मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवाएं) दिशानिर्देश, 2016 - आरबीआई - Reserve Bank of India
मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवाएं) दिशानिर्देश, 2016
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- 2021-08-10
- 2017-09-25
- 2016-05-26
आरबीआई/डीबीआर/2015-16/25 26 मई 2016 मास्टर निदेश – भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंकों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवाएं) बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35 ‘क’ के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक, इस बात से आश्वस्त होने पर कि ऐसा करना लोकहित में आवश्यक और लाभकारी है, एतद्वारा इसमें इसके बाद विनिर्दिष्ट निदेश जारी करता है। अध्याय – I 1. संक्षिप्त नाम और आरंभ
2. प्रयोज्यता
3. परिभाषाएं (a) इन निदेशों में, जब तक कि संदर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो, शब्दों का अर्थ वही होगा, जो उन्हें नीचे प्रदान किया गया है – i. समनुदेशिती (एसाइनी) - अर्थात समनुदेशिती, जैसा फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 में परिभाषित किया गया है। ii. समनुदेशकर्ता (एसाइनर)- से आशय है समनुदेशकर्ता, जैसा कि फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 में परिभाषित किया गया है। iii. सहयोगी कंपनी (एसोसिएट) – से आशय है सहयोगी कंपनी, जैसा कि इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टेड एकाउंट्स ऑफ इंडिया के लेखांकन मानक के संदर्भ में परिभाषित किया गया है। iv. कर्जदार (Debtor) – से आशय है कर्जदार, जैसा उसे फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 में परिभाषित किया गया है। v. फैक्टरिंग – से आशय है फैक्टरिंग, जैसा कि फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 में परिभाषित किया गया है। vi. वित्तीय सेवाएं कंपनी – से आशय है वह कंपनी जो वितीय सेवाओं के कारोबार में व्यस्त हो। स्पष्टीकरणः – “वित्तीय सेवाओं के कारोबार” से तात्पर्य होगाः –
vii. सरकारी प्रतिभूतियां - से आशय है प्रतिभूतियां, जैसा कि सरकारी प्रतिभूति अधिनियम, 2006 में परिभाषित किया गया है। viii. अवक्रय (हायर पर्चेज) – से आशय है अवक्रय, जैसा अवक्रय अधिनियम, 1972 में परिभाषित किया गया है। ix. बुनियादी संरचना कर्ज निधि - से आशय है बुनियादी संरचना कर्ज निधि, जैसा कि समय-समय पर यथासंशोधित दिनांक 21 नवंबर 2011 की अधिसूचना सं. डीएनबीएस.233/सीजीएम(यूएस)-2011 में परिभाषित किया गया है। x. निवेश सलाहकार सेवा – से आशय है निवेश सलाहकार द्वारा दी जाने वाली सेवाएं जैसा कि सेबी (निवेश सलाहकार) विनियम, 2013 में परिभाषित किया गया है। xi. संयुक्त उद्यम :- से आशय है संयुक्त उद्यम, जैसा द इन्स्टिट्यूट ऑफ चार्टेड अकाउन्टेन्ट्स ऑफ इंडिया के लेखांकन मानक में परिभाषित किया गया है। xii. म्यूच्युल फंड :– से आशय है वह निधि, जैसा कि सेबी (म्युच्युअल फंड) विनियम, 1996 में परिभाषित किया गया है। xiii. गैर-वित्तीय सेवाएं कंपनी :– से आशय उस कंपनी से है जो इस निदेश के धारा 3(vi) में उल्लिखित किसी भी कारोबार में शामिल नहीं है। xiv. पेंशन निधि प्रबंधन:- से आशय है पेंशन निधि का प्रबंधन, जैसा कि पेंशन निधि विनियामक विकास प्राधिकरण (राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के अंतर्गत निकास और आहरण) विनियम, 2014 में परिभाषित किया गया है। xv. पोर्टफोलियो प्रबंध सेवाएं :- से आशय