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मास्टर परिपत्र – शहरी सहकारी बैंकों के लिए आवास वित्त

आरबीआई/2023-24/15
विवि.सीआरई.आरईसी.सं.9/07.10.002/2023-24

11 अप्रैल 2023

सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक

महोदय / महोदया

मास्टर परिपत्र – शहरी सहकारी बैंकों के लिए आवास वित्त

कृपया उपर्युक्त विषय पर दिनांक 23 जून 2022 का हमारा मास्टर परिपत्र विवि.सीआरई.आरईसी.सं.49/09.22.010/2022-23 देखें (आरबीआई की वेबसाइट /hi/web/rbi/home पर उपलब्ध)। संलग्न किए गए मास्टर परिपत्र में इस विषय पर अब तक जारी सभी अनुदेशों / दिशानिर्देशों को समेकित और अद्यतन किया गया है।

भवदीय

(मनोरंजन मिश्र)
मुख्य महाप्रबंधक

संलग्न : यथोक्त


मास्टर परिपत्र
शहरी सहकारी बैंकों के लिए आवास वित्त

विषय-वस्तु
1 सामान्य
2 उधारकर्ताओं की पात्र श्रेणियां
3 आवास वित्त के लिए पात्रता
4 आवास ऋण की शर्तें
4.1 अधिकतम ऋण राशि और मार्जिन
4.2 क. ब्याज
  ख. फोरक्लोज़र शुल्क / पूर्व भुगतान जुर्माना
4.3 दंडात्मक ब्याज लगाना
4.4 जमानत
4.5 ऋण की अवधि
4.6 प्रगामी किस्तें
4.7 आवास वित्त के लिए संपूर्ण सीमा
5 अतिरिक्त / अनुपूरक वित्त
6 हाउसिंग बोर्डों को उधार
7 भवन- निर्माताओं / ठेकेदारों को अग्रिम
8 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत आवास ऋण
9 सावधानियां
10 राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता
अनुबंध-I
अनुबंध-II
परिशिष्ट

1. सामान्य

1.1 आवास वित्त प्रदान करने में प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों (यूसीबी) की भूमिका की समय-समय पर समीक्षा की गई है। अपने विस्तृत नेटवर्क के माध्यम से वित्तीय प्रणाली में इन बैंकों का एक अहम स्थान है तथा ये गृहनिर्माण क्षेत्र को ऋण प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसके अलावा, विशिष्ट श्रेणियों को निर्धारित सीमा तक प्रदान किये गये वित्त को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को दिए गए ऋण माना जाता है, इसीलिए बैंकिंग प्रणाली के सामने उपस्थित सामाजिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने वाले शहरी सहकारी बैंकों की तीव्र आवश्यकता महसूस की गई।

1.2 शहरी सहकारी बैंक आवास योजनाओं को, विशेषत: कमजोर वर्ग के समुदाय को, वित्त-प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें, इसलिए इन बैंकों को नीचे दिए गए दिशानिर्देशों के अधीन अपने स्रोतों से आवास योजनाओं को विशिष्ट निर्धारित सीमा तक आवास ऋण प्रदान करने की अनुमति दी गयी है।

1.3 जिन बड़े बैंकों के पास अतिरिक्त संसाधन हैं, उन्हें आवास के लिए बड़ी मात्रा में ऋण दे सकते हैं क्योंकि इससे उनकी अतिरिक्त निधियों को निवेश करने के लाभकारी अवसर प्राप्त होंगे।

1.4 जहाँ, हाउसिंग सोसायटियों को वित्त प्रदान करने के लिए बैंकों को अब भी पंजीयक की विशेष अनुमति लेना आवश्यक है, यह सुझाव दिया जाता है कि ऐसे बैंकों को इस प्रयोजन के लिए निर्धारित की गई शर्तों के अधीन हाउसिंग सोसायटियों को वित्त प्रदान करने के लिए सामान्य अनुमति प्राप्त कर लेनी चाहिए।

2. उधारकर्ताओं की पात्र श्रेणियां

शहरी सहकारी बैंक निम्नलिखित श्रेणियों के उधारकर्ताओं को ऋण दे सकते हैं:

(क) व्यक्ति और सहकारी/ग्रुप हाउसिंग सोसायटियां।

(ख) आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग (ईडबल्यूएस), निम्न आय ग्रुप (एलआईजी) और मध्यस्तरीय आय ग्रुप (एमआईजी) के लिए आवास परियोजनाएं/योजनाएं चलानेवाले हाउसिंग बोर्ड।

(ग) मकानों /फ्लैटों के मालिकों को मकानों/फ्लैटों के बड़े मरम्मत कार्य सहित उनका विस्तार और दर्जा-उन्नयन के लिए।

3. आवास वित्त के लिए पात्रता

उक्त श्रेणी के उधारकर्ता निम्न प्रकार की आवास योजनाओं के लिए वित्तपोषण प्राप्त करने के पात्र होंगे:

(क) व्यक्तियों द्वारा मकान / फ्लैट बनाने / खरीदने के लिए

(ख) व्यक्तियों द्वारा मकानों / फ्लैटों में मरम्मत, फेरबदल और परिवर्धन करने के लिए

(ग) अनुसूचित जातियों / जनजातियों के लिए आवास और होटल निर्माण योजनाएं

(घ) झुग्गी-झोपड़ियां हटाओ योजनाओं के अंतर्गत - सरकारी गारंटी पर झुग्गी-झोपड़ीवासियों को सीधे, या इस प्रयोजन के लिए स्थापित सांविधिक बोर्ड़ों के मार्फत अप्रत्यक्ष रूप से।

(च) शैक्षणिक, स्वास्थ्य, सामाजिक, सांस्कृतिक या अन्य संस्थाएं /केंद्र जो हाउसिंग परियोजना का एक हिस्सा हैं और जिन्हें निवासियों के विकास के लिए या शहरीकरण के लिए आवश्यक समझा गया हो।

(छ) शॉपिंग सेंटरों, मार्केटों और ऐसे ही अन्य केंद्र जो हाउसिंग कालोनियों के निवासियों की दैनिक जरूरतों को पूरा करते हों और जो हाउसिंग परियोजनाओं का एक हिस्सा हों।

4. आवास ऋण की शर्तें

शहरी सहकारी बैंकों द्वारा पात्र हाउसिंग योजनाओं के लिए उधारकर्ताओं की पात्र श्रेणियों को प्रदान किया गया वित्त निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगा:

4.1 अधिकतम ऋण राशि और मार्जिन

(i) शहरी सहकारी बैंक अपने वाणिज्यिक निर्णयों और अन्य विवेकशील व्यावसायिक पहलुओं पर विचार करते हुए, अपने निदेशक मंडल की अनुमति से पात्र उधारकर्ताओं की पहचान करने, मार्जिन तय करने तथा उनकी पुनर्भुगतान क्षमता को ध्यान में रखते हुए आवास ऋण प्रदान करने के लिए स्वतंत्र हैं।

(ii) मौजूदा विवेकपूर्ण एक्सपोजर सीमाओं के अधीन, टियर-1 शहरी सहकारी बैंकों1 को प्रति व्यक्तिगत उधारकर्ता अधिकतम रु.60 लाख तक व्यक्तिगत आवास ऋण देने की अनुमति है और टियर-2 से 4 में वर्गीकृत शहरी सहकारी बैंक प्रति व्यक्तिगत उधारकर्ता अधिकतम रु.140.00 लाख तक व्यक्तिगत आवास ऋण प्रदान कर सकते हैं।

(iii) शहरी सहकारी बैंकों के लिए एकल उधारकर्ता/पार्टी और संबद्ध उधारकर्ताओं/पार्टियों के समूह के लिए विवेकपूर्ण जोखिम सीमा उनकी टियर-I पूंजी का क्रमशः 15 प्रतिशत और 25 प्रतिशत होगी।

4.2 क. ब्याज

बैंक अपने बोर्डों के अनुमोदन से, ऋण की मात्रा, जोखिम की मात्रा और अन्य संबंधित पहलुओं के मद्देनजर ब्याज दर निश्चित करें।

