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प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्संरचना कंपनियाँ (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003 30 जून 2015 तक यथा संशोधित अधिसूचना

भारिबैं/2015-16/94
गैबैंविवि.(नीप्र) कंपरि.सं.03/एससीआरसी/26.03.001/2015-16

1 जुलाई 2015

प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ तथा पुनर्संरचना कंपनियाँ (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश 2003
30 जून 2015 तक यथा संशोधित अधिसूचना

जैसा कि आपको विदित है कि उल्लिखित विषय पर सभी मौजूदा अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक अद्यतन परिपत्र/ अधिसूचनायें जारी करता है। 23 अप्रैल 2003 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 2/सीजीएम (सीएसएम)/2003 में अंतर्विष्ट प्रतिभूतिकरण और पुनर्निमाण कंपनी (रिज़र्व बैंक) दिशानिदेश तथा निदेश 2003 में निहित सभी अनुदेशों का अद्यतन यथा 30 जून 2015 तक करने के बाद नीचे पुनरुत्पादित किया गया है। अद्यतित अधिसूचना बैंक की वेबसाइट (http://www.rbi.org.in) पर भी उपलब्ध है।

भवदीय,

(सी डी श्रीनिवासन)
मुख्य महाप्रबंधक


विषय सूची

पैरा सं. विवरण
1 संक्षिप्त नाम और प्रारंभ
2 निदेशो की प्रयोज्यता
3 परिभाषा
4 पंजीकरण और उससे संबंधित मामले
5 स्वाधिकृत निधि
6 स्वीकार्य कारोबार
7 आस्ति पुनर्निमाण
8 प्रतिभूतिकरण
9 पूंजी पर्याप्तता अपेक्षा
10 निधियों का अभियोजन
11 लेखा वर्ष
12 आस्ति वर्गीकरण
13 निवेश
14 आय निर्धारण
15 तुलन पत्र में प्रकटीकरण
16 आंतरिक लेखा परीक्षा
17 छूट
18 प्रतिभूतिकरण/पुनर्रचना कंपनी द्वारा ऑन लाइन तिमाही विवरणी की प्रस्तुति
19 लेखा परीक्षित तुलन पत्र की प्रस्तुति
20 इरादतन चूककर्ता
21 सरफेसी अधिनियम, 2002 के तहत केन्द्रीय इलेक्ट्रानिक रजिस्ट्री की स्थापना
22 संयुक्त ऋण्दाता फोरम की सदस्यता (जेएलएफ)
23 भारतीय बैंक संघ (आईबीए) को रिपोर्टिंग
24 शेयरों के अंतरण द्वारा प्रबंधन में किसी प्रकार का पर्याप्त परिवर्तन हेतु बैंक से पूर्वानुमति लेना

भारतीय रिज़र्व बैंक
गैर बैंकिंग विनियमन विभाग
केंद्रीय कार्यालय
विश्व व्यापार केंद्र, केंद्र-1
कफ परेड, कोलाबा
मुंबई

प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुनर्निर्माण कंपनी
(रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत और निदेश, 2003

भारतीय रिज़र्व बैंक, जनहित में इसे आवश्यक मानते हुए तथा इस बात से संतुष्ट होकर कि वित्तीय प्रणाली को देश के हित के लिए विनियमित करने के हेतु रिज़र्व बैंक को समर्थ बनाने के प्रयोजनार्थ और किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के निवेशकों के हित के लिए हानिकारक ढंग से चलाये जा रहे, कार्यलापों या ऐसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के हित में किसी भी प्रकार से पक्षपाती ढंग से चलाये जा रहे कार्यकलापों को रोकने के लिए; पंजीकरण, आस्ति पुनर्निर्माण के उपायों, कंपनी के कार्यों, विवेकसम्मत मानदडों, वित्तीय आस्तियों के अभिग्रहण और उससे संबंधित यहां नीचे उल्लिखित मामलों के संबंध में मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश जारी करना आवश्यक है, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3, 9, 10 तथा 12 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए एतदद्वारा प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी को, यहां इसके बाद विनिर्दिष्ट मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश जारी करता है।

संक्षिप्त नाम और प्रारंभ

1. (1) ये मार्गदर्शी सिद्धांत और निदेश 'प्रतिभूतिकरण कंपनी और पुननिर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश, 2003' के नाम से जाने जायेंगे ।

(2) ये 23 अप्रैल 2003 से लागू होंगे और इन मार्गदर्शी सिद्धांतों तथा निदेशों में इनके लागू होने की तारीख का कोई संदर्भ उक्त तारीख का संदर्भ माना जायेगा ।

निदेशों की प्रयोज्यता

2. इन मार्गदर्शी सिद्धांतों तथा निदेशों के प्रावधान, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3 के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक में पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों पर लागू होंगे । परंतु यहां पैराग्राफ 8 में उल्लिखित न्यास/न्यासों के संबंध में, पैराग्राफ 4, 5,6,9,10(i), 10 (iii), 12, 13, 14 और 15 के प्रावधान लागू नहीं होंगे ।

3. परिभाषाएँ

(1) (i) "अधिनियम" का अर्थ वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 है ।

(ii) "बैंक" का अर्थ भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 3 के अंतर्गत गठित रिज़र्व बैंक है ;

1 (iii) अर्जन (अभिग्रहण) की तारीख का अर्थ उस तारीख से है, जिस तारीख को प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों का स्वामित्व अपनी बहियों या सीधे ट्रस्ट की बहियों में ग्रहण किया जाता है।;]

(iv) "जमाराशि" का अर्थ कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 58 क के अंतर्गत बनाये गये कंपनी (जमाराशियों का स्वीकरण) नियम, 1975 में यथा परिभाषित जमाराशि से है ;

(v) "उचित मूल्य" का अर्थ अर्जन मूल्य (अर्निंग वैल्यू) तथा अलग-अलग (ब्रेक-अप) मूल्य के माध्य से है ;

(vi) "अनर्जक आस्ति" (एनपीए) का अर्थ किसी आस्ति से हे, जिसके संबंध में :

(ए) ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), ऋण या अग्रिम प्राप्त करने की तारीख अथवा उधार लेने वाले और प्रवर्तक (ऑरीजिनेटर) के बीच संविदा के अनुसार नियत तारीख से, जो भी बाद में हो 180 दिन या उससे अधिक दिन के लिए अतिदेय हो;

(बी) ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), यहां पैराग्राफ 7(1)(6) में उल्लिखित आस्तियों की वसूली के लिए बनायी गयी योजना में, उसकी प्राप्ति के लिए नियत तारीख से 180 दिन या उससे अधिक दिन की अवधि के लिए अतिदेय हो ;

(सी) ब्याज या मूलधन (या उसकी किश्त), यहां पैराग्राफ 7(1)(6) में उल्लिखित आस्तियों की वसूली के लिए जब कोई योजना नहीं तैयार की गयी हो तो योजना अवधि की समाप्ति पर अतिदेय होती है ; या

(डी) कोई अन्य प्राप्य राशि, यदि वह प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की बहियों में 180 दिन या उससे अधिक अवधि के लिए अतिदेय हो ।

बशर्ते किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का निदेशक मंडल उधारकर्ता द्वारा चूक करने पर किसी आस्ति को उस पर उल्लिखित अवधि से पहले भी अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत कर सकता है (उक्त अधिनियम की धारा 13 में किये गये उपबंध के अनुसार प्रवर्तन में सुविधा के लिए) ।

(vii) "अतिदेय" का अर्थ किसी उस राशि से है, जो नियत तारीख के बाद अप्रदत्त (अनपेड) रहती है ।

(viii) "स्वाधिकृत निधि" का अर्थ चुकता ईक्विटी पूंजी, अनिवार्य रूप से ईक्विटी पूंजी में परिवर्तनीय सीमा तक चुकता अधिमान पूंजी, मुक्त आरक्षित निधि (पुनर्मूल्य आरक्षित निधि को छोडकर) लाभ और हानि खाते में नामे शेष तथा विविध खर्चे (बट्टा खाते में न डाली गई या समायोजित न की गई सीमा तक), अमूर्त आस्तियों का बही मूल्य और अनर्जक आस्तियों के लिए अल्प / कम प्रावधान / निवेशों के मूल्य में उस तथा अधिक आय निर्धारण को, यदि कोई किया गया हो तो, घटाकर तथा आगे किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के अर्जित शेयरों का बही मूल्य और वित्तीय विवरणों के संबंध में लेखा परीक्षकों द्वारा अपनी रिपोर्ट में नियत किये गये मुद्दों के लिए अपेक्षित अन्य कटौतियों को घटाने के बाद लाभ और हानि खाते में जमाशेष के कुल योग से है ;

(ix) "योजना अवधि" का अर्थ पुनर्निर्माण के प्रयोजन हेतु अर्जित की गयी अनर्जक आस्तियों (प्रवर्तक की बहियों में) की वसूली हेतु योजना बनाने के लिए अनुमति प्रदान की गई अधिकतम छ:2 महीने की अवधि से है ;

(x) "मानक आस्ति" का अर्थ किसी ऐसी आस्ति से है, जो अनर्जक आस्ति नहीं है ।

(xi) "न्यास" का अर्थ भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 3 में यथापरिभाषित न्यास से है ।

(2) यहां पर प्रयुक्त उन शब्दों और अभिव्यक्तियों का, जिनकी यहां परिभाषा नहीं दी गई है, परंतु वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 में जिनकी परिभाषा दी गई है, वही अर्थ होगा, जो उक्त अधिनियम में उनका अर्थ है । अन्य शब्दों और अभिव्यक्तियों का, जिनकी परिभाषा उक्त अधिनियम में नहीं दी गई है, अर्थ वह होगा, जो कंपनी अधिनियम, 1956 में उनका अर्थ है ।

4. पंजीकरण और उससे संबंधित मामले

3 [(i) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी, 7 मार्च 2003 की अधिसूचना सं.गैबैंवि.1/सीजीएम (सीएसएम) 2003 में विनिर्दिष्ट आवेदन फॉर्म में पंजीकरण के लिए आवेदन करेगी और उक्त अधिनियम की धारा 3 में किये गये उपबंध के अनुसार पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करेगी;]

4 (ii) भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण की इच्छा रखने वाली प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्रचना कंपनी (एससी/आरसी) से अपेक्षित है कि वह अपना आवेदन बैंक द्वारा विनिर्दिष्ट फार्मेट (07 मार्च 2003 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.1/सीजीएम(सीएसएम)-2003 में अनुबंधित) को विधिवत भरकर सभी संबंधित कागजात / समर्थित दस्तावेजो के साथ प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक गैर बैंकिंग विनियमन विभाग, भारतीय रिज़र्व बैंक, 2तीय तल, “बी” विंग, विश्व व्यापार केन्द्र, सेंटर 1, कफ परेड, कोलाबा, मुंबई 400 005 को प्रस्तुत करें।

(iii) कोई एससी/आरसी, जिसने उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत बैंक द्वारा जारी किया गया पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त किया है, प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण दोनों कार्यकलाप कर सकती हैं ;

5 [(iii) (ए) एससी/आरसी बैंक द्वारा पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर किए जाने की तारीख से 6 माह के भीतर कारोबार प्रारंभ करेगी;

6 बशर्ते कि प्रतिभूतिकरण कंपनी या एससी/आरसी द्वारा कारोबार प्रारंभ करने की अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन करने पर रिज़र्व बैंक इस अवधि को उसके बाद उस समय तक के लिए बढ़ा सकता है जो पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर होने की तारीख से कुल 12 माह के बाद की नहीं होगी।

