मास्टर परिपत्र – अग्रणी बैंक योजना - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर परिपत्र – अग्रणी बैंक योजना
आरबीआई/2015-16/48 1 जुलाई 2015 अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक महोदय / महोदया, मास्टर परिपत्र – अग्रणी बैंक योजना भारतीय रिज़र्व बैंक ने अग्रणी बैंक योजना पर समय-समय पर दिशानिर्देश जारी किए हैं। इस मास्टर परिपत्र में परिशिष्ट में दी गई सूची के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अग्रणी बैंक योजना पर 30 जून 2015 तक जारी संबंधित दिशानिर्देशों को समेकित किया गया है। 2. यह मास्टर परिपत्र आरबीआई वेबसाइट https://www.rbi.org.in पर उपलब्ध है। (ए. उदगाता) अनुलग्नक : यथोक्त (i) अग्रणी बैंक की योजना का प्रारंभ प्रो. डी.आर.गाडगिल की अध्यक्षता में सामाजिक उद्देश्यों के कार्यान्वयन के लिए संगठनात्मक ढांचे पर गठित अध्ययन दल (गाडगिल अध्ययन दल) के साथ हुआ है जिसने अक्तूबर 1969 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। उक्त अध्ययन दल ने इस तथ्य को इंगित किया कि वाणिज्य बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं और इनके पास अपेक्षित ग्रामीण उन्मुखता का अभाव है। अत: अध्ययन दल ने ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त बैंकिंग एवं ऋण संरचना विकसित करने के लिए प्लान तथा कार्यक्रम बनाने हेतु ’क्षेत्र दृष्टिकोण’ अपनाएं जाने की सिफारिश की। (ii) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सरकारी क्षेत्र बैंकों के शाखा विस्तार कार्यक्रम पर श्री एफ.के.एफ. नरीमन की अध्यक्षता में गठित समिति (नरीमन समिति) ने अपनी रिपोर्ट में (नवंबर 1969) क्षेत्र दृष्टिकोण की अभिकल्पना का यह सिफारिश करते हुए समर्थन किया कि सरकारी क्षेत्र बैंकों को अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से कतिपय जि़लों में ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां वे एक अग्रणी बैंक के रूप में कार्य करेंगे। (iii) उपर्युक्त सिफ़ारिशों के अनुसरण में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिसंबर 1969 में अग्रणी बैंक योजना लागू की गई। योजना का उद्देश्य बैंकों और अन्य विकासात्मक एजेंसियों की गतिविधियों में विभिन्न मंचों के माध्यम से समन्वय लाना है ताकि प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों को बैंक वित्त के प्रवाह में बढ़ोतरी की जा सकें तथा ग्रामीण क्षेत्र के समग्र विकास में बैंकों की भूमिका को बढ़ावा मिल सके। जिले की गतिविधियों में समन्वयन लाने के लिए एक विशिष्ट बैंक को जिले का अग्रणी बैंक दायित्व सौंपा जाता है। अग्रणी बैंक से अपेक्षित है कि वह ऋण संस्थाओं एवं सरकार के प्रयासों में समन्वयन लाने के लिए नेता की भूमिका अपनाए। (iv) वित्तीय क्षेत्र में हुए कई सारे परिवर्तनों के मद्देनजर भारतीय रिज़र्व बैंक की उच्च स्तरीय समिति (अध्यक्ष: श्रीमती उषा थोरात) द्वारा 2009 में अग्रणी बैंक योजना की समीक्षा की गई। (v) उक्त उच्च स्तरीय समिति ने विभिन्न पणधारियों अर्थात् राज्य सरकार, बैंक, विकास संस्थाएं, शिक्षाविदों, एनजीओ, एमआईएफआई आदि के साथ व्यापक पैमाने पर चर्चाएं कीं और नोट किया कि उक्त योजना शाखा विस्तार, जमाराशियां जुटाने तथा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्रों, विशेष रूप से ग्रामीण/अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में सुधार लाने का मूल्य उद्देश्य प्राप्त करने में उपयोगी सिद्ध हुई है। उक्त योजना को जारी रखने के लिए उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है। समिति की सिफारिशों के आधार पर एसएलबीसी संयोजक बैंकों तथा अग्रणी बैंकों को कार्यान्वयन हेतु दिशानिर्देश जारी किए गए। (vi) निजी क्षेत्र बैंकों की बढती भूमिका की परिकल्पना करते हुए अग्रणी बैंकों को सूचित किया गया था कि वे अग्रणी बैंक योजना के कार्यान्वयन में निजी क्षेत्र बैंकों का अधिक निकटता से लगा रहना सुनिश्चित करें। निजी क्षेत्र बैंकों को नीतिगत आयोजना में अपनी विशेषज्ञता में सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्भाव को बढ़ाते हुए अधिक सक्रिय हो जाना चाहिए। उन्हें जिला ऋण योजना (क्रेडिट प्लान) तैयार करने तथा उसके कार्यान्वयन में लग जाना चाहिए। 2. अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत मंच 2.1 ब्लॉक स्तरीय बैंकर समिति (बीएलबीसी) बीएलबीसी एक ऐसा मंच है जो एक ओर ऋण संस्थाओं और दूसरी ओर फील्ड स्तरीय विकास एजेंसियों के बीच समन्वयन लाने के लिए है। उक्त मंच ब्लॉक क्रेडिट प्लान तैयार करता है और बैंकों के क्रेडिट कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में आनेवाली समस्याओं का निराकरण भी करता है। जिले का अग्रणी जिला प्रबंधक ब्लॉक स्तरीय बैंकर समिति का अध्यक्ष होता है। जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) समेत सभी बैंक, ब्लॉक विकास अधिकारी, ब्लॉक के तकनीकी अधिकारी जैसे कृषि, उद्योग एवं सहकारिता के लिए विस्तार अधिकारी समिति के सदस्य होते हैं। बीएलबीसी बैठकें तिमाही अंतराल पर होती हैं। रिज़र्व बैंक के एलडीओ तथा नाबार्ड के डीडीएम चयनात्मक रूप से बीएलबीसी की बैठकों में उपस्थित रहते हैं। छमाही अंतराल पर इन बैठकों में पंचायत समिति के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया जाता है ताकि क्रेडिट प्लानिंग के कार्य में ग्रामीण विकास पर उनके ज्ञान तथा अनुभव को शेयर किया जा सके। 