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मास्टर परिपत्र - अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों/ विदेशी नागरिकों के लिए विप्रेषण सुविधाए

आरबीआई/2012-13/08
मास्टर परिपत्र सं.08/2012-13

02 जुलाई 2012

सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी - । बैंक और प्राधिकृत बैंक

महोदया /महोदय

मास्टर परिपत्र - अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों/
विदेशी नागरिकों के लिए विप्रेषण सुविधाएं

अनिवासी भारतीयों/ भारतीय मूल के व्यक्तियों/ विदेशी नागरिकों के लिए विप्रेषण सुविधाएं समय-समय पर यथा संशोधित 3 मई 2000 की फेमा अधिसूचना सं. 13/2000-आरबी और फेमा अधिसूचना सं.21/2000-आरबी के साथ पठित विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा 6 की उप धारा (1) और (2) द्वारा नियंत्रित की जा रही हैं।

2. इस मास्टर परिपत्र में "अनिवासी भारतीयों/ भारतीय मूल के व्यक्तियों/ विदेशी नागरिकों के लिए विप्रेषण सुविधाएं" विषय पर वर्तमान अनुदेशों को एक ही स्थान में समेकित किया गया है। इस मास्टर परिपत्र में समेकित निहित परिपत्रों / अधिसूचनाओं की सूची परिशिष्ट में दी गयी है।

3. इस मास्टर परिपत्र को एक वर्ष के लिए ("सनसेट खंड" के साथ) जारी किया जा रहा है। इस परिपत्र को 01 जुलाई 2013 को वापस ले लिया जाएगा तथा उसके स्थान पर इस विषय पर अद्यतन मास्टर परिपत्र जारी किया जाएगा।

भवदीय,

(रुद्र नारायण कर)
मुख्य महाप्रबंधक


अनुक्रमणिका

1.

अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों और विदेशी नागरिकों के लिए विप्रेषण सुविधाएं

2.

अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति की परिभाषा

3.

चालू आय का विप्रेषण

4.

गैर-भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों द्वारा परिसंपत्तियों का विप्रेषण

5.

अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति द्वारा परिसंपत्तियों का विप्रेषण

6.

वेतन का विप्रेषण

7.

अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्तियों द्वारा विदेशी मुद्रा से खरीदी गई आवासीय संपत्ति की बिक्री आय का प्रत्यावर्तन

8.

विद्यार्थियों के लिए सुविधा

9.

आयकर बेबाकी

10.

अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड

संलग्नक-1

भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत किये जानेवाले विवरण/विवरणियां

संलग्नक-2

प्राधिकृत व्यापारी बैंकों के लिए परिचालनत्मक अनुदेश

परिशिष्ट

इस मास्टर परिपत्र में समेकित अधिसूचनाओं/परिपत्रों की सूची

1. अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों और विदेशी नागरिकों लिए विप्रेषण सुविधाएं

भारत में निवासी या भारत के बाहर के व्यक्ति द्वारा परिसंपत्तियों के भारत से बाहर अंतरण के लिए विनियमावली, 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा 13/2000-आरबी और फेमा 21/2000-आरबी तथा इन अधिसूचनाओं से संबंधित संशोधनों में दी गई है। तदनुसार, भारत में निवासी या भारत के बाहर रहने वाले व्यक्ति द्वारा भारत में धारित पूंजी परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त निधियों के विप्रेषण के लिए फेमा अथवा उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों में दी गई सीमा को छोड़कर भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमोदन की आवश्यकता है।

2. अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति की परिभाषा

3 मई 2000 की फेमा अधिसूचना सं.13 के विनियम 2 के अनुसार, अनिवासी भारतीय का अर्थ भारत से बाहर रहनेवाला वह व्यक्ति है जो भारत का नागरिक है। भारतीय मूल के व्यक्ति का अर्थ बांगलादेश अथवा पाकिस्तान को छोड़कर किसी देश का नागरिक, जिसके पास (ए) किसी समय भारतीय पासपोर्ट था अथवा (बी) वह अथवा उसके माता पिता दोनों अथवा उसके दादा-दादी में से कोई एक भारतीय संविधान अथवा नागरिकता अधिनियम 1955 के नाते भारतीय नागरिक थे अथवा (सी) वह व्यक्ति किसी भारतीय नागरिक का पति / पत्नी है अथवा (ए) अथवा (बी) में उल्लिखित व्यक्ति है।

