दबावग्रस्त आस्तियों का समाधान – संशोधित ढांचा - आरबीआई - Reserve Bank of India
दबावग्रस्त आस्तियों का समाधान – संशोधित ढांचा
भारिबैं/2017-18/131 12 फरवरी 2018 सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक महोदया/ महोदय, दबावग्रस्त आस्तियों का समाधान – संशोधित ढांचा 1. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अर्थव्यवस्था में शामिल दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के उद्देश्य से विभिन्न अनुदेश जारी किए हैं, जिनमें विभिन्न समयों पर कुछ विशिष्ट योजनाओं की शुरुआत भी शामिल है। दिवाला तथा शोधन अक्षमता कोड, 2016 (आईबीसी) के अधिनियमन को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान हेतु विद्यमान दिशानिर्देशों को सुसंगत एवं सरलीकृत जेनरिक ढांचे में बदला जाए। संशोधित ढांचे का ब्योरा निम्न अनुच्छेदों में विस्तार से दिया गया है। I. संशोधित ढांचा क. दबावग्रस्तता की शीघ्र पहचान और शीघ्र रिपोर्टिंग 2. चूक1 होते ही ऋणदाता2 निम्नलिखित श्रेणियों के अनुसार दबावग्रस्त आस्तियों को विशेष उल्लेखित खाते (एसएमए) के रूप में वर्गीकृत करके ऋण खातों में आसन्न दबाव की पहचान करेगा।
3. 22 मई, 2014 को जारी परिपत्र सं. बैंपर्यवि.केंका.ओसमोस.14703/33.01.001/2013-14 में निहित अनुदेशों तथा अनुवर्ती संशोधनों में प्रावधानित अनुसार ऋणदाता उनके पास उपलब्ध 50 मिलियन3 और उससे अधिक कुल एक्सपोज़र वाले सभी उधारकर्ता संस्थाओं की रिपोर्ट बड़े ऋणों की सूचनाओं की सेंट्रल रिपोज़िटरी (सीआरएलआईसी) को देंगे, जिसमें एसएमए के रूप में वर्गीकृत खाते भी शामिल है। सीआरआईएलसी – मुख्य रिपोर्ट 1 अप्रैल 2018 से लागू रूप में मासिक आधार पर प्रस्तुत करना अपेक्षित होगा। इसके साथ ऋणदाता द्वारा चूक करने वाले उधारकर्ता संस्थाओं (50 मिलियन तथा उससे अधिक संकलित एक्स्पोज़र वाली) की साप्ताहिक सूचना हर शुक्रवार को, यदि शुक्रवार छुट्टी का दिन है तो उससे पहले का दिन यह रिपोर्ट सीआरआईएलसी को प्रस्तुत करेंगे। ऐसी पहली रिपोर्ट 23 फरवरी 2018 को समाप्त होने वाले सप्ताह के लिए प्रस्तुत की जानी है। ख. समाधान की योजना का कार्यान्वयन 4. इस ढांचे के अंतर्गत दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए सभी ऋणदाताओं को बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति बनानी चाहिए, जिसमें समाधान हेतु समय सीमा शामिल होगी। किसी भी ऋणदाता के पास रखे उधारकर्ता संस्था के खाते में चूक होते ही सभी ऋणदाताओं को एकल या संयुक्त रूप से चूक सुधारने के लिए कदम उठाने होंगे। समाधान योजना (आरपी) में ऐसी कोई कार्रवाइयां/ योजनाएं/ पुनर्गठन शामिल हो सकते हैं, जिनमें उधारकर्ता संस्था द्वारा सभी अतिदेय बकाया राशियों का भुगतान करना, अन्य संस्थाओं/ निवेशकों को एक्सपोज़र की बिक्री करना, स्वामित्व में परिवर्तन या पुनर्रचना4 शामिल होगा, किंतु इस तक सीमित नहीं होगा। नियम और शर्तों में किसी प्रकार का परिवर्तन न होने पर भी सभी ऋण दाताओं द्वारा समाधान की योजना के संदर्भ में स्पष्ट प्रलेखन किया जाएगा। सी. आरपी के कार्यान्वयन के लिए शर्तें 5. ऐसी उधारकर्ता संस्थाएं जिनका ऋण एक्स्पोज़र ऋणदाताओं के प्रति जारी रहता है, के सबंध में आरपी को तभी कार्यान्वित माना जाएगा यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हों: ए. उधारकर्ता संस्था अब किसी भी ऋणदाता के संदर्भ में चूककर्ता नहीं है। बी. यदि समाधान में पुनर्रचना शामिल है, तो i. संबंधित प्रलेखीकरण, जिसमें सभी ऋणदाताओं तथा उधारकर्ताओं के बीच आवश्यक करारों का निष्पादन/ सेक्यूरिटी चार्ज का सृजन/ प्रतिभूतियों की पूर्णता शामिल होंगे। तथा ii. सभी ऋणदाताओं और उधारकर्ताओं की बहियों में मौजूदा ऋणों की शर्तों में परिवर्तन तथा/ अथवा नया पूंजी ढांचा विधिवत प्रतिबिंबित होता है। 