मास्टर परिपत्र - प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र - प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार
भारिबैं/2011-12/107 1 जुलाई 2011 अध्यक्ष / प्रबंध निदेशक / मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंक महोदय , मास्टर परिपत्र - प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार के बारे में बैंकों को समय-समय पर कई दिशा-निर्देश / अनुदेश / निदेश जारी किए हैं । बैंकों को सभी अद्यतन अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के प्रयोजन से इस संबंध में विद्यमान दिशा-निर्देशों /अनुदेशों /निदेशों को समाहित करते हुए एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है जो संलग्न है । इस मास्टर परिपत्र में, इसके परिशिष्ट में निर्दिष्ट किए गए अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपर्युक्त विषय पर दिनांक 30 जून 2011 तक जारी सभी परिपत्रों / मेल बॉक्स स्पष्टीकरण को समेकित किया गया है । कृपया प्राप्ति सूचना दें । भवदीया, ( दीपाली पन्त जोशी ) अनुलग्नक : यथोक्त प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार जुलाई 1968 में आयोजित राष्ट्रीय ऋण परिषद की बैठक में इस बात पर जोर दिया गया था कि वाणिज्य बैंक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र, अर्थात़् कृषि और लघु उद्योग क्षेत्र के वित्तपोषण हेतु ज्यादा प्रतिबद्धता दिखाएं। बाद में, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम से सम्बन्धित आंकड़ों के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मई 1971 में गठित अनौपचारिक अध्ययन दल की रिपोर्ट के आधार पर 1972 के दौरान प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के स्वरुप को औपचारिक अभिव्यक्ति प्रदान की गई । उक्त रिपोर्ट के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम की रिपोर्ट मंगवाने हेतु एक संशोधित विवरणी निर्धारित की और प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के विभिन्न वर्गों के अंतर्गत शामिल की जाने वाली योग्य मदों को इंगित करने के प्रयोजन से कतिपय दिशा-निर्देश भी जारी किये । हालांकि, प्रारम्भ में प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र उधारों के अंतर्गत कोई विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गए थे, नवम्बर 1974 में बैंकों को सूचित किया गया कि वे मार्च 1979 तक अपने सकल अग्रिमों में इन क्षेत्रों को देय अग्रिमों का प्रतिशत बढ़ाकर 33 1/3% कर दें । केन्द्रीय वित्त मंत्री और सरकारी क्षेत्र के बैंकों के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों के बीच मार्च 1980 में आयोजित एक बैठक में इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को देय अग्रिमों का अनुपात मार्च 1985 तक बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने हेतु बैंक लक्ष्य निर्धारित करें। बाद में, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र उधार तथा 20 सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम को बैंकों द्वारा लागू किये जाने विषयक तौर-तरीकों के निरुपण हेतु गठित कार्यकारी दल (अध्यक्षः डॉ. के.एस.कृष्णस्वामी) की सिफारिशों के आधार पर सभी वाणिज्य बैंकों को सूचित किया गया कि वे सकल बैंक अग्रिमों का 40% प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार देने का लक्ष्य 1985 तक प्राप्त करें । कृषि तथा कमज़ोर वर्गों की ऋण सहायता हेतु प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के दायरे में ही उप-लक्ष्य भी निर्दिष्ट किये गए थे । तब से अब तक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत देय उधारों तथा विभिन्न बैंक समूहों पर लागू लक्ष्यों तथा उप-लक्ष्यों में कई बार परिवर्तन हुए हैं । प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र का गठन करनेवाले खंडों, लक्ष्यों और उप-लक्ष्यों आदि सहित प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर मौजूदा नीति, तथा बैंकों, वित्तीय संस्थानों, जनता और भारतीय बैंक संघ से प्राप्त टिप्पणियों / सिफारिशों की जांच, समीक्षा और परिवर्तन की सिफारिश करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक में गठित आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्षः श्री सी.एस.मूर्ति) द्वारा सितंबर 2005 में की गई सिफारिशों के आधार पर यह निर्णय किया गया है कि केवल उन क्षेत्रों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के एक भाग के रूप में शामिल किया जाए जो जनसंख्या के एक बड़े हिस्से, कमज़ोर वर्गों तथा रोजगार प्रधान क्षेत्रों जैसे कृषि, अत्यंत लघु और लघु उद्यमों को प्रभावित करते हों। साथ ही, एमएफआइ क्षेत्र में मामलों और मुद्दों के अध्ययन हेतु गठित रिज़र्व बैंक के केन्द्रीय बोर्ड की उप-समिति (अध्यक्ष : श्री वाय.एच.मालेगाम ) ने अन्य बातों के साथ-साथ यह सिफारिश की थी कि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत एमएफआइ को बैंक ऋण का वर्गीकरण जारी रहे बशर्तें वे इस संबंध में निर्धारित कुछ मानदंडों का अनुपालन करें। वर्तमान में, सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के लिए मोटे तौर पर प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के निम्नलिखित वर्ग होंगे :