7 (iii) (बी) भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45-झक, 45-झख तथा 45-झग के प्रावधान/शर्तें उस गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी पर लागू नही होंगे/होंगी जो एससी/आरसी है और वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 की धारा 3 के अंतर्गत बैंक के पास पंजीकृत है।]

(iv) कोई संस्था जो, उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत बैंक में पंजीकृत नहीं है, अधिनियम के दायरे के बाहर प्रतिभूतिकरण या आस्ति पुनर्निर्माण का कारोबार कर सकती है ।

5. स्वाधिकृत निधि

प्रत्येक एससी/आरसी को, जो उक्त अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत बैंक में पंजीकरण की इच्छुक है, न्यूनतम 2 करोड़ रुपये की स्वाधिकृत निधि रखनी होगी ।

8 [“बशर्ते प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी धारा 3 के अंतर्गत रिज़र्व बैंक का पंजीकरण मांगनेवाली पुनर्निर्माण कंपनी या प्रतिभूतिकरण (रिज़र्व बैंक) (संशोधन) मार्गदर्शी सिद्धांत एवं निदेश, 2004 के प्रारंभ होने पर जो कारोबार करने वाली है, एससी/आरसी द्वारा अभिगृहीत या अभिगृहीत की जाने वाली कुल वित्तीय आस्तियों के कम से कम पंद्रह प्रतिशत की न्यूनतम स्वाधिकृत निधि समग्र आधार पर या 100 करोड़ रुपये, इनमें से जो भी कम हो, रखेगी ।

साथ ही यह भी शर्त है कि -

(i) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी (रिज़र्व बैंक)(संशोधन) मार्गदर्शी सिद्धांत तथा निदेश, 2004 के प्रारंभ होने पर कारोबार करने वाली कोई भी एससी/आरसी इस प्रकार प्रारंभ किये जाने की तारीख से तीन माह के भीतर प्रथम परंतु(प्राविज़ो) में विनिर्दिष्ट न्यूनतम स्वाधिकृत निधि का स्तर प्राप्त कर लेगी ।

(ii) जब तक आस्तियों की वसूली नहीं होती तथा ऐसी आस्तियों हेतु जारी की गयी प्रतिभूति का प्रतिदान नहीं होता, तब तक यह राशि एससी/आरसी के पास बनी रहेगी । एससी/आरसी इस राशि को प्रत्येक योजना के तहत प्रतिभूति रसीद जारी कर उपयोग कर सकती है। यह एससी/आरसी में आस्ति अधिग्रहण के स्टेक को यह सुनिश्चित करेगा।

9 (iii) एससी/आरसी, धन के हस्तांतरण से, प्रतिभूतिकरण के उद्देश्य से स्थापित ट्रस्ट द्वारा जारी प्रत्येक वर्ग के एसआर मे प्रत्येक योजना के तहत जारी किए गए एसआर का निरंतर आधार पर न्यूनतम 15% निवेश योजना के तहत उनके किए गए सभी एसआर का मोचन होने तक करेंगे।“

6. स्वीकार्य कारोबार

i. एससी/आरसी केवल प्रतिभूतिकरण और आस्ति पुनर्निर्माण के कार्यकलाप तथा उक्त अधिनियम की धारा 10 में उपबंधित कार्य करेगी.

ii. कोई एससी/आरसी जमा के रूप में कोई धन नहीं उगाहेगी ।

7. आस्ति पुनर्निर्माण

(1) वित्तीय आस्तियों का अभिग्रहण

i. प्रत्येक एससी/आरसी, पंजीकरण प्रमाण पत्र की मंजूरी के 90 दिन के अंदर अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से एक ‘वित्तीय आस्ति अभिग्रहण नीति' बनाएगी, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ स्पष्ट रूप से निम्नलिखित के संबंध में नीतियां और मार्गदर्शी सिद्धांत निर्धारित किये जायेंगे

10[(ए) अपनी बहियों या ट्रस्ट की बहियों में सीधे अर्जन के मानदण्ड और प्रक्रिया;]

(बी) आस्तियों के प्रकार और वांछित रूप रेखा (प्रोफाइल);

(सी) यह सुनिश्चित करते हुए कि अर्जित की गयी आस्तियों का वसूली योग्य मूल्य है, जिसका उचित रूप से आकलन और तटस्थ रूप से मूल्यन किया जा सकता है, मूल्यन की क्रिया विधि;

(डी) आस्ति पुनर्निर्माण के लिए अर्जित वित्तीय आस्तियों के मामले में, उनकी वसूली के लिए योजना बनाने हेतु व्यापक (ब्राड) मापदंड ।

ii. निदेशक मंडल वित्तीय आस्तियों के अभिग्रहण के प्रस्तावों के संबंध में निर्णय लेने के लिए निदेशक और/या कंपनी के किसी अधिकारी को लेकर बनायी गयी किसी समिति को अधिकारों का प्रत्यायोजन कर सकता है ।

iii. नीति से हट कर कोई निर्णय केवल निदेशक मंडल के अनुमोदन से ही लिया जाना चाहिए ।

iv 11दबावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए बोली लगाने से पहले, एससी/ आरसी अंतर्निहित परिसंपत्तियों की पुष्टि कर खाते का एक सार्थक यथोचित परिश्रम करने के लिए नीलामी बैंकों से कम से कम 2 सप्ताह का पर्याप्त समय प्राप्त कर सकते हैं।“

v. 12 सरफेसी अधिनियम, 2002 की धारा 2(1)(सी) के प्रावधानों के अनुसार एससी/आरसी ‘बैंक’ नहीं है और उक्त अधिनियम की धारा 2(1)(एम) के प्रावधान के अनुसार “वित्तीय संस्था” भी नहीं है। अत:, एससी/आरसी से अन्य एससी/आरसी द्वारा आस्तियों का अधिग्रहण को सामान्यत: सरफेसी अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं माना जाता था।

13 तथापि, एससी/आरसी को प्रभावी 23 जनवरी 2014 से निम्नलिखित शर्तों के तहत अन्य एससी/आरसी से वित्तीय आस्तियों को धिग्रहण करने की अनुमति है:

ए. अधिग्रहण प्रतिभूति हित का प्रवर्तन के लिए कर्ज एकत्रीकरण के उद्देश्य के लिए है तथा जैसा कि अधिग्रहण करने वाली एससी/आरसी (इसके बाद इन्हें एकत्रित करने वाली एससी/आरसी कहा जाएगा) का अधिग्रहण के समय मौजूदा होल्डिंग 60% से कम है अन्य एससी/आरसी से प्रस्तावित अतिरिक्त अधिग्रहण से एकत्रित करने वाली एससी/आरसी के खाता में कुल कर्ज 60% तक जुड़ जाएगा अथवा कुल संरक्षित कर्ज से अधिक हो जाएगा।

बी. लेनदेन का निपटान नकद आधार पर किया जाए।

सी. विक्रेता एससी/आरसी प्राप्त आय का उपयोग अंतर्निहित प्रतिभूति रसीद के मोचन के प्रयोजन के उद्देश्य के लिए करेगी।

डी. अन्य एससी/आरसी से कर्ज का अधिग्रहण में निम्न नहीं होगा;

I) बैंकों / वित्तीय संस्थाओं से अधिग्रहित आस्तियों के लिए एकत्रित करने वाली एससी /आरसी द्वारा जारी एसआरएस का मोचन की तारीख के विस्तार का परिणाम नहीं होगा।

II) संबंधित बैंकों / वित्तीय संस्थाओं से एकत्रित करने वाली एससी / आरसी द्वारा आस्तियों का अधिग्रहण सहित अन्य एससी / आरसी से अधिग्रहित आस्तियों जो अधिग्रहण की तारीख से आठ साल से पहले किया है, उन आस्तियों की वसूली की अवधि का विस्तार नहीं किया जाएगा।“

14 (vi) एससी/आरसी को अपने प्रायोजित बैंकों से द्विपक्षीय आधार पर गैर निष्पादित आस्तियों के अधिग्रहण की अनुमति नहीं है, चाहे जो भी तर्क हो। तथापि, वे अपने प्रायोजित बैंकों द्वारा गैर निष्पादित आस्तियों की नीलामी में भाग ले सकती है बशर्ते इसका आयोजन पारदर्शी तरीके से, आर्म लेंथ आधार पर किया जाए और बाजार घटकों द्वारा मूल्य का निर्धारण किया जाए।

15 (vii) आस्तियों का अधिग्रहण के बाद ट्रस्ट के निर्माण हेतु, स्टैंप शुल्क, पंजीकरण आदि हेतु उठाये गए खर्च, जिसे ट्रस्ट से वसूली किया जा सकता है, को आरक्षित रखा जाए, यदि खर्च को योजना अवधि [ 23 अप्रैल 2003 का भारिबैं अधिसूचना सं. गैबैंपवि.2/सीजीएम(सीएसएम)-2003 के अनुसार योजना अवधि अर्थात पुनर्निमाण के प्रयोजन हेतु अर्जित की गई अनर्जक आस्तियों (प्रवर्तक के बहियों में) की वसूली हेतु योजना बनाने के लिए अनुमति प्रदान की गई अधिकतम 12 महिने की है ] के 180 दिनों अथवा प्रतिभूति रसीदों (एसआर) के उतार (डाउनग्रेडिंग) [ जैसे निवल आस्ति मूल्य (एनएवी) की तुलना में एसआर के अंकित मूल्य का 50% कम] जो भी पहले हो, के अंदर प्राप्त नहीं होता है तो।

16(2) (i) प्रबंधन में परिवर्तन या का अधिग्रहण

प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी उक्त अधिनियम की धारा 9 (क) में विनिर्दिष्ट उपाय 21 अप्रैल 2010 के परिपत्र सं. गैबैंपवि/नीति प्रभा.(SC/RC)/सं.17/26.03.001/2009-10, समय-समय पर यथासंशोधित, में अंतर्विष्ट अनुदेशों के अनुसरण में प्रयोग में लाएगी ।

(ii) उधारकर्ता के कारोबार के एक भाग या संपूर्ण कारोबार की बिक्री या पट्टे पर देना

कोई भी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी तब तक उक्त अधिनियम की धारा 9 (ख) में विनिर्दिष्ट उपाय अमल में नहीं लाएगी, जब तक कि इस संबंध में बैंक द्वारा आवश्यक मार्गदर्शी सिद्धांत जारी नहीं कर दिये जाते हैं।

[(3) ऋणों की पुनर्व्यवस्था (रिशेड्यूलिंग) करना

(i) प्रत्येक एससी/आरसी उधार लेने वालों से प्राप्य ऋणों की पुनर्व्यवस्था करने के लिए व्यापक मापदंड निर्धारित करते हुए निदेशक मंडल द्वारा विधिवत अनुमोदित एक नीति बनायेगी;

(ii) सभी प्रस्ताव उधार लेने वाले के कारोबार की स्वीकार्य योजना, अनुमानित आय और नकदी प्रवाहों के अनुसार तथा उन के द्वारा समर्थित होने चाहिए;

(iii) प्रस्तावों से एससी/आरसी का आस्ति देयता प्रबंधन एवं निवेशकों को दिए गए वादे अधिक मात्रा में प्रभावित नहीं होना चाहिए ।