6. इसके अतिरिक्त, बड़े खातों (अर्थात जिन खातों में ऋण लेनेवालों का संकलित एक्स्पोज़र 1 बिलियन से अधिक है) में जहां आरपी में पुनर्रचना / स्वामित्व में परिवर्तन शामिल है, वहां भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस प्रयोजन के लिए विनिर्दिष्ट रूप से प्राधिकृत क्रेडिट रेटिंग एजंसियों (सीआरए) द्वारा अवशिष्ट ऋण5 का स्वतंत्र ऋण मूल्यांकन (आईसीई) अपेक्षित होगा। जहां 5 बिलियन या उससे अधिक एक्सपोज़र वाले खातों के लिए दो स्वतंत्र ऋण मूल्यांकन अपेक्षित हैं तथा अन्यों के लिए केवल एक आईसीई अपेक्षित होगा। केवल ऐसे आरपी जो अवशिष्ट ऋण के लिए, एक या दो सीआरए से, जैसा भी मामला हो, से आरपी46 स्तर या उससे बेहतर ऋण संबंधी मत प्राप्त करते हैं, उनके कार्यान्वयन पर विचार किया जाएगा। इसके अतिरिक्त आईसीई निम्न लिखित के अधीन होगी। (क) ऋणदाताओं द्वारा सीआरए को सीधे नियुक्त किया जाएगा तथा इस प्रकार के निर्धारण के लिए प्रभार का भुगतान ऋण दाताओं द्वारा स्वयं किया जाएगा। (ख) यदि ऋणदाता अपेक्षित से अधिक संख्या में सीआरए से आईसीई प्राप्त करते हैं, तो ऐसे सभी आईसीई ओपीनियन आरपी4 या बेहतर स्तर के होंगे, तभी आरपी के कार्यान्वयन पर विचार किया जाएगा। 7. आईसीई की उक्त अपेक्षा इस परिपत्र की तारीख से कार्यान्वयित सभी बड़े खातों की पुनर्रचना पर लागू है, यदि पुनर्रचना नीचे पैरा 8 में दी गई ‘संदर्भ तिथि’ से पहले भी की गई है । डी. आईबीसी के अंतर्गत संदर्भित किए जाने वाले बड़े खातों के लिए समय सीमाएं 8. दिनांक 1 मार्च 2018 (‘संदर्भ तिथि’) को या उसके बाद ऋणदाताओं के 20 बिलियन रुपए या उससे अधिक कुल एक्स्पोज़र वाले खाते जिनमें ऐसे खाते भी शामिल हैं जिनमें किसी विद्यमान योजना के तहत समाधान की कार्रवाई प्रारंभ हो चुकी है तथा पुनर्रचित मानक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत है और जो वर्तमान में विनिर्दिष्ट अवधि (पूर्व दिशानिर्देशों के अनुसार) में है, के संबंध में आरपी का कार्यान्वयन निम्न समयावधियों के अनुसार किया जाएगा:
9. यदि पैरा 8 में विनिर्दिष्ट समयावधि7 के अनुसार ऐसे बड़े खातों के लिए आरपी कार्यान्वयित नहीं की जाती है तो ऋणदाता समयावधि की समाप्ति के बाद 15 दिनों के भीतर दिवाला तथा शोधन अक्षमता कोड, 2016 (आईबीसी)8 के तहत स्वयं या संयुक्त रूप से दिवाला आवेदन दायर करेंगे। 10. ऐसे बड़े खातों के संबंध में, जहां पुनर्रचना/ स्वामित्व में परिवर्तन शामिल करते हुए 180 दिन के भीतर आरपी को कार्यान्वित किया गया है, वैसे खातों में विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान किसी भी समय चूक नहीं होनी चाहिए, जिसमें विफल रहने पर ऋणदाता, ऐसी चूक होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर, एकल या संयुक्त रूप से, आईबीसी के तहत दिवालिया आवेदन दायर करेंगे। "विनिर्दिष्ट अवधि" का अर्थ, आरपी के कार्यान्वयन की तिथि से लेकर आरपी के अनुसार बकाया मूल ऋण के कम से कम 20 प्रतिशत और पुनर्रचना के भाग के रूप में स्वीकृत ब्याज पूंजीकरण, यदि कोई हो, के चुकाने की तिथि तक की अवधि है। बशर्ते कि विनिर्दिष्ट अवधि, आरपी के नियमों के तहत अधिस्थगन की दीर्घतम अवधिवाली ऋण सुविधा पर ब्याज या मूलधन (जो भी बाद में हो) के प्रथम भुगतान के प्रारंभ से एक वर्ष के पहले समाप्त नहीं हो सकती है। 11. विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति के बाद भुगतान में कोई भी चूक इस ढांचे के अनुसार नई चूक के रूप में मानी जाएगी। 12. रिज़र्व बैंक, ₹ 20 बिलियन के नीचे और ₹ 1 बिलियन या अधिक के समग्र एक्सपोजर वाले ऋणदाताओं के अन्य खातों के लिए, दो वर्ष की अवधि में, आरपी के कार्यान्वयन के लिए संदर्भ तिथियां घोषित करेगा, जिससे चूक के तहत आने वाले ऐसे सभी खातों का सुचारु, समयबद्ध समाधान सुनिश्चित हो। 