पोर्टफोलियो प्रबंधक द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं से है जैसा कि सेबी (पोर्टफोलियो प्रबंधक) विनियम, 1993 में परिभाषित किया गया है। xvi. रेफरल सेवाएं :– से आशय, वित्तीय उत्पाद उपलब्ध कराने वाले किसी तीसरे पक्ष तथा बैंक के बीच एक व्यवस्था से है, जिसके माध्यम से बैंकों के ग्राहकों को वित्तीय उत्पाद उपलब्ध कराने वाले किसी तीसरे पक्ष के पास भेजा जाता है। xvii. उल्लेखनीय प्रभाव:- से आशय उस उल्लेखनीय प्रभाव से है जैसा कि द इन्स्टिट्यूट ऑफ चार्टेड अकाउन्टेन्ट्स ऑफ इंडिया के लेखांकन मानक के संदर्भ में परिभाषित किया गया है। xviii. प्रायोजक बैंकः- से आशय उस बैंक से है जो किसी विशिष्ट वित्तीय गतिविधि के लिए एक अलग संस्था का निर्माण करता है। xix. अनुषंगी कंपनी :- से आशय अनुषंगी कंपनी से है जैसा कि द इन्स्टिट्यूट ऑफ चार्टेड अकाउन्टेन्ट्स ऑफ इंडिया के लेखांकन मानकों के संदर्भ में परिभाषित किया गया है। (b) यदि अन्यथा परिभाषित न किया गया हो, तो अन्य सभी अभिव्यक्तियों का आशय वही होगा, जो बैंककारी विनियमन अधिनियम या भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, या किसी सांविधिक संशोधन या उसका पुनर्अधिनियमन या जैसा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा कहीं और परिभाषित हो या जैसा वाणिज्यिक वार्तालाप में प्रयुक्त हो, जो भी लागू हो, के अंतर्गत उन्हें दिया गया है। 4. कारोबार के स्वरूपः (a) जब तक इन निदेशों में अन्यथा विनिर्दिष्ट न किया जाए, बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6 (1) के अंतर्गत अनुमत कारोबार करने के इच्छुक बैंक और स्वेच्छा से या तो विभागीय तौर पर या बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 19 (1) के प्रावधानों के तहत इस उद्देश्य के लिए एक अलग अनुषंगी कंपनी बनाते हुए ऐसा कर सकते हैं। (b) विभागीय तौर पर की जाने वाली गतिविधि निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगी:-
(c) बैंक, के पास वित्तीय सेवाएं देने वाली कंपनियों के साथ-साथ वित्तीय गतिविधियां न करने वाली कंपनियों, दोनों में ही, बैंककारी विनियमन अधिनियम,1949 की धारा 19 (2) के प्रावधानों के तहत निर्धारित सीमाओं के अंदर और नीचे दी गई धारा 5 में उल्लिखित निवेश की विवेकपूर्ण सीमाओं के अधीन इक्विटी रखने का विकल्प होगा। (d) ये निदेश, ‘बैंक एक्सपोजर के लिए विवेकपूर्ण मानदंड’ पर जारी मास्टर निदेश के साथ पठित होंगे। 5. बैंकों के निवेश हेतु विवेकपूर्ण विनियमः किसी बैंक द्वारा अनुषंगी कंपनी या वित्तीय सेवा कंपनी में जो अनुषंगी कंपनी के रूप में न हो या गैर वित्तीय सेवा कंपनी में, निवेश निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगाः (a) निवेश की सीमाएं :
a) जमा स्वीकार करने वाली एनबीएफसी में 10 फीसदी से ज्यादा की इक्विटी धारण नहीं करेगा। बशर्ते कि यह आवास वित्त कंपनी के लिए लागू नहीं होता। b) स्थावर संपदा निवेश न्यास/आधारभूत संरचना निवेश न्यास की यूनिट पूंजी में 10 प्रतिशत से अधिक का निवेश नहीं करेगा, बशर्ते कि शेयर, संपरिवर्तनीय बॉण्ड/ डिबेंचर, इक्विटी-उन्नमुख म्यूचुअल फंड और वैकल्पिक निवेश फंड में प्रत्यक्ष निवेश के लिए इसकी निवल मालियत के 20 प्रतिशत की समग्र अनुमत सीमा के अधीन होगा।1 c) कोई बैंक किसी कंपनी, जो गैर वित्तीय सेवाओं के कारोबार में शामिल इसकी अनुषंगी न हो, की चुकता पूंजी का 10 प्रतिशत या बैंक की चुकता पूंजी तथा आरक्षित निधि के 10 प्रतिशत, जो भी कम हो, से अधिक धारण नहीं करेगा। बशर्ते कि निम्न परिस्थितियों में ऐसी निवेशक कंपनी की चुकता शेयर पूंजी के 10 प्रतिशत से अधिक, परन्तु 30 प्रतिशत से कम निवेश की अनुमति दी जाएगीः