(iv) निदेशक मंडल, ऋणों की पुनर्व्यवस्था करने के प्रस्तावों पर निर्णय लेने के लिए किसी निदेशक और / या कंपनी के किसी अधिकारी को लेकर बनी एक समिति को अधिकार प्रत्यायोजित कर सकता है ।

(v) नीति से हट कर कोई निर्णय केवल निदेशक मंडल के अनुमोदन से ही लिया जाना चाहिए ।

(4) प्रतिभूति हित प्रवर्तन

17 (i) एससी/आरसी को प्रतिभूति हित का प्रवर्तन के प्रयोजन के लिए यह आवश्यक है कि रक्षित क्रेडिटरों से अबतक 75% की तुलना में उधारकर्ता के बाकाया राशि का कम से कम 60% से अधिक धारण के प्रति सहमति प्राप्त करें ।

(ii) उक्त अधिनियम की धारा 13 (4) के अंतर्गत जमानती आस्तियों की बिक्री की कार्रवाई करते समय, यदि उक्त बिक्री केवल सार्वजनिक नीलामी के रूप में की जा रही हो तो कोई एससी/आरसी उक्त जमानती आस्तियों को या तो अपने उपयोग के लिए या पुनर्बिक्री के लिए अर्जित कर सकती है ।

(5) उधारकर्ताओं द्वारा देय राशियों का निपटारा

ए. (i) उधारकर्ताओं से प्राप्य ऋणों के निपटारे हेतु व्यापक मापदंड निर्धारित करते हुए प्रत्येक एससी/आरसी निदेशक मंडल के विधिवत अनुमोदन से एक नीति बनाएगी;

(ii) उक्त नीति में अन्य बातों के साथ-साथ निर्दिष्ट तारीख,वसूली योग्य राशि के अभिकलन और लेखा के निपटारे का सूत्र, भुगतान की शर्ते और नियत की हुई राशि का भुगतान करने की उधारकर्ता की सामर्थ्य जैसे पहलुओं को शामिल किया जा सकता है ;

(iii) जब उक्त निपटारे में करार सम्मत संपूर्ण राशि के एकमुश्त भुगतान का विचार नहीं किया गया हो तो प्रस्ताव, कारोबार की स्वीकार्य योजना उधारकर्ता की अनुमानित आय और नकदी प्रवाहों के अनुसार तथा उससे समर्थित होने चाहिए ;

(iv) इन प्रस्तावों से प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी का आस्ति देयता प्रबंधन या निवेशकों को दिये गये आश्वासन अधिक प्रभावित नहीं होने चाहिए ;

(v) निदेशक मंडल, देय राशियों के निपटारे हेतु प्रस्तावों के संबंध में निर्णय लेने के लिए किसी निदेशक और / या कंपनी के किसी अधिकारी को लेकर बनी एक समिति को अधिकारों का प्रत्यायोजन कर सकता है ;

(vi) नीति से हट कर निर्णय केवल निदेशक मंडल के अनुमोदन से ही लिया जाना चाहिए|

18 बी. चूककर्ता कंपनी/उधारकर्ता के प्रोमोटर्स अथवा गारेंटर को एससी/आरसी से अपनी आस्तियों की वापसी खरीद की अनुमति है बशर्ते वे निम्नलिखित शर्तों को पूरा करते हैं:

I. इस प्रकार के निपटान निम्नलिखित अवस्थाओं में सहायक हो सकते है:

(i) कानूनी विवाद की लागत तथा इस संबंध में हुई समय ह्रास को न्यून अथवा समाप्त करना ;

(ii) प्रतिभूत आस्तियों के मूल्य ह्रास के नकरात्मक प्रभाव को अवरूद्ध करना जिससे एक बार आस्ति का परिचालन हीन बनते ही तेजी से मूल्य कम होता है

(iii) जहां वसूली/समाधान प्रक्रिया अनिश्चित लगता हो और;

(iv) जहां ऐसे निपटान पुनर्निमाण के उद्देश्य के लिए लाभदायक हो।

II. निम्नलिखित घटकों में फैक्टरिंग करने के बाद एससी/आरसी द्वारा आस्ति के मूल्य को निकाला जाए

  • प्रस्तावित निपटान का वर्तमान मूल्य (आस्ति का मूल्यांकन छ: माह से अधिक पुराना नहीं होना चाहिए) के साथ साथ वसूली की वैकल्पिक समाधान प्रक्रिया के निवल वर्तमान मूल्य के संबंध में उसमें निहित घटना क्रम को ध्यान में रख कर विचार किया जाए।

  • समय बीतने के कारण प्रतिभूत आस्तियों के मूल्य में संभावित सकारात्मक अथवा नकारात्मक परिवर्तन ।

  • सांविधिक बकाया, कर्मचारियों आदि के प्रति देनदारी के संग्रहण के कारण वसूली में ह्रास की संभावना।

  • अन्य घटको, कोई हो तो, जिससे वसूली प्रभावित होती सकती है।

III. एससी/आरसी अपने निदेशक मंडल से विधिवत मंजूरी से लेकर नीति बनाए, जिसमें समय समय पर अद्यतन किया गया एससी/आरसी (रिज़र्व बैंक) दिशानिदेश और निदेश, 2003 के खंड 7(5) में निहित के अलावा उक्त सभी तथ्य शामिल होने चाहिए।

19 (5-ए) कर्ज के किसी हिस्से को उधारकर्ता कंपनी के शेयरों के रूप में परिवर्तन

i. प्रत्येक एससी/आरसी को निदेशक मंडल से विधिवत अनुमोदित नीति बनाना होगा जिसमें कर्ज को उधारकर्ता कंपनी के शेयर में परिवर्तन के लिए बोर्ड का मापदण्ड निहित हो;

ii. वित्तीय आस्तियों के मामले में जिसमें पुनर्रचना के बाद काया पलट की संभावना बनती है किंतु सामान्यत: यह वृहद चूक और कर्ज का अन्सस्टेनबल स्तर के साथ होती है अत: यह आवश्यक है कि विस्तृत कारोबार योजना के मूल्यांकन तथा परिचालन की अनुमानित स्तर के आधार पर इसे ऋण की सस्टनेबल स्तर तक लाया जाए, जिसे कंपनी द्वारा सेवित किया जा सके। अवशिष्ट अन्सस्टेनबल कर्ज के हिस्से को इष्टम कर्ज इक्विटी संरचना के लिए इक्विटी में परिवर्तित किया जा सकता है। यद्यपि एससी/आरसी को उधारकर्ता कंपनी के कर्ज को शेयर में परिवर्तन के माध्यम से काया पलट करने का मह्त्वपूर्ण अधिकार अथवा अनुमति है किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह उधारकर्ता कंपनी को परिचालित कर रहे है। पुनर्रचना के तहत कंपनी का पोस्ट परिवर्तित इक्विटी एससी/आरसी के शेयर धारण के 26% से अधिक नहीं होना चाहिए।

(6) वसूली की योजना

(i) प्रत्येक एससी/आरसी को योजना अवधि के अंदर आस्तियों की वसूली के लिए एक योजना तैयार करनी चाहिए, जिसमें निम्नलिखित एक या अधिक उपाय किये जा सकते हैं;

(ए) उधारकर्ता द्वारा देय ऋणों के भुगतान की पुनर्व्यवस्था करना;

(बी) अधिनियम के उपबंधों के अनुसार प्रतिभूति में हित का प्रवर्तन (एनफोर्समेंट)

(सी) उधारकर्ता द्वारा देय राशियों का निपटारा

(डी) यहां ऊपर पैराग्राफ 7(2) में उल्लिखित अनुसार इस संबंध में बैंक द्वारा आवश्यक मार्गदर्शी सिद्धांत बनाये जाने के बाद उधारकर्ता के कारोबार के संपूर्ण या उसके एक भाग के प्रबंधन में परिवर्तन या अधिग्रहण या बिक्री या पट्टे का अधिग्रहण ।

20 (ई) कर्ज के किसी हिस्से को उधारकर्ता कंपनी के शेयरों के रूप में परिवर्तन

21 (ii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी वित्तीय आस्तियों(परिसंपत्तियों) की वसूली की योजना तैयार करेगी जिसके अंतर्गत वसूली अवधि संबंधित वित्तीय आस्तियों के अर्जन की तारीख से किसी भी मामले में पांच वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।

(iii) एससी/आरसी का निदेशक बोर्ड वित्तीय आस्तियों की वसूली की अवधि को इस प्रकार बढ़ा सकता है कि वसूली अवधि आस्ति के अर्जन की तारीख से अधिकतम आठ वर्षों से अधिक न हो।

(iv) एससी/आरसी का निदेशक बोर्ड प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा वित्तीय आस्तियों की वसूली के लिए उल्लिखित खंड (ii) या (iii) में वर्णित अवधि, जैसा भी मामला हो, में वसूली के लिए उठाए जाने वाले कदमों/उपायों को उल्लेख करेगा।

(v) अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेता विस्तारित अवधि की समाप्ति पर ही सरफायसी अधिनियम की धारा 7(3) के उपबंधों का अवलंबन लेने के हकदार होंगे, बशर्ते उक्त खंड (iii) के अंतर्गत वसूली की समय-सीमा में विस्तार किया गया हो।

8. प्रतिभूतिकरण

22 [(1) प्रतिभूति रसीदें जारी करना- एससी/आरसी, उक्त अधिनियम की धारा 7(1) और (2) के उपबंधों को, विशेष रूप से इस प्रयोजन के लिए स्थापित किए गये एक या अधिक न्यासों के माध्यम से लागू करेगी। यदि आस्तियों को सीधे न्यास/सों की बहियों में अर्जित नहीं किया गया है, तो एससी/आरसी को उपर्युक्त न्यासों को उसी मूल्य पर हस्तांतरित करेगी, जिस पर वे प्रवर्तक (ऑरीजिनेटर) से अर्जित की गई थीं:-]

i. उक्त न्यास केवल विनिर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं को ही प्रतिभूति रसीदें जारी करेंगे; और उक्त वित्तीय आस्तियों को इन विनिर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं के लाभ के लिए रखेंगे और उनका प्रबंध करेंगे ।

ii. इन न्यासों की न्यासधारिता उक्त प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी के पास रहेगी;

iii. प्रतिभूति रसीदें जारी करने वाली कोई एससी/आरसी उक्त रसीदें जारी करने से पहले उक्त ट्रस्ट द्वारा बनायी गयी प्रत्येक योजना के अंतर्गत प्रतिभूति रसीदें जारी करने का प्रावधान करते हुए निदेशक मंडल के विधिवत् अनुमोदन से एक नीति बनायेगी;

iv. उपर्युक्त उप पैराग्राफ (iii) में संदर्भित नीति में यह प्रावधान किया जायेगा कि जारी की गयी प्रतिभूति रसीदें केवल अन्य विनिर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं को ही हस्तांतरणीय / समनुदेशन योग्य होंगी ।

(2) प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुर्नरचना कंपनी द्वारा ट्रस्ट फ्लोट द्वारा जारी प्रतिभूति रसीद में निवेश

23एससी/ आरसी, धन हस्तांतरण से,प्रत्येक योजना के तहत जारी किए गए प्रत्येक वर्ग के एसआर का निरंतर आधार पर न्यूनतम 15% निवेश योजना के तहत उनके द्वारा जारी किए गए सभी एसआर का मोचन होने तक करेंगे।