13. तथापि, यह स्पष्ट किया जाता है कि उक्त संक्रमण व्यवस्था उन उधारकर्ता संस्थाओं के लिए उपलब्ध नहीं होगी, जिनके संबंध में रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को आईबीसी के तहत संदर्भ लेने के लिए विशिष्ट निर्देश जारी किए जा चुके हैं। ऋणदाता पूर्व के अनुदेशों के अनुसार ही ऐसे मामलों पर कार्रवाई करते रहेंगे। ङ. विवेकपूर्ण मानदंड 14. किसी भी पुनर्रचना के लिए लागू संशोधित विवेकपूर्ण मानदंड, चाहे आईबीसी ढांचे के तहत हो या आईबीसी के बाहर, अनुबंध - 19 में निहित हैं। जिन उधारकर्ता संस्थाओं के विरुद्ध आईबीसी के तहत दिवालिया आवेदन किए गए हैं, उनके संबंध में प्रावधान उनके आस्ति वर्गीकरण के अनुसार किया जाएगा, जो आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंडों पर मास्टर परिपत्र, समय- समय पर यथासंशोधित, के अनुसार होगा।10 II. पर्यवेक्षी पुनरीक्षा 15. ऋणदाता द्वारा निर्धारित समयसीमा का पालन करने में कोई भी विफलता या खातों की वास्तविक स्थिति छिपाने या दबावग्रस्त खातों को बेहतर दिखाने के इरादे से किए गए किसी भी कार्य पर रिज़र्व बैंक द्वारा उचित समझी जाने वाली सख्त पर्यवेक्षी/ प्रवर्तन कार्रवाई की जाएगी, जिसमें ऐसे खातों पर उच्च प्रावधानीकरण और मौद्रिक दंड शामिल होंगे, लेकिन केवल इन तक सीमित नहीं होंगे।11 III. प्रकटीकरण 16. बैंक कार्यान्वित की गई समाधान योजनाओं के संबंध में अपने वित्तीय विवरण में, "लेखा पर टिप्पणी" के अंतर्गत उचित प्रकटीकरण करेंगे। विस्तृत दिशानिर्देश अलग से जारी किए जाएंगे। IV. अपवाद 17. जिन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में वाणिज्यिक परिचालन के आरंभ की तिथि (डीसीसीओ) का आस्थगन शामिल है, उनकी पुनर्रचना 'आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और अग्रिमों से संबंधित प्रावधानीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंड' पर दिनांक 1 जुलाई, 2015 के मास्टर परिपत्र बैंविवि सं. बीपी.बीसी.2/21.04.048/2015-16 के पैरा 4.2.15 में निहित दिशानिर्देशों के अनुसार होगी। V. वर्तमान अनुदेशों को वापस लेना 18. दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान हेतु वर्तमान अनुदेश जैसे कि दबावग्रस्त परिसंपत्तियों के पुनरुद्धार संबंधी ढांचा, कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना योजना, मौजूदा दीर्घकालिक परियोजना ऋणों की लचीली संरचना, कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना (एसडीआर), एसडीआर से बाहर स्वामित्व में परिवर्तन, और दबावग्रस्त आस्तियों की संवहनीय संरचना के लिए योजना (एस 4 ए) तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाते हैं। तदनुसार, दबावग्रस्त खातों के समाधान हेतु संस्थागत तंत्र के रूप में संयुक्त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) भी बंद किया जाता है। सभी खाते, ऐसे खाते सहित जिनमें उक्त किसी भी योजना के प्रयोग का निश्चय किया गया है, लेकिन अभी तक कार्यान्वित नहीं किया गया है, संशोधित ढांचे के द्वारा अभिशासित होंगे। 19. इस परिपत्र में सन्निहित किए गए तथा इस परिपत्र की तारीख से निरस्त परिपत्रों/ निदेशों/ दिशानिर्देशों की सूची अनुबंध-3 में दी गई है। 20. उपर्युक्त दिशानिर्देश बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा 35 ए, 35 एए (भारत सरकार द्वारा जारी किए गए 5 मई, 2017 के एस.ओ.1435 (ई) के साथ पठित) 35 एबी और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1949 की धारा 45(एल) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किए गए हैं। भवदीय, (सौरभ सिन्हा) पुनर्रचना पर लागू मानदंड 1. पुनर्रचना वह कृत्य है जिसमें कोई ऋणदाता, उधारकर्ता की वित्तीय कठिनाइयों12 से संबंधित आर्थिक या विधिक कारणों से, उधारकर्ता को रियायतें देता है। सामान्य तौर पर पुनर्रचना में अग्रिम/ प्रतिभूति की शर्तों में संशोधन किया जाता है, जिसमें सामान्यतः, अन्य के साथ-साथ; चुकौती अवधि में परिवर्तन/ चुकाई जाने वाली राशि/ किश्त की राशि/ ब्याज दर/ ऋण सुविधाओं का रोल ओवर/ अतिरिक्त ऋण सुविधा की स्वीकृति/ मौजूदा ऋण सीमा में वृद्धि/ जहां निपटान राशि के भुगतान में