2.2 जिला परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में गतिविधियों के समन्वयन के प्रति बैंकरों तथा सरकारी एजेंसियों / विभागों के लिए जिला स्तर पर सामान्य मंच के रूप में सत्तर के दशक के प्रारंभ में डीसीसी का गठन किया गया था। जिलाधीश डीसीसी बैठकों के अध्यक्ष होते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक, नाबार्ड, जिले के सभी वाणिज्य बैंक, जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (डीसीसीबी) सहित सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, विभिन्न राज्य सरकारी विभाग एवं संबद्ध एजेंसियां डीसीसी के सदस्य होते हैं। अग्रणी जिला अधिकारी (एलडीओ) डीसीसी के सदस्य के रूप में रिज़र्व बैंक का प्रतिनिधित्व करता है। अग्रणी जिला प्रबंधक डीसीसी बैठकें आयोजित करता है। उन जिलों में जहां एमएसएमई क्लस्टर होते हैं माइक्रो, लघु और मध्यम उद्यम विकास संस्थान के निदेशक (एमएसएमई-डीआई) एमएसएमई संबंधी मामलों की चर्चा करने के लिए आमंत्रिती के रूप में होते हैं। i) अग्रणी बैंकों द्वारा जिला परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) की बैठक त्रैमासिक अंतराल पर आयोजित की जानी चाहिए। ii) जिला परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) स्तर पर, विशिष्ट मुद्दों पर गहन कार्य करने हेतु जैसा भी उचित हो, उप समितियां गठित की जाए तथा डीसीसी के विचारार्थ रिपोर्टें प्रस्तुत की जाए। iii) डीसीसी उन मामलों पर एसएलबीसी को पर्याप्त फीडबैक दें जिस पर व्यापक रूप से विचार- विमर्श करना आवश्यक है ताकि राज्य स्तर पर इन पर पर्याप्त ध्यान दिया जा सके। 2.2.3 डीसीसी बैठकों की कार्यसूची जहां सभी अग्रणी बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे संबंधित जिलों की विशेष समस्याओं को हल करें, तथापि कुछ ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जो सभी जिलों के लिए समान हैं और जिन पर अग्रणी बैंकों को अपने मंच पर निरपवाद रूप से विचार-विमर्श करना चाहिए, निम्नानुसार हैं : i) निर्धारित समय-सीमा के भीतर बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु रोडमैप की प्राप्ति में हुई प्रगति का आवधिक रूप से मूल्यांकन हेतु निगरानी तंत्र। तीन वर्षीय अवधि के लिए एलबीएस-एमआईएस- IV फार्मेट में जिलावार वित्तीय समावेशन प्लान (एफआईपी) तैयार करना। एसएलबीसी को त्रैमासिक प्रस्तुति हेतु एलबीएस-एमआईएस-V फार्मेट में एफआईपी के अंतर्गत प्रगति की समीक्षा की जानी चाहिए। ii) आईटी आधारित वित्तीय समावेशन को रोकने और समर्थ बनाने वाले विशिष्ट मुद्दे iii) सर्व-समावेशी वृद्धि के लिए बैंकिंग विकास हेतु "सक्षमकों" (इनेबलर्स) को सुविधा प्रदान करना तथा "बाधकों" को हटाने / कम करने के मामले iv) बैंकों और राज्य सरकारों द्वारा "क्रेडिट प्लस" कार्यकलापों के प्रति जैसे कि कारोबार प्रबंधन हेतु कौशल और क्षमता-निर्माण प्रदान कराने के लिए वित्तीय साक्षरता केद्रों (एफएलसी) के गठन और आरसेटी जैसी प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा की गई पहल की निगरानी v) वित्तीय समावेशन को प्राप्त करने के लिए वित्तीय साक्षरता प्रयास बढ़ाना vi) जिला ऋण योजना (डीसीपी) के अंतर्गत बैंकों के कार्य-निष्पादन की समीक्षा vii) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र तथा समाज के कमजोर वर्गों को ऋण उपलब्ध कराना viii) सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत सहायता ix) शैक्षिक ऋण प्रदान करना x) एसएचजी - बैंक सहलग्नता के अंतर्गत प्रगति xi) एसएमई वित्तपोषण तथा उसके मार्गावरोध, यदि कोई हो xii) बैंकों द्वारा समय पर डाटा प्रस्तुत करना xiii) राहत उपायों की समीक्षा (प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में, जहां भी लागू हो) उपर्युक्त सूची उदाहरणात्मक है, परिपूर्ण नहीं। अग्रणी बैंक आवश्यक समझी जानेवाली अन्य किसी कार्यसूची मद को शामिल कर सकते हैं। चूंकि अग्रणी बैंक योजना की कारगरता जिलाधीश और एलडीएम की गतिशीलता तथा क्षेत्रीय/अंचल कार्यालय की सहायक भूमिका पर निर्भर करती है, अग्रणी जिला प्रबंधकों (एलडीएम) के कार्यालय अग्रणी बैंक योजना के सफल कार्यान्वयन हेतु केंद्र बिन्दु होने के कारण उसे उचित मूलभूत सुविधाओं के साथ पर्याप्त रूप से मजबूत बनाया जाए। उचित स्तर और प्रवृत्ति वाले अधिकारियों को एलडीएम के रूप में तैनात किया जाए। एलडीएम की प्रचलित भूमिका जैसेकि डीसीसी/डीएलआरसी की बैठके, लंबित मामले आदि के समाधान हेतु डीडीएम/एलडीओ/सरकारी अधिकारियों की आवधिक बैठकें आयोजित करना, एलडीएम द्वारा विचार करने योग्य नए कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं : i) बैंकिंग पहुँच के लिए रूपरेखा तैयार करना और उसके रोडमैप की निगरानी ii) जिला ऋण योजना के कार्यान्वयन की निगरानी iii) बैंकों द्वारा वित्तीय साक्षरता केंद्र, आरसेटी गठित करने में संबद्ध होना iv) एफएलसी और बैंकों की ग्रामीण शाखाओं द्वारा वित्तीय साक्षरता के कैम्प आयोजित करने में संबद्ध होना v) एनजीओ/पंचायत राज संस्था (पीआरआई) की सहभागिता के साथ बैंकों और सरकारी अधिकारियों के लिए वार्षिक सुग्राहीकरण कार्यशाला आयोजित करना vi) तिमाही जागरुकता तथा सार्वजनिक बैठकों में फीडबैक, शिकायत निवारण, आदि की व्यवस्था करना 2.2.5 तिमाही सार्वजनिक बैठक और शिकायत निवारण अग्रणी जिला प्रबंधक जिले के विभिन्न स्थानों पर रिज़र्व बैंक के एलडीओ, क्षेत्र में स्थित बैंकों और अन्य स्टेकधारियों के साथ समन्वयन से एक तिमाही सार्वजनिक बैठक आयोजित करें ताकि ऐसी बैठकों में आम जनता से संबंधित विभिन्न बैंकिंग नीतियों और विनियमों के बारे में जागरूकता निर्मित हो, जनता से फीडबैक प्राप्त किया जा सके और यथासंभव शिकायत निवारण उपलब्ध हो सके अथवा ऐसे निवारण के लिए उचित तंत्र से संपर्क करने में सुविधा हो। 