कृषि को अप्रत्यक्ष वित्त में भाग I में उल्लिखित कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए ऋण शामिल होंगे। (ii) व्यष्टि और लघु उद्यम (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वित्त) :व्यष्टि और लघु उद्यम को प्रत्यक्ष वित्त में सामान के विनिर्माण / उत्पादन, प्रसंस्करण या परिरक्षण में कार्यरत व्यष्टि और लघु (विनिर्माण) उद्यमों तथा सेवाएं प्रदान करने वाले व्यष्टि और लघु (सेवा) उद्यमों, जिनका क्रमशः संयंत्र और मशीनों तथा उपकरणों (भूमि और भवन तथा उसमें उल्लिखित ऐसी मदों को छोड़कर मूल लागत) में निवेश संलग्न भाग I में निर्धारित राशि से अधिक न हो, को प्रदान सभी प्रकार के ऋण शामिल हैं। व्यष्टि और लघु (सेवा) उद्यमों में भाग I में दी गई परिभाषा के अनुसार लघु सड़क एवं जलपरिवहन परिचालक, लघु व्यवसाय, व्यावसायिक और स्वनियोजित व्यक्तियों, खुदरा व्यापार अर्थात् आवश्यक वस्तुओं (उचित मूल्य की दुकान) के खुदरा व्यापारियों, उपभोक्ता सहकारी भंडारों को अग्रिम प्रदान करना तथा निजी खुदरा व्यापारियों को अग्रिम प्रदान करना जिसकी ऋण सीमा 20 लाख रुपए से अधिक न हो तथा अन्य सभी सेवा उद्यम शामिल होंगे। लघु उद्यमों को अप्रत्यक्ष वित्त में इस क्षेत्र में कारीगरों, ग्राम एवं कुटीर उद्योगों, हथकरघा उद्योग तथा उत्पादनकर्ता की सहकारी संस्थाओं को निविष्टियां उपलब्ध कराने तथा उनके उत्पादनों की विपणन व्यवस्था करनेवाले किसी भी व्यक्ति को दिया गया वित्त शामिल होगा। (iii) व्यष्टि ऋण : भाग I के पैरा 3.1 में दिए ब्योरे के अनुसार । (iv) शैक्षणिक ऋण : शैक्षणिक ऋण में अलग-अलग व्यक्तियों को शिक्षा के प्रयोजनार्थ भारत में अध्ययन के लिए 10 लाख रुपए तक तथा विदेश में 20 लाख रुपए के स्वीकृत ऋण और अग्रिम शामिल होंगे , न कि संस्थाओं को दिए गए ऋण और अग्रिम। शैक्षिक संस्थाओं को प्रदान ऋण, माइक्रो और लघु (सेवा) उद्यम के अंतर्गत प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम के रूप में वर्गीकृत होने के पात्र होंगे बशर्ते वे एमएसएमइडी अधिनियम, 2006 के प्रावधानों को पूरा करते हों। (v) आवास ऋणः व्यक्तियों को प्रति परिवार आवासीय इकाइयां खरीदने / निर्माण करने (बैंकों द्वारा अपने कर्मचारियों को प्रदान ऋण को छोड़कर) हेतु 25 लाख रुपए तक के ऋण तथा क्षतिग्रस्त आवासीय इकाइयों की मरम्मत के लिए ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्र में 1 लाख रुपए तक तथा शहरी और महानगरीय क्षेत्रों में 2 लाख रुपए तक के ऋण शामिल होंगे। II दिशानिर्देशों की अन्य महत्वपूर्ण विशेषताएं (i) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के विभिन्न वर्गों को दिए गए ऋण के रुप में बैंकों द्वारा प्रतिभूतिकृत आस्तियों में किया गया निवेश संदर्भित आस्तियों के आधार पर प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संबंधित वर्ग में वर्गीकृत किए जाने का पात्र होगा बशर्ते प्रतिभूतिकृत आस्तियां बैंकों और पात्र वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रायोजित की गई हों तथा प्रतिभूतिकरण पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों की अपेक्षाओं को पूरा करती हों । इसका यह अर्थ होगा कि प्रतिभूतिकृत आस्तियों के उक्त वर्गों में बैंक का निवेश प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संबंध में बैंक का निवेश प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संबंधित वर्गों में वर्गीकरण के लिए तभी पात्र होगा जब प्रतिभूतिकृत अग्रिम उनके प्रतिभूतिकरण से पहले प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र रहा हो। (ii) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र किसी ऋण आस्ति की एकमुश्त खरीद प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) के संबंधित वर्गों में वर्गीकरण के लिए पात्र होगी बशर्ते, खरीदे गए ऋण प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र हों ; ऋण आस्तियां विक्रेता के सहारे बिना बैंकों और पात्र वित्तीय संस्थाओं से (पूरी सावधानी से और उचित मूल्य पर) खरीदी गई हो; और पात्र ऋण आस्तियां, चुकौती के अलावा, खरीद की तारीख से छः माह की अवधि के अंदर निपटाई न गई हों। (iii) जब बैंक, बैंकों / पात्र वित्तीय संस्थाओं से प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत किए जानेवाले ऋण आस्तियों की एकमुश्त खरीद करते हैं तो उन्हें उस सांकेतिक रकम की सूचना देनी चाहिए, जो वास्तव में प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतिम उधारकर्ता को संवितरित की गई हो, न कि विक्रेता को प्रदत्त प्रीमियम युक्त राशि की। (iv) अंतर बैंक सहभागिता प्रमाणपत्र (आइबीपीसी) में जोखिम में हिस्सेदारी के आधार पर बैंकों द्वारा किया गया निवेश प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संबंधित वर्गों में वर्गीकरण के लिए पात्र होगा बशर्ते संदर्भित आस्तियां प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के संबंधित वर्गों में वर्गीकृत किए जाने के लिए पात्र हों और निवेश की तारीख से कम से कम 180 दिवस के लिए धारित की गई हों। (v) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लिए निर्धारित लक्ष्य और उपलक्ष्य पिछले वर्ष की 31 मार्च को समायोजित निवल बैंक ऋण (एएनबीसी) (निवल बैंक ऋण प्लस एचटीएम वर्ग में धारित गैर एसएलआर बाँडों में बैंक द्वारा किया गया निवेश) या तुलन पत्र से इतर एक्सपोज़र (ओबीइ) के बराबर ऋण की राशि, इनमें से जो भी अधिक हो, से सहबद्ध होगी। एफसीएनआर(बी) और एनआरएनआर जमाशेषों की बकाया राशि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के प्रयोजन के लिए एएनबीसी की गणना के लिए अब घटाई नहीं जाएगी। भारत सरकार द्वारा जारी पुनर्पूंजीकरण बाँडों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश को इस प्रयोजन के लिए हिसाब में नहीं लिया जाएगा। एचटीएम वर्ग में धारित गैर एसएलआर बांडों में बैंकों द्वारा किए गए मौजूदा और नए निवेश को एएनबीसी की गणना के लिए हिसाब में लिया जाएगा। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लक्ष्यों/उप-लक्ष्यों, भले ही उन्हें अनुसूची 8- तुलनपत्र में मद I(vi) –"अन्य" में निवेश के अंतर्गत दिखाया गया हो, को प्राप्त न करने के बदले नाबार्ड / सिडबी, जैसी भी स्थिति हो, में रखी गई जमाराशियों को एचटीएम वर्ग में धारित गैर एसएलआर बाँडों में किया गया निवेश नहीं माना जाएगा। तुलनपत्र से इतर एक्सपोज़र के बराबर ऋण राशि की गणना करने के प्रयोजन के लिए बैंक वर्तमान एक्सपोजर प्रणाली का उपयोग करें। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लक्ष्यों / उप-लक्ष्यों के प्रयोजन के लिए अंतर-बैंक एक्सपोज़र को हिसाब में नहीं लिया जाएगा। (vi) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लक्ष्यों / उपलक्ष्यों को प्राप्त न कर पाने के कारण बैंकों द्वारा रखी गई मौजूदा और नई जमाराशियां कृषि / छोटे उद्यम क्षेत्र, जो भी स्थिति हो, को अप्रत्यक्ष वित्त के रुप में वर्गीकरण के लिए पात्र नहीं होंगी। III. लक्ष्य / उप-लक्ष्य भारत में कारोबार करने वाले देशी और विदेशी बैंकों के लिए प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत ऋण देने के लिए निर्धारित लक्ष्य / उप-लक्ष्य निम्नानुसार हैं :
[एएनबीसी या तुलनपत्र से इतर एक्सपोज़र के बराबर ऋण राशि (भारतीय रिज़र्व बैंक के बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग द्वारा समय-समय पर यथापरिभाषित) की गणना पिछले वर्ष की 31 मार्च को बकाया राशि के संदर्भ में की जाएगी। इस प्रयोजन के लिए बकाया एफसीएनआर (बी) और एनआरएनआर जमाशेषों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के प्रयोजन के लिए एएनबीसी की गणना करने के लिए अब घटाया नहीं जाएगा। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के प्रयोजन के लिए एएनबीसी का मतलब है एनबीसी प्लस एचटीएम वर्ग में धारित गैर एसएलआर बाँडों में बैंकों द्वारा किया गया निवेश । भारत सरकार द्वारा जारी पुनर्पूंजीकरण बाँडो में बैंकों द्वारा किया गया निवेश एएनबीसी की गणना के प्रयोजन के लिए हिसाब में नहीं लिया जाएगा । एचटीएम वर्ग में धारित गैर एसएलआर बांडों में बैंकों द्वारा किए गए मौजूदा और नए निवेश को इस प्रयोजन के लिए हिसाब में लिया जाएगा। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लक्ष्यों/उप-लक्ष्यों, भले ही उन्हें अनुसूची 8-तुलन पत्र में मद I(vi) - "अन्य" में "निवेश" के अंतर्गत दिखाया गया हो, को प्राप्त न करने के बदले नाबार्ड / सिडबी, जैसी भी स्थिति हो, में रखी गई जमाराशियों को एचटीएम वर्ग में धारित गैर एसएलआर बाँडों में किया गया निवेश नहीं माना जाएगा। तुलनपत्र से इतर एक्सपोज़र के बराबर ऋण राशि की गणना करने के प्रयोजन के लिए बैंक वर्तमान एक्सपोजर प्रणाली का उपयोग करें। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लक्ष्यों / उप-लक्ष्यों के प्रयोजन के लिए अंतर-बैंक एक्सपोज़र को हिसाब में नहीं लिया जाएगा। ] इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश नीचे दिए गए हैं। भाग I 1. कृषि प्रत्यक्ष वित्त 1.1 अलग-अलग किसानों (स्वयं सहायता समूहों या संयुक्त देयता समूहों अर्थात् अलग-अलग किसानों के समूहों सहित बशर्ते बैंक ऐसे वित्त का अलग से ब्योरा रखते हों) को कृषि तथा उससे संबद्ध कार्यकलापों (डेरी उद्योग, मत्स्य पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधु-मक्खी पालन आदि) के लिए वित्त 1.1.1 फसल उगाने के लिए अल्पावधि ऋण अर्थात् फसल ऋण । इसमें पारंपरिक / गैर-पारंपरिक बागान एवं उद्यान शामिल होंगे । 1.1.2 12 माह की अनधिक अवधि के लिए कृषि उपज (गोदाम रसीदों सहित) को गिरवी / दृष्टिबंधक रखकर 10 लाख रू. तक के अग्रिम, चाहे किसानों को फसल उगाने के लिए फसल ऋण दिए गए हों या नहीं। 1.1.3 कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों से संबंधित उत्पादन और निवेश आवश्यकताओं हेतु वित्त पोषण के लिए कार्यशील पूंजी और मीयादी ऋण। 1.1.4 कृषि प्रयोजन हेतु जमीन खरीदने के लिए छोटे और सीमांत किसानों को ऋण । 1.1.5 आपदाग्रस्त किसानों को गैर संस्थागत उधारदाताओं से लिए गए ऋण चुकाने के लिए उचित संपार्श्विक अथवा सामूहिक जमानत पर ऋण। 1.1.6 ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तियों, स्वयं सहायता समूहों और कोआपरेटिवों द्वारा फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद किए गए कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), छंटाई, प्रसंस्करण तथा परिवहन के लिए ऋण। 1.1.7 कृषि और संबद्ध कार्यकलापों हेतु प्रदान ऋण भले ही उधारकर्ता इकाई निर्यात या अन्य में सक्रिय है या नहीं। बैंकों द्वारा कृषि और संबद्ध कार्यकलापों हेतु प्रदान निर्यात ऋण को "कृषि क्षेत्र को निर्यात ऋण" शीर्ष के अंतर्गत अलग से रिपोर्ट किया जाए। 