तीन महीने से अधिक समय हो, वहाँ समझौता निपटान; शामिल होते हैं। I. विवेकपूर्ण मानदंड13 क आस्ति वर्गीकरण 2. पुनर्रचना के मामले में, "मानक" के रूप में वर्गीकृत खाते को तत्काल अनर्जक आस्ति (एनपीए) के रूप में अवक्रमित कर दिया जाएगा, अर्थात, आरंभ में "अवमानक" खाते के रूप में। पुनर्रचना हो जाने पर, अनर्जक आस्तियों का वही वर्गीकरण जारी रहेगा, जो पुनर्रचना के पहले था। दोनों मामलों में, आस्ति वर्गीकरण मौजूदा आस्ति वर्गीकरण मानदंडों के अनुसार अवधि-संबंधी मानदंडों से अधिशासित होता रहेगा। ख उन्नयन के लिए शर्तें 3. एनपीए के रूप में वर्गीकृत मानक खाते और ऋणदाताओं द्वारा पुनर्रचना पर एनपीए श्रेणी में बरकरार रखे गए एनपीए खाते तभी उन्नयित किए जाएँ जब खाते में सभी बकाया ऋण/ सुविधाएं/ विनिर्दिष्ट अवधि में (संलग्न मुख्य परिपत्र के पैरा 10 में यथापारिभाषित) "संतोषजनक निष्पादन" दर्शा रही हों। (अर्थात, उधारकर्ता संस्था के संबंध में भुगतान में किसी भी समय चूक न हुई हो)14 4. वृहत खातों (अर्थात् ऐसे खाते, जहां ऋणदाताओं का सकल एक्सपोजर 1 बिलियन रुपए या उससे अधिक है) के उन्नयन के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए संतोषजनक कार्यनिष्पादन दर्शाने के अतिरिक्त रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक ऋण रेटिंग के प्रयोजन से प्रत्यायित क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (सीआरए) के द्वारा उधारकर्ता को दी जाने वाली ऋण सुविधाओं की विनिर्दिष्ट अवधि के अंत में निवेश श्रेणी15 (बीबीबी- या उससे बेहतर) में रेटिंग भी की जाएगी। जहां 5 बिलियन रुपये या उससे अधिक के सकल एक्सपोजर के लिए दो रेटिंग आवश्यक होंगी, वहीं 5 बिलियन रुपये से कम के लिए एक रेटिंग अपेक्षित होगी। यदि अपेक्षित संख्या से अधिक सीआरए से रेटिंग प्राप्त की गई हो, तो ऐसी सभी रेटिंग उन्नयन के लिए अर्हता हेतु निवेश श्रेणी होगी। 5. यदि विनिर्दिष्ट अवधि में संतोषजनक कार्यनिष्पादन का प्रदर्शन नहीं किया गया हो, तो खाते को ऐसी चूक होते ही तत्काल उस चुकौती कार्यक्रम के अनुसार पुनर्वर्गीकृत किया जाएगा, जो पुनर्रचना से पहले मौजूद था।16 ऐसे खातों का कोई भी भावी उन्नयन एक नए पुनर्रचना कार्यक्रम (आरपी) को लागू करने और उसके बाद संतोषजनक कार्यनिष्पादन करने पर निर्भर करेगा। ग. प्रावधानीकरण मानदंड 6. संशोधित ढांचे के अंतर्गत पुनर्रचित खातों पर अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंड पर 01 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र, समय समय पर यथासंशोधित, में निर्धारित आस्ति वर्गीकरण श्रेणी के अनुसार प्रावधानीकरण लागू होगा। तथापि, उक्त परिपत्र की तारीख से पूर्व किसी पहले की योजना के अंतर्गत पुनर्रचित खातों के संबंध में किए गए प्रावधान उसमें विनिर्दिष्ट अपेक्षाओं के अनुसार रखना जारी रहेगा। घ. अतिरिक्त वित्त 7. आरपी (आईबीसी के अधीन निर्णायक प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किसी समाधान योजना सहित) के अधीन अनुमोदित किसी अतिरिक्त वित्त को विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान अनुमोदित आरपी के अंतर्गत मानक आस्ति माना जाएगा, बशर्ते कि खाता संतोषजनक कार्य निष्पादन करता है (जैसा कि ऊपर पैरा 3-5 में परिभाषित किया गया है)। यदि पुनर्रचित खाता विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान संतोषजनक कार्य-निष्पादन नहीं करता है या विनिर्दिष्ट अवधि के अंत में उन्नयन के लिए अर्हक नहीं होता है, तो अतिरिक्त वित्त को भी पुनर्रचित वित्त के समान आस्ति वर्गीकरण श्रेणी में रखा जाएगा। ङ. आय निर्धारण मानदंड 8. मानक आस्तियों के में वर्गीकृत पुनर्रचित खातों के संबंध में ब्याज आय का निर्धारण उपचित आधार पर किया जाए, तथा अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत पुनर्रचित खातों के संबंध में आय निर्धारण नकद आधार पर किया जाए। 