2.2.6 जिला स्तरीय समीक्षा समिति (डीएलआरसी) की बैठकें डीएलआरसी की बैठकों की अध्यक्षता जिलाधीश द्वारा की जाती है और इसमें जिला परामर्शदात्री समिति (डीसीसी) के सदस्य उपस्थित रहते हैं। उपर्युक्त के अलावा जनता के प्रतिनिधि अर्थात् स्थानीय एमपी/एमएलए/जिला परिषद प्रमुखों को भी इन बैठकों में आमंत्रित किया जाता है। अग्रणी बैंक द्वारा तिमाही में कम से कम एक डीएलआरसी बैठक आयोजित की जानी चाहिए। डीएलआरसी बैठकों में अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत किए जा रहे कार्यक्रमों की समीक्षा फीडबैक प्राप्त करते हुए की जाती है ताकि जिले में चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की गति एवं गुणवत्ता का पता किया जा सके। इस कारण गैर अधिकारियों की संबद्धता उपयोगी पायी गई। अग्रणी बैंकों से अपेक्षित है कि वे जहां तक हो से डीएलआरसी बैठकों में जनता के प्रतिनिधियों की उपस्थिति सुनिश्चित करें। अत: अग्रणी बैंकों को चाहिए कि वे डीएलआरसी बैठकों की तारीखें जनता के प्रतिनिधियों अर्थात् एमपी/एमएलए आदि की सुविधा को तरजीह देते हुए निश्चित करें और उन्हें जिले में बैंकों द्वारा किए जानेवाले सभी समारोह में जैसे नयी शाखाएं खोलना, किसान क्रेडिट कार्ड का वितरण, एसएचजी ऋण सहबद्धता कार्यक्रम आदि में उन्हें आमंत्रित करें और उन्हें शामिल कर लें। जनता के प्रतिनिधियों के प्रश्नों पर प्रतिकिया देने में उच्चतम प्राथमिकता दी जानी है और इन पर तत्परता से कार्रवाई की जानी है। डीसीसी बैठकों में डीएलआरसी के निर्णयों के अनुपालन पर चर्चा की जानी है। 2.2.7 डीसीसी/डीएलआरसी बैठकें – बैठकों का वार्षिक कैलेंडर i) डीसीसी और डीएलआरसी विकासात्मक गतिविधियों में बाधक समस्याओं की समीक्षा करने तथा उनका हल ढूंढने के लिए जिला स्तर पर वाणिज्य बैंकों, सरकारी एजेंसियों और जिला स्तर के अन्यों के बीच डीसीसी और डीएलआरसी एक महत्वपूर्ण समन्वयनकारी मंच होते हैं। अत: यह आवश्यक है कि उपर्युक्त बैठकों में सभी सदस्य सहभागी हो और चर्चा में भाग लें। डीसीसी और डीएलआरसी की बैठकों की समीक्षा करने पर यह देखा गया कि बैठक की तारीख की सूचना विलम्ब से प्राप्त होने/ सूचना प्राप्त न होने, अन्य इवेंटों की और ये तारीखें एक ही होने, तारीखों की समानता आदि के कारण इन बैठकों में सदस्यों के सहभाग में बाधा आती है; इस प्रकार, उपर्युक्त बैठकें आयोजित करने का मूल उद्देश्य बाधित हो जाता है। ii) अत: अग्रणी बैंकों को सूचित किया गया है कि वे सभी जिलों के लिए कैलेंडर वर्ष के आधार पर बैठकों के अध्यक्षों, रिज़र्व बैंक के एलडीओ और डीएलआरसी के मामले में जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श से डीसीसी और डीएलआरसी का वार्षिक कार्यक्रम (शेड्यूल) तैयार करें। उक्त वार्षिक कैलेंडर – हर वर्ष, वर्ष के प्रारंभ में ही तैयार किया जाए तथा डीसीसी एवं डीएलआरसी की बैठकों में उपस्थित होने के लिए अग्रिम रूप में भावी तारीखें ब्लाक करने हेतु सदस्यों के बीच परिचालित किया जाए और बैठकें कैलेंडर के अनुसार संचालित की जाए। कैलेंडर तैयार करते समय यह देखा जाए कि डीसीसी एवं डीएलआरसी की बैठकें एक ही साथ आयोजित नहीं की जाती हैं। 2.3 राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) i) राज्य के विकास के लिए एक समान आधार पर सभी राज्यों में पर्याप्त समन्वयनकारी तंत्र निर्मित करने के लिए एक शिखर अंतर संस्थागत मंच के रूप में अप्रैल 1977 में राज्य स्तरीय बैंकर समिति स्थापित की गई थी। संयोजक बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी)/संयोजक बैंक के कार्यपालक निदेशक एसएलबीसी के अध्यक्ष होते हैं। उसमें वाणिज्य बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, राज्य सहकारी बैंकों, रिज़र्व बैंक, नाबार्ड, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग, राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग आयोग आदि के प्रतिनिधियों समेत सरकारी विभागों के प्रमुख तथा राज्य में कार्यरत वित्तीय संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल होते हैं जो एकत्रित होकर नीति के कार्यान्वयन स्तर पर समन्वयन की समस्या को हल करते हैं। यदि कोई विशिष्ट समस्या हो तो, उस पर चर्चा के लिए अर्थव्यवस्था के विभिन्न संगठनों जैसे फुटकर व्यापारी, निर्यातक एवं कृषक यूनियन आदि के प्रतिनिधि एसएलबीसी बैठकों में विशेष आमंत्रिती के रूप में होते हैं। एसएलबीसी की बैठकें आयोजित करने का दायित्व राज्य के एसएलबीसी संयोजक बैंक का होता है। ii) इस बात को मानते हुए कि एसएलबीसी प्राथमिक रूप से राज्य स्तरीय बैंकर समिति के रूप में राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है इसलिए राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी) बैठकों के आयोजन पर निदर्शी दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। 2.3.2 एसएलबीसी बैठकों का आयोजन i) एसएलबीसी बैठकें त्रैमासिक अंतरालों पर नियमित रूप से होनी चाहिए तथा उसकी अध्यक्षता आयोजक बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी)/संयोजक बैंक के कार्यपालक निदेशक द्वारा की जानी चाहिए तथा एसएलबीसी बैठकों की सह-अध्यक्षता संबंधित राज्य के अपर मुख्य सचिव या विकास आयुक्त द्वारा की जानी चाहिए। एसएलबीसी/यूटीएलबीसी बैठकों में उच्च स्तरीय सहभागिता से भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक दोनों की सार्वजनिक नीति संबंधी मामलों पर प्रभावी और अर्थपूर्ण चर्चा के साथ अपेक्षित परिणाम सुनिश्चित हो। ii) मुख्यमंत्री/वित्त मंत्री तथा राज्य/रिज़र्व बैंक के वरिष्ठ स्तर के अधिकारी (उप गवर्नर/ कार्यपालक निदेशक के श्रेणी के) को एसएलबीसी बैठकों में आमंत्रित किया जा सकता है। साथ ही, राज्य के मुख्यमंत्रियों को कम से कम एक एसएलबीसी बैठक में उपस्थित रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। iii) एसएलबीसी की बृहत् सदस्यता को देखते हुए, एसएलबीसी के लिए यह वांछनीय होगा कि वे कृषि, माइक्रो, लघु/मध्यम उद्योगों/उद्यमों, हथकरघा वित्त, निर्यात संवर्धन और वित्तीय समावेशन आदि जैसे विशिष्ट कार्यों के लिए संचालन (स्टीयरिंग) उप-समिति/ उप-समितियों का गठन करें। उक्त उप-समितियां इन विशिष्ट कार्यों की गहराई से जांच करें तथा एसएलबीसी के विचारार्थ उपायों/सिफारिशें तैयार करें। उप-समिति की रचना तथा वित्तीय समावेशन के समीपस्थ/सुसाध्यकारी विचारणीय विषय/विशिष्ट मुद्दे, राज्यों द्वारा अनुभव