ख. फोरक्लोज़र शुल्क / पूर्व भुगतान जुर्माना

26 जून 2012 से यह निर्णय लिया गया है कि शहरी सहकारी बैंकों को फ्लोटिंग ब्याज दर के आधार पर दिए गए आवास ऋण में फोरक्लोज़र शुल्क/पूर्व भुगतान दंड लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

4.3 दंडात्मक ब्याज लगाना

बैंक अपने बोर्डों के अनुमोदन से, पुनर्भुगतान करने में चूक, वित्तीय विवरण प्रस्तुत न करने आदि जैसे कारणों की वजह से लगाए जानेवाले दंडात्मक ब्याज की दरें तय करने के लिए पारदर्शी नीति बनाएं। यह नीति पारदर्शिता के सुस्वीकृत सिद्धांतों, सुस्पष्टता, ऋण की चुकौती के लिए प्रोत्साहन और ग्राहकों की वास्तविक कठिनाइयों को ध्यान मे रखकर बनाई जानी चाहिए।

4.4 जमानत

(i) शहरी सहकारी बैंक निम्नलिखित रूप में आवास ऋण की जमानत प्राप्त कर सकते हैं

(क) संपत्ति को दृष्टिबंधक रखकर, या

(ख) जहाँ उपलब्ध हो, सरकारी गारंटी लेकर, या

(ग) दोनों द्वारा

(ii) जहां यह संभव न हो, वहाँ बैंक जीवन बीमा पॉलिसियों, सरकारी वचनपत्रों, शेयरों / डिबेंचरों, स्वर्णाभूषणों और ऐसी अन्य प्रतिभूतियों जिन्हें बैंक उचित समझें, के पर्याप्त मूल्यों के रूप में जमानत स्वीकार कर सकते हैं।

4.5 ऋण की अवधि

(i) आवास ऋण, अधिस्थगन अवधि या चुकौती अवधि में छूट सहित 20 वर्ष की अवधि में चुकाया जाए।

(ii) अधिस्थगन अवधि या चुकौती अवधि में छूट

(क) लाभार्थी के विकल्पानुसार, या

(ख) निर्माण कार्य पूरा होने तक या ऋण की पहली किस्त वितरित करने की तारीख से 18 माह, इनमें से जो भी पहले हो, स्वीकृत की जा सकती है।

4.6 प्रगामी किस्तें

(i) किस्तें उधारकर्ता की चुकौती क्षमता को ध्यान में रखकर वास्तविक आधार पर तय की जानी चाहिए।

(ii) आवास वित्त को वहन करने योग्य बनाने के लिए, यदि आनेवाले वर्षों में उधारकर्ता की आय में यथोचित वृद्धि होने के आसार हों तो, बैंक प्रगामी आधार पर किस्तें तय कर सकते हैं। प्रगामी आधार का मतलब है आरंभ के वर्षों में चुकौती की न्यूनतम किस्तें तय करना और आगामी वर्षों में आय की प्रत्याशित वृद्धि से तालमेल रखते हुए आगामी वर्षों की किस्तों में वृध्दि करना।

4.7 आवास वित्त के लिए संपूर्ण सीमा

4.7.1 आवास, अचल संपत्ति और वाणिज्यिक स्थावर संपदा ऋण के प्रति शहरी सहकारी बैंकों का एक्सपोजर उनकी समग्र आस्तियों के 10 प्रतिशत तक सीमित होगा। समग्र आस्तियों के 10 प्रतिशत की उपरोक्त सीमा को, समय-समय पर यथा-संशोधित दिनांक 04 सितंबर 2020 के मास्टर निदेश विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.5/04.09.01/2020-21 में उल्लिखित प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र वर्गीकरण की पात्रता सीमाओं के अनुसार व्यक्तियों को आवास ऋण प्रदान करने हेतु समग्र आस्तियों की अतिरिक्त 5 प्रतिशत सीमा तक बढ़ाया जा सकता है।

4.7.2 समग्र आस्तियों की गणना पिछले वर्ष की 31 मार्च के लेखापरीक्षीत तुलन पत्र के आधार पर की जाए। समग्र आस्तियों की गणना करने के लिए, हानि, अमूर्त आस्तियां, प्राप्य बिल जैसी मदें आदि शामिल न करें।

4.7.3 एक्सपोजर में निधि और गैर निधि आधारित सुविधाएं शामिल होनी चाहिए।

4.7.4 शहरी सहकारी बैंकों द्वारा उन ठेकेदारों को प्रदान की गई निर्माण सामग्री के दृष्टिबंधक पर दिए गए कार्यशील पूंजी ऋण, जो इस परिपत्र के पैरा 7 में प्रदान किए गए अनुसार अग्रिम भुगतान प्राप्त किए बिना अपने दम पर तुलनात्मक रूप से लघु निर्माण कार्य करते हैं, उन्हें निर्धारित सीमा से छूट दी गई है।

4.7.5 उपर्युक्त पैराग्राफ 2 में उल्लिखित पात्र श्रेणी के उधारकर्ताओं को दिया गया वित्त केवल आवास वित्त के रूप में माने जाने के लिए पात्र होगा। जबकि ऋण का उद्देश्य यह निर्धारित करेगा कि क्या अचल संपत्ति की जमानत के प्रति दिए गए ऋणों को अचल संपत्ति ऋण के रूप में वर्गीकृत करने की आवश्यकता है, पुनर्भुगतान का स्रोत यह निर्धारित करेगा कि एक्सपोजर वाणिज्यिक अचल संपत्ति के प्रति है या नहीं। ऐसे ऋणों को रियल एस्टेट/वाणिज्यिक रियल एस्टेट (वाणिज्यिक स्थावर संपदा) के रूप में वर्गीकृत करने के लिए शहरी सहकारी बैंकों को अनुबंध 1 में दिए गए निर्देशों का पालन करना चाहिए। चूंकि वाणिज्यिक रियल एस्टेट (सीआरई) क्षेत्र के तहत आवासीय आवास परियोजनाओं के लिए ऋण समग्र रूप से लिए गए सीआरई क्षेत्र की तुलना में कम जोखिम और अस्थिरता प्रदर्शित करते हैं, सीआरई सेक्टर से एक अलग उप-क्षेत्र जिसे 'वाणिज्यिक रियल एस्टेट-आवासीय आवास' (सीआरई-आरएच) कहा जाता है, बनाया गया है। सीआरई-आरएच में सीआरई सेगमेंट के तहत आवासीय आवास परियोजनाओं (कैप्टिव खपत को छोड़कर) के लिए बिल्डरों/डेवलपर्स को दिए गए ऋण शामिल होंगे। ऐसी परियोजनाओं में आमतौर पर गैर-आवासीय वाणिज्यिक रियल एस्टेट शामिल नहीं होनी चाहिए। हालांकि, कुछ वाणिज्यिक स्थान (जैसे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, स्कूल, आदि) वाली एकीकृत आवास परियोजनाओं को भी सीआरई-आरएच के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है, बशर्ते कि आवासीय आवास परियोजना में वाणिज्यिक क्षेत्र कुल फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) कुल परियोजना के 10% से अधिक न हो। यदि मुख्य रूप से आवासीय आवास परिसर में वाणिज्यिक क्षेत्र का एफएसआई 10% की सीमा से अधिक है, तो परियोजना ऋण को सीआरई के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए न कि सीआरई-आरएच के रूप में।

4.7.6 शहरी सहकारी बैंकों को हायर फिनांसिंग एजंसी से प्राप्त निधि तथा राष्ट्रीय आवास बैंक से प्राप्त पुनर्वित्त से भी आवास, अचल संपत्ति, वाणिज्यिक रियल एस्टेट को ऋण प्रदान करने के लिए निर्धारित सीमा से अधिक ऋण देने की अनुमति नहीं है।

5. अतिरिक्त /अनुपूरक वित्त

5.1 शहरी सहकारी बैंक उधारकर्ता की चुकौती क्षमता को देखते हुए पहले से वित्तपोषित मकानों / फ्लैंटों में फेरबदल करने, परिवर्धन करने, मरम्मत करने के लिए अतिरिक्त वित्त प्रदान कर सकते हैं।