d) बैंक के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष नियंत्रण वाली अनुषंगी कंपनियों, सहायक कंपनियों या संयुक्त उद्यमों या अन्य इकाइयों के साथ; और बैंक के नियंत्रण वाली आस्ति प्रबंधन कंपनियों के प्रबंधन वाले म्यूचुअल फंडों में गैर-वित्तीय सेवाओं में संलग्न निवेशित कंपनियों की चुकता पूंजी के 20 प्रतिशत से अधिक धारण नहीं करेगा। तथापि, यह सीमा उपर्युक्त पैरा 5(ए)(v)(ग)(i) और (ii) में उल्लिखित मामलों के संबंध में लागू नहीं है।3 e) श्रेणी III वैकल्पिक निवेश निधि (एआईएफ) में कोई निवेश नहीं करेगा। किसी बैंक की सहायक संस्था के द्वारा श्रेणी III वैकल्पिक निवेश निधि (एआईएफ) में निवेश सेबी द्वारा निर्धारित विनियामक न्यूनतम मानदंड़ तक सीमित रहेगा।4 vi विदेशों में किये गये निवेश सहित सभी अनुषंगियों तथा वित्तीय सेवाओं एवं गैर वित्तीय सेवाओं में कार्यरत अन्य संस्थाओं में किया गया समग्र इक्विटी निवेश बैंक की कुल चुकता शेयर पूंजी और आरक्षित निधि के 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। बशर्ते कि चुकता पूंजी और आरक्षित निधि के 20 प्रतिशत की सीमा के अनुपालन हेतु समग्र निवेश को अभिकलित करने के लिए निम्न निवेशों को शामिल नहीं किया जाएगा।
(b) भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमोदन की आवश्यकताः कोई भी बैंक, रिज़र्व बैंक की अनुमति के बिनाः i. किसी अनुषंगी कंपनी में और वित्तीय सेवा कंपनी में जो कि अनुषंगी नहीं है, में निवेश नहीं करेगा। बशर्ते कि निम्नलिखित स्थितियों में ऐसा पूर्वानुमोदन आवश्यक नहीं होगा:
स्पष्टीकरण: यदि वित्तीय सेवा कंपनियों में निवेश को ‘ट्रेडिंग के लिए धारित’ श्रेणी के अंतर्गत धारित किया जाता है और 90 दिनों से अधिक समय के लिए धारित नहीं किया जाता है, तो भारतीय रिज़र्व बैंक का पूर्वानुमोदन अपेक्षित नहीं रहेगा।8 ii. जैसा कि 5 (क) (v) ग (i) में कहा गया है, ऐसी निवेशित कंपनी की चुकता पूंजी के 10 प्रतिशत से अधिक गैर वित्तीय सेवा कंपनी में निवेश हो। iii. श्रेणी I/ श्रेणी II वैकल्पिक निवेश निधि में चुकता पूंजी/ यूनिट पूंजी के 10 प्रतिशत से अधिक निवेश।9 (c) बैंक आंतरिक पूंजी पर्याप्तता निर्धारण प्रक्रिया (आईसीएएपी) ढांचे के भीतर सीधे तौर पर अथवा अपनी अनुषंगी कंपनियों के द्वारा वैकल्पिक निवेश निधियों में किए गए इक्विटी निवेश के कारण उत्पन्न जोखिम का पता लगाएंगे और अपेक्षित अतिरिक्त पूंजी निर्धारित करेंगे जो पर्यवेक्षी समीक्षा और मूल्यांकन प्रक्रिया के भाग के रूप में पर्यवेक्षी जांच के अधीन होगा। यह बैंकों द्वारा आधारभूत संरचना ऋण निधियों के प्रायोजन पर भी लागू होगा।10 6. आवेदन की प्रक्रियाः यदि बैंक ऐसा निवेश करना चाहता है जिसके लिए उसे रिज़र्व बैंक से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना अपेक्षित है तो इसके लिए उसे अपने प्रस्तावित निवेश में अनुषंगी कंपनी/वित्तीय/ गैर वित्तीय सेवा कंपनी द्वारा किए जाने वाले इक्विटी अंशदान, बोर्ड नोट, बैंक के प्रस्ताव को अनुमोदन प्रदान करने वाला संकल्प, अपने अनुषंगी कंपनियों और अन्य वित्तीय और गैर वित्तीय सेवा कंपनियों में बैंक के मौजूदा इक्विटी अंशदान के विवरण सहित भारतीय रिज़र्व बैंक के बैकिंग विनियमन विभाग, केंद्रीय कार्यालय को आवेदन करना होगा। 