3. चालू आय का विप्रेषण

3.1 खाताधारक का भारत में किराए, लाभांश, पेंशन, ब्याज जैसे चालू आय का भारत के बाहर विप्रेषण एनआरओ खाते में नामे डालते हुए स्वीकार्य है। प्राधिकृत व्यापारी बैंक, सनदी लेखाकार द्वारा दिया गया उचित प्रमाणपत्र जिसमें यह प्रमाणित किया गया है कि प्रेषित की जानेवाली राशि विप्रेषण के लिए पात्र है और कि लागू कर का भुगतान किया गया है/उनके लिए प्रावधान किया गया है, के आधार पर एनआरओ खाते नहीं रखनेवाले अनिवासी भारतीयों के किराए, लाभांश, पेंशन, ब्याज जैसे चालू आय का प्रत्यावर्तन करने के लिए भी अनुमति दें।

3.2 अनिवासी भारतीय/ भारतीय मूल के व्यक्ति को अपने अनिवासी (बाह्य) रुपया खाते में चालू आय को जमा करने का विकल्प है बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी इस बात से संतुष्ट हो कि जमा अनिवासी खाता धारक के चालू आय को दर्शाता है तथा उस पर आयकर की कटौती की गई है/उसका प्रावधान किया गया है।

3.3 विदेशी राष्ट्रिक जो भारत में रोजगार के लिए आते हैं और विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 की धारा 2 (v) के अनुसार निवासी हो जाते हैं और निवासी बचत बैंक खाता खोलने/रखने के लिए पात्र हो जाते हैं, उन्हें रोजगार के बाद देश छोड़ने पर अपने भारत में रखे निवासी खाते को एनआरओ खाते में पुनर्नामित करने की अनुमति है ताकि वे कतिपय शर्तों के तहत वैध प्राप्तियाँ प्राप्त कर सकें।

4. गैर- भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों द्वारा परिसंपत्तियों का विप्रेषण

4.1 गैर- भारतीय मूल का विदेशी नागरिक, जो भारत में नौकरी से सेवा निवृत्त हुआ है अथवा जिसने भारत में निवासी व्यक्ति से विरासत में परिसंपत्ति प्राप्त की है अथवा जो भारत में निवासी भारतीय नागरिक की विधवा है, वह परिसंपत्ति के अधिग्रहण/विरासत में प्राप्ति के दस्तावेजी साक्ष्य के साथ प्राधिकृत व्यापारी बैंक के संतुष्ट होने पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के दिनांक 9 अक्तूबर 2002 के परिपत्र सं.10/2002 द्वारा निर्धारित फार्मेटों में प्रेषणकर्ता के वचन पत्र और सनदी लेखाकार के प्रमाणपत्र की प्रस्तुति पर प्रति वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में अधिकतम एक मिलियन अमरीकी डालर की राशि विप्रेषित कर सकता है।

4.2 ये विप्रेषण सुविधाएं नेपाल और भूटान के नागरिकों के लिए उपलब्ध नहीं है।

4.3 यदि भारत में निवासी कोई व्यक्ति भारत से बाहर नौकरी करने या कोई कारोबार/ व्यवसाय / पेशेवर कार्य करने के लिए किसी अन्य देश (नेपाल और भूटान से भिन्न) चला जाता है या अनिश्चित अवधि के लिए किसी अन्य प्रयोजन से भारत छोड़ता है, तो उसका मौजूदा खाता अनिवासी (सामान्य) (एनआरओ) खाते के रूप में नामित किया जाना चाहिए । विदेशी राष्ट्रिकों को भारत में उन्हें देय राशियां प्राप्त करने को सुलभ बनाने की दृष्टि से मौजूदा अनुदेशों की समीक्षा की गयी है। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक ऐसे विदेशी राष्ट्रिकों को भारत में रखे गये उनके निवासी खाते उनके नियोजन के बाद देश छोड़ने पर एनआरओ खाते के रूप में पुन: नामित करने की अनुमति दें जिससे वे अपनी शेष वास्तविक प्राप्य राशियां प्राप्त कर सकें बशर्ते निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हों:

ए. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों को खाता धारकों से उनके खाते में प्राप्य विधि-संगत राशि के बारे में पूरे ब्योरे प्राप्त करने चाहिए ।

बी. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों को ऐसी जमाराशियों के संबंध में संतुष्ट होना चाहिए जो उसके / उनके भारत में निवासी होने के दौरान खाता धारक को वास्तविक रूप में देय थीं ।

सी. एनआरओ खाते में जमा निधियां विदेश में अविलंब प्रत्यावर्तित की जानी चाहिए बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक भारत में लागू आय कर और अन्य करों के भुगतान होने के संबंध में संतुष्ट हों ।

डी. विदेश में प्रत्यावर्तित की गयी राशि प्रति वित्तीय वर्ष एक मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक नहीं होनी चाहिए ।

ई. खाता धारक के विदेश में रखे गए खाते में केवल प्रत्यावर्तन प्रयोजन के लिए खाते को नामे किया जाना चाहिए ।

एफ. उनके खाते में उपर्युक्त मद (ए) में दर्शायी गयी मद से भिन्न कोई अन्य राशि/जमा नहीं होनी चाहिए ।

जी. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक ऐसे खाते में जमा और नामे होने पर निगरानी रखने के लिए उचित आंतरिक नियंत्रण व्यवस्था करें ।

एच. उपर्युक्त पैराग्राफ 2 (ए) में उल्लिखित खाता धारकों द्वारा की गयी घोषणा के अनुसार सभी देय राशियां प्राप्त होने और प्रत्यवर्तित किये जाते ही खाता तुरंत बंद कर देना चाहिए ।

5. अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति द्वारा परिसंपत्तियों का विप्रेषण

5.1 अनिवासी भारतीय अथवा भारतीय मूल का व्यक्ति सभी वास्तविक प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत व्यापारी के संतुष्ट होने पर तथा केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के 9 अक्तूबर 2002 के परिपत्र सं.10/2002 द्वारा निर्धारित फार्मेंटों में प्रेषणकर्ता द्वारा एक वचन पत्र और सनदी लेखाकार के प्रमाण पत्र की प्रस्तुति पर अपने अनिवासी (सामान्य) रुपया (एनआरओ) खाता की शेष राशि/परिसंपत्तियों (उत्तराधिकार अथवा समझौते में अधिगृहीत परिसंपत्तियों सहित) की बिक्री से प्राप्त राशि में से प्रति वित्तीय वर्ष एक मिलियन अमरीकी डालर की राशि विप्रेषित कर सकता है।

5.2 अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल का व्यक्ति रुपया निधि में से उपर्युक्त पैरा 5.1 में दर्शाए अनुसार (अथवा भारत के निवासी व्यक्ति के रूप में) उसके द्वारा खरीदी गयी अचल संपत्ति की बिक्री से प्राप्त आय का विप्रेषण बिना किसी अवरुद्धता अवधि के कर सकता है।

5.3 विरासत या वसीयत या हस्तांतरण(सेटलमेंट) के रूप में अर्जित परिसंपत्तियों की बिक्री आय, जहां कोई अवरुद्धता अवधि नहीं है, के विप्रेषण के संबंध में अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल का व्यक्ति परिसंपत्तियों के विरासत या वसीयत के समर्थन में दस्तावेजी साक्ष्य, निर्धारित फॉर्मेटों में प्रेषक द्वारा एक वचनपत्र और सनदी लेखाकार द्वारा एक प्रमाणपत्र प्राधिकृत व्यापारी को प्रस्तुत करें। हस्तांतरण भी माता पिता से विरासत में प्राप्ति का एक तरीका है फर्क सिर्फ इतना है कि हस्तांतरण के तहत मालिक/माता-पिता की मृत्यु पर संपत्ति बिना किसी कानूनी प्रक्रिया/बाधा के लाभार्थी को मिल जाती है और प्रमाणित करने (प्रोबेट) आदि के लिए आवेदन करने के विलंब और असुविधा से बचने में सहायता करती है। यदि संपत्ति में आजीवन हित न रखते हुए हस्तांतरण (सेटेलमेंट) किया जाता है तो, यह उपहार के रूप में नियमित हस्तांतरण के बराबर होगा। अत: यदि बिना निपटानकर्ता के आजीवन हित के समझौते के माध्यम से अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल का व्यक्ति संपत्ति को प्राप्त करता है तो, इसे उपहार द्वारा हस्तांतरण माना जाए और ऐसी संपत्ति की बिक्री आय के विप्रेषण एनआरओ खाते में शेष के विप्रेषण संबंधी वर्तमान अनुदेशों से नियंत्रित होगें।