की जा रही समस्याओं के आधार पर राज्य प्रति राज्य भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। ऐसा अपेक्षित है कि वे एसएलबीसी से अधिक बार-बार मिलते रहें। iv) एसएलबीसी के सचिवालय/कार्यालयों को पर्याप्त रूप से मजबूत किया जाए ताकि एसएलबीसी संयोजक बैंक अपने कार्य कारगर रूप से कर सकें। v) निम्न स्तर के विभिन्न मंच उन मामलों पर एसएलबीसी को पर्याप्त फीडबैक दें जिस पर व्यापक रूप से विचार-विमर्श करना आवश्यक है। vi) विभिन्न संस्थाएं तथा शिक्षाविद ऐसे अनुसंधान और अध्ययन आदि कर रहे हैं जो कृषि और एमएसएमई क्षेत्र के धारणीय विकास के लिए प्रभावकारी हैं। ऐसी अनुसंधान संस्थाओं तथा शिक्षाविदों की संबद्धता अग्रणी बैंक योजना के उद्देश्यों की प्राप्ति में गति लाने हेतु नए विचार लाने में उपयोगी होगी। अतः एसएलबीसी ऐसे शिक्षाविदों और अनुसंधानकर्ताओं का चयन करें और उन्हें समय-समय पर एसएलबीसी की बैठकों में "विशेष अतिथि" के रूप में उपस्थित रहने के लिए आमंत्रित करें ताकि वे चर्चा को और सार्थक बना सकें और उन्हें राज्य के लिए उपयुक्त उत्पाद प्रतिपादन हेतु अध्ययन में सहभागी बनाएं। अन्य "विशेष अतिथियों" को बैठकों में चर्चा की जानेवाली कार्यसूची मदों/मामलों के आधार पर एसएलबीसी बैठकों में उपस्थित रहने के लिए आमंत्रित किया जाए। vii) आनेवाले वर्षों में निम्न आय वाले परिवारों को सुगम ऋण मुहैया कराने में एनजीओ के कार्यकलाप बढ़ने के आसार हैं। कई कार्पोरेट प्रतिष्ठान भी दीर्घकालिक विकास के लिए कार्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व गतिविधियों में लगे हुए हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि एनजीओ/कार्पोरेट आवश्यक "क्रेडिट प्लस" सेवाएं प्रदान करते हैं, क्षेत्र में परिचालित ऐसे एनजीओ/कार्पोरेट प्रतिष्ठानों के साथ बैंक की सहलग्नता, समावेशी वृद्धि हेतु बैंक ऋण को वृद्धिगत करने में सहायक हो सकती है। सफल वार्ताओं को एसएलबीसी बैठकों में प्रस्तुत किया जा सकता है ताकि मॉडेल के रूप में उनका अनुसरण किया जा सके। 2.3.3 एसएलबीसी बैठकों की कार्यसूची जबकि सभी एसएलबीसी से अपेक्षा की जाती है कि वे संबंधित राज्यों की विशेष समस्याओं को हल करे, तथापि कुछ ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जो सभी राज्यों के लिए समान हैं और जिन पर एसएलबीसी को अपने मंच पर निरपवाद रुप से विचार-विमर्श करना चाहिए, वे निम्नानुसार हैं : i) निर्धारित समय-सीमा के भीतर बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु रोडमैप की प्राप्ति में हुई प्रगति के आवधिक रूप से मूल्यांकन हेतु वित्तीय समावेशन - निगरानी तंत्र। एलबीएस-एमआईएस-IV फार्मेट में तीन वर्षीय अवधि के लिए राज्यवार वित्तीय समावेशन प्लान संकलित करना और समेकित करना। रिज़र्व बैंक को त्रैमासिक रूप में प्रस्तुत करने के लिए एलबीएस-एमआईएस- V फार्मेट में एफआईपी की प्रगति की समीक्षा की जानी चाहिए। ii) आईटी आधारित वित्तीय समावेशन को रोकने और समर्थ बनाने वाले विशिष्ट मुद्दे। iii) समावेशी वृद्धि के लिए बैंकिंग विकास हेतु "सक्षमकों" (इनेबलर्स) को सुविधा प्रदान करना तथा "बाधकों" को हटाने/कम करने के मामले iv) बैंकों और राज्य सरकारों द्वारा "क्रेडिट प्लस" कार्यकलापों के लिए की गई पहल की निगरानी जैसे कि कारोबार प्रबंधन हेतु कौशल और क्षमता-निर्माण प्रदान कराने के लिए वित्तीय साक्षरता केद्रों (एफएलसी) और आरसेटी जैसे प्रशिक्षण संस्थानों का गठन v) वित्तीय समावेशन प्राप्त करने के लिए वित्तीय साक्षरता प्रयास बढ़ाना vi) वार्षिक ऋण योजना (एसीपी) के अंतर्गत बैंकों के कार्य-निष्पादन की समीक्षा vii) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के ऋण अभिनियोजन में क्षेत्रीय असंतुलन viii) राज्य का ऋण - जमा अनुपात ix) प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र तथा समाज के कमजोर वर्गों को ऋण उपलब्ध कराना x) सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत सहायता xi) शैक्षिक ऋण प्रदान करना xii) एसएचजी-बैंक सहलग्नता के अंतर्गत प्रगति xiii) एमएसएमई क्षेत्र द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याओं पर चर्चा करना xiv) भूमि रिकार्ड तथा वसूली तंत्र को सुधारने हेतु किए गए उपाय xv. बैंकों द्वारा समय पर डाटा प्रस्तुत करना xvi) राहत उपायों की समीक्षा (प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में जहां भी लागू हो) तथा xvii) डीसीसी/डीएलआरसी बैठकों में सुलझाए न गए मामले उपर्युक्त सूची उदाहरणात्मक है, परिपूर्ण नहीं। एसएलबीसी संयोजक बैंक आवश्यक समझी जानेवाली अन्य किसी कार्यसूची मद को शामिल कर सकता है। i) पिछले कुछ वर्षों में अग्रणी बैंक योजना का ध्यान बदलकर समावेशी वृद्धि तथा वित्तीय समावेशन पर आ गया है। सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) एवं बिचौलिओं के प्रयोग से बैंक वहनीय लागत पर आउटरीच, बैंकिंग सेवाओं की मात्रा तथा गहराई में वृद्धि करने में सक्षम हो गए हैं। ii) एसएलबीसी आयोजक बैंकों/अग्रणी बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की पहुँच के माध्यम से शत प्रतिशत वित्तीय समावेशन प्राप्त करने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करें। यह जरूरी नहीं कि ऐसी बैंकिंग सेवाएं इमारती शाखा के माध्यम से ही प्रदान की जाएं बल्कि वे बीसी सहित आईसीटी आधारित मॉडलों के विभिन्न प्रकारों के माध्यम से भी उपलब्ध करायी जा सकती हैं। तथापि, वाणिज्य बैंकों/क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वित्तीय समावेशन प्राप्त न करने के लिए आईसीटी कनेक्टिविटी बाधक नहीं होनी चाहिए। iii) जहां औपचारिक बैंकिंग प्रणाली द्वारा पहुँच की जरुरत है वहां सभी केद्रों में बैंकिंग विस्तार सुनिश्चित करने हेतु एसएलबीसी संयोजक बैंक रोड/डिजिटल कनेक्टिविटी, प्रेरक कानून और व्यवस्था की स्थिति, बिजली की निर्बाध आपूर्ति तथा पर्याप्त सुरक्षा आदि से संबंधित बाधाओं को राज्य सरकारों के पास उठाएं। तथापि, इससे वित्तीय समावेशन पहल की शुरुआत में रूकावट नहीं आनी चाहिए। 