5.2 उन व्यक्तियों के मामले में जिन्होंने मकान बनाने/लेने के लिए अन्य स्रोतों से निधियां जुटाई हैं, और अनुपूरक वित्तीय सहायता लेना चाहते हैं, वहाँ बैंक अन्य वित्तपोषकों के पक्ष में बंधक रखी संपत्ति पर पैरीपैसू या दूसरा बंधक प्रभार प्राप्त करने के बाद और/या ऐसे उधारकर्ताओं की सकल चुकौती क्षमता का मूल्यांकन करने के बाद किसी जमानत पर जिसे वे उचित समझें ऋण प्रदान कर सकते हैं।

5.3 यथोचित जमानत प्राप्त करने के बाद मरम्मत, परिवर्धन, फेरबदल करने आदि के लिए मकान/फ्लैट के मालिक को, शहरी सहकारी बैंक इस बात पर विचार न करते हुए कि मकान/फ्लैट मालिक के कब्जे में है या किराए पर, महानगरीय केंद्रों में अधिकतम रु.10 लाख तक और अन्य केंद्रों में मरम्मत/परिवर्धन/परिवर्तन के लिए रु.6 लाख रुपये तक के जरूरत आधारित ऋण दे सकते हैं। वे मरम्मत, परिवर्धन की मात्रा, उसमें लगने वाली, सामग्री, मजदूरी और अन्य प्रभारों को ध्यान में रखते हुए मरम्मत, परिवर्धन आदि की कुल लागत के बारे में और यदि आवश्यक हो तो, उस बारे में योग्य इंजिनीयर/आर्किटेक्ट से प्रमाणपत्र प्राप्त करके स्वत:आश्वस्त हो लें।

5.4 अतिरिक्त /अनुपूरक वित्त के संबंध में मार्जिन, ब्याज दर, चुकौती अवधि आदि की शर्तें वही होंगी जो मकान बनाने / लेने के लिए दिए जाने वाले ऋणों के लिए होती हैं।

6. हाउसिंग बोर्डों को उधार

6.1 शहरी सहकारी बैंक अपने राज्य के अंदर हाउसिंग बोर्डों को ऋण दे सकते हैं। ऐसे बोर्डों को दिए जाने वाले ऋण पर लगाई जानेवाली ब्याज दर बैंक अपने विवेकानुसार तय कर सकते हैं।

6.2 हाउसिंग बोर्ड को ऐसे ऋण प्रदान करते समय बैंक केवल लाभार्थियों से वसूली के मामले में हाउसिंग बोर्डों के पिछले कार्यनिष्पादन को ही न देखें बल्कि उन्हें यह निर्धारण भी लागाना चहिए कि बोर्ड लाभार्थियों से तत्पर और नियमित रूप से वसूली सुनिश्चित करेगा।

7. भवन-निर्माताओं / ठेकेदारों को अग्रिम

7.1 भवन-निर्माताओं / ठेकेदारों को सामान्यत: बड़ी मात्रा में निधियों की जरूरत होती हैं। वे भावी खरीददारों से या उन व्यक्तियों से जिनकी ओर से निर्माण कार्य किया जाना है, अग्रिम भुगतान प्राप्त करते हैं। इसलिए उन्हें आम तौर पर बैंक वित्त की आवश्यकता नहीं होती है। प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा उन्हें दी गई किसी प्रकार की वित्तीय सहायता दोहरे वित्तपोषण का कारण बन सकती है। इसलिए, बैंकों को आम तौर पर इस श्रेणी के उधारकर्ताओं को ऋण और अग्रिम मंज़ूर नहीं करना चाहिए।

7.2 तथापि, जहां ठेकेदार स्वयं अपने स्रोतों से (जब उन्होंने उस प्रयोजन के लिए अग्रिम भुगतान प्राप्त न किया हो) काफी छोटी मात्रा में भवन निर्माण कर रहें हों, वहां बैंक निर्माण-सामग्री को बंधक रख कर उन्हें वित्तीय सहायता दे सकते हैं, बशर्ते ऐसे ऋण व अग्रिम बैंक की उप-विधियों और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी अनुदेशों / निदेशों के अनुरूप हों।

7.3 ऐसे प्रत्येक मामले में बैंकों को संबंधित ऋण आवेदनों की उचित संवीक्षा करनी चाहिए और स्वयं, अन्य बातों के साथ-साथ, ऋण लेने के उद्देश्य की वास्तविकता, अपेक्षित वित्तीय सहायता की मात्रा, उधारकर्ता की ऋण चुकाने की क्षमता, उसकी चुकौती क्षमता आदि से आश्वस्त हो लेना चाहिए और आवधिक स्टॉक विवरण मंगाना, आवधिक निरीक्षण करना, आहरण शक्ति को पूर्णत: धारित स्टॉक के आधार पर निश्चित करना, कम से कम 40 से 50 प्रतिशत मार्जिन बनाए रखना आदि जैसे नेमी सुरक्षा उपायों का भी पालन करना चाहिए। वे यह भी सुनिश्चित करें कि निर्माण कार्य में इस्तेमाल की गई सामग्री को आहरण शक्ति तय करने के प्रयोजन के लिए स्टॉक विवरण में शामिल नहीं किया गया है।

7.4 भूमि का मूल्यांकन : यह पाया गया है कि भवन निर्माताओं/ठेकेदारों को वित्तपोषित करते समय कतिपय बैंक संवीक्षा के प्रयोजन से भूमि का मूल्य निर्धारण भूमि पर निर्माण के बाद उसमें से निर्माण पर हुए खर्च को घटाकर संपत्ति के घटे हुए मूल्य के आधार पर कर रहे हैं। यह प्रक्रिया स्थापित मानदंडों के विरुद्ध है। इस संबंध में यह स्पष्ट किया जाता है कि शहरी सहकारी बैंकों द्वारा भवन निर्माताओं/ठेकेदारों को किसी आवास परियोजना के हिस्से के रूप में भी भूमि के अधिग्रहण के लिए निधि-आधारित/ग़ैर निधि-आधारित सुविधाएं मुहैया नहीं की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, जहाँ भूमि को संपार्श्विक जमानत के रूप में स्वीकृत किया गया हो वहाँ इस तरह की भूमि का मूल्य निर्धारण चालू बाजार मूल्य पर ही किया जाना चाहिए।

7.5 बैंक जहाँ-जहाँ उपलब्ध हो, वहाँ-वहाँ संपार्श्विक जमानत भी प्राप्त करें। निर्माण कार्य में जैसे-जैसे प्रगति होगी, ठेकेदार भुगतान प्राप्त करते रहेंगे और ऐसे भुगतानों को उधार खातों की शेष राशि को कम करने में लगाया जाना चाहिए। यदि संभव हो, तो बैंक उधारकर्ता और उसके ग्राहकों के साथ विशेषत: उन मामलों में जब ऐसे अग्रिमों के लिए कोई संपार्श्विक जमानत उपलब्ध न हो, त्रिपक्षीय करार कर सकते हैं।

7.6 यह देखा गया है कि कुछ बैंकों ने डेवलपर्स / बिल्डरों के सहयोग से कुछ नवीन आवास ऋण योजनाएं शुरू की हैं, उदाहरण के लिए आवास परियोजना के निर्माण के विभिन्न चरणों को संवितरण से जोड़े बिना बिल्डरों को स्वीकृत व्यक्तिगत आवास ऋण का अग्रिम संवितरण, निर्माण अवधि/निर्दिष्ट अवधि के दौरान बिल्डरों द्वारा सेवित (सेवा प्राप्त) व्यक्तिगत उधारकर्ता द्वारा लिए गए आवास ऋण पर ब्याज/ईएमआई आदि। स्वीकृत आवास ऋणों के ऐसे एकमुश्त संवितरण और ग्राहक उपयुक्तता के मुद्दों से जुड़े उच्च जोखिमों को देखते हुए, शहरी सहकारी बैंकों को सूचित किया जाता है कि व्यक्तियों को स्वीकृत आवास ऋणों के वितरण को आवास परियोजना/घरों के निर्माण के चरणों से जोड़ा जाना चाहिए और अपूर्ण/निर्माणाधीन/ग्रीन फील्ड हाउसिंग परियोजनाओं के मामलों में अग्रिम रूप से संवितरण नहीं किया जाना चाहिए।

8. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत आवास ऋण

8.1 प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के वर्गीकरण के लिए पात्र आवास क्षेत्र को ऋण संबंधी निर्देश समय-समय पर यथा-संशोधित दिनांक 4 सितंबर 2020 के मास्टर निदेश-प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल)-लक्ष्य और वर्गीकरण मास्टर निदेश विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.5/04.09.01/2020-21, के अनुसार होंगे।

9. सावधानियां

9.1 भारतीय रिज़र्व बैंक के ध्यान में ऐसे कई मामले आए हैं जहां बेईमान व्यक्तियों ने आवास ऋण प्राप्त करने के लिए मूल दस्तावेजों के कई सेट बनाकर और उन्हें भिन्न-भिन्न बैंकों में प्रस्तुत करके एक ही संपत्ति की जमानत पर बहु-बैंक वित्त प्राप्त करके बैंकों को धोखा दिया है। इसी प्रकार कतिपय सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के कर्मचारियों के जाली वेतन प्रमाणपत्र तैयार किए गए ताकि बैंक की आवश्यकताओं को पूरा कर ज्यादा से ज्यादा ऋण प्राप्त किया जा सके। अनुमानित लागत भी अधिक बताई गई ताकि उधारकर्ता की ओर से दी जानेवाली मार्जिन राशि की अदायगी से बचा जा सके।

इस प्रकार की धोखाधड़ियां बैंक अधिकारियों की ओर से उधारकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की असलीयत का स्वतंत्र रूप से अपने वकीलों / सॉलिसीटरों से सत्यापन करवाने के लिए निर्धारित क्रियाविधि का पालन करने में बरती गई ढीलाई के कारण हो सकती हैं। अत: बैंकों द्वारा विभिन्न दस्तावेज प्राप्त करते समय आवश्यक सावधानियां बरती जानी चाहिए।

9.2 बैंकों को इस बात संतुष्ट होना आवश्यक है कि बैंकों द्वारा दिए गए ऋण से अनधिकृत निर्माण या संपत्ति का दुरूपयोग / सरकारी जमीन पर अतिक्रमण नहीं किया गया है। इस प्रयोजन के लिए अनुबंध-2 में दी गयी प्रकिया का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।

9.3 माननीय उच्च न्यायालय, बम्बई के समक्ष आए एक मामले में माननीय न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि आवास /विकास परियोजनाओं को वित्त मंजूर करने वाला बैंक इस बात के लिए जोर दे कि भू-खंड का विकासकर्ता /मालिक जन-सामान्य को फ्लैट तथा सम्पत्ति खरीदने के लिए आमंत्रित करने के लिए अपने द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले ब्रोशर, पुस्तिका आदि में उक्त भू-खंड पर सृजित भार / अथवा अन्य किसी देयता से संबंधित सूचना प्रकट करे। न्यायालय ने अपने फैसले में आगे यह भी कहा है कि उक्त अपेक्षा को स्पष्ट रूप से उन शर्तों का एक हिस्सा बनाया जाए जिनके अंतर्गत बैंक द्वारा ऋण मंजूर किया जाता है। उपर्युक्त को ध्यान में रखते हुए विनिर्दिष्ट आवास /विकास परियोजनाओं को वित्त मंजूर करते समय बैंक शर्तों के एक हिस्से के रूप में निम्नलिखित को शामिल करें:

(क) भवन निर्माता /विकासकर्ता को पुस्तिकाओं /ब्रोशरों आदि में उस बैंक (बैंकों) का नाम प्रकट करना चाहिए जिसको संपत्ति बंधक रखी गई हो।

(ख) भवन निर्माता /विकासकर्ता किसी विशेष योजना का समाचार पत्रों / पत्रिकाओं आदि में विज्ञापन देते समय बंधक से संबंधित सूचनाओं को विज्ञापन में शामिल करें।

(ग) भवन निर्माता /विकासकर्ता पुस्तिकाओं /ब्रोशरों में यह दर्शाएं कि वे फ्लैटों / संपत्ति की बिक्री के लिए यदि आवश्यक हो तो बंधकग्राही बैंक से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) /अनुमति प्रदान करेंगे। शहरी सहकारी बैंकों को यह भी सूचित किया जाता है कि वे उपर्युक्त शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करें। भवन निर्माता /विकासकर्ता द्वारा अपर्युक्त अपेक्षाओं के पूरा किए जाने के बाद ही उन्हें निधि जारी करें।

10. राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता

भारतीय मानक ब्यूरो देश-भर में भवन निर्माण की गतिविधियों को विनियमित करने के लिए भारत की राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता (एनबीसी) नामक एक विस्तृत भवन निर्माण संहिता तैयार करता है। इस संहिता में समय समय पर यथा संशोधित उक्त संहिता में सुरक्षित तथा सुव्यवस्थित भवन निर्माण के विकास से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं- जैसे की प्रशासनिक विनियमन, विकास नियंत्रण संबंधित नियम तथा भवन की सामान्य आवश्यकताओं, अग्निरोधक सुरक्षा के उपायों, भवन निर्माण की सामग्रियों, संरचनात्मक डिजाइन और निर्माण (सुरक्षा सहित) से संबंधित निर्धारणों और निर्माण एवं प्लंबिंग की सेवाओं को शामिल किया गया है। खास तौर से प्राकृतिक आपदाओं से भवनों की सुरक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता का पालन करना उचित है। बैंकों के निदेशक मंडल अपनी ऋण नीति में इस पहलू का समावेश करने पर विचार करें। राष्ट्रीय भवन निर्माण संहिता से संबंधित अधिक जानकारी भारतीय मानक ब्यूरो की वेबसाइट (https://www.bis.gov.in) से हासिल की जा सकती है।


अनुबंध–1

वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) एक्सपोजर की परिभाषा

(पैराग्राफ 4.7.5 के तहत)

स्थावर संपदा को सामान्यत: अचल आस्ति - भूमि (एर्थ स्पेस) और उस पर स्थायी रूप से जुड़े निर्माण - के रूप में परिभाषित किया जाता है। आय-उत्पादक स्थावर संपदा (आईपीआरई) की परिभाषा बासल - II - ढाँचे के पैरा 226 में दी गयी है, जिसे नीचे उद्धृत किया जा रहा है:

"आय-उत्पादक स्थावर संपदा (आईपीआरई) का तात्पर्य स्थावर संपदा (उदाहरण के लिए, किराये पर देने के लिए कार्यालय भवन, खुदरा बिक्री के स्थान, बहुपारिवरिक आवासीय भवन, औद्योगिक या गोदाम की जगह और होटल) को निधि उपलब्ध कराने की विधि से है, जिसमें एक्सपोजर की चुकौती और वसूली की संभावना मुख्यतया आस्ति से होने वाले नकदी प्रवाह पर निर्भर करती है। इन नकदी प्रवाहों का प्राथमिक स्रोत सामान्यत: आस्ति का पट्टा या किराये का भुगतान या बिक्री होती है। उधारकर्ता एक एसपीई (विशेष प्रयोजन हस्ती), स्थावर संपदा निर्माण या धारिताओं पर केंद्रीत परिचालन कंपनी या स्थावर संपदा से इतर आय के स्रोत वाली परिचालन कंपनी हो सकता है, पर ऐसा होना अपेक्षित नहीं है। स्थावर संपदा की संपार्श्विक जमानत वाले अन्य कार्पोरेट एक्सपोजर की तुलना में आईपीआरई को अलग करने वाली विशेषता यह है कि आईपीआरई में एक्सपोजर की चुकौती की संभावना तथा चूक होने की स्थिति में वसूली की संभावना के बीच मजबूत सकारात्मक संबंध है, क्योंकि दोनों मुख्यतया संपत्ति से होने वाले नकदी प्रवाह पर निर्भर हैं।