5.4 (ए) अचल संपत्ति की बिक्री आय के संबंध में विप्रेषण की सुविधा पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, नेपाल और भूटान के नागरिकों को उपलब्ध नहीं है। कोई व्यक्ति या उसका उत्तराधिकारी जिसने फेमा, 1999 की धारा 6 (5) के अनुसार, अचल संपत्ति अर्जित की है वह रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बिना ऐसी संपत्ति की बिक्री आय को भारत से बाहर प्रत्यावर्तित नहीं कर सकता है ।

(बी) अन्य वित्तीय परिसंपत्तियों की बिक्री आय के विप्रेषण की सुविधा पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के नागरिकों को उपलब्ध नहीं है।

6. वेतन का विप्रेषण

6.1 किसी विदेशी कंपनी का कर्मचारी होने के कारण किसी विदेशी राष्ट्र का भारत में निवासी कोई नागरिक और इस प्रकार की किसी विदेशी कंपनी के भारत में कार्यालय/शाखा/सहयोगी कंपनी/संयुक्त उद्यम में प्रतिनियुक्ति पर कोई व्यक्ति अथवा भारत में निगमित किसी कंपनी का कर्मचारी होने के कारण भारत से बाहर किसी बैंक में विदेशी मुद्रा खाता खोल सकता है, धारित कर सकता है और खाते का रखरखाव कर सकता है तथा प्रदान की गयी सेवाओं के लिए उसे देय समग्र वेतन ऐसे खाते में जमा करते हुए प्राप्त/प्रेषित कर सकता है बशर्ते भारत में अर्जित किये गये अनुसार आयकर अधिनियम, 1961 के तहत समग्र वेतन पर लागू आयकर अदा किया जाता है।

6.2 किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत से बाहर नियुक्त भारत का कोई नागरिक और इस प्रकार की किसी विदेशी कंपनी के भारत में कार्यालय/शाखा/सहयोगी कंपनी/ संयुक्त उद्यम में प्रतिनियुक्ति पर कोई व्यक्ति भारत से बाहर किसी बैंक में विदेशी मुद्रा खाता खोल सकता है, धारित कर सकता है और खाते का रखरखाव कर सकता है तथा इस प्रकार की विदेशी कंपनी के भारत में कार्यालय/ शाखा/ सहयोगी कंपनी/ संयुक्त उद्यम को प्रदान की गयी सेवाओं के लिए उसे देय समग्र वेतन ऐसे खाते में जमा करते हुए प्राप्त कर सकता है बशर्ते भारत में अर्जित किये गये अनुसार आयकर अधिनियम, 1961 के तहत समग्र वेतन पर लागू आयकर अदा किया जाता है ।

(वेतन के विप्रेषण पर उपर्युक्त प्रावधान विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000 की अनुसूची ।।। (7) के साथ पढ़े जाएं)

7. अनिवासी भारतीय / भारतीय मूल के व्यक्तियों द्वारा विदेशी मुद्रा से खरीदी गई आवासीय संपत्ति की बिक्री आय का प्रत्यावर्तन

7.1 अनिवासी भारतीयों/भारतीय मूल के व्यक्तियों द्वारा खरीदी गई आवासीय संपत्ति की बिक्री आय का प्रत्यावर्तन अचल संपत्ति के लिए बैंकिग चैनल के माध्यम से प्राप्त विदेशी मुद्रा में अदा की गई राशि तक स्वीकार्य है। यह सुविधा ऐसी दो संपत्तियों तक सीमित है। शेष राशि एनआरओ खाते में जमा की जा सकती है और पैराग्राफ 5.1 में दर्शाये गये अनुसार एक मिलियन अमरीकी डॉलर सुविधा के तहत विप्रेषित की जा सकती है।