2.3.5 एसएलबीसी - बैठकों का वार्षिक कैलेंडर i) एसएलबीसी/यूटीएलबीसी बैठकों की कारगरता में वृध्दि करने और उनकी कार्यप्रणाली को सरल बनाने के लिए एसएलबीसी संयोजक बैंकों को सूचित किया गया है कि वे बैठकें आयोजित करने हेतु वर्ष के शुरूआत में ही कार्यक्रम का एक वार्षिक कैलेंडर (कैलेंडर वर्ष आधारित) तैयार करें। कार्यक्रम के कैलेंडर में, एसएलबीसी को आँकड़े प्रस्तुत करने की तथा एसएलबीसी संयोजक द्वारा उसकी स्वीकृति की अंतिम तारीखें स्पष्ट रूप से निर्धारित की जानी चाहिए। यह वार्षिक कैलेंडर सभी संबंधितों को पूर्व सूचना के रूप में परिचालित किया जाए ताकि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, बैंकों, भारतीय रिज़र्व बैंक, आदि जैसी विभिन्न एजेंसियों के वरिष्ठ पदाधिकारियों की आगामी तारीखें ब्लॉक की जा सकें। एसएलबीसी/यूटीएलबीसी की बैठकें हर परिस्थिति में कैलेंडर के अनुसार आयोजित की जानी चाहिए। चूककर्ता बैंकों से ब्योरे की प्रतीक्षा किए बिना कार्यसूची भी पहले ही परिचालित की जानी चाहिए। परंतु, एसएलबीसी बैठक में चूककर्ता बैंकों के साथ मामले पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त एसएलबीसी संयोजक बैंक को इस संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय को सूचित करते हुए चूककर्ता बैंक के नियंत्रक कार्यालय को एक पत्र लिखना चाहिए। तथापि, एसएलबीसी संयोजक बैंक समय पर ब्योरा प्रस्तुतीकरण हेतु बैंकों के साथ संपर्क बनाए रखना जारी रखेगा। यदि मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री या अन्य वरिष्ठतम पदाधिकारी किसी असाधारण अवसर पर एसएलबीसी में उपस्थित नहीं हो पाते, तो यदि वे इच्छुक हों तो एक विशेष एसएलबीसी बैठक आयोजित की जा सकती है। कार्यक्रमों का कैलेंडर तैयार करने में निम्नलिखित स्थूल दिशानिर्देशों का प्रयोग किया जाना चाहिए :
(ii) वर्ष के प्रारंभ में बैठकों का कैलेंडर तैयार करने का उद्देश्य सभी स्टेकधारियों को इन बैठकों की पर्याप्त नोटिस देना तथा कार्यसूची के कागज़ात के समय पर संकलन एवं प्रेषण को सुनिश्चित करना है। इससे एसएलबीसी संयोजकों को इसमें सहभागी होने वाले बैंकों और सरकारी विभागों द्वारा समय पर डाटा प्रस्तुतीकरण भी सुनिश्चित होता है। इसमें एसएलबीसी संयोजकों के अन्यथा विभिन्न वरिष्ठ पदाधिकारियों से एसएलबीसी बैठकों में उपस्थित रहने के लिए समय लेने में व्यर्थ जानेवाला समय भी बचता है। (iii) एसएलबीसी संयोजक बैंकों को वार्षिक कैलेंडरों के सुनिश्चित पालन करने के लाभ समझ लेने चाहिए। अत: एसएलबीसी संयोजक बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे वर्ष के प्रारंभ में वार्षिक कैलेंडर का व्यापक प्रचार करें और सुनिश्चित करें कि उनके कार्यालयों द्वारा सभी बैठकों के लिए बैठक में उपस्थित रहने के लिए प्रत्याशित वरिष्ठ पदाधिकारियों की तारीखें ब्लॉक कर ली गई हैं। यदि, तारीखें ब्लॉक करने के बावजूद किसी कारणवश वरिष्ठ पदाधिकारी बैठक में उपस्थित रहने में असमर्थ हो तो बैठक कैलेंडर में की गई आयोजना के अनुसार की जानी चाहिए। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि कैलेंडर में निर्धारित अंतिम तारीख तक इन बैठकों में समीक्षार्थ डाटा पहुंच जाना चाहिए और समय पर डाटा प्रस्तुत न करनेवालों से डाटा भेजने में विलंब के कारण स्पष्ट करने के लिए कहा जाना चाहिए तथा कार्यविवरण में उन्हें अभिलिखित किया जाए। किसी भी परिस्थिति में कैलेंडर के अनुसार कार्यसूची तैयार करने के लिए निर्धारित तारीखों से अधिक का विलंब नहीं होना चाहिए। 2.3.6 एसएलबीसी वेबसाइट – सूचना/डाटा का मानकीकरण एसएलबीसी संयोजक बैंकों से एसएलबीसी वेबसाइट बनाए रखना अपेक्षित है जिसमें अग्रणी बैंक योजना एवं सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं संबंधी अनुदेश उपलब्ध हो और जो बैठकों के संचालन तथा राज्यवार/बैंकवार कार्यनिष्पादन से संबंधित कोई भी जानकारी पाने के इच्छुक आम आदमी की पहुंच में हो। एसएलबीसी वेबसाइट पर उपलब्ध की जानेवाली उक्त सूचना एवं डाटा का मानकीकरण करने की दृष्टि से सूचना और डाटा की निदर्शी सूची अनुबंध II में दी गई है। एसएलबीसी को चाहिए कि वह अपने बैंक की एसएलबीसी वेबसाइटों पर न्यूनतम निर्धारित जानकारी रखने तथा उसे नियमित रूप से, कम से कम तिमाही आधार पर, अद्यतन करने की व्यवस्था करें। बैंक यह नोट करें कि उक्त सूची केवल निदर्शी स्वरूप की है और एसएलबीसी इसमें उस राज्य के संबंध में संगत कोई भी अतिरिक्त सूचना डाल सकते हैं। एसएलबीसी संयोजक बैंकों से अपेक्षित है कि वे राज्य के सभी बैंकों की गतिविधियों को समन्वित करें, उधार देने, बैंकिंग विकास के लिए आवश्यक समर्थन प्रदान करने तथा वित्तीय समावेशन के लक्ष्य प्राप्त करने में होने वाली परिचालनगत समस्याओं पर राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ चर्चा करें। 2.3.8 क्षमता निर्माण/प्रशिक्षण/सेंसीटाइजेशन कार्यक्रम i) बैंकों तथा आम तौर पर बैंकिंग तथा साथ ही, अग्रणी बैंक योजना की विशिष्ट व्याप्ति एवं भूमिका पर जिलाधीशों और जिला परिषदों के सीईओ को सेंसीटाइज करने की जरुरत है। प्रत्येक राज्य में हर वर्ष अप्रैल/मई में एसएलबीसी संयोजक बैंक द्वारा एक पूर्ण दिवसीय कार्यशाला आयोजित की जाए। ऐसे सेंसीटाइजेशन इन अधिकारियों के परिवीक्षाधीन (प्रोबेशनरी) प्रशिक्षण का एक भाग होना चाहिए। साथ ही, जैसे उन्हें किसी जिले में तैनात किया जाए, एसएलबीसी को जिलाधीशों की एसएलबीसी संयोजक कार्यालय में सेंसीटाइजेशन एवं अग्रणी बैंक योजना को समझने के लिए एक एक्सपोजर यात्रा आयोजित करनी चाहिए। ii) बैंकों के परिचालन स्तर के स्टाफ और अग्रणी बैंक योजना के कार्यान्वयन से संबद्ध सरकारी एजेंसियों के स्टाफ के लिए अद्यतन गतिविधियों और उभरते अवसरों की जानकारी पाना जरुरी है। स्टाफ सेंसीटाइजेशन/प्रशिक्षण/सेमीनार, आदि आवधिक अंतरालों पर सतत चलाते रहने की जरुरत है। 