7. अनुषंगियों के साथ संबंधः मूल / प्रायोजक बैंक को अपने अनुषंगियों के साथ एक हाथ की दूरी बनाकर रखनी होगी तथा निम्नलिखित पर्यवेक्षी कार्यनीतियां विकसित करनी होंगी। (a) मूल / प्रायोजक बैंक के निदेशक मंडल को आवधिक अंतराल पर अपने अनुषंगियों के कार्यों की समीक्षा करनी होगी। (b) मूल / प्रायोजक बैंक को आवधिक अंतराल पर अपने अनुषंगियों के बही खाते का निरीक्षण / लेखा परीक्षण करना होगा। (c) अनुषंगी कंपनी रिज़र्व बैंक के अनुमोदन के बिना किसी दूसरी अनुषंगी कंपनी का निर्माण नहीं करेगी या किसी नई कंपनी जो कि उसकी अनुषंगी न हो, को प्रवर्तित नहीं करेगी या कोई नया कारोबार शुरू नहीं करेगी। स्पष्टीकरण: ‘नये कारोबार’ का आशय जिस कारोबार को करने के लिए अनुमति / अनुमोदन प्रदान किया गया था, उसी कारोबार को आगे बढ़ाने से नहीं है। (d) अनुषंगी कंपनी किसी अन्य मौजूदा कंपनी में भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमोदन के बिना किसी प्रकार का पोर्टफोलियो निवेश, इस उद्देश्य के साथ नहीं करेगा कि उस कंपनी की नियंत्रक शक्तियां उसे प्राप्त हों। स्पष्टीकरण: यह अनुषंगी कंपनी द्वारा बनाए गए श्रेणी I और II एआईएफ11 में किए जाने वाले निवेश पर लागू नहीं होगा। (e) अनुषंगी कंपनी की बैंक में उनके ग्राहकों द्वारा खोले जाने वाले खातों तक किसी भी प्रकार की ऑन लाइन पहुँच नहीं होगी। बैंक तथा इसकी अनुषंगी कंपनी के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान इस आधार पर होगा कि वे दोनों एक-दूसरे से निश्चित दूरी बनाए रखें। (f) बैंक, रिज़र्व बैंक से बिना अनुमोदन प्राप्त किए, अपनी किसी भी अनुषंगी कंपनी को किसी भी प्रकार का गैर-जमानती अग्रिम प्रदान नहीं करेगा। (g) बैंक तथा इसकी अनुषंगी कंपनी के बीच लेन- देन एक निश्चित दूरी बनाए रखते हुए करना होगा। किसी भी अनुषंगी कंपनी को उसके समान ही जोखिम विशेषताएं रखने वाले प्रतिपक्षकार की तुलना में विशेष सुविधा नहीं दी जाएगी। अध्याय – III 8. बुनियादी संरचना ऋण निधि को प्रायोजित करना बुनियादी संरचना ऋण निधि या तो म्यूच्युल फंड (आईडीएफ- एमएफ) या गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (आईडीएफ- एनबीएफसी) के रूप में गठित की जा सकती है। जो बैंक किसी आईडीएफ को प्रायोजित करना चाहते हैं, उन्हें निम्नलिखित शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगाः
9. उपकरणों की लीजिंग तथा किराया खरीद (हायर पर्चेज) कारोबार (a) अनुषंगी कंपनी के माध्यम से उपकरणों की लीज तथा किराया खरीद कारोबारः जो बैंक उपकरणों की लीजिंग तथा किराया खरीद (हायर पर्चेज) कारोबार के लिए अनुषंगी कंपनी बनाने के इच्छुक हैं, वे अध्याय II की धारा 5 में उल्लिखित शर्तों के अधीन होंगे। (b) विभागीय तौर पर उपकरणों के लीजिंग तथा किराया खरीद (हायर पर्चेज) कारोबारः विभागीय तौर पर उपकरणों की लीजिंग तथा किराया खरीद (हायर पर्चेज) कारोबार निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगाः
10. फैक्टरिंग सेवाएं (a) अनुषंगी कंपनी के माध्यम से फैक्टरिंग कारोबारः फैक्टरिंग कारोबार के लिए अनुषंगी कंपनी बनाने के इच्छुक बैंक अध्याय II की धारा 5 में उल्लिखित शर्तों के अधीन होंगे। (b) विभागीय तौर पर फैक्टरिंग कारोबार : विभागीय तौर पर फैक्टरिंग कारोबार निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगा। i. फैक्टरिंग सेवाएं रीकोर्स के साथ या बिना रीकोर्स के या सीमित रीकोर्स आधार पर उपलब्ध कराई जाएंगी। ii. कर्जदार के ऋण जोखिम से संबंधित बिना रीकोर्स फैक्टरिंग वाले सभी अंडरराइटिंग दायित्व बोर्ड अनुमोदित सीमा के