्पादन को एक मानदंड बनाए, शामिल है जो सभी बैंकों को सूचित किया गया।

सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों को दिनांक 6 मई 2010 का परिपत्र ग्राआऋवि.एसएमई एंड एनएफएस. बीसी.सं.79/06.02.31/2009-10 जारी किया गया जिसके द्वारा यह अनिवार्य किया गया कि वे एमएसई क्षेत्र की इकाइयों को प्रदत्त 10 लाख रुपए तक के ऋण के मामलों में संपार्श्विक जमानत स्वीकार न करें तथा यह सूचित किया गया कि वे सीजीएस कवर का उपभोग करने हेतु शाखा स्तर के पदाधिकारियों को प्रभावशाली ढंग से प्रोत्साहित करें जिसमें उनके फील्ड स्टाफ के मूल्यांकन में इससे संबंधित कार्य-निष्पादन को एक मानदंड बनाना शामिल है।


अनुबंध - I

लघु उद्योग मंत्रालय
अधिसूचना
नई दिल्ली, 5 अक्तूबर , 2006

का.आ. 1722 (अ)- केन्द्रीय सरकार, सूक्ष्म, माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (2006 का 27), जिसे इसमें उक्त अधिनियम कहा गया है, की धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित मदों को विनिर्दिष्ट करती है जिनकी लागत को उक्त अधिनियम के खण्ड 7 (1) (a) में वर्णित उद्यमों की दशा में संयंत्र एवं मशीनरी में विनिधान की गणना करते समय अपवर्जित किया जायेगा ।

  1. उपस्कर जैसे औजार , जिग्स, डाईयां, मोल्डस और रखरखाव के फालतू पुर्जे और उपभोज्य सामान की लागत ;

  2. संयंत्र और मशीनरी का प्रतिष्ठापन;

  3. अनुसन्धान और विकास उपस्कर और प्रदूषण नियंत्रण उपस्कर;

  4. राज्य बिजली बोर्ड के विनियम के अनुसार उद्यमों द्वारा प्रतिष्ठापित विद्युत उत्पादन सेट और अतिरिक्त ट्रांसफार्मर;

  5. राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम या राज्य लघु उद्योग निगम को संदत्त बैंक प्रभार और सेवा प्रभार;

  6. केबलों का प्रतिष्ठापन या उपार्जन, वायरिंग, बस बारों, विद्युत नियंत्रण पेनल ( जो किसी मशीन पर चढ़ी न हो) आइल सर्किट ब्रेकर्स या सूक्ष्म सर्किट ब्रेकर्स जो संयंत्र और मशीनरी को विद्युत शक्ति देने के लिए या सुरक्षात्मक उपाय के लिए आवश्यक रुप से प्रयोग किया जाना है;

  7. गैस उत्पादक संयंत्र;

  8. परिवहन प्रभार (बिक्रय कर या मूल्य वर्धित कर और उत्पाद शुल्क को छोड़कर ) स्वदेशी मशीन के लिए उनके उत्पादन के स्थान से उद्यम के स्थान तक;

  9. संयंत्र और मशीनरी के परिनिर्माण करने में तकनीकी ज्ञान के लिए प्रदत्त प्रभार;

  10. ऐसी भंडारण टंकी जो कच्चा माल और तैयार उत्पाद का भंडारण करते हों और जो उत्पादन प्रक्रिया से संबंधित न हों, और

  11. अग्निशमन उपस्कर ।

2. पैरा 1 के अनुसार संयंत्र और मशीनरी में विनिधान की गणना करते समय उसके वास्तविक मूल्य को इस बात पर ध्यान दिये बिना कि चाहे मशीनरी नई है या पुरानी गणना में लिया जाएगा परन्तु तब जब कि मशीनरी आयातित है तो निम्नलिखित को, मूल्य की गणना करते समय सम्मिलित किया जायेगा, अर्थात्

  1. आयात शुल्क (विभिन्न खर्चों जैसे पतन से कारखाने के स्थल तक का परिवहन खर्च, पत्तन पर संदत्त डेमरेज प्रभार, को छोड़कर ) ;

  2. नौवहन प्रभार;