(3) पुनर्निमाण वित्त समर्थन – निवेशकों द्वारा भागीदारी

24 निम्नलिखित शर्तों के अधीन एससी/आरसी को क्यूआईबी द्वारा संबंधित योजना के तहत अर्जित की गई वित्तीय आस्ति पुनर्निमाण योजना के अंतर्गत जुटाई गई निधि के भाग का उपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है:

i. रू 500 करोड़ से अधिक आस्ति अर्जित करने वाली एससी/आरसी, ऐसी अर्जित निधि में से वित्तीय आस्ति पुनर्निमाण हेतु उस योजना के तहत निधि को फ्लोट कर सकती है जिसकी परिकल्पना सरफेसी अधिनियम, 2002 की धारा 7(2) के अनुसार क्यूआईबी के अर्जित निधि के भाग के उपयोग के रूप में की गई है।

ii. पुनर्निमाण के उद्देश्य से उपयोग में लाई जाने वाली निधि का विस्तार, सरफेसी अधिनियम, 2002 की धारा 7(2) के अनुसार योजना के तहत जुटाई गई राशि का 25% से अधिक नहीं होना चाहिए। पुनर्निमाण के उपयोग के उद्देश्य से अर्जित की गई निधि (25% की उच्चतम सीमा में) को योजना के प्रारंभ में बताया जाना चाहिए। इसके बाद पुनर्निमाण उद्देश्य से उपयोग में लाई जाने वाली निधि का लेखांकन अलग से किया जाना चाहिए।

iii. प्रत्येक एससी/आरसी को ऐसी योजनाओं के लिए क्यूआईबी से अर्जित निधि का उपयोग हेतु अपने निदेशक मंडल से विधिवत मंजूरी के साथ नीति बनाना चाहिए जिसमें विस्तृत मानदंड निहित हो।

(4) प्रकटीकरण

प्रतिभूति रसीदें जारी करने की इच्छुक प्रत्येक एससी/आरसी अनुबंध में उल्लिखित अनुसार प्रकटीकरण करेगी ।

(5) 25अर्हताप्राप्त संस्थागत क्रेताको सरफेसी अधिनियम, 2002 के तहत बैंक से प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निमाण कंपनी के रूप में पंजीजृत एससी/आरसी द्वारा जारी प्रतिभूति रसीद में अपने निवेश का मूल्य जानने के लिए हम सूचित करते है कि नियमित अंतराल पर वह प्रतिभूति रसीद के निवल आस्ति मूल्य की घोषणा करते रहे।

9. पूंजी पर्याप्तता की अपेक्षा

(1) प्रत्येक एससी/आरसी निरंतर आधार पर पूंजी पर्याप्तता अनुपात कायम रखेगी जो उसकी कुल जोखिम भारित आस्तियों के 15% से कम नहीं होगा । जोखिम भारित आस्तियों की गणना तुलनपत्र की और तुलनपत्र के बाह्य मदों के सकल भार के रूप में यहां नीचे दिये ब्यौरे के अनुसार की जायेगी

भारित जोखिम आस्तियां

तुलनपत्र की मदें

जोखिम भार का प्रतिशत

(ए) अनुसूचित वाणिज्य बैंकों/नाबार्ड/सिडबी में नकदी और जमाराशि

0

(बी) सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश

0

(सी) अन्य प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निमाण कंपनी के शेयर में

0

(डी) अन्य सभी आस्तियां

100

तुलनपत्र बाह्य मदें

 

सभी आकस्मिक देयताएं

50

10. निधियों का अभिनियोजन (डेप्ल्वायमेंट)

(i) कोई एससी/आरसी प्रवर्तक के रूप में और कोई संयुक्त उद्यम(वेंचर) स्थापित करने के प्रयोजनार्थ आस्ति पुनर्निर्माण के प्रयोजन हेतु बनायी गयी किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की इक्विटी शेयर पूंजी में निवेश कर सकती है;

26[ii. कोई एससी/आरसी अपने पास उपलब्ध अधिक धनराशियां इस संबंध में उसके निदेशक मंडल द्वारा निर्धारित की गयी नीति के अनुसार केवल सरकारी प्रतिभूतियों और अनुसूचित वाणिज्य बैंकों में जमाराशियों, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक या ऐसी ही अन्य संस्था जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे, की जमाराशियों में भी नियोजित कर सकती हैं/ के रूप में रख सकती है;]

27 [iii. कोई प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी भूमि या भवन में निवेश नहीं करेगी,-

परंतु शर्त यह है कि यह प्रतिबंध एससी/आरसी द्वारा अपने उपयोग के लिए भूमि या भवन में निवेश की उस सीमा तक लागू नहीं होंगे जो उसकी स्वाधिकृत निधि के 10% से अनधिक हो,

बशर्ते यह भी कि एससी/आरसी द्वारा वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण के अपने सामान्य कारोबार के दौरान अपने दावों की पूर्ति के लिए, सरफायसी अधिनियम के उपबंधों के अनुसार, अर्जित भूमि या भवन पर लागू नहीं होगा।"

बशर्ते यह भी कि किसी एससी/आरसी द्वारा वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण के अपने सामान्य कारोबार के संबंध में प्रतिभूति हितों को लागू करने के दौरान अर्जित भूमि और/ या भवन ऐसे अर्जन की तारीख से पांच वर्ष या बैंक द्वारा प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की प्राप्य राशियों की वसूली हेतु दी गई विस्तारित अवधि में बेच दी जाएगी।]

11. लेखा वर्ष

प्रत्येक एससी/आरसी प्रत्येक वर्ष 31 मार्च के अनुसार अपना तुलनपत्र और हानि-लाभ खाता तैयार करेगी । 26एससी/आरसी को सूचित किया जाता है कि वे अपने तुलन पत्र में एक वर्ष के अंदर की बकाया सभी देयताओं को “वर्तमान देयता” के रूप में वर्गीकृत करें तथा नकद और बैंक के समक्ष जमाशेष सहित एक वर्ष के अंदर परिपक्व होने वाली आस्ति को ”वर्तामन आस्ति” के रूप में वर्गीकृत करें। एसआर में निवेश करने पर पूंजी और आरक्षित को देयता की तरफ देयता माना जाए और बैंक के समक्ष सावधि जमाराशि को आस्ति के तरफ सावधि(फिक्स) आस्ति माना जाए।

12. आस्ति वर्गीकरण

(1) वर्गीकरण

(i) प्रत्येक एससी/आरसी सुपरिभाषित ऋण कमजोरियों की मात्रा और वसूली के लिए प्रासंगिक जमानत पर निर्भर रहने की सीमा को ध्यान में रखते हुए 14[अपनी स्वयं की बहियों में धारित] आस्तियों को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत करेगी, अर्थात्

(ए) मानक आस्तियां
(बी) अनर्जक आस्तियां

(ii) अनर्जक आस्तियों को आगे निम्नलिखित के रूप में वर्गीकृत किया जायेगा

(ए) 'अवमानक आस्ति' वह आस्ति है जिसे अनर्जक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किये जाने की तारीख से 12 महीने से अधिक न हुआ हो;

(बी) 'संदिग्ध आस्ति' वह आस्ति है जिसे अवमानक आस्ति बने 12 महीने से अधिक हुआ हो;

28 [(सी) "हानिगत आस्ति" यदि (ए) परिसंपत्ति 36 महीने से अधिक अवधि के लिए अनर्जक रहती है, (बी) प्रतिभूति के मूल्य में गिरावट आने के कारण या प्रतिभूति के उपलब्ध न होने के कारण उसकी वसूली न होने के वास्तविक खतरे से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई हो; (सी) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी ने या उसके आंतरिक या वाह्य लेखापरीक्षकों द्वारा आस्ति को "हानिगत आस्ति" के रूप में पहचाना गया हो; या (डी) प्रतिभूति रसीद सहित वित्तीय आस्ति पैराग्राफ 7(6)(ii) या 7(6)(iii) के अंतर्गत प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा निर्मित वसूली योजना के अंतर्गत विनिर्दिष्ट कुल समय-सीमा में वसूली न जा सकी हो और प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी या उनके ट्रस्ट के पास लगातार धारण रही हो"।]

(iii) प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा आस्ति पुनर्निर्माण के प्रयोजन हेतु अर्जित की गयी आस्तियों को योजना अवधि के दौरान, यदि कोई हो, मानक आस्तियों के रूप में माना जा सकता है।

(2) आस्ति पुनर्निर्माण पुनः सौदाकृत /पुनर्व्यवस्थित(रिशेड्यूल्ड) आस्तियां

(i) जब किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा मानक आस्ति से संबंधित ब्याज और/या मूलधन के संबंध में करार की शर्तों का फिर से सौदा किया गया हो या उन्हें पुनर्व्यवस्थित किया गया हो (योजना अवधि के दौरान से अलग) तो संबंधित आस्ति को फिर से सौदा किये जाने / पुनर्व्यवस्थित किये जाने की तारीख से मानक आस्ति के रूप में वर्गीकृत किया जायेगा या जैसी भी स्थिति हो उसे संदिग्ध आस्ति के रूप में बने रहने दिया जायेगा ।

(i) उक्त आस्ति को पुनः सौदा की हुई /पुनर्व्यवस्थित शर्तों के अनुसार 12 महीने की अवधि के लिए संतोषजनक कार्यनिष्पादन के बाद ही मानक आस्ति के रूप में उन्नत किया जा सकता है ।

(3) प्रावधानीकरण की अपेक्षाएं

प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी अनर्जक आस्तियों के लिए निम्नानुसार प्रावधान करेगी

आस्ति की श्रेणी

अपेक्षित प्रावधान

अवमानक आस्तियां

बकाया राशि पर 10% का सामान्य प्रावधान

संदिग्ध आस्तियां

(i) उस सीमा तक 100% प्रावधान जिसके लिए आस्ति, प्रतिभूति के प्राक्कलित वसूली योग्य मूल्य से आवरित नहीं होती है
(ii) उपर्युक्त मद (i) के अलावा, शेष बकाया राशि का 50%

हानिगत आस्तियां

संपूर्ण आस्ति को बट्टे खाते में डाला जायेगा। (यदि किसी कारण से उक्त आस्ति को बहियों में रखा जाता है तो उसके लिए 100% का प्रावधान किया जायेगा)

13. निवेश

29ए) एसआर में निवेश की प्रकृति पर विचार करते हुए जहां अंतर्निहित नकद प्रवाह अर्नजक आस्तियों के उगाही पर निर्भर करता है, इसे बिक्री हेतु उपलब्ध के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। अत: एसआर में निवेश को श्रेणी के तहत निवेश के निवल मूल्य ह्रास /निवल मूल्य वृद्धि तक पहुंचाने के प्रयोजन से समेकित किया जा सकता है। यदि कोई निवल मूल्यह्रास है तो उसे उपलब्ध कराया जाए। यदि कोई निवल मूल्य वृद्धि है तो उसे नज़रअंदाज किया जाए।

बी) सभी निवेशों का मूल्य, लागत या वसूली योग्य मूल्य में से जो भी कम हो उस पर किया जायेगा। जहां पर बाज़ार की दरें उपलब्ध हों वहां बाज़ार मूल्य को वसूली योग्य मूल्य माना जायेगा और ऐसी स्थिति में जब बाज़ार की दरें उपलब्ध नहीं हो तो वसूली योग्य मूल्य उचित मूल्य (फेयर वेल्यू) होगा। परंतु अन्य पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी में निवेशों को दीर्घकालीन निवेश माना जायेगा और उनका मूल्यन भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी किये गये लेखा मानकों और मार्गदर्शी नोटों के अनुसार किया जायेगा ।