2. आय-उत्पादक स्थावर संपदा (आईपीआरई) वाणिज्यिक स्थावर संपदा (सीआरई) के समरूप है। आईपीआरई की उपर्युक्त परिभाषा से यह देखा जा सकता है कि आईपीआरई /सीआरई के रूप में किसी एक्सपोजर को वर्गीकृत करने के लिए आवश्यक विशेषता यह होगी कि निधीयन से स्थावर संपदा (जैसे कि किराये पर देने के लिए कार्यालय भवन, खुदरा बिक्री के स्थान, बहुपारिवारिक आवासीय भवन, औद्योगिक या गोदाम की जगह और होटल) का सृजन /अधिग्रहण होगा, जिसमें चुकौती की संभावना मुख्यतया आस्ति से होनेवाले नकदी प्रवाह पर निर्भर करेगी। इसके अलावा, चूक होने पर वसूली की संभावना भी इस प्रकार की निधि प्रदत्त आस्ति से जो जमानत के रूप में ली गई है, होनेवाले नकदी प्रवाह पर निर्भर करेगी। चूक की स्थिति में, यदि ऐसी आस्तियों को जमानत के रूप में लिया गया है तो वसूली के लिए भी प्राथमिक स्रोत (अर्थात् नकदी प्रवाह का 50% से अधिक अंश) सामान्यतया आस्तियों का पट्टा या किराया भुगतान या बिक्री होगा।

3. कुछ निर्दिष्ट मामलो में जहाँ एक्सपोजर सीआरई के सृजन या अधिग्रहण से प्रत्यक्षत: संबद्ध न हो, लेकिन चुकौती सीआरई से उत्पन्न होने वाले नकदी प्रवाह से आएगी। उदाहरण के लिए, मौजूदा वाणिज्यिक स्थावर संपदा की जमानत पर लिए गए ऋण, जिनकी चुकौती मुख्यतया स्थावर संपदा के किराये /विक्रय राशि पर निर्भर करती है, सीआरई के रूप में वर्गीकृत किये जाने चाहिए। अन्य ऐसे मामले हैं: वाणिज्यिक स्थावर संपदा गतिविधियों में संलग्न कंपनियों की ओर से गारंटी देना, स्थावर संपदा कंपनियों को दिए गए कार्पोरेट ऋण, आदि।

4. उपर्युक्त पैरा 2 और 3 में दी गई परिभाषा के अनुसार यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि चुकौती प्राथमिक रूप से अन्य घटकों पर, उदाहरण के लिए कारोबार परिचालनों से होनेवाले परिचालन लाभ, माल और सेवाओं की गुणवत्ता, पर्यटकों के आगमन आदि पर निर्भर करे, तो एक्सपोजर को वाणिज्यिक स्थावर संपदा एक्सपोजर नहीं माना जाएगा।

5. शहरी सहकारी बैंकों द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए वित्तपोषण नहीं किया जाना चाहिए चाहे वह परियोजना की मांग ही क्यो न हो। तथापि भूखंड की खरीद के लिए व्यक्तियों को वित्त मंजूर किया जा सकता है, बशर्ते उधारकर्ता से यह घोषणा प्राप्त की गयी हो कि वह उक्त भूखंड पर उस अवधि के भीतर मकान बनाएगा जिसे स्वयं बैंक ने निर्धारित किया हो।

अन्य नियामक श्रेणियों में सीआरई का एक साथ वर्गीकरण

6. यह संभव है कि कोई एक्सपोजर एक साथ एक से अधिक संवर्गों में जैसे कि स्थावर संपदा, वाणिज्यिक स्थावर संपदा, इन्फास्ट्रक्चर इ. में वर्गीकृत हो, क्योंकि विभिन्न वर्गीकरण के लिए विभिन्न कारण है। इन मामलों में उन सभी संवर्गों के लिए, जिनमें एक्सपोजर वर्गीकृत किया गया है, भारतीय रिज़र्व बैंक या स्वयं बैंक द्वारा निर्धारित विनियामक / विवेकपूर्ण एक्सपोजर सीमा के लिए एक्सपोजर को गणना में शामिल किया जाएगा। पूंजी पर्याप्तता के प्रयोजन से सभी संवर्गो में से जिस संवर्ग में सब से अधिक जोखिम भार लागू है, वही एक्सपोजर पर लागू होगा। इस तरह के दृष्टिकोण के लिए तर्क यह है कि, कभी-कभी कुछ वर्गीकरण/श्रेणी विभाजन सामाजिक-आर्थिक विचारों से प्रेरित हो सकते हैं और कुछ गतिविधियों के लिए ऋण के प्रवाह को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से हो सकते हैं, इन जोखिमों को उचित जोखिम प्रबंधन/विवेकपूर्ण/पूंजी पर्याप्तता मानदंड के अधीन किया जाना चाहिए ताकि उनमें निहित जोखिम का समाधान किया जा सके। इसी तरह, यदि किसी एक्सापोज़ार को एक से अधिक जोखिम कारकों के प्रति संवेदनशीलता है, तो उसे सभी प्रासंगिक जोखिम कारकों पर लागू जोखिम प्रबंधन ढांचे के अधीन होना चाहिए।

7. कोई एक्सपोजर सीआरई के रूप में वर्गीकृत किया जाए अथवा नहीं - यह निर्धारित करने में बैंकों को सहायता देने के लिए, ऊपर वर्णित सिद्धांतों के आधार पर कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं। उपर्युक्त सिद्धांतों और नीचे दिए गए उदाहरणों के आधार पर बैंकों को यह निर्धारित करना चाहिए कि उदाहरण में शामिल नहीं किया गया एक्सपोजर सीआरई है अथवा नहीं तथा वर्गीकरण का औचित्य सिद्ध करते हुए एक तर्क संगत टिप्पणी दर्ज करनी चाहिए।

व्याख्यात्मक उदाहरण

क. एक्सपोजर जिनको सीआरई के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए

1. किसी भी संपत्ति के निर्माण के लिए बिल्डरों को दिया गया ऋण जिसे बेचने या पट्टे पर देने का इरादा है (उदाहरण के लिए आवास भवनों, होटलों, रेस्तरां, व्यायामशालाओं, अस्पतालों, कॉन्डोमिनियम, शॉपिंग मॉल, कार्यालय ब्लॉक, थिएटर, मनोरंजन पार्क, कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, शैक्षणिक संस्थानों, औद्योगिक पार्कों के लिए बिल्डरों को दिए गए ऋण) ऐसे मामलों में, सामान्य तौर पर चुकौती का स्रोत संपत्ति की बिक्री/पट्टा किराये से उत्पन्न नकदी प्रवाह होगा। ऋण में चूक की स्थिति में यदि एक्सपोजर उन आस्तियों की जमानत द्वारा सुरक्षित किया गया है, जैसा कि सामान्यत: होगा, तो वसूली उक्त संपत्ति की बिक्री द्वारा भी की जाएगी।

2. किराये पर दिये जानेवाले एक से अधिक मकानों के लिए ऋण

ऐसे आवासीय ऋण, जिनमें आवास किराये पर दिये जाते हैं, पर अलग कार्रवाई की आवश्यकता है। यदि ऐसी इकाइयों की संख्या दो से अधिक हो तो तीसरी इकाई से एक्सपोजर को सीआरई एक्सपोजर माना जाना चाहिए, क्योंकि उधारकर्ता इन आवासीय इकाइयों को किराये पर दे सकता है तथा किराया आय ही चुकौती का प्राथमिक स्रोत होगी।

3. समन्वित टाउनशिप योजनाओं के लिए ऋण

जहां सीआरई किसी ऐसी बड़ी परियोजना का अंग हो, जिसमें छोटा गैर-सीआरई घटक हो, तो ऐसे एक्सपोजर को सीआरई एक्सपोजर के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा, कयोंकि ऐसे एक्सपोजरों की चुकौती का प्रमुख स्रोत बिक्री के प्रयोजन से बने मकानों की विक्रय राशि होगा।

4. स्थावर संपदा कंपनियों की प्रति एक्सपोजर

कुछ मामलों में स्थावर संपदा कंपनियों के प्रति एक्सपोजर प्रत्यक्षत: सीआरई के सृजन या अधिग्रहण से जुड़े नहीं हैं, लेकिन चुकौती वाणिज्यिक स्थावर संपदा से होनेवाले नकदी प्रवाह से होगी। ऐसे एकसपोजरों के उदाहरण निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • इन कंपनियों को दिये गये कार्पोरेट ऋण