7.2 प्राधिकृत व्यापारी बैंक फ्लैटों/प्लाटों के आबंटन न होने/ रिहायशी/ वाणिज्यिक संपत्ति की खरीद की बुकिंग/डील के रद्द होने के कारण मकान बनानेवाली एजेंसियों/ विक्रेताओं द्वारा आवेदन/बयाना राशि/ क्रय प्रतिफल की धनवापसी को दर्शानेवाली राशियों, यदि कोई ब्याज हो तो, उसके साथ (उस पर देय आयकर का निवल) के प्रत्यावर्तन की अनुमति दे सकता है, बशर्ते मूल भुगतान खाताधारक के एनआरई/एफसीएनआर(बी) खाते अथवा सामान्य बैंकिंग चैनल के माध्यम से भारत के बाहर से विप्रेषण द्वारा किया गया हो तथा प्राधिकृत व्यापारी बैंक लेनदेन की सच्चाई से संतुष्ट हों। ऐसी निधियां, अनिवासी भारतीयों/ भारतीय मूल के व्यक्तियों की इच्छा से उनके एनआरई/ एफसीएनआर(बी) खाते में भी जमा की जा सकती है।

7.3 प्राधिकृत व्यापारी बैंक अनिवासी भारतीय/भारतीय मूल के व्यक्ति द्वारा प्राधिकृत व्यापारी/आवास वित्तपोषण संस्थाओं से ऋण के रूप में जुटाई गई निधियों से खरीदे गए रिहायशी आवास की बिक्री आय के प्रत्यावर्तन की उस सीमा तक अनुमति दे सकता है जिस सीमा तक उसने ऐसे ऋणों की चुकौती सामान्य बैंकिंग चैनल के माध्यम से प्राप्त विदेशी आवक विप्रेषणों से अथवा अपने एनआरई/ एफसीएनआर(बी) खाते के नामे डालकर की है।

8. विद्यार्थियों के लिए सुविधा

8.1 अध्ययन के लिए विदेश जानेवाले विद्यार्थियों को अनिवासी भारतीय माना जाता है और वे फेमा के अधीन अनिवासी भारतीयों को उपलब्ध सभी सुविधाओं के लिए पात्र हैं।

8.2 अनिवासी भारतीयों के रूप में वे भारत से (i) निर्वाह के लिए स्वयं घोषणा करने पर भारत के नज़दीकी रिश्तेदारों से 1,00,000/- अमरीकी डॉलर, जिसमें उसके अध्ययन के लिए विप्रेषण भी शामिल है, और (ii) परिसंपत्तियों की बिक्री आय/ भारत में किसी प्राधिकृत व्यापारी के पास रखे गए अपने एनआरओ खातों की शेष राशि में से प्रति वित्तीय वर्ष 1 मिलियन अमरीकी डॉलर तक तथा (iii) उदारीकृत विप्रेषण योजना के तहत प्रति वित्तीय वर्ष 200,000 अमरीकी डॉलर तक विप्रेषण प्राप्त करने के पात्र होंगे।

8.3 फेमा के अधीन अनिवासी भारतीयों को उपलब्ध अन्य सभी सुविधाएं विद्यार्थियों पर भी समान रूप से लागू हैं।

8.4 भारत के निवासी के रूप में उनके द्वारा लिए गए शैक्षिक और अन्य ऋणों की उपलब्धता फेमा के विनियमों के अनुसार बनी रहेगी।

9. आयकर बेबाकी (इंनकम टैक्स क्लीयरेंस)

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 9 अक्तूबर 2002 के उनके परिपत्र सं. 10/2002 द्वारा निर्धारित फार्मेटों में प्रेषक द्वारा दिए गए वचनपत्र और सनदी लेखाकार द्वारा दिए गए प्रमाणपत्र की प्रस्तुति पर प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा विप्रेषण किये जाने के लिए अनुमति दी जाएगी। [ 26 नवंबर 2002 का ए.पी.(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.56 देखें]।

10. अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड

प्राधिकृत व्यापारी को भारतीय रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बिना अनिवासी भारतीय/ भारतीय मूल के व्यक्ति को अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड जारी करने की अनुमति दी गई है। ऐसे लेनदेन का निपटारा आवक विप्रेषणों अथवा कार्ड धारकों के विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता (बी)/ अनिवासी विदेशी / अनिवासी (सामान्य) रुपया खाते में रखे शेष राशि में से किया जाए।