14. आय-निर्धारण

30(i) प्रतिभूति रसीदों के संपूर्ण मूलधन राशि का पूर्ण मोचन के बाद ही प्रतिफल (Yield) का निर्धारण किया जाना चाहिए। (यह 23 अप्रैल 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र) कंपरि.सं.38/26.03.001/2013-14 की तारीख से प्रारंभ होगा।)

(ii) प्रतिभूति रसीदों का पूर्ण मोचन के बाद ही अपसाइड (Upside) आय का निर्धारण किया जाना चाहिए। (यह 23 अप्रैल 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र) कंपरि.सं.38/26.03.001/2013-14 की तारीख से प्रारंभ होगा।)

31(iii) प्रबंधन फीस क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (सीआरए) द्वारा निर्दिष्ट नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) के प्रतिशत के रूप में निर्दिष्ट एनएवी की सीमा के निचले अंत में गणना और वसूल किया जाना चाहिए हालांकि इसे अंतर्निहित परिसंपत्ति के अधिग्रहण के मूल्य से अधिक नहीं होना चाहिए। हालांकि, प्रबंधन फीस, एसआर का एनएवी की उपलब्धता से पहले एसआर के वास्तविक बकाया मूल्य के प्रतिशत के रूप में गिना जाना चाहिए।“

उपचय आधार पर प्रबंधन शुल्क का निर्धारण किया जाए। योजना अवधि के दौरान निर्धारित प्रबंधन शुल्क को योजना अवधि की समाप्ति की तारीख से 180 दिनों के अंदर आवश्यक रूप से प्राप्त किया जाना चाहिए। योजना अवधि के बाद निर्धारित प्रबंधन शुल्क को निर्धारित की जाने की तारीख से 180 दिनों के अंदर प्राप्त किया जाना चाहिए। इसके बाद अप्राप्त प्रबंधन शुल्क को आरक्षित किया जाए। इसके अतिरिक्त यदि प्राप्ति हेतु निर्धारित समय से पूर्व कोई अप्राप्त प्रबंधन शुल्क आरक्षित होगा तो वह एसआर के एनएवी के अंकित मूल्य के 50% से नीचे गिर जाएगा। तथापि, एससी/आरसी 31 मार्च 2014 के पूर्व की प्राप्य राशियां उपार्जित अप्राप्त प्रबंध शुल्क को दो साल की अवधि में चार छमाही किस्त में एक चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की अनुमति है, वर्ष 2014-15 और 2015-16 के संबंध में ऐसी प्राप्य राशियां कंपनी के तुलन पत्र में प्रकटीकरण के अधीन होंगे।

(iv) आय-निर्धारण मान्यता प्राप्त लेखांकन सिद्धांतों पर आधारित होगा ।

(v) भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी किये गये सभी लेखा मानकों और मार्गदर्शी नोटों का, वहां तक पालन किया जायेगा, जहां तक वे यहां निहित/दिए गए इन मार्गदर्शी सिद्धांतों और निदेशों से असंगत नहीं हों;

(vi) सभी अनर्जक आस्तियों के संबंध में ब्याज और किसी अन्य प्रभार को तभी आय खाते में लिया जायेगा जब वे वास्तव में वसूल हो गये हों। किसी प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा आस्ति के अनर्जक होने से पहले वसूलनीय मानी गयी किन्तु अप्राप्त रही ऐसी आय को अनिर्धारित/अमान्य कर दिया जायेगा ।

15. तुलनपत्र में प्रकटीकरण

(1) कंपनी अधिनियम, 1956 की अनुसूची VI की अपेक्षाओं के अतिरिक्त प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी निम्नलिखित अनुसूचियां तैयार करेगी और उन्हें अपने-अपने तुलनपत्र के साथ अनुबंध के रूप में लगायेंगी

(i) उन बैंकों /वित्तीय संस्थाओं के नाम और पते जिनसे वित्तीय आस्तियां अर्जित की गयी हैं और वे मूल्य जिस पर ऐसी आस्तियां प्रत्येक ऐसे बैंक / वित्तीय संस्था से अर्जित किये गये थे;

(ii) विभिन्न वित्तीय आस्तियों का उद्योगवार और प्रवर्तकवार फैलाव (फैलाव कुल आस्तियों के प्रतिशत के रूप में इंगित किया जाना है);

(iii) भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी किये गये लेखा मानकों और मार्गदर्शी नोटों के अनुसार संबंधित पक्षों का ब्यौरा और उनको देय और उनसे प्राप्य राशियां; और

(iv) चार्ट में स्पष्ट रूप से मानक से अनर्जक के रूप में वित्तीय आस्तियों के अंतरण को दर्शाते हुए एक विवरण ।

31 [(v) वित्तीय वर्ष के दौरान अपनी बहियों या ट्रस्ट की बहियों में अर्जित वित्तीय आस्तियों का मूल्य;

(vi) वित्तीय वर्ष के दौरान वित्तीय आस्तियों से हुई वसूली का मूल्य;

(vii) वित्तीय वर्ष के अंत में वसूली के लिए शेष वित्तीय आस्तियों का मूल्य;

(viii) वित्तीय वर्ष के दौरान अंशत: अदा की गई प्रतिभूति रसीदों तथा पूर्णत: अदा हुई प्रतिभूति रसीदों का मूल्य;

(ix) वित्तीय वर्ष के अंत में अदा होने के लिए लंबित प्रतिभूति रसीदों का मूल्य;

(x) पैराग्राफ 7(6)(ii) या 7(6)(iii) के अंतर्गत एससी/आरसी द्वारा वित्तीय आस्तियों की वसूली के लिए निर्मित नीति के अंतर्गत वसूली न हो पाने के कारण जिन प्रतिभूति रसीदों की अदायगी नहीं हो सकी, उनका मूल्य;

(xi) परिसंपत्तियों के पुनर्निर्माण के (वर्ष-वार) सामान्य कारोबार के अंतर्गत अर्जित भूमि एवं/या भवन का मूल्य।]

(xii) 32 संपत्ति के मूल्यांकन का आधार अगर संपत्ति का अधिग्रहण मूल्य बीवी से अधिक है।

(xiii) पिछले साल के अंत के रूप में मूल्यांकन के 20% से अधिक की छूट पर वर्ष के दौरान निपटाए परिसंपत्ति (या तो बट्टे खाते डालकर या वसूली से) के विवरण और उसके कारण।

(xiv) परिसंपत्ति का ब्यौरा जहां एसआर के मूल्य मे अधिग्रहण मूल्य से 20% से अधिक गिरावट आई है।"

(2) (i) वित्तीय विवरणों के तैयार करने और उनके प्रस्तुत करने में अपनायी गयी लेखांकन की नीतियां बैंक द्वारा निर्धारित किये गये लागू विवेकसम्मत मानदंडों के अनुरूप होंगी ।

(ii) जहां पर उक्त लेखांकन नीतियों में से कोई नीति इन निदेशों के अनुरूप न हो तो इन निदेशों से हटने के विवरणों का उसके कारणों सहित और उनके कारण होने वाले वित्तीय प्रभाव का ब्योरा दिया जायेगा । जब ऐसा कोई प्रभाव सुनिश्चित नहीं किया जा सकता हो तो उसके कारणों का उल्लेख करते हुए यह तथ्य उस रूप में प्रकट किया जाना चाहिए ।

(iii) तुलनपत्र या लाभ और हानि लेखे में किसी मद के अनुचित व्यवहार को न तो प्रयोग में लायी गयी लेखांकन नीतियों के प्रकटीकरण से और न तुलनपत्र और लाभ और हानि लेखेगत नोटों में प्रकटीकरण से परिशोधित हो गया माना जा सकता है ।

16. आंतरिक लेखापरीक्षा

प्रत्येक एससी/आरसी अपने द्वारा अपनायी गयी आस्ति अभिग्रहण क्रियाविधियों और आस्ति पुनर्निर्माण के उपायों तथा उससे संबंधित मामलों की आवधिक रूप से जांच और समीक्षा के लिए प्रावधान करते हुए एक कारगर आंतरिक नियंत्रण प्रणाली स्थापित करेगी ।

17. छूट

बैंक को यदि यह आवश्यक प्रतीत होता है कि एससी/आरसी को किसी परेशानी से बचाने के लिए अथवा किसी उचित और पर्याप्त कारण के लिए, सभी प्रतिभूतिकरण कंपनियों या पुनर्निर्माण कंपनियों या किसी विशेष प्रतिभूतिकरण कंपनी या एससी/आरसी या पुनर्निर्माण कंपनियों के किसी वर्ग को, ऐसी शर्तों के अधीन जिन्हें वह लगाना चाहे या तो सामान्य रूप से या किसी विशेष अवधि के लिए इन मार्गदर्शी सिद्धांतों और निदेशों के सभी अथवा किसी प्रावधान से छूट प्रदान कर सकता है।

33 18.ए. सरफेसी अधिनियम की धारा 3(4) के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकृत प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्रचना कंपनी द्वारा ऑन लाइन तिमाही विवरणी की प्रस्तुति

34रिपोर्टिंग प्रणाली को व्यवस्थित करने तथा आंकड़े प्राप्त करने की वर्तमान पद्धति को बेहतर करने के लिए, यह निर्णय लिया गया है कि इन विवरणियों को ऑन लाइन भरने की सुविधा दी जाए तथा इस कार्य के लिए, बैंक ने विवणियों का संयुक्त प्रारूप यथा एससीआर 1 और एससीआरसी 2 बैंक के वेबसाइट यथा https://cosmos.rbi.org.in पर होस्ट किया है। एससी/आरसी को सूचित किया जाता है कि 31 मार्च 2014 समाप्त तिमाही तथा उससे आगे के लिए उक्त विवरणियां ऑन लाइन फाइल करें।

19. लेखा परीक्षित तुलन पत्र की प्रस्तुति।

35सभी एससी/आरसी को सूचित किया जाता है कि प्रत्येक वर्ष वार्षिक आम बैठक के एक माह के अंदर निदेश रिपोर्ट/लेखा परीक्षा रिपोर्ट सहित लेखा परीक्षित तुलन पत्र की प्रतिलिपि प्रस्तुत की जाए, जिसमें लेखा परीक्षित लेखा शामिल किया गया हो। इसका प्रारंभ 31 मार्च 2008 के तुलन पत्र से किया जाए।

3620. इरादतन चूककर्ता:-

(1) प्रत्येक एससी/आरसी को न्यूनतम एक क्रेडिट इंफर्मेशन कंपनी (सीआईसी) का सदस्य बनना होगा जिसने प्रत्यय विषयक जानकारी कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 की धारा 5 के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त किया हो।

(2) एससी/आरसी समय समय पर उस सीआईसी को उधारकर्ताओं का सटिक डाटा/इतिहास उपलब्ध करायेंगी जिसकी वह सदस्त है।

(3) एससी/आरसी प्रत्येक वर्ष के मार्च, जून,सितम्बर और दिसम्बर की समाप्ति पर इरादतन चूककर्ता की सूची सीआईसी को उपलब्ध करायेंगी जिसकी वह सदस्य है।

(4) सभी एससी/आरसी को इरादतन चूककर्ता के संबंध दायर मुकदमे की सूची अपने वेबसाइट पर प्रदर्शित करना होगा ।

21. वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एंव प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002 के तहत केन्द्रीय इलेक्ट्रानिक रजिस्ट्री की स्थापना

37वित्त मंत्री का वर्ष 2011-12 के बजट भाषण में घोषणा के अनुवर्तन में, भारत सरकार, वित्त मंत्रालय ने 31 मार्च 2011 के यथा अधिसूचना संख्या एफ.नं: 56/05/2007-बीओ-II द्वारा अधिसूचित केन्द्रीय रजिस्ट्री को स्थापित कर दिया है. केन्द्रीय रजिस्ट्री के गठन का उद्देश्य, विभिन्न बैंकों से एक ही अचल संपत्ति पर एक से अधिक ऋण लिये जाने के ऋण मामले में होने वाली धोखा धडी को रोकना है.