9. ऐसे खातों में अतिरिक्त वित्त के मामले में, जहां पुनर्रचना-पूर्व सुविधाओं को अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत किया गया था, ब्याज आय का निर्धारण (जब पुनर्रचना स्वामित्व में परिवर्तन के साथ की गई हो, को छोड़ कर) केवल नकद आधार पर किया जाएगा। च. मूलधन का ऋण/ इक्विटी में तथा अदत्त ब्याज का निधिक ब्याज मीयादी ऋण (एफआईटीएल), ऋण या इक्विटी लिखतों में परिवर्तन 10. मूलधन/ अदत्त ब्याज, जैसा भी मामला हो, के भाग को परिवर्तित करके बनाए गए एफआईटीएल/ ऋण/ इक्विटी लिखतों को उसी आस्ति वर्गीकरण श्रेणी में रखा जएगा, जिसमें पुनर्रचित अग्रिमों को वर्गीकृत किया गया है। 11. इन लिखतों का मूल्यन सामान्य मूल्यांकन मानदंडों के अनुसार बाजार मूल्य पर किया जाएगा। इक्विटी लिखत, चाहे मानक के रूप में वर्गीकृत हों, या एनपीए, को यदि कोट किया हो, तो बाजार मूल्य पर मूल्यांकन किया जाएगा, अन्यथा ब्रेक-अप मूल्य पर (पुनर्मूल्यांकन आरक्षित निधि, यदि कोई हो, पर विचार किए बिना), जैसा कि कंपनी के उससे तुरंत पहले के वित्त वर्ष के 31 मार्च के तुलन-पत्र से सुनिश्चित किया गया हो। यदि तुरंत पहले के वित्त वर्ष के 31 मार्च का तुलन-पत्र उपलब्ध न हो, तो बैंक द्वारा धारित कंपनी के इक्विटी शेयरों के संपूर्ण पोर्टफोलियो का मूल्यांकन 1 रुपया किया जाएगा। इन लिखतों के मूल्यह्रास का समंजन एएफएस श्रेणी के अंतर्गत धारित किन्हीं अन्य प्रतिभूतियों में मूल्यवृद्धि के विरुद्ध नहीं किया जाएगा। 12. एफआईटीएल/ ऋण या इक्विटी लिखतों द्वारा दर्शाई गई अप्राप्त आय का निर्धारण लाभ और हानि लेखा में केवल निम्नानुसार किया जा सकता है: क. एफआईटीएल/ ऋण लिखत: केवल बिक्री या मोचन पर, जैसा भी मामला हो; ख. कोट न की गई इक्विटी/ कोट की गई इक्विटी (जहां एनपीए के रूप में वर्गीकृत हो): केवल बिक्री पर; ग. कोट की गई इक्विटी (जहां मानक के रूप में वर्गीकृत हो): उन्नयन की तारीख को इक्विटी का बाजार मूल्य, जो ऐसी इक्विटी में संपरिवर्तित अप्राप्त आय की राशि से अधिक न हो। इक्विटी के मूल्य में उसके बाद हुए परिवर्तनों पर बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो पर मौजूदा विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। छ. स्वामित्व में परिवर्तन 13. उधारकर्ता संस्थाओं के स्वामित्व में परिवर्तन के मामले में, स्वामित्व परिवर्तन लागू करने के बाद संबंधित उधारकर्ता संस्था की ऋण सुविधाएं आईबीसी के अंतर्गत अथवा इस ढांचे के अंतर्गत जारी रखी जाएं/ मानक के रूप में उन्नयित की जाएं। यदि स्वामितव में परिवर्तन इस ढांचे के अंतर्गत लागू किया गया हो, तो मानक के रूप में वर्गीकरण निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगा: i) बैंक इस संबंध में आवश्यक समुचित सावधानी बरतेंगे तथा यह स्पष्ट रूप से स्थापित करेंगे कि अधिग्रहणकर्ता दिवालियापन और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की धारा 29 ए के अनुसार अपात्र व्यक्ति नहीं है। ii) नए प्रवर्तक को उधारकर्ता कंपनी की चुकता पूंजी के कम से कम 26 प्रतिशत का अधिग्रहण करना होगा तथा वह उधारकर्ता संस्था का सबसे बड़ा एकल शेयरधारक होगा। iii) कंपनी अधिनियम 2013 / भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड/ किसी अन्य लागू विनियमों/ लेखांकन मानकों, जैसा भी मामला हो, के द्वारा जारी विनियमों में परिभाषित नियंत्रण की परिभाषा के अनुसार नए प्रवर्तक के पास उधारकर्ता संस्था का नियंत्रण होगा। iv) मुख्य परिपत्र की धारा I - ग के अनुसार आरपी को लागू करने की शर्तों का पालन किया गया है। 