1.2 अन्य (जैसे कंपनियां, भागीदारी फर्मों तथा संस्थानों) को कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों (डेरी उद्योग, मत्स्य पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधु-मक्खी पालन आदि) के लिए ऋण 1.2.1 फसल काटने से पूर्व और फसल काटने के बाद किए गए कार्यकलापों जैसे छिड़काव, निराई (वीडिंग), फसल कटाई, श्रेणीकरण (ग्रेडिंग), छंटाई तथा परिवहन के लिए ऋण। 1.2.2 उपर्युक्त 1.1.1, 1.1.2, 1.1.3 और1.2.1 में सूचीबद्ध प्रयोजनों के लिए प्रति उधारकर्ता को एक करोड़ रुपए की कुल राशि तक वित्त पोषण। 1.2.3 कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए प्रति उधारकर्ता को एक करोड़ रुपए की कुल राशि से एक-तिहाई अधिक ऋण। अप्रत्यक्ष वित्त 1.3 कृषि एवं उससे संबद्ध कार्यकलापों हेतु वित्त 1.3.1 कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए प्रति उधारकर्ता एक करोड़ रुपए की कुल राशि के अलावा उपर्युक्त 1.2 में आनेवाली संस्थाओं को दो-तिहाई ऋण। 1.3.2 उपर्युक्त 1.1.6 के अलावा संयंत्र और मशीनरी में 10 करोड़ रुपए तक के निवेश वाली खाद्य और कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाइयों को ऋण। 1.3.3 (i) उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों, बीजों आदि की खरीद और वितरण हेतु उधार। 1.3.4 एग्री क्लिनिक और एग्री बिजनेस की स्थापना के लिए वित्त। 1.3.5 कृषि मशीनरी और औज़ारों के वितरण हेतु किराया खरीद योजना के लिए वित्त। 1.3.6 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस), कृषक सेवा समितियों (एफएसएस) तथा बड़े आकारवाली आदिवासी बहु -उद्देशीय समितियों के माध्यम से किसानों को ऋण। 1.3.7 सदस्यों के उत्पादनों का निपटान करने के लिए किसानों की सहकारी समितियों को ऋण। 1.3.8 सहकारिता प्रणाली के माध्यम से किसानों को अप्रत्यक्ष वित्त (बांडों और डिबेंचरों के निर्गमों में अभिदान से भिन्न) । 1.3.9 भंडारण सुविधाओं का निर्माण और उन्हें चलाने कृषि उत्पाद / उत्पादनों के भंडारण के लिए बनाई गई कोल्ड स्टोरेज इकाइयों, (भंडारघर, बाज़ार प्रांगण, गोदाम और साइलो) चाहे वे कहीं भी स्थित हों, सहित के लिए ऋण। 1.3.10 कस्टम सेवा इकाइयों को अग्रिम, जिनका प्रबंध व्यक्तियों, संस्थाओं या ऐसे संगठनों द्वारा किया जाता है, जिनके पास ट्रैक्टरों, बुलडोज़रों, कुआं खोदने के उपस्करों, थ्रेशर, कंबाइन्स आदि का दस्ता है और वे किसानों का काम ठेके पर करते हों। 1.3.11 द्रव सिंचाई / छिड़काव सिंचाई प्रणाली / कृषि - मशीनों के विक्रेताओं को निम्नलिखित शर्तों पर दिया गया वित्त, चाहे वे कहीं भी कार्यरत हों – (क) विक्रेता केवल ऐसी वस्तुओं का कारोबार करता हो अथवा यदि वह अन्य वस्तुओं का कारोबार करता हो तो ऐसी वस्तुओं के लिए अलग और स्पष्ट अभिलेख रखता हो। (ख) प्रत्येक विक्रेता के लिए निर्धारित उच्चत्तम सीमा 30 लाख रुपए तक का पालन किया जाए । 1.3.12 किसानों को ऋण देने, निविष्टियों की आपूर्ति करने तथा अलग-अलग किसानों / स्वयं सहायता समूहों / संयुक्त देयता समूहों से उत्पादन खरीदने हेतु आढ़तियों (ग्रामीण अर्धशहरी क्षेत्रों के बाज़ारों / मण्डियों में कार्यरत कमीशन एजेंट) को ऋण। 1.3.13 सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) के अंतर्गत सामान्य प्रयोजनों के लिए ऋण के अंतर्गत बकाया ऋण । 1.3.14 पैराग्राफ 3.2 में निर्धारित शर्तों के अनुसार कृषि को आगे उधार हेतु एमएफआइ को ऋण। 1.3.15 एसएचजी – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम के अंतर्गत एसएचजी सदस्यों को कृषि प्रयोजनों के लिए आगे उधार दिए जाने हेतु एसएसजी को बढ़ावा देनेवाले एनजीओ को स्वीकृत ऋण। 1.3.16 कृषि क्षेत्र और उससे संबद्ध कार्यकलापों को आगे उधार देने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को प्रदान ऋण। 1.3.17 ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में "नो-फ्रिल्स" खातों की जमानत पर प्रदान 25,000 रुपए (प्रति खाता) तक का ओवरड्राफ्ट। 1.4 कृषि को प्रत्यक्ष / अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में वर्गीकरण हेतु अपात्र ऋण 1.4.1 आगे उधार दिए जाने हेतु एनबीएफसी ( पैरा 3.2 में निर्धारित मानदंडों का पालन करने वाले एमएफआइ को छोड़कर) को दिनांक 1 अप्रैल 2011 से स्वीकृत ऋण। प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत 1 अप्रैल 2011 से पूर्व एनबीएफसी को दिए गए बैंक ऋण, ऐसे ऋणों की परिपक्वता अवधि तक प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत माने जाते रहेंगे। 1.4.2 स्वर्ण आभूषणों की जमानत पर व्यक्तियों को या अन्य संस्थाओं को आगे ऋण देने के प्रयोजन हेतु एनबीएफसी को मंजूर किए गए ऋण, एनबीएफसी द्वारा आरंभ की गई जमानती आस्तियों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश, जहाँ अंतर्निहित आस्तियां स्वर्ण आभूषणों की जमानत पर ऋण तथा एनबीएफसी से स्वर्ण ऋण संविभाग का क्रय / विक्रय-पत्र हों। 1.4.3 केन्द्रीय / राज्य सहकारी विपणन फेडरेशनों तथा राज्य सिविल सप्लाई कोर्पोरेशनों को स्वीकृत ऋण। 1.4.4 किसानों / विक्रेताओं / व्यापारियों द्वारा कंपनी निकायों / निजी कंपनियों / चीनी कंपनियों को की गई अपने कृषि उत्पादों की आपूर्तियों के बदले प्राप्य राशियों के वित्तपोषण हेतु कंपनी निकायों / निजी कंपनियों / चीनी कंपनियों को मंजूर किए गए ऋण। 