भारतीय केन्द्रीय आस्ति प्रतिभूतिकरण पुनर्गठन और प्रतिभूति हित रजिस्ट्री (CERSAI), कंपनी अधिनियम 1956 का धारा 25 के अंतर्गत एक लाइसेंसशुदा सरकारी कंपनी है जिसका गठन वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम 2002 (SARFAESI ACT) के प्रावधानों के तहत केन्द्रीय रजिस्ट्री के परिचालन और रखरखाव के उद्देश्य से किया गया है |

3822. संयुक्त ऋणदाता फोरम’ की सदस्यता (जेएलएफ़)

(1) 'अर्थव्यवस्था में व्यथित संपत्ति के पुनरोद्धार के लिए फ्रेमवर्क - संयुक्त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ़) और सुधारात्मक कार्रवाई योजना (कैप)पर निर्देश', पर परिपत्र डीबीओडी.बीपी.बीसी.सं.97/21.04.132/2013-14 दिनांक 26 फ़रवरी 2014 के संदर्भ एससी/ आरसी को जेएलएफ़ का सदस्य बनना चाहिए और इस तरह की दबाव में संपत्ति के संदर्भ में जेएलएफ़ को प्रक्रिया के एक हिस्से के रूप में शामिल होना चाहिए।

(2) पुनर्निर्माण प्रस्ताव का अनुमोदन/ बीआईएफआर/सीडीआर/जेएलएफ द्वारा मंजूरी के प्रयोजन के लिए, एससी/आरसी को अन्य सुरक्षित उधारदाताओं के साथ समाधान अवधि के सह-टर्मिनस को स्वीकार करने की अनुमति दी जाएगी।

(3) ऐसे सभी मामलों में, इन आस्तियों के बदले रखे गए प्रतिभूति रसीदों (एसआर) की मोचन अवधि को बीआईएफआर/सीडीआर/जेएलएफ द्वारा मंजूर समाधान अवधि के अनुरूप विस्तारित किया जा सकता है; मामलेवार भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति के साथ, बशर्ते स्वतंत्र क्रेडिट रेटिंग ऐजेंसी द्वारा इन एसआर को लगातार सकारात्मक रेटिंग दिया गया हो।

(4) निदेश के पैराग्राफ 7 के उप पैराग्राफ (6) का खंड (ii) तथा (iii) में निर्धारित वसूली की अवधि उक्त उप पैराग्राफ (2) और (3) के प्रयोजन के लिए लागू नहीं होगा।

3923. भारतीय बैंक संघ (आईबीए) को रिपोर्टिंग – एससी/ आरसी को आईबीए को अनुशासनहीन सनदी लेखाकार, अधिवक्ता और मूल्यांकन करने वाले का ब्यौरा (जो अपने पेशेवर सेवाएं प्रदान करने में गंभीर अनियमितता कर रहे हैं) धोखाधड़ी में शामिल थर्ड पार्टी संस्थाओं की जानकारी आईबीए डेटाबेस में शामिल करने के लिए रिपोर्ट करना चाहिए। हालांकि, एससी/ आरसी को सावधानी से सुनिश्चित करना है कि आईबीए द्वारा जारी प्रक्रियात्मक दिशा निर्देशों (Circ.No.RB-II/Fr./Gen/3/1331 दिनांक 27 अगस्त 2009) का पालन हो और आईबीए को रिपोर्टिंग से पहले अपनी कार्रवाई का औचित्य साबित करने के लिए पार्टियो को उनकी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए एक निष्पक्ष अवसर देना चाहिए । यदि कोई जवाब / संतोषजनक स्पष्टीकरण एक महीने के भीतर उन लोगों से प्राप्त नहीं होता है तो एससी/ आरसी आईबीए को उनके नाम रिपोर्ट कर सकते हैं। एससी/ आरसी भविष्य में इस तरह की पार्टियों को कोई काम आवंटित करने से पहले इस पहलू पर विचार करना चाहिए।

4024. शेयरों के अंतरण द्वारा प्रबंधन में किसी प्रकार का पर्याप्त परिवर्तन हेतु बैंक से पूर्वानुमति लेना ”

अधिनियम की धारा 3 के तहत जारी पंजीकरण प्रमाण पत्र में निर्धारित नियम और शर्तों में निहित विपरित तथ्यों के बावजुद भी, एससी/आरसी को अंतरण हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक से पूर्वानुमति लेनी होगी जिसके परिणामस्वरूप केवल निम्नलिखित मामलों के प्रबंधन में पर्याप्त परिवर्तन होता है:

i. शेयर अंतरण का ऐसा प्रकार जिसके द्वारा अंतरिती प्रायोजन बन जाता है।
ii. शेयर अंतरण का ऐसा प्रकार जिसके द्वारा अंतरणकर्ता का प्रायोजक समाप्त हो जाता है।
iii. पंजीकरण प्रमाण पत्र प्रारंभ होने की तारीख से पांच वर्षों की अवधि के दौरान प्रायोजक द्वारा एससी/आरसी के कुल प्रदत्त शेयर पूंजी का द्स प्रतिशत अथवा उससे अधिक का समग्र अंतरण।

स्पष्टीकरण :- इस क्लॉज के प्रयोजनार्थ, एससी/आरसी द्वार कुल प्रदत्त शेयर पूंजी के दस प्रतिशत से अधिक अंतरण को अंतरण माना जाएगा यदि प्रायोजक द्वारा किया गया सभी अंतरण उस अंतरण के पूर्व किया गया हो और जिसमें एससी/आरसी के कुल प्रदत्त शेयर पूंजी का दस प्रतिशत तथा ससे अधिक का अंतरण शामिल हो।


अनुबंध

(1) प्रस्ताव दस्तावेज़ में प्रकटीकरण

ए. प्रतिभूति रसीदें जारी करने वाले से संबंधित

i. पंजीकृत कार्यालय का नाम, स्थान, निगमन की तारीख, एससी/आरसी के कारोबार आरंभ करने की तारीख;

ii. प्रवर्तकों, शेयरधारकों के विवरण और एससी/आरसी के निदेशक मंडल में, उनकी योग्यताओं और अनुभव के साथ निदेशकों की संक्षिप्त रूपरेखा

iii. पिछले तीन वर्षों की अथवा कंपनी का कारोबार आरंभ होने की तारीख में से, जो भी बाद में हो, कंपनी की वित्तीय सूचना का सारांश

iv. पिछले तीन वर्षों अथवा कारोबार आरंभ करने की तारीख से, जो भी बाद में हुआ हो, प्रतिभूतिकरण/आस्ति पुनर्निर्माण के यदि कोई कार्यकलाप किये गये हों तो उनका ब्योरा ।

v. इस योजना के तहत बाहर से धन का अधिग्रहण वित्तीय आस्तियों के पुनर्गठन के लिए जुटाई गई रकम का हिस्सा का उपयोग की परिकल्पना की गई है। यदि हां, तो पुनर्गठन प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाएगा जो जुटाई गई राशि का प्रतिशत है।

बी. प्रस्ताव की शर्तें

i. प्रस्ताव के उद्देश्य

ii. लिखत का विवरण, इस आशय के एक प्राक्कथन के साथ कि प्रतिभूति रसीदों का हस्तांतरण निर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं तक ही सीमित है, उसके स्वरूप, मूल्यवर्ग, निर्गम मूल्य आदि से संबंधित ब्योरे देते हुए;

iii. आस्तियों के प्रबंधन के लिए की गयी व्यवस्थाएं और प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा ली जाने वाली प्रबंध शुल्क की सीमा;

iv. ब्याज दर /संभावित प्रतिफल;

v. मूलधन /ब्याज के भुगतान की शर्तें, अवधिपूर्णता/मोचन की तारीख;

vi. शोधन तथा प्रशासन व्यवस्था;

vii. साख निर्धारण का ब्योरा, यदि कोई हो, और उक्त निर्धारण के लिए औचित्य का सारांश;

viii. उन आस्तियों का विवरण जिनका प्रतिभूतिकरण किया जाना है;

ix. आस्ति समूह का भौगोलिक वितरण;

x. आस्ति समूह की अवशिष्ट अवधिपूर्णता, ब्याज दरें, बकाया मूलधन;

xi. अंतर्निहित प्रतिभूति का स्वरूप और मूल्य, संभावित नकदी प्रवाह, उनकी मात्रा और समय, साख वृद्धि के उपाय

xii. आस्तियों के अभिग्रहण की नीति और अपनायी गयी मूल्यन की पद्धति

xiii. बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से आस्तियों के अभिग्रहण की शर्तें

xiv. प्रवर्तकों (ओरिजिनेटर) के पास कार्यनिष्पादन के अभिलेख का ब्यौरा

xv. आस्ति समूह में आस्तियों को बदलने की शर्तें

xvi. जोखिम फैक्टरों का विवरण, विशेष रूप से भविष्य के नकदी प्रवाहों से संबंधित और उक्त जोखिमों को कम करने के लिए किये गये उपाय

xvii. चूक होने की स्थिति में आस्ति पुनर्निर्माण उपायों को लागू करने के लिए की गयी व्यवस्थाएं, यदि कोई हों

xviii. न्यासी के कर्तव्य

xix. आस्ति पुनर्निर्माण के विशिष्ट उपाय, यदि कोई हों, जिनके संबंध में निवेशकों से अनुमोदन लिया जायेगा

xx. विवाद निवारण प्रक्रिया।

(2) तिमाही आधार पर प्रकटीकरण

(i) तिमाही के दौरान हुई कोई चूक, पूर्व भुगतान, हानियां

(ii) साख निर्धारण (क्रेडिट रेटिंग) में हुआ परिवर्तन, यदि कोई हो;

(iii) वर्तमान आस्ति समूह में नयी आस्ति आने या आस्तियों की वसूली होने से आस्तियों की रूपरेखा(प्रोफाइल) में परिवर्तन

(iv) वर्तमान और पिछली तिमाही का संग्रहण(कलेक्शन) सारांश

(v) अर्जन की संभावनाओं को प्रभावित करने वाली कोई अन्य महत्वपूर्ण सूचना जिससे निर्दिष्ट संस्थागत क्रेताओं पर प्रभाव पड़ता हो ।

संशोधित अधिसूचनाओं की सूची

1. 7 मार्च 2003 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.. 1/सीजीएम(सीएसएम)/2003

2. 28 अगस्त 2003 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.3/सीजीएम(ओपी)/2003

3. 29 मार्च 2004 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 4/ईडी(एसजी)/2004

4. 20 सितंबर 2006 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 5/सीजीएम(पीके)/2006

5. 19 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. 6/सीजीएम(पीके)/2006

6. 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि. नीति प्रभा.(एससी/आरसी)7/सीजीएम(एएसआर) 2010

7. 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.नीति प्रभा.(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010

8. 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.नीति प्रभा.(एससी/आरसी)9/सीजीएम(एएसआर)-2010

9. 23 जनवरी 2014 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)10/पीसीजीएम(एनएसवी)-2014