  3. सीमा शुल्क निकासी प्रभार; और

  4. विक्रय कर या मूल्यवर्धित कर ।

(फा.सं.4(1)/2006-एमएसएमई नीति) ,
जवाहर सरकार, अपर सचिव


अनुबंध III

वर्तमान सिडबी शाखाओं द्वारा कवर किए गए लघु और मध्यम उद्यमों की सूची

क्रम सं. शाखा कार्यालय लघु उद्योग समूहों की सं. उत्पाद
1 हैदराबाद 5 छत के पंखे, इलैक्ट्रानिक सामान, फार्मास्युटिकल्स - दवाएँ, हैंड पंप सैट और ढलाई का कारखाना
2 पटना 19 तांबे और जर्मन के बर्तन
3 दिल्ली 19 स्टेनलेस स्टील के बर्तन और छुरी-कांटा आदि, रसायन, इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग उपस्कर, इलैक्ट्रानिक सामान, खाद्य उत्पाद, चमड़ा उत्पाद, मेकेनिकल इंजीनियरिंग उपस्कर, पैकेजिंग सामान, कागज उत्पाद, प्लास्टिक उत्पाद, तार लगाना, धातु की वस्तुएँ बनाना, फर्नीचर, इलैक्ट्रो प्लेटिंग, ऑटो कम्पोनेन्ट, होज़यरी, सिले-सिलाए वस्त्र, सेनिटरी फिटिंग
4 अहमदाबाद 17 फार्मास्युटिकल्स, डाय और इन्टरमीडिएट्स, प्लास्टिक का ढलाई का सामान, सिले-सिलाए वस्त्र, टेक्सटाइल मशीनरी के पुर्जे, हीरा प्रसंस्करण, मशीन औजार , ढलाई, स्टील के बर्तन, लकड़ी का सामान और फर्नीचर, कागज का उत्पाद, चमड़े की चप्पल -जूते, धुलाई का पाउडर और साबुन, संगमरमर के पट्टे, बिजली से चलने वाले पम्प, इलेक्ट्रानिक सामान, ऑटो पार्ट्स
5 सूरत 4 हीरा प्रसंस्करण, पावरलूम, लकड़ी का सामान और फर्नीचर, टेक्सटाइल मशीनरी
6 बड़ौदा 3 फार्मास्युटिकल - दवाएँ, प्लास्टिक प्रसंस्करण और लकड़ी का सामान और फर्नीचर
7 गोवा 1 फार्मास्युटिकल
8 फरीदाबाद 3 ऑटो कम्पोनेन्ट, इंजीनियरिंग समूह, पत्थर तोड़ना
9 गुड़गाँव 5 ऑटो कम्पोनेन्ट, इलैक्ट्रानिक सामान, इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग उपस्कर, सिले सिलाए वस्त्र, मेकॅनिकल इंजीनियरिंग उपस्कर
10 पारवानू (बादी) 1 इंजीनियरिंग उपस्कर
11 जम्मू 3 स्टील री-रोलिंग, तेल मिल, चावल मिल
12 जमशेदपूर 1 इंजीनियरिंग और गढ़ाई
13 बेंगलुरू 6 पावरलूम, इलैक्ट्रानिक सामान, सिले सिलाए वस्त्र, लाइट इंजीनियरिंग, चमड़ा उत्पाद
14 कोच्ची/एर्नाकुलम 3 रबड़ उत्पाद, पावरलूम, समुद्री आहार प्रसंस्करण
15 औरंगाबाद 2 ऑटो कम्पोनेन्ट और फार्मास्युटिकल दवाएँ
16 मुंबई 11 इलैक्ट्रानिक सामान, फार्मास्युटिकल मूल दवाएँ, खिलौने (प्लास्टिक), सिले-सिलाए वस्त्र, होज़यरी,मशीन औजार, इंजीनियरिंग उपस्कर,रसायन, पैकेजिंग सामग्री, हाथ के औजार, प्लास्टिक उत्पाद
17 नागपुर 6 पावरलूम, इंजीनियरिंग और गढ़ाई, स्टील फर्नीचर, सिले-सिलाए वस्त्र, हाथ के औजार, खाद्य प्रसंस्करण
18 पुणे 6 ऑटो कम्पोनेन्ट, इलैक्ट्रानिक सामान, खाद्य उत्पाद, सिले-सिलाए कपड़े फार्मास्युटिकल-दवाएँ, फाइबर ग्लास
19 ठाणे 2 फार्मास्युटिकल्स - दवाएँ और समुद्री आहार
20 भोपाल 1 इंजीनियरिंग उपस्कर
21 इन्दौर 4 फार्मास्युटिकल्स - दवाएँ, सीले-सिलाए वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, ऑटो कम्पोनेन्ट
22 लुधियाना 9 ऑटो कम्पोनेन्ट, बाइसिकल पुर्जे, होज़यरी, सिलाई की मशीन के पुर्जे, औद्योगिक कसनी, हाथ के औजार, मशीन औजार, फोर्जिंग इलैक्ट्रोप्लेटिंग
23 जयपुर 7 जवाहरात और आभूषण, बाल बीयरिंग, इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग उपस्कर, खाद्य उत्पाद , परिधान, नींबू, मेकॅनिकल इंजीनियरिंग उपस्कर
24 चेन्नै 3 ऑटो कम्पोनेन्ट, चमड़ा उत्पाद, इलैक्ट्रोप्लेटिंग
25 कोयम्बटूर 6 डीज़ल इंजिन, कृषि उपकरण, मशीन औजार, कास्टिंग और फोरजिंग, पावरलूम, वेट ग्राइंडिंग मशीन
26 तिरपुर 1 हौजयरी
27 नोएडा/गाजियाबाद 10 इलैक्ट्रानिक सामान, खिलौने, रसायन, इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग उपस्कर, परिधान, मैकेनिकल इंजीनियरिंग उपस्कर, पैकेजिंग सामग्री, प्लास्टिक उत्पाद, रसायन
28 कानपुर 3 ज़ीनसाज़ी, सूती हौजयरी, चमड़ा उत्पाद
29 वाराणसी 4 शीटवर्क (ग्लोब लैम्प), पावरलूम, कृषि औजार, बिजली के पंखे
30 देहरादून 1 छोटे वैक्यूम बल्ब
31 नासिक (शीघ्र खुलेगा) 1 स्टील फर्नीचर
  कुल 149  