  • इन कंपनियों की ऋण लिखतों में किया गया निवेश

  • इन कंपनियों की ओर से गारंटी देना

5. सामान्य प्रयोजन ऋण जहां चुकौती स्थावर संपदा कीमतों पर निर्भर हो

ऐसे एक्सपोजर जिनकी चुकौती उधारकर्ता के मौजूदा वाणिज्यिक स्थावर संपदा से होनेवाले किराये /विक्रय राशि से की जाएगी, जहां वित्तपोषण सामान्य प्रयोजन के लिए किया गया हो।

ख. एक्सपोजर जिन्हें सीआरई के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है

1. कारोबारी गतिविधियों के प्रयोजन से स्थावर संपदा का अधिग्रहण करने के लिए उद्यमियों को दिये गये ऋण, जिनकी चुकौती कारोबारी गतिविधियों से हानेवाले नकदी प्रवाह से की जाएगी। ऐसे एक्सपोजर की जमानत सामान्यत: उस स्थावर संपदा से दी जा सकती है, जहां कारोबारी गतिविधि की जा रही हो अथवा ऐसे एक्सपोजर गैर-जमानती भी हो सकते हैं।

अ) सिनेमा गृह के निर्माण, मनोरंजन पार्क की स्थापना, होटल और अस्पताल, कोल्ड स्टोरेज, गोदाम, शैक्षिक संस्थाएं, हेयर कटिंग सैलून और ब्यूटी पार्लर चलाने, जिम्नासियम आदि के लिए ऐसे उद्यमियों को दिए गए ऋण, जो इन उद्यमों को स्वयं चलाएंगे, इस संवर्ग के अंतर्गत आएंगे। ऐसे ऋणों को समान्यत: इन संपत्तियों की जमानत मिली होगी।

उदाहरण के लिए, होटल और अस्पताल के मामले में सामान्यतया चुकौती का स्रोत होटल और अस्पताल द्वारा दी गयी सेवाओं से होनेवाला नकदी प्रवाह होगा। होटल के मामले में, नकदी प्रवाह मुख्यतया पर्यटकों के आगमन को प्रभावित करनेवाले घटकों के प्रति संवेदनशील होगा, न कि स्थावर संपदा की कीमतों में घट-बढ़ से प्रत्यक्षत: जुड़ा होगा। अस्पताल के मामले में नकदी प्रवाह सामान्यतया अस्पताल के चिकित्सकों और अन्य निदानात्मक सेवाओं की गुणावत्ता के प्रति संवेदनशील होगा। इन मामलों में चुकौती का स्रोत कुछ हद तक स्थावर संपत्ति की कीमतों पर भी निर्भर होगा, जहाँ तक कीमतों की घट-बढ़ कमरे के किराये को प्रभावित करती है, परंतु समग्र नकदी प्रवाह निर्धारित करने में यह एक छोटा घटक होगा। तथापि, इन मामलों में चूक की स्थिति में यदि एक्यपोजर के लिए वाणिज्यिक स्थावर संपदा की जमानत ली गयी है तो वसूली होटल / अस्पताल के विक्रय मूल्य और उपकरण व उपस्कर के रख-रखाव और गुणवत्ता पर निर्भर करेगी।

उपर्युक्त सिद्धांत उन मामालों पर भी लागू होगा जहां स्थावर संपदा आस्तियां (होटल, अस्पताल, गोदाम आदि) के मालिकों /विकासकर्ताओं ने आय विभाजन या लाभ विभाजन के आधार पर आस्तियों को पट्टे पर दिया हो तथा एक्सपोजर की चुकौती नियत पट्टा किराया के बजाय दी गयी सेवाओं से उत्पन्न नकदी प्रवाह पर निर्भर करती हो।

आ) औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए उद्यमियों को दिए गए ऋण भी इसी सांवर्ग के अंतर्गत आएंगे। इन मामलों में चुकौती औद्योगिक इकाई द्वारा उत्पादित सामग्री की बिक्री से होनेवाले नकदी प्रवाह से होगी, जो मुख्यतया मांग और आपूर्ति के घटकों से प्रभावित होगी। चूक की स्थिति में वसूली अंशत: भूमि और भवन की बिक्री पर निर्भर करेगी, बशर्ते इन आस्तियों की जमानत मिली हो।

अत: इन मामालों में देखा जा सकता है कि स्थावर संपदा की कीमतें चुकौती को प्रभावित नहीं करती., हालांकि ऋण की वसूली अंशत: स्थावर संपदा की बिक्री से हो सकती है।

2. स्थावर संपदा गतिविधि से असंबद्ध किसी निर्दिष्ट प्रयोजन के लिए ऐसी कंपनी को ऋण देना जो स्थावर संपदा गतिविधि सहित मिश्रित गतिविधियों में लगी हो।

उदाहरण के लिए किसी कंपनी के दो प्रभाग हैं। एक प्रभाग स्थावर संपदा गतिविधि में लगा है, तो दूसरा उर्जा उत्पादन में। ऐसी कंपनी को पावर संयंत्र स्थापित करने के लिए दिया गया संरचनात्मक ऋण, जिसकी चुकौती बिजली की बिक्री से की जाएगी, सीआरई के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा। इस एक्सपोजर को संयंत्र और मशीनरी की जमानत मिल भी सकती है और नहीं भी मिल सकती है।

3. भावी प्राप्य किराये की जमानत पर ऋण

कुछ बैंकों ने ऐसी योजनाएं बनायी हैं जिनमें शॉपिंग माल, कार्यालय परिसर जैसे विद्यमान स्थावर संपदा के स्वामियों को वित्तपोषित किया गया है, जिनकी चुकौती इन संपत्तियों द्वारा अर्जित किये जानेवाले किराये से होगी। यद्यपि ऐसे एक्सपोजर से वाणिज्यिक स्थावर संपदा का निधीयन /अधिग्रहण नहीं हो रहा है, तथापि चुकौती स्थावर संपदा के किराये में गिरावट से प्रभावित हो सकती है और इसलिए सामान्यतया ऐसे एक्सपोजरों को सीआरई के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। तथापि, यदि कोई सुरक्षा प्रदान करने वाली ऐसी शर्त हो जिससे चुकौती स्थावर संपदा कीमतों की अस्थिरता से असंबद्ध हो जाए - उदाहरण के लिए, पट्टाकर्ता और पट्टेदार के बीच हुए पट्टा किराया करार में एक लॉक-इन अवधि हो, जो ऋण की अवधि से कम न हो तथा ऋण की अवधि के दौरान किराये को घटाने की अनुमति देने वाली कोई शर्त न हो, तो बैंक ऐसे एक्सपोजरों को गैर-सीआरई एक्सपोजर के रूप में वर्गीकृत कर सकता हैं। तथापि, बैंक ऐसे सभी मामलों में तर्कयुक्त नोट दर्ज करें।

4. ठेकेदारों के रूप में काम करनेवाली निर्माण कंपनियों को दी गयी ऋण सुविधा

भवन निर्माता के रूप में नहीं, अपितु ठेकेदारों के रूप में कार्यरत निर्माण कंपनियों को दी गयी कार्यशील पूंजी सुविधा सीआरई एक्सपोजर नहीं मानी जाएगी, क्योंकि चुकौती, कार्य पूरा करने में हुई प्रगति के अनुसार प्राप्त संविदात्मक भुगतानों पर निर्भर करेगी।

5. स्वाधिकृत कार्यालय /कंपनी परिसरों के अधिग्रहण /नवीकरण का वित्तपोषण

ऐसे एक्सपोजरों को सीआरई एक्सपोजर नहीं माना जाएगा क्योंकि चुकौती कंपनी आय से आयेगी। संयंत्र और मशीनरी की खरीद तथा कार्यशील पूंजी आवश्यकताओं के लिए औद्योगिक इकाइयों के प्रति एक्सपोजर को सीआरई एक्सपोजर न माना जाए।