3. अग्रणी बैंक योजना का कार्यान्वयन 3.1 ऋण योजना (क्रेडिट प्लान) तैयार करना अग्रणी बैंक योजना के कार्यान्वयन में आयोजना (प्लानिंग) की महत्वपूर्ण भूमिका है और विकास के लिए विद्यमान क्षमता का पता लगाने (मैपिंग) के लिए नीचे से ऊपर (बॉटम-अप) दृष्टिकोण अपनाया जाता है। अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत प्लानिंग की शुरुआत विभिन्न सेक्टरों के लिए अनुमानित ब्लॉकवार/गतिविधिवार क्षमता की पहचान के साथ होती है। 3.2 क्षमता संबद्ध क्रेडिट प्लान (पीएलपी) i) क्षमता संबद्ध क्रेडिट प्लान (पीएलपी) बैंक ऋण के माध्यम से विकास की विद्यमान संभावना क्षमता का पता लगाने के मूल उद्देश्य के साथ क्रेडिट प्लानिंग को विकेंद्रित करने प्रति उठाया गया एक कदम है। पीएलपी में दीर्घावधिक भौतिक क्षमता, बुनियादी संरचना समर्थन की उपलब्धता, विपणन सुविधाओं तथा सरकार की नीतियों / कार्यक्रमों आदि को ध्यान में रखा जाता है। ii) एलडीएम द्वारा हर वर्ष जून के दौरान आयोजित पीएलपी–पूर्व बैठक में बैंकों, सरकारी एजेंसियों, आदि को उपस्थित रहना है जिसमें क्रेडिट क्षमता (सेक्टरवार/गतिविधिवार) संबंधी चिंताओं पर उनके विचार व्यक्त किए जाने तथा पिछले एक वर्ष में जिले की प्रमुख वित्तीय तथा सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों पर चर्चा की जाए एवं पीएलपी में समावेशन हेतु प्राथमिकताएं निश्चित की जाए। इस बैठक में, नाबार्ड के डीडीएम आगामी वर्ष का पीएलपी तैयार करने हेतु सूचना संबंधी प्रमुख आवश्यकताओं की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए प्रेजेंटेशन प्रस्तुत करेगा। आगामी वर्ष का पीएलपी तैयार करने का कार्य हर वर्ष अगस्त तक पूरा कर लिया जाना चाहिए ताकि राज्य सरकार इसे पीएलपी अनुमानों में विभाजित (फैक्टर) कर सकें। iii) जिला क्रेडिट प्लान तैयार करने की कार्यविधि निम्नानुसार है:- A. वाणिज्य बैंकों के नियंत्रक कार्यालय और आरआरबी तथा डीसीसीबी/एलडीबी का प्रधान कार्यालय अपनी सभी शाखाओं को उनके संबंधित शाखा प्रबंधकों द्वारा शाखा क्रेडिट प्लान (बीसीपी) तैयार करने के लिए स्वीकार की गई ब्लॉकवार/गतिविधिवार संभावना परिचालित करेंगे। बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी शाखाओं द्वारा शाखा/ब्लॉक प्लान समय पर पूरे किए जाते हैं, ताकि क्रेडिट प्लान समय पर परिचालन में आ सके। B. हर ब्लॉक के लिए एक विशेष ब्लॉक स्तरीय बैंकर समिति आयोजित की जाएगी जहां शाखा क्रेडिट प्लान पर चर्चा की जाएगी और इन्हें ब्लॉक क्रेडिट प्लान बनाने के लिए जोड़ दिया जाएगा। डीडीएम और एलडीएम यह सुनिश्चित करते हुए कि ब्लॉक क्रेडिट प्लान सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं संबंधी संभावनाओं समेत पहचानी गई गतिविधिवार संभावनाओं के अनुरूप है, बीएलबीसी के प्लान को अंतिम रूप देने के संबंध में मार्गदर्शन प्रदान करेंगे। C. एलडीएम द्वारा जिला क्रेडिट प्लान बनाने के लिए जिले के सभी ब्लॉक क्रेडिट प्लानों को जोड़ लिया जाएगा। उक्त प्लान जिले की ऋण जरूरतों का विश्लेषणात्मक निर्धारण इंगित करता है जिसे जिले में कार्यरत सभी वित्तीय संस्थाओं द्वारा विनियोजित किया जाएगा और निधियों की कुल मात्रा नए वित्तीय वर्ष के लिए सभी वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण के रूप में निश्चित की जानी है। बैंकों के आंचलिक/नियंत्रक कार्यालय वर्ष के लिए अपने व्यवसाय प्लान को अंतिम रूप देते समय डीसीपी में की गई प्रतिबद्धताओं को हिसाब में लेंगे जो कि कार्यनिष्पादन बजटों को अंतिम रूप देने से काफ़ी पहले तैयार रखा जाना चाहिए। D. अग्रणी जिला प्रबंधक जिला क्रेडिट प्लान अंतिम स्वीकरण/अनुमोदन के लिए डीसीसी के समक्ष प्रस्तुत करेगा। सभी जिला क्रेडिट प्लान अंतत: राज्य स्तरीय क्रेडिट प्लान में जोड़ दिए जाएंगे जो एसएलबीसी संयोजक बैंक द्वारा तैयार किया जाएगा और हर वर्ष अप्रैल की 1 तारीख तक प्रक्षेपित किया जाएगा। 3.3 क्रेडिट प्लान के कार्यनिष्पादन की निगरानी क्रेडिट प्लान के कार्यनिष्पादन समीक्षा की नीचे दर्शाए गए अनुसार अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत निर्मित विभिन्न मंचों पर की जाएगी :
अग्रणी बैंक योजना की रिजर्व बैंक द्वारा निगरानी – निगरानी सूचना प्रणाली (एमआईएस) (i) वार्षिक क्रेडिट प्लान (एसीपी) पर डाटा, राज्य में ऋण प्रवाह की समीक्षा हेतु एक महत्वपूर्ण घटक है। वर्तमान एसीपी रिपोर्टिंग फार्मेट जिसमें लक्ष्य हेतु (एसीपी विवरण I) तथा उपलब्धि हेतु (एसीपी विवरण II) शामिल है को इस प्रकार संशोधित किया गया है की प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत उप-क्षेत्र कृषि और संबद्ध कार्यकलापों, माइक्रो और लघु उद्यमों, शिक्षा, आवास तथा अन्य और गैर प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र में मध्यम उद्योगों, बड़े उद्योगों, शिक्षा, आवास तथा अन्य के साथ वार्षिक क्रेडिट प्लान तैयार किया जा सके। एसीपी लक्ष्य हेतु विवरण एलबीएस-एमआईएस-I (अनुबंध IV) है, संवितरण और बकाया हेतु विवरण एलबीएस-एमआईएस-II (अनुबंध V) है तथा एसीपी लक्ष्य की तुलना में एसीपी उपलब्धि एलबीएस-एमआईएस-III (अनुबंध VI) है। अग्रणी बैंकों/एसएलबीसी संयोजक बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे वर्ष 2013-14 से निर्धारित फार्मेटों के अनुसार बैंक समूहवार एलबीएस-एमआईएस-I, II और III विवरण तैयार करें तथा सभी डीसीसी और एसएलबीसी बैठकों में अर्थपूर्ण समीक्षा हेतु इन विवरणों को प्रस्तुत करें। (ii) अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के अखिल भारतीय डाटा की निरंतरता एवं सत्यता बनाए रखने तथा डाटा की अर्थपूर्ण समीक्षा/विश्लेषण कर पाने की दृष्टि से एसीपी और एफआईपी डाटा को अनुसूचित वाणिज्य बैंकों और राज्य सहकारी बैंकों एवं डीसीसीबी आदि जैसे अन्य बैंकों को डीसीसी/एसएलबीसी बैठकों के समक्ष रखते समय तथा हमारे क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत करते समय अलग-अलग समूहबद्ध किया जाना चाहिए। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के डाटा को आगे सरकारी क्षेत्र बैंकों, निजी क्षेत्र बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में समूहबद्ध किया जाना चाहिए। 4. अग्रणी बैंक दायित्व सौंपना i) भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 1969 से अग्रणी बैंक योजना कार्यान्वित की जा रही है। प्रत्येक जिले में नामित बैंकों को अग्रणी बैंक दायित्व सौंपने का कार्य भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है जिसमें इस प्रयोजन के लिए बनाई गई विस्तृत कार्यविधि अपनाई जाती है। 30 जून 2015 को देश के 673 जि़लों में 25 सरकारी क्षेत्र बैंकों और एक निजी क्षेत्र बैंक को अग्रणी बैंक दायित्व सौंपा गया है। ii) राज्य/संघशासित क्षेत्र स्तर पर एक शिखर स्तरीय मंच के रूप में राज्य स्तरीय बैंकर समिति (एसएलबीसी)/संघशासित क्षेत्र स्तरीय बैंकर समिति (यूटीएलबीसी) अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत राज्य/संघशासित क्षेत्र में वित्तीय संस्थाओं और सरकारी विभागों की गतिविधियों का समन्वयन करती है। 30 जून 2015 को 29 राज्यों और 7 संघशासित क्षेत्रों का एसएलबीसी/यूटीएलबीसी संयोजकत्व 16 सरकारी क्षेत्र बैंकों और एक निजी क्षेत्र बैंक को सौंप दिया गया है। राज्यवार एसएलबीसी संयोजक बैंकों और जिलावार अग्रणी बैंकों की सूची अनुबंध I में दी गई है। ii) समूचे देश को अग्रणी बैंक योजना की परिधि में लाने हेतु वर्ष 2013-14 के दौरान चैन्नै (1), दिल्ली (11), हैदराबाद (1), कोलकाता (1) और मुंबई (2) के महानगरीय क्षेत्रों के 16 जिलों को अग्रणी बैंक योजना के अंतर्गत लाया गया। 5. बैंकरहित गांवों में बैंकिंग आउटलेट खोलने के लिए रोडमैप i) देश के बैंकरहित गांवों में द्वार तक बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए एक चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाया गया है। नवंबर 2009 में चरण-I के अंतर्गत 2000 से अधिक आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने के लिए रोडमैप तैयार करने के दिशानिर्देश जारी किए गए। चरण–I को मार्च 2012 तक सफलतापूर्वक लागू करने के बाद जून 2012 में 2000 से कम आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने संबंधी रोडमैप लागू किया गया। (ii) 2000 से कम आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने के रोडमैप के अंतर्गत एसएलबीसी संयोजक बैंकों को सूचित किया गया है कि वे 2000 से कम आबादी वाले बैंकरहित गांवों को शामिल करने हेतु बने रोडमैप की प्रगति की निगरानी करें। उपर्युक्त रोडमैप के अंतर्गत बैंकों द्वारा की गई प्रगति (जिलावार और हर जिले में बैंकवार) की तिमाही रिपोर्ट एसएलबीसी द्वारा रिज़र्व बेंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को अनुबंध III में दिए गए फार्मेट में तिमाही की समाप्ति के 15 दिनों के भीतर भेज देनी चाहिए। पीएमजेडीवाई के निरंतर हो रहे कार्यान्वयन को ध्यान में लेते हुए एसएलबीसी संयोजक बैंकों और अग्रणी बैंकों को सूचित किया गया है कि वे 2000 से कम आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने की प्रक्रिया (चरण II) पहले निर्धारित मार्च 2016 के बजाय पीएमजेडीवाई के अनुरूप 14 अगस्त 2015 तक पूरी करें। 6.1 ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में बैंकों का ऋण-जमा अनुपात बैंकों को अपनी ग्रामीण और अर्धशहरी शाखाओं के संबंध में अखिल भारतीय आधार पर अलग से 60 प्रतिशत का ऋण-जमा अनुपात प्राप्त करने के लिए सूचित किया गया है। जहां उक्त अनुपात अलग-अलग शाखावार, जिलावार अथवा क्षेत्रवार रखना आवश्यक नहीं है, वहां बैंकों को किसी भी बात के होते हुए भी विभिन्न राज्यों/क्षेत्रों के बीच अनुपात में व्यापक असमता से बचना सुनिश्चित करना चाहिए ताकि ऋण विनियोजन में क्षेत्रीय असंतुलन कम हो सके। आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर का अभाव, क्रेडिट को खपा लेने की भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की भिन्न-भिन्न क्षमता, आदि जैसे कारणों के परिणामस्वरूप कतिपय जिलों में क्रेडिट वितरण अत्यल्प रहा है। बैंक ऐसे क्षेत्रों की अपनी शाखाओं के कार्यनिष्पादन की समीक्षा करें और क्रेडिट प्रवाह बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। अग्रणी बैंक जिले की अन्य वित्तीय संस्थाओं तथा डीसीसी मंचों पर उक्त समस्या के सभी पहलुओं पर चर्चा करें। 6.2 ऋण-जमा अनुपात पर विशेषज्ञ दल की सिफारिशों का कार्यान्वयन i) भारत सरकार ने राज्यों/क्षेत्रों में न्यून ऋण-जमा (सीडी) अनुपात की समस्या के स्वरूप और मात्रा को देखने तथा इस समस्या के हल का सुझाव देने के लिए एक विशेषज्ञ दल गठित किया था। विशेषज्ञ दल ने न्यून ऋण-जमा अनुपात की समस्याओं एवं कारणों की जांच की। सिफारिशों के अनुसार निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर बैंकों के ऋण-जमा अनुपात की भिन्न स्तरों पर निगरानी की जानी चाहिए -
जहां :
ii) ऋण-जमा अनुपात की निगरानी करने और ऋण-जमा अनुपात को बढ़ाने, निगरानी योग्य कार्रवाई योजना (एमएपी) बनाने के लिए 40 से कम ऋण-जमा डी अनुपात वाले जिलों में डीसीसी की विशेष उप समिति (एसएससी) गठित की जानी चाहिए। अग्रणी जिला प्रबंधक उक्त एसएससी संयोजक के रूप में पदनामित होगा जिसमें उक्त क्षेत्र में कार्यरत बैंकों के जिला समन्वयनकर्ताओं के अलावा रिज़र्व बैंक के एलडीओ, नाबार्ड के डीडीएम, जिला आयोजना अधिकारी अथवा जिला प्रशासन की ओर से निर्णय लेने का विधिवत अधिकार प्राप्त जिलाधीश (कलक्टर) का प्रतिनिधि शामिल होंगे। विशेष उप समिति के कार्य निम्नानुसार होंगे :