परिशिष्ट

मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

सं. परिपत्र सं. तारीख विषय पैराग्राफ सं.
1. विसविवि. प्‍लान.बीसी. सं.54/ 04.09.01/2014-15 23/04/2015 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार- लक्ष्‍य और वर्गीकरण 2.3
2. ग्राआऋवि. एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं.61/ 06.02.31/2013-14 02/12/2013 संशोधित सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) योजना 4.9
3. ग्राआऋवि. एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं. 74/06. 02.31/2012-13 09/05/2013 एमएसई क्षेत्र को ऋण की वृद्धि पर निगरानी के लिए संरचित तंत्र 4.8
4. ग्राआऋवि.केंका.एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं. 40/06. 02.31/2012-13 01/11/2012 रुग्ण माइक्रो (सूक्ष्म) और लघु उद्यमों के पुनर्वास के लिए दिशानिर्देश 4.6
5. ग्राआऋवि. एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी. सं 20/06.02.31/2012-13 01/08/2012 माइक्रो और लघु उद्यम क्षेत्र को उधार – वित्तीय साक्षरता और परामर्शी सहायता की अनिवार्यता 4.7
6. ग्राआऋवि. एमएसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं. 53/06. 02.31/2011-12 04.01.2012 एमएसएमई उधारकर्ताओं को ऋण आवेदन की प्राप्ति-सूचना जारी करना 4.1
7. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी. सं.35/06.02.31(पी)/2010-11 06.12.2010 इकाइयों का स्वामित्व – एक ही स्वामित्व के अंतर्गत दो या उससे अधिक उपक्रम – इकाई की स्थिति 2.8
8. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस सं.90/06.02.31/ 2009-10 29.06.2010 एमएसएमई पर प्रधानमंत्री उच्च स्तरीय टास्क फोर्स की सिफारिशें 3.4, 5.5
9. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस.बीसी.सं.79/06.02.31/2009-10 06.05.2010 माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसई) हेतु ऋण गारंटी योजना की समीक्षा के लिए कार्य-दल - एमएसई को संपार्श्विक रहित ऋण 5.6
10. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस सं.9470/06.02.31(पी)/2009-10 11.03.2010 माइक्रो और लघु उद्यम (एमएसई) क्षेत्र को संमिश्र ऋण स्वीकृति 4.3
11. ग्राआऋवि.एसएमई एंड एनएफएस सं.13657/06.02.31(पी)/2008-09 18.06.2009 पीएमइजीपी के अंतर्गत वित्तपोषित इकाईयों को संपार्श्विक रहित ऋण 4.2
12. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस सं.102/06.04.01/2008-09 04.05.2009 माइक्रो और लघु उद्यम क्षेत्र को ऋण प्रदान कराना 5.4
13. ग्राआऋवि.एसएमई एण्ड एनएफएस सं.12372/06.02.31(पी)/2007-08 23.05.2008 ऋण सहलग्न पूंजी सब्सिडी योजना 4.15
14. ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस. बीसी.सं.63/06.02.31/2006-07 04.04.2007 माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना-माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 लागू करना 1
15. ग्राआऋवि.पीएलएनएफएस. बीसी.सं101/06.02।31/2004-05 20.05.2005 लघु उद्यम वित्तीय केन्द्रों (एसईएफसी) हेतु योजना 4.14

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