अनुबंध-2

माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश -

यह सुनिश्चित करने की प्रक्रिया कि अभीष्ट ऋण प्राधिकृत संरचना के लिए है

(पैराग्राफ 9.2 के तहत)

अ. भवन निर्माण के लिए आवास ऋण

i) जिन मामलों में आवेदक के पास भूखंड/भूमि है और वह मकान बनवाने के लिए ऋण सुविधा हेतु बैंकों/वित्तीय संस्थाओं के पास आता है तो बैंकों/वित्तीय संस्थाओं को गृह ऋण मंज़ूर करने के पहले, ऋण सुविधा के लिए आवेदन करनेवाले व्यक्ति के नाम सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंज़ूर योजना की एक प्रति प्राप्त करनी होगी।

ii) ऐसी ऋण सुविधा के लिए आवेदन करनेवाले व्यक्ति से एक शपथपत्र-व-वचनपत्र प्राप्त करना होगा कि वह मंज़ूर योजना का उल्लंघन नहीं करेगा, निर्माण कार्य पूर्णत: मंज़ूर योजना के मुताबिक होगा और ऐसा निष्पादन करनेवाले की यह जिम्मेदारी होगी कि निर्माण कार्य पूरा हो जाने के 3 महीने के भीतर वह पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त करें। ऐसा न करने पाने पर ब्याज़, लागत और अन्य प्रचलित बैंक प्रभारों सहित सारा ऋण वापस मांगने का अधिकार बैंक को होगा।

iii) बैंक द्वारा नियुक्त किसी वास्तुविद को भी भवन निर्माण के विभिन्न स्तरों पर यह प्रमाणित करना होगा कि भवन निर्माण पूरी तरह मंज़ूर योजना के मुताबिक है तथा उसे एक विशिष्ट समय पर यह भी प्रमाणित करना होगा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया जानेवाला भवन संबंधी पूर्णता प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया है।

आ. निर्मित संपत्ति/तैयार संपत्ति की खरीद के लिए आवास ऋण

i) जिन मामलों में आवेदक तैयार मकान/फ्लैट खरीदने के लिए ऋण सुविधा हेतु बैंकों/वित्तीय संस्थाओं के पास आता है, तो उसके लिए शपथपत्र-व-वचनपत्र के ज़रिए यह घोषित करना अनिवार्य होना चाहिए कि तैयार संपत्ति मंज़ूर योजना और/या भवन उप-विधियों के मुताबिक बनाई गई है और जहाँ तक संभव हो सके उसे पूर्णता प्रमाणपत्र भी मिल चुका है।

ii) ऋण के संवितरण के पहले, बैंक द्वारा नियुक्त किसी वास्तुविद को भी यह प्रमाणित करना होगा कि तैयार संपत्ति पूरी तरह मंज़ूर योजना के मुताबिक और/या भवन उप-विधियों के मुताबिक है।

इ. जो संपत्ति अनधिकृत कॉलोनियों की श्रेणी में आती है उनके मामले में तब तक ऋण नहीं दिया जाना चाहिए जब तक वे विनियमित नहीं की जातीं और विकास तथा अन्य प्रभार अदा नहीं किए जाते।

ई. आवासीय इस्तेमाल के लिए बनी परंतु आवेदक जिसका उपयोग वाणिज्य प्रयोजन के लिए करना चाहता है और ऋण के लिए आवेदन करते समय वैसा घोषित करता है तो ऐसी संपत्तियों के मामले में भी ऋण नहीं दिया जाना चाहिए।

उ. उपर्युक्त निदेश कृषि भूमि पर फार्महाउस के निर्माण पर लागू नहीं होंगे क्योंकि कृषि भूमि ग्राम पंचायतों तथा नगरपालिका परिषदों के दायरे से बाहर है और चूंकि ये प्राधिकारी न तो किसानों द्वारा कृषि भूमि पर फार्महाउसों के निर्माण की योजनाएं मंज़ूर करते हैं और न ही उन्हें काम पूरा होने का प्रमाणपत्र ही जारी करता है। ऐसे सभी मामलों में स्थानीय नियम लागू होंगे।