अनुसार होंगे। iii. बैंकों को किसी फैक्टरिंग व्यवस्था में प्रवेश करने या निर्यात फैक्टर के साथ लाइन ऑफ क्रेडिट स्थापित करने से पहले कर्जदारों का संपूर्ण ऋण मूल्यांकन करना होगा। iv. फैक्टरिंग सेवाएं वास्तविक व्यापारिक लेन-देन दर्शाने वाले चालानों के लिए दी जाएंगी। v. फैक्टरिंग को ऋणों एवं अग्रिमों की तरह ही समझा जाएगा एवं तदनुसार ऋणों और अग्रिमों पर यथालागू मौजूदा विवेकपूर्ण मानदंडों के अधीन होगा। vi. दोहरे वित्तपोषण से बचने के लिए, बैंक तथा फैक्टर को समान उधारकर्ताओं के बारे में सूचनाओं को साझा करने के लिए एक तंत्र स्थापित करना होगा। उधारदाता बैंक को उधारकर्ता से फैक्टर किए गए प्राप्यों के बारे में आवधिक प्रमाण पत्र प्राप्त करने होंगे। फैक्टर यह भी सुनिश्चित करेंगे कि उधारकर्ता को स्वीकृत सीमा के बारे में संबंधित बैंक को बताया जाता है। सीईआरएसएआई पर उपलब्ध सूचना पर भी ध्यान दिया जाएगा। स्पष्टीकरण: एक समान उधारकर्ता वह व्यक्ति /संस्था है जिसने किसी बैंक से ऋण सुविधा का लाभ उठाया है तथा वह फैक्टरिंग व्यवस्था के अंतर्गत समनुदेशिती (एसाईनर) भी है। vii. प्रत्यय विषयक सूचना कंपनी (विनियम) अधिनियम, 2005 के तहत जारी दिशानिर्देंश के अधीन जिस पर एक्सपोजर बुक किया गया था, उस व्यक्ति द्वारा बकाया राशि का भुगतान न करने के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा प्राधिकृत ऋण सूचना कंपनियों को ऋण सूचना देनी होगी। viii. फैक्टरिंग सेवाओं के माध्यम से प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के एक्सपोजर को निम्नानुसार माना जाएगाः a. समनुदेशकर्ता (एसाइनर) पर फैक्टरिंग के लिए एक्सपोजर रीकोर्स सहित आधार पर माना जाएगा। b. कर्जदार पर फैक्टरिंग के लिए एक्सपोजर रीकोर्स रहित आधार पर माना जाएगा। बशर्ते कि अंतर्रराष्ट्रीय फैक्टरिंग के मामले में एक्सपोजर आयात फैक्टर पर होगा। c. सीमित रीकोर्स आधार पर फैक्टरिंग में करार की शर्तों के अनुसार, एक्सपोजर ‘समनुदेशकर्ता’ पर या ‘कर्जदार’ पर या ‘आयात फैक्टर’ पर माना जाएगा। 11. प्राथमिक डीलरशिप कारोबार a) अनुषंगी कंपनी के माध्यम से प्राथमिक डीलरशिप कारोबारः प्राथमिक डीलरशिप कारोबार करने के लिए इच्छुक बैंक से अपेक्षित है कि वह एनबीएफसी के रूप में पंजीकृत होगा। इसके लिए उसे सीधे भारतीय रिज़र्व बैंक के गैर बैंकिंग विनियमन विभाग से संपर्क करना होगा। b) विभागीय तौर पर प्राथमिक डीलरशिप कारोबारः विभागीय तौर पर प्राथमिक डीलरशिप कारोबार आंतरिक ऋण प्रबंध विभाग (आईडीएमडी) द्वारा प्राधिकृत करने पर ही प्रारंभ किया जाएगा। इसके लिए बैंक को आईडीएमडी से सीधे संपर्क करना होगा। 12. हामीदारी (अंडरराइटिंग) गतिविधियां जो बैंक शेयर, डिबेंचर, बॉण्ड्स के निर्गम की हामीदारी में शामिल होना चाहता है, वह विभागीय तौर पर या किसी मर्चेंट बैंकिंग अनुषंगी कंपनी के माध्यम से ऐसा कर सकता है। विभागीय तौर पर और अनुषंगी कंपनी के माध्यम से आरंभ किया गया हामीदारी कारोबार क्रमशः अध्याय II के धारा 4 (ख) तथा धारा 5 में विनिर्दिष्ट शर्तों के अधीन होगा। 13. म्युच्युल फंड कारोबार
14. बीमा कारोबारः a) अनुषंगी कंपनी / संयुक्त उद्यम के माध्यम से जोखिम सहभागिता सहित बीमा कारोबारः कोई भी बैंक, इस उद्देश्य के लिए बनाई गई अनुषंगी कंपनी /संयुक्त उद्यम के माध्यम को छोड़ कर जोखिम सहभागिता सहित बीमा कारोबार नहीं करेगा और बशर्ते कि नीचे दिए गए पात्रता मानदंड (पिछले वर्ष के 31 मार्च तक) को पूरा किया जाए :