2. लघु उद्यम प्रत्यक्ष वित्त 2.1 लघु उद्यम क्षेत्र में प्रत्यक्ष वित्त के अंतर्गत निम्नलिखित को ऋण शामिल होंगे : 2.1.1 विनिर्माण उद्यम (क) व्यष्टि (विनिर्माण) उद्यम ऐसे उद्यम जो सामानों के विनिर्माण / उत्पादन, प्रसंस्करण या परिरक्षण के कार्य में लगे हैं और जिनका संयंत्र और मशीनों (लघु उद्योग मंत्रालय द्वारा दिनांक 5 अक्तूबर 2006 की उनकी अधिसूचना सं. एसओ. 1722 (ई) में उल्लिखित वस्तुओं तथा भूमि और भवन को छोड़कर मूल लागत) में निवेश 25 लाख रुपए से अधिक न हो चाहे इकाई कहीं भी स्थित हो । (ख) लघु (विनिर्माण) उद्यम ऐसे उद्यम जो सामानों के विनिर्माण / उत्पादन, प्रसंस्करण या परिरक्षण के कार्य में लगे हैं और जिनका संयंत्र और मशीनों ( 2.1.1 (क) में उल्लिखित वस्तुओं तथा भूमि और भवन को छोड़कर मूल लागत ) में निवेश 25 लाख रुपए से अधिक हो, लेकिन 5 करोड़ रूपए से अधिक न हो, चाहे इकाई कहीं भी स्थित हो। 2.1.2 सेवा उद्यम (क) व्यष्टि (सेवा) उद्यमऐसे उद्यम जो सेवाएं उपलब्ध / प्रदान करने में लगे हैं और जिनका उपस्करों (भूमि और भवन, फर्नीचर और जुड़नार तथा अन्य वस्तुएं जो प्रदान की गई सेवा से सीधे संबद्ध न हों या जैसाकि एमएसएमइडी अधिनियम, 2006 में अधिसूचित किया गया हो, को छोड़कर मूल लागत) में निवेश 10 लाख रुपए से अधिक न हो, चाहे इकाई कहीं भी स्थित हो। (ख) लघु (सेवा) उद्यमऐसे उद्यम जो सेवाएं उपलब्ध / प्रदान करने में लगे हैं और जिनका उपस्करों (भूमि और भवन, फर्नीचर और जुड़नार तथा 2.1.2 (क) में उल्लिखित ऐसी वस्तुओं को छोड़कर मूल लागत) में निवेश 10 लाख रुपए से अधिक हो, लेकिन 2 करोड़ रूपए से अधिक न हो चाहे इकाई कहीं भी स्थित हो। (ग) लघु और व्यष्टि (सेवा) उद्यम में लघु सड़क तथा जल परिवहन परिचालक, छोटे कारोबार, व्यावसायिक और स्व-नियोजित व्यक्ति तथा कार्यकलापों में लगे अन्य सेवा उद्यम शामिल होंगे अर्थात् प्रबंध सेवाओं सहित परामर्श सेवाएं, जोखिम और बीमा प्रबंधन में संमिश्र ब्रोकर सेवाएं, पॉलीसीधारक के मेडिकल बीमा दावों के लिए थर्ड पार्टी प्रशासन सेवाएं, सीड ग्रेडिंग सेवाएं, ट्रेनिंग - कम - इन्क्यूबेटर सेवाएं, शैक्षणिक; संस्थाएं, कानूनी व्यवहार अर्थात् विधि सेवाएं, खुदरा व्यापार, चिकित्सकीय उपकरणों (बिल्कुल नए) में व्यापार, प्लेसमेंट और प्रबंध परामर्शी सेवाएं, विज्ञापन एजेंसी और प्रशिक्षण केंद्र तथा उपकरणों (भूमि और भवन और फर्नीचर, फिटिंग्स और ऐसी अन्य मदें जो दी गई सेवाओं से सीधे जुड़ी न हो, या एमएसएमइडी अधिनियम,2006 के अंतर्गत अधिसूचित मदों को छोड़कर मूल लागत) (अर्थात् क्रमशः 10 लाख रूपए और 2 करोड़ रूपए से अधिक न हो) में निवेश के सबंध में व्यष्टि और लघु (सेवा) उद्यम की परिभाषा के अनुरूप हो। (घ) वाणिज्य बैंकों द्वारा व्यष्टि और लघु उद्यमों (एमएसई) (उत्पादन एवं सेवाएं) को प्रदान ऋण, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकरण हेतु पात्र हैं बशर्तें ऐसे उद्यम एमएसएमइडी अधिनियम, 2006 में निहित एमएसई क्षेत्र की परिभाषा पूरी करता हो भले ही उधारकर्ता इकाई निर्यात या अन्य में सक्रिय है या नहीं। तथापि, बैंकों द्वारा एमएसई को प्रदान निर्यात ऋण "व्यष्टि और लघु उद्योग क्षेत्र को निर्यात ऋण" शीर्ष के अंतर्गत अलग से रिपोर्ट किया जाए। 2.1.3 खादी ग्राम उद्योग क्षेत्र परिचालनों के आकार, अवस्थिति तथा संयंत्र और मशीनरी में मूल निवेश की राशि पर ध्यान दिए बगैर खादी-ग्राम उद्योग क्षेत्र की ईकाइयों को प्रदान सभी अग्रिम। ऐसे अग्रिम प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत लघु उद्योग हेतु नियत उप-लक्ष्य (60 प्रतिशत) के अधीन विचार करने के लिए पात्र होंगे। अप्रत्यक्ष वित्त 2.2 लघु (विनिर्माण तथा सेवा) उद्यम क्षेत्र को अप्रत्यक्ष वित्त के अंतर्गत निम्नलिखित को दिए गए ऋण शामिल होंगे : 2.2.1 ऐसे व्यक्ति जो कारीगरों, ग्राम एवं कुटीर उद्योगों को निविष्टियों की आपूर्ति तथा उनके उत्पादनों के विपणन के कार्य में विकेंद्रित क्षेत्र की सहायता कर रहे हों। 2.2.2 विकेंद्रित क्षेत्र में उत्पादकों के को-आपरेटिव अर्थात् कारीगरों, ग्राम एवं कुटीर उद्योगों को अग्रिम । 2.2.3 माइक्रो और लघु उद्यमों (विनिर्माण तथा सेवाएं) को आगे उधार देने हेतु 1 अप्रैल 2011 को या उसके बाद माइक्रो वित्त संस्थाओं को बैंकों द्वारा प्रदत्त ऋण प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र स्थिति हेतु पात्र होंगे बशर्ते वे पैरा 3.2 में निर्धारित दिशा-निर्देशों का अनुपालन करें। 2.3 एमएसइ क्षेत्र को प्रत्यक्ष / अप्रत्यक्ष वित्त के रूप में वर्गीकरण हेतु अपात्र ऋण 2.3.1 माइक्रो और लघु उद्यमों को आगे उधार दिए जाने हेतु बैंकों द्वारा राज्य वित्त निगमों को स्वीकृत ऋण। 2.3.2 आगे के उधार हेतु एनबीएफसी (पैरा 3.2 में निर्धारित मानदंडों का पालन करने वाले एमएफआइ को छोड़कर) को दिनांक 1 अप्रैल 2011 से स्वीकृत ऋण, एनबीएफसी द्वारा आरंभ की गई जमानती आस्तियों में बैंकों द्वारा किए गए निवेश तथा एनबीएफसी से ऋण संविभाग का क्रय/विक्रय-पत्र। 3. व्यष्टि ऋण 3.1 बैंकों द्वारा सीधे या स्वयं सहायता समूह / संयुक्त देयता समूह तंत्र के माध्यम से दिए गए बहुत छोटी राशि के ऋण जो प्रति उधारकर्ता 50,000 रुपए से अधिक न हों, या प्रति उधारकर्ता 50,000 रुपए तक आगे उधार देने हेतु एनबीएफसी / एमएफआइ को दिए गए ऋण । 