परिशिष्ट

क. मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची

क्र.सं. परिपत्र सं. दिनांक विषय
1 विवि.सीआरई.आरईसी.92/07.10.002/2022-23 30.12.2022 व्यक्तिगत आवास ऋण - चार-स्तरीय विनियामकीय ढांचे के तहत संशोधित सीमाएं
2 विवि.सीआरई.आरईसी.42/09.22.010/2022-23 08.06.2022 व्यक्तिगत आवास ऋण - सीमा में वृद्धि
3 विवि.सीआरई.आरईसी.18/09.22.010/2022-23 24.05.2022 आवास वित्त - मरम्मत / संवर्धन / परिवर्तन के लिए ऋण - सीमा में वृद्धि
4 शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी)परि सं.45/13.05.000/2013-14 28.01.2014 आवास क्षेत्र: सीआरई क्षेत्र के भीतर नया उप-क्षेत्र सीआरई-आवासीय आवास (सीआरई-आरएच) खंड और प्रावधान और जोखिम भार का युक्तिकरण
5 शबैंवि.सीओ.बीपीडी(पीसीबी).परि.सं.17/09.22.010/2013-14 17.09.2013 आवास क्षेत्र: नवोन्मेषी ऋण उत्पाद-आवास ऋणों का अग्रिम वितरण-यूसीबी
6 शबैंवि.सीओ.बीपीडी(पीसीबी).परि.सं.13/09.22.010/2013-14 10.09.2013 आवास योजनाओं के लिए वित्त - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक - मरम्मत / परिवर्धन / परिवर्तन के लिए ऋण - सीमा में वृद्धि
7 शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी).परि.सं.31/13.05.000/2011-12 26.04.2012 मौद्रिक नीति वक्तव्य 2012-13 आवास, रियल एस्टेट और वाणिज्यिक रियल एस्टेट के लिए एक्सपोजर - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
8 शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी).परि.सं.7/09.22.010/2011-12 31.10.2011 आवास ऋण की सीमा और चुकौती अवधि में संशोधन - मौद्रिक नीति 2011-12 की दूसरी तिमाही की समीक्षा।
9 शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी).परि.सं.47/13.05.000/2010-11 11.05.2011 मौद्रिक नीति वक्तव्य 2011-12 - आवास, अचल संपत्ति और वाणिज्यिक अचल संपत्ति के लिए एक्सपोजर - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
10 शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी).परि.सं.23 /13.05.000/2010-11 15.11.2010 आवास, रियल इस्टेट और वाणिज्यिक रियल इस्टेट क्षेत्र को ऋण में एक्सपोजर - शहरी सहकारी बैंक
11 शबैंवि.(पीसीबी)बीपीडी.परि.सं.69 /09.22.010/2009-10 09.06.2010 स्थावर संपदा और वाणिज्यिक स्थावर संपदा क्षेत्र को एक्सपोजर - शहरी सहकारी बैंक
12 शबैंवि.बीपीडी.सं.16 09.22.010 /2009-10 26.10.2009 आवास परियोजनाओं के लिए वित्त - बैंक को संपत्ति बंधक रखने से संबंधित सूचना पुस्तिकाओं /ब्रोशर /विज्ञापनों में प्रकट करने की अपेक्षा को शर्तों में शामिल करना
13 शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.30/09.09.001/08-09 08.12.2008 आवास ऋण - दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश - भारत संघ तथा अन्य के विरुद्ध कल्याण संस्था वेलफेयर आर्गनाइजेशन द्वारा रिट याचिका - निदेशों का कार्यान्वयन
14 शबैंवि.यूसीबी.परि.सं.42/09.09.01/08-09 15.05.2008 वैयक्तिक आवास ऋण सीमा में संशोधन - वर्ष 2008-09 का वार्षिक नीति वक्तव्य
15 शबैंवि.केंका.बीपीडी.यूसीबी.परि. सं.33/13.05.000/07-08 29.02.2008 भवन निर्माताओं/ठेकेदारों को अग्रिम
16 शबैंवि.यूसीबी.परि.सं.40/13.05.000/06-07 04.05.2007 वर्ष 2007-08 का वार्षिक नीति वक्तव्य - आवासीय गृह ऋण: जोख़िम-भार में कमी
17 शबैंवि.यूसीबी.परि.सं.20/09.09.01/06-07 22.11.2006 आवास ऋण-दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश-भारत संघ तथा अन्य के विरुद्ध कल्याण संस्था वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन की रिट याचिका
18 शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.58/09.09.01/05-06 19.06.2006 ऋणदात्री संस्थाओं के लिए आवश्यक राष्ट्रीय भवन संहिता (एनबीसी) संबंधी विनिर्देशों का पालन
19 शबैंवि.पीसीबी.परि.सं.55/09.11.600/05-06 01.06.2006 वर्ष 2006-07 के लिए वार्षिक नीति वक्तव्य -वाणिज्यिक स्थावर संपदा (रियल इस्टेट) को दिए गए ऋणों पर जोखिम भार
20 शबैंवि.पीसीबी.परि..सं.8/09.11.600/05-06 09.08.2005 पूंजी पर्याप्तता संबंधी विवेकपूर्ण मानदंड-आवास वित्त/वाणिज्यिक स्थावर संपदा को दिए गए ऋणों पर जोखिम भार
21 शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी) परि.29/09.09.01/2004-05 14.12.2004 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण-आवास ऋण-शहरी सहकारी बैंकों के लिए ऋण की उच्चतम सीमा में वृद्धि
22 शबैवि.पीसीबी.सं.30/09.22.01/2003-04 16.01.2004 आवास ऋण के लिए संपत्ति के जाली स्वत्वाधिकार प्रलेख / जाली वेतन प्रमाणपत्र जमा करके धोखाधड़ी करना
23 शबैवि.बीपीडी.सं.45/09.09.01/2002-03 14.05.2003 2003-04 के लिए ऋण नीति – प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र अग्रिम
24 शबैवि.बीपीडी.पीसीबी.सं.31/09. 09.01/2002-03 30.12.2002 प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के अग्रिम
25 शबैवि.सं.प्लान.परि.आरसीएस. 2/09.22.01/98-99 15.03.1999 आवास योजनाओं के लिए वित्त - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
26 शबैवि.सं.प्लान.आरओ.49/09. 22.01/ 1997-98 17.06.1998 आवास योजनाओं के लिए वित्त - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
27 शबैवि.सं.प्लान.परि(आरसीएस) 9/09.22.01/95-96 01.09.1995 आवास योजनाओं के लिए वित्त - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
28 शबैवि.सं.प्लान/परि(आरसीएस) 8/09.22.01/94-95 11.01.1995 आवास योजनाओं के लिए वित्त - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
29 शबैवि.सं.पीएण्डओ.10/यूबी-31/91-92 26.03.1992 आवास योजनाओं के लिए वित्त - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
30 शबैवि.सं.पी&ओ.108/यूबी.31/88-89 05.04.1989 आवास योजनाओं के लिए वित्त - प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक
31 शबैवि.डीसी.1/आर.1-87/88 03.07.1987 अग्रिमों की अधिकतम सीमा
32 शबैवि.(डीसी)2/आर.1-87/88 03.07.1987 अग्रिमों की अधिकतम सीमा
33 डीबीओडी.यूबीडी.पीएण्डओ.161/ यूबी.31/83-84 02.09.1983 आवास योजनाओं के लिए शहरी सहकारी बैंको द्वारा वित्त
34 डीबीओडी.यूबीडी.पीएण्डओ. 229/यूबी.31/82-83 05.11.1982 आवास योजनाओं के लिए सहकारी बैंकों द्वारा वित्तपोषण
35 डीबीओडी.यूबीडी.पीएण्डओ. 230/ यूबी.31/82-83 05.11.1982 समाज के आर्थिक रुप से कमजोर वर्गों के लिए आवास योजना के लिए सहकारी बैंकों द्वारा वित्तपोषण
36 एसीडी.प्लान.(एसजेड)401/ पीआर .338/81-82 17.08.1981 आवास योजनाओं के लिए सहकारी बैंकों द्वारा वित्तपोषण
37 एसीडी.प्लान.1502/पीआर. 338/ 76-77 11.10.1976 समाज के आर्थिक रुप से कमजोर वर्गों के लिए आवास योजना के लिए सहकारी बैंकों द्वारा वित्तपोषण
38 एसीडी.प्लान.(781)पीआर.338/ 76-77 24.08.1976 समाज के आर्थिक रुप से कमजोर वर्गों के लिए आवास योजना के लिए सहकारी बैंकों द्वारा वित्तपोषण

ख. अन्य परिपत्रों की सूची जिनसे आवास वित्त से संबंधित अनुदेशों को मास्टर परिपत्र में शामिल किया गया हैं

सं. परिपत्र संख्या दिनांक विषय
1 विवि.आरईजी.सं.84/07.01.000/2022-23 01.12.2022 संशोधित विनियामक ढांचा – विनियामक उद्देश्यों के लिए शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) का वर्गीकरण
2 डीओआर.(पीसीबी).बीपीडी.परि.सं.10/13.05.000/2019-20 13.03.2020 एकल और समूह उधारकर्ताओं/पार्टियों के लिए एक्सपोजर की सीमाएं और बड़े एक्सपोजर और प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र को उधार देने के लक्ष्य में संशोधन - शहरी सहकारी बैंक
3 मास्टर निदेश विसविवि.केंका.प्लान.बीसी.5/04.09.01/2020-21 04.09.2020 मास्टर निदेश - प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार (पीएसएल) - लक्ष्य और वर्गीकरण
4 शबैंवी.बीपीडी.(पीसीबी).परि.सं.41/12.05.001/2011-12 26.06.2012 गृह ऋण - शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) द्वारा पूर्व-समापन शुल्क / पूर्व-भुगतान जुर्माना लगाना
5 शबैंवी.बीपीडी.(पीसीबी).परि.सं.33/09.09.001/2011-12 18.05.2012 प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार - आवास क्षेत्र को अप्रत्यक्ष वित्त।
6 शबैंवि.बीपीडी(पीसीबी)परि.सं.46/09.09.001/2010-11 11.05.2011 प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत आवास ऋण की सीमा - शहरी सहकारी बैंक
7 शबैंवि.यूसीबी.परि.सं.11/09.09.01/2007-08 30.08.2007 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार संबंधी संशोधित दिशानिर्देश
8 शबैंवि.यूसीबी.बीपीडी.1/09.09.01/2006-07 11.07.2006 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार-एनएचबी/हुडको द्वारा जारी विशेष बांडों में निवेश
9 शबैंवि.यूसीबी.परि.सं.16/09.09.01/2006-07 17.10.2006 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार-आवास ऋण-उच्चतम सीमा में वृद्धि
10 शबैंवि.डीएस.परि.सं.44/13.05.00/2004-05 15.04.2005 अग्रिमों की उच्चतम की सीमा-ऋण की सीमा
11 शबैवि.सं.डीएस.परि.31/13.05.00/1999-2000 01.04.2000 अग्रिमों की अधिकतम सीमा-ऋण सीमा
12 शबैवि.प्लान.पीसीबी.7/09.09.01/1999-2000 22.12.1999 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार-आवास वित्त
13 शबैवि.सं.प्लान.पीसीबी.24/09.09.01/ 1997-98 1.12.1997 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार
14 शबैवि.सं.डीएस.पीसीबी.परि.39/13.05.00/ 1995-96 16.01.1996 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा दिएजानेवाले अग्रिमों की अधिकतम सीमा
15 शबैवि.सं.प्लान.(पीसीबी)6/09.09.01/ 1994-95 22.07.1994 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार
16 शबैवि.सं.प्लान.68/09.09.01/1993-1994 09.05.1994 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार
17 शबैवि.डीसी.536/आर.1.84-85 16.10.1984 अग्रिमों की अधिकतम सीमा

1 शहरी सहकारी बैंकों का संबंधित टियर के तहत वर्गीकरण समय-समय पर यथा-संशोधित दिनांक 1 दिसंबर 2022 के परिपत्र डीओआर.आरईजी.सं.84/07.01.000/2022-23 के अनुसार किया गया है।

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