संलग्नक-1

भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत किये जानेवाले विवरण/ विवरणियां

अनिवासी भारतीयों/ भारतीय मूल के व्यक्तियों/ विदेशी नागरिकों के लिए
विप्रेषण सुविधा संबंधी मास्टर परिपत्र

विवरण के ब्योरे

अवधि

संबंधित अनुदेश

अनिवासी भारतीयों/ भारतीय मूल के व्यक्तियों और विदेशी नागरिकों को सुविधाएं- उदारीकरण- एनआरओ खाते से विप्रेषण

तिमाही

16 नवंबर 2006 का ए.पी (डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 12


संलग्नक-2

प्राधिकृत व्यापारी बैंकों के लिए परिचालनात्मक अनुदेश

1. सामान्य

1.1 प्राधिकृत व्यापारी बैंक, विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम,1999 के तहत जारी अधिनियम/ विनियमों/ अधिसूचनाओं के प्रावधानों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें।

1.2 विभिन्न लेनदेनों के लिए विप्रेषण की अनुमति देते समय प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा सत्यापित किए जानेवाले दस्तावेज़ों का निर्धारण रिज़र्व बैंक नहीं करेगा। इस संबंध में प्राधिकृत व्यापारी बैंक अधिनियम की धारा 10 की उप-धारा (5) देखें।

1.3 अधिनियम की धारा 10 की उप-धारा 5 में दिए गए प्रावधानों के अनुसार, किसी व्यक्ति की ओर से विदेशी मुद्रा में कोई लेनदेन करने के पहले प्राधिकृत व्यापारी से अपेक्षित है कि वह उस व्यक्ति (आवेदक), जिसकी ओर से लेनदेन किया जा रहा है, से एक घोषणा और अन्य ऐसी सूचनाएं प्राप्त करें जो उसे उपयुक्त रूप से संतुष्ट करेगा कि लेनदेन अधिनियम के प्रावधानों अथवा बनाए गए नियमों अथवा विनियमों अथवा अधिसूचनाओं अथवा अधिनियम के तहत जारी निदेशों अथवा आदेशों का उल्लंघन अथवा अपवंचन नहीं करते हैं। प्राधिकृत व्यापारी बैंक लेनदेन करने से पूर्व आवेदक से प्राप्त सूचनाएं/ दस्तावेज़ों को रिज़र्व बैंक द्वारा सत्यापन के लिए सुरक्षित रखे।

1.4 उस स्थिति में जहां व्यक्ति, जिसकी ओर से लेनदेन किया जा रहा है, प्राधिकृत व्यापारी बैंक की अपेक्षाओं को पूरा करने से इंकार करता है अथवा संतोषजनक अनुपालन नहीं करता है तो, लिखित रूप में उसे लेनदेन करने से इंकार कर दिया जाएगा। जहां प्राधिकृत व्यापारी बैंक को यह विश्वास करने का कारण है कि लेनदेन में अधिनियम अथवा उसके तहत बनाए गए नियमों अथवा विनियमों अथवा जारी अधिसूचनाओं के उल्लंघन अथवा अपवंचन के इरादे से उस व्यक्ति ने लेनदेन करने से इंकार किया है तो वह रिज़र्व बैंक को इसकी सूचना दे।

1.5 समान पद्धति बनाए रखने की दृष्टि से प्राधिकृत व्यापारी बैंक अपनी शाखाओं से प्राप्त होने वाली अपेक्षाओं और दस्तावेज़ों पर विचार करें जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिनियम की धारा 10 की उप-धारा (5) के प्रावधानों का अनुपालन किया जाता है।

2.चालू आय का विप्रेषण

2.1 खाता धारक के भारत में किराया, लाभांश, पेंशन, ब्याज आदि जैसे चालू आय का भारत से बाहर विप्रेषण एनआरओ खाते में स्वीकार्य नामे है। प्राधिकृत व्यापारी बैंक एनआरओ खाता न रखनेवाले अनिवासी भारतीयों के किराया, लाभांश, पेंशन, ब्याज जैसे चालू आय का भारत में प्रत्यावर्तन करने के लिए अनुमति सनदी लेखाकार द्वारा उचित प्रमाणपत्र के आधार पर दे सकते हैं कि प्रेषित की जानेवाली प्रस्तावित राशि प्रेषण के लिए पात्र है और लागू करों का भुगतान किया गया है/उसका प्रावधान किया गया है।