14. ऐसे खातों को मानक के रूप में वर्गीकृत किया जाना जारी रखने हेतु विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान उधारकर्ता संस्था को दी गई सभी ऋण/क्रेडिट सुविधाओं द्वारा संतोषजनक कार्यनिष्पादन (जैसा कि ऊपर पैरा 3 में परिभाषित किया गया है) दर्शाना आवश्यक है। यदि विनिर्दिष्ट अवधि के दौरानकिसी भी समय खाते का कार्यनिष्पादन संतोषजनक नहीं हो, तो क्रेडिट सुविधाओं को तत्काल अनर्जक आस्तियों (एनपीए), अर्थात् अवमानक के रूप में अवक्रमित किया जाएगा। ऐसे खातों का ऋणदाताओं द्वारा कोई नया उन्नयन किसी नए आरपी (आईबीसी के अधीन, चाहे अनिवार्यत: फाइल किया हो, या ऋणदाताओं द्वारा स्वैच्छिक रूप से आरंभ किया गया हो, अथवा आईबीसी से बाहर) को कार्यान्वित करने तथा उसके बाद संतोषजनक कार्यनिष्पादन प्रदर्शन करने पर निर्भर होगा। 15. साथ ही, उधारकर्ता संस्थाओं के स्वामित्व में परिवर्तन की तारीख को, ऐसे खाते के लिए बैंक द्वारा धारित प्रावधानों की मात्रा की प्रतिप्रविष्टि, केवल विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान संतोषजनक कार्यनिष्पादन के बाद ही की जा सकती है। II. बिक्री और लीज़ बैक लेनदेनों के पुनर्रचना के रूप में वर्गीकरण के लिए सिद्धान्त 16. उधारकर्ता की आस्तियों की बिक्री और लीज़बैक लेनदेन, अथवा उसके समान प्रकृति के अन्य लेनदेनों को बैंक की बहियों में विक्रेता के अवशिष्ट ऋण तथा क्रेता के ऋण के संबंध में आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण के प्रयोजन से पुनर्रचना की घटना माना जाएगा, यदि निम्नलिखित सभी शर्तें पूरी की जाती हैं: i) आस्तियों का विक्रेता वित्तीय कठिनाई में है; ii) विनिर्दिष्ट आस्तियों से क्रेता की आय का बड़ा भाग, अर्थात् 50 प्रतिशत से अधिक विक्रेता के नकद प्रवाहों पर निर्भर करता है; iii) विनिर्दिष्ट आस्ति खरीदने के लिए क्रेता द्वारा लिए गए कर्ज के 25 प्रतिशत का निधीयन उन ऋणदाताओं द्वारा किया गया है, जिनका विक्रेता के प्रति पहले से ऋण एक्सपोजर है। III. उधारकर्ताओं को एक्पोजरों का पुनर्वित्तीयन किसी अलग मुद्रा में करने के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड 17. यदि रुपया ऋण की चुकौती/ पुनर्वित्त के प्रयोजन से विदेशी मुद्रा उधार/ निर्यात अग्रिम निम्नलिखित से लिए गए हैं:
यदि संबंधित उधारकर्ता वित्तीय कठिनाई में है तो ऐसी घटनाओं को पुनर्रचना माना जाएगा। 18. समान रूप से, विदेशी मुद्रा ऋण/ निर्यात अग्रिमों की चुकौती/ पुनर्वित्त हेतु दिए गए रुपया ऋणों को भी ‘पुनर्रचना’ माना जाएगा यदि इस प्रकार के रुपया ऋण वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहे ऋणधारक को प्रदान किए गए हैं। IV. विनियामकीय छूट भारतीय रिज़र्व बैंक के निदेशों से छूट 19. ऋण के रूपांतरण द्वारा गैर एसएलआर प्रतिभूतियों के अजर्न को प्रतिबंधों तथा सूची में शामिल नहीं किए गए गैर एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण सीमा में छूट दी गई है। 20. पुनर्रचना प्रक्रिया के दौरान कर्ज को इक्विटी में रूपांतरित करने के कारण शेयरों के अधिग्रहण को पूंजी बाज़ार एक्सपोज़र, पैरा बैंकिंग गतिविधियों और अंतर समूह एक्सपोजर पर विनियामकीय उच्चतम सीमा/ प्रतिबंध से छूट दी जाएगी। तथापि, इनको भारतीय रिजर्व बैंक को रिपोर्ट किया जाना (प्रतिमाह आस्ति गुणवत्ता पर नियमित डीएसबी विवरणी के साथ डीबीएस, केंद्रीय कार्यालय को रिपोर्ट किया जाना) और बैंकों द्वारा वार्षिक वित्तीय विवरणियों के लेखे पर टिप्पणियां में प्रकटीकरण किया जाना अपेक्षित होगा। फिर भी, बैंकों को बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 19(2) के प्रावधानों का पालन करना होगा। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के विनियमों से छूट 21. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी विनियमों के अनुसार की गई पुनर्रचनाओं के लिए सेबी ने, कतिपय शर्तों के अधीन, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) (पूंजी का निर्गमन और प्रकटीकरण अपेक्षाएं) (आईसीडीआर) विनियम, 2009 और साथ ही साथ सेबी (शेयरों का पर्याप्त अर्जन और अधिग्रहण) विनियम, 2011 की अपेक्षाओं से छूट दी है। 