iii) जहां तक 20 से कम ऋण-जमा अनुपात वाले जिलों का संबंध है, ये आम तौर पर पहाड़ी, मरुस्थलों, दुर्गम भूभागों और/या ऐसे स्थानों पर होते हैं जो मात्र प्राथमिक क्षेत्र पर ही निर्भर होनेवाले तथा/या खराब कानून एवं सुव्यवस्था तंत्र विशेषता वाले होते हैं। ऐसे क्षेत्रों में जब तक बैंकिंग प्रणाली और राज्य सरकार एक विशेष सोद्देश्यपूर्ण तरीके से इकठ्ठे न हो, पारंपरिक पद्धतियां सफल नहीं हो पाएंगी। iv) जहां इन जिलों में ऋण-जमा अनुपात बढ़ाने के लिए कार्यान्वयन का ढ़ांचा 40 से कम ऋण-जमा अनुपात वाले जिलों के समान होगा (अर्थात् एसएससी का गठन आदि) वहीं ध्यान (फोकस) का प्रमुख केंद्र और प्रयासों का स्तर काफ़ी उच्चतर मात्रा का होना चाहिए। इसके लिए,
भारत सरकार ने चुनिंदा जिलों में प्रत्यक्ष लाभ अंतर्गत (डीबीटी) को लागू किया है। एसएलबीसी संयोजक बैंकों को डीबीटी को कार्यान्वित करने हेतु प्राधिकारियों के साथ समन्वयन बनाए रखने के लिए सूचित किया गया था। वित्तीय समावेशन/प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के कार्यान्वयन के एक भाग के रूप में एसएलबीसी बैठकों में डीबीटी के कार्यान्वयन की स्थिति को एक नियमित कार्यसूची मद के रूप में शामिल करने के लिए सूचित किया है। डीबीटी के कार्यान्वयन के लिए परिलब्धि के रूप में हर पात्र व्यक्ति के पास एक बैंक खाता होना चाहिए। साथ ही, आईसीटी आधारित बीसी मॉडल के माध्यम से द्वार तक वितरण किए जाने के लिए देशभर के सभी गांवों में या तो इमारती शाखाओं अथवा शाखारहित माध्यम से बैंकिंग आउटलेट होना जरुरी है। इसलिए बैंकों को सूचित किया गया है कि वे :-
8. सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण (एसएए) i) ग्रामीण और अर्द्धशहरी क्षेत्रों में नियोजनबद्ध एवं सही तरीके से विकास करने के लिए अप्रैल 1989 में शुरू किया गया सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण (एसएए) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित सभी अनुसूचित वाणिज्य बैंकों पर लागू था। एसएए के अंतर्गत ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में स्थित हर बैंक शाखा 15 से 25 गांवों में सेवा देने के लिए निर्दिष्ट की गई थी और उक्त शाखा अपने सेवा क्षेत्र की बैंक ऋण जरुरतों को पूरा करने के लिए उत्तरदायी थी। एसएए का मुख्य उद्देश्य उत्पादक उधार बढ़ाना तथा बैंक ऋण, उत्पादन, उत्पादकता में प्रभावी सहबद्धता एवं आय स्तरों में बढोतरी लाना था। एसएए योजना की समय समय पर समीक्षा की गई और योजना को अधिक प्रभावी बनाने के लिए उसमें यथोचित परिवर्तन किए गए। ii) सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण की दिसंबर 2004 में समीक्षा की गई और यह निर्णय लिया गया कि एसएए के सकारात्मक पहलुओं जैसे ऋण आयोजना और ऋण पर्वेअन्स की निगरानी को बनाए रखने के साथ योजना के प्रतिबंधात्मक प्रावधान समाप्त किए जाएं। तदनुसार, बैंकों की ग्रामीण और अर्धशहरी शाखाओं के बीच गावों का आबंटन उधार देने के लिए, एसएए के अंतर्गत सरकार प्रायोजित योजनाओं को छोड़कर लागू नहीं था। इस प्रकार जहां वाणिज्यिक बैंक और क्षेर्तीय ग्रामीण बैंक किसी भी ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्र में ऋण देने के लिए स्वतंत्र हैं, वहीं उधारकर्ता को अपनी ऋण जरूरतों के लिए किसी भी शाखा से संपर्क करने का विकल्प प्राप्त है। 8.1 बेबाकी (अदेयता – नो ड्यू) प्रमाणपत्र समाप्त करना i) विशेषत: ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में झंझट रहित ऋण सुनिश्चित करने हेतु, एवं बहुविध वित्तपोषण से बचने हेतु बैंकों के पास विविध तकनीकी एवं अन्य तरीकों की उपलब्धता के मद्देनजर बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं सहित, यदि योजना में अन्यथा उल्लेख न हो, सभी प्रकार के ऋणों चाहे उसमें निहित राशि कुछ भी क्यों न हो, के लिए वैयक्तिक ऋणकर्ताओं (एसएचजी और जेएलजी सहित) से ‘अदेयता प्रमाणपत्र’ प्राप्त न करें। साथ ही यह स्पष्ट किया जाता है कि बैंकों द्वारा उधार दिए जाने के लिए अदेयता प्रमाणपत्र प्राप्त न करने की नीति महानगरीय शहरों सहित शहरी क्षेत्रों के लिए भी लागू है। ii) बैंकों को, ऋण मूल्यांकन के एक भाग के रूप में ‘अदेयता प्रमाणपत्र’ से इतर समुचित सावधानी (ड्यू डीलिजेंस) के वैकल्पिक ढांचे का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाता है जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित में से एक या अधिक समाविष्ट हो सकता है:
iii) बैंकों को यह भी सूचित किया जाता है कि वे रिज़र्व बैंक द्वारा जारी वर्तमान अनुदेशों के अनुसार सभी ऋण सूचना कंपनियों (सीआईसी) को यथा अपेक्षित ऋण सूचना/डाटा प्रस्तुत करें। 9. वित्तीय समावेशन प्लान (एफआईपी) की निगरानी - राज्य और जिला स्तर i) एसएलबीसी संयोजक बैंकों को सूचित किया गया है कि वे अपने क्षेत्राधिकार के सभी बैंकों के नियंत्रक कार्यालयों से 3 वर्षों के लिए फार्मेट एलबीएस-एमआईएस-IV (अनुबंध VII) में राज्यवार वित्तीय समावेशन प्लान प्राप्त करने के बाद उसे राज्यवार बैंक समूहवार संकलित/समेकित करें और निर्धारित एलबीएस-एमआईएस–V फार्मेट (अनुबंध VIII) के अनुसार एसएलबीसी बैठक में प्रगति की समीक्षा करें। ii) अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के अखिल भारतीय डाटा की निरंतरता एवं सत्यता बनाए रखने तथा डाटा की अर्थपूर्ण समीक्षा/विश्लेषण कर पाने की दृष्टि से एफआईपी डाटा को अनुसूचित वाणिज्य बैंकों और राज्य सहकारी बैंकों एवं डीसीसीबी आदि जैसे अन्य बैंकों को डीसीसी/एसएलबीसी बैठकों के समक्ष रखते समय तथा हमारे क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत करते समय अलग-अलग समूहबद्ध किया जाना चाहिए। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के डाटा को आगे सरकारी क्षेत्र बैंकों, निजी क्षेत्र बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में समूहबद्ध किया जाना चाहिए। परिपत्रों की सूची
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