2.2 अनिवासी भारतीय/ भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिए यह विकल्प है कि वे अपने अनिवासी (बाह्य) रुपया खाते में चालू आय को जमा कर सकते हैं बशर्ते प्राधिकृत व्यापारी बैंक इस बात से संतुष्ट हो कि जमा अनिवासी खाता धारक की चालू आय है और उस पर आय कर की कटौती की गयी है/ उसका प्रावधान किया गया है।

3.प्रतिबंध

(ए) पाकिस्तान, बांगलादेश, श्रीलंका, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, नेपाल और भूटान के नागरिकों को अचल संपत्ति की बिक्री आय के संबंध में विप्रेषण की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

(बी) पाकिस्तान, बांगलादेश, नेपाल और भूटान के नागरिकों को अन्य वित्तीय परिसंपत्तियों की बिक्री आय के विप्रेषण की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

4. कर भुगतान अपेक्षाओं का अनुपालन

प्राधिकृत व्यापारी बैंक, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के 9 अक्तूबर 2002 के परिपत्र सं. 10/2002 द्वारा निर्धारित फार्मेटों मे प्रेषक द्वारा एक वचनपत्र और सनदी लेखाकार से प्राप्त प्रमाणपत्र की प्रस्तुति पर ही अनिवासियों को विप्रेषण की अनुमति दे सकते हैं।[26 नवंबर 2002 का ए.पी. (डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं. 56 देखें]।


परिशिष्ट

इस मास्टर परिपत्र मे समेकित अधिसूचनाओं/ परिपत्रों की सूची

/en/web/rbi/foreign-exchange-management/ap-circulars-display
/en/web/rbi/foreign-exchange-management/notifications

क्रम सं.

जारी की गई अधिसूचनाएं/परिपत्र

दिनांक

1

अधिसूचना सं. फेमा 62/2002-आरबी

13 मई 2002

2

अधिसूचना सं. फेमा 65/2002-आरबी

29 जून 2002

3

अधिसूचना सं. फेमा 93/2003-आरबी

9 जून 2003

4

अधिसूचना सं. फेमा 97/2003-आरबी

8 जुलाई 2003

5

अधिसूचना सं. फेमा 119/2004-आरबी

29 जून 2004

6

अधिसूचना सं. फेमा 152/2007-आरबी

15 मई 2007

1

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.45

14 मई 2002

2

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.1

2 जुलाई 2002

3

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.5

15 जुलाई 2002

4

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.19

12 सितबंर 2002

5

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.26

28 सितंबर 2002

6

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.27

28 सितंबर 2002

7

एपी(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र सं.35

1 नवंबर 2002

8

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.40

5 नवंबर 2002

9

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.46

12 नवंबर 2002

10

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.56

26 नवंबर 2002

11

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.59

9 दिसंबर 2002

12

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.67

13 जनवरी 2003

13

एपी(डीआईआर सिरीज़) परिपत्र सं.101

5 मई 2003

14

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.104

31 मई 2003

15

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.43

8 दिसंबर 2003

16

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्रसं.45

8 दिसंबर 2003

17

एपी(डीआइआर सीरीज़) परिपत्र सं.62

31 जनवरी 2004

18

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.43

13 मई 2005

19

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.12

16 नवंबर 2006

20.

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं. 26

14 जनवरी 2010

21.

एपी(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र सं.70

09 जून 2011

टिप्पणी

  • प्राधिकृत व्यापारी बैंकों की सुविधा के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत किए जानेवाले विवरण/ विवरणियों की सारणी और परिचालनात्मक मार्गदर्शी सिद्धांत क्रमश: संलग्नक -1 और 2 में दिए गए हैं।
  • सभी उपयोगकर्ताओं की सूचना के लिए यह भी स्पष्ट किया जाता है कि आवश्यक नहीं है कि मास्टर परिपत्र सुविस्तृत ही हों और जहां कहीं आवश्यक हो, अधिक सूचना/स्पष्टीकरण के लिए संबंधित ए.पी.(डीआईआर सीरीज़) परिपत्र का संदर्भ देखें।

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