10. 05 अगस्त 2014 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)11/पीसीजीएम(केकेवी)-2014

11. 07 अगस्त 2014 की अधिसूचना सं. गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)12 /पीसीजीएम(केकेवी)-2014

12. 24 फरवरी 2015 की अधिसूचना सं. गैबैंविवि.नीप्र(एससी/आरसी) 01/सीजीएम(सीडीएस)-2014-15

13. 07 मई 2015 की अधिसूचना सं. गैबैंविवि.नीप्र(एससी/आरसी) 02/सीजीएम(सीडीएस)-2014-15

प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्संरचना (पुनर्निर्माण) कंपनियों के लिए मार्गदर्शी नोट

वित्तीय आस्तियों के प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 21 जून 2002 से लागू है। उसमें प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिज़र्व बैंक ने प्रतिभूतिकरण तथा पुनर्निर्माण कंपनियों के पंजीकरण, उनसे संबंधित अन्य मामलों यथा आस्तियों के अर्जन, आय निर्धारण संबंधी विवेकसम्मत मानदण्ड, आस्तियों के वर्गीकरण, प्रावधानीकरण, लेखा-मानक, पूंजी पर्याप्तता, आस्ति पुनर्निर्माण के लिए उपाय, निधियों के नियोजन के संबंध में मार्गदर्शी सिद्धांत एवं निदेश बनाए हैं।

2. रिज़र्व बैंक ने एतदर्थ अनुदेशों का एक सेट विकसित किया है जिनका अनुपालन सभी प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों को करना है ताकि आस्ति पुनर्निर्माण की प्रक्रिया सुगमता एवं अच्छी तरह (सुदृढ़ता के साथ) पूरी हो सके। इसके अलावा, विभिन्न मामलों पर जारी मार्गदर्शी सिद्धांतों के आधार पर बैंक ने मार्गदर्शी नोट तैयार किया है जिनके सांरांश प्रतिभूतिकरण कंपनियों तथा पुनर्निर्माण कंपनियों के मार्गदर्शन के लिए नीचे दिये जा रहे हैं। इन नोटों में प्रयुक्त शब्दों एवं अभिव्यक्तियों के वही अर्थ हैं जो अधिनियम में हैं।

(1) वित्तीय आस्तियों का अर्जन

(i) प्रत्येक एससी/आरसी से अपेक्षित है कि वह पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रापित की तारीख से 90 दिनों के अंदर आस्ति अर्जन नीति विकसित/तैयार करे जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह उल्लेख होगा कि लेन-देन का तरीका पारदर्शी होगा एवं भली-भांति सूचित (वेल इनफार्म्ड) बाजार में वे उचित मूल्य पर होंगे, साथ ही पर्याप्त सावधानी बरतते समय लेन-देन का कार्य निष्पक्ष/निरपेक्ष (on arms length basis) होगा।

(ii) किसी बैंक/वित्तीय संस्था की वित्तीय आस्तियों के अर्जित किए जाने वाले शेयरों को, उल्लिखित अधिनियम के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, उचित एवं निष्पक्ष तरीके से निकाला (वर्क आउट किया) जाएगा जिसमें किसी उधारकर्ता पर बकाया राशि के 60% से अन्यून राशि के धारक रक्षित लेनदारों (सिक्योर्ड क्रेडिटर्स) की सहमति लेना आवश्यक है।

(iii) सरल एवं त्वरित वसूली के लिए, विभन्न बैंकों /वित्तीय संस्थाओं के प्रति ऋणी किसी कर्जदार से मिलने वाली सभी आस्तियों के अर्जन पर विचार किया जाए। इसी प्रकार उसी संपार्श्विक प्रतिभूति से संबंध रखनेवाली वित्तीय आस्तियों के अर्जन पर विचार किया जाए ताकि तुलनात्मक रूप से त्वरितता एवं सुगमता से वसूली हो सके।

(iv) अर्जित की जानेवाली आस्तियों की सूची में निधि व गैर निधि आधार वाली आस्तियों, दोनों को शामिल किया जाए। मूलकर्ता (ओरिजनेटर) की बहियों में मानक रही आस्तियों, जिनकी वसूली बाद में मुश्किल हो सकती है, को भी अर्जित किया जा सकता है।

(v) किसी बैंक/वित्तीय संस्था की निधिक आस्तियों के अर्जन में आगे उधार देने के वायदे को टेकओवर करते समय शामिल न किया जाए। गैर निधिक लेन-देनगत प्रतिभूति हित अर्जन की शर्त में निधियों की मांग उठने तक संबंधित वायदे बैंक/वित्तीय संस्था के पास उपलब्ध रहेंगे।

(vi) जो ऋण उचित दस्तावेजों से समर्थित न हों, उनसे बचना (दूर रहना) चाहिए।

(vii) जहाँ तक संभव हो एक ही प्रकार की प्रोफाइल की आस्तियों के मूल्यांकन की प्रक्रिया समान हो एवं यह सुनिश्चत किया जाए कि वित्तीय आस्तियों का मूल्यांकन वैज्ञानिक एवं निष्पक्ष तरीके से किया जाए। आस्तियों के मूल्य के आधार पर उनका मूल्यांकन आंतरिक रूप में (स्वत:)/बाहर की एजेंसी से करवा लेना चाहिए। आदर्श स्थिति होगी यदि मूल्यांकन उस समिति से करवाया जाए जिसे आस्तियों को अर्जित करने के लिए अनुमोदन देने का प्राधिकार दिया गया है जो निदेशक बोर्ड द्वारा विनिर्दष्ट अर्जन नीति के तहत इस कार्य को अंजाम देगी।

(viii) एससी/आरसी द्वारा अर्जित आस्तियाँ एससी/आरसी द्वारा बनाए गए न्यास (ट्रस्ट) को उसी मूल्य पर अंतरित की जाएं जिस मूल्य पर वे आस्तियों के मूलकर्ता (ओरिजिनेटर) से ली गई हों। तथापि, एससी/आरसी द्वारा बनाए गए न्यास (ट्रस्ट) की बहियों में बैंकों/वित्तीय संस्थाओं से अर्जित आस्तियों को सीधे लेने पर प्रतिबंध नहीं है।

(ix) एससी/आरसी द्वारा अर्जित आस्तियाँ सामान्यत: उस अवधि के भीतर वसूल ली जानी चाहिए जो अर्जन की तारीख से किसी भी मामले में पांच वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। तथापि, यदि अर्जन की तारीख से पांच वर्ष की समाप्ति के अंत तक आस्तियों की वसूली शेष रहती है, तो एससी/आरसी का निदेशक बोर्ड इस वसूली अवधि को, कतिपय शर्तों के तहत, संबंधित वित्तीय आस्तियों के अर्जन की मूल तारीख से कुल आठ वर्षं से अनधिक अवधि के लिए बढ़ा सकता है।

(2). प्रतिभूति रसीदें जारी करना

i. प्रत्येक एससी/आरसी प्रतिभूति रसीदें जारी करने के ही प्रयोजन से स्थापित ट्रस्ट के माध्यम से उन्हें जारी करेगी। ऐसे ट्रस्ट की न्यासधारिता एससी/आरसी में ही निहित होगी।

ii. ट्रस्ट प्रतिभूति रसीदें अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेताओं को ही जारी करेगा और ये केवल अन्य अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेताओं के पक्ष में ही अंतरणीय/समनुदेशनीय होंगी।

iii. प्रतिभूति रसीदें जारी करने की इच्छुक प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी प्रस्ताव दस्तावेज में प्रकटीकरण करेगी जिसे बैंक द्वारा, समय-समय पर, विनिर्दिष्ट किया गया हो।

iv. प्रत्येक एससी/आरसी प्रतिभूतिकरण के प्रयोजन से स्थापित ट्रस्ट द्वारा प्रत्येक योजना के तहत जारी प्रतिभूति रसीदों में न्यूनतम 15% राशि का निवेश करेगी।

v. प्रत्येक एससी/आरसी प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निर्माण कंपनी द्वारा प्रत्येक योजना के अंतर्गत जारी प्रतिभूति रसीदों के न्यूनतम 15% प्रतिभूति रसीदें सतत आधार पर धारण किए रहेंगी जब तक कि ऐसी योजना विशेष के अंतर्गत जारी सभी प्रतिभूति रसीदों की अदायगी नहीं हो जाती है।

vi. अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रेता संबंधित आस्ति की वसूली के लिए लागू अवधि अर्थात 5 वर्ष या विस्तारित 8 वर्ष की समाप्ति पर ही सरफायसी अधिनियम की धारा 7(3) के उपबंधों का अवलंबन लेने के हकदार होंगे।

vii. 41प्रत्येक एससी / आरसी संपत्ति के अधिग्रहण की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर एक अनुमोदित क्रेडिट रेटिंग एजेंसी से एसआर की प्रारंभिक रेटिंग / ग्रेडिंग प्राप्त करेगी और तत्काल इसके द्वारा जारी सुरक्षा प्राप्तियों की नेट एसेट वैल्यू घोषित करेगी। इसके बाद, एसआर का दर्ज़ा / ग्रेडिंग हर साल 30 जून और 31 दिसंबर को एक अनुमोदित सीआरए से समीक्षा करवाएगी और योग्य संस्थागत खरीदारों को उनके निवेश मूल्य की कीमत तय करने के लिए सक्षम करने के लिए तत्काल एसआर की एनएवी की घोषणा करेगी। एनएवी पर पहुंचने के लिए, एससी/ आरसी, एसआर का मूल्यांकन ‘ रिकवरी रेटिंग स्केल ' पर करवाएगी और रेटिंग एजेंसियों को रेटिंग के लिए तर्क का खुलासा करना आवश्यक होगा।

(3). विवेकपूर्ण/सम्मत मानदण्डों की प्रयोज्यता

(i) प्रत्येक एससी/आरसी से अपेक्षित है कि वह सतत आधार पर पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखे जो उसकी कुल जोखिम भारित आस्तियों के 15% से कम नहीं होगी।

(ii) प्रत्येक एससी/आरसी से अपेक्षित है कि वह आस्तियों के बकाया रहने की अवधि तथा उनकी वसूली पर असर डालने वाली अन्य कमजोरियों को मद्देनजर रखते हुए आस्तियों को मानक एवं अनर्जक वर्ग में वर्गीकृ त करे। ऐसी कंपनियों से यह भी अपेक्षित है कि अनर्जक आस्तियों के बारे में, बैंक द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट, प्रावधान भी करें। वर्गीकरण/प्रावधानीकरण मानदण्ड उन आस्तियों के लिए लागू होंगे जो प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की बहियों में धारित हों।

(iii) "हानिगत आस्तियों" में प्रतिभूति रसीदों सहित एससी/आरसी द्वारा धारण रखी गई वे वित्तीय आस्तियाँ शामिल होंगी जो कुल वसूली अवधि 5 वर्ष या 8 वर्ष, जैसा भी मामला हो, में वसूल न की जा सकी हों ।

(iv) कोई एससी/आरसी अन्य प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी की ईक्विटी में निवेश कर सकती है या केवल अपनी बेशी निधियों का निवेश सरकारी प्रतिभूतियों या अनुसूचित वाणिज्य बैंकों/लघु उद्योग वाकस बैंक(सिडबी)/राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)/ऐसी कोई कंपनी(इंटिटी), जिसे रिज़र्व बैंक समय-समय पर एतदर्थ विनिर्दिष्ट करे, की जमाराशियों में कर सकती है।