b) अनुषंगी कंपनी /संयुक्त उद्यम द्वारा बीमा ब्रोकिंग/कॉरपोरेट एजेंसी आरंभ करनाः कोई भी बैंक जब तक निम्नलिखित शर्तों को पूरा नहीं करता है (पिछले वर्ष के 31 मार्च तक) तब तक वह बीमा ब्रोकिंग और कॉरपोरेट एजेंसी आरंभ करने के लिए अनुषंगी कंपनी/संयुक्त उद्यम कंपनी स्थापित नहीं करेगाः
c) विभागीय तौर पर बीमा ब्रोकिंग की सेवाएं: बीमा एजेंसी कारोबार पर धारा 18 (घ)14 में उल्लिखित शर्तों के अधीन, बैंक स्वेच्छा से, विभागीय तौर पर बीमा ब्रोकर की तरह कार्य कर सकता है। 15. बैंकों के द्वारा पेंशन निधि प्रबंधन कोई भी बैंक इस उद्देश्य के लिए बनाई गई अनुषंगी कंपनी के माध्यम को छोड़ कर किसी और अन्य माध्यम से पेंशन निधि प्रबंधन कारोबार आरंभ नहीं करेगा, बशर्ते कि यह नीचे दिये गये पात्रता मानदंड (पिछले वर्ष के 31 मार्च तक) को पूरा करने के अधीन होगा।
16. निवेश सलाहकार सेवाएं (आईएएस) कोई भी बैंक इस उद्देश्य के लिए बनाई गई अनुषंगी कंपनी के माध्यम को छोड़ कर किसी और अन्य माध्यम से पेंशन निवेश सलाहकारी सेवाएं (आईएएस) आरंभ नहीं करेगा, बशर्ते कि यह निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता हो।
वर्तमान में आईएएस प्रस्तावित करने वाले बैंकों को अधिकतम 21 अप्रैल 2019 तक अपने परिचालनों को इन निदेशों के अनुसार पुनर्व्यवस्थित करना होगा। 17. पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाएं a) कोई भी बैंक आरबीआई के अनुमोदन के बिना किसी प्रकार की नयी पोर्टफोलियो प्रबंध सेवा या समरूप सेवा प्रारंभ नहीं करेगा या इस उद्देश्य के लिए अनुषंगी कंपनी की स्थापना नहीं करेगा। b) जो बैंक इन निदेशों के जारी होने की तारीख को पहले से ही विभागीय तौर पर पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं में शामिल हैं, उन्हें निम्नलिखित शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगाः
c) उपर्युक्त शर्तें यथोचित परिवर्तनों के साथ बैंकों की अनुषंगी कंपनियों के लिए लागू होगीं, जब तक कि वे उनके परिचालन को अभिशासित करने वाले आरबीआई या सेबी के विनिर्दिष्ट विनियमों से असंगत नही हों। 18. बैंकों द्वारा एजेंसी कारोबारः a) एजेंसी कारोबार केवल उन्हीं उत्पाद और सेवाओं के लिए प्रारंभ किया जाएगा जिनके लिए बैंकों को बैंककारी विनियम अधिनियम,1949 के तहत अनुमति प्रदान की गई। b) सेवाएं, शुल्क आधारित होंगी और किसी भी प्रकार की जोखिम सहभागिता के बिना प्रदान की जाएंगी। c) म्युच्युअल फंड कंपनियों के द्वारा एजेंसी कारोबार का आरंभ निम्नलिखित अतिरिक्त शर्तों के अधीन किया जाएगाः
d) बैंकों द्वारा विभागीय तौर पर आरंभ किए जाने वाले बीमा कंपनियों का कॉरपोरेट एजेंसी कारोबार निम्नलिखित अतिरिक्त शर्तों के अधीन होगाः i. ग्राहक औचित्य के मुद्दों, उपयुक्तता तथा शिकायत निवारण, बीमा वितरण के मॉडल को शामिल करते हुए एक बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति होगी। ii. बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) विनियमन, 2013 (समय-समय पर संशोधित) के अनुसार बीमा ब्रोकर द्वारा रखे जाने वाले जमा, स्वयं को छोड़ कर किसी अन्य अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक में रखना होगा। iii. बैंक को ग्राहक औचित्य और उपयुक्तता को निम्नानुसार सुनिश्चित करना होगाः