22. आईसीडीआर विनियम, 2009 के उप विनियम 70 (5) (क) और 70 (6) (क) में निहित अपेक्षाओं के संबंध में, इक्विटी का निर्गम मूल्य निम्नलिखित (i) अथवा (ii) से कम वाला होना चाहिए: i) 'संदर्भ तिथि' से पूर्व के छब्बीस सप्ताह के दौरान मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर उद्धृत संबंधित इक्विटी शेयरों के परिमाण भारित औसत मूल्य के साप्ताहिक उच्च और निम्न मूल्य का औसत अथवा 'संदर्भ तिथि' से पूर्व के दो सप्ताह के दौरान मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर उद्धृत संबंधित इक्विटी शेयरों के परिमाण भारित औसत मूल्य के साप्ताहिक उच्च और निम्न मूल्य का औसत जो भी कम हो; और ii) बही मूल्यः प्रति शेयर बही मूल्य की गणना पूर्व की पुनर्रचना के नकदी प्रवाह और वित्तीय स्थितियों, यदि कोई हो, के समायोजन के बाद तत्काल पूर्ववर्ती वित्त वर्ष (पुनर्मूल्यांकन निधियां यदि कोई हो, पर विचार न करते हुए) की 31 मार्च तक की लेखापरीक्षित तुलनपत्र से की जाएगी। तुलनपत्र एक वर्ष से पुराना नहीं होगा। यदि तत्काल पूर्ववर्ती वित्त वर्ष से संबंधित 31 मार्च तक का लेखापरीक्षित तुलनपत्र उपलब्ध नहीं है, तो उधारकर्ता कंपनी के कुल बही मूल्य को 1 रुपया माना जाएगा। 23. ऋण को इक्विटी में रूपांतरित करने के मामले में, ‘संदर्भ तिथि’ बैंक द्वारा पुनर्रचना योजना अनुमोदित करते की तारीख होगी। परिवर्तनीय प्रतिभूतियों को इक्विटी में रूपांतरित करने के मामले में, ‘संदर्भ तिथि’ बैंक द्वारा परिवर्तनीय प्रतिभूतियों को इक्विटी में परिवर्तित करने हेतु अनुमोदन करने की तारीख होगी। नये प्रवर्तक को नये शेयर जारी करने के संबंध में ‘संदर्भ तिथि’ बैंक और नये प्रवर्तक के बीच बाध्यकारिता समझौते पर हस्ताक्षर करने की तारीख होगी। 24. एसएएसटी विनियम 2001 के उप विनियम 10 (1) (i क) (क) में निहित अपेक्षाओं के संबंध में, बैंकों द्वारा अधिग्रहित इक्विटी लिखतों को नये प्रवर्तक के पक्ष में बेचते समय (पुनर्रचना प्रक्रिया के भाग के रूप में) बिक्री मूल्य बातचीत कर तय किया गया मूल्य होगा। तथापि, बिक्री मूल्य ‘उचित मूल्य‘ से कम नहीं होगा, जो निम्नलिखित (i) और (ii) में से जो अधिक हो, वह होगा। i) 'संदर्भ तिथि' से पूर्व के छब्बीस सप्ताह के दौरान मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर उद्धृत संबंधित इक्विटी शेयरों के परिमाण भारित औसत मूल्य के साप्ताहिक उच्च और निम्न मूल्य का औसत अथवा 'संदर्भ तिथि' से पूर्व के दो सप्ताह के दौरान मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर उद्धृत संबंधित इक्विटी शेयरों के परिमाण भारित औसत मूल्य के साप्ताहिक उच्च और निम्न मूल्य का औसत जो भी अधिक हो; और ii) बही मूल्यः प्रति शेयर बही मूल्य की गणना पूर्व की पुनर्रचना के नकदी प्रवाह और वित्तीय स्थितियों, यदि कोई हो, के समायोजन के बाद तत्काल पूर्ववर्ती वित्त वर्ष की लेखापरीक्षित तुलनपत्र से की जाएगी । तुलनपत्र एक वर्ष से पुराना नहीं होगा । 25. गिरवी के रूपांतरण/ प्रयोग करने के कारण बैंकों द्वारा धारित इक्विटी की बिक्री की स्थिति में, ‘संदर्भ तिथि’ बैंक और नये प्रवर्तक के बीच शेयर खरीद समझौते के निष्पादन की तारीख होगी। V. इन दिशानिर्देशों का लागू न होना 26. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006’ के अंतर्गत निर्धारित एसएसएमई का पुनरुज्जीवन और पुनर्वास, समय समय पर यथा संशोधित दिनांक 17 मार्च 2016 के परिपत्र सं. एफआईडीडी. एमएसएमई एन्ड एनएफएस.बीसी.सं 21/06.02.31/2015-16 से मार्गदर्शन लेना जारी रहेगा। 27. प्राकृतिक आपदा की दशा में ऋणों की पुनर्रचना समय समय पर यथा संशोधित मास्टर निदेश एफआईडीडी. केंका. एफएसडी.बीसी.सं 8/05.10.001/2017-18 में निहित निर्देशों के अनुसार मार्गदर्शन लेना जारी रहेगा। VI. धोखाधडियों/ इरादतन चूककर्ताओं के मामले 28. जिन उधारकर्ताओं ने धोखाधडी/ अपराध/ इरादतन चूक की है वे पुनर्रचना के लिए अयोग्य बने रहेंगे। तथापि, ऐसे मामलों में जहां वर्तमान प्रवर्तकों के स्थान पर नये प्रवर्तकों को लाया जाता है, और उधारकर्ता कंपनी इस प्रकार के पूर्ववर्ती प्रवर्तकों/ प्रबंधन से पूर्णतः असंबद्ध हो जाती है, पूर्ववर्ती प्रवर्तकों/ प्रबंधन के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई जारी रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऋणदाता उनकी व्यवहार्यता के आधार पर इस तरह के खातों की पुनर्रचना पर विचार कर सकते हैं। वित्तीय कठिनाई के लक्षणों की अपरिपूर्ण संकेतक सूची