(v) कोई भी एससी/आरसी अपने उपयोग के लिए भूमि एवं भवन में अपनी स्वाधिकृत निधियों के 10% तक निवेश करने से इतर निवेश नहीं करेगी। तथापि, यदि एससी/आरसी को पुनर्निर्माण के सामान्य कारोबार के दौरान प्रतिभूति हित के प्रवर्तन से यदि कोई भूमि अर्जित होती/या भवन अर्जित होता है, तो उसके अर्जन की तारीख से 5 वर्ष या बैंक द्वारा दी गई विस्तारित अवधि में उसे बेचना होगा।

(vi) प्रतिभूतिकरण कंपनियों एवं पुनर्निर्माण कंपनियों के आय निर्धारण मान्यता प्राप्त लेखा सिद्धांतों तथा भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान द्वारा जारी सभी लेखा-मानकों एवं मार्गदर्शी नोटों पर वहाँ तक आधारित होंगे जहाँ तक वे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी मार्गदर्शी सिद्धांतों एवं निदेशों से असंगत न हों।

(4) निदेशक बोर्ड द्वारा नीतिगत दस्तावेजों की मंजूरी

प्रत्येक एससी/आरसी आस्तियों के अर्जन, उधारकर्ताओं के ऋणों की रिशिड्यूलिंग, उधारकर्ता द्वारा देय ऋण/णों का निपटान/अदायगी, प्रतिभूति रसीदें जारी करने तथा बेशी निधियों के नियोजन से संबंधित नीतिगत मार्गदर्शी सिद्धांत अपने निदेशक बोर्ड की मंजूरी से तैयार करेगी। एससी/आरसी को पंजीकरण प्रमाणपत्र मंजूर होने की तारीख से 90 दिनों के भीतर उसके द्वारा वित्तीय आस्तियों के अर्जन से संबंधित नीति तैयार/विकसित कर ली जानी चाहिए। प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी आस्तियों के अर्जन, कीमत निर्धारण, आदि के मामले में निदेशक बोर्ड द्वारा किए गए विनिर्देशन से भिन्न रुख अख्तियार करने के मामलों के ब्योरों का कारण सहित अभिलेख रखेंगी।

(5) विनियामक रिपोर्टिंग

(i) प्रत्येक प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी से अपेक्षित है कि वह संबंधित तिमाही की समाप्ति से 15 दिनों के भीतर तिमाही विवरण अर्थात एससी/आरसी 1 तथा एससीआरसी 2 प्रस्तुत करे जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ स्वाधिकृत निधियों की स्थिति, अर्जित आस्तियों का मूल्य, जारी/बकाया प्रतिभूति रसीदें, प्रतिभूति रसीदों में विभिन्न अर्हता प्राप्त संस्थागत क्रे ताओं द्वारा किए गए निवेश, बैंकों/वित्तीय संस्थाओं की सूची जिनसे एससी/आरसी ने आस्तियाँ अर्जित की हों, का उल्लेख हो।

(ii) प्रत्येक एससी/आरसी से अपेक्षित है कि वह अपने लेखापरीक्षित तुलनपत्र और निदेशकों/लेखापरीक्षक की रिपोर्ट की एक-एक प्रति, कंपनी की उस सामान्य बैठक जिसमें उसके लेखापरीक्षित लेखों को अंगीकार किया जाता है, के आयोजित होने से एक माह के भीतर बैंक को प्रस्तुत करे ।

(6) आंतरिक लेखापरीक्षा

यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रतिभूतिकरण कंपनियाँ या पुनर्निर्माण कंपनियाँ स्वस्थ आधार पर कार्य कर रही हैं, ऐसी कंपनियों के परिचालन तथा गतिविधियाँ आंतरिक/वाह्य एजेंसियों की आवधिक जांच-पड़ताल के अधीन होने चाहिए।

(7) लेखा वर्ष /तुलनपत्र में प्रकटीकरण

प्रत्येक एससी/आरसी 31 मार्च को समाप्त हरेक वर्ष के लिए अपना तुलनपत्र तथा लाभ-हानि लेखे तैयार करेगी। कंपनी अधिनियम, 1956 की अनुसूची VI की अपेक्षा के अनुपालन के अलावा प्रतिभूतिकरण कंपनी या पुनर्निर्माण कंपनी 23 अप्रैल 2003 की अधिसूचना सं. 2 के पैरा 15 में सूचीबद्ध विभिन्न मुद्दों पर अतिरिक्त प्रकटीकरण भी करेगी।


प्रतिभूतिकरण कंपनी/पुनर्निमाण कंपनी को जारी परिपत्रों की सूची

1. 23 अप्रैल 2003 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.1/एससीआरसी/10.30/2002-03
2. 29 मार्च 2004 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.2/एससीआरसी/10.30/2002-03
3. 20 सितम्बर 2006 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.3/एससीआरसी/10.30.000/2006-07
4. 19 अक्तूबर 2006 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.4/एससीआरसी/10.30.000/2006-07
5. 25 अप्रैल 2006 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.5/एससीआरसी/10.30/2006-07
6. 28 मई 2007 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.6/एससीआरसी/10.30.049/2006-07
7. 05 मार्च 2008 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.8/एससीआरसी/10.30.000/2007-08
8. 22 अप्रैल 2008 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.9/एससीआरसी/10.30.000/2007-08
9. 26 सितम्बर 2008 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.12/एससीआरसी/10.30.000/2008-09
10. 22 अप्रैल 2009 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.13/एससीआरसी/26.03.001/2002-03
11. 24 अप्रैल 2009 का गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.14/एससीआरसी/26.01.001/2008-09
12. 21 अप्रैल 2010 का परिपत्र गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.17/एससीआरसी/26.03.001/2009-2010
13. 21 अप्रैल 2010 का परिपत्र गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.18/एससीआरसी/26.03.001/2009-2010
14. 21 अप्रैल 2010 का परिपत्र गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.19/एससीआरसी/26.03.001/2009-2010
15. 25 नवम्बर 2010 का परिपत्र गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.23/एससीआरसी/26.03.001/2010-2011
16. 25 मई 2011 का परिपत्र गैबैंपवि.नीप्र.कंपरि.24/एससीआरसी/26.03.001/2010-2011
17. 31 दिसम्बर 2013 का गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं. 34/एससीआरसी/26.03.001/2013-14
18. 23 जनवरी 2014 का गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं. 35/एससीआरसी/26.03.001/2013-14
19. 19 मार्च 2014 का गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं. 36/एससीआरसी/26.03.001/2013-14
20. 19 मार्च 2014 का गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं. 37/एससीआरसी/26.03.001/2013-14
21. 23 अप्रैल 2014 का गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं. 38/एससीआरसी/26.03.001/2013-14
22. 05 अगस्त 2014 का गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं.41/एससीआरसी/26.03.001/2014-15
23. 07 अगस्त 2014 का गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं.42/एससीआरसी/26.03.001/2014-15
24. 24 फरवरी 2015 का गैबैंविव (नीप्र)कंपरि.सं.01/एससीआरसी/26.03.001/2014-15
25. 07 मई 2015 का गैबैंविव (नीप्र)कंपरि.सं.02/एससीआरसी/26.03.001/2014-15

(परिपत्र सं. 7, 10,11,15,16,20,21,22,25,26,27,28,29,30,30,31,32,33,39 और 40 मास्टर परिपत्र के साथ क्रमश: वर्षों में जारी किया गया है)


1 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर) द्वारा प्रतिस्थापित

2 05 अगस्त 2014 की अधिसूचना गैबैंपवि(नीप्र-एससीआरसी) सं.11 द्वारा जोड़ा गया।

3 7 मार्च 2003 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.1/सीजीएम(सीएसएम)2003 द्वारा जोड़ा गया

4 21 अप्रैल 2010 का मास्टर परिपत्र सं.33 गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)//सीजीएम(एएसआर)2010 द्वारा जोड़ा गया।

5 19 अक्तूबर 2006 की अधिसूचना गैबैंपवि सं.6/सीजीएम(पीके)/2006 द्वारा जोड़ा गया

6 21 अप्रैल 2010 का मास्टर परिपत्र सं.33 गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)//सीजीएम(एएसआर)2010 द्वारा जोड़ा गया।

7 28 अगस्त 2003 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.3/सीजीएम(ओपीए)/2003 द्वारा जोड़ा गया।

8 29 मार्च 2004 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.4/ईडी(एसजी)/2004 द्वारा जोड़ा गया।

9 05 अगस्त 2014 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि(नीप्र-एस/आर)सं.11 द्वारा जोड़ा गया।

10 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा प्रतिस्थापित

11 05 अगस्त 2014 की अधिसूचना सं:गैबैंपवि(नीप्र-एस/आर)सं.11 द्वारा जोड़ा गया।

12 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा प्रतिस्थापित

13 23 जनवरी 2014 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)10/पीसीजीएम(एनएसवी) 2014 द्वारा जोड़ा गया।

14 19 मार्च 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र)सं.37/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

15 23 अप्रैल 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र)सं.38/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

16 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)7/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा प्रतिस्थापित

17 23 जनवरी 2014 का परिपत्र सं. गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं.35/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

18 19 मार्च 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र)सं.37/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

19 23 जनवरी 2014 का परिपत्र सं. गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं.35/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

20 23 जनवरी 2014 का परिपत्र सं. गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं.35/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

21 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा प्रतिस्थापित

22 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा प्रतिस्थापित

23 05 अगस्त 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं.41/एससीआरसी/26.03.001/2014-15 द्वारा जोड़ा गया।

24 19 मार्च 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं.37/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

25 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)9/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा जोड़ा गया।

26 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा प्रतिस्थापित

27 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा प्रतिस्थापित

28 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर) 2010 द्वारा संशोधित

29 23 अप्रैल 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र)सं.38/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

30 23 अप्रैल 2014 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र)सं.38/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

31 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर)-2010 द्वारा जोड़ा गया।

32 05 अगस्त 2014 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि(नीप्र-एससी/आरसी)सं.11 द्वारा जोड़ा गया।

33 31 दिसम्बर 2013 का परिपत्र सं.गैबैंपवि(नीप्र)कंपरि.सं34/एससीआरसी/26.03.001/2013-14 द्वारा जोड़ा गया।

34 28 अगस्त 2003 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.3/सीजीएम(ओपीए)/2003 द्वारा जोड़ा गया।

35 29 मार्च 2004 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि4/ईडी(एसजी)/2004 द्वारा जोड़ा गया।

36 07 अगस्त 2014 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि(नीप्र-एससी/आरसी)सं12 द्वारा जोड़ा गया।

37 21 अप्रैल 2010 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि.नीप्र(एससी/आरसी)8/सीजीएम(एएसआर)2010 द्वारा जोड़ा गया

38 07 मई 2015 की अधिसूचना संबैबैंविवि(पीडी-एससी/आरसी)सं.02/मुमप्र(सीडीएस)2014-15 द्वारा जोड़ा गया।

39 05 अगस्त 2014 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि(नीप्र-एससी/आरसी)सं.011 द्वारा जोड़ा गया।

40 24 फरवरी 2015 की अधिसूचना सं.गैबैंविवि(नीप्र-एससी/आरसी)सं.01 द्वारा जोड़ा गया।

41 05 अगस्त 2014 की अधिसूचना सं.गैबैंपवि(नीप्र-एससी/आरसी)सं.011 द्वारा जोड़ा गया।

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