iv. यह सुनिश्चित करना होगा कि स्टाफ के लिए कार्य-निष्पादन मूल्यांकन तथा प्रोत्साहन संरचना बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 10 (1) (ii) या आईआरडीए के द्वारा कमीशन/ ब्रोकरेज/ प्रोत्साहन राशि के भुगतान के संबंध में जारी दिशानिर्देश का उल्लंघन नहीं करता हो। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बीमा कंपनी द्वारा बीमा ब्रोकिंग / कॉरपोरेट एजेंसी सेवाओं में कार्यरत स्टाफ को किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन (नकदी या गैर- नकदी) प्रदान नहीं किया जाता। v. बैंक किसी खास बीमा कंपनी के उत्पाद का चयन करने हेतु ग्राहक पर दबाव नहीं डालेगा या इस तरह के उत्पाद की बिक्री बैंकिंग उत्पाद के साथ जोड़ कर करने जैसी किसी भी प्रतिबंधात्मक पद्धति को नहीं अपनाएगा। बैंक द्वारा वितरित की जाने वाली समस्त प्रचार सामग्री में इस बात का प्रमुखता से उल्लेख किया जाएगा कि बैंक के ग्राहक के लिए किसी भी बीमा उत्पादों की खरीद पूरी तरह से स्वैच्छिक है और इसे बैंक से किसी भी अन्य सुविधा को प्राप्त करने से जोड़ा नहीं गया है। vi. प्रदान की जा रही सेवाओं से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित ग्राहक मुआवजा नीति के साथ-साथ एक सुदृढ आंतरिक शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करनी होगी। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जिन बीमा कंपनियों के उत्पाद बेचे जा रहे हैं उनके यहां सुदृढ़ ग्राहक शिकायत निवारण प्रणाली लागू की गई है। बैंक शिकायतों के निवारण में सहयोग करेगा। 19. रेफरल सेवाएं रेफरल सेवाएं देने वाले बैंक, ऐसा केवल बीमा को छोड़ कर वित्तीय उत्पाद के लिए गैर-जोखिम सहभागिता के आधार पर करेंगें। 20. सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री जो बैंक सरकारी प्रतिभूतियों की खुदरा बिक्री का व्यापार करना चाहते हैं, वे भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा संबंधित विषय पर जारी निदेश के अधीन केवल गैर- बैंक ग्राहकों के साथ ऐसा कर सकते हैं। 21. सेबी द्वारा अनुमोदित स्टॉक एक्सचेंज की सदस्यता a) कोई भी एडी श्रेणी I अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज के करेंसी डेरिवेटिव सेगमेंट के ट्रेडिंग/क्लीयरिंग सदस्य नहीं बनेंगे जब तक कि –
बशर्ते कि उपर्युक्त शर्तों को पूरा नहीं करने पर बैंक एक ग्राहक के रूप में करेंसी फ्यूचर मार्केट में भाग ले सकते हैं। जो बैंक ट्रेडिंग/ क्लीयरिंग सदस्य हैं, वे अपनी तथा अपने ग्राहकों की स्थिति एक-दूसरे से अलग रखेगें। b) कोई भी बैंक, जो कॉरपोरेट बॉण्ड मार्केट में मालिकाना लेन-देन करने के उद्देश्य से सेबी अनुमोदित स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य बनना चाहते हैं, उन्हें सेबी तथा संबंधित स्टॉक एक्सचेंज के द्वारा निर्धारित विनियामक शर्तों को अनुपालित करना होगा तथा स्टॉक एक्सचेंज की सदस्यता के लिए निर्धारित मानदंड को पूरा करना होगा। c) कोई भी बैंक सेबी से मान्यता प्राप्त एक्सचेंज के कमोडिटी डेरिवेटिव खंड का पेशेवर समाशोधन सदस्य तब तक नहीं बनेगा जब तक वह विवेकपूर्ण मानदंड़ों (पैरा 21(क) (i) से (iv)) को पूरा नहीं करता और वह निम्नलिखित शर्तों के अधीन ऐसा करेगा:17
22. कमोडिटी डेरिवेटिव खंड के लिए ब्रोकिंग सेवाएं18 (a) कोई भी बैंक इस प्रयोजन के लिए स्थापित किसी अलग सहायक संस्था अथवा इसकी मौजूदा सहायक संस्थाओं में से एक के माध्यम को छोड़कर सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज के कमोडिटी डेरिवेटिव खंड के लिए ब्रोकिंग सेवाओं का प्रस्ताव नहीं देगा और ऐसा निम्नलिखित शर्तों के अधीन ही कर सकेगा:
अध्याय – IV 23. छूट19 भारतीय रिज़र्व बैंक, यदि आवश्यक समझे तो किसी बैंक को, या किसी श्रेणी के बैंकों को, किसी समस्या को दूर करने के लिए या किसी अन्य अति आवश्यक कारण के लिए या तो सामान्य तौर पर या किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए ऐसी शर्तों, जिसे भारतीय रिज़र्व लगा सकता है, इन निदेशों के अधीन सभी या किसी प्रावधान के अनुपालन के लिए समयावधि बढ़ा सकता है या इससे छूट प्रदान कर सकता है। 24. व्याख्याएं20 इन निदेशों को प्रभावी बनाने के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक, यदि आवश्यक समझे तो यहां दी गई किसी सामग्री के संबंध में स्पष्टीकरण जारी कर सकता है तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दिए गए इन निदेशों के किसी प्रावधान की व्याख्या सभी संबंधित पक्षों पर बाध्यकारी एवं अंतिम होगी। 25. निरसन21 a) इन निदेशों के जारी होने के साथ ही, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी निम्नलिखित परिपत्रों में निहित अनुदेशों/दिशानिर्देंशों को निरसित किया जाता है।
b) उपर्युक्त परिपत्रों के तहत दिए गए सभी अनुमोदन / पावती इन निदेशों के तहत दिया गया माना जाएगा । c) इन निदेशों के प्रभाव में आने से पूर्व सभी निरसित परिपत्र प्रासंगिक अवधि के दौरान प्रभावशील माना जाएंगे। * वाक्य के अंत में आनेवाला वाक्यांश "भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा भारत में परिचालन करने हेतु लाइसेंस प्रदान किया गया है" के स्थान पर "भारत में कार्यरत" का प्रयोग किया जाएगा। 1 जोड़ा गया। कृपया दिनांक 18 अप्रैल 2017 का परिपत्र सं.बैंविवि.सं.एफएसडी.बीसी.62/24.01.040/2016-17 देखें। मौजूदा पैरा (ख) को संशोधित किया गया तथा इसे मास्टर निदेश में पैरा 5(ख)(iii) के रूप में पुन: जोड़ा गया। 2 संशोधित। संशोधन से पहले यह “ऋण की पुनर्रचना/कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना (सीडीआर)/ कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना (एसडीआर)” के रूप में पठित था। 5 संशोधित। संशोधन से पहले इसे “ऋण की पुनर्रचना/ कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना (सीडीआर)/कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना (एसडीआर) पढ़ा जाता था, जैसाकि ऊपर (क)(v)(ग)(ii)में उल्लिखित है।” 6 संशोधित। संशोधन से पहले इसे “तुरंत पहले वाले वित्त वर्ष के अंत में 10 प्रतिशत या उससे अधिक सीआरएआर” पढ़ा जाता था। 9 संशोधित और पुन: जोड़ा गया। संशोधन से पहले इसे चुकता पूंजी/उद्यम पूंजीनिधि (वीसीएफ)/श्रेणीI वैकल्पिक निवेश निधि (एआईएफआई) के 10 प्रतिशत से अधिक धारिता” पढ़ा जाता था। 11 संशोधित। संशोधन से पहले यह “वीसीएफ/एआईएफ-I” के रूप में पठित था। 12 संशोधित। संशोधन से पूर्व यह “निवेश के बाद इसका सीआरएआर 10 प्रतिशत से कम नहीं हो” के रूप में पठित था। 13 संशोधित। संशोधन से पूर्व यह “13 (क) ii, iii, iv और v” के रूप में पठित था। 14 संशोधित। संशोधन से पूर्व यह “धारा 17 (घ)” के रूप में पठित था। 15 संशोधित। संशोधन से पूर्व यह “निवेश के बाद इसका सीआरएआर 10 प्रतिशत से कम नहीं हो” के रूप में पठित था। 16 संशोधित। संशोधन से पूर्व यह “उनका सीआरएआर 10 प्रतिशत से कम नहीं हो” के रूप में पठित था। 18 जोड़ा गया। नए पैरा को जोड़ने से पहले इसे ‘22. छूट” पढ़ा गया। 19 पुन: क्रमांक दिया गया। पुन: क्रमांक दिए जाने से पहले यह “22 छूट” के रूप में पठित था। 20 पुन: क्रमांक दिया गया। पुन: क्रमांक दिए जाने से पहले यह “23 व्याख्याएं” के रूप में पठित था। 21 पुन: क्रमांक दिया गया। पुन: क्रमांक दिए जाने से पहले यह “24 निरसन” के रूप में पठित था। |