3.2 व्यक्तियों तथा स्व-सहायता समूहों / संयुक्त देयता समूहों को भी आगे उधार दिए जाने हेतु सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं को 01 अप्रैल 2011 को या उसके बाद दिया गया बैंक ऋण, संबंधित श्रेणियों अर्थात् कृषि, सूक्ष्म एवं लघु उद्यम, सूक्ष्म ऋण (अन्य प्रयोजनों के लिए) श्रेणियों में परोक्ष वित्त पोषण के रूप में प्राथमिकता क्षेत्र अग्रिम के रूप में वर्गीकृत किए जाने का पात्र होगा। परंतु शर्त यह है कि उक्त माइक्रो फाइनांस संस्था की कुल आस्तियों (नकदी, बैंकों / वित्तीय संस्थाओं के पास शेष राशियों, सरकारी प्रतिभूतियों और मुद्रा बाजार के लिखतों से भिन्न) में अर्हक स्वरूप की आस्तियाँ 85 प्रतिशत से कम नहीं हों। इसके अतिरिक्त आय सृजन के कार्यकलापों के लिए प्रदान की गई ऋण राशि, माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा दिए गए कुल ऋण के 75 प्रतिशत से कम नहीं हो। 3.2.1 माइक्रो फाइनांस संस्था द्वारा वितरित वह ऋण "अर्हक आस्ति" होगा, जो निम्नलिखित मानदण्डों को पूरा करता हो :
3.2.2 साथ ही, इन ऋणों को प्राथमिकता क्षेत्र ऋणों के रूप में वर्गीकृत किए जाने हेतु पात्र होने के लिए बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि एमएफआई, मार्जिन और ब्याज दर पर निम्नलिखित उच्चत्तम सीमा (कैप) और "मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों" का अनुपालन करें।
3.2.3 बैंकों को चाहिए कि वे प्रत्येक तिमाही के अंत में एमएफआई से चार्टर्ड एकाउंटेंट का एक प्रमाण पत्र प्राप्त करें, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह सूचित किया गया हो कि 1. एफएफआई की कुल आस्तियों का 85% "अर्हक परिसंपत्ति " के रूप में है, 2. आय सृजन कार्यकलापों के लिए प्रदान की गई सकल ऋण राशि, एमएफआई द्वारा प्रदत्त कुल ऋण के 75% से कम नहीं है और 3. मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है। 3.2.4 (i) माइक्रो फाइनांस संस्थाओं द्वारा आरंभ की गई प्रतिभूतिकृत आस्तियों में बैंकों द्वारा निवेशों और (ii) माइक्रो फाइनांस संस्थाओं के ऋण संविभागों की एकमुश्त खरीद को बैंक की बहियों में प्राथमिकता क्षेत्र अग्रिमों के रूप में वर्गीकृत किए जाने से संबंधित दिशा-निर्देश यथासमय जारी किए जाएंगे। इस बीच नई आस्तियाँ प्राथमिकता क्षेत्र में केवल तभी मानी जाएंगी जब वे अर्हक आस्तियों के मानदण्ड को पूरा करती हों और ऊपर विनिर्दिष्ट अनुसार मूल्य-निर्धारण दिशा-निर्देशों का पालन किया गया हो। 3.2.5 माइक्रो फाइनांस संस्थाओं को दिए गए वे बैंक ऋण, जो उपर्युक्त शर्तों को पूरा नहीं करते हों, 01 अप्रैल 2011 से प्राथमिकता क्षेत्र के ऋण नहीं माने जाएंगे। 01 अप्रैल 2011 से पूर्व दिए गए प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत बैंक ऋण, ऐसे ऋणों की पूर्णावधि तक प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकृत माने जाते रहेंगे। 3.2.6 उपर्युक्त विनियामक ढाँचे में शामिल किए जाने वाली सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं को अपेक्षित संगठनात्मक क्षमता निर्माण अभ्यास प्रारंभ करना है ताकि वे उपर्युक्त दिशा-निर्देशों के अनुरूप बन सकें। वे बैंक, जो सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं को ऋण दे रहे हैं, नए विनियामक ढाँचे के स्तंभ होंगे इसलिए उन्हें सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त ऋण आवेदनों को प्रसाधित करने के लिए उचित अध्यवसाय (ड्यू डिलीजेंस) के आवश्यक मापदण्ड तैयार करने की आवश्यकता है। यह प्रक्रिया तुरंत प्रारंभ की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनसे वित्तपोषण की सुविधा प्राप्त कर रही सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएं, कंपनी नियंत्रण (कॉरपोरेट गवर्नेस), मानव संसाधन प्रबंधन, ग्राहक सुरक्षा के संदर्भ में प्रणालियों तथा प्रस्तावित विनियामक ढाँचे के अन्य पहलुओं को स्थापित करने में पूर्णतः सक्षम हैं। इससे यह भी सुनिश्चित हो सकेगा कि एक बार नया विनियामक ढाँचा कार्यान्वित हो जाने पर सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएं किसी बड़े अवरोध के बिना अपने परिचालन जारी रख सकती हैं। 3.3 अनौपचारिक क्षेत्र से ऋण ग्रस्त गरीबों को ऋण आपदाग्रस्त व्यक्तियों (किसानों को छोड़कर) को गैर संस्थागत उधारदाताओं से लिया गया ऋण समय से पूर्व चुकाने के लिए, उचित संपार्श्विक अथवा सामूहिक जमानत पर दिया गया ऋण प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत वर्गीकरण के लिए पात्र होगा। 4. अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए राज्य द्वारा प्रायोजित संगठन अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जनजातियों के लिए राज्य द्वारा प्रायोजित संगठनों को अपने हिताधिकारियों के लिए निविष्टियों की खरीद और आपूर्ति तथा / अथवा उनके उत्पादनों के विपणन के विशिष्ट प्रयोजन के लिए स्वीकृत अग्रिम। 5. शिक्षण 5.1 अलग-अलग व्यक्तियों को शिक्षण के प्रयोजनार्थ भारत में अध्ययन के लिए 10 लाख रुपए तक तथा विदेश में अध्ययन के लिए 20 लाख रूपए तक स्वीकृत ऋण । शैक्षिक संस्थाओं को दिए गए ऋण माइक्रो और लघु (सेवा) उद्यम के अंतर्गत प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम के रूप में वर्गीकरण के लिए पात्र होंगे बशर्ते वे एमएसएमइडी अधिनियम, 2006 के प्रावधान पूरा करते हों। 6. आवास 6.1 अलग-अलग व्यक्तियों को प्रत्येक परिवार एक आवास इकाई खरीदने / निर्माण करने हेतु, चाहे जो भी स्थान हो, 25 लाख रुपए तक का ऋण जिसमें बैंकों द्वारा उनके अपने कर्मचारियों को प्रदान ऋण शामिल नहीं होंगे। 