निरसित परिपत्रों की सूची
1 चूक से तात्पर्य ऋण का भुगतान न किए जाने से है, जब देनदार या कार्पोरेट देनदार, जैसा भी मामला हो, द्वारा लिया गया ऋण पूर्णत: या ऋण के किसी भाग या किश्त राशि का एक हिस्सा देय और भुगतान योग्य होने पर भुगतान न किया गया हो। 2 दिशानिर्देश के अनुसार ऋणदाताओं में सामान्यत: सभी वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएं शामिल होते हैं, जब तक कि अन्यथा विनिर्दिष्ट न किया गया हो। नकद ऋण जैसी परिक्रामी सुविधाओं के संदर्भ में चूक का अर्थ यह भी होगा कि, उक्त शर्तों पर किसी प्रकार प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बकाया शेष, मंजूर सीमा या आहरण शक्ति, जो भी कम हो, से लगातार 30 दिनों से ज्यादा बेशी बना हुआ है। 3 इन दिशानिर्देशों के अधीन संकलित एक्स्पोज़र में ऋणदाताओं के पास के सभी निधि आधारित और गैर निधि आधारित एक्स्पोज़र शामिल होगा। 4 पुन: संरचना एक ऐसी कार्रवाई है जिसके अंतर्गत ऋणदाता द्वारा उधारकर्ता को उनकी वित्तीय समस्या (उदाहरण स्वरूप वित्तीय कठिनाई के संदर्भ में संकेतकों की एक सीमित सूची परिशिष्ट में अनुलग्नक-I में दी गई है), से संबंधित आर्थिक, विधिक कारणों से छूट दी जाती है। पुनर्गठन में आम तौर पर ऋण/ प्रतिभूतियों की शर्तों का संशोधन शामिल होता है, जिसमें चुकौती अवधि/ पुनर्देय राशि/ ब्याज किश्तों की राशि/ ऋण सुविधाओं का रोल ओवर; अतिरिक्त ऋण सुविधा की मंजूरी; मौजूदा साख सीमाओं की वृद्धि; और, जहां सेटलमेंट राशि के भुगतान के लिए समय तीन महीने से अधिक है वैसे समझौता निपटान आदि शामिल हो सकते हैं। 5 इस संदर्भ में अवशिष्ट ऋण (निधि आधारित और गैर निधि आधारित) का तात्पर्य प्रस्तावित आरपी के अनुसार सभी ऋणदाताओं द्वारा धारित करने के लिए परिकल्पित संकलित ऋण से है। 6 अनुबंध -2 में आरपी चिह्नों की सूची दी गई है, जिसे सीआरए द्वारा आईसीई तथा उसके आशय के रूप में दिया जा सकता है। 7 निर्धारित समयावधि उच्चतम सीमा है। ऋणदाता आईबीसी के अंतर्गत समया-सीमा पूरा होने से पहले या आईबीसी के बाहर रहते हुए आरपी के लिए प्रयास न करते हुए उधारकर्ता के विरुद्ध दिवाला याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं। 8 आईबीसी के अंतर्गत अधिसूचित संस्थाओं के लिए लागू 9 आरपी को अंतिम रूप दिए जाने और कार्यान्वित किए जाने की अवधि के दौरान, सामान्य आस्ति वर्गीकरण मानदंड लागू होते रहेंगे। आस्ति के पुनर्वर्गीकरण की प्रक्रिया केवल इसीलिए नहीं रोकी जाए कि आरपी पर विचार चल रहा है। 10 जिन खातों के संबंध में बैंकों को पहले ही आईबीसी के तहत दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जा चुके हैं, पूर्व में बताए गए न्यूनतम प्रावधान बनाए रखे जाएंगे। 11 यह बैंकों को दिवालिया और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 के तहत आवेदन करने के निदेश के अतिरिक्त हो सकता है। 12 वित्तीय कठिनाइयों के संकेतकों की एक उदाहरणात्मक (किन्तु विस्तृत नहीं) सूची परिशिष्ट में दी गई है। 13 आईबीसी के अंतर्गत की गई सहित सभी समाधान योजनाओं पर लागू। 14 आईबीसी के अंतर्गत आने वाले खातों के लिए विनिर्दिष्ट अवधि अधिन्यायी प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित समाधान योजना के कार्यान्वयन की तिथि से आरंभ मानी जाएगी। 15 ये रेटिंग सीआरए द्वारा दिए गए सामान्य रेटिंग होंगे, न कि आईसीई, जिनका संदर्भ मुख्य परिपत्र के पैरा 6 में दिया गया है। 16 वृहत खातों के लिए यह अनिवार्य आईबीसी फाइलिंग के अतिरिक्त होगा। |