6.2 परिवारों को उनके क्षतिग्रस्त आवास इकाइयों की मरम्मत के लिए ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 1 लाख रुपए और शहरी तथा महानगर क्षेत्रों में 2 लाख रुपए का दिया गया ऋण। 6.3 किसी भी सरकारी एजेंसी को आवास इकाई के निर्माण अथवा गंदी बस्तियों को हटाने और गंदी बस्तियों में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए प्रदान वित्तीय सहायता, जिसकी अधिकतम सीमा 5 लाख रुपए प्रति आवास इकाई से अधिक न हो। 6.4 किसी गैर-सरकारी एजेंसी को, जिसे आवास इकाई के निर्माण / पुनर्निर्माण अथवा गंदी बस्तियों को हटाने और गंदी बस्तियों में रहनेवालों के पुनर्वास के लिए पुनर्वित्त प्रदान किए जाने हेतु राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी) द्वारा अनुमोदित किया गया हो, जिसके ऋण घटक की अधिकतम सीमा 5 लाख रुपए प्रति आवास इकाई होगी। 6.5 आवास इकाई खरीदने / बनाने के लिए व्यक्तियों को आगे ऋण देने हेतु पुनिर्वित के प्रयोजन के लिए राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा अनुमोदित आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) को 31 मार्च 2010 तक स्वीकृत ऋण बशर्ते आवास वित्त कंपनियों द्वारा दिए गए आवास ऋण प्रति परिवार प्रति आवास इकाई 20 लाख रुपए से अधिक न हो। 7. कमज़ोर वर्ग प्राथमितकता प्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कमज़ोर वर्गों में निम्नलिखित शामिल हैं : (क) 5 एकड़ या इससे कम जोत वाले छोटे और सीमान्त किसान, भूमिहीन किसान,पट्टेदार किसान और बंटाई पर खेती करनेवाले काश्तकार। उन राज्यों में जहां अल्पसंख्यक के रुप में अधिसूचित कोई समुदाय वास्तव में मेजोरिटी में है वहां मद (ञ) केवल अन्य अधिसूचित समुदायों को कवर करेगी । ये राज्य / संघशासित क्षेत्र हैं - जम्मू और कश्मीर , पंजाब , मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप। 8. निर्यात ऋण यह वर्ग केवल विदेशी बैंकों हेतु प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के एक भाग के रुप में माना जाएगा। भाग III प्राथमिकताप्राप्त अग्रिमों हेतु सामान्य दिशा-निर्देश 1. बैंकों से यह अपेक्षित है कि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत अग्रिमों की सभी श्रेणियों के सम्बन्ध में वे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित इन सामान्य दिशानिर्देशों का पालन करें । 2. आवेदनों का प्रसंस्करण 2.1 आवेदन भरना एसजीएसवाय जैसी विशेष योजनाओं के अंतर्गत शामिल क्षेत्रों के मामले में जिला ग्रामीण विकास एजेंसी, जिला उद्योग केन्द्र जैसे सम्बन्धित योजना प्राधिकारियों द्वारा ऐसी व्यवस्था करवाई जाए कि ऋणकर्ताओं से प्राप्त आवेदनों को भरा जा सके, अन्य क्षेत्रों में इस हेतु बैंक स्टाफ द्वारा ऋणकर्ताओं की मदद की जाए । 2.2 ऋण आवेदनों की पावती जारी करना कमजोर वर्गों से प्राप्त आवेदनों की बैंकों द्वारा पावती दी जाए । इस प्रयोजन हेतु यह सुनिश्चित किया जाए कि उनमें पावती हेतु एक छिद्रित (परफोरेटेड) हिस्सा भी हो, जिसे प्राप्तकर्ता शाखा द्वारा भर कर जारी किया जाए । मुख्य आवेदनपत्र तथा पावती के तदनुरुप हिस्से पर प्रत्येक शाखा द्वारा जारी क्रम में एक अनुक्रमांक अंकित किया जाए । आवेदनों के विद्यमान स्टॉक का उपयोग करते समय यदि पृथक् से पावती बनाकर जारी की जाए तब इस बात का ध्यान रखा जाए कि पावती पर अंकित अनुक्रमांक मुख्य आवेदन पर भी अंकित हो । संभावित उधारकर्ताओं के मार्गदर्शन के लिए ऋण आवेदन में आवश्यक दस्तावेजों की एक जांच सूची होनी चाहिए । 2.3 आवेदनों का निपटान 1. 25,000/- रु. तक की ऋण सीमा वाले सभी आवेदनों का निपटान एक पखव़ाड़े मे हो जाना चाहिए जब कि 25,000/- रु. से ज्यादा राशि वाले आवेदनों का 8 से 9 सप्ताह के भीतर । 2. लघु उद्योग के लिए 25,000/- रु. तक की ऋण सीमा वाले सभी आवेदनों का निपटान दो सप्ताह में हो जाना चाहिए तथा 5 लाख रु. तक की राशि वाले आवेदनों का 4 सप्ताह के भीतर, बशर्ते कि ऋण आवेदन सभी तरह से पूरे भरे हों तथा उनके साथ एक चेक लिस्ट हो । 2.4 प्रस्तावों की नामंजूरी शाखा प्रबंधक आवेदनों को अस्वीकार कर सकते हैं (अजा/अजजा से सम्बन्धित आवेदनों को छोड़कर) बशर्ते कि निरस्त मामलों का बाद में संभागीय/क्षेत्रीय प्रबंधकों द्वारा सत्यापन किया जाए। अजा/अजजा से प्राप्त आवेदनों का निरसन शाखा प्रबंधक से ऊपर के स्तर पर होना चाहिए। 2.5 नामंजूर आवेदनों का रजिस्टर शाखा स्तर पर एक रजिस्टर बनाया जाए जिसमें प्राप्ति की तारिख के अलावा मंजूरी/ नामंजूरी/ संवितरण आदि का कारणों सहित उल्लेख किया जाए । सभी निरीक्षणकर्ता एजेन्सियों को उक्त रजिस्टर उपलब्ध करवाया जाए । 3. ऋण संवितरण का तरीका किसानों को व्यापक स्वेच्छा देने तथा अनावश्यक परम्पराओं को रोकने के लिए बैंक कृषि प्रयोजनों के लिए सभी ऋणों का संवितरण नकदी में कर सकते हैं जिससे उधारकर्ताओं को उपयुक्त डीलर चुनने तथा विश्वास का माहौल बनाने का मौका मिलेगा । तथापि, बैंक उधारकर्ताओं से रसीदें प्राप्त करने की प्रक्रिया को बने रहना दे सकते हैं । 4. चुकौती अवधि का निर्धारण 4.1 चुकौती की अवधि निर्धारित करते समय भरण-पोषण अपेक्षाओं, अतिरिक्त उत्पादन क्षमता लाभ हानि रहित स्थिति, आस्ति के उपयोगी बने रहने की अवधि जैसे तथ्यों को ध्यान में रखा जाए तथा "तदर्थ " आधार पर निर्धारण नहीं किया जाए । सम्मिश्र ऋणों के मामले में केवल मीयादी ऋण घटक की चुकौती अवधि ही निर्धारित की जाए ( सिडबी की निर्धारित अपेक्षाओं की पूर्ति के अधीन ) । 4.2 चूंकि प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों के अर्थोपार्जन व्यवसाय और आर्थिक आस्तियों की क्षति हो जाने से उनकी चुकौती क्षमता बहुत क्षीण हो जाती है, इसलिए प्रभावित उधारकर्ताओं को हमारे दिनांक 9 अगस्त 2006 के परिपत्र ग्राआऋवि. केंका. पीएलएफएस.सं. बीसी.16/ 05.04.02/ 200-07 में दिए गए अनुसार मौजूदा ऋण के चुकौती कार्यक्रम का पुनर्निर्धारण आदि जैसे लाभ लिए जाने चाहिए । 5. ब्याज की दरें 5.1 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र अग्रिमों की विभिन्न श्रेणियों पर लागू ब्याज दर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी निदेशों के अनुरुप रहेगी । 5.2 (क) प्रत्यक्ष कृषि अग्रिमों के संबंध में बैंक वर्तमान देय राशियों अर्थात् मीयादी ऋणों के संबंध में जहां फसल ऋण और उसकी किस्तें देय न हुई हों, ब्याज को चक्रवृद्धि न बनाएं क्योंकि कृषकों के पास अपनी फसल की बिक्री से प्राप्त होने वाली आय के अलावा अन्य कोई नियमित आय का स्रोत नहीं होता है । ख) जब मीयादी ऋण के अंतर्गत फसल ऋण या उसकी किस्त अतिदेय हो जाए तो बैंक ब्याज को मूलधन में जोड़ सकते हैं । ग) जहां चूक का कारण कोई वास्तविक वजह रही हो वहां मीयादी ऋण के अंतर्गत बैंक को ऋण की अवधि बढ़ा देनी चाहिए या किस्तों की चुकौती का पुनर्निर्धारण कर देना चाहिए । एक बार इस तरह की राहत दिए जाने पर अतिदेय चालू देय हो जाएंगे और तब बैंक ब्याज को चक्रवृद्धि न बनाएं । घ) बैंकों को लंबी अवधि वाली फसलों से संबंधित कृषि अग्रिमों पर तिमाही और लंबें अंतरालों के बजाए वार्षिक आधार पर ब्याज लगाना चाहिए और यदि ऋण /किस्त अतिदेय हो जाए तो चक्रवृद्धि ब्याज लगाना चाहिए । 6. दण्डात्मक ब्याज : 6.1.1 चुकौती में चूक करने, वित्तीय विवरण प्रस्तुत न करने इत्यादि जैसे कारण होने पर, दण्डात्मक ब्याज वसूल करने का मुद्दा प्रत्येक बैंक के बोर्ड पर, छोड़ दिया गया है । बैंकों को सूचित किया गया है कि वे अपने बोर्डों के अनुमोदन से ऐसा दण्डात्मक ब्याज वसूल करने हेतु नीति तैयार करें ; ये पारदर्शिता नीति, औचित्य, उधार पर सेवा को प्रोत्साहन और ग्राहक की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए बनाई जाएँ । 6.1.2 अबसे 25,000/- रु. तक के ऋणों पर कोई दण्डात्मक ब्याज नहीं लगाया जाए । तथापि, उपर्युक्त दिशानिर्देशों के अनुसार बैंक 25000 रु. से अधिक के ऋणों पर दण्डात्मक ब्याज लगाने के लिए स्वतंत्र होंगे । 7. सेवा प्रभार /निरीक्षण प्रभार : 7.1.1 25,000/- रु. तक के प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र ऋणों पर सेवा प्रभार / निरीक्षण प्रभार नहीं लगाया जाए । 7.1.2 बैंक 25,000/- रु. तक के अग्रिमों पर दिनांक 7 सितंबर 1999 के परिपत्र सं. बैंपविवि. डीआइआर. बीसी.86/03.01.00/99-2000 के अनुसार अपने बोर्ड के पूर्व अनुमोदन पर सेवा प्रभार निर्धारित करने हेतु स्वतंत्र होंगे । 8. आग और अन्य जोखिमों से सुरक्षा हेतु बीमा : 8.1 बैंक ऋण से वित्तपोषित आस्तियों को निम्नलिखित मामलों में बीमा करवाने की शर्त से छूट दी जा सकती है :
8.2 जहां किसी कानूनी प्रावधान के अंतर्गत वाहन अथवा मशीनरी अथवा अन्य उपकरण/ आस्तियों का बीमा अनिवार्य हो, अथवा किसी पुनर्वित्त एजेन्सी की पुनर्वित्त योजना में बीमा की शर्त अनिवार्य हो, अथवा सग्राविका (अब एसजीएसवाय से प्रतिस्थापित) जैसे किसी सरकार प्रायोजित कार्यक्रम में आवश्यक हो, वहां बीमा की अनिवार्यता से छूट नहीं दी जाए, भले ही सम्बन्धित ऋण सुविधा 10,000/- रु. अथवा 25,000/- रु. से अधिक नहीं हो । 9. ऋणकर्ताओं के फोटोग्राफ पहचान के प्रयोजन से ऋणकर्ताओं के फोटोग्राफ लेने के मुद्दे पर कोई आपत्ति नहीं है किन्तु कमज़ोर वर्ग के ऋणकर्ताओं के फोटो खिंचवाने की व्यवस्था और व्यय का वहन बैंक द्वारा किया जाए । यह भी सुनिश्चित किया जाए कि इस हेतु अपनाई गई प्रक्रिया की वजह से ऋण संवितरण में कोई विलम्ब नहीं हो । 10. विवेकाधीन शक्तियां बैंकों के सभी शाखा प्रबंधकों को इस आशय की विवेकाधीन शक्तियां दी जानी चाहिए कि वे उच्चतर प्राधिकारियों को संदर्भित किये बगैर कमज़ोर वर्गों से प्राप्त ऋण प्रस्तावों को मंजूरी दे सकें । यदि सभी शाखा प्रबंधकों को इस आशय की विवेकाधीन शक्तियां देने के मार्ग में कठिनाइयां हों, तो कम से कम जिला स्तर पर ऐसी शक्तियां देने की व्यवस्था की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि कमज़ोर वर्गों से सम्बन्धित ऋण प्रस्ताव तत्परता से निपटाए जाएं । 11. शिकायत निवारण मशीनरी 11.1.1 यदि शाखाएं इन अनुदेशों का पालन नहीं करती हों, तो इस सम्बन्ध में प्राप्त शिकायतों पर आगामी कार्रवाई हेतु, तथा इस बात के सत्यापन हेतु कि शाखाओं व्दारा इन दिशा-निर्देशों को वास्तव में लागू किया जाता है , क्षेत्रीय कार्यालय स्तर पर मशीनरी होनी चाहिए । 11.1.2 प्रत्येक शाखा के नोटिस बोर्ड पर उस अधिकारी के नाम और पते का उल्लेख किया जाए जो शिकायतें सुनने/प्राप्त करने हेतु अधिकृत हो । 12 . संशोधन ये दिशा-निर्देश भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किये जाने वाले अनुदेशों के अधीन हैं । मास्टर परिपत्र प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार लक्ष्य मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
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